मेरी कहानी - गुरमेल सिंह भमरा - भाग 1

Page 1

मेरी कहानी

गुरमेल सिंह भमरा की आत्मकथा का पहला भाग (21 एपीिोड) 'जय विजय' पविका की िेबिाइट पर प्रकासित िंस्मरणों का िंग्रह िंग्रहकता​ा

विजय कुमार सिंघल ई-बुक सनमा​ाता

राजंद्र सतिानी प्रस्तुतकर्त्ा​ा

लीला सतिानी


मेरी कहानी- 1 कभी कभी िोचता हूँ कक अपनी कहानी सलखूं लेककन कैिे, कभी िमझ ही नहीं पाया … यह पढ़कर आप बहुत है रान हंगे कक मेरी िही जनम सतसथ मुझे तो क्या मालूम होगी, मेरे घर

िालं को भी पता नहीं, यहाँ तक कक मेरी माँ को भी नहीं. मेरा जनम राणोी गाँि जो पंजाब के कपूरथला कडस्ट्स्िक्ट मं है हुआ. उि िक्त मेरे वपताजी ईस्ट अफ्रीका मं थे जो आज केन्या के नाम िे जाना जाता

है . मेरे दादा जी और माँ कभी स्कूल नहीं गए, िोह वबलकुल अनपढ़ थे, िाएद यह िजह होगी कक उन्हंने कोई मेरा ररकाडा नहीं रखा.

उि िक्त इं कडया अंग्रज े ं का गुलाम था. भारत की जनिंख्या का ररकाडा रखने का ढं ग भी कुछ

अजीब था जो गाँिं मं एक ऐिे ककिम का था जो ककिी भी तरह िे िही नहीं कहा जा िकता. हर गाँि मं एक चौकीदार हुआ करता था स्ट्जि के काम तो बहुत हुआ करते थे, लेककन एक काम था, जो भी बच्चा

गाँि मं पैदा हो, िोह एक महीने मं स्ट्जतने बच्चे पैदा हुए हं, उनके नाम, माता वपता के नाम सलख कर पुसलि स्टे िन जा कर दजा करा दे ता था और पुसलि िाले िारे ररकाडा कडस्ट्स्िक्ट कपूरथला को भेज दे ते

थे. जो नाम चौकीदार सलखाता था बहुत दफा िोह अपनी मर्ज़ी िे सलख दे ता था क्यंकक बथा ितीफीकेट की तो ककिी को जरुरत होती नहीं थी. बहुत दफा ऐिा भी होता था कक चौकीदार पुसलि स्टे िन जाता ही नहीं था, इि सलए बहुत नाम ऐिे ही रह जाते थे और जब बच्चा िकूल जाता था तो माँ बाप जो मर्ज़ी जनम ताररख सलखा दे ते थे.

यह मुझे उि िक्त पता चला जब मं अपनी िही जनम की ताररख मालूम करने के सलए १९५८ मं

कपुरथले गया. मं है रान हो सगया जब मेरा कहीं भी नाम नहीं था. एक बात और भी थी कक उन कदनं कोई िड़क तो होती नहीं थी, और बरिात के मौिम मं तो चौकीदार कई महीने जाता ही नहीं था. हमारे

गाँि को पोसलि स्टे िन फगिारा िहर लगता था, जो तकरीबन दि ककलोमीटर दरू है लेककन उन कदनं फगिारे जाना भी एक मुकहम होती थी. गाँि मं पढ़े सलखे लोग दो चार ही होते थे , बाकी िब गाँि मं ही काम करते थे जो अनपढ़ ही होते थे. लेककन िभी लोग एक दि ु रे पर सनभार हुआ करते थे.

हमारे गाँि मं बहुत जासतआं थीं, जैिे जट जो खेती करते थे, तरखान जो लकड़ी का काम करते थे,

लुहार जो लोहे का काम करते थे, झीिर या समश्र थे जो िुबह िुबह कूएँ िे पानी भर कर हर घर के घड़े

भर दे ते थे, नाई होते थे जो बाल काटने के अलािा िादी िमारोहं मं भी काम करते थे, आप तौर पर लोग उन्हं इज्जत िे राजा जी कहा करते थे, छीम्बे होते थे जो अक्िर लोगं के कपडे िी कर गुर्ज़ारा

करते थे, कुछ घर ब्राम्हणों के थे स्ट्जन मं स्ट्र्ज़आदा खेती ही करते थे, सिफा एक घर था जो जोसति और िादी वि​िाह मं काम करते थे. इि के इलािा आह्लुिासलए जो बाकी लोगं िे कुछ िभ्य थे, कुछ घर घुसमआरं के थे जो मट्टी के बतान बनाते थे और कदिाली के िमय मट्टी के कदए बनाते थे.

गाँि के इदा सगदा तीन बस्ट्स्तआन चमार लोगं की थी जो गाँि िे मरे हुए पिुओं को ले जा कर

उन की खलड़ी उतारते थे स्ट्जि िे िोह चमड़ा बनाते थे और जूते बना कर गाँि मं बेच दे ते थे और जब

काम न हो तो दरख्त काटने का काम करते थे. और चूहड़े होते थे स्ट्जन के अपने अलग घर थे, यह लोग


घरं मं पिुओं की जगह को िाफ़ करते थे. दो घर िुसनआरं के होते थे जो िादीओं के सलए गहने बनाते

थे, दो हकीम थे, जो दिा दारू का काम करते थे. इन मं िे एक डाक्टर, स्ट्जि को हकीम ही कहते थे, पोस्ट ऑकफि भी चलाता था और उि के िाथ एक पोस्ट मैन था जो गाँि की डाक दि ु रे गाँि छोड़ने जाता था और िहां िे हमारे गाँि की पोस्ट ले आता था और िारे गाँि मं बांट दे ता था और कोई मनी आडा र हो उि को भी स्ट्जि का हो उि के घर पुहंचा दे ता था.

िारे गाँि मं एक हलिाई की दक ू ान होती थी स्ट्जि मं लड्डू बेिन जलेवबआं िीरनी पकौड़े ही होते

थे क्यंकक स्ट्र्ज़आदा खरीदने की लोगं की कहम्मत नहीं होती थी. हर गली मं एक छोटा िा कूआं स्ट्जि को

खूही कहते थे, होता था. और जब की बात मं करता हूँ यह आजादी िे पहले की है और तब मुिलमानं

के इलग्ग िे दो कूएँ होते थे और एक मस्ट्स्जद और दो उनके मर्ज़ार होते थे. यं तो मुिलमानं का इलग्ग मुहल्ला हुआ करता था, लेककन कुछ उन के घर हमारे मुहल्ले मं भी थे . हम उन के घरं मं उन के बच्चं के िाथ खेलते रहते थे लेककन हम उन को छू नहीं िकते थे, अगर हमारे िालं को पता चल जाता कक हम ने उन को छूया है तो िोह हमारे ऊपर पानी सछडकते थे ताकक हम िुद्ध हो जाएं , यह एक िहम ही था जो अब ख़त्म है . इि का मतलब यह नहीं कक उन को नफरत िे दे खते थे लेककन एक तरह की परम्परा ही थी स्ट्जि को कोई नहीं जानता था कक ऐिा क्यं है .

हमारे घर के नर्ज़दीक एक मुिमान तेली रहता था जो कोहलू िे िरिं का तेल सनकाला करता था

और पाि ही दो जुलाहं के घर थे जो खादी का कपडा बनाते थे. लोगं मं वपयार बहुत था. मेरे दादा जी के खेत और एक मुिलमान, स्ट्जि का नाम गुलाम नबी था, स्ट्जि को दादा जी सिफा नबी कह कर ही

बुलाते थे उन के खेत पाि पाि थे. इिी सलए नबी और दादा जी ने आधे-आधे पैिे खचा के िांझा कूआं

लगाया था. नबी दादा जी के पक्के दोस्त थे और मुझे याद है नबी और उिकी पत्नी मुझ िे बहुत वपयार ककया करते थे. अक्िर मं उन के एक लड़के के िाथ खेला करता था स्ट्जि का नाम था नीफ या हनीफ

था. मुझे याद है मुिलमान लोग कोई सतओहार मनाते थे और गुड िे बने चािल बांटते थे और चुपके िे हम भी ले लेते थे लेककन हम घर नहीं बताते थे क्यंकक डांट पड़ने का डर होता था.

गाँि मं हर जात का अपना गुरदआ ु रा होता था और हमारे गाँि मं छे गुरदआ ु रे थे और एक मंकदर

भी था. आप है रान हंगे कक गाँि मं एक ठे का भी था स्ट्जि मं पोस्त और अफीम बेचीं जाती थी. अक्िर हम पोस्ट्स्तओं को पोस्त पीते हुए दे खने जाते थे. हर पोस्ती का अपना अपना मट्टी का बना बड़ा िा

बतान होता था स्ट्जि को िोह दौरा बोलते थे. इन लोगं को पोस्ती बोलते थे, िोह ठे के जाते, पोित खरीदते और िहीँ िे रखे हुए दौरे मं पोित डालते और िाथ ही पानी पा दे ते, कफर उि को खूब हाथं िे मलते.

जब पोित का अिर पानी मं सनकल आता कफर उि मं िक्कर डाल कर हाथं िे ही मलते. आस्ट्खर मं कपडे मं िे छान कर ग्लािं मं डाल कर िभी समल कर एक-एक करके उि पोित को पीते, उन की आँखं निे िे बंद होने लगती. उन को झूमते दे ख हम हँ िते.


मेरी कहानी – 2 मेरी माँ अक्िर बहुत बातं ककया करती थी। िोह स्कूल तो गई नहीं थी लेककन थोड़ी िी पंजाबी

सलखना पढना जानती थी और मर्ज़े की बात यह कक िोह कुछ कुछ हारमोसनयम भी बजाना जानती थी. िायद यह उि ने मेरे वपता जी िे िीखा होगा क्यंकक वपता जी गुरदआ ु रे मं कीतान ककया करते थे और गाँि मं बहुत िी िाकदयां भी उन्हंने कराई थी। और मेरे वपता जी अफ्रीका मं भी काम के अलािा गुरदआ ु रे मं पाटा टाइम ग्रंसथ भी थे स्ट्जि िे उिकी आमदनी मं इर्ज़ाफ़ा हो जाता था।

बहुत िी बातं मुझे मेरी माँ िे ही पता चलीं। हमारे घर मं बहुत स्त्रीआं आ कर चरखा चलाती थीं

और कभी गातीं, कभी गप्प िप्प करतीं और मं िहां बैठा उनकी बातं िुना करता था, यह आदत मुझे िुरू

िे ही पड़ चुकी थी, मुझे इि मं बहुत आनंद आता था। कभी कभी िोह भूत चुड़ैलं की बातं करती और मं मन ही मन मं भूत चुड़ैलं की तस्िीरं बनाने लगता। मेरी माँ को कहानीआं भी बहुत आती थी, एक तो अभी तक याद है और िोह इतनी भािुक हो कर कहानी िुनाती थी कक मं एक भी लफ़र्ज़ समि ना

करता. उन कदनं इस्त्रीआं घर मं ही चक्की िे आटा पीिती थीं और अक्िर कुछ लड़ककआं हमारे घर मं

ही रात को आ कर आटा पीिती और हमारे घर मं ही िो जाती। क्यंकक गाँि मं आटा पीिने की मिीन ही नहीं थी, इि सलए आटा घर मं ही पीिा जाता था।

एक रात मेरी माँ ने कहानी िुनाई जो मुझे कभी भूली नहीं. वपता जी दो या तीन िाल अफ्रीका मं

काम करके इं कडया आ जाया करते थे। इं कडया आ कर मेरे दादा जी के िाथ काम कराते क्यंकक िोह

अपने खेतं मं काम ककया करते थे. कफर कुछ दे र रह कर िावपि अफ्रीका चले जाते। इि दफा जब वपता जी ने इं कडया आना था तो उन्हंने हमेिा की तरह आने के बारे मं खत सलखा। घर मं ख़ुिी की लहर दौड़

गई। उि िमय िारी डाक बाई िी आती थी और बहुत हफ्ते लग जाते थे खत को इं कडया पहुंचने मं. जब वपता जी उन के बताये िक्त पर नहीं पुहंचे तो घर मं सचंता होनी िुभािक ही थी। कई हफ्ते हो गए लेककन वपता जी नहीं आये. कोई टे लीफून सिस्टम भी नहीं होता था। आस्ट्खर वपताजी दो हफ्ते लेट आये। िारा गाँि उन को समलने के सलए आया और िभी दे र िे आने का कारणो पूछ रहे थे।

मेरे वपता जी िारे गाँि मं पहले िख्ि थे जो वबदे ि गए थे इि सलए जब भी वपताजी अफ्रीका िे

आते िारा गाँि समलने को आता। तो वपताजी ने िब कहानी बताई कक जब िोह ककिंमू िी पोटा िे चले

तो िोह २५ इं कडयन थे स्ट्जि मं कुछ मुस्ट्स्लम, कुछ कहन्द ू और कुछ सिख थे। उि िमय अंग्रर्ज़ं की तरफ

िे इं कडयन लोगं के िाथ वितकरा बहुत ककया जाता था, इि सलए िोह िभी एक िाथ ही रहते थे। कहन्द ू सिख हर िुबह िाम पाठ पूजा करते और मुस्ट्स्लम अपनी नमाज पड़ते। स्िेज कैनाल पार करते ही िमुन्दर रफ हो सगया और जहार्ज़ कडको डोले खाने लगा, लगता था कक जान खतरे मं पड़ रही है । िब

भगिान को याद करने लगे। जब कुछ िांत हुआ तो जहार्ज़ की रफ़्तार बहुत धीमी हो गई थी। इि तरह कई कदन लग गए िायद जहार्ज़ का रास्ता बदल कदया सगया था। कई लोग बीमार पड़ गए। िभी ने मानत मानी कक अगर िोह िुख िास्ट्न्त िे बौम्बे िीपोटा पौहं च गए तो घर जाने िे पहले िोह िी पोटा िे

उर्त्र कर गुरदआ ु रे जाएंगे और अखंडपाठ रखिाएंगे। जब िोह िीपोटा िे बाकहर आये तो बहुत लोग आये हुए थे िायद लोगं को पता चल सगया होगा की जहार्ज़ खतरे िे बाकहर आया है . िोह लोग उन लोगं को


गुरदआ ु रे ले गए और अखंडपाठ रखिा कदया जो तीन कदन चला और कफर कुछ कदन आराम करके िोह

पंजाब की िे न पकड़ कर घर आये. यह कहानी ककतनी िच्ची है ककतनी मनघडं त मुझे नहीं पता, लेककन मंने हूबहू उिी तरह सलखी है जैिे माँ ने बताया था।

गाँि मं िावपि आ कर कुछ कदनं बाद वपता जी को एक मकान बनाने का ठे का समल सगया और

िोह इि काम मं मिरूफ हो गए। माँ बताया करती थी कक वपता जी बेकार मं िक्त बबा​ाद करने के आदी

नहीं थे, उनको मकान बनाना और कारपंटर का काम करना आता था, इिके इलािा िोह गुरदआ ु रे मं कीतान

भी करते। कुछ महीनं मं जब काम खत्म हुआ तो वपता जी अफ्रीका जाने के सलए कफर िोचने लगे, तो दादा जी बोले, “क्यं नहीं तू यहां ही इं कडया मं काम ढू न्ढ ले, बच्चे छोटे हं और मं भी ज़्यादा सधयान नहीं

दे िकता.” वपता जी कई कदन िोचते रहे , कफर अचानक उन का कोई दोस्त दे हरादन ू को काम के सलए जा रहा था। उि दोस्त ने वपताजी को भी िहां जाने के सलए कहा, वपताजी ने िोच कर िहां जाने का फैिला कर सलया। और कुछ कदनं के बाद िोह दोस्त के िाथ दे हरादन ू चले गये.

एक बात मं बताना चाहूंगा कक मुझ िे दो िाल बड़ी मेरी बहन थी और उि िे दो िाल हमारा

बड़ा भाई था, मुझ िे छोटे भाई ने १९४७ मं जनम सलया स्ट्जि का मुझे काफी पता है . कुछ महीने वपताजी दे हरादन ू काम करके मेरी माँ और मुझे दोनं को िहां ले गए, बड़े भाई और बहन पीछे दादा जी

के पाि रहे । यह दे हरादन ू मेरी स्ट्र्ज़ंदगी का िोह कहस्िा है जो मुझे बहुत वपयारा है . अक्िर लोगं को

बचपन की घटनाएं याद रहती हं लेककन बाद मं हुई बहुत िी घटनाएं भूल जाती हं . जो मुझे याद हं , मेरी माँ बहुत है रान होती थी कक मं तो उि िक्त मुस्ट्ककल िे दो ढ़ाई िर्ा का हूँगा, कफर मुझे यह बातं कैिे याद रह िकती हं ? लेककन यह िही है कक एक तो मुझे यह भी याद है कक माँ अक्िर मुझे कंधे पर वबठाया

करती थी, दि ू रे स्ट्जि मकान मं हम रहते थे हम उि के एक चुबारे मं रहते थे और दि ू रे चुबारे मं एक और समआं बीिी रहते थे जो आवपि मं लड़ते झगड़ते रहते थे। एक कदन उि औरत ने गुस्िे मं आ कर जोर िे दीिार मं रोटीआं बनाने िाला िेलन मारा स्ट्जि िे िेलन टू ट सगया और कफर उि का पसत दि ू रे कदन उि िेलन को ररपेअर कर रहा था और हं ि रहा था।

एक और घटना स्ट्जि को तो भूलना ही मुस्ट्ककल होगा, िोह था एक मंगता स्ट्जि का नाम था बाला।

िोह बहुत गंदे कपडे पहनता था और उिके हाथ मं होता था एक लोहे का बतान स्ट्जि मं िोह भीख मांगता था। एक कदन माँ उि बाले को कहने लगी,ए बाले ! हमारा गेली रोटी बहुत खाता है (बचपन मं

मुझे गेली बोलते थे). बाला मुझे लाल लाल आँखं िे दे खता हुआ बोला ” रोटी ना बहुती खाया कर, नहीं तो मारूंगा ” मंने रोते हुए कहा, नहीं खाऊंगा। इि बात को ले कर मेरी माँ जब मं बड़ा हुआ तो बहुत

दहु राती थी और स्ट्जि तरह मंने डर कर बाले को बोला था “नहीं खाऊंगा” माँ हं ि कर मेरी सममक्री करती।

एक आख़री बात जो याद है िोह थी मेरे वपता जी और माँ ककिी ऐिी जगह पर गए थे जो मुझे

लगता है जैिे कोई जंगल हो और एक खूबिूरत चकमा बह रहा था, स्ट्जि का पानी बहुत ही िाफ़ था, एक

बहुत बड़ा पत्थर था स्ट्जि पर बैठ कर हमने ककिी िब्जी के िाथ परौठे खाए थे। कौन िी जगह थी

िोह, मुझे कोई सगयान नहीं लेककन मेरी माँ का िोह चेहरा अभी तक याद है , मेरी माँ बहुत िुन्दर थी, उि


का रं ग वबलकुल गोरा था, िोह हरे रं ग की िाड़ी लगाती थी और माथे पर वबंदी लगाती थी, स्ट्जि िे िोह बहुत िुन्दर कदखाई दे ती थी, उि पत्थर पर बैठी का िोह चेहरा कभी नहीं भूल िका। इि िे ज़्यादा मुझे याद नहीं लेककन मं िमझता हूँ इतनी छोटी उम्र मं यह यादं याद रहना मेरे सलए बहुत बड़ी बात है . इिके बाद सिफा यह ही याद है कक हम गाँि मं िावपि आ गए थे और जब घर पुहंचे तो मेरी बहन और बड़े भैया मुझे एक दि ू रे िे छीन रहे थे.


मेरी कहानी – 3 दे हरादन ू की पहली याद तो सलख चुका हूँ लेककन अपने गाँि राणोी पुर का छोटा िा इसतहाि भी

सलखना चाहूंगा। स्ट्जतने भी गाँि िहर या दे ि होते हं उन को नाम दे ने का कोई कारणो होता है जो अक्िर िभी भूल जाते हं और या हमं पता ही नहीं होता। कदल्ली हमारे दे ि की राजधानी है लेककन ककतने लोग

जानते हं कक कदल्ली के सि​िा ककतने नाम पहले हुए हं । जी हाँ मं बात कर रहा हूँ राणोी पुर के नाम िे

िम्बंसधत दांत कथा जो मेरी माँ ने ही िुनाई थी. हमारे घर के िामने के आँगन मं कुछ औरतं चरखा

कात रहीं थी और मं िहीँ बैठा उनकी बातं िुन रहा था, अक्िर कुछ औरतं हं ि कर कह दे ती थीं- ‘क्यं बे ! तू बैठा औरतं मं क्या कर रहा है .’ लेककन मं हीं हीं करके बैठा ही रहता क्यंकक मुझे माँ की हर बात

कदलचस्प लगती थी। एक कदन एक एक स्त्री कहने लगी ” हमारे गाँि का नाम ककतना बुरा है , भला ककि ने रखा होगा इि का नाम ?”

हमारे गाँि को पहले रणो थुआ बोलते थे जो िुनने मं अच्छा नहीं लगता था। जब की मं बात कर

रहा हूँ उि िक्त रणो थुआ ही बोलते थे। यह मेरे दे खने की बात ही है कक धीरे धीरे लोग राणोी पुर बोलने लग गए और आज रणो थुआ िब भूल गए हं । मेरी माँ बोली, जानती हो हमारे गाँि का नाम राणोी पुर

क्यं पड़ा ? जब िब ने ‘ना’ बोला तो माँ बोली, ” हमारे गाँि मं एक राजा के महल थे और उि का राज

बहुत दरू दरू तक था। एक दफा राजे ने ककिी और राजे के ऊपर हमला करना था स्ट्जि का उि िे बहुत दे र िे झगड़ा चल रहा था। जब राजा अपनी फ़ौज ले कर जाने लगा तो िोह अपनी रासनओं िे बोला,

लड़ाई के बाद अगर हम जीत गए तो हम नगाड़ा इि तजा पर बजाएंगे, अगर हम हार गए तो दि ु री तर्ज़ा पर िजाएंगे। ”

राजा जीत सगया और उन्हंने ख़ुिी मं नगाड़ा बजा कदया लेककन गलती िे उन्हंने गलत तर्ज़ा पर

नगाड़ा बजा कदया। रासनओं ने िमझा कक उन की फौजं हार गई हं । रासनओं ने महलं को आग लगा दी

और िभी ने आग मं कूद कर जान दे दी। जब राजा िावपि आया तो िब दे ख िुन कर बहुत रोया और

हमेिा के सलए यह जगह छोड़ गया। चरखा कात रही िभी औरतं इि कहानी को िुन कर प्रभावित हुईं और इि पर बातं करने लगीं। मं पाि बैठा मन ही मन मं िो आग का िीन िोच रहा था। इि के बाद

और और बातं िुरू हो गईं लेककन मेरे कदमाग मं जैिे एक पक्की मोहर लग गई स्ट्जि को आज तक नहीं भूला। यह कहानी कहाँ तक िच्ची है मं नहीं जानता लेककन जब दरू िे दे खा जाए तो राणोी पुर गाँि का समड्ल ऊंचा कदखाई दे ता है स्ट्जि िे जाकहर होता है कक यह जगह खण्डरात रही होगी क्यंकक पहले गाँि का नाम राणोी थुआ ही होता था। थुआ या थेय का अथा पंजाबी मं खण्डरात होता है ।

यह तो बात हो गई राणोी पुर की, अब मं दे हरादन ू िे िावपि आने के बाद की यादं सलखुँगा. कुछ

अरिे बाद मेरे वपता जी कफर अफ्रीका चले गए। कुछ बड़ा हुआ तो बहुत दोस्त बन गए थे। िारा कदन खेलने मं गुर्ज़ार दे ते। हमारे घर की एक तरफ था बुआ परतापो का घर, िामने होता था मलािा राम का घर, स्ट्जि का बेटा था मदन लाल स्ट्जि को हम मद्दी बोलते थे। बुआ एक बाल विधिा औरत थी जो अब

िाठ पंिठ की होगी और अकेली रहती थी। बुआ के एक ररकतेदार का बेटा था तरिेम। मद्दी, मं और तरिेम बुआ के घर खेलते रहते। बुआ बहुत अच्छी थी, िबी उि को बुआ ही कहते थे। कुछ और लड़के


भी दोस्त बन गए थे। हम बुआ के घर बचपन की खेलं खेलते, बुआ बहुत खुि होती और हमं कुछ न कुछ खाने को दे दे ती।

मेरे वपता जी उि िक्त जिान ही हंगे क्यंकक िोह अक्िर कफ़ल्मी गाने गाते रहते थे , एक था ‘तू

कौन िी बदली मं मेरे चाँद है जा’, एक था ‘ररम स्ट्झम बरिे बादल ि, मस्त हिाएं आईं, वपया घर आजा आजा वपया घर आ जा’, एक था ‘गम ककये मुस्तककल ककतना नार्ज़ुक है कदल यह न जाना।’ यह गाने मंने िीखे हुए थे और बुआ मुझे कहती, गेली! कोई गाना गा। मं ख़ुिी िे गाना िुरू कर दे ता। िभी दोस्त कभी कभी जलिा भी ककया करते स्ट्जि मं हम झूठ मूठ का माइक्रोफोन बना लेते स्ट्जि मं एक डं डे के

िाथ ऊपर कोई छोटा िा ग्लाि रख दे ते और मं बोलने लगता, और िबी लड़के िरोते बन जाते। कभी कभी एक धासमाक गाना भी मं गा दे ता जो मंने वपता जी िे िीखा था, कुछ कुछ अभी तक याद है जो पंजाबी मं था, कुछ इि तरह था, ‘फूलां ते िौने िाले रोड़ां पे िं गए प्रीतम।’ यह गाना बुआ बहुत पिंद करती थी और हमं मूग ं फली या रे कडआं दे ती।

िब िे ज़्यादा मर्ज़ा हमं गसमाओं के कदनं मं आता था क्यंकक िभी लोग अपने अपने घर की छतं

पर ही िोते थे, वबजली है नहीं थी, इि सलए लोग अँधेरा होने िे पहले ही रोटी खा कर छतं पर पड़ी

चारपाईओं पर िो जाते और एक दि ू रे के िाथ बातं करते। चांदनी रातं मं अपना ही एक मर्ज़ा होता था। एक घर था बाबू राम मास्टर का घर, स्ट्जिको पैदल जाने के सलए बहुत दरू िे जाना पड़ता था लेककन उि की छत बुआ की छत के िाथ लगती थी। इि सलए बाबू राम िे कहानीआं िुनना बहुत आिान था। हम

कहते,मास्टर जी! कोई कहानी िुनाओ। मास्टर जी िुरू हो जाते और राजे रासनओं की कहानीआं िुरू कर

दे ते स्ट्जनमं भूत चुड़ैलं का स्ट्र्ज़कर ज़्यादा होता था और इन को पिंद भी बहुत करते थे। मास्टर जी की कहानी हमेिा बहुत बड़ी होती थी लेककन िोह आधी िुना कर ऐिी जगह छोड़ दे ते जब क्लाइमैक्ि होने को होता था। हम स्ट्र्ज़द करते मास्टर जी, थोह्डड़ी और िुनाओ लेककन िोह मानते नहीं थे और हम कहानी िोचते िोचते िो जाते।

जब कभी मास्टर जी ना होते तो बुआ कुछ छे ड़ दे ती। अक्िर िोह कहती कक आधी रात को एक

आग का गोला उन के घरं के नर्ज़दीक हो कर जाता है , यह गोला बहुत दरू िे आता है और कुछ ही

समंटो मं यहां आ कर पता नहीं कहाँ चला जाता है । बुआ कहती कक तुम ने दे खना हो तो रात को जागते रहो लेककन हमं नींद आ जाती थी। एक रात की बात है कक मेरी बहन और उि की कु छ िहे सलआं इककठआं हो कर बाकहर गईं स्ट्जि को िोह जंगल पानी बोलती थीं। उन कदनं गाँिं मं टॉयलेट नहीं होती

थी और लड़ककआं इकठी हो कर जाती थीं। अभी आधा ही घंटा हुआ होगा कक िोह िभी दौड़ती हुई िावपि आ गईं। बुआ भी घबरा गई और मेरी माँ भी बाकहर आ गई, ककया हुआ ककया हुआ की आिार्ज़ं

आने लगीं। बहन बोलने लगी कक जब िोह गुरदआ ु रे के नर्ज़दीक पौहं ची तो उन्हंने दरू एक कटमकटमाता हुआ कदया िा दे खा। उन्हंने िोचा की िायद कोई अपने खेतं मं लालटे न सलए हुए घूम रहा होगा लेककन

बातं करते करते ही िोह एक बड़ा िा आग का गोला बन कर नर्ज़दीक आने लगा और िोह भाग कर दौड़ आईं। उन्हंने पीछे मुड़ कर दे खा तो िोह गोला िहीँ िे हो कर गुर्ज़रा िहां िोह खड़ी थीं।


इि घटना को मं ने कासलज के र्ज़माने मं कफस्ट्र्ज़क्ि के प्रोफेिर अजीत सिंह को िुनाई तो िोह

बोला ” तुम्हारे गाँि मं कबरं भी हं ” जब मंने बताया कक उि र्ज़माने मं हमारे गाँि मं बहुत मुिलमान थे और उन का अपना कबरस्तान होता था। तो अजीत सिंह बोला कक अक्िर गसमाओं के कदनं मं मुदं की

हकडओं मं िे फास्फोरि सनकल जाती है स्ट्जि को हिा मं आते ही आग लग जाती है और जब तक िोह पूरी खत्म नहीं हो जाती िोह उड़ती रहती है और कुछ दे र बाद खत्म हो जाती है …।”


मेरी कहानी – 4 मेरे बचपन के दोस्तं की सलस्ट तो बहुत बड़ी है लेककन कफलहाल मदन लाल स्ट्जि को मद्दी बोलते

थे और तरिेम का स्ट्र्ज़कर ही करूँगा। मद्दी का घर हमारे घर के वबलकुल िामने था। मद्दी के वपता जी

मलािा राम तीन भाई थे और मलािा राम के दो बड़े भाई थे बाबू राम और रखा राम। सिफा मलािा राम

की ही िादी हुई थी। कारणो यह ही था कक उन कदनं मं भी आज कल के हरयाणोा और पंजाब जैिी स्ट्स्थसत थी, यह मुझे बहुत बाद मं मालूम हुआ। आज जो भ्रूणो हत्या की िमस्या है िोह उि र्ज़माने मं इि िे भी ज़्यादा होती थी, ख़ाि कर गाँिं मं। लड़कं और लड़ककओं का अनुपात आज जैिा ही था। ऐिा

िुना था कक जब लड़की पैदा होती थी तो दाई उि के मुह ं मं अक्क के दध ू के कुछ कतरे डाल दे ती थी, यह अक्क का बूटा जो पंजाब मं बहुत होता था, और इि के पर्त्े को तोड़ने िे उि मं िे दध ू सनकलता था जो जहरीला होता था। बाद मं लोगं को कह दे ते थे कक लड़की मरी हुई पैदा हुई है । इिी सलए

लड़ककआं कम होने के कारणो गरीब लड़कं की िादी बहुत मुस्ट्ककल िे होती थी। अगर एक की िादी हो जाती तो उि की घरिाली का दजा​ा द्रोपदी जैिा ही होता था ।

एक और कारणो भी था कक र्ज़मीन की तकिीम न हो और िभी का गुर्ज़ारा हो िके। दे खने को तो

एक भाई की िादी होती थी लेककन िब लोग जानते होते थे कक उन की स्त्री द्रोपदी जैिे ही है . कुछ लोग बाकहर िे भारत के गरीब लोगं िे लड़ककआं खरीद लाते थे और उि िे िादी रचा लेते थे। अक्िर उन

लडकीओं की बोली कहं दी या कोई और जुबानं होती थी। जब िोह पंजाबी कहं दी की समक्ि भार्ा बोलती तो लोग बहुत हँ िते थे । ऐिी पांच िाकदयां हमारे गाँि मं भी थी। धीरे धीरे उन के बच्चे हो गए और अच्छी

तरह िोिाइटी मं समक्ि हो गई थीं। बहुत दफा हम मद्दी के घर खेलते खेलते िहां ही िो जाते। मद्दी की माँ रतनी हम को खेलते दे ख बहुत खुि होती।

बहुत दफा मद्दी के मामा जी का लड़का अपने गाँि िे आ जाता, स्ट्जि का नाम था विनोद। यह

लड़का कुछ दे र आता रहा और कफर पता नहीं कहाँ गुम हो सगया लेककन जब समला तो उि िक्त जब हम

िहर के स्कूल मं मैकिक मं पड़ते थे। विनोद िे हमारी समलनी भी अजीब ढं ग िे हुई। हम चार दोस्त िहर मं जब घुमते तो जीटी रोड पर यहां भी कोई इकठा या मजमा लगा होता हम िहीँ चले जाते। यह

मजमा लगाने िाले लोग बहुत हुसिआर होते थे, यह तरह तरह की जड़ी बूटीआं बेचते, उन के गुणो ऐिे ढं ग िे बताते कक बहुत लोग उन्हं खरीद लेते। कई दफा हम दोस्त उनकी बातं का मर्ज़ाक करने लगते

तो िोह इिारा करते और कहते कक भाई! “मेरा काम न खराब करो ” हम हँ िते हँ िते स्कूल को िावपि चले जाते।

एक कदन इिी तरह विनोद ने भी मर्ज़मा लगाया हुआ था। मुझे नहीं पता था कक यह विनोद ही था

क्यंकक बचपन के बाद कभी दे खा ही नहीं था। विनोद कोई राजे रानी की कहानी िुना रहा था लेककन ऐिे ढं ग िे स्ट्जि मं अश्लीलता थी और लोग िुन कर हं ि रहे थे। जब काफी लोग जमा हो गए तो कफर उि

ने अपने बैग िे बहुत िी दिाओं की िीसिआं सनकाली और उन िीसिओं को बीि वबमाररओं की एक

दिाई कह कर बेचने लगा। मेरा दोस्त बहादर सिंह स्ट्जि की िजह िे कुछ िाल बाद मं इं ग्लैण्ड आया था मुझे केहने लगा “यार मेरे बाबा जी के घुटने बहुत ददा करते हं क्या मं भी एक िीिी ले लूँ ?” मंने कहा


” तेरा कदमाग तो खराब नहीं हो गया यह िब धोखा है ” लेककन बहादर ने एक रूपया सनकाला और िीिी ले ली।

कफर विनोद अपने लीफ़लैट लोगं मं बांटने लगा कक अगर उन को और दिाई की जरुरत पड़े तो

उि लीफ़लैट पर सलखे पते पर िंपका कर िकते हं । जब मं ने उि लीफ़लैट पर विनोद िमा​ा सलखा दे खा

तो उि के पाि गया और बोला ” यार ऐिा लगता है मंने कहीं तुम को दे खा है ” उि ने मुझे मेरे गाँि

का नाम पुछा तो मंने राणोी पुर बताया। विनोद बोला, ” यार तू गुरमेल तो नहीं है ” जब मंने हाँ कहा तो िोह मेरे गले लग सगया। कफर उि ने एक रूपया सनकाल कर बहादर को दे कदया और हं ि कर कहने लगा, इि िीिी मं िमझ लो कूड़ा करकट ही है , कभी भी ककिी िे ऐिी चीर्ज़ नहीं खरीदना। कफर उि ने राणोी पर ना आने का कारणो बताया कक िोह घर िे भाग गया था और ऐिे धंधे िीख सलये कक इि मं कमाई अच्छी हो जाती थी, सिफा बात करने का जाद ू ही होता था।

तरिेम की कहानी भी अजीब थी। बुआ परतापो का पसत स्ट्जि का नाम था भूवपंदर सिंह लोग उन

को भूपा ही कहते थे। िोह तरखान भी था और लुहार भी, बहुत कारीगर था। उि की एक िकािॉप थी स्ट्जि को कारखाना कहते थे। िभी खेती करने िाले जट्टं का काम िोह ही करता था। तरिेम के वपता

जी जब छोटे थे तो भूपे िे काम िीखने लगे। िीखते िीखते बहुत बड़े कारीगर बन गए। अचानक एक

कदन भूपे को छाती मं ददा हुआ और यह दसु नआ छोड़ सगया। बुआ परतापो का कोई िहारा न रहा। विधिा वि​िाह का ररिाज नहीं था, इि सलए लोगं के कहने पर तरिेम के वपता जी ने कारखाने का काम िंभाल

सलया और स्ट्जतनी आमदनी होती उि मं िे आधा भुआ परतापो का कहस्िा होता और आधा तरिेम के वपता जी का। तरिेम के वपता जी की िादी हो गई और उन के तीन बच्चे हुए- तरिेम, अितार और एक बेटी स्ट्जि का नाम था तारो।

आज जब कभी मं उि र्ज़माने का और आज का मुकाबला करता हूँ तो िोचता हूँ कक िोह िभ्यता

अब कहाँ गई? परतापो भुआ के मरने तक तरिेम के वपता जी ने भुआ को कोई तकलीफ नहीं उठाने दी।

इतना ईमानदार था तरिेम का वपता कक लकड़ीओं िे उतरे हुए सछलके स्ट्जि को िक्क बोलते थे तकड़ी िे तोल कर आधे आधे बांटते। और बुआ उनको बेच कर अपने घर के सलए कोई चीर्ज़ खरीद लेती। तरिेम

के वपताजी बहुत धासमाक थे। हर िुबह िाम पाठ करते और िंक्रांत के कदन गुरदआ ु रे मं परिाद हमेिा िोह ही तैयार करते।

िैिे तो तरिेम ज़्यादा बुआ के िाथ ही रहता था लेककन उन का अपना घर तीिरे मुहल्ले मं था

स्ट्जि को रामगरीआ मुहल्ला बोलते थे। उि उमर मं हम आर्ज़ाद पंछी की तरह होते थे, स्ट्जधर मन चाहा उधर ही चल कदए। कभी कभी हम तरिेम के घर चले जाते। तरिेम का घर छोटा था लेककन बहुत

तरतीब िे बना हुआ था। घर मं दास्ट्खल होते ही छोटा िा आँगन और उि मं ही रिोई घर, उिी िे ही

छत को एक लकड़ी की िीढ़ी लगी हुई थी। कफर आगे जा कर एक बड़ा कमरा था और िाथ मं ही एक स्टोर रूम था। छत पर एक कमरा और िैरान्डा था। तरिेम के इि घर मं मंने बहुत अच्छे कदन वबताए थे।


तरिेम की माँ हमं बहुत वपयार िे गमा गमा रोटीआं स्ट्खलाती। घर की िफाई भी बहुत थी, रिोई के

बतान जो पीतल के होते थे हमेिा चमकदार और तरतीब िे िजाये होते थे और यह िब कैिे एक औरत

कर िकती थी जब कक िोह अँधी थी। िोह जनम िे ही अंधी थी और यह जानते हुए भी तरिेम के वपताजी ने उि िे िादी कर ली थी। मुझे याद है , जब िोह कुछ िोचती तो उि की आँखं जो वबलकुल िफ़ेद थी इधर उधर घुमाती और उिे दे ख कर कुछ अजीब िा लगता। मंने तरिेम के वपता जी और

माता जी को कभी भी झगड़ते हुए नहीं दे खा बस्ट्ल्क आपि मं हँ िते हुए ही दे खा था। ककतना प्रेम था उन का आवपि मं !

लेककन उि विचारी के अंसतम कदन बहुत मुस्ट्ककल िे बीते। उि के गले पर कोई कुछ ऐिे जखम

थे, स्ट्जि को हजीरां बोलते थे। िोह ददा के कारणो रोती रहती। उन कदनं गाँि का हकीम यमुना दाि कोई

लेप दे ता स्ट्जि को उन जख्मं पर लगाना होता था। जब िोह लेप लगाया जाता तो बहुत तड़पती और ऊंची ऊंची रोती। हमारा मन भी बहुत उदाि हो जाता। तरिेम का छोटा भाई और बहन अभी बहुत छोटे

थे। तरिेम की माँ दो महीने तड़फ तड़फ कर इि दसु नया िे रुखित हो गई और तरिेम इि छोटी िी उम्र मं जैिे बहुत बड़ा हो गया हो क्यंकक िारा भार उन के कन्धं पर आ सगरा। उि का बचपन भी खत्म हो गया। कुछ िालं बाद ही जब हम अभी आठिीं क्लाि मं पड़ते थे तो उि की िादी हो गई।

आगे जा कर तरिेम ने अपने भाई और बहन की िादी की। तरिेम की िाइफ का नाम था िीबो

और िोह भी इि दसु नआ िे रुखित हो चुक्की है । तरिेम भी अपने वपता की तरह बहुत धासमाक हो गया

और अमृत छक कर उि का नाम अब जरनैल सिंह है । तरिेम दब ु ाई चले गया था और काफी पैिे बना कर अब गाँि मं ही एक अच्छा मकान बना कर अच्छी स्ट्र्ज़ंदगी बतीत कर रहा है ।


मेरी कहानी – 5 हमारे घर की बाईं तरफ परतापो बुआ का मकान था तो दाईं ओर ताऊ नन्द सिंह का मकान था,

नन्द सिंह के मकान के वबलकुल िामने ताऊ रतन सिंह का मकान था । रतन सिंह के मकान की दि ु री तरफ िे मुिलमानं का मुहल्ला िुरू हो जाता था। इन लोगं की अपनी एक मस्ट्स्जद होती थी और कुछ

दरू ी पर एक मर्ज़ार थी स्ट्जि को पीर स्ट्जन्दे िाह की कबर बोलते थे। िाथ ही बहुत बड़ा बोह्डड का दरख्त

होता था। इि मुहल्ले मं हमारा जाना आना नहीं था क्यंकक इि मुहल्ले मं जाने के सलए हमं बहुत घूम कर जाना पड़ता था और तकरीबन पंद्रां समनट लग जाते थे।

कुछ कदनं िे गाँि की हिा अजीब िी हो गई थी। मोहल्ले मं पहले िाली रौनक नहीं थी। लोग एक

दि ू रे िे बहुत धीरे बात करते। घरं मं भी दब्बी आिार्ज़ मं बात करते। मेरी माँ को लड़के लड़ककआं चाची कहा करते थे। कभी कोई आता और माँ को बताता ” चाची ! मुिलमानं ने मुहद्दी पुर को आग लगा दी है । मेरी माँ डर जाती, कभी कोई आ जाता और कहता, चाची ! पाककस्तान बन सगया है । मुझे कुछ भी पता नहीं था कक क्या हो रहा है ।

एक कदन मं दोस्त के िाथ खेल रहा था तो मंने ऊंची आिार्ज़ मं कहा ” पाककस्तान स्ट्र्ज़ंदाबाद ” मेरी

माँ जैिे उबल पड़ी और जोर िे बोली, खबरदार ! अगर ऐिी बात मुह ं िे सनकाली तो, बेडा गरक हो पाककस्तान का, पाक (पीप) पै जाए इि पाककस्तान को। िभी लोग डरे हुए लगते थे।मुिलमान तो बहुत चुप थे, घरं मं दरिार्ज़े बंद कर के बैठे रहते, ना कोल्हू चलता, ना खादी का कपड़ा बुनने की आिार्ज़ आती। यह िब कुछ जब हम बड़े हो गए तो हम ने लोगं िे पुछा था और उन्हंने िब कुछ बताया था।

एक कदन बड़े भाई और दादा जी कहीं बाकहर गए हुए थे, मं मेरी बहन और माँ घर के भीतर थे।

वपता जी अफ्रीका गए हुए थे। चुबारे मं िे मं कुछ लेने के सलए िीड़ीआं चढ़ रहा था, तभी गोली चलने

की आिार्ज़ आई। आिार्ज़ इतनी भयंकर थी कक मं िीढ़ीओं िे सगरते सगरते बचा। मं िावपि उतरने लगा, तभी एक और गोली चली। माँ और हम रोने लगे। मंने रोते रोते माँ िे कहा, माँ हम दौड़ कर मािी के घर चले चलं ? माँ ! हम नानके चले चलं ?. कफर लगातार गोसलआं चलने लगीं। माँ एक िं क मं कपडे

डालने लगी। यह गोसलआं पीर स्ट्जन्दे िाह की कबर की तरफ िे आ रही थीं जो कक हमारे घर िे पचाि गर्ज़ की दरू ी पर ही था।

अब बहुत िोर मचने लगा था। हम ने एक आिार्ज़ िुनी, एक आदमी गली मं ऊंची ऊंची बोल रहा

था ” भाइओ ! रहमत अली ५०० पठानो को ले कर गाँि पे चढ़ाई करने के सलए आ रहा है , जो कुछ भी तुम्हारे पाि है , ककरपान लाठीआं या ककिी के पाि कोई बन्दक ू है ले कर आ जाओ “. कुछ दे र बाद मेरे दादा जी भी घर आ गए, उन्हंने िर पर बड़ा िा कपडा बाँधा और अलमारी िे ककरपान सनकाल ली। मेरी माँ दादा जी को रोकने लगी लेककन दादा जी ककरपान ले कर बाकहर चले गए।

यहां मं यह बता दँ ू कक रहमत अली मुिलमानं मं बहुत बड़ा बदमाि िमझा जाता था। यह िभी

बातं बाद मं बड़ा हो कर मुझे पता चलीं। यह १९४७ अगस्त का िमय था, पाककस्तान बन सगया था और

चारं तरह खून की होली खेली जा रही थी। गाँि के लोगं ने पीर स्ट्जन्दे िाह के िभी ओर िे घेरा डाल


कदया। रहमत अली ने िराब पी हुई थी और अंधाधुन्द गोसलआं चला रहा था। गाँि मं एक ही राइफल

थी। कमा सिंह एक ररटायडा फौजी था। उि ने राइफल िे सनिाना लगाया, रहमत अली तो बच सगया लेककन फर्त्े घुसमआर को गोली लगी और िोह िहीँ ढे र हो सगया। कफर लोगं ने घेरा और नर्ज़दीक कर कदया और एक और गोली चलाई जो रहमत अली को लगी और िोह भी ढे र हो सगया। लोगं ने और

ककिी को कुछ नहीं कहा, सिफा रहमत अली को घिीट कर बाकहर ले आये और स्ट्र्ज़न्दे रहमत अली को ही आग लगा दी।

बाद मं िोर मच सगया कक पुसलि आ गई, इि सलए िब लोग भाग गए। स्ट्जन्दे िाह की मर्ज़ार पे

िब कुछ िांत हो सगया। पुसलि की तो अफिाह ही थी, दरअिल गाँि के लोग और ककिी को नुक्िान पहुँचाना नहीं चाहते थे। कुछ कदन ऐिे ही सनकल गए कफर अचानक कफर िोर मच सगया कक मुिलमान

कभी भी हमला कर िकते हं । हमारी एक गाय भंिं के सलए जगह होती थी स्ट्जि को हिेली बोलते थे। इि मं बहुत जगह होती थी। मुहल्ले के बहुत िे लोग, इस्त्रीआं बच्चे इि जगह पर इकठे हो जाते और िारी िारी रात जागते रहते।

लोगं ने अपना िामान िं कं मं बाँध रखा था। हम बड़ं की बातं िुनते िुनते िो जाते। उधर

मुिलमान भी अपनी मस्ट्स्जद मं इकठे हो जाते। जिान लड़के रात को दरू तक जाते और ख़बरं ले कर आते। बुआ परतापो बहुत िोर मचाती और कहती, ” कोई मेरा िामान उठा लो, ऐ लड़कं ! मेरे घर िे कुछ

और िामान ला दो “. लोग गुस्िे मं परतापो बुआ को आँखं कदखाते और कहते, बुआ ! यहां हर एक को अपनी जान की पड़ी हुई है और तू िामान के सलए रो रही है “. यह इकठ कई कदन तक चलता रहा। जब

मं बड़ा हुआ था तो मेरी माँ ने बहुत दफा मेरी सममकरी की जैिे मं उि कदन रोया था,” माँ !हम दौड़ कर मािी के घर चले जाएं ? माँ हम नानके चले जाए ? ककतने बुरे थे िोह कदन !

कफर एक कदन मंने दे खा, कक गाँि के िभी मुिलमान पाककस्तान को जा रहे थे। एक बहुत बड़ा

काफ्ला तैयार हो गया था। छकड़ं की एक लंबी कतार थी स्ट्जि पर घरं का िामान औरतं बच्चे बूढ़े बैठे

थे। गाँि के लोग उन्हं कैम्प तक छोड़ने के सलए काफ्ले के िाथ जा रहे थे, उन के हाथं मं ककरपान लाठीआं और छविआं बछे आकदक थे। गुलाम नबी आया और दादा जी के गले लग सगया, कफर उि की िाइफ भी आ गई और मेरे िर पर हाथ रखा, िोह रो रहे थे।

मेरे दादा जी कह रहे थे नबी ! घबरा ना, यह कुछ कदनं का फेर है , ठीक हो जाएगा। नबी बोल रहा

था भाई ! मेरे खेतं का स्ट्खयाल रखना, पानी दे ते रहना। उन्हंने बहुत बातं की जो मुझे पता नहीं। और कफर काफ्ला चल पड़ा। गाँि के िभी लोग िाथ चल पड़े और दे खते ही दे खते आँखं िे ओझल हो गए।

दि ू रे कदन िभी लोग मुिलमान भाईओं को कैम्प तक छोड़ कर गाँि िावपि आ गए। दादा जी बहुत उदाि थे, नबी और दादा जी िाथ िाथ बड़े हुए थे और इकठे ही खेती की थी, उन के मुह ं िे अचानक सनकला,” बि, नबी नबी ही था ”

बहुत िर्ं तक दादा जी जब भी नबी को याद करते, आस्ट्खर मं यह ही कहते,” बि, नबी नबी ही था

” अब एक और बुरा दृकय दे खने को समला। जब लोग मुिलमान भाईओं को छोड़ कर आ गए तो दि ू रे

कदन ही लूट िुरू हो गई। मुिलमानं के घर अनाज और दि ु री िस्तुओं िे भरे हुए थे। जैिे खेलने के


दौरान स्ट्खलाड़ी एक दि ू रे िे आगे जाने की कोसि​ि करते हं ऐिे ही लोग एक दि ू रे िे आगे हो कर घरं

के िामान पर टू ट पड़े । जो गंहूँ थी िोह िारी मेरे ताऊ रतन सिंह के आँगन मं फंक रहे थे क्यंकक रतन

सिंह का घर िाथ ही था, इि सलए िामान फंकने मं बहुत आिानी थी और आँगन भी बहुत बड़ा था। मं यह िब अपनी आँखं िे दे ख रहा था लेककन मुझे ककया पता था कक ककया हो रहा था।

कफर िहीँ ही खड़े खड़े फैिला ककया सगया कक िारा िामान इकठा हो जाने के बाद आवपि मं

बांटंगे। बि कफर ककया था, घर के बतान कपडे िंदक ू पेटीयाँ यानी हर चीर्ज़ फंकी जा रही थी। बहुत िे कागर्ज़ात थे स्ट्जि मं र्ज़मीन और मुकदमं के पेपर हंगे क्यंकक िोह अष्टाम पेपर थे स्ट्जन पर कपूरथले के

महाराजा की फोटो थी, यह मुझे बाद मं पता चला क्यंकक मं भी बहुत िे पेपर उठा लाया था उन पर पंिल िे लकीरं सलखने के सलए और िोह पेपर मंने कहीं दोस्तं िे छुपा कर रख कदए थे। बहुत िर्ं बाद

कोई चीर्ज़ ढू ँ ढ़ते िक्त अचानक ही िोह दे खे तो पता चला की िोह कोई मुक़दमे के पेपर थे और उन पर महाराजा कपूरथला जगतजीत सिंह की फोटो थी।

िारा आँगन भर सगया था. लूटते लूटते िाम हो गई, और मंने िब कुछ दे खा क्यंकक हमारा घर तो

िामने ही था। कफर आवपि मं लूटा िामान बांटते बांटते कभी झगड़ पड़ते। कब िोह िब चले गए मुझे

पता नहीं क्यंकक मं भी अपने घर चला सगया था। लोगं की नीयत िायद अभी भरी नहीं थी, दि ू रे कदन उन्हंने कच्चे मकान ढाने िुरू कर कदए और उन के दरिाजे स्ट्खड़ककआं उखाड़ उखाड़ कर ले जाने लगे। यह िब हो रहा था हमारी पिुओं िाली हिेली के िामने।

मेरा बड़ा भाई एक आटा पीिने िाली चक्की उठा लाया। जब दादा जी को पता चला तो िोह भाई

को डांटने लगे कक ” जा यहां िे उठा कर लाया है िहीँ रख के आ ” कोई इस्त्री बोली, चाचा! काहे लड़के को स्ट्झड़क रहा है , यह कौन िी बड़ी चीर्ज़ है ” िोह चक्की अभी भी हमारे नए मकान की छत पर पड़ी है ।

जब भी कभी मं राणोी पर सगया, उि चक्की को दे खकर बचपन की याद आ जाती। अब मुझे बहुत िर्ा हो गए हं राणोी पर गए, पता नहीं िोह अब है या नहीं लेककन मुझे लगता नहीं कक िोह फंक दी गई हो।


मेरी कहानी – 6 लूट मार के बाद गाँि मं कुछ कदन िांत रहे , लेककन अब और अजीब बातं िुनने को समलने लगीं।

लोग बातं कर रहे थे कक पाककस्तान िे एक गाड़ी आई थी जो कहन्द ू और सिखं की लािं िे भरी हुई थी।

यह भी बोल रहे थे कक कहन्द ू सिखं के घरं को लूट कर उन की लड़ककओं को नग्न करके लाहौर मं जलूि सनकाला गया, और कुछ औरतं की छातीआं काट दी गई थी, लाखं की तादाद मं लोग उजड़ कर इधर आ रहे हं । हम इन बातं को िुनते लेककन हमं क्या मालूम था कक क्या हो रहा था। हम तो बि

मस्ती करते और मुिलमानो के खाली पड़े घरो मं घुि जाते और बचे खुचे गंहूँ को ढू ँ ढ़ते और अपनी

कमीज के पलड़े मं डालकर दक ं फली रे डीआं खरीद कर खा लेते। एक लड़के को ू ान को ले जाते और मूग एक आना समल सगया और बहुत खुि था। हम भी घरं के एक एक कोने को ध्यान िे दे खते कक िायद

हम को भी कोई पैिा समल जाए। हम िभी लड़के इकट्ठे हो कर घर घर जाते। एक घर मं एक हुक्का पड़ा हुआ था। पहले तो कोई उिे हाथ नहीं लगाता था क्यंकक हमं एक िोह डर था कक इिे छूने िे कहीं

सभट्ट न जाएँ यानी अपविर्त्र ना हो जाएँ। इिका कारणो यह था कक सिख ना तो सिगरे ट या हुक्का पीते हं और ना ही इिे छूते हं । ककतनी दे र तक हम एक दि ू रे को दे खते रहे । कफर अचानक मंने हुक्के की नली मं जोर िे फूंक मारी। फूंक मारते ही सचलम की िारी राख हम िभी के िरं पर पड़ गई। पहले तो

िभी हं ि पड़े , कफर डर भी गए कक कहीं घर िालं को पता ना चल जाए। हम एक दि ू रे का िर िाफ़ करने लगे। हालांकक लूट मार िे घर खाली हो गए थे लेककन अभी भी बहुत िी चीर्ज़ं पढ़ी थीं जो िायद ककिी के मकिद की नहीं हंगी, लेककन हमारे सलए िोह कीमती थी क्यंकक हमं तो बि खेलना ही था।

एक कदन हमारी गली मं एक स्त्री आई स्ट्जि के िाथ दो बच्चे थे और रो रो कर बता रही थी कक

िोह पाककस्तान िे आई है , उि के घर के िभी िदस्य और पसत मार कदए गए थे। बहुत स्त्रीआं इकठी हो गई थी, मेरी माँ ने रोटी पकाई और उन को स्ट्खलाई। उि के बाद िोह स्त्री कहाँ गई मुझे पता नहीं कुछ

कदनं बाद और लोग आने िुरू हो गए। कुछ लोगं के तो ररकतेदार हमारे गाँि मं ही रहते थे , इि सलए इन लोगं के सलए तो िहारा समल सगया था। िोह लोग छकड़ं पर िामान लाद कर ले आये थे। गाँि के

लोग इन नए आने िाले लोगं को पनाहगीर कहते थे। मं पहले अपने ताऊ नन्द सिंह का स्ट्र्ज़कर कर चुका हूँ, उिके भाई और बच्चे भी आ गए। ताऊ नन्द सिंह का घर हमारे िाथ का ही था। िामान िे िारा घर

भर गया और ताऊ नन्द सिंह के सलए मुिीबत बन गई। क्यंकक जब िे मंने होि िंभाला था नन्द सिंह

अकेला ही रहता था और मर्ज़े करता था। िोह एक तरखान था और गाँि मं उि के सलए काफी काम था

स्ट्जि िे िोह खूब खाता पीता। िोह अपनी रोटी खुद ही पकाता था, उि की रोटीआं बहुत बड़ी होती थीं और कभी हमं भी स्ट्खला दे ता था।

ताऊ नन्द सिंह की भी एक अपनी ही कहानी थी जो लोग मर्ज़े ले ले कर िुनाया करते थे। कहते

थे जब ताऊ नन्द सिंह जिान था तो उि की िगाई एक गाँि मं हो गई थी, जब उि की िादी को कुछ महीने रह गए नन्द सिंह बीमार पड़ सगया। इतना बीमार हो सगया कक गाँि के हकीम ने जिाब दे कदया। नन्द सिंह के माँ बाप ने यह दे ख कर नन्द सिंह के िुिराल िन्दे ि भेज कदया कक उनका बेटा अब ठीक

होने को नहीं, इि सलए िोह अपनी लड़की का ररकता कहीं और कर लं। एक िाल बाद नन्द सिंह की होने


िाली पत्नी की कहीं और िादी हो गई। इि के कुछ ही महीने बाद नन्द सिंह घोड़े जैिा तगड़ा हो गया और इि के बाद उि की िादी हो ही नहीं िकी। नन्द सिंह का भाई अपनी बीिी और बच्चं को लेकर

पाककस्तान के बार के इलाके मं रहने लगा और नन्द सिंह अपने माँ बाप के मरने के बाद अकेला रह गया।

पाककस्तान िे उजड़ कर नन्द सिंह का भाई अपनी पत्नी और बच्चं को लेकर नन्द सिंह के पाि

आ गया। ताऊ के भाई राम सिंह के तीन बेटे और दो बेटीआं थीं। दो बेटे तो बड़े और बहुत तगड़े थे, एक तो पेहलिांणो जैिा था। इि छोटे िे घर मं इतने लोग आ जाना बेचारे नन्द सिंह के सलए मुस्ट्ककल

बन सगया क्यंकक यह घर िाँझा था, उन लोगं को कुछ कह भी नहीं िकता था। रोर्ज़ रोर्ज़ झगड़ा होता,

ककि बात पे मुझे नहीं पता लेककन हमारा घर िाथ होने के कारणो हमं भी परे िानी हो रही थी। एक कदन पता नहीं ककया बात हुई ताऊ नन्द सिंह घर िे बाकहर आ गया। कुछ ही दे र बाद नन्द सिंह के भाई का बड़ा लड़का लाठी ले कर उि के पीछे आ गया और नन्द सिंह के िर पर जोर िे लाठी मार दी। नन्द

सिंह िहीँ सगर गया, गली के बहुत लोग इकठे हो गए थे और लड़के को बुरा भला कहने लगे। लड़के का नाम था प्रीतू। लोगं ने ताऊ नन्द सिंह को उठाया और हकीम िोहन लाल की िजारी ले गए, मं भी िहां ही था। ताऊ के िर पर िे बहुत खून बह रहा था। िोहन लाल ने िाफ़ करके दिाई लगा दी। इि के बाद ताऊ कभी खुि नहीं रह िका।

मुिलमानं के चले जाने के बाद िायद गाँि को श्राप लग चुक्का था, िोह ख़ुिी है ही नहीं थी। रोर्ज़

नए नए लोग आ रहे थे। गाँि मं बहुत लोग आ चुक्के थे और भारत की नई िरकार के सलए भी ककतना ककठन काम होगा, यह िोच कर कभी कभी है रान हो जाता हूँ क्यंकक उन नए लोगं को नए सिरे िे घर

और र्ज़मीने दे नी थी। कफर एक कदन बहुत िे िरकारी अफिर आये और मुिलमानं के छोड़े हुए घर

पाककस्तान िे उजड़ कर आए लोग स्ट्जनको पनाहगीर कहते थे, उन को अलाट करने िुरू कर ककये। ताऊ नन्द सिंह के भाई को र्ज़मीं और नया घर रािलवपंडी अलाट हुआ। यह रािलवपंडी फगिारे िे हुसिआर पर जाने िाली िड़क पर िसथत है । पेहलिान लड़के जो नन्द सिंह का भतीजा लगता था उि को छोड़ कर िभी रािल वपंडी चले गए और नन्द सिंह के सलए कुछ आिान हो सगया।

कफर हकूमत ने मुिलमानं की र्ज़मीनं जो हमारे गाँि मं थीं नए आये लोगं को अलाट करनी िुरू

का दी। अब हमारे सलए भी मुिीबत िुरू हो गई क्यंकक मेरे दादा जी के दोस्त नबी की छोड़ी हुई र्ज़मीन चार सिख भाईओं को अलाट हो गई। यह चारं भाई बदमाि टाइप लोग थे। क्यंकक कुंआ नबी के िाथ

िाँझा हुआ करता था, इि सलए िोह कहस्िा उन भाईओं को समल सगया। यह लोग अपनी मर्ज़ी करते और

हर िक्त कुंआ चलाते और अपने खेतं को पानी दे ते रहते लेककन दादा जी जब अपने खेतं को पानी दे ना चाहते तो उनको रोक दे ते। जब दादा जी कुछ कहते तो लड़ने के सलए तैयार हो जाते। एक कदन दादा जी

घर आये तो बहुत उदाि थे, िायद उन भाईओं िे झगड़ा हो गया था। कुछ दे र बाद नबी की बातं याद

करने लगे और बोले ” कहाँ िे यह जानिर आ गए” कफर उन के मुह ं िे सनकला “बि नबी, नबी ही था”.

यह बात दादा जी ने ककतनी बार कहीं, कोई सगनती नहीं हो िकती क्यंकक िोह नबी को आख़री िांि तक याद करते रहे ।


आज जब मं उि िमय को आज के पाककस्तान िे मुकाबला करता हूँ तो िोचता हूँ क्यं इतना

प्यार नफरत मं बदल गया ?


मेरी कहानी – 7 ताऊ नन्द सिंह के घर मं अब िास्ट्न्त हो गई थी। नन्द सिंह के घर के वबलकुल िामने ही ताऊ

रतन सिंह का घर था स्ट्जि के घर मं लूट मार का िामान फंका सगया था। ताऊ नन्द सिंह तो भमरा खानदान की तीन चार पीडीआं पीछे िे हमारा ताऊ था लेककन रतन सिंह तो िगा ताऊ ही था। यह कुछ

इि तरह था की मेरे दादा जी दो भाई थे और दि ू रे भाई की ही िादी हुई थी स्ट्जि िे ताऊ रतन सिंह हुआ था। दादा जी के भाई की अचानक मृत्यु हो जाने के कारणो दादा जी की िादी अपनी भाबी िे कर

दी गई स्ट्जि िे मेरे वपता जी हुए। वपता जी और ताऊ की माँ एक ही थी। यह ताऊ एक ऐिा िख्ि था जैिे कफल्मं मं प्रान जैिा विलेन हो। ताऊ का एक बेटा था चरणो सिंह। दोनं वपता पुर्त्र उतनी दे र तक हमं दःु ख और नुक्िान पौहं चाते रहे जब तक इि दसु नआ िे रुखित नहीं हो गए।

रतन सिंह िराब बहुत पीता था और िराब पी कर हमारे घर के दरिार्ज़े को ठोकरं मारता। हम

भाई बहन छोटे थे, वपता जी अक्िर अफ्रीका जाते रहते थे। रतन सिंह वपता जी िे ही डरता था क्यंकक

वपता जी एक तो तगड़े थे दि ू रे िोह जिानी के कदनं मं पेहलिानी करते थे। जब वपता जी अफ्रीका िे

आते तो रतन सिंह कहीं दरू िहर चले जाता। जब वपता जी चले जाते तो कफर गाँि आ जाता। दादा जी उि को बहुत डांटते लेककन िोह उन िे डरता नहीं था। चरणो सिंह अक्िर अपने नाना जी के िाथ ही रहता स्ट्जि का गाँि भविआना था। हमारा यह ररकता कुछ ऐिा रहा की कभी दोनं बोलने लगते कभी लड़ते। लेककन एक बात मुझे कभी िमझ नहीं आई की ताऊ मुझ िे इतना वपयार ककयं करता था। िोह

मुझे अपने िाथ िुलाता, मुझे दक ू ान िे कुछ खाने के सलए ले दे ता। बहुत दफा मं िोया हुआ वपछाब कर दे ता तो दि ू रे कदन ताऊ वबस्तरे के कपडे रस्िी पर डाल दे ता और हँ िता “िाले ने कपडे खराब कर कदए ” यह उि का तकया कलाम हुआ करता था।

रतन सिंह इतने निे करता था की मुझे आज है रानी होती है की इतनी दे र कैिे स्ट्र्ज़ंदा रहा। िोह

भांग, पोस्त, अफीम िराब िभी कुछ पी लेता था। कई दफा जब िोह बहुत निे मं होता तो लोग हँ िते,”

ताऊ ककया वपया है आज ?”. ताऊ बोलता,” ओ लोगो आज मं सतरिैनी का इश्नान करके आया हूँ ”. कफर

बोलता, िुनो ! पहले मंने भांग पी, कफर पोस्त और कफर अफीम, ककया यह सतरिैनी का इश्नान नहीं?। लोग ताऊ पर हँ िते। िब िे बुरी बात जो ताऊ की थी िोह थी उि का जमीन बेचना। उि के नाम काफी जमीन थी लेककन जब उि के पैिे खत्म होने लगते तो एक खेत रहन कर दे ता। दादा जी इि को

खानदान की बेइर्ज़ती िमझते और िोह जमीन पैिे दे कर छुड़िा लेते और यही बात झगडे का कारणो बनती।

कुछ कदनं िे ताऊ ने कुछ ज़्यादा ही दःु ख दे ना िुरू कर कदया था। पता नहीं ककया कारणो था।

मेरी माँ यं तो बहुत िरीफ थी लेककन एक कदन उि ने भी ककरपान सनकाल ली। जंग लगी हुई ककरपान को उि ने लकड़ी के कोयले िे िाफ़ ककया और रिोई के एक कोने मं रख दी। मुझे माँ िे इि का

कारणो पूछने का कभी स्ट्खयाल नहीं आया लेककन अब िोचता हूँ की माँ कुछ हो न जाए, तैयार हो चुक्की थी।


कफर अचानक वपता जी अफ्रीका िे आ गए। रात का िमय था, उि कदन िदी भी बहुत थी। घर मं

ककया बातं हुईं मुझे पता नहीं लेककन वपता जी ने हॉकी सनकाली, रतन सिंह का दरिार्ज़ा खटखटाया। यं ही ताऊ ने दरिार्ज़ा खोला, वपता जी धक्के िे अंदर चले गए। जाते ही ताऊ को कलाई िे पकड़ कर दि ू रे

अंदर स्ट्जिे दलान कहते थे उि मं पड़ी चारपाई पर फंक कदया और लगे हाककओं िे वपटाई करने। ताऊ चीखं मारने लगा। िारा मोहल्ला इकठा हो गया। यह दे ख दे ख कर मं िदी और डर िे काँप रहा था।

वपता जी जैिे गुस्िे िे पागल हो गए थे, ताऊ के मुह ं पर थपड़ मारते और बोलते जा रहे थे। मुहलले के लोगं ने बड़ी मुस्ट्ककल िे छुड़िाया।

धीरे धीरे लोग जाने लगे और मं भी घर आ कर िो गया। कुछ कदन िास्ट्न्त िे गुर्ज़र गए जैिे िब

कुछ िमान्य हो गया हो। एक कदन ताऊ के घर तीन आदमी आए स्ट्जन के िर पर नीले रं ग की पगड़ीआं

बाँधी हुई थीं, एक के कंधे पर राइफल थी। मं भी िहां चले गया, मुझे माँ या वपता जी ने कभी रोका नहीं

था। मंने दे खा ताऊ उि नए आदसमओं के िामने एक िराब की बोतल और कुछ ग्लाि रख रहा था, कफर ताऊ ने पकौड़ं की प्लेट रख दी। और ग्लािं मं रख कर पीने लगे। मं िावपि घर आ सगया तो दे खा वपता जी ने अलमारी िे वपस्तौल सनकाला। इि वपस्तौल को मंने पहले भी एक बार दे खा था जब वपता

जी मेरे मािड़ जी को कदखा रहे थे । यह वपस्तौल उन्हंने अफ्रीका िे एक ककताब मं छुपा कर लाया था।

मंने दे खा था कक एक मोटी ककताब मं वपस्तौल की जगह काट कर उि मं रख कर लाया सगया था। यह बहुत छोटा िा था और बाद मं वपता जी िायद अपने िाथ अफ्रीका ले गए थे।

वपता जी ऊपर छत पर आ गए और कफर ताऊ नन्द सिंह के मकान की छत पर आ गए और

ऊंची आिार्ज़ मं बोले, ” ओ भाई आ जाओ अगर तुम ने मुझे मारना है , मं यहां खड़ा हूँ “. ताऊ और उन बदमािं को िायद यह अहिाि नहीं था कक वपता जी इि तरह िामने डटकर आ जाएंगे। िोह तो िोचते

थे कक िोह वपता जी को डरा धमकाकर चले जाएंगे। वपता जी की जेब मं वपस्तौल था और दोनं हाथ पंट

की जेबं मं थे। लोग िुनकर अपने अपने घरं िे बाकहर आ गए और िारी बात जानकर ताऊ को कोिने लगे कक िोह अपने भाई पर ही बदमाि ले आया था।

मं यह िब दे ख रहा था, और दे ख रहा था कक िोह बदमाि आवपि मं ही लड़ने झगड़ने लगे थे।

एक कह रहा था, चलो यहां िे, दि ू रे ने िायद ज़्यादा िराब पी हुई थी िोह उि को गासलआं दे रहा था। मोहल्ले की बहुत इस्त्रीआं इकठी हो गई थी और ताऊ को बुरा भला कह रही थीं कक ताऊ ने अपने भाई पर ही हमला करने की स्कीम बनाई थी। कुछ दे र बाद यं ही िोह तीनो आदमी बाकहर सनकले इस्त्रीओं ने उन पर हमला कर कदया और लगी उन को जूतं िे पीटने। विचारे जान बचा कर भाग गए। यह तीनं आदमी इिरोिाल गाँि के थे, बाद मं िुना कक एक को तो कुछ कदनं बाद ही ककिी ने मार कदया था।

उन कदनं पाककस्तान बनने के बाद चोर बदमाि बहुत हो गए थे िायद इिी सलए वपता जी ने

वपस्तौल सलया होगा। दि ू रे कदन ताऊ िुबह ही पता नहीं कहाँ चले गये और कफर िास्ट्न्त हो गई। वपता जी भी कुछ महीने रह कर िावपि अफ्रीका चले गए।

अब मेरे सलए खेलने के सि​िा कुछ नहीं रह सगया था. हम दोस्त गली मं खेलते खेलते पीपलं के

दरख्तं की और चले जाते. यह पीपल के दरख़्त यहाँ िे हमारी गली िुरू होती थी उि के एक तरफ होते


थे.बहुत खुली जगह थी यह और पंदरां िोलां पीपल के दरख़्त थे और इि जगह को पीपल ही बोला करते थे जैिे ककिी नं इधर आना हो तो कहते थे “मं पीपलं को चला हूँ ”. यह जगह िभी बच्चं के खेलने के

सलए बहुत अच्छी थी, बच्चे तो क्या बड़े बजुगा भी यही आ कर बातं ककया करते थे और बहुत बजुगा एक

छोटे िे एक उजड़े हुए मंकदर के पाि बैठ जाते और बातं करते रहते. यह मंकदर बहुत छोटा िा था लेककन इि के दरिार्ज़े टू टे हुए थे स्ट्जि मं रात को कुर्त्े आ कर बैठ जाते थे.

इि मंकदर का भी छोटा िा इतहाि था. कहते हं बहुत दे र पहले एक िंत आ कर यहाँ पीपलं मं

रहने लगा था. िोह बहुत भगत और भगिान ् का नाम लेने िाला था. लोगं ने उि के सलए एक झंपडी

बना दी थी. एक कदन ककिी ने उि भगत को बुरा भला कह कदया. िोह िंत ने कहा कक जब िोह मरे तो राणोी पुर गाँि का कोई भी आदमी उि का िंस्कार न करे बस्ट्ल्क पाि के गाँि जगपाल पुर के लोग उि

का िंस्कार करं . जब िोह परलोक सिधार सगया तो िंस्कार तो उि का जगपाल पुर िालं ने ककया लेककन राणोी पुर के लोगं ने पछतािे के तौर पर िहां एक छोटा िा मंकदर बना कदया जो िंभाल ना करने के कारणो खराब हो गया.

इन पीपलं मं एक खूही होती थी और पाि ही एक दाने भूनने िाली की भट्टी थी स्ट्जि पर लोग

अपने अपने घरं िे दाने ला कर भूनने के सलए उि दाने भूनने िाली को दे ते थे. दाने भूनने िाली उन मं िे कुछ दाने रख कर बाकी भून दे ती थी. िकदा ओं मं जब रात आती तो हम दोस्त उि भट्टी के इदा सगदा बैठ जाते और बातं करते रहते. िोह कदन ककतने अच्छे थे !


मेरी कहानी-8 इन पीपलं के नर्ज़दीक जो खूही थी िह मुिलमानं की थी। कभी कभी िे कोई त्योहार मनाते और

गुड़ िाले चािल बांटते स्ट्जिको िोह सनआर्ज़ बोलते थे। हालांकक हमं उन िे कोई खाने की चीर्ज़ लेने की

मनाही थी कफर भी हम डरते डरते आगे आकर अपने दोनं हाथ आगे कर दे ते और िोह हमं चािल दे दे ते

और हम एक दि ू रे लड़के को चेतािणोी दे ते कक हमारे घर बताना नहीं। इन पीपलं मं जब हम खेलते थे तो मुिलमानं के लड़के लड़ककआं भी होते। उन मं एक लड़की थी जो मेरी उम्र की ही थी िोह हमेिा मेरे

िाथ ही खेलती। उि का चेहरा अभी भी कुछ कुछ याद है , उि को िीदाँ बोलते थे। यह क्या नाम था

मुझे आज तक पता नहीं। उि का रं ग गोरा, बाल भूरे और उिका लाल रं ग का परांदा होता था। मुिलमानं के गाँि छोड़ने िे कुछ कदन पहले बड़े लड़के आपि मं बात कर रहे थे कक उन को यह गाँि छोड़ना

पड़े गा। िीदाँ बोली ” मं तो नहीं जाउं गी, मं तो गेली के िाथ रहूंगी ” (बचपन मं मुझे गेली कहते थे). कफर कहने लगी, अबू कहते थे बाररि बहुत होगी, इि सलए मं तो जाउं गी नहीं। कैिी बात थी यह कक बाररि होगी और िोह नहीं जायेगी। मुझे कभी िमझ नहीं आया लेककन एक बात तो है कक उन के घर मं पाककस्तान जाने की बातं होती हंगी।

मुिलमानो के गाँि छोड़ने िे कुछ कदन बाद ही बाररि िुरू हो गई। िीदाँ की बात िायद िच होने

िाली थी, यह बाररि इतनी होने लगी कक िभी तरफ पानी ही पानी कदखाई दे ने लगा। पानी हमारी गली

तक आ सगया। िभी लोग िहमे हुए थे कक अगर यहां तक पानी आ गया है तो बहुत िे गाँि बाढ़ िे पानी मं डू ब गए हंगे क्यंकक हमारा गाँि ऊंचाई पर था। जो बातं लोग करते थे मुझे िब याद हं । लोग बोलते थे कक राम िर पानी मं डू ब सगया है । और दो लड़के राम िर खेतं मं थे उन का कोई पता नहीं कक ककया हुआ।

यह राम िर का भी छोटा िा इसतहाि है । राम िर हमारे और एक और दि ू रे आदमी के खेत थे।

यह खेत हमारे गाँि िे तकरीबन दो ककलोमीटर दरू थे। कहते हं कोई िक्त था जब सिखं के चौथे गुरु

राम दाि जी यहां आए थे औए जगह को अच्छी जान कर यहां एक िरोिर बना कदया, यहां मेले लगने

िुरू हो गए। कहते हं एक कदन एक चमार स्त्री ने िरोिर मं चमड़ा धो सलया। इि के बाद अचानक िरोिर जमीन मं गका हो गया, िोह स्त्री कुछ कदनं बाद मर गई और िहां मेले लगने भी बंद हो गए। कई दफा दादा जी मुझे बाइसिकल के पीछे वबठा कर यहां ले आते थे। जो तालाब की बात लोग करते थे उि जगह एक बहुत लम्बा छपड़ िा था। स्ट्जिे लोग मानते हं कक जरूर यहां िरोिर होता होगा।

इि िरोिर के पूिा की ओर एक बहुत बड़ा बोहड़ का दरख़्त है जो दो तीन िौ िाल पुराना होगा

और इि के िाथ ही एक छोटी िी छोटी ईंटं िाली खूही थी (इि को अब किर कर कदया सगया है ). इि बोहड़ के दरख़्त के नीचे एक झंपड़ी थी स्ट्जि मं एक बूढा फ़क़ीर रहता था। िोह कहीं नहीं जाता था। कोई न कोई उिे रोटी दे जाता था। जब दादा जी मुझे राम िर ले जाते तो पहले उि बूढ़े फ़क़ीर के पाि जाते, बातं करते और कुछ खाने को दे दे ते। कफर जहां हमारा कुंआ था िहां जाते। यहां हमारी जमीन

काफी थी और कुएं के नर्ज़दीक एक पक्का कमरा बना हुआ था स्ट्जि मं खेती बाड़ी के और्ज़ार रखे होते थे। हमारा कुँआ भी बहुत अच्छा था, इि के इदा सगदा िहतूत के दरख़्त होते थे स्ट्जि पर हर िाल िहतूत


लगते थे जो बहुत मीठे होते थे। दि ू रे कुंएं िाले ककिान और उन के लड़के अक्िर हमारे कुएं पर आ जाय करते थे और गप्पं लगाया करते थे। हमारे कुएं के तकरीबन दो िौ गर्ज़ की दरू ी पर एक नदी है

स्ट्जिमं बहुत पानी होता था (अब इि मं इतना पानी नहीं है ). यह नदी स्ट्जि को िेइन बोलते हं यह िोह

नदी है जो जालंधर के नर्ज़दीक चहे रु के रे लिे के पुल के नीचे िे जाती है । बाढ़ िे इि पुल मं बहुत दरख़्त फंि गए थे, स्ट्जिके कारणो ही पानी का लेिल ऊंचा हो सगया था और हमारे गाँि मं भी जा चुका था।

बाररि बहुत हो रही थी, िभी आदमी गाँि को चले गए थे और उन ककिानं के दो लड़के, एक का

नाम था िाधू और दि ू रे का नाम था समलखी (मुझ िे तीन चार िाल बड़े हंगे) खेतं मं रह गए थे। पानी इतनी जल्दी ऊपर चढ़ सगया था कक कोई आदमी उन लड़कं को बचाने नहीं जा िकता था। िारे

गाँि मं उन लड़कं की बातं ही हो रही थीं कक िोह स्ट्र्ज़ंदा हंगे या पानी मं बह गए हंगे। आस्ट्खर दो

आदमी जो तैरना जानते थे उन्हंने बड़ी बड़ी लकड़ीओं को रस्िं िे बाँध कर, उि पर बैठ कर कोई चप्पू जैिी चीर्ज़ िे लड़कं को बचाने के सलए चल पड़े , लेककन िोह पानी के बहाि िे दि ु री ओर चले गए और चहे ड़ू के पुल तक पहुंच गए लेककन बच गए। कहते हं तीिरे कदन पुल पानी के जोर िे टू ट गया और

पानी का लेिल नीचे आना िुरू हो सगया। अब कुएं तक जाना आिान हो गया था। िोह लोग अपने िाथ रोटीआं ले गए थे। जब बहुत िे आदमी िहां पुहंचे तो दोनं भाई भूख िे बेहाल बैठे थे। भगिान का िुक्र है कक िोह बच गए थे। उन लड़कं ने जो कहानी िुनाई उि िे िब लोग है रान हो गए थे।

एक और बात भी हो रही थी कक जो मुिलमान लोग पाककस्तान को जा रहे थे और एक कैम्प मं

हर्ज़ारं की तादाद मं थे चहे रु के पुल के अचानक टू टने िे कैम्प के िारे लोग पानी मं बह गए थे। िाधू और समलखी ने रोटी खाने के बाद बताया कक पानी इतनी जल्दी ऊंचा होने लगा था कक पहले उन्हंने

हमारे कमरे की छत पर चढ़ने की िोची, कफर छोटा समलखी बोला, भईआ ” अगर यह कमरा ढह सगया तो ?” यह िोच कर िोह हमारे एक बड़े ितूत के दरख़्त पर चढ़ गए। अभी चढ़े ही थे कक हमारा िोह कमरा

ढह कर नीचे आ सगरा और बहुत बड़ा धमाका हुआ। पानी के िहाि िे बहुत िांप आते स्ट्जिको िे डं डे के िाथ धकेल दे ते। पानी सिफा दो तीन फुट ही नीचे था और सगरने का भी खतरा बना हुआ था। कहीं नींद आ जाने िे सगर न जाएँ उन्हंने एक दि ू रे को एक रस्िी िे बाँध रखा था।

भूल ना जाऊं, यहां बोहड़ के दरख़्त के नीचे फ़क़ीर था िो भी पानी मं डू बकर अल्ला को प्यारा हो

गया था। बोहड़ के दरख़्त और खूही के सि​िा यहां कुछ नहीं होता था, सिफा कीकर और पलाि के दरख़्त

ही होते थे। दरू दरू तक घाि ही घाि होता था स्ट्जि पर लोग अपनी गायं भंिं चराया करते थे। कुछ िर्ं बाद जब मं कुछ बड़ा हो गया था तो मं भी िसनिार और ऐतिार को अपनी गाए भंिं ले कर यहां आ

जाया करता था स्ट्जि को हम बहुत मर्ज़े िे करते थे, क्यंकक मीलं तक घाि और दरख़्त ही होते थे।

दरख्तं पर हम एक खेल खेलते रहते थे स्ट्जि को जंग पलंगा कहते थे। इि खेल मं दरख़्त के नीचे एक

िकाल मं डं डा रखा होता था और एक लड़का उि को िकाल मं सलए खड़ा होता था, बाकी लड़के दरख़्त के ऊपर चढ़ जाते थे। िकाल िाला लड़का दरख़्त पर बैठे लड़कं को हाथ लगाने के सलए दरख़्त के ऊपर चढ़ने की कोसि​ि करता था लेककन कोई और लड़का जल्दी िे दरख़्त िे छलांग लगा कर डं डे को बहुत

दरू फंक दे ता था। उि िकाल िाले लड़के को कफर भाग कर डं डे को उठा कर िकाल मं रखना होता था।


अगर िकाल िाला लड़का ककिी के डं डा फंकने िे पहले हाथ लगा दे ता था तो कफर उि लड़के को िकाल मं खड़ा होना पड़ता था। िारा कदन हम मर्ज़े करते रहते।

यह िायद १९५८ ५९ की बात होगी जब हरखोिाल गुरदआ ु रे िे एक िंत जी आए स्ट्जन्हंने िहां

मेला लगिाया और इि िीराने मं एक झंडा यानी सनिाँ िाकहब खड़ा कर कदया। लोग दरू दरू िे आये और यह मेला कई कदन तक रहा। इि के बाद हर िंक्रांत को यहां कीतान होने लगा। राम िर की पसिाध्ता

कफर िे िुरू होने लगी। और आज यहां बहुत बड़ा गुरदआ ु रा बन सगया है और हर िक्त रौनक होती है । कुछ

िर्ा हुए मं जब गाँि सगया तो कदिाली के कदन दीआ जलाने के सलए अपनी बीिी और छोटे भाई के िाथ

सगया। गुरदआ ु रा बहुत िुन्दर है । दरू दरू तक जो कभी घाि का मैदान होता था अब चारं तरफ गन्ने और गंहूँ के खेत थे। मंने िोह खूही और बोहड़ का दरख़्त दे खा स्ट्जि के इदा सगदा िब कुछ बदल चुक्का

है । यहां िरोिर के स्थान पर एक छपड़ था उि जगह पर छोटा िा िरोिर बना कदया सगया है । बहुत दे र तक खड़ा मं स्ट्खयालं मं िोह पुराना बचपन का सचर्त्र बनाता रहा और कफर गुरु राम दाि जी के उि िमय को िोचने लगा। लगा जैिे गुरु राम दाि जी ने कफर आ कर इि जंगल को मंगल बना कदया हो।


मेरी कहानी - 9 एक कदन दादा जी मुझे कहने लगे, “गेली! कल को फगिारे िहर जाना है , तेरे सलए नए कपडे लेने

हं , क्यंकक तुम को स्कूल दाखल कराना है .” नए कपडे िुन कर तो मन खुि हो गया लेककन स्कूल का

नाम िुन कर डर िा लगा, क्यंकक मंने िुन रखा था कक िहां का मास्टर िाधू राम पीटता बहुत है । खैर, दि ू रे कदन मं दादा जी के बाइसिकल के पीछे बैठ सगया। कभी गाँि िे बाकहर नहीं गया था, अब यह नया रास्ता अजीब िा लग रहा था। गाँि िे बाकहर सनकल कर दे खा चारं और बृक्ष ही बृक्ष थे। आगे जा कर गाँि की एक छोटी िी नदी थी स्ट्जि को कैल बोलते थे।

यह कैल के बारे मं बहुत कुछ िुन रखा था कक इि पर चोर रहते हं जो लोगं को लूट कर बृक्षं

मं छुप जाते हं । इि कैल मं थोड़ा िा पानी हमेिा होता था और अपने जूते उतार कर इि को पार करना

होता था। लेककन बरिात के कदनं मं इि को पार करना बहुत मुस्ट्ककल होता था क्यंकक यह कैल पानी िे

भर जाती थी और पानी का बहाि बहुत तेज होता था। पुल कोई होता नहीं था। हमने कैल पर पहुंचकर अपने जूते उतारे और धीरे धीरे पार कर गए। दादा जी कफर बाइसिकल चलाने लगे आगे जा कर गाँि बारन आया कफर दो ककलोमीटर जा कर गाँि पलाही आया।

पलाही सिखं के छठे गुरु हरगोवबन्द जी का गुरदआ ु रा है , यह बहुत ही आसलिान गुरदआ ु रा है स्ट्जि

मं उन के एक घोड़े की हड्डीआं िंभाल कर रखी हुई हं , कहते हं एक लड़ाई के दौरान उन के घोड़े की मृत्यु हो गई थी। पलाही पार करके बृक्ष ही बृक्ष आने लगे जैिे एक जंगल हो। हम चलते रहे और दादा

जी ने कहा की पहले रोटी खा लं और पानी भी पी लं। फगिारे के नर्ज़दीक पहुंचकर एक बहुत ही रमणोीक जगह आ गई, दादा जी ने बताया, “इि जगह को भुआ धमडी बोलते हं .” (अब भुआ धमडी की जगह बहुत बड़ा कासलज बना हुआ है .) य़ह जगह मुझे बहुत अच्छी लगी, इि मं बेरीओं के दरख़्त थे स्ट्जि पर मोटे

मोटे बेर लगे हुए थे, (भुआ धमडी के बेर बहुत प्रसिद्ध हुआ करते थे). यहां एक छोटी िी खूही थी स्ट्जि का पानी एक जगह इकठा हो जाता था और पीने पीने के सलए एक टू टी लगी हुई थी।

हम कफर चल पड़े और फगिारे िहर आ गए। मंने कभी िहर नहीं दे खा था, पहली दफा बिं दे खीं,

ररक्िे दे खे, बड़ी बड़ी दक ु ानं दे खीं। वबजली के खम्भे दे खे। चहल पहल दे ख कर है रान हो गया। कफर दादा

जी के िाथ एक कपडे की दक ु ान मं गया। क्यंकक गमी हो गई थी, इिीसलए दक ू ान मं छत पर पंखा चल

रहा था, ट्यूब लाइट जल रही थी। पंखे को घूमता दे ख मं है रान हो रहा था और ट्यूब लाइट को तो बहुत ही ध्यान िे दे ख रहा था। ऐिे लग रहा था जैिे ककिी नई दसु नआ मं आ गया हूँ।

दादा जी ने मेरे कमीर्ज़ पजामे और पगड़ी के कपडे खरीदे और दरजी की दक ू ान पर चले गए।

दरजी ने मेरा नाप सलया और कहा की चार घंटे लग जाएंगे। दक ू ान िे सनकल कर दादा जी मुझे एक

हलिाई की दक ू ान पर ले गए और मेरे सलए रस्गुले ले आये और चाय का आडा र दे कदया। हलिाई की दक ू ान िे सनकल कर हम बाकहर आ गए और दादा जी कहने लगे ” अभी कपडे समलने मं िक्त बहुत है , चल टाऊन हाल चलते हं “. हम टाऊन हाल आ गए और उि मं घूमने लगे। तरह तरह के फूल दे ख कर

मं है रान हो रहा था और िब िे है रानी मुझे तब हुई जब आगे जा कर महात्मा गांधी का बुर्त् दे खा। गांधी जी की आँखं पर ऐनक, हाथ मं डं डा और पैरं मं चप्पल थी, यह बुर्त् दे ख कर बहुत है रान हुआ ।


कुछ घंटे टाऊन हाल मं हम एक बृक्ष के नीचे बैठे रहे और कफर कपडे लेने के सलए चल पड़े । कपडे तैयार हो चुके थे। दादा जी ने िहीँ दक ू ान मं मेरे नए कपडे पहनकर दे ख सलये, ताकक कोई नुकि न हो। कपडे ठीक थे, इि सलए कपडे ले कर गाँि को चल कदए।

कुछ लड्डू दादा जी ने फगिारे िे ही ले सलए थे, इि सलए दि ू रे कदन िुबह दादा जी मुझे स्कूल ले

आये। मास्टर िाधू राम जी ने मेरा नाम बगैरा अपने रस्ट्जस्टर मं सलखा और एक लड़के को क्लाि मं लड्डू बांटने के सलए कह कदया और मुझे क्लाि मं जमीं पर वबछी एक चटाई पर वबठा कदया स्ट्जि को

तपड़ बोलते थे। दादा जी चले गए और मं एक लड़के की ओर दे खने लगा जो पड़ा रहा था, िायद यह क्लाि का मॉसनटर था। लड़का ऊंची ऊंची अल्फ बे पे बोल रहा था और िभी लड़के उि के पीछे बोल रहे

थे, मं भी बोलने लगा जो मेरे सलए अजीब था। कभी कभी िोचता हूँ की ककतना िमय बदल गया जब उि िमय स्कूल सिफा छठी कलाि तक था और िब िे अजीब बात यह की सिफा एक ही टीचर िाधू

राम होता था जो बहुत कडसिस्ट्प्लन रखता था और बड़ी िोटी रखता था। जब िोह िोटी मारता तो इतनी जोर िे मारता की चीख सनकल जाती और हाथ पर सनिाँन पड़ जाते।

यह स्कूल छोटा िा था, एक हाल कमरा, उि के िामने बरामदा और िाथ मं छोटा िा कमरा जो

मास्टर जी का ऑकफि था। यह स्कूल छोटी ईंटं िे बना हुआ था और इि स्कूल मं एक बहुत बड़ा

पीपल का दरख्त था और एक खूही थी स्ट्जि के नर्ज़दीक रस्िी िे बाँधी हुई एक बाल्टी होती थी, लेककन जब ककिी ने पानी पीना हो तो िाधू राम मास्टर जी के िामने खड़े हो कर दोनं हाथ जोड़ कर पूछना

पड़ता था ” मास्टर जी ! पानी पी आऊं?”. कई दफा मास्टर जी अपने काम मं वबर्ज़ी होते थे तो बार बार

कहते थे ” मास्टर जी पानी पी आऊँ ?”. कफर मास्टर जी हाँ कह दे ते तो खूही पर जा कर पहले बाल्टी िे

पानी सनकालते और कफर िहां पड़ी एक गड़िी िे एक हाथ िे गड़िी पकड़ कर दि ू रे हाथ का एक कप िा बना कर हम पानी पी लेते। कई दफा हम ने वपिाब के सलए स्कूल िे बाकहर जाना होता था तो कफर

मास्टर जी के आगे हाथ जोड़ कर खड़े होना पड़ता था। आज इन बातं पर हं िी आती है लेककन िोह िमय ही ऐिा था।

िभी क्लािं के लड़के नीचे तपड़ं पर ही बैठते थे और ऊंची ऊंची िबक याद करते थे। मेरे कानं मं

अभी तक बड़ी क्लाि के मोनीटर की आिार्ज़ याद है स्ट्जि मं िोह पाउं ड सिसलंग और पंि के ि​िाल

सलखाता था और कभी कभी रूपए आने पैिे और पाई के ि​िाल सलखाता था। अक्िर मं है रान होता हूँ

की िकत दे खने के सलए मास्टर जी हमं एक लड़के को रोर्ज़ िोहन लाल डाक्टर की िजारी को भेजते थे, स्ट्जि मं बहुत बड़ा ग्रंड फादर क्लॉक लगा हुआ था, स्ट्जि मं नीचे एक पंडुलम इधर उधर आता जाता था, कफर जब घंटा पूरा होता तो जोर िे बजता। िोहन लाल बता दे ता की अब चार बज गए हं । लड़का स्कूल को भाग भाग कर आता और कहता मास्टर जी चार बज गए। उिी िमय लड़कं की भाग दौड़ िुरू हो जाती।

हर लड़के के पाि िलेट और एक तख्ती स्ट्जि को हम फट्टी बोलते थे होती थी। एक मट्टी की

दिात होती थी स्ट्जि मं स्याही भरी होती थी। तख्ती पर सलखने के सलए हम कलम बनाते जो एक पतले

बांि जैिी होती थी स्ट्जि को नाड़ा बोलते थे। हर एक लड़के के पाि चाक़ू होता था स्ट्जि िे िोह कलम


को घड़ता था। यह कलम बनाने का भी एक आटा होता था। कई लड़के जो अच्छी कलम बनाते थे उि

की समन्नतं करनी पड़ती थी और िोह लड़का बदले मं िलेटी का एक टु कड़ा मांगता। हमको हर रोर्ज़

फट्टी पर पहले सलखे हुए अक्षरं को पानी िे धोना होता था स्ट्जि को हम फट्टी पोछना कहते थे। इि

के सलए कुछ दरू ी पर एक तालाब पर जाना होता था। हम फट्टी को धोते, कफर उि पर एक पीली मट्टी स्ट्जि को गाचनी बोलते थे उि की एक कटक्की को सघिते स्ट्जि िे एक तह िी बन जाती।

कफर फट्टी िे लगे एक हं डल को पकड़ कर धूप मं इधर उधर घुमाते स्ट्जि िे फट्टी कुछ ही दे र

के बाद िूख जाती। िूखने के बाद दि ू रे दोस्त की फट्टी िे पंिल के िाथ िीधी लाइनं खींचते ताकक लाइनं मं अच्छा सलखा जा िके। यह हमारा रोर्ज़ का काम होता था। िोच िोच कर हं िी भी आ रही है

कक जब हम दिात यानी इं कपॉट मं स्याही की नई कटक्की डालते थे तो बैठकर दिात को दोनं पैरं के बीच दिात को रख के उि मं एक कलम को दोनं हाथं िे घुमाते थे ताकक स्याही अच्छी बन जाए और

िाथ ही िाथ बोलते जाते थे ” मेरी स्याही पक्कड़ रामू की स्याही कचड़ “। ककतना मर्ज़ा था इन बातं मं !

जी हाँ, और एक तबदीली जो अचानक हो गई िोह यह थी कक अभी अल्फ बे पे ही िीखा था और

एक छोटी िी कविता पढ़ी थी “आ जा वपयारी सचकड़आ आ जा, चूं चूं करके गीत िुना जा, नन्ने नन्ने पंजे

तेरे। …. ” कक िाधू राम मास्टर जी ने बताया कक उदा ू ख़त्म कर कदया गया है और कल िे पंजाबी पढ़ाई जायेगी। विचारे िाधू राम! स्ट्जन को खुद भी पंजाबी नहीं आती थी, नए सिरे िे नई जुबां पंजाबी िीखनी

पड़ी। मंने तो अपनी माँ िे दो तीन कदन मं ही पंजाबी िीख ली। दि ू रे लड़के भी धीरे धीरे िीख गए। तब एक कदन नए मास्टर जी आ गए स्ट्जन का नाम था वबरज लाल। वबचारे को पंजाबी वबलकुल नहीं आती थी। हम ऊल जलूल बातं सलखकर उि के पाि ले जाते और कहते, मास्टर जी ! हमं नंबर दो। विचारे

मास्टर जी सलख दे ते दि मं िे आठ। बाद मं हम लड़के खूब हँ िते और हम ने उि मास्टर जी का नाम ही वबज्जू रख कदया था स्ट्जि का अथा पंजाबी मं बेिकूफ होता है । िाह रे िोह कदन !!


मेरी कहानी – 10 मेरी बहन मुझ िे तीन िर्ा बड़ी थी और क्यंकक लड़ककओं के सलए स्कूल होता नहीं था तो उिने

घर मं रहकर ही माँ िे पंजाबी िीख ली और जल्दी ही सिख धमा की ककताबं पढ़ने लगी। क्यंकक माँ

रोर्ज़ाना पाठ करती थी इिसलए िोह भी काफी कुछ िीख गई थी। घर के िभी कामं मं िोह माँ की मदद

करती। िोह चरखा कातती और घर के सलए दरीआं बुनती, चारपाईओं के सलए चादर आकदक बनाती स्ट्जि पर तरह तरह के कडर्ज़ाइन होते। बहन की कुछ िस्ट्खयाँ थीं जो हमारे घर अक्िर आती जाती रहती थी। बहुत दफा िोह समल कर चक्की िे आटा पीिती और िाथ ही गाती रहती।

हमारा घर वपताजी ने खुद कडर्ज़ाइन करके बनाया था। क्यंकक वपता जी वबल्डर भी थे और कारपंटर

भी। घर बहुत बड़ा नहीं था लेककन इतनी ख़ूबिूरती िे बनाया था कक घर मं हर जरुरत के सलए व्यिस्था

थी। घर मं दास्ट्खल होने के सलए जो बड़ा दरिाजा था उि के ऊपर गुरु नानक दे ि जी, बाला और मदा​ाना तीनं की तस्िीर बनाई हुई थी जो उन्हंने खुद ही बनाई थी। बड़े भाई जो मुझ िे चार पांच िर्ा बड़े हंगे िोह गाँि मं छठी कक्षा की पढ़ाई खत्म करके पलाही गाँि को पढ़ने के सलए जाते थे क्यंकक िहां समडल

तक पढ़ाई होती थी। हमारे गाँि के िभी लड़के पैदल चल कर पलाही पढ़ने के सलए जाते थे। पलाही चार ककलोमीटर दरू था, और उन को रोर्ज़ाना चार ककलोमीटर पैदल जाना और आना पड़ता था क्यंकक बाइसिकल उि िमय बहुत कम होते थे। यह रास्ता बहुत मुस्ट्ककल होता था ख़ाि कर बरिात के कदनं मं। बहुत दफा जब बरिात के कदनं मं स्कूल िे िावपि आते तो उन के कपडे कीचड़ िे भरे हुए होते ।

बड़े भईया पड़ने मं रूसच नहीं रखते थे। एक दफा जब वपताजी अफ्रीका िे आये तो भइया को

डांटने लगे तो िोह रोने लगे। वपता जी िख्ती िे बोले ” अगर पढ़ना नहीं तो क्या करना है ?” भैया बोले,” मं कारपंटर का काम करूँगा.” य़ह दे ख कर वपताजी अफ्रीका को जाते िकत भैया को भी िाथ ही ले गए।

एक बात मं सलखने िे िंकोच नहीं करूँगा कक मेरे वपताजी बहुत िख्त िुभाि के थे और मं उन िे बहुत डरता था।

स्ट्जि तालाब पे हम पस्ट्ट्टआं पोछने जाते थे छुट्टी के बाद हम उि तालाब मं नहाने भी लग जाते

थे। इि तालाब का नाम था डबरी. हम तो मस्ती करते थे लेककन खतरे िे नािाककफ थे। एक लड़के की

मृत्यु भी हो गई थी उि तालाब मं नहाते हुए। एक दफा हम नहा रहे थे और उि तालाब मं नहा रही भंिं की पूछ ं े पकड़ कर तैर रहे थे, हम एक डं डे िे भंि को मारते तो भंि जल्दी जल्दी तैरने लगती और

िाथ ही हम भी तैरते जैिे िमुन्दर मं िकफंग कर रहे हं । हमारे सलए तो यह एक मस्ती ही थी लेककन यह खतरे िे खाली नहीं थी क्यंकक बहुत दफा भंि गहरे पानी मं जाने लगती तो उि िक्त एक डर िा भी लगा रहता था।

एक कदन ताऊ नन्द सिंह ने मुझे नहाते हुए दे ख सलया और घर जाकर मेरे वपता जी को िब कुछ

बता कदया। वपताजी उिी िक्त तालाब पर पुहंच गए और तालाब िे बाकहर सनकलते ही उन्हंने मुझे बालं

िे पकड़ सलया और घर तक मुझे पीटते ले आये। घर आकर इतना पीटा कक मेरा वपिाब सनकल गया। स्ट्जतनी दे र वपता जी गाँि मं रहे मं तालाब पर नहीं गया। मं यह ही िोचता रहता था कक भगिान करे

वपताजी अफ्रीका िावपि चले जाएँ। आज मं वपताजी की सचंता िमझ िकता हूँ कक िोह खतरे िे


मुझे बचाना चाहते थे। लेककन दि ु री तरफ मं उन िे इतना डरता रहता था कक वपताजी िे मेरा िोह प्यार का ररकता जो बेटे और बाप मं होना चाकहए िोह बन नहीं िका। प्यार तो कदल मं था लेककन कदल खोल कर कभी बात नहीं कर िका, एक िंकोच िा लगा रहता था।

माँ और दादा जी के नर्ज़दीक ही रहा। माँ और दादा जी िे मुझे इतना प्यार समला कक िोह हर

िकत याद आते रहते हं । एक बात और भी मंने जब मेरे बच्चे हुए तो िोच ली थी कक मं अपने बच्चं

को कभी पीटू ं गा नहीं और उन के िाथ दोस्तं जैिा रहूँगा ताकक बच्चं और हमारे दरस्ट्म्यान कोई दीिार ना बन िके और इि मं हम िफल हुए स्ट्जि का मुआिर्ज़ा हमं ऐिा समला कक मेरे िभी बच्चे, पोते दोहते

और दोहती दोस्तं जैिे हं और आवपि मं हर बात सनधड़क होकर करते हं । वपताजी के अफ्रीका जाने के

बाद मंने कफर डबरी तालाब पर नहाना िुरू कर कदया. इि डबरी िे मेरी इतनी यादं जुड़ी हं कक कभी भूल ही नहीं िकता.(अब इि डबरी को मट्टी िे भर कर ऊपर दक ु ाने और बड़ी बड़ी कोठी बन गई हं और इिके आगे िे बकढया िड़क बन गई है ).

गाँि मं उि िकत ककिी के घर मं भी टॉयलेट नहीं होती थी और िभी िुबह को खेतं मं और

ख़ाि कर डबरी के नर्ज़दीक खेतं मं बैठ जाया करते थे। डबरी के एक ओर बड़े बड़े पेड़ और झाड़ीआं थीं, इि सलए हम इन झाडीओं मं बैठ जाया करते थे। जब िकदा ओं के कदन होते तो डबरी का पानी िूख कर

खत्म हो जाता था। गाँि की इस्त्रीआं अक्िर खुपं िे मट्टी खुरचती और अपने टोकरं मं भर कर घर को

ले जाती थीं स्ट्जि िे िोह अपने कच्चे घरं की मरा मत करती थी क्यंकक यह मट्टी िीमंट जैिा काम करती थी। मट्टी सनकालने िे उि जगह बड़े बड़े गड़े बन जाते थे और यही गड़े बरिातं के कदनं मं कुँए जैिे बन जाते थे। गसमाओं के कदनं मं जब हम नहाते तो धीरे धीरे इन गढ़ं मं चले जाते और कुछ दे र

बाद हाथ पैर मारते हुए पानी के ऊपर आ जाते थे। यहां िे ही हम ने तैरना िीखा था। लेककन यह

खतरनाक खेल था और िभी लड़के डर के मारे िहां जाते नहीं थे। हम आर्ज़ाद पस्ट्क्षओं की तरह थे, स्ट्जधर जी चाहता हम चले जाते।

एक कदन हम दोस्तं ने िोचा, क्यं न हम जामुन खाएं ? हम जामुन के पेड़ की ओर चले गए। यह

जामुन का पेड़ बहुत बड़ा था और इि के पाि ही एक छोटा िा तालाब था। इि जामुन के पेड़ को िख्ती जामुन कहा जाता था। लोगं मं एक बात परचलत थी कक इि जामुन के ऊपर भूत चुड़ैलं रहती हं और

जो कोई इि के ऊपर चढ़ता है चुड़ैलं उिे नीचे फंक दे ती है । इि सलए डर के कारणो इि पेड़ पर कोई चढ़ता नहीं था, सिफा नीचे सगरी हुई जामुन ही चुन कर खा लेते थे। जब हम िहां पुहंचे तो नीचे इतनी जामुनं नहीं थीं लेककन पेड़ पर बहुत बड़ी बड़ी जामुनं थी लेककन पेड़ पर चढ़ने को ककिी मं हौिला नहीं था। बहुत दे र तक तू चढ़, तू चढ़ एक दि ू रे को कहते रहे लेककन कोई चढ़ने को नहीं माना।

पता नहीं मुझे हौिला कहाँ िे आ सगया, मं ने कहा, “मं चढू ं गा”, कह कर ऊपर चढ़ने लगा। ऊपर

चढ़ कर मोटी मोटी जामुने खाने लगा और नीचे दोस्तं के सलए भी फंकने लगा। पेड़ के िाथ ही एक रास्ता जो हमारे गाँि िे बुहानी गाँि को जाता है , उि पर लोग आ जा रहे थे। जो भी मुझे दे खता एक ही बात कहता, ” यह लड़का ऊपर चढ़ सगया है , यह आज बचेगा नहीं “. जो भी इि रास्ते पर आता जाता मेरी तरफ दे ख कर कहता इि लड़के को आज कुछ हो जाएगा। उन की बातं िुन िुन कर मं डरने लगा।


मंने अपनी जेब जामुनं िे भर ली थी और नीचे भी काफी फंक चुक्का था इि सलए मं पेड़ िे नीचे आ सगया लेककन मेरे मन मं एक डर पैदा हो गया था। जब मं घर आया तो रोटी खा कर अपनी चारपाई पर िो सगया। मुझे एक कंपकपी िी हुई और िदी लगनी िुरू हो गई।

ककि िक्त मुझे नींद आ गई पता नहीं चला लेककन िारी रात मुझे बुरे िपने आते रहे । िपनं मं

मेरे पीछे चुड़ैलं भाग कर आ रही हं , मं उन िे बचने के सलए कभी ककिी पेड़ के नीचे खड़ा हो जाता हूँ और चुड़ैलं स्ट्जन के िाल लम्बे लम्बे और पैर पीछे की तरफ हं , लाल लाल आँखं िे मुझे दे ख रही हं . कभी मं ककिी दीिार के िाथ बैठ जाता हूँ और कभी कफर भागने लगता हूँ, मेरी चीखं सनकल रही हं

लेककन िोह लगातार मेरे पीछे भाग रही हं । िायद मं जोर िे चीख मारता हूँ और जाग आ जाती है तो

दे खता हूँ कक मेरी माँ और डाक्टर िोहन लाल चार पाई के पाि खड़े हं । माँ बोल रही है ” डाक्टर जी यह िारी रात िोया नहीं, बुखार बहुत रहा और नींद मं बड़बड़ाता रहा”. िोहन लाल ने स्टे थस्कोप लगा कर

मुझे चैक ककया, कफर थमा​ामीटर िे टे म्प्रेचर दे स्ट्ख और कुछ दिाई की पुड़ीआं दे दीं। कुछ कदनं के बाद मं ठीक हो सगया लेककन माँ को कभी नहीं बताया कक मं िख्ती जामुन के पेड़ पर चढ़ा था। आज पहली दफा अपनी कहानी मं बताया है ।


मेरी कहानी – 11 एक बात मुझ मं ऐिी रही है कक दादा जी, मेरी माँ या बड़े भाई जो भी कहं मंने कभी इं कार नहीं

ककया था, हमेिा उन का कहना मान जाता था और उन का काम करने के सलए तैयार हो जाता था, कभी भी इं कार नहीं ककया था। इि के असतररक्त बड़े भाई या छोटे भाई जब कुछ बड़े हुए तो अकड़ जाते थे। यही कारणो रहा है कक मंने बहुत काम ककया। जो काम भी दादा जी कहते मं करने लगता।

एक ऐतिार के कदन दादा जी मुझे अपने िाथ गाए भंिं को घाि चराने के सलए चरागाह को ले

गए. यह चरागाह गाँि िे दो ककलोमीटर होगी, यहां भी हमारी बहुत जमींन थी स्ट्जि पर इतने घने िृक्ष थे

कक यह एक जंगल िा परतीत होता था। दरू दरू तक पेड़ं के सि​िाए कुछ कदखाई नहीं दे ता था। आज भारत मं िृक्ष लगाने के सलए बहुत आिार्ज़ उठ रही है जो बहुत अच्छी बात है लेककन अगर उि िमय को आज िे मुकाबला करूँ तो आज िृक्ष है ही नहीं। मं सिफा अपने गाँि की ही बात करूँ तो बताना

चाहूंगा कक राणोी पर गाँि के इदा सगदा दरू दरू तक पेड़ ही पेड़ कदखाई दे ते थे। आज खेतं की सिंचाई

ट्यूबिैल िे होती है लेककन उि िमय ट्यूबिैल नहीं थे, सिफा कुँएं ही होते थे स्ट्जनको बलद चलाते थे। कुएँ के इदा सगदा आम, जामुन और िहतूत के पेड़ जरूर होते थे िोह भी बहुत बड़े बड़े , स्ट्जन की छाँि मं अक्िर पिु बैठे होते थे। गसमाओं के कदनं मं ककिान चारपाईओं पर लेटे हुए होते थे। आम के पेड़ं पर इतने आम लगते थे कक लोग िाल भर के सलए अचार बना लेते थे। मेरी माँ भी दो तीन बड़े बड़े मट्टी के बतान स्ट्जन को चाटी कहते थे उनमं अचार भर कर रख लेती थी।

इिी तरह बहुत लोग चरागाहं के मासलक थे हमारी चारागाह िब िे बड़ी थी। जब मं दादा जी के

िाथ गया तो िहां बहुत गाए भंिं और उनके बछड़े बछड़ीआं थी और जो लोग उन पिुओं को चराने के सलए आए हुए थे उन मं बहुत तो लड़के लड़ककआं ही थे स्ट्जन्हं मं जानता था। गाँि िे चरागाह को जो रास्ता जाता था उन के एक ककनारे पर पानी पीने के सलए एक खूही थी स्ट्जि पर रस्िी के िाथ बाँधी

हुई एक बाल्टी होती थी। िाथ ही एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था। कहने की बात नहीं मुझे यह चराहगाह बहुत पिंद आई। एक दो कदन मं मं िब कुछ िमझ गया। कुछ कदनं बाद मुझे गसमाओं की छुकटयाँ हो गईं और मं अकेला ही गाए भंिं को ले जाने लगा।

एक बात अिकय सलखना चाहूंगा कक हमारी चरागाह मं पलाि के पेड़ ही थे स्ट्जन को सछछरे भी

कहते थे। यह पेड़ ऊंचे नहीं होते थे, ज़्यादा िे ज़्यादा दि पंद्रह फ़ीट ऊंचे ही होते थे लेककन इि के पर्त्े

चौड़े होते थे स्ट्जन िे एक तरह के कडस्पोर्ज़ेबल कप जैिे बनाये जाते थे स्ट्जन को दन ू े (दोने) कहते थे। गाँि के चमार हम िे िारे िीर्ज़न के सलए पर्त्े खरीद लेते थे और िोह हर रोर्ज़ पर्त्े तोड़ कर अपने घर

ले जाया करते थे और घर के िभी िदस्य इकठे हो कर बहुत तेजी िे दन ू े बनाते थे और ककिी कदन िोह

िभी दन ू े अपने िरं पर रख कर फगिारे ले जाते थे और हलिाइओं और पकौड़े िमोिे िालं की रे हकडओं िालं को बेच दे ते थे स्ट्जन मं िोह दक ु ानदार पकौड़े छोले आकदक डाल कर अपने ग्राहकं को दे ते थे।

इन गसमाओं की छुकटओं मं मंने जो मर्ज़े ककये िोह स्ट्र्ज़द ं गी मं कभी भूल नहीं िकता और इन बातं

को िब्दं मं बयान नहीं कर िकता। िारा कदन हम इन पलाि के बृक्षं मं घूमते रहते और अपने अपने

पछुओं का भी ध्यान रखते। हम मं कुछ लड़ककआं भी थी। एक लड़की थी स्ट्जि का नाम मुझे याद नहीं


िोह हर िमय मेरे िाथ रहती। मुझे बचपन िे ही गाने का िौक था और जो वपताजी घर मं गाया करते थे मुझे िभी याद थे और यह लड़की मुझे बार बार गाने को कहती थी। एक दफा िोह लड़की बीमार हो

गई, उिे िायद बुखार हो सगया था, िारा कदन उि की गाए भंिं को मं ने िंभाला क्यंकक गाए भंिं का

पता नहीं चलता था कक कब ककिी और कदिा मं चली जाएँ और लोगं की फिलं मं ना चली जाएँ। िाम को जाकर उि लड़की को कुछ होि आई। िोह िभी को यही कहती रही कक गुरमेल ने उि की बहुत मदद की। यह बात िोह तब तक नहीं भूली जब तक कक हम ने पिु चराने बंद नहीं कर कदए।

बहुत दफा बाररि होने के आिार नर्ज़र आने लगते थे तो हम पलाि के पेड़ं के पर्त्े जल्दी जल्दी

तोड़ लेते और उन पर्त्ं को आवपि मं जोड़ जोड़ कर छतरी जैिा बना लेते स्ट्जिे हम टोप कहते थे। बाररि आने पर िोह टोप हम अपने िरं पर रख लेते थे। इन बृक्षं मं कभी कभी हम को िांप भी

कदखाई दे ते लेककन कभी ककिी को इन िाँपं की िजह िे दःु ख नहीं पहुंचा। बहुत दफा हमको िाँपं की उतारी हुई िककन्न नर्ज़र आ जाती जो पूरे िांप जैिी होती, उि को हम कंज कहते थे। हम उि कंज को उठा लेते और अपनी आँखं पर िात दफा लगाते क्यंकक हम ने िुन रखा था कक िांप की कंज को िात दफा आँखं पे छुहाने िे आँखं दख ु ती नहीं या कोई भी आँखं की बीमारी नहीं होती।

हर रोर्ज़ दप ु हर को खूही पर रोटी खाने के सलए हम िभी इकठे होते। िभी बच्चं के पाि अपने

अपने घरं िे लाए परौठे ही होते थे और यह पराय दो ही होते थे। िूया ही हमारी घडी होता था, जब िूया आिमान मं सिखर पर होता तो हम इि को रोटी िेला कहते थे। परौठं के िाथ ज़्यादा तर आम का आचार और एक प्याज होता था। इि प्याज को अपने हाथ का मुक्का िा बना कर जोर िे उि पर मारते, प्याज टू ट जाता और हम इि प्याज को दोनं हाथं िे सनचोड़ दे ते और उन मं िे कड़िा पानी

सनकल जाता और खाने लगते। बाद मं खूही िे पानी सनकालते और एक दि ू रे को वपलाते। ग्लाि कोई नहीं होता था, सिफा हाथं का कप्प ही बना लेते थे। एक बात मं जरूर बोलूग ं ा कक जो स्िाद हमं इन परौठं, आचार और प्याज िे आता था स्ट्र्ज़ंदगी मं कभी नहीं आया। इं ग्लैण्ड मं रहते इतनी ककस्म के खाने खाए, इतने दे िं के खाए मगर जो स्िाद उन आचार प्याज और पराठं मं था कभी नहीं समला। कभी

कभी हम अपने िाथ काले चने और मक्की के भूने हुए दाने भी ले जाते थे। उन का अपना ही एक मर्ज़ा

होता था। हम िभी यह बाँट कर खाते। बहुत दफा मं िोचता हूँ कक उि िादी खुराक मं इतना मर्ज़ा क्यं था, तो मुझे एक ही जिाब समलता है कक जो इं िान िख्त समहनत और लहू पिीना कर के खाता है उि को स्िाद आएगा ही।

इन पलाि के पेड़ं मं कुछ कीकर के पेड़ भी होते थे। हम कीकर के पेड़ं पर चढ़ जाते और इन

पेड़ं मं िे एक तरह का पानी सनकलता था जो अक्िर जम जाता था, इि को गूद ं (गंद) कहते थे। हम िोह गूद ं अपने नाखूनं िे खुरच लेते। इि गूद ं को पीिकर अक्िर हम दिात की स्याही मं डालते थे

स्ट्जि िे स्याही बहुत चमकदार बन जाती थी। जब हम अपनी पस्ट्ट्टओं पर सलखते थे िोह बहुत िुन्दर और चमकदार लगती थीं िारा कदन हम कोई ना कोई खेल खेलते रहते। यहां तक मुझे याद है हमारे बीच

मं कभी लड़ाई झगडा नहीं हुआ। कभी कभी िृक्षं पर मधु मस्ट्क्खयाँ भी होती थी। हम दे खते रहते थे कक

उि मं िहद भर सगया है या नहीं। जब हमं यकींन हो जाता कक िहद इि मं भरा हुआ है तो हम पहले िृक्ष के नीचे आग लगाते, उिका धुआं होने लगता तो मधु मस्ट्क्खयाँ उड़ने लगतीं। हमं यकीन हो जाता


कक मधु मखीआं अंधी हो गई हं तो हम िहद सनकालने लगते और खाने भी लगते जो बहुत मीठा और स्िाकदष्ट होता था।

एक दफा मेरे दोस्त के मुह ं पर मधु मस्ट्क्खयाँ ने डं क मार कदया और उि का मुह ं िूज कर बड़ा हो

गया, हम उि पर हँ िते रहे । जब िूया ढलने लगता तो हम अपने अपने पिुओं को इकठा करते। हमारे

पिु भी जानते थे कक घर जाने का िक्त हो सगया और िोह खुद ही गाँि की ओर चलने लगते। िभी गाए

भंिं थकी हुई होतीं और गाँि मं पहुंचकर अपने अपने कठकाने की ओर चल पड़तीं। पिुओं की जगह स्ट्जि को हम हिेली कहते थे उन मं घुि कर अपने अपने कठकाने पर जा कर खड़ी हो जातीं और हम उन के

रस्िं को खूट ँ ी िे बाँध दे ते और घर को चले जाते। ककतनी दे र तक मंने पिु चराये मुझे याद नहीं लेककन यह भी एक िुनहरी याद है ।


मेरी कहानी - 12 स्कूल हम रोर्ज़ाना जाते थे और स्कूल खुलते ही स्कूल की एक खुली जगह पर एकि हो जाते। हर

क्लाि की अपनी अपनी लाइन होती। हर रोर्ज़ दो हुसिआर लड़कं को िारे स्कूल के आगे खड़े होना होता

था और िोह दो िे िुरू हो कर बीि तक मुहारनी बोलते, स्ट्जि को पहाड़े कहते थे, जैिे एक दन ू ी दो, दो दन ू ी चार, तीन दन ू ी छे , चार दन ू ी आठ। दो लड़के पहले बोलते और िारा स्कूल पीछे -पीछे बोलता था। यह मुहारनी बीि तक होती थी और जब खत्म होने को आती तो िारा स्कूल जोर िे बोलता- बीिो बीि है चार िौ पूरा।

इि के बाद ि​िा, डे ढ़ और ढाई के पहाड़े िुरू हो जाते। हम िे पहले लड़के तो िाढ़े तीन का पहाड़ा

भी याद करते थे स्ट्जि को ऊँटा कहते थे लेककन हम ने नहीं पड़ा। इन पहाड़ं का इतना फायदा होता था

कक आज के कैलकुलेटर फेल थे क्यंकक छोटे मोटे कहिाब को तो यूं ही कर लेते थे। इतने िर्ं बाद भी उि िमय के याद ककये हुए पहाड़े बहुत हद तक अभी भी याद हं । जब हमारे बच्चे छोटे थे तो कोई

छोटी मोटी कैलकुलेिन होती तो बच्चे हं िकर एक दि ू रे को कहते ask dad, और मं झट िे बता दे ता। अक्िर िोह मुझे िे पूछते, डै ड ! आप कैिे यह कर लेते हो, तो मं उन को बताता। इन पहाड़ं के बाद कफर एक और बात ऐड हो गई, िोह थी जन गणो मन, हमारा कौमी गीत।

अब आर्ज़ाद भारत मं नए कानून बनने लगे स्ट्जि का अिर तो होना ही था। पता नहीं कब िे एक

टीचर िाधू राम ही होता था और अब नए नए टीचर आने लगे। कहिाब का टीचर, इसतहाि और भूगोल का टीचर, पंजाबी का टीचर, इि के असतररक्त और भी थे जैिे पीटीआई जो हमं रोर्ज़ाना एक्ि​िा​ाइर्ज़ कराता। स्कूल की पुरानी वबस्ट्ल्डं ग भी ररपेअर होने लगी, फूलं की ककआररआं बनने लगी। स्कूल का नक्िा ही बदल सगया। वबदे ि मं रहते एक िख्ि ने गाँि आ कर एक कमरा और बना कदया।

जब हम छठी क्लाि मं आये तो हमारे सलए हकूमत की ओर िे डै स्क भी आ गए। डै स्क ले कर

हमारी ख़ुिी का कोई कठकाना ही नहीं था। ऐिा लगता था हम ने बहुत उन्नसत कर ली है । बच्चं के कपडे अब अच्छे होने लगे (पहले कोई सधयान ही नहीं दे ता था). हमं स्काउट की िदी भी कभी कभी पहननी पड़ती जब कोई समसनस्टर हमारे स्कूल मं आता। यह िदी खाकी होती थी और गले मं लाल रं ग का रुमाल िा बांधना होता था।

िब िे अजीब बात यह हुई कक हमारे िाथ चार लड़ककआं हमारी ही क्लाि मं दास्ट्खल हुईं। पता

चला कक पहले िोह टयूिन िे घर ही पड़ती थीं। इन चार लड़ककओं मं दो तो हमारे टीचर की ही थीं

समन्दो और िीरो । एक डाक्टर िोहन लाल की बेटी वबमला (वबमला इं ग्लैण्ड मं ही कही रहती है ) और एक और थी स्ट्जि को िभी नफरत करते थे।

एक बात एक िाल पहले और हुई थी कक एक दम हम को कहं दी की ककताबे लगा दी गई। ककिी

को ‘का खा’ भी नहीं आता था और इि िे िभी घबरा गए। यह तो अच्छा हुआ कक टीचरं को भी कहं दी िीखनी पडी थी िरना हम को बहुत मुस्ट्ककल पेि आती। इि मं एक हं िने िाली बात यह है कक कहं दी

हम को ऐिे थी जैिे लैकटन। जब हम को पढ़ाते तो हम बहुत हँ िते क्यंकक हम ने कहं दी ककिी के मुह ं िे


िुनी ही नहीं थी। चौथी श्रेणोी के बाद इं स्ट्ग्लि भी स्टाटा हो गई थी। कफर एक कहं दी टीचर भी आ गया और जब िोह बोलता तो हम हँ िते हँ िते लोट पोट हो जाते क्यंकक िोह बोलता ही कहं दी मं था। कई

दफा ऐिे ऐिे लफ़र्ज़ िोह बोलता था हम स्ट्खल स्ट्खला कर हं ि पड़ते। उि टीचर को यह िमझ नहीं आती थी कक हम हँ िते ककयं हं ।

एक दफा िोह टीचर बोला,” आप अपने वपता जी को पि सलखं कक हमारे स्कूल मं पाररतोवर्क

उत्ि​ि हुआ था “, उि का यह बोलना ही था कक िभी लड़के जोर िोर िे हं िने लगे। उि टीचर का नाम तो मुझे अब तक पता नहीं लेककन उि का नाम िभी ने पाररतोर्क ही रख सलया। जब कोई बात होती

यही कहते थे ” भाई, मं पाररतोवर्क िे समल कर आ रहा हूँ “. इि बात िे कोई भी भली भाँती िमझ िकता है कक नई भार्ा िीखने के सलए ककतनी मुस्ट्ककल पेि आती है । यही कारणो है कक जब कोई पंजाबी

कहं दी मं बात करता है तो उि की कहं दी िोह नहीं होती जो िही है । अब तो िभी कहं दी पड़ने लगे हं और कुछ तो िंस्कृ त भी पड़ते हं लेककन उन कदनं मं जो हम ने दे खा है , िोह आज का कोई भी विद्याथी िमझ नहीं िकता।

एक बात और भी सलखना चाहूंगा स्ट्जि ने मुझ पर बहुत अिर डाला। यह िायद चौथी कक्षा का

िमय होगा जब मास्टर केहर सिंह नया नया स्कूल मं आया। िोह बहुत पीटता था, इतना पीटता था िरीर पर सनिाँ पड़ जाते थे. हर बच्चा उि िे डरता था। यं तो मं पड़ने मं अच्छा था लेककन एक कदन

एक ि​िाल का जिाब गलत होने के कारणो उि ने मुझे बहुत पीटा। िोह मुझे बार बार िमझा रहा था

लेककन हर दफा मुझ िे गलत हो जाता। कफर िोह मुझे प्यार िे िमझाने लगा मगर मं रो पड़ा, मुझे कुछ िूझ ही नहीं रहा था।

एक कदन मुझे मेरा दोस्त तरिेम कहने लगा क्यं न हम गुरदआ ु रे जाया करं , िहां के सगयानी जी

बहुत अच्छा पढ़ाते हं । हम दोनं दोित स्कूल जाने की िजाए गुरदआ ु रे जाने लगे। गुरदआ ु रे मं सगयानी जी के पाि बहुत िी लड़ककआं आती थीं। जो दि बारह िे लेकर तेरा चौदां िाल की हंगीं। िोह धासमाक

ग्रन्थ ही पड़ती थी स्ट्जि को पांच ग्रंसथ और दि ग्रंसथ बोलते थे। गुरदआ ु रे मं रोर्ज़ कभी खरबूजे कभी आम कभी कोई चीर्ज़ खाने के सलए आ जाती। हम तो खुि रहने लगे। सगयानी जी का पहरािा ऐिा था

कक गुरु नानक दे ि जी ही लगते थे। बहुत बड़ी एक ही घुटनं के नीचे तक कमीर्ज़ होती थी और पैरं मं लकड़ी की खडांि होती थी। पगड़ी वबलकुल बाबा नानक जैिी गोल होती। उनकी दाढ़ी भी गुरु नानक दे ि

जी जैिी थी और बीच बीच कुछ िाल िफ़ेद हो गए थे। गुरदआ ु रे के िाथ सगयानी जी के रहने का एक कमरा होता था और िाथ ही रिोई घर। कभी कभी कोई लड़की सगयानी जी के कमरे मं चले जाती। क्या

करती थी िोह ना हमं मालूम था, ना जानने की इच्छा ककिी को थी, हम तो बि खाते पीते मर्ज़े करते और पंजाबी पढकर घर आ जाते।

एक रात को कुछ बर्ज़ुगा हमारे घर जमा हुए स्ट्जि मं मेरे दादा जी भी थे और एक तरफ सगयानी

जी मुह ं लटकाए बैठे थे। एक बर्ज़ुगा सगयानी जी को टू ट टू ट कर पड़ रहा था. एक बर्ज़ुगा तो बहुत गुस्िे

मं था और कह रहा था, इि की दाढी काट दो, यह सिख कहलाने के कावबल नहीं। मेरे दादा जी ने कहा,


सगयानी जी ! आज रातो रात अपना िामान ले कर यह गाँि छोड़ जाओ. और क्या क्या बाते हुईं मुझे याद नहीं, सिफा इतना पता है कक सगयानी जी उि रात के बाद कभी कदखाई नहीं कदए।

कुछ कदन स्कूल िे गैर हास्ट्र्ज़र रहने के कारणो हमं िावपि स्कूल को जाना मुस्ट्ककल लग रहा था

क्यंकक मास्टर केहर सिंह का डर हमं िता रहा था। हमारी ककस्मत एक बात िे अच्छी थी कक गुरदआ ु रे

जाते हमं कुछ ही कदन हुए थे। जब हम स्कूल गए तो मास्टर केहर सिंह ने जब गैर हास्ट्र्ज़र रहने का

कारणो पुछा तो हम ने “बुखार चढ़ गया था ” कह कदया, ककस्मत अच्छी थी मास्टर जी कोई और पेपर दे ख रहे थे और इि बात पे कोई ख़ाि ध्यान नहीं कदया। कुछ कदनं बाद मुझे क्लाि का मॉसनटर बना कदया गया स्ट्जि िे मं खुि रहने लगा।

क्लाि मं एक िोम नाथ नाम का लड़का भी था जो पड़ने मं बहुत कमर्ज़ोर था। एक कदन मं ने

िभी लड़कं को कहिाब के ि​िाल सलखिाए। िोम के िभी जिाब गलत थे। मंने उि की स्लेट पर गोल

गोल र्ज़ीरो बना कदया और ऊंची आिार्ज़ मं बोला (अंडा अ अ अ अ ….) िभी लड़के हं ि पड़े .इि कदन के

बाद िोम नाथ का नाम अंडा ही पड़ सगया। िोम नाथ एक बात मं बहुत माकहर था, िोह स्लेट पर तरह तरह के जानिरं की मूरतं बनाता रहता। कई दफा िोह गाए भंि कुर्त्े वबल्ली की तस्िीरं बनाता, हम दे ख

कर है रान हो जाते। इिी बात िे मास्टर केहर सिंह को िोम िे सचड़ थी। िोह बोलते ” िोम के बच्चे, तू कभी पाि नहीं होगा, तोते सचकड़आं ही बनाता रहे गा “.

एक कदन मास्टर जी कुछ लेट थे और िोम एक तरफ बैठा कोई सचि बना रहा था। ऊपर िे

मास्टर जी आ गए और िोम को इतना पीटा कक िोह कभी िावपि स्कूल नहीं आया। गाँि िे ही िोह अपनी माँ के िाथ कहीं चले गया। १९६२ मं मंने जब इं ग्लैण्ड को आना था तो अपने मामा जी की बेटी यानी बहन को समलने कदल्ली आया। बहन बोली, गुरमेल तुम्हारे गाँि का एक लड़का िोम यहां रहता है ।

बहन को लेकर मं िोम के घर पहुंचा। हम ने एक दि ू रे को पेहचान सलया। उि की माँ बहुत खुि हुई और हमारे सलए चाय ले कर आई।

कफर िोम मुझे अपने ड्राइं ग रूम की ओर ले सगया। ड्राइं ग रूम ककया था बि एक आटा गैलरी ही

बना हुआ था। िहां कमरे के चारं तरफ पंकटं ग ही पंकटं ग थी। मं तो दे ख कर ही दं ग रह गया। कफर िोह मुझे एक एक करके पंकटं ग कदखाने लगा। पहली तस्िीर ऐक्टर प्राणो की थी जो पंिल िेड मं थी। प्राणो के

हाथ मं िुलगती हुई सिगरे ट और मुह ं िे धूंए के लच्छे सनकल रहे थे। एक और थी स्ट्जि मं दो बर्ज़ुगा ककिी पाका मं एक बंच पर बैठे आवपि मं बातं कर रहे परतीत होते थे और इदा सगदा दरख्तं िे पीले पर्त्े घाि पर वबखरे पड़े थे। बंच के पाि बर्ज़ुगं की अपनी अपनी खूंटीआं थी।

एक तस्िीर पर एक क्लाि रूम का िीन था स्ट्जि मं बच्चे गोल चकर मं नीचे बैठे थे। एक लड़का

मुगा​ा बना हुआ था और उि ने अपनी दोनं टांगं के नीचे िे कान पकडे हुए थे। कुिी पर बैठा मास्टर मुह ं खोलकर जैिे सचला रहा हो। मंने पुछा, यह केहर सिंह तो नहीं है ? िोम ने हं ि कर हाँ कहा और

बोला “इि िख्ि को मं हमेिा नफरत करता रहूँगा, इिने मेरा बचपन खराब कर कदया “. कुछ दे र और िहां रह कर िावपि जाने को तैयार हो गया। लेककन मं और ही िोचं मं गलतान था कक स्ट्जि िोम को


बचपन मं मंने अंडा नाम कदया था दरअिल िोह अंडा तो मं हूँ स्ट्जि को कुछ नहीं आता। अब इतने िर्ं की बात है बहन भी कब की परलोक सिधार चुक्की है और िुना था िोम भी यह िंिार छोड़ चुका है ।


मेरी कहानी - 13 कौन िी घटना, ककि कक्षा के िमय मं हुई यह तो पूरा याद नहीं, लेककन बहुत घटनाएं हुई जो हर

एक के बचपन मं होती हं । एक नई बात यह हुई कक उन कदनं चमाकारं के बच्चं को पढ़ने की इजाजत नहीं होती थी क्यंकक उन को कोई छूता भी नहीं था, और पहला चमाकारं का लड़का हमारी क्लाि मं दास्ट्खल हुआ स्ट्जि का नाम था बचना। बचने को क्लाि के आस्ट्खर मं बैठना पड़ता था और मेरे नर्ज़दीक

ही िोह बैठता था। बचना रं ग का गोरा, िरीर का तगड़ा और िरारती था। उि की इन िरारतभरी अदाओं ने ककिी को मेहिूि नहीं होने कदया कक िोह चमाकारं का लड़का है । जल्दी ही िोह घुल समल सगया। उि की हरकतं ऐिी होती थी कक िभी उि पर हँ िते रहते थे। बचने के वपता जी का नाम बेली था और बेली

चमाकारं मं आसथाक तौर पर पैिे िाला था। इि का कारणो िोह गाये भंिं का विओपारी था स्ट्जि िे उि

ने खूब पैिा बना सलया था और इिी कारणो उन का घर चमाकारं की बस्ती मं पक्का बड़ा और दोमंजला था. बचने का बड़ा भाई कमा चंद भी अपने नसनहाल मं पड़ता था। उि ने मैकिक पाि कर ली थी और उि िमय पोसलि मैन बन गया था।

एक बात का स्ट्र्ज़कर करूँगा जो मुझे कुछ बड़ा हो कर िमझ मं आई। सिआित मं कांग्रि पाटी का

ही बोल बाला होता था, स्ट्जि मं जगजीिन राम एक समसनस्टर होता था जो नीची श्रेणोी मं िे था। उिने चमाकारं और मेहतर (िफाई कमाचारी) जासत िालं के सलए बहुत काम ककया था। चमाकारं और मेहतरं

मं बच्चे बच्चे की र्ज़ुबान पर जगजीिन राम का नाम होता था। उि ने िोटं के जोर पर चमाकारं और मेहतरं को हर महकमे मं नौकरीआं की िीटं ररि​िा करिा लीं। इि का अिर यह हुआ कक ककिी भी पड़े

सलखे चमाकार या मेहतर को नौकरी आिानी िे समल जाती थी क्यंकक उन मं पढ़े सलखे इतने होते नहीं थे। यही िजह थी कक बचने का बड़ा भाई कमा चंद कुछ िमय बाद ही पोसलि इं स्पैक्टर बन गया था।

यहां यह भी सलखना चाहूंगा कक इन नीची र्ज़ात िालं की हालत बहुत ही खराब होती थी। इन के

काम भी अक्िर ककिानं के खेतं मं काम करना िृक्ष काटना या लोगं की गाए भंिं को चारा दे ना, पिुओं की जगह पर पड़े गोबर को उठा कर िाफ़ करना आकदक बहुत काम होते थे। इि के असतररक्त

इनका काम होता था मरे हुए पिुओं को उठा कर ले जाना और उि की चमड़ी उतारना. कुछ इिी िजह िे इन लोगं को कोई हाथ नहीं लगाता था लेककन यह कोई िमझने की कोसि​ि नहीं करता था कक उन्हीं

लोगं के उतारे हुए चमड़े और उन्हीं के हाथं बने हुए जूते िोह पहनते थे। जब िोह ककिी ककिान के घर

रोटी खाते थे तो उनको दरू बैठना पड़ता था। कफर ककिान के घर का कोई िदस्य उन के हाथं पर दरू िे रोटी फंकता था ताकक उि का हाथ न उि िे लग जाए। कफर जब उि को लस्िी वपलाते तो िोह विचारा

अपने मुह ं के नर्ज़दीक दोनं हाथं का एक कप्प िा बना लेता (स्ट्जि को बुक्क कहते थे) और ककिान के घर का िदस्य कुछ दरू िे लस्िी की धार कुछ ऊपर करके छोड़ने लगता।

ऐिी ही एक बात मुझे बहुत याद आती है , हमारे गाँि मं दो तीन घर िाहूकारं के होते थे जो

अक्िर लोगं को पैिा उधार दे ते थे स्ट्जि के बदले मं उन को विआज तो दे ना ही होता था लेककन और भी पता नहीं ककतने काम उन लोगं को करने पड़ते थे। यह वबलकुल दो विघा जमीन कफल्म जैिा ही होता था। एक दफा िाह जी की लड़की की िादी थी। उि िादी मं जो बराती थे िोह भी अमीर ही हंगे क्यंकक


उन का पैहरािा बकढ़या था। उन बरासतओं को दप ै र का खाना कदया सगया जो एक बड़े टं ट मं था। खाना ु ह खाने के बाद बरात तो ककिी और तरफ चले गई लेककन जो उन की जूठी बची हुई मठाई िमोिे पकौड़े

अंगरू आकदक थे उन को बािसचाओं ने बाकहर खुले मैदान मं घाि पर रख कदया। एक छोटा िा ढे र बन सगया। चमाकार और मेहतर लोग बहुत जमा थे उि बचे हुए पकिान को उठाने के सलए।

िाह जी हाथ मं एक छड़ी सलए हुए बाहर आये। िाह जी का पेट बहुत बड़ा था, हाथ मं छड़ी थी

और मलमल की धोती और कुरता पहने हुए थे लेककन उन का रं ग बहुत गोरा था। आते ही बोले, “तुम

लोग पहले यह िारा मैदान िाफ़ करो, कफर ही इि पकिान को हाथ लगाना”। बि कफर ककया था िभी मैदान को िाफ़ करने लग पड़े । मैदान काफी बड़ा था लेककन िभी लोगं ने समल कर कुछ ही दे र मं िाफ़ कर कदया। इिके बाद िभी उन पकिानं के इदा सगदा खड़े हो गए जैिे उन के मुह ं मं पानी आ रहा हो। दो तीन बड़े बर्ज़ुगा लोगं ने उि िारे पकिान को एक बड़े िे कपडे मं डाला और बाँध कर ले गए, पीछे

पीछे िभी लोग जा रहे थे। िैिे भी जब यह लोग िाह जी की कपड़े की दक ू ान पर आते तो हाथ जोड़ कर िाह जी िाह जी करते रहते और दरू हट कर बैठ जाते।

िैिे तो यादं बहुत हं लेककन इि को मं कभी भूल नहीं िका। चमाकारं की तीन बस्ट्स्तयां तो हमारे

गाँि के इदा सगदा थी और चौथी थी मेहतरं की बस्ती। यह लोग तो विचारे चमाकारं िे भी नीचे थे क्यंकक

उन को पछुओं का गोबर पेिाब तो िाफ़ करना ही होता था लेककन कई घर ऐिे थे स्ट्जन मं पुराने ढं ग के

टट्टी खाने थे स्ट्जन को िाफ़ करना भी इनकी स्ट्र्ज़मेदारी होती थी। इन िभी लोगं के घर सिफा और सिफा मट्टी िे बने होते थे और उन के कपडे तो चमाकारं िे भी घकटया थे। इन लोगं की आसथाक दद ु ा िा का कारणो सिफा एक ही था कक यह कोई और काम कर ही नहीं िकते थे। इन लोगं की औरतं को और भी

कई मुिीबतं का िामना करना पड़ता था। इन की औरतं गाये भंिं के सलए घाि लेने ककिानं के खेतं मं जाती और कई जिान मनचले ककिानं के बेटे उन को तरह तरह की बातं कहते। अक्िर औरतं इि तरह की बातं िुन िुन कर एक अजीब िी आदत बना लेती थीं और िोह भी उन को हं ि कर जिाब दे

दे तीं। गरीबी ककया नहीं करिाती ? कई औरतं तो कुछ हासिल करने के सलए अपनी इज्जत भी खो बैठती थीं।

अपने रामिर िाले खेतं मं स्ट्जन का स्ट्र्ज़कर पहले मं कर चुका हूँ, अक्िर मं जाता ही रहता था,

िहां एक चमाकारं का लड़का आया करता था ककिानो का काम करने के सलए। िोह पगड़ी बांधता था

और आठिीं कक्षा तक पढ़ा सलखा था, उि िक्त मं भी चौथी पांचिीं मं हूँगा। िोह मुझ िे पढ़ाई की ही बातं करता रहता था लेककन उि की गरीबी और नीची जात उिको िोह ही काम करने को मजबूर कर

रही थी जो उिके दि ू रे लोग करते थे । उि की िादी हो चुकी थी और कभी कभी उि की पत्नी भी खेतं मं आ जाती और ककिानो के लड़के उि को जो बातं कहते उि िक्त तो मुझे पता नहीं था लेककन जब मं

बड़ा हुआ तो िब िमझ आई। ऊंची र्ज़ात िालं का भी िायद यह किूर नहीं था क्यं कक एक प्रथा ही

ऐिी बन चुकी थी स्ट्जि को तोड़ना ककिी के बि की बात नहीं थी। हमारे घर कई नौकर आए लेककन हुकमा नाम का नौकर कभी नहीं भूला। उि की िस्ट्ख्ियत ही ऐिी थी जो उि को हरमन वपयारा बनाये हुए थी। बहुत िर्ा तक िोह हमारे िाथ रहा और घर के िदस्य की तरह ही था।


नफरत और लालच की एक बात सलखूं, मं तो अभी बहुत छोटा िा था लेककन बड़े भैया एक दफा

पिु चराने के सलए उन को चरागाह की ओर ले गए, तो भाई िाकहब को पलाि के िृक्ष के नीचे पड़ा एक पीतल का बतान समला स्ट्जि को थाली कहते थे। बड़े भाई उि को उठा कर घर ले आए और खुि हो कर

माँ को दे दी । माँ ने उि थाली पर पंजाबी मं सलखा नाम पड़ा तो उि पर सलखा हुआ था “रतन चंद”.

माँ ने कहा,” बेटा, यह तो ककिी चमाकार की थाली है , मं तो इिे रख नहीं िकती” िहां बैठी एक मेरी भाभी बोली, “चाची ! लो मं इिे रख लुग ं ी “. यह कह कर उि ने घर जा कर पहले उि थाली को आग मं फंका, कफर उि को अच्छी तरह राख िे िाफ़ ककया, कफर धो कर रख सलया। यह बात उि ने बाद मं माँ को बताई और कहा कक आग मं रखने िे िोह थाली िुद्ध हो गई थी। जब भी मं उि भाभी के घर जाता तो उि थाली को दे ख कर िोह अनदे खा अनजाना रतन चंद याद आ जाता।


मेरी कहानी -14 पीपलं की बात मं पहले ही सलख चुका हूँ कक यह पीपलं की जगह एक बहुत ही अच्छी जगह थी

जो हमारी गली स्ट्जि मं हम रहते थे उि मं दास्ट्खल होने िे पहले ही आती थी, इि सलए कोई भी िख्ि

गली मं दास्ट्खल होने िे पहले पीपलं की ओर जरूर झाँक कर दे खता। पहले तो एक खूही (छोटा कुआ) होती थी (जो कभी मुिलमानं की हुआ करती थी) स्ट्जि पर औरतं अक्िर पानी सनकालने के सलए खड़ी होती थी और आवपि मं बातं करती होतीं और बाल्टीओं का खटाक होता ही रहता था।

िाथ ही एक दाने भूनने िाली की भट्टी होती थी स्ट्जि पर तीन चार िजे िे ही रौनक हो जाती

थी। इि दाने भूनने िाली का नाम था बंिो। यह जाती की समिर या झीर थी, इन लोगं के सिफा दो घर ही थे हमारे गाँि मं। यह बंिो िुबह ही बाकहर दरख्तं की ओर चली जाती और सगरे हुए दरख्तं के पर्त्े

इकठे करती। पतझड़ के मौिम मं तो बहुत पर्त्े दरख्तं िे झड़ जाते थे तो बंिो दरख्तं के कई चकर लगा दे ती और पर्त्े एक कमरे मं भती रहती। इि िे एक फायदा हो जाता था कक जब बरिात का मौिम

होता था तो तब भी उि की भट्टी कायम ि गमा रहती और भट्टी पर रौनक रहती। बंिो के पसत का

दि ू रा काम था, िोह िुबह को खूही िे पानी सनकाल सनकाल कर गली के िारे घरं के घड़े भर दे ता। बंिो का एक ही बेटा था स्ट्जि का नाम था कूड़ा। लोग कहते थे कक बंिो का कोई बच्चा बचता नहीं था, पैदा होते ही भगिान को प्यारा हो जाता था, इिी सलए जब यह बेटा हुआ तो उन्हंने इि का नाम कूड़ा रख

कदया ताकक ककिी की नर्ज़र न लग जाए और िोह बच सगया, जब िोह बड़ा हुआ तो उि का नाम मोहन रख कदया।

िभी मानते थे कक बंिो झीरी दाने बहुत अच्छे भुनती है । कभी कभी मं भी उन की भट्टी पर

जाता। कुछ दाने िोह रख लेती और बाकी को कड़ाही मं डाल दे ती और एक दािी िे दानं को कहलाती, दाने स्ट्खलने लगते। काले चनं के दानं मं िोह एक छोटा िा मट्टी कर बतान स्ट्जि को कुज्जा कहते थे उन

को दानं पे रगड़ती स्ट्जि िे दाने फुट जाते और िोह उन को एक छाननी िे सनकाल कर दो चार दफा

दानं को ऊपर को उछालती स्ट्जि िे सछलके इल्लग हो जाते और िोह कपडे मं डाल कर पकड़ा दे ती। इन गमा गमा दानं का एक अपना ही मर्ज़ा होता था। रात को यह भट्टी हमारे समल बैठने की जगह होती थी,

भट्टी के इदा सगदा हम बैठ जाते और गन्ने भट्टी की गमा गमा राख मं रख दे ते और जब गन्ने गमा हो जाते तो एक एक गन्ने को सनकाल कर जल्दी िे दौड़ कर खूही की ईंटं पर जोर िे मारते स्ट्जि िे

पटाखा िजता और उि गमा गमा गन्ने को समल कर चूपते। आप हँ िंगे, अब भी मं इि िक्त सलखने के

िाथ िाथ चने के दाने चब्ब (खा) रहा हूँ। बचपन की िोह आदत छोड़ नहीं पाया हूँ, यहां पैकटं मं समल जाते हं ।

इन पीपलं मं बहुत लड़के वपठू खेला करते थे और बहुत िोर होता था। कुछ लड़के बड़े पीपलं िे

रस्िे बाँध कर झूला बना लेते थे और उि को झूलते थे। एक दो लड़के झूला झूलते झूलते इतना ऊंचाई

पर पौहं च जाते थे कक पर्त्ं को छू लेते थे और लड़के तासलआं मारते थे। कई दफा लड़कं मं बहि हो

जाती कक उि ने पहले जाना, मंने पहले जाना। कुछ ककिान लोग मंकदर के पाि बैठे बैठे चारपाईओं के सलए रिीआं बनाते रहते स्ट्जि को बाणो कहते थे। यह टू टा हुआ मंकदर बहुत ही छोटा था।


इन पीपलं मं रौनक तो पहले ही बहुत थी लेककन एक कदन एक िाधू आ गया, स्ट्जि िे रौनक

और भी बढ़ गई। इि िाधू महाराज के आने िे तो इन पीपलं मं जैिे बहार ही आ गई। इि िाधू को

नाथ जी कहते थे। उि के कानं मं बड़े गोल गोल ररं ग थे स्ट्जि को मुद ं राँ कहते थे, उि के गले मं बहुत

िी मालाएं थीं, उि का िर और दाहड़ी वबलकुल क्लीन िेि थी, कपडे भगिा थे और सचलम पीते थे। उि

की एक आँख सचट्टी थी स्ट्जि िे उि को कदखाई नहीं दे ता था। जो लोग आते, आते ही नाथ जी महाराज बोलते और िो जय हो कह कर जिाब दे ते। मंकदर बहुत छोटा होने के कारणो इि मं िोया नहीं जा िकता था, इि सलए लोगं ने एक झंपड़ी बना थी। अक्िर कुछ लोग कहते थे कक नाथ जी समसलटरी िे

भाग कर आये हुए हं , कुछ बोलते थे कक उन का अपने भाईओं िे झगड़ा हो गया था, इिी सलए उन्हंने घर छोड़ कर िन्याि ले सलया था। एक दफा नाथ जी मेरे दोस्त को िाथ ले कर अपने गाँि को गए थे।

मेरे दोस्त ने हम को बताया था कक नाथ जी के गाँि िाले उिको ‘ओह िाधा !’ कह कर बुलाते थे यानी उि की कोई इर्ज़त नहीं करते थे।

कुछ भी हो, नाथ जी के आने िे पीपलं की महमा बड़ गई थी। कभी कभी नाथ जी राि लीला

मंडली को बुलाते। यह राि लीला रात को होती थी और लोग दरू दरू के गाँिं िे दे खने आते थे। उि िमय जब गाँिं िे िहर सिसनमा दे खने जाना मुस्ट्ककल होता था तो यह राि लीला का महत्ि बहुत होता

था। पहले कुछ लोग गैि लैन्टना ले कर आते, इि को एक बड़ा पोल गाड़ कर उि िे बाँध दे ते। चारं तरफ

चाँद िी रौिनी हो जाती। कफर कुछ दे र बाद दो आदमी हारमोसनयम और तबला ले कर आ जाते और

तबले िाला तबले को िुर करने लगता स्ट्जि िे दरू िे आने िालं को िुनाई दे ने लगता और एक दि ू रे को बोलते, भाई ! जल्दी जल्दी चलो, िुरू हो गया लगता है .

कफर बाजे िाला कोई िरगम िुरू कर दे ता और एक आदमी छोटे िे एक बालक को जो कृ ष्णो का

रूप धारणो ककये होता था और उि के हाथ मं बांिरु ी होती थी, ले आता और उि को एक कुिी पे खड़ा कर

दे ता। लोग उि बालक को दे खने लगते जो बहुत िुन्दर कदखाई दे ता होता था। कुछ दे र बाद तीन चार लड़के जो मेक अप्प करके लड़ककआं बने होते थे , हाथं मं थासलआं स्ट्जि मं जोतं जलाई होती थीं ले कर आ जाते। थे तो िोह लड़के ही लेककन िोह खूबिूरत लड़ककआं ही परतीत होते थे। कफर िोह बालक कृ ष्णो जी के आगे खड़े हो कर आरती करते ” बेनती करत तोरे दआ ु र, राखीं ओ प्रभु मोरी लाज, बेनती करत तोरे

दआ ु र “. जब आरती खत्म होती तो कफर िोह िख्यां कृ ष्णो जी िे बेनती करती कक उन्हं पानी भरने की

इजाजत दे दं । कृ ष्णो जी कहते कक ” जे आई पानी भरणो को, तेरी गागर दे उँ सगरा “, ऐिी बहुत लम्बी आपि मं िाता​ालाप होती थी जो मुझे याद नहीं। इि के बाद िख्यां नाचती थी। कफर कफ़ल्मी गाने िुरू

हो जाते स्ट्जि के िाथ जब िोह नाचती थीं तो उन के पैरं मं बांधे घुग ं रुओं की आिार्ज़ बहुत भली लगती थी। लोग रूपए दे ने लगते और उन्हं लड़ककआं िमझ कर अपनी मानसिक भूख को पिान कर लेते।

कभी कभी एक हं िाने िाला स्ट्जि को मनिुखा कहते थे आ जाता। यह अक्िर दो आदमी होते थे।

उन के ि​िाल जिाब होते थे स्ट्जि मं मनिुखा कभी कभी ऐिा बुरा जिाब दे ता कक दि ू रा आदमी जोर िे उि की छाती पर एक चमड़े की बनी हुई पटाखी मारता और लोग हं ि पड़ते। इि तरह यह सिलसिला

बहुत दे र तक चलता रहता और कफर िुरू होता एक ड्रामा। यह ड्रामा अक्िर लैला मर्ज़नू,ं हीर रांझा ि​िी पुनूं िीरी फररहाद या पूरन भगत का होता। यह पाटा बहुत रुमास्ट्न्चत होता था। इि को लोग बहुत सधयान


िे दे खते। कभी कभी जब कोई दख ु ांत िीन होता तो लोग रो उठते। उनकी ऐस्ट्क्टं ग इतनी अच्छी होती थी कक आज के सथएटर िे कम न होती। औरतं अपने मकानं की छतं पर बैठी रो रही होती। दो तीन िजे

यह िमापत होता और नाथ जी उठ कर उन लोगं को पैिे दे कर उनका िन्मान करते और कभी कभी एक और िो करने के सलए भी उन को कह दे ते। कभी कभी िोचता हूँ कक यह नाटक मण्डली िाले चमाकार ही होते थे और यह उन का रूज़्गार था लेककन आज स्टे जं पर जो फनकार लोगं को एन्टरटे न करके लाखं रूपए कमाते हं ककया यह लोग इन िे कम ऐक्टर थे ?


मेरी कहानी-15 आज के एवपिोड मं मंने सलखना तो कुछ और था लेककन आज िुबह कुछ दोस्त लड़के की िादी

का काडा दे ने आये तो बातं चल सनकली आज के बच्चं की। बातं यह थी कक एक लड़की ने मनमर्ज़ी के

लड़के िे िादी तय की, उि िादी पे ५० हर्ज़ार पाउं ड खचा हो सगया लेककन ६ महीने बाद तलाक हो सगया क्यंकक लड़की ने कहा कक िोह लड़का बहुत स्लो था, कफर एक ने िुनाई कक िैस्ट ब्रॉमविच मं एक िादी

हुई, िादी के बाद जब हाल मं केक काटने लगे तो लड़के ने िैम्पेन की बोतल खोली, तासलआं बजने लगीं। कफर इि ख़ुिी मं लड़के की माँ ने िोह बोतल उठा कर बोतल को जोर िे कहलाया तो कुछ िैम्पेन की

झाग लड़की की िाड़ी पर पड़ गई, लड़की गुस्िे मं आ गई और होने िाली िाि िे आगुम ा ंट करने लगी।

लोगं ने बहुत िमझाया लेककन लड़की बोले ही जा रही थी। लड़का भी गुस्िे मं आ सगया और स्टे ज पर

चढ़ कर बोला, ” ladies and gentle men, please enjoy your meal but the marriage is over “. बि कफर ककि ने खाना था।

मंने यह िब बातं िुनी और िोचता रहा कक आज हम कहाँ भूल रहे हं , छोटी छोटी बातं पे

तलाक, कुछ तो हनीमून पर गए ही लड़ कर आ जाते हं और तलाक हो जाता है , यह हो क्या रहा है ?.

िोचते िोचते मेरे कदमाग मेरे रतन सिंह ताऊ के बेटे यानी मेरे बड़े भाई गुरचरणो सिंह की िादी थी, उि िक्त मं पांच िर्ा का हूँगा। मं पहले भी सलख चुका हूँ कक मेरे ताऊ और हमारे घर िाले कभी लड़ पड़ते थे

कभी बोल पड़ते थे, मुझे इि बात की कभी िमझ नहीं आई कक क्यं ? वपताजी तो अफ्रीका थे इि सलए मेरे दादा जी ही िब काम िंभाले हुए थे। िारा पकिान ताऊ जी के आँगन मं ही बन रहा था क्यंकक

उिका आँगन काफी बड़ा था। इन कदनं पकिान बहुत िादा होते थे लेककन बहुत ज़्यादा बनाते थे और

िारे ररकतेदारं को भी िादी के बाद बहुत दे ते थे। पंजाब मं गोगले पकौड़ं का ररिाज है और अभी भी उिी तरह बरकरार है । पहले तो लम्बे लम्बे पकौड़े बनाये गए जो खाते भी हं और आलू िकडओं की िब्जी

मं भी डालते हं , यह कोई आधा कुइन्तल तो हंगे ही, कफर गोगले भी इतने ही हंगे (यह आटे िे बनते हं ). इि के बाद इतनी ही मीठी िीरनी।

दो हफ्ते िादी िे पहले ही रौनक होने लगी। रोर्ज़ रात को मोहल्ले की औरतं आतीं और खूब गीत

गातीं। यह गीत िादी के ही होते थे और इन गीतं का अंदार्ज़ और तर्ज़ा िब दि ू रे गीतं िे हट कर होता

था। क्यंकक यह ख़ुिी का िक्त था तो कुछ औरतं ताऊ जी को िुना कर मर्ज़ाक के गाने गातीं, ताऊ जी ने िराब का घूट ँ तो सलया ही होता था और झूमते हुए खुि हो जाते। कुछ चमाकार और समहतर लोग भी आये होते जो अक्िर घर के बाकहर ही बैठे होते थे और लगातार बधाईआं दे ते रहते। यह सिलसिला बहुत

रात तक चलता रहता और मेरी माँ िब औरतं को गोगले पकौड़े और िीरनी समक्ि कर के दे ती। बाकहर बैठे उन गरीबं को भी समलती, िब अिीिं दआ ु एं दे ते हुए अपने अपने घर को रिाना हो जाते।

यह िकदा यं के कदन थे और बरात को भवबआणोे गाँि को जाना था जो था तो पांच मील ही लेककन

रास्ते कच्चे थे और बहुत खराब। दप ै र को ही बाजे िाले आ गए और चहल पहल हो गई। आप है रान ु ह

हंगे कक उन कदनं लड़की िाले तीन कदन बरात को रखते थे, बरात के िोने और रहने का प्रबंध एक बरात घर मं होता था। हर गाँि मं और िहरं मं भी बरात घर होते थे। इिसलए िब बाराती अपने कपडे िाले


लोहे के िूट केि स्ट्जि को िं क बोलते थे ले जाते थे और िाथ ही अपने अपने वबस्तरे । भैया की िादी मं भी दो बड़े छकड़े स्ट्जि पर िामान और बर्ज़ुगा बैठे थे और दो छोटी बैल गाड़ीआं स्ट्जि पर युिा लड़के बैठे थे। बाजे िाले खूब बजा रहे थे और इस्त्रीआं गा रही थीं। बरात को कुछ दे र हो गई थी। िकदा ओं के कदन

छोटे होते हं और करते करते कफर भी दे र हो गई। मुझे एक मेरी बुआ जी के लड़के ने अपने पाि

वबठाया हुआ था। जब बरात चल पड़ी तो कुछ मील दरू जा कर ही अँधेरा होने लगा। पहले तो गाकडओं को िभी बहुत तेर्ज़ दौड़ा रहे थे और यह मदर इं कडया कफल्म जैिा ही िीन था स्ट्जि मं नसगाि की िादी के दौरान बैल गाकड़यां तेर्ज़ दौड़ रही थीं और उन के गले मं बंधे घुग ं रुओं की आिार्ज़ का एक अजीब

नर्ज़ारा था। जब यह िादी का काफ्ला गाँि िे एक मील दरू रह गया तो रास्ता भूल गए। िदी बहुत थी िब लोग ठै हर गए और कहीं िे लकड़ीआं ला कर आग जला दी और इदा सगदा खड़े हो कर ताप्ने लगे।

कफर एक आदमी एक बृक्ष पर चढ़ा और ऊंची आिार्ज़ मं बोला, ” ओए िाजे िासलओ ओ ओ ओ “. कुछ दे र बाद बाजे िासलओं ने िस्ट्म्पट को बजाया और तू तू की आिार्ज़ आई। िभी बाराती खुि हो गए कक िाजे िाले तो पहले ही पुहंचे हुए थे। कफर उि ओर चलने लगे।

जब गाँि पुहंचे तो लड़की िालं की तरफ िे िभी आये हुए थे और एक आदमी अपने िर पर गैि

लैन्टना सलए खड़ा था स्ट्जि िे चारं तरफ रौिनी थी। रस्मं हो गईं और हमं खाने का न्योता भी दे कदया

गया। खूब बाजे गाजे के िाथ खाने के स्थान पर पौहं च गए। कोई कुसिायां मेर्ज़ नहीं थी, सिफा र्ज़मीन पर लम्बी लम्बी चादरं विछाई हुई थी। िभी लाइनं मं उन चादरं पर बैठ गए। पहले तीन आदमी आए, एक

के हाथ मं बड़ा िा पानी का लोटा था, एक के हाथ मं खाली बतान था और एक के हाथ मं बड़ा िा तौलीआ था। हर एक बाराती के हाथ धुलाए गए, इि के बाद हर एक के आगे थासलआं और ग्लाि रखे गए और

िाथ मं चमचे भी। इि के बाद दो िख्ि चािल थासलओं मं डालते गए। कफर एक िख्ि चािलं के ऊपर खंड डालने लगा और पीछे एक आदमी चािलं के ऊपर घी डालने लगा। िभी घी खंड िे चािल समक्ि करके खाने लगे। जब चािल ख़त्म हो गए तो दाल िब्र्ज़ी और बड़ी बड़ी रोटीआं दे ने लगे। उधर इदा सगदा

औरतं गा रही थी। खाना खाने के बाद कफर हाथ धुलाए गए और बाजे िाले िाजा बजाने लगे और िभी बाराती बरात घर आ गए।

िभी ने अपने अपने वबस्तरे लगाए और बातं करने लगे। िुबह को िभी खेतं मं जंगल पानी के

सलए चले गए और उन के आने तक एक बड़ा िा ड्रम चाए का और बहुत िी मीठी िीरनी ले कर कुछ

लोग आ गए थे। बड़े बड़े पीतल के ग्लािं मं भर कर चाय दी गई और िाथ बहुत िी िीरनी। कफर बारह िजे वि​िाह की रस्मं िुरू हुई और बाद मं खाना था। यह खाना लड्डू जलेवबओं, कुछ और िाधारणो मठाई के िाथ और िादा दाल िस्ट्ब्र्ज़ओं के िाथ था। इि के बाद जब बरात घर आए तो नाच मण्डली

िालं का प्रोग्राम था। यह बहुत मर्ज़ेदार प्रोग्राम था, दरू दरू गाँिं िे लोग यह दे खने के सलए आये हुए।

नाचने िाले लड़के जो मेक आप करके खूबिूरत लड़ककआं बने हुए थे खूब नाच रहे थे लोग उन को रूपए दे रहे थे। इि के बाद िभी बाराती कोई ककधर कोई ककधर गाँि मं घूम रहा था। िाम को कफर खाने के सलए लड़की िालं के घर चल पड़े और खाना खा कर कफर बरात घर मं आ गए। लोगं ने खूब बातं और

जोक्ि ककये। िुबह को कफर चाए और िीरनी। एक िजे रोटी और कुछ दे र बाद विदाई होने की सतआरीआं होने लगी। मेरी भाबी को एक छोटी िी गाड़ी मं एक बुकड़आ के िाथ वबठा कदया सगया और गाड़ी के आगे


मेरा भईआ और गड़िान बैठे थे। िभी ने तीन कदन मर्ज़े ककये थे और अब िावपि मुड़ते िमय िभी घर

पौहं चने के इं तर्ज़ार मं थे। घर आ कर िभी औरतं इं तर्ज़ार मं थीं और गा रही थी। भािी जी को भीतर लाया सगया और मुझे िाथ मं वबठाया सगया।

इि भाबी ने मुझे बहुत वपयार कदया था और मं ने भी उि के सलए बहुत कॉम ककया। भाबी और

भैया का वपयार बहुत था लेककन भैया रोर्ज़ी रोटी के सलए इलाहबाद काम करते थे और उन के िावपि आने तक मं भाबी के घर िो जाय करता था, बाद मं बच्चे होने िुरू हो गए और धीरे धीरे मं भी अपने

घर िोने लगा। भैया की दो बेटीआं ऑस्िे सलआ मं रहती हं लेककन खुद दोनं भगिान को वपयारे हो गए हं लेककन जब जब भी उनकी याद आती है तो उि वि​िाह का िीन आँखं के िामने आ जाता है । ककतना िादा लेककन अच्छा िक्त था िोह, तलाक कभी िुने ही नहीं थे। आज बच्चे खूब कमाते हं , पैिे मं खेलते हं

लेककन मन की िास्ट्न्त वबलकुल खत्म हो गई है , तलाक बड़ रहे हं और बच्चे बीच मं वपि रहे हं , बर्ज़ुगं को दःु ख उठाना पड़ रहा है , आगे क्या होगा, बि भगिान ही जाने।


मेरी कहानी - 16 आज िुबह टू थ ब्रि कर रहा था, तो िीिे मं माथे पर पुरानी बचपन की चोट के सनिाँ को दे खा।

मं मन ही मन मं मुस्कराया कक पहले कभी गौर ही नहीं ककया, आज अचानक याद कैिे आ गई? जी हाँ, हर इं िान अपने मं एक इसतहाि छुपाये हुए है । पांच छ: िर्ा का ही हूँगा, जब मं दोस्तं के िाथ िारा गाँि घूम आता था। और इदा सगदा के गाँिं िे हमारा गाँि काफी बड़ा है , आज तो यह समनी िहर िा बन

गया है । आहलुिासलओं के मोहल्ले मं तो जाना आना लगा ही रहता था क्यंकक इि मं बहुत िी दक ु ाने थीं, िोहन लाल डाक्टर की िजारी भी थी और उि के िामने ही मेरे दोस्त ज्ञान चंद के वपता जी हरीआ

राम की दक ू ान थी स्ट्जि िे हम कुछ न कुछ खाने के सलए सलया करते थे। इि के बाद हम कम्बो मोहल्ले मं चले जाते और बाबा लखा सिंह को दे खने चले जाते।

यह बाबा लखा सिंह हमेिा अपनी चारपाई पर ही बैठा होता था और कोई ना कोई मरीर्ज़ उि के

पाि बैठा होता था । बाबा हड्डीओं का इलाज ककया करता था। ककिी की कलाई, ककिी की पीठ ककिी का घुटना, स्कूल के बच्चे जो खेल कूद िे चोट लगा लेते थे, इलाज के सलए िहां आये ही रहते थे। बाबा जी के िाथ एक और लड़का जि​िंत सिंह हुआ करता था जो बाबा जी की मदद कराता और उन िे यह काम िीखा भी करता था । बाबा जी िरीर को हाथं िे मासलि करके बता दे ते थे कक हड्डी एक तरफ हो गई

थी या सिफा मॉि ही फटा था। बाबा जी के पाि दरू दरू िे लोग आते थे लेककन उन को कोई लालच नहीं होता था। ककिी िे पैिा नहीं मांगते थे, अगर कोई रूपैया दो रुपैये दे दे ता तो उि का परिाद बना कर िंक्रात के कदन लोगं को बाँट दे ते थे, और इिी लालच के कारणो हम िहां जाते ही रहते थे कक चलो बाबा जी िे परिाद लं.

मुझे याद है एक दफा एक मरीर्ज़ को ककिी िहर िे ले कर आये थे, उि के िाथ एक डाक्टर भी

था। डाक्टर ने पहले मरीर्ज़ को बेहोि ककया, कफर बाबा जी उि की पीठ को जोर जोर िे मलने लगे, इि

मं जि​िंत सिंह बाबा जी का िाथ दे रहा था। बहुत लोग इक्कठे हो गए थे। बहुत दे र मलने के बाद कसलक जैिी आिार्ज़ आई और बाबा जी ख़ुिी िे झूम उठे और कहा, “लो हो गया “. इि के बाद पस्ट्ट्टआं बाँध कर उि आदमी को धीरे धीरे कार मं लेटा कदया गया। कहते थे कक कुछ कदनं बाद िोह िख्ि ठीक

हो कर खुद आया और बाबा जी को पैिे दे ने चाहे , मगर बाबा जी ने कहा कक िोह इि पैिे िे ककिी गरीब की मदद कर दे ।

िुना था बाबा जी को जिानी के कदनं िे ही इि काम िे िौक था और यह भी िुना था कक बाबा

जी रात के िमय कब्रं िे मुदे उठा कर अपने गन्ने के खेतं मं ले आते थे और उि को चीर कर

हड्डीआं दे खा करते थे कक कौन िी हड्डी कहाँ जाती है । बाबा जी को िरीर का ज्ञान हो सगया था कक कौन िी हड्डी कहाँ कहाँ जाती है ।

उि कदन भी िंक्रांत थी और गुरु गोवबंद सिंह जी का जनम कदन था। रामगरीहा गुरदआ ु रे िे जलूि

सनकलना था जो गाँि के इदा सगदा जाना था। मेरे वपता जी ने मुझे एक गीत याद करा कदया था जो मंने

जलूि मं गाना था। मं बाबा लखा सिंह जी िे परिाद ले कर चल पड़ा। अभी कुछ दरू ही गया था कक कुछ लड़कं ने मुझे घेर सलया और मुझे गासलआं दे ने लगे। मं चुप रहा क्यंकक मं अकेला था। कफर िोह


मुझे पीटने लगे। मं भी तगड़ा होता था। मं िब िे सभड़ सगया, दो को तो मंने नीचे सगरा कदया लेककन कुछ और लड़कं ने मुझे जोर िे धक्का दे कदया और मं मुह ं के भार र्ज़मीन पर सगरा और मेरा माथा एक बड़ी िी ईंट पर लगा। माथे िे खून बहने लगा और मं रोने लगा। िभी लड़के भाग गए। भाग्य िे मेरा

ताऊ रतन सिंह उधर ही आ रहा था। उि ने मुझे अपनी बाहं मं सलटाया और डाक्टर िोहन लाल की िजारी ले आया। डाक्टर ने दआ ु ई लगा कर पट्टी बाँध दी। इि के बाद ताऊ जी मुझे घर ले आये। घर

आते ही माँ तो खफा हो गई कक ” मं उन के घर िालं को उलाहना दे ने जाना है “. अचानक वपता जी भी

आ गए और कहने लगे ” छोडो यह तो बच्चं का मामला है , बात को बढ़ाना ठीक नहीं “. माँ ने मुझे गमा गमा दध ू कदया। कफर वपता जी मुझ िे िोह गीत िुनने लगे जो मंने जलूि मं गाना था। मंने िारा गीत िुना कदया।

यहां यह भी बता दँ ू कक मेरे वपता जी गुरदआ ु रे मं कीतान ककया करते थे और बहुत अच्छा गाते

थे। घर मं िोह अक्िर कफ़ल्मी गाने गाया करते थे। इन मं कुछ अभी भी मुझे याद हं । एक था,” तू कौन

िी बदली मं मेरे चाँद है आ जा “, दि ू रा था,” ररम स्ट्झम बरिे बादरिा मस्त हिाएं आईं, वपया घर आजा आजा, वपया घर आजा “. जलूि की आिार्ज़ आने लगी थी और घर के िभी लोग जलूि मं िामल होने की तैयारी करने लगे। जलूि गाँि के हर मोहल्ले मं आधे घंटे के सलए ठहरता था। गुरु ग्रन्थ िाहब की

ि​िारी एक पालकी मं चार िेिादारं के कन्धं पर होती थी और पालकी के आगे पांच प्यारे हाथं मं

ककरपान ले कर आगे जा रहे होते थे। रागी जथा एक छकड़े पर बैठा होता था जो लगातार तबले हारमोसनयम के िाथ िब्द पड़ रहा होता था। कभी कभी सगआनी जी माइक के िामने खड़े हो कर गुरु

जी के िम्बन्ध मं इसतहासिक घटनाएं बताते थे. कफर मेरा नाम भी सलया कक “काका गुरमेल आप को एक िब्द िरिणो कराएगा “.

वपता जी ने हाथं िे पकड़ कर मुझे छकड़े पर वबठा कदया। यह गीत स्ट्र्ज़द ं गी मं पहली दफा मंने

गाया था और इि गीत के कुछ बोल मुझे अभी तक याद हं “, जो पंजाबी मं इि पका​ार गुरु गोवबंन्द सिंह

जी के बारे मं हं ,” फुल्लां ते िोने िाले, रोड़ां ते िो गए प्रीतम, जंग च मराये दो, नीहाँ च चनाए दो, पैरां चं लहू दे तुप्के कंकडआं ते िो गए प्रीतम “. बहुत लोगं ने मुझे रुपये कदए और िाबाि िाबाि की आिार्ज़ं आ रही थीं. मेरे माथे पर पट्टी बाँधी हुई और कुछ इतने लोगं को दे ख कर घबरा भी रहा था। मुझे नहीं पता कक मंने अच्छा गाया या बुरा लेककन मेरा यह पहला गाना और माथे की चोट कभी कभी उन कदनं की याद तार्ज़ा करा दे ती है ।


मेरी कहानी – 17 स्कूल मं नए नए टीचर आ रहे थे, एक िातािरणो ही नया िा हो सगया था। दो कमरे और बन गए

थे। स्कूल काफी खुला हो सगया था। िरकार की तरफ िे फ़ुटबाल, िालीबाल और िालीबाल नैट आ गए

थे। मुझे िालीबाल का बहुत िौक था। आधी छुटी के िक्त मं कभी घर नहीं गया था, मं िालीबाल नैट एक लड़के की मदद िे लगाता और कफर कुछ और लड़के भी आ जाते और घंटा भर खेलते रहते। पीटी आई

मास्टर चरणो सिंह हमं बहुत खुि रखता था, िोह तीि बतीि िर्ा का होगा। हर िुबह िोह हम िे किरत करिाता। डं ड बैठक करिाता और हमारे पिीने छूट जाते। डं ड करने के िक्त कोई र्ज़रा िा नीचे होता चरणो सिंह िोटी मार दे ता। हमारी टांगं कांपने लगती। कफर िोह हमं दौड़ाने लगता और िाथ ही आप भी दौड़ता जाता। दौड़ते दौड़ते हमं नदी की तरफ ले जाता जो एक मील दरू थी। नदी के ककनारे ककनारे

दौड़ते जाते और कफर हमं बेरीओं के झुण्ड की ओर ले जाता। यह बेरीआं स्ट्जिको मले कहते थे दो तीन

फुट ऊंची ही होतीं थीं स्ट्जि पर छोटे छोटे बेर लगते थे। कफर िोह कहता, “ओए लड़को जाओ बेर खा लो “हम बेर खाने लगते और चरणो सिंह कहता, “ओए है ड मास्टर को ना बताना नहीं तो कफर इधर कभी नहीं लाऊंगा “. बेर खाने के बाद दौड़ते हुए िावपि स्कूल आ जाते। इि टीचर िे हम खुि थे और यह हमं भूगोल भी पडाता था।

पंजाबी का टीचर भगत सिंह होता था जो एक िीधा िाधा बर्ज़ुगा था, खादी के कपडे ढीली िी पगड़ी

और बड़ी बड़ी दाहड़ी। बहुत िरीफ और एक गुरदआ ु रे मं ग्रंथी भी था। इन िे कभी कोई डरा नहीं था और

ना ही िे अपने पाि कोई िोटी रखते थे। मास्टर गुरदयाल सिंह पचीि छबीि िर्ा के स्माटा नौजिान थे,

नई नई िादी हुई थी और मेरे उि दोस्त के चाचा जी थे जो अब बसमंघम मं रहता है (यह गुरकदआल सिंह अब फगिारे मं रहते हं , िौ के करीब इन की उम्र हो गई है ) और हम तकरीबन इकठे ही इं ग्लैण्ड आए थे। यह गाँि के जैलदार के बेटे थे जो गाँि मं िब िे अमीर थे। ऊंचे लम्बे िरीर के तगड़े लेककन हॉकी खेलते हुए एक कलाई पर चोट लग जाने के कारणो कलाई टे ढ़ी थी, िरना िोह कोई समसलिी मं बड़े

ऑकफिर होते क्यंकक इन के खानदान मं एक रिायत ही थी कक िभी बड़े बड़े समसलटरी ऑकफिर ही लगे

हुए थे। इि का कारणो गाँि मं जैलदार होने के कारणो उनके सलंक बहुत दरू दरू तक थे। गुरदयाल सिंह

बहुत अछा पढ़ाते थे। बाबू राम हमं इतहाि पढ़ाते थे, इन के कपड़े भी खादी के होते थे, ढीली िी पगड़ी,

क्लीन िेि और कानं मं छोटे छोटे ररं ग होते थे स्ट्जि को नंन्तीआं बोलते थे, यह हमारी भुआ परतापो के पड़ोिी थे। इनको तो हम कभी भूल ही नहीं िकते क्यंकक जब एक दो बजते तो कहते, ” जाह गुरमेल भट्टी िे दाने भुनिा के ला”. मं खुि हो कर दौड़ जाता, पहले घर िे दाने लेता, कफर बंिो झीरी की भट्टी

पहुँच जाता और दाने ले कर मास्टर जी को दे दे ता। मास्टर जी दाने अपनी कमीज के पलड़े मं डाल लेते और चबने लगते। मर्ज़े ले ले कर िोह दाने चबते और पढ़ाते भी रहते।

एक कदन िोह हम िे कहने लगे, “ओ बाई लड़को स्ट्जिने मेरे घर आ कर पड़ना है िोह रात को

िहीं आ कर पड़ा करं और िहीँ िो जाया करं ”. हम तो खुि हो गए, हमारे सलए तो यह हॉसलडे कैम्प जैिा ही था। दि ू रे कदन हम तकरीबन बारह तेरह लड़के अपने अपने वबस्तरे ले कर मास्टर जी के बड़े िे कमरे

स्ट्जि को दलान बोलते थे मं वबस्तरे लगा कदए। यह वबस्तरे हमने फिा पर ही लगाए, नीचे दरीआं और


ऊपर दि ू रे कपड़े । हर रोर्ज़ हम अपने वबस्तरे वबछा कर पड़ने लगते। कुछ दे र के सलए मास्टर बाबू राम जी भी आ जाते और हम िे ि​िाल पूछते। िुबह को अपने अपने वबस्तरे इक्कठे करके एक बड़े िे लोहे

के िंदक ू पर रख दे ते। यह हमारा रोर्ज़ का रूटीन ही बन सगया था। िभी लड़कं ने पैिे इकठे करके एक मट्टी के तेल का लैम्प सलया था स्ट्जिकी सचमनी काफी ऊंची थी। मट्टी का तेल भी िाँझा खरीदते थे। कभी कभी लैम्प गमा हो जाने के कारणो सचमनी मं क्रैक आ जाते। मास्टर जी आटे मं थोह्डड़ा िा पानी

डाल कर लेटी िी बना लेते और एक कागर्ज़ के टु कड़े पर िोह आटा लगा कर सचमनी के क्रैक के ऊपर

लगा दे ते और हं िकर कहते “नई नौ कदन पुरानी िौ कदन”. इि दालान मं चूहे बहुत होते थे, जब हम िो

जाते तो चूहे हमारे ऊपर समसलटरी परे ड करते। कई दफा कोई लड़का छोर मचा दे ता “ओए मर गए चूहा ! ” और हम कदयािलाई िे लैम्प जला लेते लेककन िोह चूहे हम िे ज़्यादा चालाक थे, िोह पता नहीं कहाँ चले जाते। कफर हम िक्त पाि करने के सलए कहानीआं िुनाने लगते। एक गाने की तर्ज़ा पर हम ने एक

गाना बनाया हुआ था जो हम गाते रहते जो कुछ इि तरह था “मुझे गोरा गोरा कहते, मं बेटा इं स्ट्ग्लस्तान

का, इन चूहं पे मेरा कब्र्ज़ा, मं मासलक इि दालान का “. एक कदन िुनकर मास्टर जी हँ िते हँ िते आ गए और पूछने लगे, ” ओए, इि गाने के ककया अथा हं ?” पहले तो हम चुप हो गए कफर हम बोले, “मास्टर जी यह िब चूहे हमारे हं हम इन के मासलक हं “. मास्टर जी हँ िते हँ िते चले गए। मास्टर बाबू राम जी का बेटा राम िरूप भी हमारे िाथ ही रहता था।

मास्टर बाबू राम जी कई दफा हमं कहते,” ओए भजन, कल को अपने खेतं िे मेरी भंि के सलए

चारा लाना”. कभी कहते, ” ओए गुरमेल कल को अपने खेतं िे गन्ने ले कर आना”, ककिी को कुछ हुकम फरमा दे ते ककिी को कुछ। िारे लड़के उन का हुकम मान कर काम कर दे ते। मास्टर जी का कहना हम

ख़ुिी िे मानते थे। कभी तो यहां तक भी कह दे ते,” ओए जा अपने घर िे चाह पर्त्ी ला, चाह बनाने लगे तो दे खा खत्म हो गई थी”. हम िरारतं भी बहुत ककया करते थे लेककन बाबू राम जी ऊपर चुबारे मं िोते थे, पता नहीं या तो उन्हं िुनाई नहीं दे ता था या जान बूझ कर इग्नोर कर दे ते थे। स्ट्जतनी दे र हम

मास्टर जी के घर मं िोए हम ने बहुत मर्ज़े ककये, लेककन इि का अंत भी बहुत बुरा हुआ। मास्टर जी के

बड़े लड़के यानी राम िरूप के बड़े भाई लुभाया राम की िादी हो गई थी। उि की पत्नी बहुत िुन्दर लेककन एक टांग िे लंगड़ी थी। हरभजन ने राम िरूप को उनकी भाभी के बारे मं कुछ अपिब्द बोल कदए। राम िरूप गुस्िे हो सगया और जाकर बाबू राम जी को िब कुछ बता कदया। मास्टर जी गुस्िे मं आग बबूला हो गए और आते ही हरभजन को इतना पीटा कक हम िब दहल गए।

मास्टर जी कुछ दे र के सलए खड़े हो गए, कफर हरभजन की तरफ सचलाये और बोले उठ ! हरभजन

डरता डरता उठ खड़ा हुआ, मास्टर जी ने मुह ं पर तमाचे मारने िुरू कर कदए। हरभजन का रं ग गोरा था, तमाचे पड़ने िे उि की गालं लाल हो गईं। बाबू राम जी बहुत बोले और कहा, खबरदार ! जो मेरे घर मं

कभी आये, िुबह होते ही अपने अपने वबस्तरे यहां िे ले जाओ और कभी मेरे घर को नहीं आना, उन्हंने

बहुत लफ़र्ज़ बोले जो मुझे याद नहीं। बाबू राम जी भी जैिे थक गए, अपने कमरे की ओर चले गए। हममं िे कोई लड़का बोला नहीं। िुबह को चुप चाप िभी ने अपने अपने वबस्तरे िरो पर रख सलए और

अपने अपने घर को चल कदए। हम बहुत उदाि थे। मंने हरभजन को कहा, यार ! जाने िे पहले मास्टर जी िे मुआफ़ी मांग ले। हरभजन के मन मं भी यह बात आ गई। हम पीछे मुड़ गए। मास्टर जी भी हमं


जाते हुए दे ख रहे थे, पता नहीं उन के मन मं क्या था। हरभजन जाते ही मास्टर जी के पैरं पर पड़ गया और रोते हुए बोला,” मास्टर जी मुझे मुआफ कर दो, आगे ऐिी गलती कभी नहीं होगी “. हम िभी ने भी मुआफ़ी मांगी। मास्टर जी बोले नहीं लेककन हरभजन के िर पर हाथ रख कदया और अपने कमरे की तरफ चल कदए। िभी लड़के अपने अपने घरं को चल कदए। हमं लग रहा था जैिे हम िब कुछ हारकर जा रहे थे।

दि ू रे कदन जब स्कूल गए तो हमारी बातं िभी लड़के जान गए थे और हम पर हं ि रहे थे। हम

िमा के मारे कुछ बोल नहीं रहे थे। हरभजन स्कूल ही छोड़ गया था िायद िोह यह िह नहीं िका था।

यह हरभजन बड़ा हो कर बहुत बड़ा बदमाि आदमी बना, उि का इसतहाि ही अजीब बना, मुझे पता नहीं

िोह अब है या नहीं। बारह तरह िर्ा हुए जब मं इं कडया गया तो अपने छोटे भइया को हरभजन िे समलने की इच्छा जाकहर की तो भइया बोले,” कोई फायदा नहीं िोह बहुत बड़ा बदमाि बना हुआ है , िोह आप िे

पैिे मांगेगा “. एक कदन मुझे िोह बि मं ही बैठा हुआ समल गया। मंने तो उिे पहचाना नहीं था लेककन िोह मुझे पहचान कर मेरी िीट के नर्ज़दीक आ गया और बोला, ” गुरमेल, ककया हाल है ” जब मंने कहा

कक मंने उिको पहचाना नहीं था तो िोह बोला, ” मं हरभजन हूँ” कुछ दे र हम बातं करते रहे , मेरा स्टॉप आ गया था और मं उिे ित सिरी अकाल कह कर बि िे उर्त्र गया। िारा कदन मेरे मन मं िोह बचपन का िीन जब हम िरं पर वबस्तरे उठाए बाबू राम जी के घर िे बेइर्ज़त हो कर आये थे याद आता रहा।


मेरी कहानी – 18 मास्टर बाबू राम जी के घर िे स्ट्जि तरह हम आये थे लगभग भूल गए थे क्यंकक हरभजन

तो था नहीं, िब कुछ िामान्य हो गया था। यहां यह भी बता दँ ू कक हमारे स्कूल की क्लािं ज़्यादा तर खुले आिमान के नीचे ही होती थीं। कमरं मं तो मौिम के मुताबक ही बैठते थे। स्कूल मं बड़े बड़े बृक्ष

हुआ करते थे स्ट्जिके नीचे बैठ कर पड़ना अच्छा भी लगता था। स्ट्जि ओर मास्टर बाबू राम जी की कुिी होती थी उि तरफ एक दीिार थी स्ट्जिके दि ू री तरफ एक बाग़ को लगती थी यहां अनार के पेड़ होते थे।

इन पेड़ं पर बहुत खूबिूरत फूल लगते थे स्ट्जन को दे ख कर मन खुि हो जाता था। यही फूल कफर अनारं मं तब्दील होने लगते थे। पहले छोटे छोटे कफर बड़े बड़े होने लगते। मेरा दोस्त बहादर सिंह जो

अब यहां बसमंघम मं रहता है यह उनका ही बाग़ था और कभी कभी बहादर के िाथ मं इि बाग़ मं चला

जाता था। क्यंकक बहादर के दादा जी एक जैलदार थे इि सलए इन का दबदबा हमारे गाँि मं तो क्या दरू दरू के गाँिं तक था। आर्ज़ादी के बाद यह र्ज़ैलदारीआं खत्म कर दीं गई थीं।यह जैलदार अंग्रेर्ज़ं की तरफ

िे स्थावपत ककये हुए टै क्ि कलैक्टर हुआ करते थे। टै क्ि (लगान) के कमीिन का १% पैिा इन लोगं को समलता था। इन लोगं के और भी बहुत काम हुआ करते थे जैिे गाँि मं अमन कायम रखना, कोई

हकूमत के स्ट्खलाफ आिार्ज़ उठा रहा हो उन की ररपोटा हकूमत को करना, जब पुसलि गाँि मं आये तो उन की हर तरह िे मदद करना आकद।

र्ज़ैलदारं िे लोग बहुत डरते थे लेककन बहादर के दादा जी बहुत नेक इं िान थे जो हर एक की

मदद करने को तैयार होते थे। चमाकार और समहतर लोग तो सनभार ही इन पर थे। क्यंकक बहादर के

दादा जी की जमींन बहुत होती थी, इि सलए इन लोगं के सलए िहां काम बहुत होता था। जब मं र्ज़ैलदारं की बात िोचता हूँ तो एक बात मेरी िोच मं िासमल हो जाती है कक बचपन मं मंने बहुत बर्ज़ुगं के मुह ं

िे िुना था कक इि आर्ज़ादी िे तो अंग्रेर्ज़ं का राज ही अच्छा था क्यंकक जब की बात मं करता हूँ उि िमय कानून वि​िस्था बहुत वबगड़ चुकी थी, बेकारी भी बहुत थी स्ट्जिकी झलक उि िमय की कफल्म

कुंदन मं भी दे खने को समलती है । कभी कभी िोचता हूँ मुठी भर अंग्रर्ज़ े ं ने कैिे इतने बड़े दे ि को कंिोल मं रखा जब कक यह उतने नहीं थे स्ट्जतने हमारी समल्टरी के जिान ककमीर को िंभालने मं अिमथा हं ।

और तो और नकिलबाड़ी भी वपछले चालीि िर्ं िे हमारी हकूमत की नाक मं दम ककये हुए हं , िीरप्पन को पकड़ने और मारने को भी इतने िर्ा लग गए.

यह बाग़ ज़्यादा बड़ा तो नहीं था, होगा कोई आधे एकड़ मं लेककन स्ट्जि खूबिूरती िे बना हुआ था

अपने आप मं एक आटा था। इि मं िंगतरे केले आलूबख ु ारे और कई तरह फलदार बृक्ष थे। तरह तरह के

फूल थे जो बहुत ही अच्छे ढं ग िे लगाए हुए थे। और इि बाग़ के बीच मं थी एक बड़ीआ हिेली। इि

हिेली को इहाता बोलते थे। इि हिेली के तीन ओर बरामदे थे। हिेली के बीच मं बहुत कमरे थे लेककन उन कमरं मं मं कभी सगया नहीं था, सिफा एक कमरा मंने दे खा था स्ट्जि के भीतर एक तहखाना था

स्ट्जि को भोरा कहते थे और इनमं कुिीआं मेर्ज़ आकदक रखे हुए थे। चारं तरफ बरामदं के ऊपर फूलं के

गमले थे स्ट्जन मं तरह तरह के फूल होते थे और उन फूलं मं बहुत िे फूल तो ऐिे थे जो मंने कभी दे खे ही नहीं। इि हिेली के फ्रंट पर एक तकरीबन पांच फ़ीट ऊंची दीिार थी और एक गेट था। इि गेट


के नर्ज़दीक ही एक बृक्ष था स्ट्जि को उि िक्त ककम्ब बोलते थे लेककन अब मुझे िमझ आई कक िोह

लाइम यानी छोटे नीम्बुओं का बृक्ष था स्ट्जि पर जब िफ़ेद रं ग की कसलयाँ लगती थीं तो उन की िुगध ं

बहुत मनमोहक और दरू दरू तक जाती थी। इि लाइम के बृक्ष के िाथ ही एक दीिार और थी और उि मं एक दरिाजा था जो बाग़ की दि ु री ओर खुलता था दि ु री ओर एक और बृक्ष था स्ट्जि पर बृक्ष जैिी ही िेल बृक्ष के इदा सगदा िल खाती हुई ऊपर को चढ़ती जाती थी। इि बेल को बहुत बकढ़या फूल लगते थे, िायद इन को कचनार के फूल बोलते थे। कहने की बात नहीं यह हिेली एक छोटे िे महाराजे की रहाइि िे कम नहीं थी।

इि हिेली का जो कदलचस्प अध्याय है , िोह यह है कक यहां पुसलि आई ही रहती थी। बहादर के

दादा जी के पाि राईफल होती थी और कभी कभी उनके गले मं राईफल मं पड़ने िाले कारतूि की पेटी होती थी और बहुत बकढ़या घोड़ी भी रखते थे। बहादर के घर लगी एक बड़ी फोटो स्ट्जि मं बहादर के दादा

जी घोड़ी पर ि​िार हं दे खकर उन पुराने कदनं की याद आ जाती है । खैर, कभी कभी जब पुसलि आती थी तो हम चोरं की वपटाई होते दे खने जाया करते थे। थानेदार और कुछ सिपाही कुसिाओं पर बैठे होते थे

स्ट्जनके िामने मेर्ज़ लगे होते थे और उन पर रखे होते थे कप, चाए की केटल और समठाई की प्लेटं। बूढ़ा नंद ू गाँि का चौकीदार होता था स्ट्जि के काम भी बहुत होते थे स्ट्जन मं एक काम होता था जब पुसलि आये तो स्ट्जन पर पुसलि को िक होता था उन को बुलाने जाना। नंद ू काफी बूढ़ा था, और उि की कमीज

पर एक कुसलओं जैिा पीतल का बैज लगा होता था, उि के हाथ मं एक लाठी हुआ करती थी। पुसलि आने िे ही पता चल जाता था कक ककिी चोर को पकड़ने आये हं । हम बहुत लड़के दीिार पर चढ़ कर बैठ जाया करते थे और इि इं तर्ज़ार मं रहते थे कक कौन होगा स्ट्जिकी वपटाई होगी। कुछ दे र बाद जब

िोह मुजररम आ जाते तो थानेदार एक एक को कोई ि​िाल करता, जब िोह उन के मुतावबक़ उल्ट जिाब दे ता, तो थानेदार गंदी गासलआं बोलने लगता। कफर भी जब िोह ना मानता तो सिपाकहओं को कहता,”जाओ ! इि िाले को नंगा कर दो और इि की मरम्मत कर दो”.

बि कफर ककया होता, सिपाही उिको गासलआं दे ते और उनके कपडे उतार कर अल्फ नंगा कर दे ते

और उि को मुह ं के बल सलटा दे ते। कफर एक चमड़े का सछर्त्र िा होता था स्ट्जि को हं टर कहते थे। यह

तकरीबन एक फुट विआि मं होगा और इि को पकड़ने के सलए एक लकड़ी का हं डल होता था। एक

सिपाही बहुत जोर िे िोह हं टर चोर के बॉटम पर मारता, स्ट्जि​िे िोह चीख सचहाड़ा मारने लगता। कफर दि ू रा कफर तीिरा, और इिी तरह मारता जाता। कफर एक सिपाही उि के बॉटम को पैरं िे मिलता तो

उि की चीखं आस्मां छू लेती। बहुत दफा तो चोर बेहोि हो जाता और उि के मुह ं पर पानी के छींटे दे त,े जब होि आ जाती तो कफर उि को मारने लगते। कई दफा चोर मान जाता कक उि ने ही चोरी की थी।

उिको उठने को कहते तो िोह हाथ जोड़ कर समनतं करता। हम यह िब दे खते और डर जाते। बहुत दफा हम को भी थानेदार एक दबका मारता और हम भाग जाते लेककन कफर िावपि आ जाते। यह भयानक दृकय दे खने िे भी हमं एक अजीब िी िंतष्ट ु ी समलती थी, पता नहीं क्यं ?

कभी कभी इि भयानक दृकय िे भी एक कॉसमडी जैिा दृकय दे खने को समल जाता था। कुछ चोर

ऐिे होते थे स्ट्जन को दि नंबरी कहते थे। इि का मतलब यह होता था कक िह पक्के चोर होते थे

स्ट्जनका पेिा ही चोरी था, स्ट्जन की रोर्ज़ी रोटी ही चोरी होती थी, इिसलए इदा सगदा गाँिं मं कोई भी चोरी


होती तो पहले दि नंबरी को पकड़कर ले आते। हमारे गाँि मं एक रुकमा (बदला हुआ नाम) चोर होता था स्ट्जि की प्रसिवद्ध इि बात पर ही सनभार थी कक िोह वपटाई िे कभी डरता नहीं था। उि की वपटाई मं

ने तो नहीं दे स्ट्ख लेककन िुना था कक एक दफा जब नंद ू उि को बुला कर लाया तो िोह थानेदार की तरफ

जाने की िजाए बरामदं की तरफ जाने लगा। जब थानेदार ने गाली दी कक ” कहाँ जा रहा है ?”. तो उि

ने जिाब कदया,” िाहब कपडे उतारने जा रहा हूँ “. थानेदार गरजा,”ओए ककयं ?”. रुक्मे ने जिाब कदया, “मुझे पता ही है , आपने मुझे पीटना है “. इि पर िबी लोग हं ि पड़े ।

इि रुक्मे की स्ट्र्ज़ंदगी मं भी अचानक एक इं कलाब आ सगया। उिने अपने घर मं अखंडपाठ

रखिाया जो सिखं की अवर्त् उर्त्म धासमाक रिम होती है . िभी लोग पीठ पीछे हं ि रहे थे कक,”नौ िौ चूहा खा के वबल्ली हज्ज को चली”. लेककन यह कोई नहीं जानता था कक रुकमा क्या ठाने हुए था। उि की जमींन तो बहुत कम थी लेककन उि ने और जमींन लोगं िे ठे के पर ले ली और जी जान िे खेती करने लगा। िभी लोग उि कदन है रान रह गए जब स्ट्जि स्ट्जि ने िुना कक रुक्मे की गंहूँ िब िे ज़्यादा हुई थी। रुक्मं ने िबके ठे के के पैिे िावपि कर कदए और कदल लगाकर खेती करनी िुरू कर दी और लोग भूल गए कक िोह कभी दि नंबरीआ था।

चोरं को वपटते दे खना तो आम बात थी, पता नहीं ककतनी दफा दे खा होगा लेककन जब १९७३ मं

मेरे वपता जी अचानक यह िंिार छोड़ गए तो हम िारा पररिार गाँि जा पौहं चा और हम को ६ महीने गाँि मं रहना पड़ा क्यंकक बहुत काम ऐिे थे जो र्ज़मीन जायदाद के मामले मं थे और इि मं मेरे दोस्त

बहादर के छोटे भाई ने मेरी बहुत मदद की। इि का नाम हरसमंदर था जो इि िंिार मं अब नहीं है । हरसमंदर इं ग्लैण्ड मं ही रहता था, लेककन उिका मन उचाट हो गया और इं कडया चला गया। पुरखं की

जमींन बहुत थी, इि सलए खेती करनी िुरू कर दी। हरसमंदर ने बड़े बड़े लोगं िे िम्बन्ध बनाये हुए थे, इन मं एक था एक थानेदार स्ट्जि का नाम मं नहीं लूग ं ा। उिको समलने हम दोनं हरसमंदर के

मोटरिाइकल पर बैठ कर जाते ही रहते थे। कभी कभी िोह थानेदार हरसमंदर के घर आ जाता और हरसमंदर अपने नौकर को भेज कर मुझे बुला लेता। कफर हम हरसमंदर का हारमोसनयम बजाते और गाते। एक कदन जब थानेदार को समलने पुसलि स्टे िन गए तो बातं करते करते मंने बचपन मं दे खे उि हं टर

की बात की। थानेदार अंदर सगया और िोह हं टर उठा लाया और मुझे कदखाया। मं ने हाथ िे पकड़ा और

बहुत भारी लगा। पता नहीं उि मं ककया था। यह हं टर दे ख कर मुझे रुकमा और िोह िब लोग याद आ गए स्ट्जन को िायद इिी हं टर िे पीटा हुआ होगा।


मेरी कहानी - 19 बहुत कदनं िे भारत के ककिानं की ख़ुदक़सियं के बारे मं पढ़ और टीिी पर दे ख रहा हूँ, स्ट्जि​िे

मेरा मन बहुत दख ु ी है । आज एक ककिान ने िृक्ष पर चढ़ कर अपने आपको फांिी लगा ली िोह भी

इतने लोगं के िामने,इि​िे भी ज़्यादा दःु ख कुछ कदन हुए एक ककिान को महर्ज़ तीि पंतीि हर्ज़ार रूपए की खासतर अपने दोनं बेटं को बेचना पड़ा, िुनकर हुआ । िारे दे ि​िासिओं को भूख िे बचाने िाला अन्नदाता खुद भूखा मर रहा है और आत्महत्या करने पर मजबूर है । एक ककिान कदन रात ककतनी मिक्कत करता है , घर के िभी िदस्य िाथ दे ते हं । बीज बो कदए जाते हं , फिल तैयार होने को होती है

स्ट्जि​िे एक आिा की ककरणो कदखाई दे ने लगती है , जब अचानक बाररि और आंधी िब स्िाहा कर दे ती

है , तो जब उिकी यह िब दे ख कर हालत होती है उि को मुझिे ज़्यादा कौन िमझ िकता है , क्यंकक मंने भी दादा जी के िाथ खेती की है ।

मेरे दादा जी मेरे पैदा होने िे पहले खेती ककया करते थे लेककन बाद मं मेरे वपताजी ने अफ्रीका

जाने के बाद दादा जी िे खेती छुड़िा दी थी। इि सलए िारी जमीन जो दो जगह पर होती थी, दो ककिानं को दे दी थी। िोह ककिान हमारी जमीन मं खेती करते थे और फिल होने पर िब आधा आधा

बांट लेते थे। दादा जी इि िे िंतष्ट ु नहीं थे, उन का कहना था कक यह लोग खेतं को अच्छी तरह रखते

नहीं थे और घाि जड़ी बूकटओं आकद को खेतं िे सनकालते नहीं थे, स्ट्जि​िे खेत खराब हो गए थे। कफर एक कदन उन्हंने फैिला कर सलया कक िे खुद खेती करं गे। जब वपता जी को अफ्रीका मं पता चला तो

उन्हंने दादा जी को खत सलखा कक िे खेती न करं क्यंकक लोग बातं करं गे कक बेटा अफ्रीका मं है और बाप खेतं मं पिीना बहा रहा है । दादा जी भी स्ट्र्ज़द्दी स्िभाि के थे, उन्हंने काम िुरू कर कदया।

िबिे पहले उन्हंने दो बैल खरीदे । कफर खेती मं काम आने िाले हल बनाये, क्यंकक िोह खुद

कारपंटर भी थे। उन्हंने एक छकड़ा बनाना िुरू ककया। िबिे पहले दो बड़े बृक्षं को काट कर उन पर सनिान लगाए और उन बड़ी बड़ी लकड़ीओं को ककिी और के छकड़े पर लाद कर िहर ले गए और उन

लककड़यं को एक लकड़ समल मं सचरिाया सगया। घर ला कर कदन रात मेहनत करके एक िुन्दर छकड़ा

और नए पकहए बनाये। दादा जी ने हल चलाना िुरू कर कदया। मं भी स्कूल िे फारग हो कर दादा जी के िाथ काम करिाता। था तो मं अभी बहुत छोटा लेककन गाँि मं िभी लड़के ऐिे ही काम करते थे। दादा जी ने मुझे हल चलाना मना कर कदया था क्यंकक उन का विचार था की हल चलाने िे बच्चं की टाँगे

टे हड़ी हो जाती थी। हल को छोड़ कर मंने िब काम ककये। यह नहीं कक मुझे कोई मजबूरी थी, मं खुद ही खेती का काम करना बहुत पिंद करता था।

खेतं मं हम गंहूँ, चने, मिूर, कुछ और दालं, मक्की, बाजरा, ज्िारी, गन्ने, बािमती, कपाि और कुछ

िस्ट्ब्जआं जैिे करे ले फूल गोभी, बंद गोभी, बंगन, प्यार्ज़ जो िाल भर के सलए उगाते थे और ख़रबूर्ज़े तरबूज

स्ट्जि को पंजाब मं हदिाने बोलते हं , कद्द,ू टमाटर और लौकी। और भी बहुत कुछ बीजते थे जैिे मुलीआं गाजरां और िरिं का िाग तो िारा िाल ही खत्म नहीं होता था। इतनी िस्ट्ब्र्ज़याँ हम खा तो िकते

नहीं थे, इिसलए कुछ लोग जो िाइकलं पर िस्ट्ब्जआं बेचने जाते थे हमिे िस्ते भाि मं ले जाते थे स्ट्जि​िे उनकी भी रोर्ज़ी रोटी चल जाती थी। इिमं एक बात तो मर्ज़ेदार होती थी कक अपने खेतं िे तार्ज़ी


मुलीआं गार्ज़रां खरबूजे खाने का मर्ज़ा ही कुछ और होता था क्यंकक उि िमय िब कुछ ऑगैसनक ही होता था यहां तक कक कुंए का पानी भी ऐिा होता था जैिे कफल्टर हुआ हो।

इतना कुछ हम उगाते थे, यह कहने िुनने को तो बहुत आिान लगता है लेककन जो इि काम मं

मेहनत होती है उि को लफ़्र्ज़ं मं दिा​ाना अत्यंत ककठन है । एक एक बात को सलखने लगूँ तो बहुत

अध्याय सलखने पड़ं गे लेककन एक उदाहरणो ही दं ग ं ू ा। स्ट्जि खेत मं हल चलाना हो दादा जी िुबह मुह अँधेरे मं ही बल्दं (बैलं) को ले कर चले जाते थे और जब तक मं स्कूल जाने िे पहले रोटी दे ने जाता उन्हंने आधा खेत खत्म कर सलया होता। खेत के ककनारे बैठ कर मं दादा जी का इं तर्ज़ार करता। कुछ

दे र बाद दादा जी बल्दं को हाथ िे उन की पीठ पर िाबािी दे ते और मेरी ओर आने लगते। पहले मं

पानी िे दादा जी के हाथ धुलिाता और मक्की की रोटीआं, िाग या िब्र्ज़ी, दही, माखन और हरी समचा या आम का अचार दे ता। दादा जी खाने लगते और मं एक ग्लाि लस्िी का भरके भी दे दे ता। बहुत दफा

दादा जी िाग को कौली िे सनकाल कर रोटी के ऊपर ही रख लेते। इि तरह रोटी खाने का मर्ज़ा कुछ हटकर ही होता था। मक्की की रोटी एक प्लेट जैिी ही होती थी स्ट्जि के बारे मं एक जोक भी प्रचसलत

थी कक एक दफा एक अँगरे र्ज़ ककिी गाँि मं सगया, उि को भूख लगी हुई थी, उिने ककिी ककिान को कुछ खाने के सलए कहा, ककिान एक मक्की की रोटी पर िाग रखकर ले आया, अँगरे र्ज़ ने िाग खा सलया और ककिान को रोटी िावपि करते हुए बोला, “लो मैन अपनी प्लेट।”

दादा जी के रोटी खाने के बाद मं घर िावपि आ कर स्कूल चले जाता लेककन दादा जी हल चलाते

रहते और गमी बढ़ने तक िारा खेत खत्म कर दे त।े इि के बाद िोह मिीन िे चारा स्ट्जि को पट्ठे

बोलते थे और इिमं हरा और िुखा समक्ि होता था कुतरते और बल्दं के आगे उनकी खुरली मं दो टोकरे भर कर डाल दे ते। बल्द खाने लगते स्ट्जि िे दादा जी को तिल्ली का अनुभि हो जाता और िोह

खुद भी आम के िृक्ष के नीचे चारपाई पर लेट जाते। इि चारपाई पर कोई कपडा नहीं होता था। गाँि के

िभी लोग इि तरह चारपाई पर िोने के आदी थे और बहुत दफा तो गसमाओं के कदनं मं बगैर कमीज के ही लोग लेट जाते थे स्ट्जि िे जब िोह उठते तो उन की पीठ पर चारपाई की रसिओं के सनिान पड़ जाते थे।

स्कूल के बाद रोटी खाकर मं भी िीधा खेतं मं चला जाता और दादा जी की मदद करता। यह

मदद मौिम के मुताबक ही होती थी। जब गंहूँ का मौिम होता तो खेतं को पानी दे ना होता था। कुएं िे पानी सनकालने के सलए बल्द काम आते थे जो एक लकड़ी को बंधे रस्िे को गोल दायरे मं खींच कर

चलते रहते थे स्ट्जि​िे कूंएं िे पानी सनकल कर एक पॉिे मं सगरता रहता था और िोह पानी आगे एक

गड़े मं सगरता था स्ट्जि को चलह कहते थे, इि के आगे िोह पानी छोटी नाली मं बहता हुआ खेत को जाता था। खेत कई कहस्िं मं बांटा हुआ होता था स्ट्जि को क्यारे बोलते थे। जब एक क्यारा भर जाता तो उि का मुह ं मट्टी िे बंद करके दि ू रे क्यारे को पानी छोड़ कदया जाता था। इि तरह िारा खेत भर जाता था।

कुएं िे पानी खींचते हुए बल्दं के पीछे भी एक आदमी पीछे पीछे घूमता रहता था िरना िोह

थककर खड़े हो जाते थे। उि लकड़ी के ऊपर एक िीट िी बनी हुई होती थी स्ट्जि पर िोह आदमी भी


कई दफा थक कर बैठ जाता था। इन कुओं के जो सगयर होते थे उि के िाथ एक छोटा िा लीिर लगा

होता था जो लगातार गीयरं के दांतं पर लग कर कटक कटक की आिार्ज़ दे ता रहता था, स्ट्जि को कुर्त्ा कहते थे पता नहीं क्यं, यह इि सलए होता था की कुँआ खड़ा होने पर पानी के भार िे पीछे की ओर ना

घूम जाए। एक फायदा यह होता था कक इि कटक कटक िे लोगं को िुबह िुबह पता चल जाता था कक कुआं चल रहा था और कुछ लोग जो खेतं मं जंगल पानी जाते थे िाबुन तौसलआ भी िाथ ले जाते थे

और कुएं के चलहे मं बैठ कर स्नान भी कर लेते और िाथ िाथ पाठ भी करते रहते। हमारे यह खेत तो गाँि के िाथ ही थे और नर्ज़दीक होने की िजह िे हम जाते ही रहते थे।

खेतं का िातािरणो बहुत िुहािना होता था, िरिं के फूलं िे हर तरफ बिंत का िुन्दर नर्ज़ारा

दे खने को समलता था। जब जी चाहा खेत िे मूली उखेड़ ली, जब चाहा गाजरं उखेड़ ली और जब जीअ

चाहा दरान्ती िे गन्ना काट कर चूिना िुरू कर कदया। लोग आते जाते रहते, उनिे बातं होती रहती और कभी कभी ककिी के खेतं मं गुड़ बनने की खुिबू आती रहती और हम उधर ही चले जाते और िोह ककिान हमं तार्ज़ा तार्ज़ा गमा गमा गुड खाने को दे ते स्ट्जि का मर्ज़ा ही बताना अिंभि होता। इि स्िगीय

नर्ज़ारे के पीछे एक कड़ी समहनत और बहाया हुआ पिीना होता स्ट्जिका फल ककतना समलेगा इिकी आिा करना इतना आिान ना होता। आज जब िैिाखी का मौिम लोग मना रहे हं तो ककतने ककिानं का मन खुि हुआ होगा और ककतने सनरािा मं डू ब गए हंगे, यह जानना बहुत ककठन है ।


मेरी कहानी - 20 जैिे जैिे गंहूँ के पौधे बड़े हुए जाते, मौिम मं भी बदलाि होता रहता। गंहूँ के खेतं मं जो

अनचाही जड़ी बूटीआं उगती रहती उन को भी छोटे िे खुरपे स्ट्जि को रम्बा कहते हं िे जड़ी बूटीयाँ

उखाड़ते उखाड़ते आगे की ओर बढ़ते जाते। जब खेत का आखीर आ जाता तो दि ु री ओर िे काम िुरू हो

जाता। यह िारा काम बैठ कर आगे बढ़ते हुए होता जाता। बैठे बैठे टांगं दख ु ने लगतीं और पिीने िे सनक्कर भी भीग कर अकड़ जाती। यह काम करना ही होता था क्यंकक इन जड़ी बूकटओं के ना सनकालने

िे गंहूँ के उत्पादन पर फरक पड़ता था और उतनी गंहूँ नहीं हो िकती स्ट्जतनी होनी चाकहए. इि काम का नाम था गुडाई करना। यह काम हर िीर्ज़न मं दो तीन दफा करना पड़ता था। जब जब खेत िूखने लगते, कफर कुएं िे पानी दे ना पड़ता। क्यंकक खेत और भी बहुत थे, इि सलए यह काम चलता ही रहता था.

मेरा स्कूल का काम रात को रोटी खाने के बाद िुरू होता था। एक छोटे िे चुबारे का कमरा मेरा

स्टडी रूम होता था। इिको मंने बहुत िजा के रखा हुआ था। इि मं चार छोटी छोटी स्ट्खड़कीआं थीं स्ट्जन को नीले रं ग के परदे लगे हुए थे। निार का पलंग था, स्ट्जि के आगे एक मेर्ज़ और कुिी होती थी। एक चार फ़ीट लम्बी िैल्फ थी स्ट्जि को अंगीठी बोलते थे और स्ट्जि पर माँ के हाथं का बना िेळ बूकटओं

िाला कपडा होता था। िैल्फ पर बैटरी िे चलने िाला रे कडओ होता था स्ट्जि के दोनं ओर मंने फगिारे िे

फूलदान ला कर रखे हुए थे स्ट्जि मं कागर्ज़ के फूल रखे हुए थे जो बहुत िुन्दर थे। कमरे की छत िे दो फ़ीट नीचे चारं ओर मंने दो इं च चौड़ी एक फट्टी लगाईं हुई थी जो कमरे की फ़ोटोर्ज़ को स्पोटा और एक लाइन मं रखने के सलए थी ।

इन फोटू ओं मं बहुत िे तो कैलंडर फ्रेम ककये हुए थे लेककन कुछ मेरी अपनी बनी हुई थी। इन मं

एक महात्मा गांधी की पंसिल िेड मं थी, एक जिाहर लाल नेहरू की, एक गुरु नानक दे ि जी की और एक गुरु गोवबंद सिंह जी की थी। िब िे ज़्यादा िुन्दर बनी थी “िोहनी महीिाल ” की। यह मंने एक कैलंडर िे दे ख कर बनाई थी। मं कोई इतना कारीगर तो था नहीं लेककन मेरे एक दोस्त ने ही मुझे एक

आइकडआ कदया था कक पहले ककिी फोटो के ऊपर ग्राफ बनाओ कफर ग्राफ के िुकेअऱर्ज़ को दे ख दे ख कर

उिी तरह पेपर पर तस्िीर बनाते जाओ और इि मं मं िफल हो सगया था। पढ़ते पढ़ते दे र हो जाती और माँ मुझे दध ू का ग्लाि दे ने आती। यह आदत मुझे आज तक है और रात को िोते िमय दध ू का कप चाकहए ही।और एक आदत मूग ं फली खाने की थी जो आज भी है । ज़्यादा मूग ं फली खाने िे मेरा सिर

दख ं फली न खाया करूँ। इिसलए मं मूग ं फली ु ने लगता था। माँ मुझे स्ट्झड़कती रहती थी कक मं इतनी मूग को छुपा कर रख लेता था और दे र रात को खाता था। िुबह उठकर मं मूग ं फली के सछलके रुमाल मं बाँध

कर बाहर ले जाता था और बाहर ही फंक आता था। मेरी स्काउट की िदी के िाथ गले मं बाँधने के सलए एक लाल रं ग का रुमाल होता था। एक रात मूग ं फली खा कर सछलके मंने उि रुमाल मं बाँध सलए कक िुबह को बाकहर फंक आऊंगा लेककन िुबह को मं भूल गया और बाकहर चला गया। माँ कमरे को िाफ़

करने आई तो लाल रं ग के कपडे मं कुछ बाँधा हुआ दे ख उि ने रुमाल खोल सलया और जब मं िावपि

आया तो माँ मुझे स्ट्झड़कने लगी कक ” कफर कहता है मेरा सिर दख ु ता है “. यह बात बहुत िमय तक याद कर के माँ हं िती रही.


कभी कभी िुबह उठ कर मं अपने कुएं को जाने की िजाए अपने दोस्त बहादर के खेतं मं जंगल

पानी जाया करता था और बहादर के खेतं मं िे मेथे तोड़ कर ले आता था और माँ उन को काट कर

मेसथआं िाली मक्की की रोटी बना दे ती थी जो मं दही और माखन के िाथ खाता था। दादा जी को रोटी

बहुत दफा मेरी बहन दे ने चली जाती थी और मं स्कूल को चले जाता था। स्कूल िे िावपि आते ही मं दरांती ले कर खेतं मं जा कर हरा हरा चटाला या िंजी काटने खेत मं बैठ जाता था। जब काफी हो जाता तो उिे एक कपडे मं बाँध कर बाइसिकल की वपछली काठी पर एक िाइकल की ट्यूब िे बाँध दे ता था और घर ले आता था। घर आ कर इि हरे चटाले और िंजी के िाथ कुछ िूखा घाि समला कर

मिीन िे कुतरने लगता। इि काम िे बहुत पिीना आता लेककन काफी एक्ि​िा​ाइर्ज़ हो जाती। कफर इि

काटे हुए चारे को टोकरे मं डाल कर गाए भंि के आगे उन की खुरली मं डाल दे ता। कुछ दे र बाद जब िोह चारा खा लेती तो एक बड़ी बाल्टी मं नल िे पानी ले कर उन िब को वपलाता इि के बाद नहाने

चले जाता और रोटी भी तैयार होती। इतनी किरत के बाद रोटी भी खूब स्िाद लगती। इिके बाद हम दो तीन दोस्त इकठे होकर सगयान चाँद की दक ू ान मं चले जाते, गप्पं हांकते रहते और कफर िावपि घर आ कर पढ़ाई मं मिरूफ हो जाते।

कभी कभी िसनिार और ऐतिार को दादा जी के िाथ छकड़े मं बैठ कर दि ू रे कुएं को चले जाता

जो गाँि िे दो ककलोमीटर था। िहां खेतं मं दादा जी ने एक कमरा भी बनाया हुआ था और दो

चारपाईआं और वबस्तरे भी रखे हुए थे। कभी कभी हम यहां ही िो जाया करते थे। एक कदन मक्की के खेत को पानी दे रहे थे। खेत कुएं िे कुछ दरू थे, रात हो गई थी और दादा जी ने मुझे खेत मं भेज कदया

और कहा कक जब खेत पानी िे भर जाए तो मं उन्हं आिार्ज़ दे दँ ू और दादा जी कुआं खड़ा करके बल्दं को खोल दं गे। एक तो मुझे अँधेरे मं इतना कदखाई नहीं दे ता था, ऊपर िे गीदड़ ऊंची ऊंची बोलने लगे जो अक्िर मक्की की छसलआं खाने आते थे। मं डर िे कांपने लगा और डर के मारे दादा जी को आिार्ज़ दे

दी कक खेत भर सगया। दादा जी ने बलद खोल कदए। िुबह दादा जी ने खेत दे खा तो पूरा भरा नहीं था, दादा जी ने मुझे बहुत स्ट्झड़का।

एक कदन दादा जी ने मुझे कहा कक स्कूल िे फारग होने के बाद एक तो मं उन की रोटी लेता

आऊँ, दि ू रा हल के आगे लगने िाला स्पाइक स्ट्जि को फाला कहते थे जो मट्टी को खदे ड़ता है , लुहार िे लेता आऊँ। मं रोटी तो ले गया लेककन िोह फाला भूल गया। जब दादा जी ने पुछा तो मं िसमंदा हो

गया। दादा जी गुस्िे मं बोले ” मंने िुबह खेत मं हल चलाना था, जा भाग जा और फाला ले के आ “.

रात होने को थी, मं उठ कर भागना िुरू कर कदया और रास्ते मं ही अँधेरा होने लगा, रास्ता खेतं के बीच

मं ही जाता था, मं रोता रोता जा रहा था। रास्ता एक उजाड़ ही था, रास्ते मं िमिान भूसम मं आग जल रही थी। मं मुह ं मं िाहे गरु ु िाहे गरु ु बोलता जा रहा था। जब घर पहुंचा तो माँ दादा जी के बारे मं बोलने लगी कक ” तेरे दादा जी का कदमाग िही नहीं है , इतनी रात को छोटे िे बच्चे को भेजना, िोह भी इतनी दरू कहाँ की अकलमंदी है “. माँ की आँखं मं आंिू थे।

मं फाला ले कर कफर िावपि चल पड़ा। यं ही िमिान घाट के नर्ज़दीक पहुंचा तो जल रहे मुदे के

नर्ज़दीक दो आदमी थे, एक आदमी एक लकड़ी िे उि जल रहे ढे र को कहला जुला रहा था। मुझे क्या पता था कक यह मुदा​ा जल रहा है क्यंकक मंने कभी रात को तो क्या कदन को भी मुदा​ा जलता दे खा ही नहीं


था। मं उनको भूत चुढ़ेलं िमझने लगा और रोता जा रहा था। रास्ता िुनिान था, ना कोई आदमी आने

पर, ना जाने पर मुझे रास्ते मं समला। जब मं फाला ले कर दादा जी के पाि पहुंचा तो बहुत अँधेरा हो चुक्का था। दादा जी को भी िायद अपनी भूल का अहिाि हो चुका था, उन्हंने मुझे गले लगा सलया लेककन कुछ नहीं बोला। कफर मं िहीँ चारपाई पर िो गया।

दि ू रे कदन दादा जी के िाथ माँ की बहुत लड़ाई हुई लेककन दादा जी कुछ नहीं बोले, इि के अथा थे

कक िे गलत थे और मन ही मन मं पछता रहे थे। यह बात अभी तक र्ज़हन िे नहीं सनकली और अभी तक िमिान घाट मं िोह दो आदमी दीखते हं ।


मेरी कहानी – 21 यह हमारे खेत जो गाँि िे दो ककलोमीटर थे इि को राम िर िाली र्ज़मीन कहते थे जैिा कक मं

पहले भी सलख चुका हूँ। रात को जब मं हल का फाला ले कर आया था तो आते ही चारपाई पर लेट

गया था । िोते िोते मुझे िोह दो आदमी जो िमिान भूसम मं थे उन को याद करके डर लगता रहा और

कफर मं िो गया। िायद उि कदन मुझे छुटी होगी और दादा जी ने मेरे िो कर उठने तक खेत मं हल चलाकर खत्म कर सलया था। गाँि को िावपि जाने के सलए दादा जी ने बैलं को छकड़े के आगे जोत

कदया और गाँि को चलने लगे। बैलं के गले मं बंधी घंटीआं िजने लगीं। कुछ दरू जा कर दादा जी ने

छकड़ा खड़ा कर कदया और मुझे एक खेत की तरफ इिारा करके कहने लगे “इि िर्ा हम ने यह खेत भी बीजना है “.

इि खेत स्ट्जि को कभी भी बीजा नहीं सगया था इि मं घाि बहुत था और इि मं पत्थर भी थे।

यह खेत दि ू रे खेतं िे काफी नीचा था स्ट्जि मं बाररि िे पानी इकठा हो जाता था िायद इिी सलए कभी

बीजा नहीं सगया था। इि िर्ा दादा जी को क्यं इिे बीजने का स्ट्खयाल आया मुझे कोई ज्ञान नहीं। कुछ कदनं बाद दादा जी ने इि खेत मं हल चलाना िुरू कर कदया लेककन इिकी जमींन बहुत िख्त थी। एक

बैल के पैर िे तो खून बहने लगा, िायद लोहे का फाला लग सगया था जो बहुत तीखा था । पहले तो इि खेत मं हल चलाना ही मुस्ट्ककल था लेककन जब िारे खेत मं हल चल सगया तो इि मं मट्टी के बड़े बड़े

पत्थर जैिे ढे ले बन गए। हर रोर्ज़ स्कूल िे िावपि आ कर मं और दादा जी इन ढे लं को हथौड़ीओं िे तोड़ते। यह ढे ले बहुत िख्त थे, बहुत कदन तक हम इन्हं तोड़ते रहे , मेरे हाथं पर छाले पड़ गए जो कभी

कफि कर उन मं िे पानी सनकलने लगता स्ट्जि िे मेरे हाथं मं बहुत ददा होता लेककन इि ददा की परिाह ककये बगैर मं ने काम जारी रखा। दादा जी को कभी बताया नहीं।

कफर एक कदन दादा जी ने इि खेत मं गंहूँ के बीज बो कदए। पड़ोिी ककिान कह रहे थे,”ओ दादा

यहाँ गंहूँ नहीं होगी क्यंकक यह जमींन अच्छी नहीं, पथरीली है “. दादा जी मन के बहुत िख्त थे, जो मन

मं एक दफा आ गया िोह कर के ही छोड़ते थे। बीज को बोए कुछ ही कदन हुए थे कक हलकी िी बाररि हो गई जो खेत के सलए िरदान िाबत हुई। कुछ ही कदनं मं गंहूँ उग आई और तेर्ज़ी िे बढ़ने लगी। यं

यं गंहूँ के पौदे ऊपर को आते, दादा जी दे ख दे ख कर खुि होते। अक्िर पड़ोिी ककिान स्ट्जि मं एक का

नाम िाधू था मुझे कहता “ओ बई तेरे दादा तो जादग ू र है , पत्थरं मं िे भी अन्न उगा दे ता है । जैिे जैिे गंहूँ के पौदे बढ़ते गए उन पौदं का रं ग गूहड़ा यानी डाका होता जा रहा था। डाका रं ग के अथा थे कक फिल बहुत अच्छी होगी। और यह बात िही सनकली। यह गंहूँ िब ककिानं िे बकढ़या थी। जब यह गंहूँ अपनी चरम िीमा तक पहुंची िब है रान हो गए। िब की गंहूँ िे यह गंहूँ ऊंची हो गई थी। गंहूँ के दानं के सिट्टे

बड़े बड़े और दानं िे भरे हुए थे। जब गंहूँ के खेतं मं िोने रं गी फिलं लहलहाने लगी तो िभी ककिानं के चेहरं पर मुस्कराहट थी।

फिल पककर तैयार होने को थी, एक दो हफ्ते मं फिल की कटाई िुरू होने िाली थी। एक कदन

दादा जी राम िर िे िावपि आये तो बहुत उदाि थे और उनकी आँखं िे आंिू बह रहे थे। मं और बहन

ने दादा जी िे उदािी का कारणो पुछा तो रोकर कहने लगे “रात को ककिी ने इि खेत की गंहूँ के िभी


सिट्टे ऊपर िे काट सलए थे, िारा खेत ही काट सलया, कुछ नहीं बचा”. पंचायत मं अजी डाली गई लेककन कोई पता नहीं चला कक गंहूँ ककि ने काटी थी। इि खेत मं मं और दादा जी ने अपना लहू पिीना बहाया था, इतनी िख्त समहनत की थी जो आज तक मुझे इतने िालं बाद भी भूली नहीं। उि िक्त तो मं एक

बच्चा ही था जो इतना िमझता नहीं था लेककन आज बड़ा हो कर जब ककिानं को आत्महत्याएं करते

दे खता हूँ तो मुझ िे ज़्यादा उन का दःु ख कौन जान िकता है ? इिी सलए तो उि बृक्ष पर लटकते हुए ककिान को दे ख कर इतना दःु ख हुआ।

हमारी र्ज़मीन बेिक दो जगह पर थी लेककन कोई फिल जब पक्क जाती तो उि मं िे दाने तो

सनकालने ही होते थे, इि सलए हम गंहूँ मक्की या ज्िार छकड़े पर लाद कर गाँि िाले कूंएं की जगह ले

आते थे ताकक एक जगह ही काम हो। जब गंहूँ को खेतं मं िे काटना होता था तो हर एक को जल्दी होती थी कक जल्दी जल्दी काट ली जाए क्यंकक बाररि अंधेरी का भी डर लगा रहता था स्ट्जि िे िारी

समहनत बबा​ाद होने का भय लगा रहता था। कई लोग जल्दी काम खत्म करने के सलए आित रखा लेते

थे। आित के अथा थे बहुत लोगं को कटाई की मदद के सलए बुलाना। लोग इकठे हो कर गंहूँ को काटने लगते और काटते काटते एक दि ू रे िे आगे जाने की कोसि​ि करते और िाथ िाथ कुछ गुनगुनाते भी जाते। अक्िर हम भी आित बुलाते थे। एक दफा जब हमने आित बुलाई तो राम िर िाली र्ज़मीन पर

गंहूँ काटने के सलए बुलाई क्यंकक यहां गंहूँ के खेत ज़्यादा थे। इतने लोगं के सलए खाना भी बहुत ज़्यादा होता था, तो मेरी माँ बहन और कुछ पड़ोि की औरतं अपने िरं पर टोकरं मं रोटीआं दाल िब्र्ज़ी घी

िककर रख कर दो ककलोमीटर पैदल चल कर जातीं। क्यंकक गसमाओं के कदन बड़े होते हं , इि सलए कदन मं दो दफा खाना दे ने जाना पड़ता था और तीिरी दफा रात को घर मं ही खाना स्ट्खलाया जाता था।

इि आित का कारणो एक और भी था कक एक खेत की गंहूँ पहले ही चोर काट कर ले गए थे इि

सलए और चांि लेना उसचत नहीं था। िाम तक िारी गंहूँ काट ली गई थी और उिे बंडलं स्ट्जिे भरीआं कहते थे मं बाँध कर और चार पांच आित िाले लोगं के छकड़ं पर लाद कर िारी गंहूँ गाँि िाले कुएं पर ले आये। अब िभी लोग खुि थे और कुछ लोग दादा जी िे दे िी िराब की मांग कर रहे थे। दादा जी

जानते थे, इिी सलए उन्हंने पहले ही कुछ बोतलं लाकर रखी हुई थीं। दादा जी खुद तो पीते नहीं थे

लेककन आित िाले लोगं को तो खुि करना और उन का धन्यिाद करना बनता ही था। ढोल िाला भी

आ सगया था और ढोल िजाना िुरू हो सगया। जब उन लोगं को कुछ िरूर आना िुरू हो सगया तो भंगड़ा

पाने लगे और जोर िोर िे ढोल िजने लगा। कफर निे मं हो कर ऊंची ऊंची दोहे गाने लगे. दोहे तो कोई

ख़ाि मुझे याद नहीं, बि एक ही याद है जो कुछ इि तरह था, दोहा लािां (लाऊँ) दोहा लािां दोहा चढ़ सगया तूत ओ, बंिो मंगदी (मांगती) मुन्द्री (अंगठ ू ी) गेजो मंगदी िूट ओ हो। इि के बाद जोर जोर िे ढोल िजने लगता और भंगड़ा पाते।

काफी रात हो चुक्की थी और िभी रोटी खाने के सलए घर आ गए। तरह तरह के खाने तैयार थे।

पहले उन िब लोगं के हाथ धुलिाए गए कफर थासलओं मं घी िककर, चािल और कौसलओं मं दालं और

िब्जीआं दी गईं। रोटी के िक्त वबलकुल िांत िातािरणो था। िभी खा कर अपने अपने घर चले गए, ढोल िाले को भी पैिे दे कदए गए। अब हम ने गाँि िाले खेत की गंहूँ खुद ही काटनी िुरू कर दी और िाथ

मं एक चमाकार को रख सलया। गंहूँ काटना इतना मुस्ट्ककल तो नहीं था लेककन िुबह िे िाम तक बैठ कर


दरांती िे काटना होता था। काटते िमय गमी बहुत मेहिूि होती थी, िारे कपडे पिीने िे भीग कर चमड़े

जैिे बन जाते थे। टांगं मं इतनी ददा होती थी कक खड़े होने के सलए कुछ िक्त लगता था। कभी कभी दरांती हाथ पे लग कर खून सनकल आता लेककन काम बंद नहीं होता था, खून अपने आप ही िूख जाता

था। िरीर यह छोटे छोटे दःु ख को झेलने के िमरथ थे. कुछ ही कदनं मं िारी गंहूँ काट ली गई और एक बहुत बड़ा गंहूँ का ढे र बन सगया। अब इि िारी गंहूँ को बैलं िे गाहना यानी उि मं िे गंहूँ के दाने

सनकालने का काम िुरू करना था और यह काम करना तो एक जगह ही होता था लेककन यह काम गंहूँ की कटाई िे भी ज़्यादा मुस्ट्ककल होता था। और इि मं मौिम बुरा होने का खटका हमेिा ही बना रहता था। (ऐ ककिान मुठी मं तेरा कालजा, बादलं मं सधयान).


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.