मेरी कहानी - गुरमेल सिंह भमरा - भाग 6

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मेरी कहानी - 6

गरु मेल स हिं भमरा की आत्मकथा का छठा भाग (एपि ोड 106 – 126) िंग्रहकर्त्ा​ा एविं प्रस्तत ु कर्त्ा​ा लीला ततवानी


मेरी कहानी - 106

गुरमेल स हिं भमरा लिंदन February 22, 2016 ब ु ह का नाश्ता ले कर मैं क्लीवलैंड रोड ब

डैपो की ओर चल पडा। यिं तो इिंडडया जाने

पहले मैं पाकक लेन डैपो में काम करता था लेककन है ड ऑकि

क्लीवलैंड रोड डैपो में ही होता

था। मैनेजर अभी भी समस्टर कैंडल ही था लेककन वोह अभी आया नहीिं था। इ रूम में चले गगया और उ

में बैठे ब

ड्राइवरों और किंडक्टरों

सलए मैं मै

े बातें करने लगा।

भी मुझे

जानते थे ,कुछ नए भी थे। कुछ दे र बाद मैंने समस्टर कैंडल को गाडी पाकक करते हुए दे खा। कुछ गाडडयों के सलए पाककिंग प्ले समस्टर कैंडल के दफ्तर के ामने ही थी। द इन के

पिंदरा समनट मैंने और इिंतजार ककया और किर दफ्तर की डोर बैल कर दी ,प्लीज कम ुन कर मैं दफ्तर में चले गगया। प्लीज है व ए

ामने बैठ गगया। हाऊ कैन आई है ल्प य

कैंडल ने इिंडडया जाने

ीट

ुन कर मैं कु ी पर समस्टर कैंडल

न ु कर मैंने वोह लैटर ननकाला जो समस्टर

े पहले मझ ु े भेजा था। मैंने वै े भी बोल ददया कक अब मैं दब ु ारा काम

पे आना चाहता था। समस्टर कैंडल ने लैटर दे ख कर कुछ िाइलें दे खीिं और बोला ,” समस्टर बामरा !

ॉरी अभी यहािं कोई वेकें ी नहीिं है लेककन अगर तम ु वाल ाल टाऊन की गेरेज

काम करना चाहो तो मैं उन को टे लीिन करके पछ लेता हूँ “.

यह मेरे सलए बहुत मुश्श्कल था क्योंकक वाल ाल टाऊन एक तो द ककलोमीटर दर था, द रे बहुत दिा ऐ ी ड्यटी होती थी कक ुबह तीन वजे घर े जाना पडता था और जब ददक ओिं के ददनों में बर्फ़ें पडती थीिं तो ट्रै वल करना और भी मुश्श्कल हो समनट मैंने

कता था। किर भी एक

ोचा कक चलो दे खा जाएगा और मैंने समस्टर कैंडल को हाूँ बोल ददया कक वोह

वाल ाल गेरेज में पता कर लें। समस्टर कैंडल ने वाल ाल के मैनेजर की और मेरा नाम और एड्रे

े एक दो समनट बातें

को बता ददया। कुछ दे र बाद उन्होंने टे लीिन रख ददया

और मुझे कहा कक मैं नैक्स्ट मिंडे को वाल ाल ब

स्टे शन पर मैनेजर समस्टर डडकन् न को

ररपोटक करू​ूँ। मैं दफ्तर

े बाहर ननकला और टाऊन में घमता हुआ घर आ गगया। काम तो मुझे समल गगया लेककन अब मुझे गाडी की जरुरत थी क्योंकक इ के बगैर काम पर जाना मुश्श्कल था। अभी कुछ ददन रहते थे ,इ

सलए मैंने गाडीआिं दे खने शुरू कर दी। EXPRESS & STAR

शाम के पेपर के तीन एडडशन ननकलते थे और इ

के बुधवार ददन के िाइनल एडीशन में

कारों की ऐड बहुत होती थी और उ ददन बुधवार ही था। शाम को एक पेपर शॉप े मैंने पेपर सलया और गाडीआिं दे खने लगा। एक गाडी HILMAN HUNTER मेरे मन को भा गई श्ज

की माइलेज बहुत कम थी और वैरी गुड किंडीशन सलखा हुआ था। मैंने उ ी वक्त िोन ककया।


आगे एक अूँगरे ज बोल रहा था। मैंने उ

ारी डडटे ल पछी ,उ

की

र्वक

दहस्टरी ,कोई

एक् ीडेंट ,ककतने पहले ओनजक, MOT कब तक ,रोड टै क्

कब तक ,टायरों की हालत और

गाडी का रिं ग बगैरा। उ

ने नई ही ली थी और वोह ही

ने

ब कुछ बताया कक गाडी उ

अकेला ओनर था ,और मैंने उ े उ

का एड्रे

पछा। एड्रे

चार पािंच मील दर का ही था जो

वारस्टोन एररए की वारस्टोन रोड पर ही था। मैंने गोरे को शाम को आने के सलए बोल ददया। मैंने उ ी वक्त कुलविंत के िुिड जी

ुरजीत स हिं को टे लीिन ककया ( अब वोह इ

में नहीिं हैं ). वोह घर पर ही थे और उन्होंने बोल ददया कक वोह शाम को आ जाएिंगे।

दनु नआ

कुछ बातें िुिड

िं ा तो मेरी कहानी का एक बहुत बडा ुरजीत स हिं के बारे में नहीिं सलखग भाग कट्ट जाएगा। कुलविंत के दादा जी कई भाई थे और उन भाईओिं े ही कुलविंत की भुआ थी ,श्ज

का नाम रतनी है लेककन उ

को रत्ती बोलते हैं। भआ की शादी बहुत दे र पहले े हुई थी और वोह धैनोवाली छोड कर अपने ुरजीत स हिं ुराल ुरजीत स हिं के घर और किर इिंगलैंड आ गई थी। कुलविंत बुआ रतनी को कुछ कुछ ही जानती थी क्योंकक जब भुआ रतनी की शादी हुई थी तो उ

वक्त कुलविंत बहुत छोटी थी ।

जब कुलविंत शादी के बाद इिंग्लैण्ड आई तो एक ददन बसमिंघम की

ौहो रोड पर हम शॉर्पिंग

कर रहे थे। कुलविंत की नजर बुआ रत्ती पर पडी तो वोह उ े पहचान गई और उ ी वक्त उ की ओर चल पडी ,एक दो समनट में ही

हुआ जै े बबछुडे पररवार समल गए हैं। ब वोह ददन और आज ,हमारा ररश्ता गों े कहीिं ज़्यादा है । बहुत बातें तो मैं बाद में सलखग िं ा ,लेककन किलहाल कुछ कुछ िुिड ुरजीत स हिं के बारे में सलखिंगा। ुरजीत स हिं मुझ

े द

ब को ऐ ा मह

ाल बडा था, ररश्तेदारी तो थी ही लेककन दोस्ती इतनी थी कक

हमारी एक द रे की जान में जान थी। मैं उन को कै े हो िुिडा कह कर बल ु ाया करता था। हम एक द रे

े बी

ककलोमीटर दर ही रहते थे लेककन शायद ही कोई वीकएिंड ऐ ा हो कक

हम ना समले हों। मेरे काम की सशफ्टें बहुत अजीब होती थीिं और लोगों े हट्ट कर होती थी। इ सलए िुिड का टे लीिन आ जाता ,” गरु मेल ! कौन ी सशफ्ट है तेरी ,समलने को जी चाहता है ”. मैं अपनी सशफ्ट बता के कह दे ता ,” इतने वजे आ जाना िुिडा “. बआ ु िुिड के तीन बच्चे हैं ,श्जन्दी ,ननिंदी और एक लडकी

रु रिंदर।

भी आ जाते और घर में

रौनक हो जाती। इ ी तरह कभी हम उन के घर चले जाते। जै े ही हमारे बच्चे हम ने ननिंदी के घर जाना है वोह खश ु हो जाते। बाद में मेरा दोस्त बहादर भी इ

न ु ते कक

दोस्ती में शामल हो गगया था और जब हम तीनों इकठे

पब्ब में जाते तो पब्ब बिंद होने तक गप्पें हािंकते रहते। पब्ब में और दोस्त भी बहुत होते थे और कक ी को बातें करने का चािं मुश्श्कल े समलता था। हर कोई कहता था ,” पहले मेरी बात

ुनों “. यह महिल ऐ ी होती थी कक इ

में हर टॉर्पक पे चचाक होती थी और टॉर्पक

कभी भी खत्म नहीिं होते थे । पब्ब में जरूरी नहीिं कक

भी बबयर पीने ही जाते थे। कुछ


राधा

ुआमी धमक को मानने वाले भी होते थे जो कोक या कोई जुइ

लुत्र्फ उठाने की ही होती थी क्योंकक उ

ले लेते ,बात तो स िक

मय पब्ब या क्लब्ब ही मीदटिंग प्ले

होती थी।

आज यह बहुत कम हो गगया है ।

भुआ िुिड की बातें तो होती रहें गी ,किलहाल मैं उ ी बात पर आता हूँ । शाम को िुिड

ुरजीत स हिं आ गगया और हम वारस्टोन रोड को चल पडे। अूँगरे ज के घर की डोर बैल हम

ने की तो वोह बाहर आ गगया। मैंने गाडी के बारे में पुछा तो वोह चाबी लेने भीतर चला गगया। आते ही उ

ने गैरेज

े कार ननकाली। दे खते ही हमें प िंद आ गई। किर उ

के बौनेट को ऊपर उठाया और इिंश्जन ऑन कर ददया। इिंश्जन की आवाज गाडी वैल मेनटें ड थी। मैंने उ े चला कर दे खने को बोला तो उ तीनों गाडी में बैठ गए मैं गाडी चलाने लगा। टाऊन चलाने में गाडी बहुत मजेदार मह आ गए।

े लगता था कक

ने नो प्राब्लम बोला, हम

े बाहर हम खल ु ी

हो रही थी। पिंदरा बी

ने गाडी

डक पर आ गए।

समनट ड्राइव करके हम वाप

मैंने गाडी खडी कर दी और हम गाडी का पें ट वकक दे खने लगे कक ठीक ठाक है या नहीिं। गाडी के पीछे मैंने बहुत ही छोटा ा ननशान दे खा यहािं पें ट उतरा हुआ था। मैंने गोरे को ददखाया तो वोह बोला कक वोह पची पाउिं ड कीमत कम कर लेगा। हमारा ौदा हो गगया और मैंने पचा

पाउिं ड डडपॉश्जट दे ददया और र ीद ले कर हम घर आ गए।

खा कर वाप

रु जीत स हिं खाना

चले गगया और मैंने उ े बोल ददया कक द रे ददन गाडी मैं खद ु ही ले आऊिंगा।

द रे ददन मैंने बैंक

े पै े सलए और ब

पकड कर उ

गोरे को पै े दे ददए और किर

डाकुमें ट ले कर टाऊन को आ गगया। टाउन आ कर पहले गाडी की इिंश्योरें

ारे

करवाई और

कवर नोट ले कर किर गोरे के घर गगया और गाडी ले कर मैं अपने घर आ गगया। गाडी दे खते ही बच्चे खश ु हो गए। मैं कुलविंत और बच्चों को गाडी में बबठा कर बाहर ले गगया। गाडी ले कर ऐ ा लग रहा था जै े कोई एक घट ु न

ाथी समल गगया हो ,हम आजाद हो गए हों,

े ननजात समल गई हो। अब कुछ ददन हमारे पा

थे घमने किरने के सलए। एक

ददन हम बहादर के घर चले गए और खब मजे ककये। एक ददन हम भआ िुिड के घर चले ु गए। तब भआ िुिड दोनों एक ही िैक्ट्री में काम करते थे और अच्छे पै े कमा लेते थे। ु उन ददनों भआ जी बहुत ु खद ु ही स्कल को आ जा

न् ु दर ददखाई दे ती थी ,एक आकर्कण था उनमें । उन के कते थे ,इ

सलए उन दोनों को काम करने में कोई बाधा नहीिं

थी। दे र रात तक हम बैठे रहे और किर वाप ोमवार को

ुबह मैं 9 वजे वाल ाल ब

भी बच्चे

आ गए।

स्टे शन पर मैनेजर समस्टर डडकन् न के दफ्तर में

जा पहुिंचा। डडकन् न ने कुछ वाल पछे जो मेरे सलए कोई नए नहीिं थे। कुछ दे र बाद उ ने मुझे एक लैटर ददया कक मैं गैरेज में पहुूँच कर ीननयर इिंस्पैक्टर को ररपोटक करू​ूँ। वाल ाल टाऊन की मझ ु े इतनी वाककियत नहीिं थी स िक एक दो दिा ही मैं यहािं आया था। मैंने ब


पकडी और किंडक्टर को बता ददया कक वोह मुझे गैरेज पर उतार दे जो ब्लॉक् र्वच रोड पर थी । द

समनट में ही मैं गैरेज जा पहुिंचा। समलना था जो गैरेज के अिंदर ही थी।

ीननयर इिंस्पैक्टर ने गैरेज की क्लब्ब में ही

जब मैं गैरेज की क्लब्ब के अिंदर गगया तो मैं यह दे ख कर खश ु हो गगया कक मेरी तरह ही दो और लडके जो क्लीवलैंड रोड गैरेज में ही काम करते थे वहािं बैठे थे। वोह भी मुझे दे ख कर खश ु हो गए। उन में एक था ,मोहन लाल किंडा और द रा पाककस्तानी था ,श्ज खान ही कहते थे और परा नाम मुझे पहले भी पता नहीिं था क्योंकक उ े

को

भी खान कह कर

ही बुलाते थे। है लो है लो के बाद ,तुम कै े आये ,तुम कै े आये ,कहने लगे। पता चला कक

वोह भी मेरी तरह ही आये हुए थे। मोहन लाल भी इिंडडया गगया हुआ था और आने पर उ े भी मेरी तरह वाल ाल भेजा गगया था और खान भी ऐ े ही था। उन को दे ख समल कर मुझे बहुत हौ ला हुआ और उन के चेहरे भी खखले हुए थे। कुछ दे र बाद

ीननयर इिंस्पैक्टर आ गगया ,श्ज

के हाथ में एक दटकट मशीन कुछ टाइम

टे बल की ककताबें ,िेयर सलस्ट की ककताबें एक और बडा

ा दटकट रोल था। आते ही उ

ने

है लो बोला और हमारे पा याद है । उ

बैठ गगया। बहुत बातें तो अब भल गई हैं लेककन कुछ कुछ ाराूँश ने कहा था कक क्योंकक हम पहले ही WMPTE में काम कर चक् ु के हैं ,स िक

दटकट मशीन ही इलग्ग टाइप की है । इतने े ए बी

ाल ड्राइर्विंग का काम करके अब हम को किर

ी पडनी पढ़ रही थी क्योंकक अब किर

जो दटकट मशीन वुल्वरहै म्पटन में होती थी उ मशीन हम ने अब इस्तेमाल करनी थी ,उ

में कई दटकट रोल पडते थे लेककन जो

में स िक एक ही बडा रोल पडता था। इ

मझना तो कोई मश्ु श्कल नहीिं था ,स िक प्रैश्क्ट

दटकट बबजली की तेजी

े हमें किंडक्टर का काम करना था।

की ही जरुरत थी क्योंकक रश टाइम में

े इश करने पडते थे और एक नई बात इ

टे ज जो दो तीन स्टॉप के बाद आ जाती थी ,उ पडते थे जब कक पहले हम स िक ब

टसमकन

को

में यह थी कक हर

वक्त मशीन के क्लोश्जिंग निंबर सलखने

पर ही क्लोज करते थे। मशीन के ऊपर एक

डायल था। कोई दटकट इश करना होता था तो पहले डायल को घम ु ा कर दटकट की वैलयु ,छै पैनी या द राउिं ड

पैनी ,जो भी हो डालनी होती थी और किर

ककल दे ना होता था ,श्ज

ाइड पर लगे एक हैंडल का एक

े दटकट र्प्रिंट हो कर बाहर आ जाता था और उ े िाड कर

यात्री को दे ददया जाता था और

ाथ ही उ

इिंस्पैक्टर ने हमें रूटों के बारे में

मझाया कक उ

ककतनी स्कल की ब ें थीिं जो इलग्ग आती थी। हम है रान हो गए कक इ

े पै े लेकर कोई चें ज हो तो दे नी पडती थी। गैरेज में ककतने रुट ऑपरे ट होते थे और

ुबह शाम स िक स्कल के बच्चों को ही ले कर जाती

े कहीिं ज़्यादा थे और बहुत दर दर तक जाते थे। यही कारण था कक पहले किंडक्टर ही बनना पडता था ताकक भी रूटों की जानकारी हो जाए और रुट

गैरेज में रुट वुल्वरहै म्पटन

ीखने के सलए कई महीने लग जाते थे।

ीननयर इिंस्पैक्टर


बहुत फ्रैंडली था और बताता था कक उ का डैड इिंडडया में समसलटरी ऑकि र होता था। बहुत दे र तक वोह हमें मझाता रहा और किर उ ने हमें बता ददया कक कल े हमें ट्रे ननिंग पे जाना होगा ताकक मशीन और काम की जानकारी हो जाए।

ुबह आने को बोल वोह उठ खडा

हुआ और कहा कक अगर हम ने बबयर पीनी हो तो यहािं गैरेज की क्लब्ब में समलती है ।

स्ते रे ट पर

uबाई बाई कह कर वोह चले गगया और हम बबयर पीने और बातें करने लगे। अपने दे श जाने के कारण हम एक द रे को बताने लगे। एक बात बताना चाहिं गा कक यिं तो मु लमानों में शराब की मनाही है लेककन यहािं कुछ एक को छोड कर पीते थे लेककन एक बात थी कक

भी पीते थे और कुछ तो बहुत ही भी पाककस्तानी और इिंडडयन लडकों में दोस्ती बहुत होती

थी और एक द रे की हर मुश्श्कल में मदद करते थे। कुछ दे र बाद हम उठ खडे हुए और अपने घरों को जाने के सलए ब की इिंतजार करने लगे जो गैरेज के पा े ही जाती थी। चलता…


मेरी कहानी - 107 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन February 25, 2016 द ु रे ददन हम तीनो दोस्त वुल्वरहै म्पटन ब वुल्वरहै म्पटन

स्टे शन पर पहुूँच गए और 529 निंबर ब जो े वाल ाल को जाती थी में बैठ गए और बातें करने लगे। हम ब को यही

आशा थी कक हमें इिंडडया यह

ऑकि

े वाप

आने पर अपनी गैरेज में ही काम समल जाएगा लेककन

ब की

ोच के र्वपरीत हो गगया। एक घिंटे में हम वाल ाल गैरेज में पहुूँच गए। े हमें अपने अपने बॉक् समल गए श्जन में मशीन और दटकटें थीिं और हमें

पौल्ज ब

स्टे शन पर इिंस्पैक्टर को समलने के सलए कह ददया गगया ।

कािी बडा ब

ेंट पौल्ज ब

ेंट स्टे शन

स्टे शन था ( 2008 में इ

इलावा कुछ ही दरी पर एक छोटा जाना जाता था और इ

को बहुत बडीआ बना ददया गगया था). इ के ा और ब स्टे शन भी था जो ब्रैडिोडक प्ले के नाम े

को भी 2011 में नया बना ददया गगया था। हम तीनों

ेंट पौल्ज

स्टे शन पर पहुूँच गए श्ज पर ऑकि , मै रूम और कैंटीन थी और यह बहुत परु ानी र्वक्टोररयन बबश्ल्डिंग थी । इिंस्पैक्टर हमें दे खते ही हमारी तरि आ गगया और एक एक करके हम

ब को एक एक किंडक्टर के

ाथ भेज ददया। श्ज

के

ाथ मैं जाना था वोह ब

किंडक्टर एक गोरा ही था। रुट निंबर मझ ु े याद नहीिं लेककन मैं ब

पर दटकटें काटने लगा।

कुछ ही दटकट मैंने काटे थे और यह मशीन मझ ु े आ ान लगने लगी ,हाूँ एक बात की तकलीि मह

हो रही थी कक वाल ाल की

कक उ े कक ी खा था। यिं तो गोरा मुझे

डकों

े मैं अनजान था और जब कोई पछता

स्ट्रीट पर उतरना है तो मुझे बेचन ै ी होती थी और लोगों

े पछना पडता

ब कुछ बता रहा था लेककन एक बात और थी कक हर दो तीन स्टॉप

के बाद मशीन निंबर सलखने पडते थे जो रश आवर में सलखने एक मु ीबत थी .

ारा ददन

काम करके हमें बहुत कुछ गगयात हो गगया और जब हम ने काम खत्म ककया तो तीनों दोस्त वाप अपने शहर के सलए ब 529 में बैठ गए। समस्टर खान अचानक हिं पडा और बोला ,( bloody RLI !) . हम तीनों हिं ने लगे। यह एक रुट पर स्टे जों के नाम थे जो हम को पहले ही अपनी शीट पर सलखने होते थे और हर स्टे ज पर मशीन निंबर सलखने होते थे , जै े एक स्टॉप का नाम था red lion inn और इ

की एब्रीवीएशन थी RLI ,इ ी तरह एक

स्टॉप था profit street और इ लगा था और इ

को ps सलखते थे। पहले पहल हमें यह काम बहुत स्ट्रै स्िुल े तिंग आ गए थे। बातें करते करते हम अपने टाऊन में आ गए और

अपने अपने घरों के सलए ब

पकड ली। इ ी तरह छै ददन तक हम ट्रे ननिंग लेते रहे । इन छै

ददनों में हम ने कािी रुट दे ख सलए और कािी तजुबाक हो गगया। द रे हफ्ते हम ने बहुत ुबह जाना था और अपनी अपनी गाडडओिं में चले गए। अब हमारा तीनों दोस्तों का मय इलग्ग इलग्ग हो गगया था । डकों और दर के टाऊनों की वाककियत होने लगी। नए नए दोस्त बनने लगे। इ

गैरेज में गोरे ज़्यादा थे और बहुत मजे


े काम करते थे। उ सलए एक ब

मय लोगों के पा

कारें इतनी नहीिं होती थीिं श्जतनी आज हैं ,इ

भर के चले जाती ,द ु री अभी खडी ही होती तो एक दो समनट में ही किर भर

जाती। जब हम वुल्वरहै म्पटन में काम ककया करते थे तो ब लगते थे और जब तक ब

खडी होते ही दटकटें काटने

चलने लगती हम दटकटें काट कर प्लैटिॉमक पर खडे हो जाते थे

और रास्ते में कुछ लोग उत्तर जाते और कुछ नए चढ़ जाते श्जन को आ ानी दे ते लेककन यहािं तो अजीब बात थी। जब तक ब तक ब

भर कर इ

े दटकट दे

में लोग खडे ना हो जाते तब

किंडक्टर दटकट काटना शरू ु करते ही नहीिं थे ,कैंटीन में आ कर ड्राइवर किंडक्टर

स्नकर खेलते रहते और बहुत दिा तो इिंस्पैक्टर कैंटीन में आ कर ड्राइवर किंडक्टर को ब ले जाने के सलए कहते । हम तीनो दोस्त वल् ु वरहै म्पटन में ख्त काम करने के आदी थे। एक बात थी कक वल् ु वरहै म्पटन में कोई गोरा ओवरटाइम नहीिं करता था ,स िक इिंडडयन पाककस्तानी ही करते थे लेककन यहािं तो गोरे इिंडडयन पाककस्तानी और वैस्ट इिंडडयन ओवरटाइम समल

भी श्जतना भी

के करते थे। ट्रािं पोटक के दफ्तर के बाहर एक बोडक पर इिंस्पैक्टर

ओवरटाइम के काडक सलख कर गचपका दे ते थे ,कोई तीन घिंटे का ओवरटाइम होता कोई चार घिंटे का ,कोई दो घिंटे का।

भी ड्राइवर किंडक्टर ब

और जो ओवर टाइम कक ी को

को छोड कर दफ्तर की ओर भागे आते

ट करता वोह उठा कर क्लकक को बता दे ता। वुल्वरहै म्पटन

में ऐ ा नहीिं था बश्ल्क अपनी ड्यटी के

ाथ ही ओवरटाइम पहले

े ही लगा हुआ होता था। सलए मैं भी श्जतना समल के ओवरटाइम करता।

अब हमें भी पै ों की बहुत जरुरत थी ,इ एक दिा तो मैंने इतने घिंटे काम ककया की मेरी तन्खआ ु ह डब्बल हो गई। जब मुझे तन्खआ ु ह का लिािा समला तो मैंने उ

में

े पै े ननकाल कर वेज्जज

वाले ड्रम में िैंक दी। द रे ददन मेरा एक दोस्त मेरे पा अपनी वेज्जज

सलप्प िाड कर कडे

आया और बोला ,” इ

सलप्प न िेंका कर ,एक गोरा तुम्हारी वेज्जज

सलप्प

तरह

ब को ददखा कर पछ

रहा था कक यह नया चैश्म्पयन बामरा कौन है ” . मैं बडा है रान हुआ कक लोग डस्ट बबन की िोला िाली भी करते हैं। . एक ददन मैं एक स्कॉदटश ब

ड्राइवर के

ाथ काम कर रहा था श्ज

के

हफ्ता काम करना था। कभी कभी ज़्यादा बबजी ना होता तो मैं लोगों के भी कर लेता था। उ

मय vat श्ज

को वैलयु ऐडड टै क्

ाथ मैंने एक ाथ हिं ी की बातें

कहते हैं अभी नया नया शुरू

हुआ था। एक पै ेंजर ने पुछा ,” how much to leamore lane ?” .मेरे मुिंह े ननकल गगया टै न पैं इन्क्लडडिंग वी ए टी मैडम । भी हिं पडे और स्कॉदटश ड्राइवर तो इतना

हिं ा कक जब भी वोह मुझे दे खता ,बोलता ” है लो समस्टर वी ए टी “. अब कभी कभी मुझे ड्राइर्विंग पर भी भेज ददया करते थे ,इ

तरह मेरा एक्स्पीररऐिं

स्कॉदटश ड्राइवर मुझे बोला ,” समस्टर बामरा य र्वल डाई ,अप्प ऐिंड डाऊन अप्प ऐिंड डाऊन औन दी ब ,टे क इट ईजी ऐिंड मेक बोलने लगा कक यहािं

म मनी “. उ

बढ़ रहा था। एक ददन वोह

न ,कै े काम कर रहे हो तुम

,ऐिंड औल डे लौंग !,ररलैक्

की बात

समस्टर बामरा

ुन कर मैं बहुत है रान हुआ। किर वोह भी किंडक्टर पै े बनाते हैं और ड्यटी के आखर में ड्राइवर किंडक्टर


आप

में पै े बाूँट लेते हैं। किर बोला ,तुम ऐ े करो कक कल को तुम ड्राइर्विंग कर लो और

मैं किंडश्क्टिं ग करू​ूँगा और तुझे ददखाऊिंगा कक कै े काम ककया जाता है । एक बात उ

ने और

बताई कक बहुत दे र पहले दटकट मशीन को कुछ किंडक्टर टॉयलेट में जा कर स्रीऊ ड्राइवर े मशीन की ैदटिंग चें ज कर दे ते थे ,श्ज े जब भी कक ी को दटकट इश करना होता था तो दटकट की वैलयु डाल कर हैंडल को आधा घुमाना होता था और किर डायल को जीरो पर वाप

ला कर हैंडल का चकर कम्प्लीट कर ददया जाता था ,श्ज

ही होती थी लेककन अकाउिं ट में पै े जीरो शो करते थे ,इ

सलए

े दटकट पर दटकट वैलयु ारे ददन में

ौ दटकटें भी

ऐ ी इश की तो पै े जमा कराते वक्त बहुत पै े बन जाते थे। किर इ बात का पता मैनेजमें ट को चल गगया और उन्होंने इ के स स्टम को बदल ददया लेककन किर भी एक मशीन रह गई ,श्ज

का निंबर 54 था ,श्ज

कक ी को यह मशीन समल जाती उ

ददन वोह

बहुत पै े बना लेता। द रे ददन ब ु ह जब हम बक ु औन हुए तो वोह स्कॉदटश,बकु किंग क्लकक को बोला कक उ के पेट में कुछ गडबड है और वोह किंडश्क्टिं ग कर लेगा और समस्टर बामरा ड्राइर्विंग कर लेगा।

मैं ड्राइर्विंग करने लगा और वोह स्कॉदटश किंडश्क्टिं ग करने लगा ,मैं ड्राइर्विंग कैब में बैठा शीशे में दे ख दे ख कर है रान हो रहा था कक वोह कक ी को दटकट दे ता कक ी को नहीिं और पै े हर कक ी

े पकडे जाता। इ ी तरह

ारे ददन में उ

ने चार पाउिं ड के करीब बना सलए जो उ

मय बहुत हुआ करते थे और ड्यटी के आखर में उ ने मुझे दो पाउिं ड दे ददए ,और किर मुझे बोला,” कल को तम ु ऐ ा करना” .द रे ददन मैंने भी उ की तरह काम करना शुरू कर ददया लेककन अिंदर जब मैंने उ

े मैं डरा हुआ था। ारे ददन में मैंने बहुत मश्ु श्कल े दो पाउिं ड बनाये। स्कॉदटश को बताया कक मैंने स िक दो पाउिं ड बनाये हैं तो वोह मझ ु े बोला ,”

नौट बैड िौर ए स्टाटक समस्टर बामरा ” . मैंने उ

को एक पाउिं ड दे ददया लेककन जब मैं घर

पहुिंचा तो लगा जै े मैंने अपना ब कुछ हार ददया है , ारी रात मझ ु े नीिंद नहीिं आई। मैं अपने आप को गधक्कार रहा था कक यह मैंने ककया कर ददया ,श्जिंदगी में कभी एक पै े की भी हे रा िेरी नहीिं की लेककन आज मैंने यह ककया कर ददया। मेरी जमीर मझ ु े चैन नहीिं लेने

दे रही थी। यिं तो मैं नॉमकल ददखाई दे रहा था लेककन मेरे भीतर की आत्मा मझ ु को लाहनते दे रही थी कक यह लोग तो गोरे थे ,अगर उन को काम आ ानी

े ननकाल भी ददया जाता तो वोह

े कहीिं और काम ढन्ढ लें गे लेककन मुझ इिंडडयन को कौन काम दे गा, मेरा तो

ररकॉडक खराब हो जाता ?मेरी ककतनी बदनामी हो जाती , ब और नहीिं,

ोच कर द रे ददन मैंने

ीधे ही उ

नहीिं no more fidling ” . ” ऐज य र्वर् ” उ

जो हो गगया

ो हो गगया अब

स्कॉदटश को बोल ददया ,” मेट ! अब और ने कहा और

ब कुछ नॉमकल हो गगया। एक

ददन हम कैंटीन में चाय बगैरा पी रहे थे और मेरे टे बल पर एक पिंजाबी ड्राइवर बैठा था ,श्ज

का नाम था स हिं D 3 . क्योंकक अिंग्रेजों को नाम लेने नहीिं आते थे ,इ

सलए श्जतने

भी स हिं ड्राइवर या किंडक्टर होते थे ,उन को निंबर ददए जाते थे ,जै े स हिं निंबर 10 11 या 12 . इ ी तरह जो राम होते थे उन को भी राम निंबर 1 या 2 कह कर बल ु ाया जाता था


,स िक श्जन के नामों के

ाथ गोतर होता था ,उन को गोतर

े ही बुलाते थे ,जै े मुझे

समस्टर बामरा कह कर बुलाते थे क्योंकक भमरा उन के सलए प्रोनाउिं मैंने स हिं D 3 श्ज बात

ुनाई कक उ

करना कदठन होता था।

का नाम दशकन होगा या ददलबाग ,मुझे याद नहीिं ,उ े उ

ने मुझ

े ऐ ा कराया और मुझे उ

बनाते थे। D 3 एक दम बोल पडा और बोला ,”

ने बताया था कक

स्कॉदटश की भी किंडकर पै े

ाला झठ बोलता है ,कोई पै ा नहीिं बनाता

था ,यही एक खराब और चालाक है और त बच गगया वरना पकडा जाता ,त ने बहुत अच्छा ककया कक मझ ु े बता ददया , यहािं आने े पहले यह जेल भी जा चक् ु का है ,पता नहीिं इ को यह जॉब कै े समल गई “. उ पछताने लगा। अब इ

की बात

न ु कर मैं है रान हो गगया और अपनी भल पे

गैरेज में मेरा ददल नहीिं लगता था। एक बात और भी थी कक जब आफ्टरनन की

सशफ्ट होती थी तो मैं घर बहुत लेट पहुूँचता था और कुलविंत ोई हुई होती थी ,यह मुझे अच्छा नहीिं लगता था। इ ी तरह तकरीबन चार महीने हो गए। एक रोज रात की सशफ्ट थी। काम खत्म करके मैं गाडी लेकर घर की ओर चलने लगा। गाडी में गाने ब्लॉक् र्वच पा

न ु रहा था ,जब

करके ननऊ इनवें शन के नजदीक मोटर वे के करीब पहुिंचा तो मेरी नजर कार के स्पीडोमीटर पर पढ़ी और दे खा कक इिंश्जन की ई H के ऐिंड पर थी, यानी इिंश्जन

बहुत गमक हो गगया था। मैंने उ ी वक्त गाडी खडी कर दी और बौनेट खोल ददया। दे खा ,रे डडएटर े तप्ु का तुप्का पानी लीक हो रहा था और नीचे भाप ननकल रही थी। गाडी में टल बौक्

तो हमेशा होता था लेककन रे डडएटर का करू​ूँ , ोच कर इदक गगदक दे खने लगा। न्य

इन्वैंशन मोटर वे के नजदीक एक घर के फ्रिंट रूम में टीवी चल रहा था और घर के लोग बैठे टीवी दे ख रहे थे। मैं हौ ला करके घर के फ्रिंट गाडकन में चला गगया और दे खा टीवी पर घर के लोग अमेरीकन प्रैश्जडैंट ननक् न की इिंटरवीऊ दे ख उ

न ु रहे थे। यहािं मैं यह भी बता दूँ कक

ददन 9 अगस्त 1974 की रात थी और प्रैश्जडैंट ननक् न ने अस्तीिा दे ददया था क्योंकक

पर वाटरगेट स्कैंडल के दोर् थे। यह बहुत बडा स्कैंडल था। मैंने डोर बैल कर दी और घर में एक कुत्ता भौंकने लगा। एक अूँगरे ज ने दरवाजा खोला और अपने कुत्ते को दबक ददया। what do you want ? उ रे डडएटर

ने बोला और मैंने उ

को अपनी प्राब्लम बताई कक कार के

े पानी लीक कर रहा था और मुझे कुछ पानी चादहए था। वेट ए समनट कह कर

गोरा भीतर चला गगया और कुछ दे र बाद एक वाटर कैन ले कर आ गगया और मुझे कहा कक मैं रे डडएटर भर लूँ । रे डडएटर जब भर गगया तो मैंने उ े कैन वाप

करते हुए थैंक् बोला तो वोह कहने लगा ,” ऐ ा करो ,मैं तुम को एक और पानी का कैन दे ता हूँ और तम ु इ े गाडी में रख लो ,ताकक रास्ते में तकलीि हो तो पानी तुम्हारे पा जाओ तो यहािं फ्रिंट गाडकन में रख जाना “. मैंने थैंक्

होगा ,कल को जब काम पर

कहते हुए कैन गाडी में रख सलया और ुबह उठ कर मैंने पेअर पाट्क की एक

घर को चल पडा। रास्ते में कोई तकलीि नहीिं हुई। दकान े रे डडएटर खरीदा और खद ु ही रे डडएटर बदल सलया।


प्राब्लम

ॉल्व हो गई थी और दो वजे के करीब मैं काम पर चल पडा। जब ननऊ इन्वेंशन

पहुिंचा तो गाडी खडी करके गोरे के घर की ओर चला गगया। बैल की लेककन घर में कोई नहीिं था ,इ सलए मैंने दरवाजे के बाहर ही कैन रख ददया और काम पर चल पडा। वाल ाल गैरेज

े मेरा मन उचाट हो गगया था। गैरेज पहुूँचते ही मैंने एक ऐश्प्लकेशन सलखी कक मैं वुल्वरहै म्पटन ट्रािं िर हो जाना चाहता था। ऐश्प्लकेशन में मैंने अपनी मजबरी सलखी थी और यह ऐश्प्लकेशन ले कर मैं यननयन के ऑकि

में चला गगया और यननयन के चेयरमैन को

ऐश्प्लकेशन पकडा दी कक यह मैनेजर को िॉरवडक कर दे । चेयरमैन अच्छा शख्

था और

बोला ,” समस्टर बामरा ,मैं आप का काम करवा दिं गा” एक हफ्ते बाद मझ ु े मैनेजर डडककिं न का लैटर समल गगया कक कल को मैं वल् ु वरहै म्पटन ररपोटक करू​ूँ। मेरी खश ु ी का कोई पारावार नहीिं रहा ,मन

े एक बडा बोझ उत्तर गगया। द रे ददन मैं वल् ु वरहै म्पटन की पाकक लेन गैरेज

की कैंटीन में दोस्तों चलता…

े गप्पें हाूँक रहा था।


मेरी कहानी - 108 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन February 29, 2016 वुल्वरहै म्पटन तो मेरे सलए घर जै ा ही था। पहले ही ददन मुझे ड्राइर्विंग पर लगा ददया गगया। रोज रोज मुझे नए नए किंडक्टर समलते और मजे

े काम करते। आइरीन ररटायर हो

गई थी। पाकक लें न में औरतें बहुत काम करती थीिं और कुछ तो ड्राइर्विंग भी करने लगीिं थी। दरअ ल पहले औरतें ड्राइर्विंग कर नहीिं कती थी लेककन ट्रािं पोटक ऐिंड जेनरल वककजक यननयन बहुत ालों े औरतों के हक़ में के लड रही थी ताकक उन को भी बराबर के अगधकार ददए जाएूँ। मेरे वाल ाल काम छोडने े कुछ ही मय पहले एक गोरी ने वाल ाल गैरेज में ड्राइर्विंग टे स्ट पा

ककया था और वोह पहली ब

दरवाजे खोल ददए थे । इ

ड्राइवर बन गई थी श्ज

ने औरतों के सलए

के बाद हर गैरेज में औरतों को ड्राइर्विंग का चािं

ददया जाने

लगा। इ ी दौरान वल् ु वरहै म्पटन में बहुत बदलाव आ रहा था। कुछ ही ाल पहले ारे टाऊन के ऊपर े एक बहुत बडीआ ररिंग रोड बन गई थी श्ज े टाऊन की ट्रै किक आ ान हो गई थी और टाऊन का रोअब ददखने लगा था,

ाथ ही बडे बडे स्टोर बनने लगे और नई नई

दक ु ाने बनने लगीिं। यहािं जन्में भारती पाककस्तानी और वैस्ट इिंडडयन बच्चे बडे हो रहे थे और न रक ी स्कलों में जाने लगे थे.हमारी औरतें

ब ु ह

और आप ी वाककियत बढ़ती जाती। एक द रे बताती तो कोई नजदीक के गाूँव की होती, इ

ब ु ह बच्चों को ले कर न रक ी की ओर जाती

े पछती, तम् ु हारा कौन

ा गाूँव है और

े दोस्ती बढ़ती जाती।

इ ी तरह एक औरत कुलविंत को समली और वोह कुलविंत को पछने लगी कक उ ा गाूँव है तो कुलविंत ने बताया राणी पुर तो उ

का कौन

औरत नें घर के बडों का नाम पुछा तो

कुलविंत ने दादा जी का नाम सलया और मेरा नाम सलया कक मैं उ औरत ने कुलविंत को बाहों में ले सलया और कहा कक उ हमारे घर

की पत्नी हूँ तो उ

के तो मायके राणी पुर में थे और

े तो उन के बहुत अच्छे म्बन्ध थे। जब कुलविंत ने घर आ कर मुझे बताया तो मैंने बताया कक मैं बहुत छोटा ा था जब इ की शादी हो गई थी और मझ ु े कुछ कुछ याद है । ब

किर ककया था हम एक द रे के घर जाने लगे और यह मह ु बत अभी तक चली आ

रही है । इ

औरत का नाम है गगयान कौर और इ े ज्ञानों कहते हैं और हर

ाल मेरी कलाई

पर राखी बािंधती है और इन लोगों ने ही हमारी बडी लडकी का ररश्ता कराया था। ज्ञानों के पनत आज

े तकरीबन बाई तेई

ाल पहले कैं र

े भगवान को र्पयारे हो गए थे । जब

हमारी छोटी लडकी की शादी थी तो वोह बबस्तरे पर पडे इ

नामरु ाद बीमारी

े लड रहे थे।

उन के कुछ लर्फज मुझे भलते नहीिं, ” गरु मेल ! ककतना बदन ीब हूँ मैं कक रीटा की शादी है और मैं यहािं पडा हूँ और गुरदआ ु रे तक नहीिं जा इ

दनु नआ

कता ” . कुछ हफ्ते तकलीि

ह कर वोह

े चले गए थे, वोह बहुत अच्छे इिं ान थे, उन्होंने मुझे बहुत र्पयार ददया है , वोह कभी भलते नहीिं। गगआनो के दो लडके ज विंत और बलविंत हमें मामा मामी कह कर


पुकारतें हैं। बलविंत ज विंत की तीन बहने भी हैं, खश ु हैं। गगआनो और उन के बेटे हम और हम

भी अपने अपने घरों में पररवारों के

ाथ

ौ गज की दरी पर एक ग्रॉ री स्टोर चलाते हैं

े जो ररश्ता कभी गाूँव में हुआ करता था, वोह ही यहािं है ।

इिंगलैंड में जो पहले लोग आये थे, उन में बहुत कम लोग थे श्जन्होंने अपने बच्चे यहािं लाये थे, यह हमारी पीढ़ी ही थी श्जन के बच्चे यहािं पलने और पढ़ने लगे थे। जो अिंग्रेजी हम कालज में पढ़ कर भी बोल नहीिं

के थे, इन बच्चों ने एक दो

ाल में ही

ीख ली थी और

जब यह गोरों की तरह बोलते तो हमें बहुत खश ु ी होती। कुछ वक्िे े हमारी दोनों बेदटयािं र्पिंकी और रीटा इकठी लैस्टर स्ट्रीट न रक ी स्कल जाया करती थीिं। यह कुलविंत की ही ड्यटी थी जो

ुबह उन को न करी छोड आती और शाम को ले आती थी लेककन जब कभी मैं काम

े आ जाता तो मैं गाडी में उन्हें ले आता था। गाडी दे ख कर ही वोह खश ु हो जातीिं और

भागी आती। ककतनी खश ु ी मुझ को उन्हें दे ख कर होती थी, सलखना मुश्श्कल है । उन के हाथों

में न रक ी में पें ट ककये हुए पेपर होते, श्जन पर तोते गचडडआिं बनाये होते लेककन उन को दे ख कर कहना मुश्श्कल होता था कक यह ककया था लेककन जब वोह खश ु हो कर मुझे ददखातीिं तो मैं भी खश ु हो कर ओह ! विंडरिुल कहता तो उन के चेहरे खखल जाते। कभी कभी

ोचता हूँ

कक बच्चों का वोह बचपन ही हमें पोते पोनतओिं में समल जाता है । बचपन एक जगह ठहर तो कता नहीिं, और जब बच्चे बडे हो कर अपनी श्जम्मेदाररओिं में म रूि हो जाते हैं तो हम वोह ददन अपने पोते पोनतओिं और दोहते दोश्ततओिं में ढूँ ढ़ते हैं और उन का र्पयार भी दादा दादी की ओर बढ़ जाता है और यही वजह है कक जब बडे हो कर कुछ बच्चे माूँ बाप को इग्नोर करते हैं तो पोते पोतीआिं दादा दादी को डडिेंड करते हैं।

अब हमारे एररये में इिंडडयन ग्रो री की तीन दक ु ानें हो गई थी लेककन यह बहुत ही छोटी छोटी थीिं जो अक् र घरों के फ्रिंट रूम में ही होती थी, पीछे के कमरे में स्टॉक होता था और रहायश ऊपर होती थी । दो तो इ ी लैस्टर स्ट्रीट में थीिं, एक बलबीर की और एक की जो पाककस्तान

े थी, श्ज

े हमें इिंडडयन समचक म ाले दालें बगैरा

ुरैय्या

भी समल जाते थे।

ज़्यादा दक ु ानें गोरे लोगों की ही थीिं लेककन यह दक ु ानें बहुत छोटी छोटी होती थीिं। एक दकान ब्जी की दकान स्टै वले रोड पर होती थी श्ज को एक गोरा और उ की पत्नी चलाते थे। इिंडडयन औरतों के सलए कपडे की अभी कोई दकान नहीिं थी, स िक कुछ औरतें घरों में कुछ

कपडे के रोल रख कर बेचती थी। 99 % हमारे लोग मीट खाते थे लेककन उन को गोरे लोगों की मीट शॉप

े ही लेना पडता था लेककन बाद में इ ी लैस्टर स्ट्रीट में दो भाईओिं ने एक

मीट शॉप भी खोल ली थी। एक किश गचप् आता रहता था। फ्राइडे के ददन तो इ

की शॉप थी, श्ज

दकान पर किश ऐिंड गचप्

में

े दर दर तक महक लेने वालों की लाइन कभी

खत्म नहीिं होती थी। श्जिंदगी बहुत ादी थी और जरूरतें भी इतनी नहीिं थी और बडी बात जमाना भी स्ता था। कक ी चीज की कोई भी कमी नहीिं थी और हमारे लोगों के सलए तो यह स्वगक

े कम नहीिं था क्योंकक हम लोग तो दध घी को ही बहुत बडी चीज मानते थे और


कहावत भी थी ” दधों नहाओ, पतों फ्लो ” लेककन यहािं तो दध घी की नदीआिं बह रही थीिं। ब की जेब में पै े होते थे क्योंकक

भी काम करते थे।

लोगों में र्पयार मुहबत बहुत था। हर शननवार या रर्ववार को एक द रे के घर जाया करते थे और इ में बहुत खश ु ी समलती थी। औरतें खाना बनाने में लग जाती थी और आदमी बाहर चले जाते थे। अक् र आदमी पब्ब

े बहुत लेट आते थे और आते ही औरतें टे बल पर खाने लगा दे तीिं। खाना खा कर बातें करने लगते और हिं ी मजाक चलता रहता। बारह एक वजे बाई बाई कह कर अपने घर को चलते बनते। बहादर और हम तो समलते ही रहते थे और बुआ िुिड इ

े भी ररश्ता बाूँध गगया था और हमें बोर होने का कोई चािं

ही नहीिं था।

में एक बात और भी थी कक कोई औरत बाहर काम पर जाती नहीिं थी और उन का

अूँगरे ज लोगों

े खा

समलना जुलना होता नहीिं था, इ

े समलना जुलना कोई हॉसलडे

नहीिं

सलए औरतों के सलए यह एक द रे

े कम नहीिं होता था। औरतों का बाहर काम करना अच्छा

मझा था, अगर कोई औरत काम करती तो औरतें ही उन को ताने दे ने लगती । लोग

कहते औरत की कमाई पर पलता है । ब

यह वीकैंड पर समलना जुलना या कक ी

ी ाइड को चले जाना या कक ी ज को जाना

ही हमारी श्जिंदगी का बडा दहस् ा होता था। अब यह

ब खत्म हो गगया है क्योंकक यहािं के

पैदा हुए बच्चों की बातें ही हम े बहुत इलग्ग हैं। श्जन गोरे लोगों े हम खझझकते थे उन गोरों े यहािं के बच्चे अब शादीआिं रचा रहे हैं। श्जिंदगी एक बम्पी रोड है कभी ऊपर कभी नीचे . एक हिं

ुबह कुलविंत उठी और कहने लगी, “जी मुझे

ारी रात नीिंद नहीिं आई “, मैंने

कर जवाब ददया, “कोई बात नहीिं अज रात को आ जायेगी “. लेककन उ

रात भी

कुलविंत को नीिंद नहीिं आई, किर रोज ही ऐ ा होने लगा .दो हफ्ते हो गए और हम किकरमिंद हो गए और डाक्टर श्ज

े समले .डाक्टर राम बहुत अच्छा डाक्टर था और उ ने कोई दआ ु ई दी का नाम था मैगाडौन। उ रात कुलविंत को खब नीिंद आई, लेककन धीरे धीरे दआ ु ई

बेअ र होने लगी और नीिंद आखण बिंद हो गई। अब बहुत कर्फर होने लगा। समस्टर राम ने हस्पताल की अपॉइिंटमें ट ददला दी और हम हस्पताल जा पहुिंच।े ाइकैदट्रस्ट ने बहुत वाल पछे और कहा कक कभी कभी बच्चा होने के बाद ऐ ा हो जाता है और उ

ने कैप्स्यल दे

ददए। यह कैप्स्यल ददनबददन बढ़ने लगे लेककन कोई खा

िायदा नहीिं हुआ। मेरे सलए अजीब श्स्थनत हो गई। बबस्तरे में पडी कुलविंत को मैं कहानीआिं नावल पढ़ के ुनाने लगा श्ज े उ

को कभी कभी जमाईआिं आने लगती और दो तीन घिंटे नीिंद आ जाती, लेककन परी नीिंद

बबलकुल ना आती। दरअ ल कुलविंत को डडप्रेशन हो गगया था। जब डाक्टर पछते कक उ कक ी बात को ले कर कोई गचिंता थी तो उ

का जवाब यही होता, ” डाक्टर

को

ाहब, मुझे बेटे

की जरुरत थी, अब मझ ु े भगवान ने मेरी इच्छा परी कर दी, अब मझ ु े गचिंता काहे की “. यह हालत ददनबददन बढ़ने लगी और वैसलउम जै े ड्रग्ग डाक्टर दे ने लगे। इ

े कुछ आराम

होने लगा लेककन अब उ े बात बात पे डर लगने लगा। बच्चों को छोडने तक ही बात रह


गई। टाऊन जाने के सलए ब

में जाना उ

के सलए अ िंभव हो गगया क्योंकक उ

डर लगने लगा था। मैं लाइब्रेरी जा कर डडप्रेशन करता और किर कुलविंत को

ुनाता श्ज

म्बिंददत नई नई ककताबें ला कर स्टडी

े उ

और तरीका ढिं ढा। मैं ने कुलविंत को एक ब इिंतजार करे और मैं पीछे की ब

को ब

को बहुत हौ ला समलता। किर मैंने एक में बबठा ददया और कहा कक वोह मेरा टाऊन में

में आऊिंगा। जब मैं पीछे की ब

में टाऊन पहुिंचा तो कुलविंत घबराई इधर उधर दे ख रही थी और मेरे आते ही वोह खश ु हो गई। श्जन स्टोरों में बहुत भीड होती थी मैं वही​ीँ उ को ले गगया ताकक उ का डर दर हो जाए। स्टोरों में हम घम ु ते रहते, कुछ खाते और घर आ जाते। इ तरह करते करते उ का हौ ला बढ़ गगया और मैं उ

को कुछ लेने के सलए टाऊन भेज दे ता कक मेरा यह खाने को जी कर रहा था

और वोह ले आती। कुछ दवाइओिं

े भी वोह अच्छी होने लगी लेककन दवाईआिं बहुत स्ट्रॉन्ग हो चक् ु की थी। एक ददन मैंने अखबार में एक गोरी के बारे में सलखा आदटक कल पडा श्ज की किंडीशन कुलविंत जै ी थी और उ

ने धीरे धीरे

हो गई थी। मैंने यह आदटक कल पढ़ के कुलविंत को

ब दवाईआिं छोड दी थी और बबलकुल ठीक ुनाया। कुलविंत पर इ

का बहुत अ र ने ठीक होना है । एक बात तो यह हम ने की कक

हुआ और उ ने प्रण कर सलया कक उ जब भी मैं काम े आता हम बच्चों को गाडी में ले कर पाकक में चले जाते। घुमते रहते और वहािं ही पाकक की कैिे में कुछ खा लेते या बच्चों को आइ रीम कुलविंत ने खद ु ही जो दआ ु ई थी उ

में

े खश ु कर दे ते। द रा

े कुछ तोड कर बाकी दआ ु ई ले लेती। तीन चार

महीने में दवाई आधी रह गई और कुलविंत पहले

े अच्छा मह

करने लगी। अब उ

को

डर नहीिं लगता था। नीिंद तो अभी भी परी नहीिं आती थी लेककन कुछ कुछ आने लगी थी। ब

े ज़्यादा स्ट्रॉन्ग दवाई वैसलओम थी ( बाद में इ

क्योंकक इ दी और एक

के

ाइड इिैक्ट बहुत बुरे थे ),इ ाल में वैलीओम बिंद कर दी। इ

दवाई पर रोक लगा दी गई थी

को भी उ के

ने ददनबददन कम करनी शुरू कर

ाथ ही हम हर हफ्ते कभी बहादर के घर

कभी भुआ और कभी बलबीर के घर जाते रहते, कभी स ननमा चले जाते, कोई हफ्ता खाली ना रहने दे ते। श्जिंदगी किर चलता…

े पटरी पर आने लगी.


मेरी कहानी - 109 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 03, 2016 कभी कभी

ोच आती है कक यह गह ृ स्थ जीवन भी ककतना गुन्झालदार है , कभी दुःु ख, कभी

ुख, कहीिं दोस्त, कहीिं दश्ु मन ककतने रूप हैं इ

के, लेककन कुछ भी हो जीना तो पडेगा ही।

अक् र हम कहते हैं गहृ स्थ जीवन एक गाडी की तरह है श्ज

को दो पदहये चलाते हैं, एक

सलए तो

बिंधन को लोगों के

पदहया कमजोर पडने लगे तो द रा जीवन को चलाये रखता है और रखना भी चादहए । इ ी माज ने गुरदआ ु रे मिंददर मश्स्जद और गगरजे में इ

ामने

पक्का ककया हुआ है और जो रस्में हैं वोह एक द ु रे े वादा ही तो है कक वोह श्जिंदगी भर किंधे े कन्धा समला कर इ गाडी को चलाये रखें गे। कुलविंत धीरे धीरे अच्छी हो रही थी। एक शहर में हमारे कुछ दो त थे( नाम नहीिं सलखग िं ा ), उन को समलने का प्रोग्राम हम ने बना सलया ककओिंकक वोह बहुत दे र े हम उन को कुलविंत के बारे में पता था कक उ

े अनरु ोध कर रहे थे कक हम उन के वहािं आयें।

की स हत ठीक नहीिं रही थी और वोह कक ी को

जानते थे जो लोगों का इलाज करता था। मझ ु े कुछ ददनों की छुदटयाूँ थीिं, इ

सलए एक ददन

हम उन को समलने चल पडे। रास्ता कई घिंटे का था और हम ने घर में ही खाने के सलए बहुत कुछ बना कर गाडी में रख सलया। यों तो मोटर वे पर पची ती मील पर जगह जगह कैिे बने हुए हैं लेककन घर में ही अपनी इच्छा के अनु ार बनाया खाना अपना ही लत ु ि दे ता है और यह बात भी यकीनी है कक बाहर जा कर भख बहुत लगती है और खाना स्वाददष्ट लगता है । अगर मन करे तो कैिे े ले कर भी कुछ खा लेते थे लेककन ाथ में रखे खाने का एक हौ ला

ा होता था कक हमारे पा

म ालेदार खाने थे जो कैिे

े समलने

अ िंभव थे। ुबह

ुबह हम गाडी ले कर चल पडे। जब भी कभी हम लौंग डडस्टें

दो या तीन कैिे पर जरूर ठै हरते थे। एक तो गाडी ठीक ठाक है , उ

पर जाते थे, रास्ते में के टायर दे ख लेते,

इिंश्जन का बोनेट खोल कर तेल बगैरा चैक कर लेते और कुछ खा पी लेते। आधा घिंटा या 45 समनट आराम करके, कुछ खा पी कर हम किर चल पडते। रास्ते में मजे करते करते हम

कुछ ही घिंटे के बाद दप ु हर को हम उन के यहािं पहुूँच गए। एक द रे को समल कर हम बहुत खश ु हुए, बच्चे गाडकन में खेलने लगे। खाते पीते और बातें करते करते शाम हो गई। किर उन्होंने बताया कक आज शाम को उन के गरु ु जी आने वाले थे। में कुछ और लोग गाडडयािं ले कर आने लगे। कमरा लोगों लगे। 9 वजे के करीब गरु ु जी आ गए, जी को दे ख कर मैं है रान के बडे बडे लम्बे

त्य

ात आठ वजे होंगे इ

े भर गगया और

ब ने हाथ जोड कर

े भी छोटे थे। गुरु जी

ाईं बाबा जै े घुिंगराले बाल जो शायद कक ी टॉप हे अर ड्रै

भी बातें करने

त स री अकाल बोला। गरु ु

ा हो गगया क्योंकक गुरु जी उम्र में तो मेरे

बनवाए गए लगते थे और उन की थ्री पी

घर

ैलन

मुझ को शसमिंदा कर रही थी क्योंकक मेरे तो


बहुत स्ते ाधाहरण कपडे थे। उन के पा एक बहुत छोटी ी एक या डेढ़ र्फीट लम्बी छडी थी जो चलने के सलए तो थी नहीिं, लगता था उन का ट्रे ड माकक ही होगा। अरे हाूँ ! यह छोटी

ी छडी कई योगी लोग भी जब बैठे होते हैं तो आराम करने के सलए उ

पर अपनी

कलाई रखे बैठे हुए होते हैं। कुछ भी हो गुरु जी बहुत हिं मुख थे और उन के आते ही कमरे में बहुत खश ु गवार वातावरण हो गगया था. रात के द भीतर

वज गए होंगे एक

े ले आये और

ज्जजन जो मुझे जानते ही थे vat 69 र्वस्की की बोतल

ाथ ही र्वस्की के ग्लास्ज मेज पर रख ददए। और पीने वाले लोग

जानते हैं कक यह vat 69 का निंबर कमबख्त करो, तो तब भी यह 69 ही होगा। अब इ

ीधा हो तो 69 होगा ही लेककन इ

को उल्टा

का अ र उल्टा तो होगा ही। बात को ज़्यादा न

बढ़ाऊिं, गुरु जी र्वस्की पीने लगे, द रे लोग तो पी ही रहे थे। मैंने कुछ नहीिं सलया क्योंकक मैं शुरू

े कभी कभी ही पीता तो था लेककन इतना शौक़ीन नहीिं था और अब तक यह ही मेरा

रुझान है । कुछ दे र बाद लगा गुरु जी टल्ली होने जा रहे हैं यानी vat 69 की बोतल उलटी होने जा रही है , गुरु जी अजीब

ी ऐश्क्टिं ग करने लगे और िार ी बोलने लगे, किर दहिंदी पर

आ गए “तुम कौन हो ? ककया चाहते हो ? कश्मीर वाले महाराज जी आएिंगे तो तुम्हारे जते मारें गे, ज़्यादा मुिंह ना खोल ! बडे बडे दािंत मुझे ना ददखा “ऐ ी ऐ ी और भी बातें गुरु जी कर रहे थे जो अब ज़्यादा मुझे याद नहीिं हैं। लगता था गुरु जी को अब हवा आ गई थी।

एक औरत को कुछ हो गगया, बोलने लगी, ” भा जी मुझे कुछ हो गगया, भा जी मुझे कुछ हो गगया”बोले जा रही थी। गुरु जी बोले, ” पानी का ग्ला

लाओ “. उ

अिंगठीआिं थीिं। गरु ु जी ने

में डाल दीिं और हाथ

का ग्ला

ले आया। गरु ु जी के दोनों हाथों की

भर कर उ

े पानी

भी उिं गसलओिं पर मोटे मोटे नगों वाली

ारी उिं गलीआिं पानी के ग्ला

औरत की आूँखों पर जोर

का पनत जल्दी

े कुछ पानी

े मारा। वोह औरत कुछ तडपने लगी, बोली ” भा जी

पानी आूँखों को बहुत लगता है , भा जी बहुत ददक करता है “. पता नहीिं गरु ु जी की अिंगठी के नग में ककया था। किर गरु ु जी ने उ औरत की आूँख को अपने हाथ की एक ऊूँगली और अिंगठे

े खोला और लोगों को ददखाने लगे, ” दे खो इ

है और यह कक ी ने कुछ ककया हुआ है , मझ ु े इ ककया है “.

की आूँख में आधा चिंद्रमा बना हुआ का पता करना होगा कक यह कक ने

यहािं मैं यह बता दूँ कक उम्र के बढ़ने पर कुछ लोगों की आूँखों पर कुछ कुछ चबी

ी ददखने

लगती है और यह नॉमकल है । अब कुछ और औरतें भी आगे आ गईं और गुरु जी उन का

उधार करने लगे। बाहर बारश शुरू हो गई थी। गरु ु जी लोगों का भला कर रहे थे और बारश एक दम तेज म लाधार हो गई, बबजली कडकने लगी (झठ नहीिं सलख रहा हूँ , बबलकुल

है ). गुरु जी ने गस् ु े में एक दम पैटीओ डोर खोल दी और तेज बारश में ही कपडों की

परवाह ना करते हुए बाहर गाडकन में आ गए, उन के पीछे ही कुछ लोग भी चल ददए। कुलविंत और मैं एक द रे की ओर दे ख कर मुस्कराये। बाहर गाडकन में एक छोटा ा किश


पौंड था, श्ज गुरु जी उ

में गाडकन की खब रती के सलए छोटी छोटी रिं ग बरिं गी मछलीआिं रखी हुई थीिं। किश पौंड में स्टै प इन करके हाथों े पानी को दहलाने लगे। दो तीन समनट

ऐ ा करने के बाद वोह किश पौंड

े बाहर आ गए। अब गुरु जी के हाथ में बहुत ी जिंग े ले आये, शायद पहले े ही उन्होंने जेब में डाल रखी

लगी हुई कीलें थीिं, पता नहीिं कहाूँ होगी। किश पौंड अूँधेरे में था और ऐ ा जाद करना कोई मुश्श्कल नहीिं था। वोह कीलें हाथ में सलए भीतर आ गए। भीतर आ कर

ोिे में धिं

गए, कुछ समनट इ ी तरह आूँखें बिंद करके

बैठे रहे । किर आूँखें खोल कर बोले, ” भई ! यह कपडे क्यों भीगे हुए हैं, भीतर बैठे बैठे कपडे कै े भीग गए ?”. लगता था गुरु जी की हवा अब खत्म हो गई थी। अब औरतें हिं ने लगीिं, ” गुरु जी, तुम तो यहािं थे ही नहीिं, गुरु जी आप तो चोज कर रहे थे, गुरु जी आप के तो काम ही इलग्ग हैं, पता नहीिं आप कहाूँ कहाूँ घम रहे थे, गुरु जी आप कपडे चें ज कर लो “. इ

के बाद घर

वालों ने गुरु जी

े कोई बात की और गुरु जी ऊपर के कमरे में चले गए। उन के पीछे ही

कपडों के

पडे थे, उन्होंने खोलने को बोला।

कुछ और लोग चले गए और उत् ुकता वर् मैं भी ऊपर चला गगया। गुरु जी के आगे दो तीन टके

को वोह गधयान

टके

में पडे लेडीज

े दे खने लगे। कोई ननशान कक ी रिं ग का

तरि िैंक दे ते। कक ी

ट पर कोई और रिं ग का छोटा

ट और

ाडडओिं

ाडी पर लगा होता तो वोह एक

ा धागा लगा होता तो उ

को भी

िैंक दे ते। ऐ े करते करते उन्होंने बहुत बडीआ बडीआ कपडे एक कपडे में बाूँध ददए और बोले, ” आप इन कपडों को कक ी दररआ में डाल आइये क्योंकक इन्हीिं कपडों पर कक ी ने आप का बरु ा ककया हुआ है “. घर वाले बोले, ” महाराज यह काम आप ही करें “. गरु ु जी ने ारे कपडे श्जन में कीमती ाडीआिं और कुछ और ट थे, अपनी गाडी में रख सलए और कुछ दे र बाद चलते बने। अब

ारे लोग धीरे धीरे चले गए और हम भी

ो गए।

द रे ददन हम शहर को चल ददए और बहुत े इत्हा क अस्थान दे खे। शाम को हम ने कुछ और लोगों े समलना था और एक पब्ब में इकठे होना था। जब हम एक बडे े पब्ब में पहुिंचे तो कुछ लोग पहले ही टे बलों पर बैठे बीअर के ग्ला ले कर बैठे थे और पररओिं जै ी गोरी लडककआिं हिं हिं कर ग्राहकों को ग्ला वक कर रही थीिं, लडककओिं की र्पछली ओर दीवार पर तरह तरह के कक म की शराब की बोतलें पडी थीिं और कुछ उलटी टिं गी हुई थीिं श्ज में े वोह ग्राहकों को उन के प िंद का पैग बना कर दे ती थीिं .जब हम पब्ब की बार में गए तो कुछ दोस्त उठ कर हमारी तरि आ गए और अपने बटुए खोल कर, ककया पीना है , ककया पीना है कहने लगे। हम ने अपनी चॉए

बता दी और ग्ला

टे बलों पर आ गए। हम

पीने लगे और बातें शुरू हो गई। बात कभी कक ी टॉर्पक पे होती कभी कक ी पे और कुछ लोग जोक् के द

ुनाने लगे। पब्ब एक ऐ ी जगह है यहािं वक्त पिंख लगा कर उड जाता है । रात

वज गए थे और बातें जारी थीिं।


करते करते बात उ ी गुरु जी पर आ गई। एक ने बात एक ददन उ

ने मुझे एक बात

ुनाई, ” भई !गुरु हुसशआर बहुत है , न ु ाई, कहने लगा”, “एक ददन मेरे घर एक आदमी आया

और मेरे कमरे में आ कर रोने लगा, उ

ददन अपने अपने कष्ट ननवारण कराने के सलए

बहुत लोग मेरे घर आये हुए थे, वोह बोला, गुरु जी मेरी लडकी घर े भाग गई है , हम ना तो कक ी को बता कते हैं ना पुसल को ररपोटक कर कते हैं क्योंकक इ े हमारी बदनामी हो जायेगी, गुरु जी हम पर कृपा करो. मैंने उ

को भरो ा ददया कक मैं उ

के सलए

कुछ करू​ूँगा, वोह रोता हुआ चले गगया और अपना टे लीिन निंबर मझ ु े दे गगया, ऐ ा हुआ कक एक हफ्ते बाद उ की लडकी भी मेरे पा आ गई, गचिंता में डबी वोह बोली कक उ ने घर उ

े भाग कर गलती कर ली थी, अब उ

को पता नहीिं चलता था कक वोह ककया करे , मैंने

को कहा, कक वोह बुध के रोज द

वजे अपने घर का दरवाजा खडकाए, डरने की बात

नहीिं, उ उ

के र्पता जी उ

को गले

े लगाएिंगे और वोह लडकी चले गई, मैंने उ ी वक्त

के बाप को टे लीिन ककया कक हम ने उन के सलए मिंत्र पढ़ ददया है , बध ु के रोज उन की

लडकी दरवाजा खडकाएगी और वोह लडकी को गले लगा लें, भगवान भली करे गा, एक हफ्ते बाद वोह शख्

मेरे पा

आया और मेरे आगे दो

ौ पाउिं ड रख ददए और खश ु ी खश ु ी अपने

घर चले गगया ” और इतनी बातें कह कर गुरु हिं ने लगा . भी दोस्त इ

कहानी को

ुन कर हिं

रहे थे लेककन मैं अपने ख्यालों में गुम हो गगया था।

हम घर आ गए और खाना खाया, कुछ दे र बातें करने के बाद शहर की ओर चल ददए। इ

ो गए और

ुबह को अपने

के बाद तकरीबन चार हफ्ते बाद हमें अपने दोस्त का टे लीिन

आया कक कश्मीर वाले महाराज जी हमारे टाऊन के नजदीक के शहर में आ रहे हैं और वोह एक और पररवार के

ाथ उन को समलने के सलए आ रहे हैं और हम उन को वहािं समलें। इ

के इलावा कुलविंत के मामा जी की लडकी बलबीर का भी िोन आया कक वोह भी महाराज जी को समलने आ रहे हैं। उ

ददन मैं और कुलविंत उ

घर पर जा पहुिंचे यहािं महाराज जी ीढ़ीओिं पर खडे थे। हमारे दोस्त पहले

ठहरे हुए थे। ारा घर लोगों े भरा हुआ था, लोग ही वहािं पहुिंचे हुए थे। महाराज जी के दो लडके एक कमरे में बैठे र्वडडओ लगाए टीवी पर एक किल्म दे ख रहे थे, यह वोह मय था जब र्वडडओ अभी कक ी कक ी के पा ही था

क्योंकक अभी बहुत मैहूँघे थे. एक एक करके भी लोग महाराज जी के कमरे में जा रहे थे, कुछ दे र बाद हम दोनों भी महाराज जी के ामने जा बैठे, उ वक्त महाराज जी अपने को इन् ुलीन का इिंजैक्शन लगा रहे थे क्योंकक महाराज जी डायबेदटक थे। इिंजैक्शन लगा कर

महाराज जी ने स गरे ट के दो लम्बे लम्बे क्श सलए और दोनों हाथ जोड कर ऊपर ककये और उन के हाथों में दो समश्री की छोटी छोटी दटक्कीआिं आ गई थीिं, पता नहीिं कहाूँ

े । हम ने

दोनों हाथ महाराज की ओर बढ़ाये और उन्होंने हमें समश्री का पर ाद दे ददया और कहा कक हम दो पाउिं ड सशव जी की िोटो के आगे रख कर माथा टे क दें जो हम ने ककया और कमरे े बाहर आ गए।


क्यों हम ने दो पाउिं ड ददए मुझे आज तक याद नहीिं। इ हमारे घर की ओर चल पडे। दाल

उ उ

गुरु जी की ननिंदा कर रहा था श्ज ाल तक उ

का बेटा भी उ

को मैंने उ

के

ने सलए ही नहीिं थे।

ुन रहा था। मेरे दोस्त

ाथ आया हुआ था। वोह ददन दे खा था। वोह बता रहा था कक

की नई गाडी इस्तेमाल की और उ

खाए, वोह धोखेबाज था और जब उ गया कक उ

में बातें कर रहे थे और मैं

को मैं नहीिं जानता था, उ

गुरु ने एक

ाथ

श्ब्जआिं मीट बगैरा तो हम पहले ही तैयार कर के गए थे।

जब घर आये तो मेरे वोह दोस्त आप का दोस्त श्ज

के बाद हमारे दोस्त हमारे

ने पािंच हजार पाउिं ड गरु ु

के पािंच हजार पाउिं ड

े मािंगे तो वोह

ार्फ मक् ु कर

वोह जमाना बहुत पीछे छट गगया है और यह ब सलखते हुए मुझे हिं ी आ रही है लेककन एक बात है , उ गुरु की िोटो अब भी एक पिंजाबी के अखबार में आती है श्ज में वोह बहुत बढ़े ददखाई दे ते हैं । चलता…


मेरी कहानी - 110 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 07, 2016 इन गुरुओिं को समल कर मैं है रान था कक इतनी लट वोह भी बडी इजत के लोग ददल खोल कर पै े दे ते और

ाथ हो रही थी।

ाथ ही गुरु जी को माथा टे कते। मुझे तो यह ऐ े मह

होता था जै े लोग बेनती कर रहे हों कक प्लीज हमें लट लो, ककतनी कमजोर मानस कता थी। यही लोग कक ी अच्छे काम के सलए दान दे ने

े कतराते थे लेककन बाबे

िंतों के आगे

बटुए ढे री कर दे ते थे। यिं तो मैं कुलविंत को पहले ही ऐ ी बातें बताता रहता था ताकक वोह और औरतों की बातें

ुन

ुन कर अिंधर्वश्वा ी ना हो जाए क्योंकक कुलविंत के र्पता जी ऐ े

र्वचारों के धारणी थे और माता र्पता के हैं। उ

ददन महाराज जी के

ककओिंकक उ

का र्वशवा

िंस्कार बच्चों में खा

कर लडककओिं में आ ही जाते

ामने हम बैठे तो थे लेककन अपने उ

था कक कुलविंत को महाराज जी

अगर हम ना जाते तो वोह दोस्त हम

ौ िी

दोस्त की वजह

दी ठीक कर दें गे और

े गस् ु ा हो जाते, लेककन इ

कक ी बाबा जी या माहत्मा के दशकन नहीिं ककये, मझ ु े इन लोगों

े ही

के बाद मैंने कभी भी

े इतनी निरत हो गई थी

कक इन लोगों को दे खना भी नहीिं चाहता . उन ददनों मैं लाएब्रेरी

े ककताबें बहुत लाया करता था और हम पती पत्नी दोनों इन को पड कर र्वचार ककया करते थे . मैं तो शुरू े ही नाश्स्तक जै ा था ( डब्बल स्टैंडडक की मुझे आदत नहीिं है , जो मैं हूँ वोह ही बोलता हूँ ),अब कुलविंत भी यह .ककओिंकक कुलविंत को श्जआदा औरतों अन्धर्वश्वा ी ही होती हैं, इ लेककन जब टीवी पर बाबे उ

मझने लगी थी

े ही समलना होता है और वोह श्जआदा तर

सलए वोह उन की हाूँ में हाूँ समला दे ती है , कहती कुछ नहीिं,

िंतों की बात आती है तो गुस् े में बहुत कुछ बोलती रहती है . का स िक एक ही र्वशवा है कक भगवान ् है और उ े डरना चादहए, वोह गरु दआ ु रे

जाती है , ब

बाबा जी को

शब्द भी गा लेती है और इ के

ब पाखिंड

ाथ गप्पें मारना ही उ

बढ़ जाती। इ

च्चे मन

े माथा टे क दे ती है ,कभी कभी

खखओिं के

िंग कोई

के बाद लिंगरखाने में खाना बनाने में मदद करना और का शग ु ल है । अगर वोह अिंधर्वश्वा ी हो जाती तो मेरी

खखओिं रददी

का िायदा और भी हमें हुआ कक हमारे बच्चे भी इन बातों े को ों दर हैं। इिंगलैंड में ज्जयोत्र्ी बाबे रे डडओ पर ऐड दे ते हैं और लोग जाते हैं। पहले पहले मैं लोगों में जाग्रप्ु ता लाने के सलए रे डडओ पर कहानीआिं भेजा करता था लेककन अब वोह ही रे डडओ श्जयोश्त्शओिं बाबाओिं की ऐड नशर करता है , इ

सलए मैंने ऐ ी कहानीआिं सलखना बिंद कर

ददया है क्योंकक मैं

बिंद नहीिं होगा क्योंकक जो हम भारती लोगों

मझता हूँ , यह अिंधर्वश्वा

को पैदा होते ही अिंधर्वश्वा है ।

का इिंजैक्शन लगा हुआ है , वोह हम

भी के खन में दौड रहा


श्जिंदगी किर

े पटरी पर आ गई थी और बच्चे बडे हो रहे थे. अब ददनबददन इिंडडयन

पाककस्तानी लोगों की अफ्रीका

िंख्य भी बढ़ रही थी खा

कर अफ्रीका

े आये लोग। जो स ख

े आ रहे थे उन में ज़्यादा लोग पगडी बािंधते थे और शायद ही उन में

े कक ी ने

बाल कटवाए हों। अफ्रीका

े आये लोगों में पडे सलखे लोग बहुत थे जो गवक े पगडी रखते थे और उन की पगडी का स्टाइल इिंडडया े आये लोगों े सभन्न था। पहले इिंडडया े आये लोग आते ही बाल कटवा लेते थे क्योंकक गोरे निरत करते थे लेककन अफ्रीका को दे ख कर भारती स ख भी अब पगडी रखने लग गए थे। हमारे लोगों की बढ़ रही थी और गोरे लोगों की निरत भी हम

े बढ़ रही थी। दो

े आये स खों िंख्य ददनबददन

ाल पहले 1972 में

यग ु िंडा

े बहुत लोग आ गए थे क्योंकक उन को ईदी अमीन ने ननकाल ददया था। इ एक कारण था।

का भी

कुछ बातें युगिंडा में अपने लोगों के बारे में सलखना चाहिं गा। भारत की तरह युगिंडा भी अिंग्रेजों के अधीन था और यह 1962 में आजाद हुआ था। युगिंडा में एक रे लवे लाइन बनाने के सलए 1896 े 1901 तक अिंग्रेजों ने भारत े 32000 भारती बल ु ाये थे। रे लवे लाइन बन गई लेककन इ

के सलए हमारे लोगों को बहुत बडी कुबाकनीआिं दे नी पडीिं। इ में 2500 ौ भारती मारे गए थे क्योंकक यह ारा इलाका जिंगल ही था और शेर चीते बहुत थे जो लोगों को खा

जाते थे। कहते हैं कक हर एक मील रे लवे ट्रै क बनाने में चार भारती शहीद हुए थे। रे लवे बन जाने के बाद भारती वहािं ही रह गए और काम करने शुरू कर ददए। ज़्यादा लोग गुजरात और पिंजाब

े ही थे श्जन में मु लमान स ख और दहन्द ही ज़्यादा थे और उन की आप ी

द्भावना भी बहुत थी क्योंकक भी ने अिंग्रेजों के सलए कुबाकनीआिं दी थीिं। अफ्रीकन लोग तो जिंगली ही थे, और हमारे लोगों के बच्चे भारत े आते ही स्कलों में पडने लगे, मय के ाथ

ाथ कालज यननव ट क ीआिं बनने लगीिं, गरु दआ ु रे मिंदर मश्स्जद बनने लगे और हमारे

लोगों ने बडे बडे बबजने

और शग ु र िैश्क्ट्रयािं ऐस्टै बबश कर लीिं लेककन युगिंडा के अफ्रीकन

लोग अनपढ़ ही रहे श्जन को अपने ही लोगों ने एक् प्लॉएट ककया, उन को घरों में नौकर रखते थे, उन

े हर काम करवाते थे और तन्खआ ु ह बहुत कम दे ते थे।

1962 में युगािंडा आजाद हुआ और इ के पहले प्रेश्जडेंट समल्टन अबटे बने। ईदी अमीन ने जो उ वकत समसलटरी का कमािंडर इन चीि था, उ ने अबटे को शायद 1971 में इ कु ी

कािंफ्रें

े हटा कर खुद समसलटरी रूलर बन गगया। उ

वक्त अबटे स घ िं ा पुर को कॉमनवैल्थ

अटैंड करने के सलए गगया हुआ था। अब अमीन मन मजी े हकमत कर रहा था। हमारे एसशयन लोग बहुत बडे बडे बबजने मैन थे। 1972 में उन्होंने किंपाला में एक बहुत बडी पाटी की श्ज

में बबदे शों

े बडे बडे लोग बुलाये गए और ईदी अमीन को खा

कर

गैस्ट ऑि औनर के तौर पर बुलाया गगया। इ मैंन श्ज

का होटल बबजने

पाटी में एक बहुत बडा पाककस्तानी बबजने था, भी अपने घर के भी दस्यों के ाथ आया, श्ज में उ

की एक खब रत लडकी भी थी। ईदी अमीन को यह लडकी भा गई और उ

ने अपने बॉडी


गाडक को उ

आदमी के पा

भेजा कक वोह उ

अमीन की पहले भी चार बीवीआिं थीिं ). यह को जवाब ददया कक वोह अपने घर के वक्त गुप्त तरीके

दस्यों

की बेटी के

ाथ शादी करना चाहता है , (ईदी

ुन कर वोह शख्

घबरा गगया और बॉडी गाडक

े बात करके जवाब दे गा लेककन उ

ने उ ी

भी औरतों को कैननया की राजधानी नैरोबी भेज ददया। अमीन को इ

बात

े बहुत गुस् ा आया और कुछ ददन बाद भी एसशयन को तीन महीने के बीच युगािंडा छोडने का आडकर दे ददया। बहाना उ ने यह बनाया कक रात को उ को एक पना आया था श्ज

में अल्ला ने उ

को कहा था कक यह एसशयन लोग अच्छे लोग नहीिं हैं, यह हमारे

दे श को लट रहे हैं और हमारे लोगों को गरीब कर रहे हैं। ब

किर ककया था, एसशयन लोगों में हिरा दिरी मच गई क्योंकक अमीन ने यह भी आडकर

दे ददया कक स िक दो अमीन

ट के

और 55 पाउिं ड अपने

ाथ ले जा

कते थे .एक ररपोटक र ने

े पुछा था कक अगर यह लोग नहीिं गए तो वोह ककया करे गा, अमीन ने इ

जवाब ददया था, ” they will be sitting on fire”. उ एअरपोटक पर ककया गगया, उ

का

वक्त जो हाल हमारे लोगों का

की दास्तान ही रूह किंपा दे ने वाली है , औरतों के बाल खोले

गए ककओिंकक कुछ औरतें अपने बालों में गहने छुपा कर ले जा रही थीिं, कई लडककआिं गुम हो गईं, एअरपोटक के कमकचारीओिं ने जी भर कर लटा। उ

वक्त 50,000 एसशयन बब्रदटश

पा पोटक होल्डर थे और इिंगलैंड में टोरी पाटी की हकमत थी और प्राइमसमननस्टर लॉडक होम था। अब द

हजार लोगों ने इिंगलैंड के लैस्टर शहर में ही आना था. पासलकमेंट के बहुत टोरी मैम्बर बोल रहे थे कक यह हमारे लोग नहीिं हैं। उधर भारत की प्राइमसमननस्टर इिंद्रा गािंधी ने भी दो टक जवाब दे ददया था कक india is not a dumping ground . भारत की हकमत ने अपने शहरी लेने के सलए सशप भेज ददया था। बहुत लोग अमरीका कैनेडा और कुछ अन्य यरपी दे शों को चले गए। यहािं इिंगलैंड के लेस्टर शहर में गोरे लोग मुजाहरे कर रहे थे कक एसशयन लोगों को ना आने ददया जाए। लेककन प्राइमसमननस्टर लॉडक होम ने कह ददया था कक यह लोग उन के शहरी थे, इ

सलए उन का

वैलकम करें गे। इिंगलैंड की हकमत ने भारत की हकमत को कुछ दे र के सलए अपने बब्रदटश स दटजन लेने की बेनती की और उ

का खचक भी दे ने को बोल ददया। इ

के तहत बहुत लोग भारत आ गए जो धीरे धीरे इिंगलैंड आने थे, इन में हमारी बहु के मामा जी भी थे। एक ाल बाद जब उ को इिंगलैंड आने की इजाजत समली तो उ ने बताया कक जो पै े अूँगरे ज हकमत ने भारती हकमत को उन के स दटजन लेने के सलए ददए थे, कक ी शरणाथी को नहीिं ददए गए और उन को बहुत बुरे हालातों में रहना पडा था। धडा धड जहाजों के जहाज भर भर के इिंग्लैण्ड की एयरपोटों पर लैंड होने लगे। अिंग्रेजों ने उन की बहुत मदद की। गोरी लडककआिं बच्चों को गोद में उठाये औरतों के ाथ चलती। रहने के सलए भी का इिंतजाम ककया और उन को हर हफ्ते पै े दे ने शरू ु कर ददए। पासलकमेंट में भी बहुत गमक बह

होती थी लेककन लॉडक होम ने कहा था, कुछ दे र की बात ही है , these


people will not be a burdan on us और उ लोग

की यह बात

ही

ाबत हुई क्योंकक भी ककलड थे जल्दी ही काम पर लग गए। गज ु राती लोगों ने दक ु ाने खडी कर दीिं और

बहुत े द रे बबजने शुरू कर ददए क्योंकक उन लोगों में ज़्यादा लोग बबजने मैन ही थे और बहुत लोगों के पै े पहले ही इिंगलैंड की बैंकों में थे, यही बात अमीन कहता था कक एसशयन लोग युगािंडा को लट रहे हैं। बात को और लम्बी ना करू​ूँ, इ

वक्त लेस्टर पर

गुजराती लोगों का बोल बाला है , बडी बडी शानदार दक ु ानें हैं और दर दर

े इिंडडयन औरतें

लेस्टर को कपडे खरीदने जाती हैं और वहािं के गज ु राती रे स्टोरें टों में गज ु राती खाने का मजा लेती हैं और घर भी ले कर आती हैं। लेककन इ

अचानक इसमग्रेशन का इतना बुरा अ र हुआ था कक उ मय गोरे लोग हम े बहुत गचढ़ते थे। अभी चार ाल पहले ही तो इनोक पावल ने हलचल मचाई हुई थी

लोगों

और अब युगािंडा

े और एसशयन आ गए थे। यह इसमग्रेशन का म ला आज तक उ ी तरह

चलता आ रहा है और अब तो इतने लोग आ गए हैं कक जो युगािंडा भी नहीिं थे। आज हम इिंग्लैण्ड में ददल

े हमें कभी

ैटल हो चक् ु के हैं लेककन

े आये थे वोह तो कुछ

च्चाई यह भी है कक अिंग्रेजों ने

वीकारा ही नहीिं, हम यहािं रह रहे हैं, हमें बराबर के अगधकार हैं, हमारे

पासलकमेंट में मैम्बर हैं और मेयर तो बहुत शहरों में रह चक् ु के हैं और अभी भी हैं, इिंग्लैण्ड की अथकर्ववस्ता में हमारा बहुत बडा योगदान है लेककन किर भी हम अपने आप को गोरों े इलग्ग मह

भारत में इ

करते हैं। अगर इन बातों का मुकाबला मैं भारत

े करू​ूँ तो डडश्स्रसमनेशन

े भी बहुत ज़्यादा है क्योंकक हजारों ालों े दसलत आददवा ी इ डडश्स्रसमनेशन का ामना कर रहे हैं, ऐ ा इिंग्लैण्ड में नहीिं है । भारत में तो जात पात का कोहड ही नहीिं खत्म हो

कते, दाज की लानत, बहु को तिंग करने की लानत, बहु को बेटा पैदा ना करने पर दुःु ख दे ने की लानत, ककया ककया सलख,िं इन भी बातों को गधयान े दे खिं तो लगता है इतनी समहनत मश्ु कत और गोरे लोगों की हम

चलता…

का। आप

में शाददयािं ही नहीिं करवा

े निरत के बावजद हम इिंगलैंड में ज़्यादा

रु क्षित हैं।


मेरी कहानी - 111 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 10, 2016 इिंगलैंड में हालात कै े भी रहे हों, हमारे लोग अपनी धन ु में मस्त, उ

मय एसशयन और जमेकन लोग लग पग एक ही

ख्त काम करते ही रहे .

मय में आये थे लेककन जमेकन

लोगों का और हमारा अिंतर बहुत था. हमारे लोग ख्त समहनत करके और पै े बचा कर अपने घर खरीद रहे थे लेककन जमेकन लोग अपनी ख्त कमाई ऐयाशी पर खचक कर दे ते थे. हर रोज प्ब्ब में जा कर

मय गुजारते और डौसमनोज खेलते रहते। आयरश वेश्याएूँ उन के

इदक गगदक घमती रहती और उन को बीयर के ग्ला

भर भर के

वक करती। जमेकन लोग

ऐ ी औरतों पर बहुत रोअब रखते थे और इन औरतों को भी ऐ े लोगों े अच्छी कमाई हो जाती थी। क्योंकक यह लोग लडने में बहुत आगे होते थे और गोरे भी उन े डरते थे और कोई बरु ा लर्फज उन को नहीिं बोलते थे। जमेकन लोगों का आप ी भाईचारा बहुत अच्छा होता था और कभी कक ी गोरे ने उन को कभी बरु ा लर्फज बोला तो एक दम इकठे हो जाते थे। इ

भी जमेकन

के र्वपरीत हमारे लोगों में कोई इतर्फाक नहीिं होता था, इ ी सलए गोरे

लोग हमारे लोगों पर रोअब रखते थे और कभी हमारे लोगों को पीट भी जाते थे। एक और बात भी थी कक जमेकन लोगों की जुबािंन इिंश्ग्लश ही होती थी और हमारे लोग पहले तो ज़्यादा पडे सलखे थे ही नहीिं और पडे सलखे थे भी तो इतनी इिंश्ग्लश बोल नहीिं थे। एक और बात भी थी कक हम

भी एसशयन

ख्त समहनत करने वाले थे और हमारा

कते

मक द एक ही होता था कक अपना घर हो और पीछे भारत में अपने माूँ बाप भाई बहनों को भी पै े भेजते रहें । हम काम कक ी भी हालत में छोडना नहीिं चाहते थे , इ ी सलए कक ी झगडे

े दर रहने की कोसशश करते थे ताकक कक ी झगडे में पढ़ कर अपना काम ना गूँवा

बैठे। जमेकन लोग झगडा करने

े डरते नहीिं थे और काम की परवाह भी नहीिं करते थे। यही

कारण था कक हमारे लोग श्जतनी जल्दी हो करते थे, जब कक जमेकन लोग ऐ ा नहीिं

के पै े बचा कर अपना घर लेने की कोसशश ोचते थे। यह लोग एसशयन घरों में ही ककराए पर

रहते थे और उ

मय ज़्यादा तर जमेकन बच्चे एसशयन घरों में ही पैदा हुए थे। जब एसशयन लोगों के पररवार आ गए तो इन लोगों के पा कोई चारा नहीिं था कक अपना घर ना लें। अभी तक हमारे लोगों में यह ही र्वचार था कक कक ी ना कक ी ददन उन्होंने इिंडडया जाना ही

था, इ ी सलए कई पररवारों के लोग पै े बचा कर इिंडडया में जमीिंन खरीदते या अपना मकान बनाते या बैंकों में बैलें

बढ़ाते । हम दो बेडडओिं में

वार थे। बहुत े िंयुकत पररवारों ने पै े बचा कर ग्रॉ री की दक ु ाने ले लीिं थी। जमेकन लोगों ने बहुत कम इ ओर गधयान

ददया था क्योंकक उन के बच्चे भी काम करना नहीिं चाहते थे और पहले पै े मािंगने लगते थे । हमारे

िंयुकत पररवार का िायदा यह ही था कक घर के

भी लोग इ

काम में ददन रात


एक कर दे ते थे, बहुत लोग बाहर िैश्क्ट्रयों में भी काम करते और काम े आ कर भी मदद करते थे। अभी तक हमारी औरतें बाहर काम नहीिं करती थीिं, स िक बच्चों की दे ख भाल करती या घर का काम ही करतीिं। अब कुछ कुछ लोग कपडे की ड्रैस्ज, जै े बच्चों के कपडे या अनारै क बनाने शुरू करने लगे थे । यह अनारै क भी उ

वक्त एक नया कोट इजाद हुआ था जो दी े बचने के सलए बहुत मोटा कोट जै ा होता था, अब तो यह ारी दनु नआ में परचलत है लेककन इ के सलए काम

करने वाली औरतें चादहयें थी। यह अनारै क और अन्य कपडे बनाने के सलए इिंडस्ट्रीयल मशीन की जरुरत होती थी। मेरा दोस्त टिं डन जो अब नहीिं है , उ काम शुरू ककया था, उ

की पत्नी तप्ृ ता के भाई ने यह

का नाम वेद प्रकाश महन था और ब ों पे भी काम करता था।

दरअ ल वेद प्रकाश एक बडा

के बहुत े दस्य मानचैस्टर में रहते थे और यह कपडे का काम पहले ज़्यादा मानचैस्टर े ही शुरू हुआ था और वोह भी यही काम करते थे । वेद प्रकाश की पत्नी मीना कुलविंत को जानती थी। महन और मीना मानचैस्टर वोह

िंयुकत पररवार था श्ज

े चार पािंच

ौ काटे हुए कपडे ले आते और और घरों में औरतों को दे आते और ारा ददन घर में मशीन पर कपडे ीती रहती। घर में बैठी औरतें भी कुछ ना कुछ

कमाई कर लेती। मीना ने कुलविंत को अनारै क वोह स खा दे गी। कुलविंत ने मुझ था कक बबजी रहने आने लगें गे।

ीने के सलए पुछा और कहा कक कै े

े पुछा तो मैंने उ

े कुलविंत का गधयाूँन िजल बातें

ीने हैं,

को हाूँ कह ददया क्योंकक मेरा खखयाल ोचने

बच्चों को स्कल छोड कर कुलविंत वें डनस्िील्ड को जो हम

े बिंट जाएगा और कुछ पै े भी े तकरीबन तीन मील है , मीना

के घर चले जाती और मीना उ े स खाती रहती। पहले ददन ही कुलविंत जब घर आई तो उ

ने मुझे कहा कक यह काम बहुत मुश्श्कल था और उ के हाथों में ददक हो रहा था। कारण यह था कक अनारै क एक तो भारी बहुत होता था, द रे इ को िैशन वाली जेबें ही बहुत थीिं और इ

कोट

को खोलने बिंद करने के सलए तकरीबन डेढ़ दो र्फीट लिंबी आगे की श्जप होती थी। एक ीने के सलए एक घिंटे

े भी ज़्यादा लग जाता था। मैंने कुलविंत को कहा कक अगर

मुश्श्कल था तो वोह ना करें लेककन कुलविंत हठी बहुत है , कहने लगी, “जो मजी हो मैंने ीखना ही ीखना है ” और वोह मीना के घर जाती रही और ब ीख सलया। अब हमें इिंडस्ट्रीयल मशीन की जरुरत थी, नई मशीन तो बहुत महूँ घी थी, इ की तलाश करने लगे।

सलए

ैकिंड हैंड मशीन

कुछ ददनों बाद तप्ृ ता ने ही बताया कक एक औरत मशीन बेच रही थी क्योंकक उ का ददक था और कपडे

ीने

े अ मथक थी। हम दोनों

र्प्रिंग िील्ड रोड पर उ

को जोडों के घर गए,

मशीन दे खख जो कािी पुरानी थी लेककन चलने में बहुत अच्छी थी। 25 पाउिं ड की उ ने दे दी। मशीन को खोल कर हम ने कार में ही रख सलया और घर ले आये। अब मीना काटे हुए अनारै कों के बण्डल हमारे घर छोड जाती और कुलविंत जब भी वक्त हो अनारै क

ीती रहती।


एक बात और भी थी कक यह एक स्लेव लेबर की तरह ही होता था क्योंकक इतनी समहनत

कोट बनाने के स िक छै सशसलिंग समलते थे और कोई गोरी तो इतने कम पै े पे काम करना ोच भी नहीिं थी

कती।

ोचता हूँ हमारी औरतों ने जो काम ककया, उ का अिंदाजा लगाना

ही मुश्श्कल है , आज के बच्चे जाऊिं कुलविंत ने श्जतना मेरा कहानी बहादर और उ

ुन कर ही मुिंह द ु री तरि कर लेते हैं। कहीिं सलखना भल ना

ाथ ददया, उ

को मैं कुछ भी दे नहीिं

की अधािंगगनी कमल की थी। इ

कता हूँ । उधर यही

को हम लह प ीने की कमाई

कहें गे तो कोई अत्कथनी नहीिं होगी। मेरे काम की सशफ्टें ऐ ी थीिं कक मुझे वक्त बहुत समल जाता था। कभी मैं ुबह पािंच वजे काम पे जाता तो वोह सशफ्ट एक दो वजे खत्म हो जाती, इ ी तरह अगर मैं दो वजे काम पे जाता तो

ुबह

े दो वजे तक मेरे पा

वक्त ही वक्त होता था। इ

कक कभी मैं बच्चों को स्कल छोड आता या ले आता और इ जाता और वोह घर के

ारे काम करके मशीन पे बैठ कर कपडे

का िायदा हमें यह था

े कुलविंत का टाइम बच

ीती रहती। लेककन यह

काम कोई रे गुलर नहीिं था, कभी मीना काम दे जाती, और कभी उ

के पा

काम नहीिं होता

था और कुछ दे र बाद मीना ने यह काम बिंद कर ददया और वोह माकककट में कपडे बेचने लगी. कुलविंत को अब काम चादहए था. पता चला कक टे म्पल स्ट्रीट में एक इिंडडयन ने छोटी िैक्ट्री खोली है , कुलविंत,र्पिंकी रीटा को

कल छोड कर

िंदीप को पुश चेअर में बबठा कर

टै म्पल स्ट्रीट जा पहुिंची जो टाऊन में थी और कुलविंत को वहािं पहुूँचने में एक घिंटा लगा. काम समल गगया लेककन यहाूँ कपडे अलाएदा कक म के थे और इन को की जरुरत थी. कुलविंत वहािं मशीन पर बैठ कर काम

ीने के सलए ट्रे ननिंग

ीखने लगी और बेटा

िंदीप वहािं

खेलता रहता. कुलविंत को यह काम प िंद नहीिं आया और वै े भी रोज दो घिंटे तो आने जाने में लग जाते थे, इ

सलए एक हफ्ते बाद ही काम छोड ददया. अब पता चला कक बच्चों के

कल के नजदीक ही एक स हिं और उ

की बीवी घर में ही कुछ मशीनें रख कर काम कर

रहे थे. कुलविंत और मैं वहािं जा पहुिंचे और उनको तो वककर की जरुरत थी ही, उ ी वक्त उन्होंने ट्रे ननिंग दे नी शुरू कर दी. यह लोग िर वाले मोटे कोट बना रहे थे. कुछ ददनों में ही कुलविंत ने यह काम

ीख सलया और वोह लोग हमारे घर में ही कटपी

मशीन तो कुलविंत के पा

थी ही, इ

प्लाई करने लगे.

सलए वोह घर बैठी काम करती रहती. चार महीने

कुलविंत ने यह काम ककया और पै े भी ठीक ठाक थे लेककन जो िर वाले कोट थे उन में डस्ट या धल बहुत ननकलती थी, और यह स हत के सलए खा था, इ सलए ोच कर हम ने यह काम भी बिंद कर ददया. इ

कर बच्चों के सलए ठीक नहीिं

के बाद एक जगह और कुलविंत ने काम ककया, और यह लोग स हिं थे लेककन हे रािेरी

करते थे और पै े नहीिं दे ते थे. यहाूँ भी काम छोड ददया ककओिंकक वो पै े नहीिं दे ते थे, कहने को वोह कट्टर स हिं थे लेककन हे रािेरी करते थे. कई महीने उन्होंने पै े नहीिं ददए, किर मैंने गगयानी जी को बताया. गगयानी जी उनके घर गए और उनको बहुत कुछ कहा और आखर में


उन्होंने पै े दे ददए. कुछ दे र बाद हमारे घर

े पिंदरािं समनट की दरी पर एक इटै सलयन ने

िैक्ट्री खोली, श्ज

का नाम था “कमकन नघया “. कुलविंत वहािं जा पहुिंची. उन्होंने उ ी वक्त िैक्ट्री में जीनज की पैंटें और टॉप बनते थे. यह ट्राऊजजक कम्प्लीट बनानी

रख सलया. इ

पडती थी और यह भारी होती थीिं। कुछ हफ्ते काम ककया लेककन कुलविंत इ

े तिंग आ गई

और छोड ददया। चार पािंच महीनों के बाद कुलविंत को पता चला कक कमकन नघया में अब ट्राऊजजक और टॉप को कई दह ों में बनाना शुरू कर ददया है और पहले किर वहािं जा पहुिंची और काम पर लग गई।

े आ ान है । कुलविंत

अब इ

िैक्ट्री में कुलविंत ने बहुत काम ककया और िैक्ट्री का मालक ऐिंडड्रउ और उ की पत्नी रीटा कुलविंत का बहुत ररगाडक करते थे और िोरमैन नील कुलविंत को कहता रहता कक

“अपने जै ी काम करने वाली लडककआिं ले के आ” और कुलविंत ने बहुत औरतों को काम पे लगवाया। पािंच ाल बाद यह िैक्ट्री बिंद हो गई क्योंकक बैंक का कजाक उन पर बहुत हो गगया था। कुछ दे र कुलविंत बेकार रही, किर मेरे

ाथ ही एक लडका काम ककया करता था, श्ज

का नाम बलबीर स हिं भिंडाल था, उ ने काम छोड कर पहले पहल बडी बडी माकककटों में कपडे बेचने शुरू ककये, किर उ

ने बैंक

े लोन लेकर कपडे की िैक्ट्री कायम कर ली। उ

अब जरुरत थी काम करने वाली औरतों की, तो कुलविंत उ अब कुलविंत काम में

को

की िैक्ट्री में काम करने लगी।

ककलड थी, श्जतना भी काम कर लो, उतने ही पै े समलते थे। यिं तो

अपने लोगों की श्जतनी भी िैश्क्ट्रयािं होती थीिं, उन में पै े कम ही समलते थे, किर भी इन िैश्क्टओिं में

ब अपनी औरतें ही होती थी और हमारी औरतें यहािं आदमी काम करते हों वहािं

काम नहीिं करती थी। तन्खआ ु ह बेशक कम थी लेककन रै गल ु र इनकम आ जाती थी और काम पर भी

भी अपनी औरतें होने के कारण हिं

खेल कर काम करती रहती थीिं, और इ

लोगों के िैसमली बजट में भी आ ानी हो गई थी। कुछ

ाल बाद यह िैक्ट्री भी घाटे में जाने लगी और बिंद हो गई। अब कुलविंत रामे की

िैक्ट्री में जा लगी। यह रामा पिंडडत अमत ृ लाल का लडका था। अमत ृ लाल गगयानी जी के

ाथ गुड ईयर िैक्ट्री में काम ककया करता था। अमत ृ लाल कई भाई थे, श्जनके बारे में मैं

बहुत पहले सलख चक् ु का हूँ क्योंकक अमत ृ लाल के दो छोटे भाई तो मेरे ाथ ही रामगदढ़या स्कल िगवाडे में पडा करते थे। कुछ ाल बाद यह िैक्ट्री भी बिंद हो गई और कुलविंत दीप की िैक्ट्री में काम करने लगी, यह िैक्ट्री बबल् टन रोड के नजदीक थी। दीप या उ डैडी

भी औरतों को हर

कुलविंत ने कुछ

ुबह घरों

का

े ले जाता था और शाम को छोड जाता था। यहािं भी

ाल काम ककया लेककन यह भी बिंद हो गई क्योंकक यह िैक्ट्री भी िाइनैंशल

डडकिकल्टीज में आ गई थी। अब कुलविंत बेकार हो गई थी। कुछ महीनों बाद दीप ने स्टारबब्रज टाऊन में काउिं ल का काम करना शुरू कर ददया और वोह हमारे घर आया और कुलविंत को वहािं काम करने को बोला। कुलविंत और कुछ और औरतें

अब स्टारबब्रज काम करने लगी। काउिं ल अच्छे पै े दे ती थी लेककन छै महीने बाद यह काम


भी बिंद हो गगया। कुछ महीने बाद लैस्टर के एक बबजने के नजदीक कपडे की िैक्ट्री खोली श्ज काम करने लगी। कुछ

मैंन ने हमारे टाऊन की डडली रोड

का नाम था अकािंटो टै क् टाइल। कुलविंत अब वहािं

ाल उ ने काम ककया। एक ददन एक भारी बिंडल था कपडों का,

उ को उठाते ही कुलविंत की पीठ में इतना ददक हुआ कक उ की चीखें ननकलने लगीिं। िैक्ट्री वाले कुलविंत को गाडी में बबठा कर घर छोड गए। मैं घर में ही था। उ ी वक्त मैं कुलविंत को गाडी में बबठा कर हस्पताल ले गगया। वहािं उन्होंने एक् रे और एमआरआई स्कैन ककये और पता चला लोअर बैक की एक तरि

सलप हो गई थी। बहुत कुछ ककया गगया, कर्फश्जओथेरपी भी की गई लेककन ठीक नहीिं हुई और डाक्टरों ने अनकिट कर ददया। छै

ाल तक हकमत की ओर

े कुलविंत को इिंनकपैस्टी िैननकिट समलता रहा, श्जतने पै े

कुलविंत काम करके ले आती थी, उ रहे और इ

के बाद 60

े कुछ कम उ

ाल की उमर होने पर उ

ब का हक़ है और अब श्जिंदगी के आखरी मैंने

े हड्डी

ारािंश ही सलखा है लेककन इ

ािं

को हकमत की तरि

े समलते ही

को स्टे ट पें शन समलनी शुरू हो गई जो

तक समलती रहे गी। कुलविंत की श्जिंदगी का

के बीच बहुत कुछ हुआ और बच्चों को हम ने कै े िं ाला, आगे के एर्प ोड में सलखग भ िं ा कक वलाएत की श्जिंदगी िलों की ेज नहीिं थी बश्ल्क

काूँटों की आराम चलता…

ेज थी लेककन हम जवािंन थे और हूँ ते हूँ ते वोह ददन बबता ददए और अब े बजुगी का मजा ले रहे हैं।


मेरी कहानी - 112 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 14, 2016 र्पछले कािंड में मैंने मुक्त र तौर पर कुलविंत के बारे में सलखा था कक ककतना उ

ख्त काम

ने ककया था और आखर में अकािंटो टै क् टाइल में उ

िैक्ट्री में बहुत था। काम पर भी

ाल उ

को लोअर बैक में ददक हुआ था। ने काम ककया था और 1998 में उ को यह काम छोडना पडा

खखओिं में आप ी प्रेम बहुत था और ारा ददन काम भी करती और बातें भी करती रहतीिं। मेरे काम की सशफ्टें ऐ ी थी कक मुझे बहुत वक्त समल जाता था,

इ सलए मैं घर की शॉर्पिंग भी कर लेता था और कभी कभी खाना बनाकर भी कुलविंत को

काम पर दे आता था। मुझे यह बात सलखते हुए कोई शमक नहीिं है कक हम दोनों समआिं बीवी समलकर खाना बनाते थे, कभी वोह बना लेती और कभी मैं। खाना बनाने में मैं तो पहले े ही बहुत एक् पटक था क्योंकक मैं तो स्कल के ददनों में भी खाना बना लेता था। जब हमारी शादी हुई थी तो कुलविंत भी तो अभी यिंग ही थी, और बहुत खाने बनाने उ को मैंने ही स खाये थे।

कभी कभी जब मैं खाना बनाकर िैक्ट्री में कुलविंत को दे आता तो उन की कुछ मेरे खाने का स्वाद चखती तो है रान हो जातीिं और हिं

कर कहतीिं, “तुमारी

खीआिं भी माूँ का

खाना बहुत स्वाददष्ट है ” और यह बात कुलविंत घर आकर मुझे बताया करती थी और मैं हिं दे ता था। ब काम हम समल जल ु कर ककया करते थे और श्जिंदगी में हमारा कभी भी कोई खा

झगडा नहीिं हुआ, हाूँ छोटी मोटी नोंक झोंक तो हर पनत पत्नी में होती ही है । र्पछले एर्प ोड में मैंने कुलविंत के बारे में सलखा था कक ककतनी जगह उ ने काम ककया और छोडा। इ

बीच हमने बच्चों को कै े

िंभाला और उन को स्कल कै े छोडा, जबकक हम दोनों

काम करते थे ? तो यह भी एक बडी जदोजहद थी। अभी दो ददन पहले ही मैं कुलविंत को पछ रहा था कक हमने उ

वक्त बच्चे कक

कक

के पा

छोडे थे तो बहुत बातें हमें याद आ नहीिं थी रहीिं। किर कुलविंत ने र्पिंकी को टे लीिन ककया कक वोह ककन ककनके पा उ वक्त रहे थे, तो र्पिंकी ने बहुत बातें बताईं और हम है रान हो गए। किर हम कक पता ही नहीिं चला कक कै े बच्चों की परवररश हो गई।

ब हिं ने लगे

जब र्पिंकी रीटा लेस्टर स्ट्रीट न रक ी स्कल में पडती थीिं तो जब कुलविंत काम करने का

ोचने लगी तो

िंदीप को

िंदीप तो अभी बहुत छोटा था। म्भालना मुश्श्कल था। ज्ञानों श्ज का

श्जकर मैं पहले कर चक् ु का हूँ और मेरी बहन बनी हुई है , वोह कुलविंत को बोली कक हम बच्चों का कोई कर्फर ना करें , वोह िंभाल लेगी। इ तरह पहले पहल िंदीप ज्ञानों के घर

रहने लगा। ज्ञानों की पोती रशपाल जो अब कैनेडा में रहती है , वोह भी इ ी प्राइमरी स्कल में जाया करती थी और ज्ञानों ही उ े छोडने और लेने जाती थी। इ पहले कुलविंत र्पिंकी रीटा को स्कल छोड कर

तरह काम पर जाने

िंदीप को बहन ज्ञानों के घर छोड कर चले


जाती। जब मैं काम

े आता तो

पोता और पोती और थे जो

िंदीप को वहािं

े लेकर घर ले आता था। ज्ञानों के एक

िंदीप की उम्र के ही थे और

िंदीप उनके

ाथ खेलता रहता,

इ ी तरह टिं डन की पत्नी तप्ृ ता के छोटे दो लडके दीपी और राज इ ी न रक ी में पडते थे। कभी कभी

िंदीप तप्ृ ता के घर छोटे दीपी

े खेलता रहता।

भी लोग एक द रे की मदद बहुत करते थे लेककन आज यह नहीिं है और श्ज ने भी अपना बच्चा म्भालना हो, उ को कक ी रै जस्टडक डे केअर ट ैं र में दाखल करवाना पडता है श्ज के सलए

ौ दो

ौ पाउिं ड हफ्ते के दे ने पडते हैं, लिंदन में तो तीन चार

ौ पाउिं ड हफ्ते का दे ना

पडता है और इतने पै े दे कर तन्खआ ु ह

े पै े बहुत कम बच पाते हैं। अभी भी हम बजुगक लोग अपने पोते पोनतओिं की दे ख भाल करते हैं, उनको स्कल छोड और ले आते हैं लेककन आगे यह

ब बिंद होने वाला है और यह तब तक ही है जब तक हम भारत

े आये लोग

श्जिंदा हैं। यहािं के पैदा हुए बच्चे अपने पोते पोनतओिं का नहीिं करें गे। हमने अपने पोतों को पाला पो ा है , इ सलए उनका लगाव भी हमारे ाथ है , इ ी तरह मेरा दोस्त बहादर और उ

की पत्नी कमल भी अपने पोते पोती को स्कल छोड और ले आते हैं और इ ी सलए

बच्चों का भी दादा दादी

े लगाव है ।

मय एक जगह खडा नहीिं होता। अब तो इिंडडया भी बहुत बदल रहा है । हमारे बच्चे अब धीरे धीरे बडे हो रहे थे और कुछ दे र बाद र्पिंकी रीटा को प्राइमरी स्कल समल गगया जो गेट् स्ट्रीट में था और इ

का नाम था

नजदीक था लेककन ज्ञानों के घर

ेंट ऐिंडड्रउज प्राइमरी स्कल। यह स्कल न रक ी

े कुछ दर था, इ

सलए हम

े कुछ

िंदीप को गौरजब्रुक रोड पर

जो हमारी रोड के र्पछली ओर ही थी, एक औरत के घर छोडना शुरू कर ददया, श्ज दो या तीन पाउिं ड हफ्ते के दे ते थे लेककन मैं काम

े आ कर

वोह शुरू

े ही अपनी उम्र के सलहाज

ारा ददन

दीप उ के पा

िंदीप को ले लेता था। र्पिंकी एक तो रीटा

पकडकर घर को चली आती। अगर मैं र्पिंकी रीटा वहािं चले जाती और

को हम

नहीिं रहता था क्योंकक

े एक

ाल बडी थी, द रे

े बडी रही है । वोह स्कल के बाद रीटा का हाथ िंदीप को उ

औरत के घर

े ना ला

कता तो

िंदीप को लेकर अपने घर आ जाती। चाबी र्पिंकी की जेब के

ाथ बाूँधी होती थी, इ सलए वोह चाबी

े दरवाजा खोल कर घर में आ जातीिं और

िंदीप को

खाने के सलए कुछ बना कर दे ती और खद ु खाती। आज यह

ब क़ानन के खखलाि है और पुसल

हमारा छोटा पोता अब 11

माता र्पता के खखलाि के

ाल का है और अभी भी कुलविंत उ

को हर

कर आती है और शाम को उ े लेने जाती है । दो ददन पहले ही हम इ हिं

कर

कती है ।

ुबह स्कल छोड

बात को याद करके

रहे थे कक ककतना अच्छा जमाना था वोह जब कोई कर्फर ही नहीिं था क्योंकक राइम ना

होने के बराबर था। इ

स्कल में दोनों बेदटयािं स्कल यननिामक में बहुत न् ु दर लगती थीिं और उनकी बातें भी बहुत अच्छी लगती थीिं। इ स्कल में अभी एक ाल ही हुआ था कक पता चला कक यह स्कल बिंद हो जाएगा और यह स्कल कोलमैन स्ट्रीट में सशफ्ट हो जाएगा जो


कुछ दरी पर था। इ ी

मय गगयानी जी और उन का

सशफ्ट हो गगया था और उ कीमतें भी उ

का बेटा ज विंत भी कोटक रोड पर आ गगया था। मकानों की

वक्त ददनबददन बड रही थीिं। क्योंकक इिंडडया जाकर हमारा खचक कािी हो

गगया था और अब हमारे पा

इतने पै े भी नहीिं थे कक नया घर ले

कोसशश करने लगे कक ज़्यादा एक ददन

ारा पररवार गोल्डथौनक दहल पर

ुबह

े ज़्यादा लोन ले के घर ले

कें। किर भी हम

कें।

ुबह ही ज विंत का टे लीिन आया और ज विंत बोला, “गुरमेल ! कोटक रोड

पर एक घर पर एजेंट िॉर

ेल का बोडक लगा रहा है , जल्दी आ के मकान दे ख ले”. मैंने

कुलविंत को यह बताया तो वोह गुस् ा हो गई और बोली, “पै े पा ?”. मैंने कहा, “ले हो या नहीिं, त मेरे

नहीिं हैं, घर कै े लेंगे

ाथ तो चल !” गुस् े में ही कुलविंत मेरे

ाथ चल

पडी और हम कोटक रोड पर जा पहुिंच।े एक गोरे ने दरवाजा खोला और हम ने मकान दे खने के सलए बोला। गोरा गोरी और उ की बेटी हम को भीतर ले गए और ारा मकान ददखाया। जब वोह हमें गाडकन में ले के गए तो गाडकन दे खते ही कुलविंत ने पिंजाबी में मुझ को कहा, “जी घर ले लो”. गसमकओिं के ददन थे और गाडकन िलों

े भरा हुआ था और तीन चार िल के बि ृ भी थे श्जन को ऐपल पेअर और चैरी लगे हुए थे। हमने गोरे को बोल ददया कक हम यह मकान लेंगे और वोह कक ी और के ाथ ौदा ना करे । कुलविंत को घर छोड कर मैं

ीधा बैंक गगया, वहािं

े कुछ पै े सलए और एस्टे ट एजेंट के

दफ्तर में पहुिंचा। मैंने उ को बता ददया कक श्जतने का मकान लगा हुआ है , उ ी कीमत पर मैं खरीदिं ग ु ा। एस्टे ट एजेंट ने मकान मालक को टे लीिन ककया कक अगर उ को मिंजर है तो वोह मकान बेच दे । मालक के हािं कहने पर एजेंट ने मुझ

े डडपॉश्जट के पै े सलए और

र ीद दे दी। एजेंट ने एक वकील ररकमें ड ककया। मैं उ ारी डटे ल बताई, वकील ने अपनी िी और उ

वकील के दफ्तर में पहुिंचा और मुझे बता दी। वकील का दफ्तर वाटरल रोड पर था

का नाम था समस्टर स्वेन जो कब का यह दनु नआ छोड चक् ु का है । वहािं

ननकलकर मैं

ीधा बैंक पहुिंचा और 90 % लोन लेने को बोला। बैंक मैनेजर ने मुझ े मेरी तन्खआ ु ह के बारे में और बैंक में ककतने पै े थे के बारे में पुछा। तन्खआ ु ह की सलप्प मेरी जेब में ही थी, और उ को पकडा दी। मैनेजर ने मुझ

े कहा कक अगर लोन मिंजर हो गगया

तो वोह मुझे घर लैटर पोस्ट कर दें गे।

यह काम करके मैं घर आ गगया। अब हम को यही गचिंता थी कक लोन मिंजर होगा या नहीिं। कुछ ददन तक बैंक थे और

े खत आते रहे क्योंकक वोह मेरे बैंक अकाउिं ट के बारे में जानना चाहते

ाथ ही मकान के बारे में

े पता करना चाहते थे कक इ

वेयर की ररपोटक जानना चाहते थे और

ाथ ही काउिं ल

मकान में कोई ऐ ी बात तो नहीिं श्ज का पश्ब्लक को कोई

नुक् ान पहुूँचने वाला हो या मकान में कोई खतरनाक बात हो। कुछ हफ्ते बाद घर के बारे में

भी ररपोट़ें बैंक के पा

गगया था। हमारे

पहुूँच गईं और बैंक का खत मुझे आ गगया कक लोन मिंजर हो

े एक बोझ उत्तर गगया और उ

ददन का इिंतजार करने लगे जब हम


को घर समलना था। वकील का खत भी हमें आ गगया और वोह भी घर के बारे में रर चक करने लगा। श्ज

घर में हम रह रहे थे इ को अब हम ने बेचना था क्योंकक हमारा यह ही

प्लैन था कक हमने इ

घर के पै ों

लेनी थी ताकक हम आ ानी

े घर चला

हम ने खद ु ही एक बोडक पर िॉर मझ

बचा

े बैंक लोन आधा कर दे ना था और आ ान ककश्तें कर

कें कक यह घर िॉर

कें।

ेल सलख कर बोडक लगा ददया ताकक

ेल है । यह हमने इ

डक पर जाते लोग

सलए ककया, ताकक हम एजेंट का खचक

कें लेककन मकान के सलए कोई ग्राहक आ नहीिं रहा था। हम ने भी िै ला कर सलया

था कक श्जतनी दे र भी लगे, हम अपना घर खद ु ही बेचेंगे। नया घर समलने में कािी हफ्ते लग गए। एक ददन वकील का खत आया कक हम घर की चाबी ले लें। नए घर की नई उमिंग, हम खश ु ी समस्टर

े झमने लगे। द रे ददन बच्चों को स्कल छोडने के बाद मैं और कुलविंत

वेन के दफ्तर में जा पहुिंच।े समस्टर वेन ने हमें वधाई दी और एक पेपर पर मेरे ाइन करवा कर चाबी हमें दे दी। चाबी ले कर हम ीधे नए मकान को आये। ताला खोल

कर भीतर आये और दे खा कक पहले मालक ने अपना

ामान ले जाने के बाद

िाई की हुई थी, कहीिं पे भी कोई ननशाूँ नहीिं था और आ रही थी।

ारे घर

ारे मकान की

े एअर फ्रैशनर की

ुगिंध

हम बाहर गाडकन में गए तो मन खश ु हो गगया क्योंकक हमारे घर का गाडकन तो बबलकुल ही अच्छा नहीिं था क्योंकक उ

वक्त हमें इतना शौक ही नहीिं था कक गाडकन में िल लगाएिं, हाूँ

कुछ मलीआिं, धननआ और पुदीना ही बीजा हुआ था। कुछ दे र बाद हम अपने पहले घर आ गए और बच्चों के स्कल का इिंतजार करने लगे। मुझे याद नहीिं, शायद इ ददन मैंने काम

े छुटी ली हुई थी। स्कल टाइम पर हमने बच्चों को सलया और उन्हें नया घर ददखाने चल पडे। जब हम घर में दाखल हुए तो बच्चे दे खकर खश ु हो गए। िंदीप गाडकन में खेलने लगा, तभी गोरी पडो न एसल न का लडका करस्टोिर जो है ज्जज के नीचे

िंदीप की आयु का ही था, गाडकन की

िंदीप को बुलाने लगा, “little boy ! you want to play with me ?”.

िंदीप को अभी इिंश्ग्लश बोलनी आती नहीिं थी, इ अब हम ने एक वैन हायर की और घर का

सलए वोह मुस्कराता ही रहा।

ामान सशफ्ट करने में म रूि हो गए। हमारा

प्लैन यह ही था कक नए घर में नया िनीचर ही डालें गे और परु ाना वही​ीँ रहने दें गे और खरीदने वाले को ही दे दें गे क्योंकक उ थे। हमने भी इ ऑक्शन

मय लोग अक् र

ैकिंड है ण्ड िनीचर ही खरीदते

घर में पुराना िनीचर ही सलया था जो अक् र गोरे और हमारे लोग

े खरीद लाते थे। उ

मय पुरानी बैड लोहे के फ्रेम की होती थी, श्ज

पर श्स्प्रिंग

होते थे। यह बैड बहुत स्ट्रॉन्ग होती थी कभी खराब नहीिं होती थी, स िक ऊपर का मैट्रे ही लोग नया ले लेते थे लेककन अब नए डडजाइन की आखण शरू ु हो गई थी जो दे खने में भी ुन्दर लगती थी। हम ने घर का

ारा िनीचर एक िनीचर की दकान पर जा कर ऑडकर कर

ददया जो एक हफ्ते बाद वोह घर छोड गए। हमारा

ारा

ामान इ

नए घर में आ गगया था


और िनीचर आने

ब ठीक हो गगया और एक ददन हम इ

में सशफ्ट हो गए। पुराने घर

की चाबी हम एक पडो ी को दे आये ताकक दे ख भाल की जा हुए, उधर हमें एक ग्राहक समल गगया श्ज कुछ हफ्ते बाद हमें इ

के

ाथ हमारा

घर के पै े समल गए और हमने इ

के। इधर हम घर में सशफ्ट ौदा तय हो गगया। में

े कुछ पै े रखकर, शेर्

बैंक को पे करके लोन आधा कर सलया। अब हमारे सलए बहुत आ ान हो गगया क्योंकक घर की हर महीने जाने वाली ककश्त आधी हो गई थी। हमारे सलए हर बात के सलए आ ान हो गगया, र्पिंकी रीटा का स्कल स िक दो समनट की दरी पर था, टाऊन को जाने के सलए ब स्टॉप भी पची

ती

ही थीिं, पोस्ट ऑकि और इ

ोने पे

भी एसशयन दक ु ाने पा

ब े बडीआ बात डाक्टर की

हलतें होने के कारण हम यहािं

ोचा लेककन इ

की जायदाद हो। चलता…

भी नजदीक और

ेंटर और

जकरी भी नजदीक थी

ुहागा था ज्ञानों और ज विंत का घर नजदीक होना जो पािंच समनट ही दर थे।

घर को इतनी

जाने का

गज की दरी पर ही था, शॉर्पिंग

घर

े कभी सशफ्ट नहीिं हुए, एक दो दिा दर े हमारा मोह इतना हो गगया था जै े यह घर हमारे पुरखों


मेरी कहानी - 113 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 17, 2016 वाल् ाल गैरेज

े ट्रािं िर होने के बाद पाकक लेन गैरेज में काम शुरू कर ददया था. कुछ

महीनों के बाद ही मुझे नई किंडक्ट्रे

पनत भी इ ी गैरेज में ड्राइवर था। इ इ

समल गई। यह एक वैस्ट इिंडडयन औरत थी और इ किंडक्ट्रे

का नाम था सम ज कौलीमोर। इ

ुभाव ऐ ा था कक ज़्यादा बोलती नहीिं थी और उ के र्वपरीत इ

की इ

बात

का

का

े मुझे परे शानी होती थी,

का पनत बहुत हिं मुख था और धमी था, चचक हर रर्ववार जाता था, जब कभी समलता, बहुत खश ु हो कर बोलता था। मुझे यह कभी मझ नहीिं आई कक वोह आप में इकठे काम क्यों नहीिं करते थे। आम ररवाज उ वक्त यही होता था कक जो दटकटों और मशीन वाला बॉक्

होता था, उ

को ड्राइवर ही ले कर चलता था और औरत को उठाने नहीिं

दे ते थे, यह एक कक म की औरत की इजत करने जै ा ही होता था। मैंने उ

को खश ु करने

की बहुत कोसशश की लेककन मझ ु े दो तीन महीने इ काम में लग गए। पहले पहल मैं द रे ड्राइवरों े किंडक्टर बदलने के बारे में कहता रहता था क्योंकक मैं सम ेज कौसलमोर े पीछा छुडवाना चाहता था लेककन

भी उ े जानते थे और उ े अपने

ाथ लेना नहीिं चाहते थे।

वहमों भरमों वाला तो मैं नहीिं हूँ लेककन एक दिा एक अजीब बात हो गई। कभी कभी भख लगती थी तो कक ी दकान नजदीक ही किश ऐिंड गचप् पुछा कक अगर उ

े कुछ ले कर खा सलया करते थे। एक ददन भख लगी तो

की दकान थी। मैं किश ऐिंड गचप लेने चला तो कौसलमोर

को भी कुछ चादहए तो लेता आऊूँ। उ के पेट में हमेशा गै

े भी

रहती थी

और बडे बडे दढकार लेती रहती थी और मैं उ की सममरी दोस्तों की महिल में ककया करता था। वोह मुझे बोली, ” बामरा, दे आर नो गुड ट य “. मैं दकान में गगया और किश ऐिंड गचप्

ले आया और खाने लगा। सम ेज कौसलमोर मुझे खाते दे ख कर किर बोली, ” बामरा,

दे आर नो गुड ट य, दे आर टअ औयली “. मैं मुस्करा कर खाता रहा और खाकर मजा आ गगया लेककन पता नहीिं क्यों कौसलमोर के लर्फज कक यह अच्छे नहीिं मेरे ददमाग में गिंजते रहे । शाम को काम

े वाप

आ कर रात का खाना खाया और टीवी दे ख कर द

वजे

गए। आधी रात को पेट में ददक होने लगा, मैं उठ कर बैठ गगया। कुलविंत को भी जाग आ गई और ककया बात थी मझ ु

े पछ ु ा। मैंने बताया तो वोह नीचे ककचन में गई और

ौंि

अजवायन और कुछ और म ाले डाल कर एक बडा कप्प चाए का ले आई। चाए पी कर मैं

लेट गगया लेककन ददक कम नहीिं हो रही थी और बढ़ती ही जा रही थी, किर कुलविंत हौट वाटर बॉटल ले आई। बहुत कुछ ककया लेककन ददक बढ़ता ही जा रहा था। आखर में मैंने एमरजैं ी डाक्टर के सलए टे लीिन ककया और डाक्टर जल्दी ही आ गगया। ब कुछ पछ कर उ ने मुझे छोटी छोटी गोसलआिं दीिं। दो घिंटे बाद मुझे कुछ कुछ आराम आने लगा और मुझे नीिंद आ गई।


द रे ददन मैं काम पर चले गगया और कौसलमोर को दे खते ही मन में अजीब

ी घुटन हुई और मैंने उ े बुलाया नहीिं। आधा ददन बीत गगया, और कोई बात नहीिं हुई। आखर में कौसलमोर ही बोली, ” had trouble with mrs. bhamra ?”. अब मुझे हिं ी आ गई और

बोला, ” these ladies are too cruel mrs. kaulimore !”. कुछ और बातें हुईं और पता नहीिं क्यों इ ददन के बाद वोह मेरे ाथ घुल समल गई और हिं हिं बातें करने लगी। अब हमारी जोडी बहुत अच्छी हो गई और हर दम हम एक द रे को हूँ ाते रहते। द रे ड्राइवर है रान हो कर मझ ु े पछते, ” भमरा, कौन ी जडी बटी इ को दे दी है , यह तो कक ी के ाथ बोलती ही नहीिं थी “. अब मेरे ददन अच्छे बीतने लगे। एक दिा सम ेज कौसलमोर

बीमार पड गई। उ

के पनत ने मझ ु े बताया तो मैं उ के

घर माशक लेंन पैन्डीिोडक में था। वोह

ाथ उ के घर चला गगया। उ

का

ोिे पर बैठी थी, मझ ु े दे खते ही उ के चेहरे पर

मस् ु कराहट आ गई और अपनी बेटी ककटी को बोला कक वोह मेरे सलए चाय लेकर आये।

कौसलमोर की बेटी ककटी बबलकुल अपनी माूँ जै ी थी, मैं ने उ को कह ददया, ” you are a carbon copy of your mum kity !”

भी हिं

पडे। इ

के बाद तो श्जतनी दे र हम ने

इकठे काम ककया, वक्त बहुत अच्छा गुजरा। अब हम अपने नए घर में आ गए थे. पुराने घर की कहानी यह थी अगर हम एजेंट को दे

दे ते तो शाएद जल्दी बबक जाता लेककन जब बबका तो बहुत जल्दी बबक गगया. किर ज विंत का ही एक दोस्त था जो उ के ाथ काम करता था और वोह समआिं बीवी कक ी के घर ककराए पर रहते थे. एक ददन वोह हमारे नए घर में ज विंत के की इच्छा जाहर की. इ

शख्

का नाम था

ाथ आया और मकान दे खने

ाध स हिं . मैं और ज विंत

ाध स हिं को गाडी

में बबठा कर काटक र रोड पर ले गए और उ को घर ददखलाया. परु ाना िनीचर हमने इ में ही छोड ददया था, इ

सलए मैंने

ामान भी शासमल था. यह

न ु कर

घर

ाध स हिं को बता ददया कक मकान की कीमत में ाध स हिं भी खश ु हो गगया ककओिंकक उ

ामान खरीदने की कोई जहमत नहीिं उठानी पडने वाली थी. हमारा

ारा

को भी

ौदा हो गगया.

ाध

बबचारा पडा सलखा नहीिं था और उ को कुछ पता नहीिं था कक लोन कै े लेना था और वकील कै े करना था. मेरा वकील

ाध स हिं के सलए काम नहीिं कर

कता था ककओिंकक कानन के

मुताबक खरीदने और बेचने वाले का वकील इलग्ग इलग्ग ही होता है , इ सलए हम वाटरल रोड पर ही एक द ु रे वकील के पा

जा पहुिंचे और

ारी डीटे ल सलखवा दी गई.

अब बात थी लोन की, तो मैं अपनी ही बैंक के मैनेजर के पा मैनेजर

ाध स हिं को ले गगया,

े बात की और यह भी ककस्मत वाली बात ही थी कक मैनेजर मान गगया. उ

लोन कुछ मुश्श्कल

े समलता था. हमारा बडा काम हो गगया था और मेरी भी

हो गई थी. एक ददन हमने

रददी खतम

ाध स हिं और उ की पत्नी को अपने घर खाने पे बुलाया.

ज विंत और उ की पत्नी बलबीरो भी आ गए और उ और कुलविंत का पररचय

मय

ाध स हिं की पत्नी

रात हमारे घर में कािी रौनक थी

े भी हो गगया. इ के चार हफ्ते बाद ही

ाध


स हिं और उ की पत्नी इ

घर में आ गए. अब तो

ाध स हिं और उ

की पत्नी दे बो के

पोते पोतीआिं हैं और पडे सलखे हैं लेककन उ

वक्त उन्होंने हमारा बहुत रीगाडक ककया था. अब भी जब कभी दे बो कुलविंत को समलती है तो बहुत खश ु हो कर बोलती है . अब तो मैं बाहर जाता नहीिं हूँ लेककन कुछ

ाल पहले जब भी कभी

तो बगैर पछे ही बीअर का ग्ला

ाध स हिं मुझे कक ी पब्ब में समलता था,

टे बल पर मेरे आगे रख दे ता था ककओिंकक यह इिंगलैंड की

ेवा या इजत कहलाती है . मैं भी बाद में उ के सलए ग्ला के आगे ग्ला इ

रखना कक ी की इजत करना

ले आता था लेककन पहले कक ी

मझा जाता है .

नए घर में आने के बाद जल्दी ही र्पिंकी और रीटा भी इ

कोलमैन

ट्रीट में अभी भी है और यह हमारे घर

े पचा

नए स्कल में आ गईं जो

गज की दरी पर ही है . अब

हमारे सलए बहुत आ ान हो गगया था. ज विंत का घर भी पची ती गज ही था. ज विंत अपनी िैक्ट्री में रात को काम करता था और उ की पत्नी बलबीरो भी कक ी कपडे की िैक्ट्री में काम करती थी. ज विंत ने हमें कहा कक वोह

िंदीप को अपने पा

रख सलया

करे गा और कुलविंत बेकिर हो कर काम पे जाए. मैं भी ज विंत को कुछ पाऊिंड हर हफ्ते दे ददया करता था श्ज अपनी बैड में कर

े वोह बीअर पी लेता था और वोह भी खश ु था. ज विंत ददन को

ोया रहता और

िंदीप वहािं अपने खखलौनों

े खेलता रहता, कभी ज विंत उठ

िंदीप को कुछ खाने के सलए दे दे ता था. स्कल नजदीक होने

मुश्श्कल नहीिं थी और वोह स्कल घर आ जातीिं जो

े ननकल कर ज विंत के घर

े र्पिंकी रीटा को भी कोई िंदीप को ले कर अपने

डक की द ु री ओर ही है , और खाना गमक करके खद ु भी खातीिं और

िंदीप को खखलातीिं. मझ िं ीप को ले आता था. ु े भी बहुत वक्त समल जाता था और कभी मैं द यह ब सलख्ते हुए अब भी मझ ु े बहुत है रानी हो रही है कक इतने छोटे बच्चे उ वक्त इतने मझदार थे और अपनी श्जमेदारी को परी तरह ननभाते थे. जब कभी मैं काम

े जल्दी आ

जाता तो बच्चों के लेकर पाकक में चले जाता और वोह पाकक की प्ले ग्राऊिंड में खेलते रहते और बाद में हम कुलविंत को िैक्ट्री तो बच्चों को दे ख कर उ अब हम इ

े लेने चल पडते. िैक्ट्री

े कुलविंत जब बाहर ननकलती

की थकान भी दर हो जाती. ककतने अछे ददन थे वोह !

घर में आये तो

े श्जआदा लगाव हमारा इ

घर के गारडन

े था. पहले

मालक ने गाडकन को बहुत अच्छा रखा हुआ था लेककन जै े हर नए मालक को शौक होता है इ को अपने ढिं ग े रखने का, इ ी तरह हमने भी कुछ अदला बदली शुरू कर दी. गाडकन में गुलाब के कािी पौदे थे, हम ने कुछ और रिं गों के नए पौदे लगा ददए. बहुत े रिं गों के डेसलये के बल्व जमीिं में गाड ददए जो गसमकओिं के आखरी ददनों में जमीन े बाहर आते हैं

और इन के िल बहुत बडे बडे और खब रत रिं गों के होते हैं। उ मय टाऊन की माकककट में गाडकन के पलािंट बेचने वाले बहुत गोरे आते थे श्जन े गाडकन का ारा ामान समल जाता था। हर हफ्ते हम कुछ न कुछ ले आते। मझ ु े तो लान मावर घा

के ऊपर चला दे ता और ककनारे कैंची

े बहुत मोह था, मैं हर हफ्ते लान े काट दे ता श्ज े लान खब रत लगता।


बात तो मामली ही थी लेककन रोज रोज गधयान दे ने थी। थोतडा

ा दहस् ा हम ने

े अपने मन को ही प्र न्ता समलती

श्ब्जओिं के सलए रख सलया। यों तो हर कक म की

ब्जीआिं

स्ती ही समल जाती थी लेककन अपने घर ही बीजने की एक हॉबी ही थी। हम लैदट बारह पौदे लगा दे ते, तीन चार आल बीज दे ते, चाली

पचा

के द

प्याज, मली, धननआ, मेथी,

पुदीना और हालों जो पिंजाब में बहुत होती है और इ में आरएन बहुत होता है । िलों के बीच में ही हम चार पािंच कैबेज के प्लािंट लगा दे ते, यहािं तक कक कुलविंत काले चने भी बीज दे ती जो अगस्त

तम्बर के महीने में हो जाते थे और हम तोड तोड कर हरे चने श्ज

को

पिंजाब में छोसलआ कहते हैं, खाते और पिंजाब की याद ताजा करते। उ

मय अूँगरे ज लोग अपने अपने गाडकन में बहुत कुछ बीजा करते थे। इिंग्लैण्ड एक टाप ही तो है और जगह के दह ाब े ही यहािं के मकान बहुत छोटे हैं लेककन कई घरों के पीछे गाडकन बडे थे और गोरे लोग बहुत कुछ बीजते थे। उ मय हर घर के पीछे एक बडा ा ड्रम्म रखा होता था श्ज

में बारश का पानी भरा ही रहता था और यह बारश का पानी पौदों

के सलए बहुत अच्छा होता है । अब यह ड्रम शायद ही कोई रखता हो क्योंकक जमाना बदल गगया है । उ मय बहुत गोरे काउिं ल े कुछ जमीन ककराए पर ले लेते थे श्ज को अलॉटमें ट कहते थे। इ में लोग हर तरह की ब्जीआिं बीजा करते थे और आप में मुकाबले भी होते थे। कुछ हमारे इिंडडयन लोगों ने भी लेने शुरू कर ददए थे। यह मानना

पडेगा कक अूँगरे ज लोगों को खेती बाडी में बहुत नॉलेज है । एक दिा एक गोरे ने मुझे दो प्याज ददए, यकीन मानों प्याज एक ककलो का होगा, इतना बडा प्याज मैंने अपनी श्जिंदगी में नहीिं दे खा। जो कद्द हैं, यहािं कोई

ौ कक म के होंगे। एक दिा मैं अपने दोस्त की

अलाटमें ट में गगया, यहािं कद्दओ ु िं का मुकाबला था, दे खकर ही मैं है रान हुआ कक कद्द को एक छोटी करे न े उठाया गगया था, मेरा खखयाल है कक यह कद्द एक कुइिंटल का होगा। यह चीजें स िक मुकाबले के सलए ही उगाई जाती थीिं श्जन को तरह तरह की खाद दी जाती थी। मेरा दोस्त ग्रेवाल जो अब इ

दनु नआ में नहीिं है , उ

की अलाटमें ट उ के घर के पीछे ही

होती थी और उ ने अिंडर ग्राउिं ड एक बबजली की केबल जमीिं के बीचो बीच अपनी अलाटमें ट तक किक्

की हुई थी श्जन े वोह जब चाहे अपने हाई िाई के स्पीकजक कुनैक्ट कर लेता था और गाने ुनता रहता था और ाथ ही अपनी इ जमीन में खेती भी करता रहता था। अपने इ

छोटे

े खेत में उ

ने छोटी

ी शैड भी बनाई हुई थी, श्ज में उ ने गाडकन के ब्जीआिं वोह उगाता था, उनको स्ते में वोह दकान पर

टल रखे हुए होते थे। श्जतनी भी बेच दे ता था और उ े समले पै े वोह कक ी चैररटी को दे दे ता था।

ग्रेवाल बहुत मस्ताना कक म का आदमी था, उ के बच्चे दर दर रहते थे और उ की पत्नी बहुत अच्छे ुभाव की होती थी। 1990 के करीब वोह परलोक स धार गई थी। इ के बाद ग्रेवाल शराब पीने लगा था लेककन चैररटी का काम उ ने नहीिं छोडा था। ग्रेवाल के पा

इतने

कर्फल्मी गानों के ररकाडक थे कक एक अलमारी भरी हुई थी। मैं इिंगगलश धन ु पर गाये गाने


बहुत प िंद ककया करता था और उ ने मेरे सलए दो कै ेट पर गाने ररकाडक करके मुझे ददए थे श्ज में ज़्यादा आशा भों ले और ककशोर कुमार के थे। अब दो ाल हुए वोह भी यह िं ार छोड गगया है लेककन मुझे वोह अपनी अलाटमें ट में काम करता ही ददखाई दे ता है और उ के ददए वोह बडे बडे कद्द उ चलता…

की याद ददलाते रहते हैं।


मेरी कहानी - 114 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 21, 2016 हमारे नए घर में बहन

ुररिंदर आये और

े पहले बुआ िुिड, उन के तीनों बच्चे श्जन्दी ननिंदी और उन की ाथ ही आये ननिंदी के ताऊ और ताई। इ

घर में आने पर पहले

कुछ ददन तो बहुत अजीब ा मालम होता था लेककन जब यह भी आये तो घर भर ा गगया। इ घर की ककचन बहुत छोटी ी थी और औरतों े भर गई। खाने बनने लगे और बच्चे गाडकन में खेलने लगे। गसमकओिं के ददन थे और बाहर धप थी। िुिड की एक आदत

बहुत अच्छी थी, वोह बच्चों के ाथ बच्चों जै ा हो जाते थे और उन े इ तरह खेल में मगन हो जाते थे जै े वोह खद ु भी बच्चे ही हों,बात बात पे उन के ाथ हूँ ते थे, इ ी सलए बच्चे तो उन के

ाथ जल्दी ही समक्

हो जाते थे। ननिंदी के ताऊ ताई भी मजे के लोग ही

थे, वोह ररटायर हो चक् ु के थे और अकेले ही कौवें ट्री शहर में रहते थे। उन के घर के फ्रिंट रूम में वोह छोटी

ी ग्रो री शॉप भी चलाते थे। शॉप

उन के दो लडके थे जो कैनेडा में पे हिं ती श्ज

े उन का रहने का खचक परा हो जाता था।

ैटल थे। ननिंदी की ताई तो कॉमेडडयन जै ी थी, बात बात

े द रे को भी हिं ी आ जाती। जब भी हम बआ िुिड के ु

को समलने जाते थे वोह हमें जल्दी आने ना दे ते। शॉप की र्पछली ओर छोटा रूम था। वहािं हम

ब बैठ जाते और ताऊ

ाहब शॉप

टे बल पर रख दे ते। ताई पकौडे तलने लगती और

ाथ कौवें ट्री उन ा डाइननिंग

े बीअर और र्वस्की ले आते और

ाथ ही बात बात पे हिं ती। टुन टुन जै ी

ताई जब हिं ती तो टुन टुन ही लगती। ताई की कुककिंग भी बहुत अच्छी थी और जब हम खाने बैठते तो वोह बदोबदी पलेटों में और डाल दे ती और कहती, ” इतनी तो बच्चे भी खा लेते हैं, और

च्च कहूँ जब तक जी भर कर मैं खा ना लूँ , मुझे तो नीिंद नहीिं आती ” और

खीिं खीिं करके हिं ंिं

पडती और

ाथ ही

भी की हिं ी छट जाती।

आज वोह हमारे घर आये हुए थे और ताई ने रौनक लगा दी थी। जब शाम हुई तो हम तीनों पब्ब को चले गए जो कोटक रोड के आखर में ही था, श्ज का नाम था GOLDEN EAGLE (अब यह बहुत ालों े बिंद है और इ की जगह कोई दफ्तर है ). इ नए एररए में पहली दिा हम इ पब्ब में आये थे श्ज में ज़्यादा गोरे गोरीआिं ही थे और उन के बच्चे गचल्ड्रन रूम में स्नकर खेल रहे थे। हम बार रूम में बैठ गए और मजे इ

नए एररए में आने के कारण और इ

में

भी गोरे होने के कारण, पहले पहल हम कुछ

खझजक रहे थे लेककन जब दो गोरे हमारे टे बल पे आकर हम

नॉमकल हो गया। शननवार की रात थी और जल्दी ही पब्ब लोगों में ग्ला के हिं

े बीअर का मजा लेने लगे। े बातें करने लगे तो

े भर गगया और गोरे हाथों

सलए खडे थे। कुछ गोरे गोरीआिं गाने लग पडे थे और हम अपनी जुबािं में बातें कर

रहे थे कक यह भैरवी गा रहे थे। गगआरा वजे पब्ब बिंद होते थे और हम द

करीब पब्ब

वजे के

े बाहर आ गए और दो तीन समनट में घर आ गए। घर आये तो खाना तैयार


था.

भी खाने लगे और ताई ने तो महिल गमक कर दी थी. आज वोह दोनों नहीिं हैं लेककन

जब भी उन की बातें करते हैं हिं दोनों ने बुढ़ापा मजे ताई यह

पडते हैं, उन की जोडी महमद और शोभा खोटे जै ी थी,

े गुजारा और पहले ताऊ ने यह

िं ार छोड कर ताऊ

िं ार छोडा और दो महीने बाद ही

े जा समली. ननिंदी का तो ताई

े बहुत लगाव था.

रात के बारह एक बजे वोह चले गए और उन के जाने के बाद हम भी लगने लगा कक इ

घर में हम कािी दे र

अधािंगगनी कमल बच्चों के

ो गए और अब

े रह रहे थे. कुछ हफ्ते बाद बहादर और उ

ाथ आ गए. हमारा ररश्ता तो बचपन

की

े ही था और हमारे बच्चे

भी समल कर बहुत खश ु होते थे. हम ने समल कर खब मजे ककये और हम ने कक ी ददन ब्लैकपल ी ाइड जाने का प्रोग्राम बना सलया. कुछ हफ्ते बाद ही एक रर्ववार का ददन हम ने तय कर सलया. ननयत ददन आप

में मशवरा करके हम ने खाने तैयार कर सलए. खाने में

निंबर वन तो मीट ही होता था और उधर मीट बहादर ही बनाता था और इधर मैं. बेछक हमारी अधािंगगननआिं बहुत अच्छा मीट बना लेती थीिं लेककन हम दोनों को खद ु ही बनाने के बगैर त ल्ली नहीिं आती थी। बाकी खाने छोले भठरे मो े और कुछ मीठी चीजें औरतों ने

बना ली थीिं। हर दिा ऐ ा ही होता था कक खाने हम इतने बना लेते थे कक पािंच छी और भी लोग खाने के सलए आ जाएूँ तो खाना किर भी बच्च थी। इ के पा

ुबह

की गाडी को िॉलो करना था। मैंने नक्शा दे खने की भी जरुरत नहीिं

गए जो मुझे अब याद नहीिं, इ पकडनी थी जो

मय बहादर

ुबह गाडडयािं ले कर चल पडे। बहादर को रास्ते का पता था और मैंने

की गाडी के पीछे लगा दी। बसमिंघम स टी

यह

हमें त ल्ली नहीिं होती

का कारण यह था कक हम खाने के बहुत शौक़ीन थे। मुझे याद है , उ वाक् ाल वीवा स ल्वर कलर की गाडी थी.

एक रर्ववार को उ

कता था, ब

ेंटर

मझी और बहादर

े बाहर आ कर हम कक ी मोटर वे पर आ

के बाद हम ने मोटर वे M 1 लेनी थी और इ

ीधे प्रेस्टन जाती थी और वहािं

े ब्लैकपल के सलए

में

े M 6

ाइन लेने थे लेककन

ब मुझे पता नहीिं था और बहादर की गाडी का पीछा करता रहा। क्योंकक मोटर वे पर

कारें बहुत िास्ट जाती हैं और हर कोई एक द रे को ओवर टे क करके आगे ननकल जाने की कोसशश करता है , इ तरह बहुत बहुत ी गाडीआिं मुझे ओवरटे क करके आगे ननकल गईं और मुझ

की नजरों

े बहादर की गाडी को दे खना और िॉलो करना मुश्श्कल हो गगया। हम एक द रे े अलोप हो गए। अब मुझे

मझ नहीिं आती थी कक ककया करू​ूँ। पिंद्रािं बी

समनट

तक मुझे बहादर की गाडी कहीिं ददखाई नहीिं दी, जब ददखी तो उन की गाडी कक ी और रोड को मुड गई और हम

ीधे ननकल गए । उ

वक्त मोबाइल िोन तो होते नहीिं थे। हम ने

एक टे लीिन बथ पर गाडी खडी की और बसमिंघम बहादर के चाचा जी के र स हिं को िोन ककया कक अगर बहादर का िोन आये तो कह दे ना कक हम वाप

बसमिंघम उन के घर आ

रहे हैं और वोह भी आ जाए। जब हम बहादर के घर आये तो पता चला कक बहादर का टे लीिन भी आया था और वोह भी वाप

आ रहे हैं। कुछ दे र बाद बहादर की गाडी भी आ


खडी हुई और आते ही मझ ु पर बर पडा और बोला, ” यार तुझे ब्लैकपल का भी पता नहीिं था, त गाडी चलाता जाता हम समल ही जाते !”. अब मझ ु को हीिं हीिं करने के स वाए तो कोई चारा ही नहीिं था। अब कािी वक्त बबाकद हो गगया था, इ

सलए हम ने वैस्टन - ुपर -मेयर

जाने का प्रोग्राम बना सलया जो नॉथक वेल्ज में है , क्योंकक यह कुछ नजदीक था. अब मैंने नक्शा भी

ाथ में ले सलया और हम वैस्टन

ुपर मेयर को चल पडे। दो घिंटे में ही

हम वहािं जा पहुिंच।े जब हम वहािं पहुिंचे तो ददन बहुत अच्छा था, धप ु खखली हुई थी। मुिंदर का पानी बीच े दर नहीिं था। हम ने अपने मवी कैमरे ननकाले और नाच रहे बच्चों की मवी बनाने लगे। धप ु कािी थी लेककन कुछ कुछ तेज हवा भी चल रही थी, इ अपने स्ट्रॉ है ट हाथ ाथ

े पकड रखे थे और यह इ

ाथ तकरीबन बी

और उ

सलए बच्चों ने

मवी में भी ददखाई दे ता है ।

र्फीट चौडी पेवमें ट थी और पेवमें ट के

ाथ

ाथ चौडी

मुन्दर के डक थी

पे ट्रै किक कािी बबजी था। मीलों तक दक ु ाने ही दक ु ानें थीिं और िन्न िेयर भी थे

श्जन में तरह तरह के झले और गैंबसलिंग की मशीनें लगी हुई थी और बहुत लोग इन मशीनों में स क्के डाल कर ककस्मत आजमाई कर रहे थे। कुछ दे र बाद हम नीचे मुन्दर के ककनारे आ गए और बच्चों के

ाथ

डैं कै ल बनाने लगे और किर हमारी अधा​ाँश्ग्नआिं और बच्चे

अपने जते उतार कर पानी में मस्ती करने लगे। यह

ब हम ने अपने मवी कैमरे में उतारा।

इन मवी कैमरों के बारे में भी कुछ सलख दूँ तो हमारे इ

छोटे

े इतहा

का यह भी एक

दहस् ा बन जाएगा।

आज कल तो डडश्जटल कैमरे इतने बडीआ हैं कक मुझे कुछ सलखने की जरुरत नहीिं है लेककन उ

मय 1977 78 के जमाने में इन मवी कैमरों में

मवी ही बनती थी, अगर

ाउिं ड स स्टम लेना हो तो

पडता था जो एक् पैंस व होता था । इ

ाउिं ड नहीिं होती थी, स िक

ाइलें ट

ाथ में एक और ऑडडयो स स्टम लेना

कैमरे में स िक चार समनट की िोटो रील पडती थी।

ज़्यादा तर ब्लैक ऐिंड वाइट रील होती थी लेककन कलर की रील लेनी हो तो कािी महूँ घी थी। जब हम मवी बनाते थे तो इ

रील को बहुत ही किंज ी े इस्तेमाल करते थे क्योंकक यह जल्दी खत्म हो जाती थी.यह रील खत्म होने पर इ को प्रॉ े करने के सलए कोडैक वालों की लैबारटरीज में भेजना पडता था । जब हमारे पा छोटी

ी गैजेट के

कुछ रीलें जमा हो जातीिं तो हम एक

ाथ इन रीलों को जोड कर एक बडे स्पल पर लोड कर दे ते थे। मैंने

तकरीबन ऐ ी द

रीलें जोड कर एक बडी रील पर इकठी की हुई थी। किर जब हमारा इ किल्म को दे खने का मन हो तो हम इ रील को प्रोजेक्टर पर किक् कर दे ते थे और ामने एक स्टैंड पर स्रीन खडी कर दे ते थे। खखडकीों के परदे बिंद करके अूँधेरा कर दे ते थे और किर प्रोजेक्टर चालु कर दे ते थे। जै े जै े किल्म चलती, यह द ु री खाली रील पर चढ़ती जाती जै े स ननमा घर के प्रोजेक्टर रूम में होता है । बेछक यह किल्म होती थी लेककन हमें इ

को दे ख कर बहुत खश ु ी होती थी। इ

ाइलेंट ही

किल्म को स्रीन पर दे ख


दे ख कर बच्चे बहुत खश िं ीप और बहादर का बेटा हरदीप बहुत छोटे छोटे थे, ु होते। हमारा द बेटीआिं तो अब द गगआरा ाल की हो गई थीिं। इ

के इलावा बहादर ने पहले एक कैमरा सलया श्ज

का नाम था yashika 24. जब बहादर

ने मुझे ददखाया तो मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं भी ऐ ा ही कैमरा लेने के सलए बसमिंघम शॉर्पिंग ेंटर में बहादर के ाथ चल पडा। कैमरों की दकान में हम चले गए और 65 पाउिं ड का यह कैमरा ले सलया। आज तो इ तो इ

कैमरे

कैमरे को दे ख कर ही हिं ी आ जायेगी क्योंकक पहले

े िोटो खीिंचने के सलए कैमरे को नीचे जमीिं की ओर रखना पडता था और

ीन को िोक

करना पडता था, द रे इ

औब्जैक्ट को िोक

को दो लैंज लगे हुए थे श्जन में एक तो करने के सलए होता था और द रा िोटो खीिंचने के सलए होता था,

पर लगे एक लीवर को आगे पीछे घुमा कर और र्पक्चर का िोक प्रै

करके िोटो खखिंच ली जाती थी । इ

ाइड

ठीक करके एक बटन को

कैमरे की रील में 12 िोटो आती थीिं जो

ुकेअर

ाइज की होती थीिं। 24 एक्स्पोजर वाली रील भी समल जाती थी जो कुछ महूँ घी थी। इ

कैमरे को मैंने बहुत ाल तक रखा था और इ के ाथ एक स्टैंड भी ले सलया था श्ज े हम पाकों में कैमरे को स्टैंड पर किक् करके और ऑटोमैदटक ैदटिंग करके िोटो खीिंचते थे, श्ज

े हमारे

हो गई थीिं श्ज

ारे पररवार की िोटो आ जाती थी। इ

तरह हमारे पा

को दे ख दे ख कर खश ु होते रहते।

बच्चों की जो मवी वैस्टन लेककन यह एक ऐ ी याद इ

बहुत िोटो इकठी

ुपर मेयर के बीच पर हम ने बनाई वोह कोई बडी तो नहीिं है किल्म में कैद है जो पैंती

छत्ती

ाल पुरानी है और यह

मवी और िोटो बुढ़ापे में एक टॉननक की तरह काम करती हैं। बीच पर मस्ती करने के बाद हम एक जगह बैंचों पर बैठ गए। भख लगी हुई थी और खाने जो प्लाश्स्टक के डडब्बों में पैक्ड थे, ननकाल कर खाने लगे। बाहर खल ु े में खाने का भी एक अपना ही मजा होता है ।

बीच पर घुमते घुमते बहुत थक गए थे और भख भी चमक उठी थी, इ सलए जी भर कर ब ने खाना खाया। खाते खाते किर कुछ मवी ली। अब हम किर डक के ककनारे चलने लगे और दक ु ानों में शॉर्पिंग करने लगे। नजदीक ही िन िेअर था श्ज

े बहुत शोर न ु ाई दे रहा था क्योंकक बच्चे जब कोई राइड लेते तो ऊिंची ऊिंची चीखें मारते थे। यह

िनिेअर

जब हम इ

में

ेक्शन तो बहुत ही रौनक वाला था और बच्चों ने खब मजे ककये। िनिेअर

े बाहर आये तो शाम होने वाली थी। हम ने गाडडओिं का ऑयल,

पानी और टायर बगैरा चैक ककये और िै ला ककया कक अब रास्ते में कहीिं भी खडे नहीिं होगे और जब बसमिंघम आएगा तो बहादर की कार बसमिंघम की आगे चलते रहें गे क्योंकक वुल्वरहै म्पटन आगे और बी

डक पर चले जायेगी और हम

मील दर था। हम ने हाथ समलाया

और चल पडे। दो घिंटे में ही हम बसमिंघम के नजदीक पहुूँच गए और बहादर की कार बसमिंघम की तरि मुडी तो बच्चों ने एक द रे को हाथों

े बाई बाई वेव ककया और हम आगे बढ़ते


गए। आधे घिंटे में ही हम अपने घर पहुूँच गए। यह ददन हमारे सलए एक अभुल यादगार बन कर रह गगया है । चलता…


मेरी कहानी - 115 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 24, 2016 12 माचक 2016 को बुआ ननिंदी और ननिंदी की पत्नी कुलजीत आये थे और उन के आते ही ारे घर में खश ु ी का माहौल हो गगया था। कुलविंत की यह बुआ े

ौ गुना ज़्यादा

गी है , अगर मैं कहूँ कक इ

गी नहीिं है लेककन

गगओिं

पररवार के बगैर हम कुछ भी नहीिं हैं, तो

यह झठ नहीिं होगा। अक् र शादी र्ववाह के काडों पर सलखा होता है ” relations are

settled in paradise, celebrated on earth “, अगर यही बात मैं बुआ के पररवार के बारे में कहूँ तो यह भी

ही होगा क्योंकक एक ददन बसमिंघम में शॉर्पिंग करते करते अचानक

हमारी मुलाकात बुआ िुिड

े हो गई थी, श्ज के बारे में मैं पहले सलख चक् ु का हूँ । बुआ

िुिड हमारे टाऊन में ही रहते थे sherwood street में लेककन हमें पता ही नहीिं था। जब

पता चला तो हम कभी-कभी एक द रे के घर जाने लगे थे। हमारे अभी कोई बच्चा नहीिं था लेककन बआ के बच्चे श्जन्दी और बेटी ु ात

बारह

ाल के थे और ननिंदी तो अभी छै

ाल ही होगा। हम समलते तो रहते थे लेककन अभी हमारी नजदीकी इतनी नहीिं थी।

िुिड को दमे का रोग था और उ रै ड ब

रु रिंदर द

मय काम उन्होंने छोड ददया था। पहले वोह समडलैंड

कम्पनी में ब

किंडक्टर लगे हुए थे और यह उ इिंडडयन लडके ही काम करते थे। िुिड इिंडडया े ऐिए

मय समडलैंड रै ड में दो तीन ी पा

करके आये थे और बात

करने में बहुत इिंटेसलजेंट लगते थे। हमारी मल मय हुई थी जब इनोक पावल की ु ाकात उ स्पीचों ने गोरे लोगों के ददलों में हमारे सलए जहर भर ददया था और गोरे बदमाश छोकरे श्जनको श्स्कन है ड बोलते थे हमारे लोगों में डर पैदा कर रहे थे। हमारे लोगों में एक डर पैदा हो गगया था कक हमें इिंगलैंड

े रुख त होना पडेगा। कुछ लोगों ने अपने घर बेच ददए

थे और ऐ ा ही हम ने ककया था। हम ने अपना मकान 34 carter road बेच ददया था लेककन यह मकान गगयानी जी ने ले सलया था। 14

ौ पाउिं ड का मकान हमने बेचा था और

पै े हम ने बैंक में रखे हुए थे। एक शाम को बआ िुिड आये और हमें बताया कक उन्होंने बसमिंघम में घर ले सलया है लेककन डडपॉश्जट रखने के सलए पै े उनके पा

नहीिं थे। बबलकुल

और िुिड बोला, “गरु मेल ! कुछ पै े का इिंतजाम हो हम पै े वाप

कता है ? अपना मकान बेचने के बाद

कर दें गे”. मैं ने कहा, “ककतने पै े चादहए?”. िुिड बोला, “अगर पािंच

पाउिं ड हो जाए तो और कक ी िुिड कुछ नवक

ाधारण बातें हो रही थीिं ौ

े मािंगने नहीिं पडेंगे”. मैंने कहा, “कल शाम को पै े ले जाना”.

ा हो गगया, उ

को यकीन नहीिं हुआ कक इतने पै े हम उ े दे दें गे क्योंकक जो मकान वोह बसमिंघम में खरीद रहे थे, उ की कीमत 1800 पाउिं ड थी, यानी मकान की कीमत के ती रे दहस् े

े कुछ कम हम उन को दे रहे थे या यिं कह

कते हैं कक

अगर एक करोड का घर लेना हो तो कोई दोस्त उ े 30 लाख दे दे । द रे ददन मैं अपनी


बबश्ल्डिंग

ो ाइटी

े जो एक प्रकार की बैंक ही होती है

े पािंच

क्योंकक हमने अपना मकान बेच ददया था और पै े हमारे पा हमारे घर आया तो मैंने उन्हें पािंच

ौ पाउिं ड कैश ले आया,

थे । शाम को जब िुिड

ौ पाउिं ड की गठरी पकडा दी। िुिड के मुिंह

े कोई

लर्फज ननकल नहीिं रहा था, उनका वोह चेहरा मुझे अभी तक याद है । उन्होंने पै े ले तो सलए लेककन लगता था वोह लेने चाहते नहीिं थे। कोई र ीद नहीिं थी, ना ही चैक था, पै े बबलकुल कैश थे। जब वोह उठ कर घर जाने लगे तो वोह चप ु चप ु थे।

इ के दो महीने बाद 1968 में बुआ िुिड ने बसमिंघम है न्ड्जवथक wilton road पर घर ले

सलया। वुल्वरहै म्पटन sherwood street वाला उन का घर बबक गगया तो िुिड एक ददन मुझे

ारे पै े वाप

कर गगया। इ

थी। यह जो 500 मुझे दहचकचाहट आये मोड को

घटना के कुछ ही महीने बाद हमारी बेटी र्पिंकी पैदा हुई ौ पाउिं ड वाली घटना है , मुझे सलखने की जरुरत नहीिं थी, यह सलखते हुए

ी मह

ररश्ते में

मझना मुश्श्कल हो जाता। आज जो हमारा ररश्ता है , उ की जडें वोह पािंच

पाउिं ड ही है क्योंकक इ कक इ की कीमत उ हमारी

हो रही थी लेककन अगर मैं ना सलखता तो हमारे इ

के बाद बुआ िुिड और

पािंच

ािंझी है . हमारे इ

ौ पाउिं ड

ारे पररवार ने हमें इतना र्पयार ददया है

े कई हजार गुणा ज़्यादा है । छोटी

र्पयार की कोई

ीमा नहीिं है , ब

े छोटी बात

े ज़्यादा और मैं अब नहीिं

सलखग िं ा। बुआ िुिड ने wilton road पर घर इ स हिं का घर इ

घर के बबलकुल

सलए सलया था, क्योंकक बुआजी के

गे भाई मघर

ामने था। वोह वक्त था, जब हमारे लोग कोसशश यह ही

करते थे कक यहािं अपने ही लोगों का घर हो वहािं ही खरीदने की कोसशश करते थे क्योंकक भी एक द रे के नजदीक रहने की कोसशश करते थे और आज इ लोग एक द रे

के र्वपरीत हो गगया है ,

े दर घर लेना चाहते हैं. कुछ ही दरी पर बुआ जी की

गी बहन शािंती का

घर upland road पर था। पहले मैंने बुआ के भाई और बहन को नहीिं दे खा था (कुलविंत ने

ही बचपन में दे खा हुआ था ). अब हमारा यह ररश्ता इन लोगों े भी गहरा हो गगया था जो अब तक चला आ रहा है । इ के बाद तो एक और बहुत बडा खानदान हमारी इ क्लब्ब में शामल हो गगया जो अब तक जारी है , श्ज

के बारे में

मय आने पर सलखग िं ा। किलहाल तो

बुआ िुिड, बुआ के भाई मग़र स हिं और बुआ की बहन शािंती के बारे में ही सलखग िं ा. कुलविंत की

गी बुआ िुिड तो चैटहै म में रहते थे जो कैंट में है । इ

गी बुआ ने कुलविंत

को कोई र्पयार नहीिं ददया। दोनों बुआ िुिड अजीब कक म के लोग थे, ब

एक ही दिा

वोह हमारे घर आये थे, जब हमारा बेटा

िंदीप पैदा हुआ था। अब जो बात मैं सलखने जा रहा हूँ, वोह कभी भी भलने वाली नहीिं है । जब कल बुआ ननिंदी आये हुए थे तो इ घटना के बारे में बातें होने लगीिं तो

िंदीप बोला, “डैड ! मुझे भी वोह बात कुछ कुछ याद है ”. किर हमने

ोचा कक यह घटना 1976 के करीब हुई होगी और द िं ीप उ मय चार ाल का रहा होगा। बात यह थी कक कुलविंत की चैटहै म वाली बुआ की लडकी की शादी थी और हम बने


शादी में नननहाल की तरि

े जाना था और चडे की र म बुआ उ के भाई मग़र स हिं

और बुआ की बहन शािंती और उनके लडकों की तरि स हिं के पा के पा

े होनी थी। मेरे और िुिड

ुरजीत

तो अपनी अपनी गाडडयािं थीिं लेककन मग़र स हिं और शािंती के पती ननमकल स हिं

गाडडयािं नहीिं थीिं। इतने मैम्बर दो गाडडओिं में जा नहीिं

की खातर िुिड ने 12

कते थे, इ

सलए उन लोगों

ीट वाली वोल्कवैगन वैन हायर कर ली श्ज का इिंश्जन पीछे होता

था। हम ने शुक्करवार् को चलना था और रर्ववार को वाप ददन शक ु रवार को काम करना था और इ

आना था। बुआ िुिड ने आधा

के बाद घर आ कर िुिड ने कार हायर वालों

गाडी लेने जाना था, किर खा पी कर कपडे बदल कर चैटहै म का

िर शरू ु करना था।

मैं और कुलविंत बच्चों को ले कर बुआ के घर तकरीबन दो वजे पहुूँच गए। जनवरी का महीना था, ददन बहुत छोटे थे और ठिं ड भी बहुत थी और चार घिंटे का िर था। ोचा तो

यह था कक हम ददन के वक्त ही रवाना हो जाएिंगे लेककन हमें तीन बज गए और कुछ कुछ अूँधेरा होना शुरू हो गगया। वैन में बोला, “बोले

ो ननहाल” और

ारा

भी ने

ामान रख सलया गगया,

भी बैठ गए. मग़र स हिं

त स री अकाल बोला और िुिड गाडी चलाने लगा।

फ्राइडे का ददन होने के कारण रश बहुत था, इ सलए लोकल रोड्ज पर हमारा बहुत वक्त लग गगया। जब हम मोटर वे M 6 पर पहुिंचे तो अूँधेरा हो गगया था। मोटर वे पर कोई रश नहीिं था, इ

सलए िुिड गाडी को तेज चलाने लगा। M 6 पर तकरीबन हम 30 मील ही

गए होंगे कक इिंश्जन गमक हो गगया और

ई H पर आ गई। िुिड बोला, ” गुरमेल ! इिंश्जन

तो गमक हुआ लगता है “, मैंने कहा ” िुिडा गाडी खडी कर दे “. िुिड ने गाडी hard shoulder पर खडी कर दी (यह रोड इ सलए ही होती है कक अगर गाडी में कोई नक ु जाए तो इ

पर गाडी खडी कर

कते हैं, वरना यहािं गाडी चलाना मना है).

गाडी खडी करके िुिड ने बोनेट खोला तो दे खा कक िैन बैल्ट पुली टल भी हमारे पा

नहीिं था, इ

पड

े उत्तर गई थी। कोई

सलए हम RAC को टे लीिन करने के सलए चल पडे। अगर

RAC के मैम्बर हों तो मु ीबत के वक्त उन का मकैननक अपनी गाडी ले कर आ जाता है । एक एक मील पर टे लीिन के बॉक्

लगे हुए हैं। हम को आधा मील ही जाना पडा क्योंकक हम टे लीिन के नजदीक ही थे। िुिड ने टे लीिन कर ददया और उन्होंने हमें गाडी में बैठ

कर इिंतजार करने को बोल ददया। ठिं ड बहुत थी और हम ने ारे कपडे बच्चों के ऊपर डाल ददए। एक घिंटे बाद RAC वाले आ गए, उन्होंने दे खा और नई िैन बैल्ट किक् कर दी। हम खश ु हो गए और अपना

सलया और मोटर वे M 6

िर शुरू कर ददया।

ौ मील का

े उत्तर गए और रौद्रम टाऊन

िर हम ने आ ानी

े तय कर

ेंटर में आ गए। हम छोटी

डक

पर जा ही रहे थे कक िैन बैल्ट किर उत्तर गई। हम ने किर RAC को टे लीिन ककया और उधर शादी वाले घर के लोग हमारी इिंतजार कर रहे थे क्योंकक चडे की र म हम ने ही ननभानी थी। हम ने घर वालों को भी टे लीिन कर ददया कक हम लेट पहुिंचेंगे। हम वैन में बैठ कर इिंतजार करने लगे, भी भखे थे, इ सलए हम ने एक दकान े खाने को कुछ सलया


और बच्चों को खखलाया। RAC वाले दो घिंटे बाद आये और इ

मय रात के द

थे। मकैननक ने वोही िैन बैल्ट किक्

कर दी और चलते बने। हम ने भी

आगे हम ने BLACKWALL TUNNEL में जाना था। यह जाती है और तकरीबन पािंच की थी और इ ही उ

मय के घोडों

दे श में टाूँगे होते थे। गगया, इ

िर शुरू कर ददया।

ुरिंग थेम्ज दररया के नीचे

ौ गज लम्बी है । यह टनल 1897 में र्प्रिं

का मक द था ट्रे ड को बढ़ावा दे ना क्योंकक इ

गई थी। पहले पहले उ

मय इ

ुरिंग

े लोग पैदल या

वज चक् ु के

ऑि वेल्ज ने शुरू

े दरी नजदीकी में बदल ाइकल पर चलते थे और

ाथ

े चलने वाले कैरे ज चलते थे श्जन में यात्री ट्रै वल करते थे जै े हमारे मय के

सलए 1967 में

ाथ

ाथ इ

के ननचे

े कारें जाने लगीिं और ट्रै किक बढ़ता

ाथ ही एक और टनल बना दी गई और अब एक

सलए और एक आने के सलए है क्योंकक यह वनवे ट्रै किक कर ददया गगया है । इ

ुरिंग जाने के ुरिंग को

हम पार कर गए। जै े ही हम ने पार ककया, िैन बैल्ट किर उत्तर गई। अब तो हम बहुत मु ीबत में पड गए क्योंकक हम बहुत लेट हो चक् ु के थे। आगे एक टे लीिन बॉक् था, हम ने पहले तो घर वालों को टे लीिन ककया कक हम इ

जगह पर हैं, किर RAC को ककया।

एक घिंटे बाद घर वाले तीन गाडडयािं ले कर आ गए। मशवरा यह हुआ कक भी लोग उन की गाडडओिं में चलें और मैं और िुिड RAC वालों की इिंतजार करें । मैं और िुिड ने भी शुर मनाया कक बच्चे तो

ेि हों।

भी चले गए, मैं और िुिड गाडी में बैठे मकैननक की इिंतजार

करने लगे। यह इिंतजार इतना बुरा था कक भलने वाला है ही नहीिं। बाहर फ्रीश्जिंग किंडीशन थी और हम दोनों गाडी में बैठे

दी

ुकड रहे थे। ना तो हमारे पा

ही हम इिंश्जन को ऑन करके हीटर लगा है , िुिड बोला ” यार ! कोई कमजक्म इ

ठिं डी

ाला पुसल

को

कते थे। कभी कभी मु ीबत में भी हिं ी आ जाती

मैन ही हमें पकड कर पुसल

े तो बच्च जाएिंगे ” और हम हिं ने लगे। अब तो

गए और RAC वाला भी आ गगया, उ उ

कोई कपडा था और न

ने दे खा और िैन बैल्ट किक्

ारी बात बताई तो वोह बोला कक हम उ

स्टे शन ले जाए,

ुबह के चार वज्जज

कर दी। जब हम ने

को िॉलो करें और अगर गाडी ठीक

चलती रही तो वोह चला जाएगा, वरना वोह किर दब ु ारा दे खेगा कक बात ककया है । कोई चार पािंच मील िुिड गाडी ड्राइव करता रहा। जब RAC वाले ने दे खा कक गाडी ठीक जा रही है तो वोह द ु री और

डक पर चला गगया। अब चैटहै म भी आठ द

मील ही रह गगया था

ुबह के पािंच वज्जज गए थे। कुछ ही दर गए तो िैन बैल्ट किर उत्तर गई। अब तो

िुिड रो पडा और मेरा ददल भी दख ु ी हो गगया। पता नहीिं मेरे ददल में ककया आया, मैंने इिंश्जन का बौनेट खोला और बैल्ट को एक पुली पे चढ़ा कर दोनों हाथों

े जोर लगाया तो

बैल्ट द ु री पुली पर चढ़ गई और मैंने िुिड को कहा कक त बैठ और अब मैं चलाऊिंगा। मैंने ड्राइव करना शुरू ककया लेककन एक बात का गधयान रखा कक एक् ेलरे टर पैडल को ज़्यादा नहीिं दबाया और धीरे धीरे ती

मील घिंटे की रफ़्तार

े चलाने लगा। छै वज्जजे के करीब हम


88 चैटहै म रोड पर कुलविंत के िुिड के घर के आगे आ खडे हुए। जब हम ने बैल की तो कुलविंत ने दरवाजा खोला, हम भीतर आ गए और बुआ भी आ गई। कुलविंत का रो रो कर बुरा हाल हो गगया था। एक दम उन्होंने हीटर लगा ददया और हीटर भी कमबख्त मट्टी के तेल का था श्ज का रोग था।

े तेल की ब आ रही थी और िुिड को चढ़ रही थी क्योंकक उ

जल्दी जल्दी कुलविंत ने चाय बनाई। हम चाय पीते पीते कहानी हम ने यह वैन हायर की थी वोह आई, खाना खा के अब हमने

भी मजे

को दमे

ुना रहे थे। श्जनके सलए

ोये हुए थे। कुछ दे र बाद बुआ खाना ले ोना ही था और गुरदआ ु रे शादी में शामल नहीिं होना था,

िुिड तो बहुत गुस् े में था और बोल रहा था कक हम ने वाप वुल्वरहै म्पटन भी जाना था और पहले वैन ररपेयर का भी इिंतजाम करना था और श्जनके सलए वैन ली थी, वोह ाहब बन कर

ो रहे रहे थे, बआ उ े चप ु ु रहने का

दोनों ही एक बैड में हम

िंकेत दे रही थी। कुछ दे र बाद मैं और िुिड

ो गए क्योंकक घर में मेहमान बहुत होनें के कारण जगह की तिंगी थी। ो गए, शादी की रस्में कै े हुईं हमें कुछ पता नहीिं, यह शादी हमारे सलए तो पने की

तरह हो गई थी। चलता…


मेरी कहानी - 116 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 28, 2016 कुलविंत की बुआ की लडकी की शादी कै े हुई , मुझ को और िुिड को कुछ नहीिं पता क्योंकक ारी रात रास्ते में गुजारने के बाद हम इतना ोये कक बारह वजे जाग आई। घर के भी

दस्य गुरदआ ु रे गए हुए थे ,स िक दो बजुगक औरतें ही वहािं थी ,पता नहीिं घर की रखवाली के सलए या कुछ और वजह े। हम ने मुिंह हाथ धोये और कुछ खाने के सलए दे खने लगे। एक बजुगक औरत ने हमारे सलए चाह बना दी और एक थाली हमारे सलए टे बल पर रख दी ,श्ज

में कुछ लड्ड जलेबीआिं और कुछ नमकीन था। मजे

े हम ने खाया और दो दो

कप्प चाय के र्पए ,कुछ त ल्ली हुई। अब हमारे आगे करें । हम घर

वाल रात वाला ही था कक हम ने वाप

भी जाना था और गाडी का ककया

े बाहर आ गए और चैटहै म टाऊन में घमने लगे। किर िुिड नें बसमिंघम को

टै सलिोन ककया यहािं

े वैन हायर की थी ,िुिड ऊिंची ऊिंची बोल रहा था कक ऐ ी वैन हम

को क्यों दी थी ,जब कक उन को पता होना चादहए था। कािी दे र बह टे लीिन बथ

करने के बाद हम

े बाहर आ गए। िुिड ने बताया कक वोह बोल रहे थे कक हम कक ी

वोल्क् वैगन गैरेज

े गाडी को ररपेअर करा लें और पै ों की रर ीद ले लें ,बसमिंघम आने पर

वोह पै े दे दें गे। शननवार का ददन था। बहुत गैरजें तो शननवार को बिंद ही होती थीिं और वोल्क् वैगन वालों की इ इलाके में एक ही गैरेज थी। लोगों े पछते पछते हम श्जलीगाम पहुूँच गए क्योंकक

श्जलीगाम में ही वोल्क् वैगन की गैरेज खल ु ी थी। जब हम वहािं पहुिंचे तो वहािं दो ही मकैननक थे जो गाडडओिं पर काम कर रहे थे। हमें दे खते ही एक गोरा जो शायद िोरमैन होगा ,हमारी तरि आ गगया और हाऊ कैन आई है ल्प य बोला। िुिड ने

ारी बात डीटे ल

े उ े बबआन

कर दी।

गोरा बोला कक हमें इिंतजार करना पडेगा क्योंकक अभी ररपेअर करने वाली और गाडीआिं थीिं , उ के बाद ही वोह दे खेंगे। िुिड मझ ु े बोला ,” क्यों ना जब तक हम घम किर लें “.

तकरीबन दो घिंटे हम श्जसलगाम के स्टोरों में घम ु ते रहे क्योंकक वहािं हीदटिंग लगी हुई थी और बाहर ठण्ड थी क्योंकक डकों पर जम्मी हुई स्नो थी । किर हम एक कैिे में चले गए ,चाय और

डैं र्वच सलए और खा कर हम बाहर आ गए।

अब कािी वक्त हो गगया था और हम गैरेज की तरि चल पडे। जब हम वहािं पहुिंचे तो हमारी गाडी रै म्प पर चढ़ी हुई थी और नीचे एक मकैननक काम कर रहा था। दोनों पुसलआिं उ

ने ननकाली हुई थीिं। पता नहीिं उ ने क्या ककया होगा ,कुछ दे र बाद उ ने दोनों पुसलआिं और िैन बैल्ट चढ़ा दी। किर रै म्प को नीचे ला ददया और गाडी को एक तरि खडा


कर ददया। िोरमैन हमारे पा ही उ

आया और बबल दे ददया ,याद नहीिं ककतना था। इ

ने गैरेज बिंद कर दी और हम भी खश ु ी खुशी चल पडे और घर के

के

ाथ

ामने आ कर

गाडी खडी कर दी। अब तक गुरदआ ु रे

भी लोग आ गए थे और घर में रौनक थी। हम भी बैठ गए और

हमारे मुिंह

े भी अब बातें ननकलने लगी थीिं। याद नहीिं ककतने वजे डोली की र म खत्म हुई होगी लेककन इतना याद है कक र्वदाई के बाद वातावरण कुछ ग़मगीन ा था। अूँधेरा होने तक वक्त कै े बीता ,याद नहीिं लेककन जब हम

ो कर उठे तो

हम दोनों इ

ुबह का ब्रेक र्फास्ट ले कर

घर का गाडकन दे खने लगे जो बहुत ही अजीब कक म का था क्योंकक यह नतरछा नीचे की और जाता था। यह ारा एरीआ ही पहाडी इलाके जै ा था। डक े तो घर के भीतर जाना

ाधाहरण ही लगता था लेककन डाइननिंग रूम ,टॉयलेट ,बाथ रूम और कुछ

बैड रूम बबलकुल नीचे थे और यहािं आने के सलए लकडी की में तो अूँधेरा ही लगता था और हमें एक घुटन

ी मह

ीढ़ी लगी हुई थी। डाइननिंग रूम हो रही थी। ददक ओिं के ददन होने

के कारण गाडकन में तो कुछ नहीिं था और लगता था गाडकननिंग का कक ी को शौक भी नहीिं था।

अब िुिड मुझे बोला ,”यार गुरमेल ,क्यों न एक दिा किर गाडी को चैक कर लें ,पता नहीिं ाला डर

ा लगता है ” .मैंने भी हाूँ बोल दी और बाहर आ गए ,िुिड और मैं गाडी में बैठ

गए और हम चल पडे। यह

ारा एरीआ बहुत ही अजीब ा था ,कभी हमारी गाडी ऊिंचाई की ओर जाने लगती और कभी नीचे की ओर। कुछ ही दर ऊिंचाई की ओर बढ़ रहे थे कक िैन बैल्ट उत्तर गई। िुिड ने गोरे मकैननक को गिंदी गाली ननकाल दी , उ का चेहरा गुस् े ुखक हो गगया। मैं चप ु चाप गाडी

े उतरा , बौनेट खोला और उ ी ढिं ग

बोला ,” िुिडा चल “. हम घर को वाप क्योंकक कर्फर तो

ब को था कक वाप

े बैल्ट चढ़ा दी और

आ गए और अब बातें हमारी गाडी की चल पडीिं कै े जाना था।

किर कुलविंत का चैटहै म वाला िुिड मोहन स हिं बोला ,” मैं एक लडके को टे लीिन करता हूँ “. उ

अभी

ने टे लीिन घम ु ाया और कुछ बातें कीिं। टे लीिन रख के िुिड बोला ,” मिंड ु ा बैड में

ोया ही पडा था और अप ैट हो गगया ,एक घिंटे तक आने को कहा है “. एक घिंटे बाद

वोह लडका आ गगया। हम ने

ारी कहानी उ को

न ु ाई। उ

ने अपनी गाडी

ननकाला और हमारी गाडी का बौनेट खोल कर पुसलओिं को गधयान

े दे खने लगा। कािी दे र

वोह दे खता रहा और किर बोला ,” मुझे लगता है पुसलओिं की अलाइनमें ट पुसल का द ु री

े टल बॉक्

ही नहीिं है ,एक

े कुछ िरक है ,यह दे खने में मालम नहीिं होता लेककन है जरूर “. और वोह

लडका पुसलआिं खोलने लगा।

इधर कुलविंत का यह िुिड उ तो बहुत कारीगर है ,इ

लडके की स फ्तों के पुल बाूँध रहा था ,” ओ जी ,यह लडका

ने कई को क ककये हुए हैं ,ओ जी यह लडका तो इतना चिंगा है कक


जब टे लीिन करो हाजर हो जाता है ”। मकैननक लडके ने कुछ ही समिंटो में पुसलआिं खोल लीिं और एक पुसल

े एक वाशर ननकाल दी और किर अलाइनमें ट चैक की। उ

गई थी और बोला , ” लगता है अब गाडी ठीक चलेगी “. उ

को त ल्ली हो

ने अपने टल

मेटे ,गाडी में

रखे , ककतने पै े हम ने ददए याद नहीिं और वोह लडका चले गगया। अब मघर स हिं ही बोला कक हमें अभी चलना चादहए ताकक एक और रात रास्ते में गुजारनी न पडे। एक दम

भी तैयार हो गए ,जै े

भी जाने की जल्दी में हों। आधे घिंटे में

भी

तैयार हो गए और र्फतेह बुला कर चल पडे। लोकल रोडज खत्म करके हम A 2 पर चढ़

गए। कुछ ही दर गए तो बैल्ट किर उत्तर गई। मैं नीचे उतरा और बैल्ट को पुली पर चढ़ा ददया। अब मघर स हिं बोला ,” गुरमेल ,गाडी त चला ,तेरी ड्राइर्विंग का ढिं ग मुझे है ”. मैंने मघर स हिं को बोला ,” चाचा जी ,मुझे याद आया कक गाडी की इिंशोरें

ही लगता

तो िुिड के

नाम है ,यह ररस्की है ”. अब िुिड ही बोला ,” चल यार त ,दे खा जाएगा ” और मैं गाडी चलाने लगा। A 2

े उत्तर कर हम ब्लैकवॉल टनल की ओर जाने लगे। जब टनल में दाखल हुए तो भी के ददल धडक रहे थे कक कहीिं टनल में गाडी खडी ना हो जाए। रब रब करके हम टनल के उ

पार चले गए और रौद्रम की

टाऊन में इतना रश नहीिं था , इ ठिं ड थी लेककन आ मान

सलए

सलए हम जल्दी ही मोटरवे पर पहुूँच गए। बेछक उ

ददन

ार्फ था और धप ु खखली हुई थी। घर े खाने के सलए बहुत कुछ ले भी कुछ न कुछ खाने लगे। मेरे सलए कुलविंत िुिड को पकडा दे ती और मैं

आये थे और िुिड के हाथ

े पकड कर एक हाथ

अब गाडी ठीक नहीिं करें गे।

डकों पर चलने लगे। रर्ववार का ददन था , इ

े खाने लगता और द रे

े चल रही थी और हम ने

े ड्राइव करता जाता।

ोच सलया था कक रास्ते में कहीिं भी गाडी खडी

भी खा पी रहे थे और हिं ी की बातें भी हो रही थीिं क्योंकक अब हौ ला हो

गगया था कक हम

ही

लामत घर पहुूँच जायेगे। जब हम कौवें ट्री के नजदीक पहुिंचे तो खश ु ी े ही मैंने एक् लरे टर पर पैर दबा ददया और गाडी तेज हो गई। एक दो मील पर जा कर

िैन बैल्ट उत्तर गई। गाडी खडी करके मैं पीछे गगया और बैल्ट ठीक

े पल ु ी पे चढ़ा दी। अब

मैं किर पहले वाली स्पीड पे चलाने लगा। जल्दी ही हम ने मोटर को छोड ददया और

हैंड्जवथक र्वल्टन रोड की तरि जाने लगे। शायद तीन वजे होंगे कक हम ने िुिड के घर के ामने आ कर गाडी खडी कर दी।

मघर स हिं बोला ,” जो बोले और हम गाडी

ो ननहाल “. अब

ामान उतारने लगे। कुछ

भी ने जोर

े बोला ,” त स री अकाल ”

ामान जो हमारा था ,हम ने अपनी गाडी में

रख सलया और िुिड के घर में दाखल हो गए। घर आ कर पता नहीिं हम को क्या समल

गगया था कक िुिड उ ी वक्त बीयर की बोतलें ले आया और टे बल पर रख दीिं। कुलविंत और


बुआ अिंडे बनाने लगीिं और कुछ ही समनटों में पलेटों में अिंडे डाल कर टे बल पर रख दीिं। अब भी ररलैक्

हो कर गप्पें हािंकने लगे और घर में खश ु ी का माहौल छा गगया।

बातें करते करते ननिंदी के मा ड ननमकल स हिं ने अचानक पगडी उतार कर टे बल पर रख दी और बोले ,” बई आज तो घर जा कर के ी स्नान करना है “, ( स ख जब हैं तो इ े के ी स्नान कहते हैं ). हिं

ब ने जब ननमकल स हिं के

कर लोट पोट हो गए क्योंकक ननमकल स हिं का

और इ

र के बाल धोते

र की ओर दे खा तो

र तरबज की तरह

भी हिं

ार्फ गोल मोल था

र पे कोई बाल नहीिं था। हूँ ते हूँ ते मैंने भी बोल ददया ,” किल्म खत्म हो गई और का है पी एश्न्डिंग हो गगया” .हम उठ कर अपने टाऊन को जाने के सलए तैयार हो गए।

िुिड ने ननमकल स हिं और शाश्न्त को UPLAND ROAD पर छोडने जाना था ,इ

सलए हम

बाई बाई कह कर अपने टाऊन को चल पडे। अपने घर आ कर हम जल्दी

ो गए क्योंकक बेआराम बहुत हो चक् ु के थे। ब ु ह उठ कर श्जिंदगी पहले की तरह शरू का टे लीिन ु हो गई। कुछ हफ्ते ऐ े ही बीत गए। एक ददन बआ ु आया कक वोह ननिंदी की बहन गए क्योंकक

ुररिंदर की उम्र

रु रिंदर के सलए लडका दे ख रहे हैं , न ु कर हम कुछ है रान हो

त्रा अठरा

शािंती करा रही थी।

ाल

े ज़्यादा नहीिं होगी। ररश्ता बआ की बहन ु

ुररिंदर बहुत हुसशआर और खब रत लडकी थी। श्ज लडके के ाथ शादी की बात हो रही थी वोह ुररिंदर े पािंच छै ाल बडा होगा और वोह परा स ख था और उ

ने अपनी दाहडी खल ु ी और लिंबी रखी हुई थी। यह लोग अफ्रीका े आये हुए थे और धमक के कट्टर थे। हमें लगता है , ुररिंदर को इ शादी के सलए मजबर ककया गगया था। उ

वक्त लडककआिं पगडीधारी

हम

े शादी कराना नहीिं चाहती थीिं। यह एक ऐ ा दौर था जब

े पहले आये लोगों के बच्चे बडे हो रहे थे और उन की शाददयािं हो रही थीिं। हम इिंडडया

पाककस्तान

े आये थे लेककन बच्चे यहािं जन्में और पडे सलखे थे। हम भारती

आये थे लेककन हमारे बच्चे गोरे बच्चों के दोस्ती भी कर लेते थे और उन का आप

िंस्कार ले कर

ाथ पड रहे थे। गोरे लडके लडककआिं तो आप

में

करना तो बहुत ही मामली बात थी लेककन हमारे लोगों के सलए यह बातें मु ीबतें खडी कर रही थीिं। हमारे लोग अपने बच्चों को बहुत मझाते थे कक गोरे बच्चों के कुछ मझाते थे , खा

में कक

ाथ कहीिं नहीिं जाना ,उन के घर नहीिं जाना ,ऐ ा बहुत

कर लडककओिं को जब स्कल लेने जाते तो अगर लडकी कक ी गोरे लडके के

कर बातें करते दे ख लेते तो लडकी को घर आ कर पुछा जाता कक वोह उ रही थी। स्कल में लडककओिं को स्कटक पहननी जरूरी थी ,इ

के

ाथ हिं

ाथ क्यों हिं

सलए माूँ बाप कुछ करने

अ मथक थे लेककन घर आते ही उ े शलवार क़मीज पहननी होती थी। गोरे लडके लडककआिं ब जानते होते थे और हमारी लडककओिं को टौंट करते थे। क्योंकक मैं ब ों पर काम करता था ,इ

सलए मैं तो ऐ े ड्रामे रोज दे खता रहता था ,जब हमारी लडककआिं लडकों के

ाथ वोह


बातें करती थी कक मैं दे ख

ुन कर है रान हो जाता था। जब यह ही लडककआिं घर आती थी

तो ऐ े लगता था जै े इन के मुिंह में जुबािं है ही नहीिं थी। यह वोह

मय था जब कक ी की लडकी कक ी लडके के

ाथ बातें करते हुए कोई दे ख लेता था तो लोग खु र िु र करने लग जाते थे। इजत हमारे सलए बहुत बडी बात थी क्योंकक हम ताजे ताजे भारत

हमारे र्वचारों की

िंस्कार ले कर आये थे और इधर भारत तेजी

े बदल रहा था जब कक

ई वही​ीँ अटक कर रह गई थी । ककतना जमाना बदल गगया ,आज श्स्थनत

यह है कक आज लोग खद ु कहने लगे हैं कक बच्चे मु लमान को छोड कर कक ी करा लें और बच्चे मु लमानों कक आप कक ी को रोक नहीिं

े भी शादी

े भी शाददयािं करा रहे हैं क्योंकक यहािं का कानन ही ऐ ा है

कते ।

वक्त बहुत ऐ े भी के हुए थे जब हमारे लोगों ने इजत े डरते अपनी लडककओिं को मार ददया था। एक तो हमारे ाथ ही ब ड्राइव ककया करता था ,( नाम नहीिं सलखग िं ा ). यह शख्

बहुत अच्छा इिं ान था लेककन हालातों ने उन को इतना मजबर कर ददया कक उ ने बेटे को ाथ ले कर अपनी लडकी को मार ददया था ( यह ब न ु ी न ु ाई और अखबार की खबरों की बातें हैं )। उ

की लडकी कक ी स्कल में पडती थी और उ

लडकी के

म्बन्ध

कक ी वैस्ट इिंडडयन

े हो गए। वैस्ट इिंडडयन बहुत काले होते हैं ,इन े शादी कराना ारे खानदान का नाक काट हो जाता है । बाप बेटे ने लडकी को बहुत मझाया लेककन वोह उन के

ाथ लडाई करने लगी।

बाप बेटे ने एक रात को लडकी के टुकडे कर ददए। कुछ टुकडे दररया ,कुछ एक

टके

के बारे में पसु ल

ैवनक में डाल ददए

में डाल कर कक ी रे लवे लाइन पर रख ददए। रे लवे लाइन पर रखे

तफ्तीश करने लगी लेककन कोई

इिंडडयन कभी कभी लडकी के घर जा कर उ

टके

रु ाग समल नहीिं रहा था। वोह वैस्ट

के बारे में पछता तो जवाब यही समलता कक

वोह इिंडडया गई हुई है । छै महीने बाद उ वैस्ट इिंडडयन ने पसु ल को ररपोटक कर दी कक यह लोग उ की गलक फ्रेंड के बारे में बताते नहीिं हैं। इ े पसु ल ने बाप बेटे को पकड सलया। पता लगने पर उन पर मक ु दमा चला और उन दोनों को जेल हो गई। इ ी तरह

ुना था एक शख्

ने लडकी को मार कर गचमनी में दिना ददया था ,मुश्क आने

पर वोह पकडा गगया था। एक शख् लेककन उ

को अपनी लडकी के

इतना छौक लगा कक उ

हमारी रोड के नजदीक ही था और बहुत शरीि था म्बन्ध कक ी और े होने का पता लगने पर उ को

ने आत्महत्या कर ली थी। ऐ ी बातें उ

वक्त अखबारों में आती

रहती थीिं। यही वजह थी कक अपने लोग ना तो लडककओिं को ज़्यादा पडने दे ते थे ,ना बाहर काम करने दे ते थे ,ब

जल्दी

े शादी कर दे ते थे। इ ी दौरान इिंडडया में तब्दीली आ रही

थी लेककन हम वही​ीँ खडे थे। यह ही वोह ददन थे जब थी। चलता…

ुररिंदर की शादी

तपाल

े तय हुई


मेरी कहानी - 117 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन March 31, 2016 ुररिंदर की

गाई

तपाल

े हो गई थी।

तपाल अच्छा लडका था लेककन उ

का डैडी

मगरूर कक म का आदमी था। अपने आप को वोह बहुत ही हुसशआर मझता था और उन की बातें ऐ ी होती थी कक लडके का बाप होने के कारण रौब रखना उ का हक्क था, वोह डायबेदटक था लेककन शराब की िैशनेबल चपटी बोतल हर वक्त अपने कोट की जेब में रखता था। यह लोग अफ्रीका

े आये हुए थे और इन के र्वचार इिंग्लैण्ड के लोगों े भी पुराने थे। ररवाजों के यह इतने ख्त थे जै े हर काम इनकी मैनुअल में सलखा गगया हो और उ

का पालन करना हर एक का र्फजक था। जरा

ी भल हुई तो यह लोग खु र िु र करने लग जाते थे कक उन का यह र्फजक था, वोह र्फजक था। अब मैं ोचता हूँ कक यह अफ्रीका

के लोग तो बहुत पहले े वहािं रहते थे और इन के र्वचार वोह ही थे जब यह ौ ाल पहले भारत छोड कर आये थे लेककन वहािं बहुत दे र रहने के कारण यह पै े वाले लोग हो गए थे और अपने आप को ज़्यादा एडवािं मझते थे और इिंडडया े आये लोगों को कुछ नीचा मझते थे और उन पर हीिं हीिं करके जोक करते रहते थे। इन लोगों का एक अपना ही मकड

जाल होता था श्ज

की हर तार एक पक्की लकीर की तरह थी, इ

लकीर को जरा

ा इधर

उधर ककया, ररश्तों में दराड पडनी शरू की बहन शाश्न्त ने ु हो जाती थी। क्योंकक ररश्ता बआ ु करवाया था, इ अपने

सलए बआ िुिड को परा यकीन था कक यह लोग बहुत अच्छे थे। िुिड भी ु मधी को खश ु करने की हर कोसशश करता। शादी की तैयाररयािं शुरू हो गई थी। क्या

ददया, क्या सलया, मुझे कुछ पता नहीिं और ना ही मुझे ऐ ी बातों में कोई ददलचस्पी थी, लेककन दोनों तरि

े लोग खश ु ददखाई दे रहे थे.

मैं और कुलविंत बच्चों को ले कर बुआ िुिड के घर आते ही रहते थे। काम तो ज़्यादा औरतों का ही होता था जै े, कै े गहने, ककतने समलनी कक

कक

ट, इ

को ककया दे ना, उ

को ककया दे ना,

की होनी थी, समलनी में ककतनी अिंगठीआिं, ककतने हार, ककतनी पगडीआिं,

मधन को कै े खश ु करना, और भी पता नहीिं ककया ककया। मैं और िुिड

स हिं के घर चले जाते थे। मघर स हिं का

ामने मघर

नेह मझ ु

े बहुत था शायद इ सलए कक मैं उ न ु ा करता था और उन की अफ्रीका की श्जिंदगी के बारे में वाल

की बातें बहुत गधयान े करता रहता था और वोह खश ु हो कर अपने

मय की कहानीआिं

न ु ाया करता था। जब भी

मैं समलने जाता, ” आ बई गरु मेल ” कह कर मझ ु े बल ु ाता। अपने गाूँव धैनोवाली के नजदीक गाूँव में एक

की बातें बहुत ककया करता था। कुछ वहमी ा था। धमक के मामले में मैं तो शुरू े ही कोरा था लेककन मघर स हिं के ाथ मैं धमक की बातें बहुत ककया करता था, मैं उन को गुरु नानक दे व जी और अन्य गुरुओिं की कहानीआिं ुनाया करता था, श्ज

िंत ईशर दा

े वोह खश ु हो जाता और

मझता कक मैं बहुत धमी हूँ लेककन यह मैं

ब मघर स हिं


को खश ु ी दे ने के सलए ही कताक था। शुरू की कभी कोसशश नहीिं की, श्ज

े ही मैंने कभी भी अपने र्वचार कक ी पर ठिं ने

तरह का कोई इिं ान हो उ

आदत रही है । यही वजह थी कक मघर स हिं और उ क्योंकक यह कुलविंत के चाचा चाची थे, इ

तरह

े ही बात करना मेरी

की पत्नी मुझ

े बहुत खश ु थे, सलए मैं भी इन को चाचा चाची कह कर ही

बुलाता था। इन के दो लडके चरनजीत और ककिंग हैं और अब तो उन के भी बच्चे बडे हो गए हैं लेककन

भी हम

े खश ु होकर समलते हैं।

मघर स हिं खद ु बीअर शराब नहीिं पीता था लेककन घर में बीअर के कैन हमेशा रखता था और जब कोई मेहमान आये तो उ

को जरूर पेश करता था। मघर स हिं के घर रौनक लगा कर

हम पब्ब को चले जाते और खब बातें करते। पब्ब में कभी बहादर भी समल जाता और जब मघर स हिं की बातें होतीिं तो बहादर मघर स हिं की बात “ओ

िंत ईशर दा ” कह कर हूँ ता।

जब बहादर पब्ब में आ जाता तो हम बहुत बातें ककया करते थे, िुिड भी बहादर े समल कर बहुत खश े बहुत समलती ु होता था। िुिड की शकल ऑस्ट्रे सलयन परिॉमकर रोल्ि है रर थी, बबलकुल उ जै ी दाहडी, ऐनकें और र के बाल उ जै े होते थे, स िक रिं ग का ही िकक था। मुझे पता था कक काम पर

भी उ े रोल्ि है रर

कहते थे। पब्ब

े बाहर आ कर

बहादर अपने घर चला जाता और हम िुिड के घर आ जाते। कुलविंत और बुआ ने खाना बना कर रखा होता और घर आते ही हम खाने में म रूि हो जाते। उ

मय औरतें पब्बों

में जाती नहीिं थीिं, आज तो यहािं जन्मी लडककआिं जी चाहे तो चली जाती हैं लेककन अपने पनतओिं के तो परु र्ों के

ाथ। खाना खाते

मय बहुत बातें होतीिं। पहले पहल हमारी औरतें जब आई थीिं ाथ नहीिं बैठती थीिं बश्ल्क इलग्ग कमरे में बैठा करती थीिं, अब स्कल कॉलजों

े पडी सलखी लडककआिं आने

े तब्दीली आखण शरू ु हो गई थी और मदक औरतें

भी आप

में बैठ कर गप्प शप्प करते थे।

पहले पहल तो शाददयािं भी घर में ही कर लेते थे। द

पिंद्रािं आदमी इकठे हो के शादी कर

दे ते थे और बाद में घर में ही रोटी खखला दे ते थे। अब गुरदआ ु रे बन गए थे और शाददयािं गुरदआ ु रे में होने लगी थी लेककन अभी भी बरानतओिं को मीट शराब वाले अपने ररश्तेदारों को कक ी पब में ले जाते थे और वहािं

वक नहीिं करते थे। लडके

े आ कर हाल में बैठ कर खाना

खा लेते थे। गुरदआ ु रे के हाल में बीयर पी कर आना उगचत तो नहीिं था लेककन कोई कुछ कहता भी नहीिं था क्योंकक यह खश ु ी का वक्त होता था और कोई चारा भी नहीिं था। यिं यिं शादी

ुररिंदर की शादी के ददन नजदीक आ रहे थे तैयाररयािं भी जोरो शोरों

े हो रही थीिं।

े कुछ ददन पहले कडाही की र म थी और यह ददन पकवान बनाने का ददन था, इ

ददन लड्ड शकरपारे गोगले पकौडे था। मैं और कुलविंत

ीरनी मठीआिं और नमक वाली

ीरनी बनाने का प्रोग्राम

ब ु ह ही आ गए थे। ननिंदी की ताई ताऊ तो एक ददन पहले ही आये हुए थे। ताई की बहु राणी भी कैनेडा े आ गई थी। आज घर में बहुत रौनक थी। मैंने भी गले में एप्रन डाला हुआ था और मेरी श्जमेदारी थी मठीआिं वेलने की। ताई की बह रानी को मैंने


पहली दिा दे खा था लेककन उ

के पनत दे व यानी ननिंदी के भाई को मैंने एक दिा दे खा हुआ था। राणी बहुत खब रत और ऐश्वयक राए जै ी थी और बातें करने में भी बहुत अच्छी थी लेककन ताई यानी अपनी ा को वोह प िंद नहीिं करती थी, पता नहीिं उन के बीच में क्या था। ताई तो ऐ े थी जै े

ारी दनु नआ ही उ

की थी। उ

की

ाधारण बात

े भी हिं ी आ

जाती थी। पहले पहल जब मैंने मठीआिं वेलनी शरू ु कीिं तो ताई मुझे कुछ खझडक कर बोली, ” गुरमेल ! क्या बात है , यह मठीआिं गचडडओिं ने खानी है , इतनी छोटी वेळ रहा है ” ताई ने जब अपने मोटे शीशों वाली ऐनक अ अ कुडे मझ ु तरह

भी हिं

पडे। किर बोली, ” है हा अ

े तो छोटी मठी खाई ही नहीिं जाती “. मैंने कहा, ताई तेरे सलए मैं इतनी

बडी बना दे ता हूँ कक तम ु इ

े मेरी ओर दे खा तो

ारा ददन जी भर कर खाती रहना।

ारा ददन यह स लस ला चलता रहा और शाम तक

ही नहीिं चला कै े ददन बीत गगया। जब हम घर एक बडा लिािा समक्

ारे पकवान बन गए थे, पता

े रवाना होने लगे तो ताई ने

ब को एक

पकवान का दे ददया। याद नहीिं ककतने ददन बाद शादी थी लेककन

एक ददन पहले शाम को हम गुरदआ ु रे पहुूँच गए क्योंकक द रे ददन के सलए खाने बनाने थे। हे म राज हलवाई जै े जै े हम को हदायत दे ता हम उ ी तरह करते जाते। हे म राज को हम इिंडडया

े ही जानते थे श्ज

जो बसमिंघम स टी

के बारे में पहले सलख चक् ु का हूँ । गुरदआ ु रा था, ग्राहम स्ट्रीट में

ट ैं र के नजदीक जीऊलरी कुआटक र के नजदीक है । यह गुरदआ ु रा एक बडे

चचक को रीडीजाइन करके बनाया हुआ था। बाहर े चचक ददखाई दे ता था लेककन भीतर े गुरदआ ु रा लगता था श्ज में लिंगर खाना ककचन और टॉलेटें बनी हुई थी। आज तो यह और भी बडा हो गगया है क्योंकक पाकक बना दी गई थी और बना ददया गगया है , श्ज

ाथ की बहुत ी जगह भी खरीद ली गई थी श्ज पर कार ाथ ही पचा गज की दरी पर एक और नया बहुत बडा हाल

का नाम है जस् ा स हिं रामगडडआ हाल। इ

शादीओिं के सलए बनाया गगया है , श्ज में पाटीआिं होती हैं। इ

में खा

हाल को र्ववाह

बात सलखने की यह

है कक इिंगलैंड के बहुत े चचक खाली पडे थे जो हमारे लोगों ने खरीद सलए थे , श्जनमें अब गरु दआ ु रे मिंददर मश्स्जद बन गए थे लेककन आज तो चचक खरीदने का जमाना भी खत्म हो गगया है क्योंकक

ारे इिंगलैंड में नई नई जगह खरीद कर इतने आसलशान धमक अस्थान बन

गए हैं कक भीतर जाते ही रूह खश ु हो जाती है । हे म राज हलवाई के उ

ाथ हम काम कराते रहे , वोह र्वस्की का शौक़ीन था, इ

को मुहैया करवा दी।

ब्जीआिं काट ली गई थीिं, प्याज बगैरा भन सलए गए थे, दही को

जाग लगा ददया गगया था, उदक की दाल गुरदआ ु रे के गगयानी ने रख दे नी थी। उ

सलए ननिंदी ने

ुबह चार वजे गै

कुकर पर

ारा काम खत्म करके हम अपने अपने घर को चल ददए, हे मराज को ननिंदी ने

के घर छोड आना था क्योंकक उ

के पा

गाडी नहीिं थी। आज ककतना आ ान काम हो

गगया है कक केटररिंग वाले जाने और उन का काम जाने, घर वालों को कोई कर्फर ही नहीिं है । द रे ददन

ब ु ह हम बहुत जल्दी आ गए। ननिंदी और उ

के बडे भाई श्जन्दी को तो गरु दआ ु रे


के हाल में ही रहना था ककओिंकक हाल में शादी की र म होनी थी, इ द ु रे लडकों ने हे मराज के

सलए मैंने और कुछ

ाथ ही रहना और काम करना था ककओिंकक बरात के चार पािंच

ौ लोग आने वाले थे और इतने लोगों के सलए खाना बनाना इतना आ ान नहीिं था. उदक की

काली दाल तो गुरदआ ु रे के गगयानी ने द

ुबह ही रख दी थी और अब तकरीबन तैयार थी.

वजे के करीब बरात आ गई और समलनी की र में शुरू हो गईं. मेरी भी एक समलनी थी

जो दोनों तरि

े जमाइयों की समलनी होनी थी, इ

सलए मुझे भी वहािं शामल होना था,

तकरीबन एक घिंटा मैं वहािं रहा और कुलविंत और मैंने लडके लडकी की झोली में शगुन डाल कर मैं किर हे म राज के

ाथ हो सलया। क्योंकक तडके तो रात को भन सलए गए थे और अब

एक नया तरीका हे म राज का दे खा, जो पहले मैंने कभी नहीिं दे खा था। बडे बडे पतीलों में भने हुए तडके पडे थे और हे म राज काटी हुई गोभी और आलओिं को एक बडी तेल की कडाही में तल लेता और तडके वाले पतीले में डाल दे ता लेककन इ तली हुई गोभी और आलुओिं को समक् ना करता, ऐ े ही जब ारी गोभी आल तल हो गए तो किर उ ने बडे खरु पे

े दो तीन समनट में ही समक्

में तली आल गोभी डाल कर समक् पहली दिा दे खा था लेककन इ ही तेल दीख रहा था। यह वोह

कर ददया। बात तो

कर ददए और

मझ आ गई कक भने हुए तडके ब्जी तैयार हो गई लेककन मैंने यह

में एक बात मुझे अच्छी नहीिं लगी थी क्योंकक

ब्जी में तेल

मय था जब स हत के बारे में लोगों में जाग्रुप्ता नहीिं थी,

जो मजी खाओ, बटर खाओ, घी खाओ, ब

यह ही चलन था। डाक्टर भी कहते थे जो मजी

खाओ। चने बगैरा भी बन गए थे और अब आखर में परीआिं ही तलनी थी। कािी लडके आ गए थे और कुछ लडके मेज कुस य क ािं तरतीब

जा रहे थे। एक वजे के करीब बाराती आ

कर कुस ओ क िं पर र्वराजमान हो गए और हम उन्हें खाना

वक करने लगे। अब तो पिंद्रा

ोला

लडके काम कर रहे थे। एक बात हम को हौ ला दे रही थी,

भी बोल रहे थे कक खाना बहुत वाददष्ट था और कुछ लोग हलवाई के बारे पछ रहे थे ताकक वह उन को जरुरत पडे तो ले

जा

कें।

खाना खा कर

भी बाराती तो बाहर चले गए लेककन हम खाने की जठी रॉकरी उठाने में

लग गए। अब काम बहुत ज़्यादा था क्योंकक ारी राकरी को धोना था और आखर में बडे बडे पतीले यानी ककचन के ारे बतकन ार्फ करने थे और इ में हमारा बहुत जोर लगा। समल जुल कर

दाईं ओर अजीब

ारा काम खत्म कर सलया गगया। आज

ुबह

े ही मेरी नासभ के नीचे की

ा ददक हो रहा था लेककन मैंने कक ी को बताया नहीिं। ददक अजीब तरह की

थी, जै े मेरे शरीर में कुछ खखिंचा जा रहा हो, जब मैं बैठता तो ददक ठीक हो जाता लेककन जब चलने लगता तो बी

समनट बाद ही किर कुछ खीिंच होने लगता, मुझे नहीिं पता था कक

यह ककया हो रहा था। गरु दआ ु रे का

ारा काम खत्म करके हम कुछ लडके घर आ गए

क्योंकक अब डोली यानी र्वदाई का वक्त आ गगया था। तकरीबन छै वजे र्वदाई हो गई, बहुत े ररश्तेदार चले गए और हम घर के मैम्बर बैठ कर बातें करने लगे। ग़मगीन ा वातावरण


था और बातें करते करते कािी रात हो गई। “आप भी अब आराम करो ” कह कर हम भी अपने टाऊन को चल पडे। चलता…


मेरी कहानी - 118 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन April 04, 2016 कुलविंत के सलए मायके के अब कोई माने नहीिं हैं लेककन उ ही हैं । हर

मय वह हमारे

के मायके तो यह बुआ िुिड

ाथ रहे और रह रहे हैं। जै े जै े बच्चे बडे हो रहे थे ,बुआ

िुिड और भी हमारे नजदीक आते गए। िुिड तो बच्चों के

ाथ खेलता रहता। जब भी हम

बच्चों को कहते ,ननिंदी के घर जाना है तो बच्चे उछलने लगते। िुिड दो

ाल काम पर गया

नहीिं था लेककन अब एक िैक्टरी में काम करने लगा था यहािं बुआ काम करती थी ,तन्खोआह अच्छी थी ,इ

सलए आगथकक हालत भी बहुत अच्छी हो गई थी। जब भी हम बसमिंघम जाते तो कभी कभी बहादर भी आ जाता और हम तीनों घमने ननकल जाते। इतनी ख्त श्जिंदगी थी तो

ाथ ही आप ी भाईचारा भी बहुत था। नए नए लोगों े समलना हमारा शौक होता था। आज वह बात रही नहीिं और जो कभी हमारे ाथी हुआ करते थे अब कक ी के घर जाने

े भी कतराते हैं क्यूँकक आज की पीढ़ी बबलकुल अलग है । इ

बात का हमें

कोई रिं ज नहीिं है , क्योंकक जमाना बदलता रहता है । अभी र्पछले हफ्ते की बात है ,मेरा एक

ाथी मेरे

ाथ ही काम ककया करता था और मुझ

े आठ वर्क छोटा है , उ को ररटायरमें ट हुई है । एक ददन मेरी पत्नी को टाऊन में समला और मेरे बारे में पछा। जब पत्नी ने बताया कक मैं ठीक नहीिं हूँ तो मझ े समलने के सलए ु

आया। मेरा मन इतना खश ाल बाद ु हुआ कक बताना मुश्श्कल है और मेरा दोस्त मुझे द समला था और उ ने अपने मन की बात बता दी कक वह अपने ब दोस्तों े समलना चाहता है लेककन बहुत लोगों के बच्चों का व्यवहार ऐ ा होता है कक दब ु ारा जाने की दहम्मत नहीिं होती। किर उ

ने कुछ दोस्तों के बारे में अपना तजुबाक मुझे बताया। कुलविंत भी चाय ला कर हमारे

ाथ ही बैठी थी और बातें कर रही थी। इ

शख्

का नाम है

ोहन स हिं । हम तीनों ने

इतनी बातें की कक वह बहुत खश ु हुआ और कहने लगा कक वह अब इिंडडया जा रहा था और आकर किर समलने आएगा और ऐ े ही आता रहे गा। ऐ े ही वह ददन थे जब हम इतनी समहनत मशक्त भी करते थे और आप इतनी

में समलते भी बहुत थे ,और यही कारण था कक ख्त समहनत के बावजद ,ददन कै े बीत गए पता ही नहीिं चला।

हमारे काम पे भी बहुत तब्दीसलआिं आ रही थीिं। इ का कारण यह था कक बहुत ाल पहले इिंगलैंड कॉमन माकककट का दस्य बन गया था। अगर हम यरोप का इतहा दे खें पढ़ें तो पता चलेगा कक यरु पीयन दे शों की आप

में बहुत लडाइयािं हुई थीिं और वल्डक वार क ै िं ड में तो यह दे श बबाकद ही हो गए थे और इिंगलैंड की अथकवयवस्था तबाह हो चक ु ी थी। अक् र हम भारतीय कहते रहते हैं कक हम ने अिंग्रेजों को भगा ददया लेककन

च्चाई यह नहीिं है । यह जो


हमारी पालीमैंट बबश्ल्डिंग है आजादी

े अभी बी

ाल पहले ही तो बनी थी। यह बबश्ल्डिंग

1921 में बननी शुरू हुई थी और 1927 में कम्प्लीट हुई थी। जाहर है अूँगरे ज भारत छोडने वाले नहीिं थे लेककन वल्डक वार ैकिंड जो हुई ,अूँगरे ज बैंरप्ट हो गए थे और इन लोगों को भारत को अपने कब्जे में रखना बहुत कॉस्टली पढ़ रहा था ,अूँगरे ज जल्दी े जल्दी भारत े भागना चाहते थे ।

यही नहीिं धीरे धीरे इन्हों को और बबजने

भी दे शों को आजादी दे नी पडी। यह व्यापारी दे श है ,हर

के सलए प्रॉकिट को ही मद्दे नजर रखते हैं। यह मैंने यहािं रह कर दे खा है । जब कोई

कारोबार को बिंद करना होता है , लोग काम पर जाते हैं और उनके हाथों में नोदट हैं और

पकडा दे ते

ाथ ही

ारा दह ाब ककताब कर दे ते हैं। अब इिंग्लैण्ड की इन्वैस्टमैंट इिंडडया में बहुत है ,जै े ही इन को इिंडडया में घाटा ददखाई दे ने लगेगा ,एक ददन में ही कारोबार बिंद करके कक ी और दे श में ले जाएिंगे। वल्डक वार

ैकिंड में

ारे दे शों का नक् ु ान हो गया था ,इ ी सलए ही कॉमन माकककट की

ोच

पैदा हुई ताकक झगडे बिंद करके आप में इकठे हो कर कारोबार करें । पहले पहल तीन चार दे श ही थे लेककन धीरे धीरे इ क्लब्ब में और दे श शासमल होने लगे और अब यह 28 दे श इकठे हो गए हैं और धीरे धीरे और यरपी भी शासमल हो रहे हैं। बहुत े दे शों की करिं ी भी यरो हो गई है लेककन इ में इिंगलैंड अपना पाउिं ड रखना चाहता है । इिंगलैंड में लडाई के बाद दे श में बहुत नई नई िैश्क्ट्रयािं लग रही थी ककओिंकी इिंगलैंड में रीबबश्ल्डिंग का काम शुरू हो गया था। यही वजह थी कक इिंगलैंड को काम करने वाले लोगों की जरुरत थी ,इ ी सलए पहले कोई वीजा लेना नहीिं पडता था ,स िक श्ज कर दे ती वह

को कक ी भी कॉमनवैल्थ दे श की हकमत पा पोटक इश

ीधे इिंगलैंड आ जाता था और इिंडडया की हकमत पडे सलखे लोगों को ही

पा पोटक दे ती थी, पहले पहल तो अनपढ़ लोग भी आ जै े लाखों लोग उ

कते थे और इ ी तहत मैं और मेरे

मय इिंग्लैंड आये थे। इिंगलैंड में लेबर हकमत ने नेशनलाइजेशन का

प्रोग्राम शरू ैं ,नैशनल कोल ु कर ददया था। पोस्ट ऑकि , रे ल, बब्रदटश टे लीकॉम ,नेशनल लेलड ,स्टील और इ

के इलावा बहुत ही अन्य महकमों का कौसमकणक हो गया था।

लोग खश ु हाल हो गए थे ,नैशनल है ल्थ शहरी को हर तरह की महिं गी

र्वक

े महिं गी स हत

यननवस ट क ी एजुकेशन भी फ्री हो गई थी। यह धीरे धीरे इ

े बदढयाूँ काम हुआ ,श्ज हलत हो गई ,यहािं तक कक उ

मय इिंगलैंड का

े हर एक मय

ुनेहरी जमाना था लेककन

का बोझ इकॉनॉमी पर इतना पडा कक है रोल्ड र्वल् न की लेबर हकमत को

पाउिं ड devalue करना पडा ,दे श की इकॉनोमी बबगड गई। ट्रे ड यननअिंज इतनी ताकतवर हो गई कक वह कक ी भी हकमत को वोट के जोर कक

े गगरा दे ते। उ

ब ररकाडक टट गए। यननअिंज ककिंग मेकर हो गई थीिं।

मय इतनी स्ट्राइकेँ हुईं


और इ ी वक्त एक ऐ ी स्टे ट

वोमेन स्त्री आई ,जो

े ज़्यादा

प्राइमसमननस्टर रही ,वह थी टोरी पॉटी की लीडर मारग्रेट थैचर श्ज जाता है । 1979 में वह प्राइमसमननस्टर बनी और आते ही उ कर ददया। पहले पहल हम हर

ाल अपने अपने दे शों को पािंच

मय इिंगलैंड की को आयरन लेडी कहा

ने डीरे गुलेशन का काम शुरू ौ पाउिं ड

े ज़्यादा नहीिं भेज

कते थे लेककन थैचर ने फ्री एक् चें ज किंट्रोल कर ददया ,श्ज बडे बबजने

का अ र यह हुआ कक बडे अपने काम इिंग्लैण्ड में बिंद करके पै े दे श े बाहर ले जाने लगे

कॉरपोरे ट्

और अपनी इन्वैस्टमैंट भारत चीन और अन्य दे शों में करने लगे। इिंगलैंड में िैक्टररयािं बिंद होने लगीिं। बडी इिंडस्ट्री कोल और स्टील की थीिं ,यननयन स्ट्राइकेँ करने लगीिं। आथकर स्कारगगल जै े कोल यननयन के नेता हकमत सम ेज थैचर ने कोई भी स्ट्राइक कामयाब होने नहीिं दी , ब को

े टक्कर लेने लगे लेककन

े कुचल ददया। बहुत पुसल वाले जख़्मी हुए ,कई स्ट्राइकर मारे गए ,कयोंकक कुछ लोग स्ट्राइक के हक्क में नहीिं थे , इ सलए उन का आप में झगडा शुरू हो गया ,इ में कुछ लोग मारे गए ,जो काम पर जाते थे ,उनको जाने

े रोकते थे। कई गोरे पररवार कई पुश्तों

थे ,इन पररवारों की आप श्ज

े कोयले की कानों में करते

में दश्ु मनी हो गई।

इिंडस्ट्री में मैं काम कर रहा था ,इ

थी कक खचे कम ककये जाएूँ। उ समसलयन पाउिं ड की

ख्ती

पर भी इ

का अ र शुरू हो गया ,बात यह ही

मय हकमत को हर

ाल ब ें चलाने के सलए कई

श्ब् डी दे नी पडती थी और मुझे मालुम है कक ऐ ा क्यों था। हम मजे

े काम करते थे। हमारे कई लोगों ने तो इ

स स्टम को बहुत अब्यज ककया ,लोग स क नोट भेज दे ते थे कक वह बीमार थे लेककन वह अपना कोई छोटा मोटा बबजनै कर रहे होते थे। अपना काम भी करते रहते और स क मनी भी लेते रहते जो कािी होती थी , ऐ े ही और भी बहुत काम ऐ े होते थे श्ज

े ट्रािं पोटक को हर

ाल घाटा पडता था।

एक नई बात हमारे काम पर यह हुई कक एक रुट पे नया तजब ु ाक ककया गया श्ज यानन वन मैंन ऑपरे शन ब का नाम ददया गया। एक नई ब लाइ गई और इ डडश्जटल दटकट मशीन किट की गई और एक तरि बॉक् डालते थे। बॉक्

लगाया गया ,श्ज

को OMO में एक

में पै ेंजर पै े

में लगे शीशे में पै े ददखाई दे ते थे और ड्राइवर इन पै ों को दे ख कर

मशीन पर लगे दटकट की कीमत का बटन दबा दे ता था और पै ेंजर आगे जा कर एक और मशीन श्ज

े बाहर आये उ

में मेरा भी नाम था और इ

पहले तो लोग ब की

दटकट को ले लेता था। पहले थोडे ड्राइवरों को चािं

पर चढ़ते ही ब

ही कीमत डालनी पडती थी ,इ

चें ज होती नहीिं थी ,इ

वन मैंन ब में घु

ददया गया

की तन्खोआह का रे ट ज़्यादा था।

जाते थे लेककन अब उन को दटकट की कीमत

सलए दे री हो जाती थी क़्योंकक कभी कभी उ

सलए वह पै ेंजर लोगों

के पा

े चें ज मािंगता था लेककन धीरे धीरे लोगों को

पता चल गया और ब ें टाइम टे बल के अनु ार चलने लगीिं। जब यह तजब ु ाक कामयाब हो


गया तो अन्य रूटों पर भी वन मैंन ब ें चलने लगीिं और लगी। कनडक्ट्रों को कुछ हजार पाउिं ड और उन की

र्वक

ाथ ही कनडक्ट्रों की भी छुटी होने

के दह ाब

े पें शन दे कर उन की

छुटी होने लगी। श्ज

ने यह काम शुरू ककया ,उ

कर आया था और ब शुरू कर दी। इ

सलए

का नाम था समस्टर वॉकर। यह यननवस ट क ी

ड्राइव भी करता था। यह पहला ऐ ा मैनेजर था श्ज भी ड्राइवर उ

े डडग्री ले ने खद ु ड्राइर्विंग

े डरते थे ककओिंकी वह हर दम घमता रहता था

और अन्य ड्राइवरों पर नजर भी रखता था ,बहुत ख्त था ,छोटी ी गलती पर काम छुटी कर दे ता था लेककन अच्छे कमकचाररओिं को ररवाडक भी दे ता था। एक बात के सलए वह बहुत पॉपल ु र था कक उ ने कैंटीन में टॉयलेट की एक लडकी े शादी की थी जो बहुत धारण पढ़ी सलखी थी। वॉकर दो

ाल ही रहा लेककन एक ऐ ा रास्ता बन गया श्ज

मैनेजर चलने लगे। धीरे धीरे

पर

िाई करने वाली

भी नए आने वाले

भी रूटों पर वन मैंन ब ें चलने लगीिं और कुछ किंडक्टर

ड्राइवर बन गए और कई पै े ले कर कहीिं और काम करने लगे। जै े जै े वक्त बीतता गया ,कुछ इिंस्पैक्ट्रों की छुटी भी हो गई। मैनजमैंट जो िै ला लेती थी वह

ीकरट रखती थी।

क़्योंकक यह बहुत बडी ट्रािं पोटक कम्पनी थी ,इ सलए इ में बहुत े मैनज े र काम करते थे और एक दिा तो ऐ ा हुआ कक इतनी छािंटी हुई कक एक मैनज े र जो कैंडल की जगह आया था ,जब वह दफ्तर में गया तो उ के टे बल पर डड सम ल का लिािा रखा हुआ था, जब उ

ने पडा तो उ

ऑकि

में सलखा था कक आप को काम

खाली कर दो ,आप का

े जवाब है और कृपा द

समिंट में

ारा दह ाब कर ददया गया है । जब वह मैंनेजर दफ्तर

बाहर ननकला तो वह रो रहा था ककओिंकी उ

ने अभी नया नया घर सलया था श्ज

पर

उ ने बहुत बडा लोन सलया हुआ था । यह मैनेजर हमारे लोगों के बहुत खखलाि था ,इ सलए हमारे लोग खश ु थे। अब है ड ऑकि

में काम करने वाले कलकों की भी छुटी होने लगी श्ज

लडककयािं ही थीिं और इन में

े कुछ लडककयािं ड्राइर्विंग करने लगीिं। श्ज

में ज़्यादा तर ेक्शन में ब ें

ररपेयर होती थीिं उन में भी छािंटी होने लगी। मुक्त र बात यह है कक कोई डडपाटक मेंट नहीिं बचा श्ज

में

े लोग ननकाले न गए हों। यही बात मैं पहले सलख चक ु ा हूँ कक यह लोग

प्रॉकिट के सलए कुछ भी कर कभी इन के राज में

कते हैं और इन्होने दनु नया के इतने दे शों पर राज ककया कक

रज नछपता नहीिं था ,अगर कक ी एक दे श में

रज अभी चढ़ा होता

तो द रे दे श में नछप रहा होता। अब इन्होने

भी दे शों को आजादी दे दी है क्यिंकक इन को कोई िायदा नहीिं है । इ

के

ाथ

ही यह सलबरलाइजेशन का स लस ला शुरू हुआ है ,यह भी एक नया ढिं ग ही शुरू हुआ है । पहले यह लोग समसलटरी के जोर े अन्य दे शों पर राज करके प्रॉकिट बनाते थे और अब इन


की कम्पनीआिं इन्वैस्टमैंट करके प्रॉकिट बना रही हैं और यह ढिं ग लडाई करने

े बहुत आ ान है ककओिंकी जब भी घाटा शुरू हुआ ,यह लोग रातो रात अपनी इन्वैस्टमैंट को कक ी द रे दे श में सशफ्ट कर दें गे। और ऐ ा ही अब टाटा टील का कारोबार इिंगलैंड े खत्म हो रहा है क्योंकक टाटा को एक समसलयन पाउिं ड रोज का घाटा हो रहा है । ब

यही हालात मारग्रेट थैचर के आने

चलता…

े शुरू हो गए जो अब तक जारी है ।


मेरी कहानी - 119 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन April 07, 2016 बहादर का एक दोस्त था हरबला , यह भी ननिंदी की मा ी के घर के नजदीक ही रहता था, यह जात का चमककार था लेककन हमारी इ ब

े बडी बात थी, हरबला

े भी श्जआदा थी। हरबला

वजह

दोस्ती में जात पात कोई माने नहीिं रखती थी।

की पत्नी जो बहुत ुन्दर थी लेककन हिं मुख अपनी न् ु दरता की बहादर े दोस्ती शाएद बहादर के चाचा जी के र स हिं की

े हुई थी लेककन मैंने हरबला को इिंडडया में ही दे खा हुआ था। हरबला िगवाडे के है ड पोस्ट ऑकि में क्लकक लगा हुआ था। स्कल कालेज के वक्त कभी कभी मैं इ े दटकट बगैरा लेने जाया करता था।

किर एक दिा तो ऐ ा हुआ कक मेरे बडे भाई ने अफ्रीका े मेरे सलए पोस्टल आडकर भेजे थे और जब पोस्टल आडकर कैश कराने के सलए मैं पोस्ट ऑकि गगया तो हरबला ही काऊिंटर पर था। मैंने हरबला नीचे

के आगे वोह पोस्टल आडकर लोहे की

रका ददए और पै े दे ने को कहा, तो हरबला

ीखों वाली छोटी

बोला, “एक गवाह लाओ जो मुझे भी

जानता हो और तुझे भी जानता हो ” मैंने कहा , “ऐ ा गवाह मैं कहाूँ जानता हो और तुझे भी?”. हरबला और उ ने पोस्टल आडकर खखडकी जब मैं पोस्ट ऑकि

ी खखडकी के

े लाऊिं जो मुझे भी

बोला, “यह मैं नहीिं जानता, यह जानना तुमारा काम है ”

े बाहर

रका ददए। मैं माय

हो कर आ गगया।

े बाहर आया तो मैंने बहादर के चाचा जी मास्टर गुरददआल स हिं को

दे खा। मैं उनकी तरि गगया और बोला, “मास्टर जी, आप उ

क्लकक को जानते हो ?”

गुरददआल स हिं बोला, “चलो दे ख लेते हैं “. खखडकी पर जाते ही गुरददआल स हिं हरबला बोला, “यार तुम वोह तो नहीिं हो, श्ज स हिं ने उ उ

का नाम सलया, तो हरबला

को

का एक ररश्तेदार इिंग्लैण्ड में रहता है ? ” गुरददआल ने हाूँ बोल ददया, किर उ

ने वोह पोस्टल आडकर

के आगे कर ददए और बोला, “यार इ े कैश तो कर दो “. पता नहीिं हरबला

के ददमाग

में ककया आया, उ ने उ ी वक्त पै े मुझे दे ददए. ब

मेरी और हरबला

की यह ही मल ु ाकात थी।

जब पहली दिा मैं बहादर के

ाथ हरबला

तुम तो िगवाडे पोस्ट ऑकि

में काम करते थे “. किर मैंने वोह पोस्टल आडकर वाली बात

याद कराई तो हरबला बबदे शों

के घर गगया तो दे खते ही मैंने बोला, “यार ,

बोला, “गुरमेल स हिं ! पोस्ट ऑकि

में फ्राड बहुत होते हैं, कई दिा े मनी आडकर आते हैं और उनके घर की कोई अन्य त्री या मदक अपने आप को

ही बता कर पै े ले जाते थे और हमें प्राब्लम होती थी, हमें पोस्ट मास्टर को जवाब दे ना होता था, इ ी सलए हम श्जतनी दे र शोअर नहीिं कर लेते थे, पै े नहीिं दे ते थे”. ब

इ ी


मुलाकात के बाद मेरी दोस्ती भी कुछ कुछ हरबला तो उ

पररवार

अब हरब्ला

गे

े हो गई थी लेककन बहादर की दोस्ती

म्बश्न्धओिं की तरह ही है ।

हुआ कक वह बहुत ही शरीि था और समहनती भी बहुत था, छोटे मोटे घर की ररपेयर के काम वह खद ु ही कर लेता था और एक छोटी ी बात मैंने भी उ

े समल कर मह

ीखी थी, जब वह अपनी ककचन में पलस्तर कर रहा था। हरब्ला

के

भी बच्चे

माूँ पर ही गए थे। हरब्ला

बहुत ही सलिंम था और वजन का भी बहुत हल्का था लेककन मझ नहीिं आया कक उ को हाटक अटै क क्यों हुआ होगा ककओिंकी वह अपने

मुझे यह कभी

खाने के प्रनत भी बहुत ावधान था। जब वह इ दनु नयाूँ को अलर्वदा कह कर गया तो उ की उम्र शायद पचा के इदक गगदक ही थी। अभी कुछ अ ाक पहले बहादर ने मुझे बताया था कक हरब्ला

की पत्नी भी यह दनु नयाूँ छोड गई है और उन के बच्चे तो अब बहुत अच्छी तरह रहते हैं। हरब्ला की याद मुझे इ सलए आती है क्योंकक वह भी कभी कभी हमारी महकर्फल का दहस् ा होता था, उ अपनी यादों की डायरी में

का वह चेहरा मुझे भला नहीिं है और मैं हरब्ला

को भी

म्भाल कर रखना चाहता हूँ ।

बसमिंघम हमारे द रे घर की तरह ही रहा है क्योंकक बसमिंघम में हमारे बहुत ररश्तेदार और दोस्त हैं। हमारी इ क्लब में जगदीश का नाम वणकनयोग है और बहादर और जगदीश तो अभी भी रोज लाएब्रेरी में समलते हैं और ररटायरमैंट का लुत्ि लेते हैं। जगदीश हम बडा है लेककन दे खने में हम

े छोटा लगता है और उ

जगदीश ने कुककिंग का काम हे मराज समली कक इ

काम का उ ने बबजनै

े ही

की स हत हम

ीखा था और इ

े कािी

े अच्छी है ।

काम में उ े इतनी महारत

ही शुरू कर ददया और उ

को हर हफ्ते कक ी न

कक ी शादी में केटररिंग का काम करना होता था, वह बहुत प्रस द्ध हो गया था और उ के बनाये खाने बहुत प िंद ककये जाते थे और हमारी बडी बेटी र्पिंकी की शादी में भी उ ने ही खाने बनाये थे।

उ की पत्नी उतरा बहुत अच्छे भ ु ाव की स्त्री है और जब भी हम ब इकठे होते थे तो घर के दस्यों की तरह ही बैठते थे और कभी कभी जब जगदीश और बहादर की कक ी बात पे बह

हो जाती तो उतरा बहादर का पि ही लेती थी। उतरा बहुत ही झवान है । ज़्यादातर हम बहादर के घर ही इकठे होते थे और वहािं हर टॉर्पक पे बात होती थी, कभी कभी महकर्फल गमक हो जाती थी लेककन कोई ऐ ी बात नहीिं थी कक कोई कक ी की बात पर गुस् ा करे । कभी कभी बाऊ जी घडी

ाज के लडके बबल्ला और इन्दर और उन की पत्नीआिं भी आ

जाते तो महकर्फल और भी गमक हो जाती। वह महकर्फल को अब सम इ

भी तो अब भी समलते हैं लेककन मैं ही इ

करता हूँ क्योंकक मैं अब जा नहीिं

के इलावा और भी ऐ े लोग थे जो हमारी इ

कमरा भर जाता था। हम

कता।

महकर्फल का दहस् ा हो जाते थे और

ारा

ब की पत्नीआिं खाने बनाने के सलए ककचन में म रूि हो जाती


थीिं और आखर में मजे ककया जा

े खाते थे। जो मजा इ

महकर्फल का आता था ,उ

को वणकन नहीिं

कता और आज मैं इ

को बहुत सम करता हूँ। इन बातों को मैं इ सलए ही सलख रहा हूँ कक यह यादें मेरी श्जिंदगी का एक अहम दहस् ा है , इन के बगैर मेरी श्जिंदगी खाली लगेगी। आधी रात को जब हम बबछुडते थे तो गाडडओिं में बैठते बैठते भी बहुत दे र तक बातें करते रहते थे। हा हा, याद आया, बहादर के एक पडो ी थे श्ज

का नाम था चन्नी और इ

शख्

ने तो

मेरा नाम गचमटे वाले

िंत रखा हुआ था। एक दिा मैंने एक जोक छोडी थी श्ज में गचमटे का श्जकर आता था और उ ददन े ही चन्नी ने मेरा नाम गचमटे वाले िंत रख ददया था। यह महकर्फल क्या होती थी, ब

एक कॉमेडी

ककल ही होती थी। कभी कभी बहादर का दोस्त

परसमिंदर भी अपनी पत्नी रुर्पिंदर और बच्चों के

ाथ आ जाता था। परसमिंदर की पत्नी के

नननहाल हमारे गाूँव में ही हैं और उ के माता जी मेरी बहन की

खी है । परसमिंदर ने राधा

ुआमी धमक अख्तयार ककया हुआ है और राधा आ ु मी मीट अिंडा और शराब े परहे ज करते हैं लेककन परसमिंदर हर पब्ब या क्लब्ब में हमारे ाथ जाता था। वह कोक या कोई और डड्रिंक ले लेता था। परसमिंदर एक कामयाब बबजनै अब मैं एक ऐ े शख्

का श्जकर करने जा रहा हूँ जो नहाएत ही नेक इिं ान था। यह था

डाक्टर न ीम और यह पककस्तान की

मैंन है और उन के बच्चे भी बहुत अच्छे हैं।

े था। बहादर की पत्नी कमल कुछ

ाल डाक्टर न ीम

जकरी में रर ेप्शननस्ट रही थी। बहादर के पररवार और डाक्टर न ीम के पररवार के

आप

में बहुत अच्छे म्बन्ध थे। कभी कभी डाक्टर न ीम बहादर के घर रर्ववार के ददन खाना खाने के सलए आता रहता था और बहुत दिा हम भी वही​ीँ होते थे। न ीम ककचन में जा कर खद ु मच्छी कुक करता था, कभी मीट भी बनाता। उ की बनाई मच्छी मैंने भी एक दो दिा टे ट की थी और इ

में कोई शक्क नहीिं कक मच्छी बहुत ही टे स्टी होती थी और बहादर कभी कभी न ीम को हिं कर कहता, ” डाक्टर ाहब, आप गलत प्रोिैशन में चले

गए, आप का तो कोई रै स्टोरैंट होना चादहए था क़्योंकक आप इतने बडीआ खाने बनाते हो कक आप का होटल हर दम भरा रहता “. न ीम की पत्नी बहुत वर्क हुए ददल की बीमारी के कारण अल्ला को र्पयारी हो गई थी, वै े तो डाक्टर न ीम की स हत भी अच्छी थी और उम्र भी 80 के ऊपर थी, किर भी एक ना एक ददन तो

ब ने जाना ही है और वह भी अपनी पत्नी

े जा समले। हमारी मुलाकात

उन े कोई ज़्यादा नहीिं हुई लेककन उन की बातों े मैंने बहुत कुछ ीखा था। क़्योंकक वह डाक्टर थे और उन की जकरी मरीजों े भरी रहती थी और वह माने हुए डाक्टर थे । वोह

घर के र्पछवाडे तरह तरह की मुगीआिं भी रखते थे और कई नस्लों और दे शों की मुगीआिं उन के पा कौक

थीिं, 1982 में मैंने भी उन के सलए इिंडडया

े छै अिंडे ला कर ददए थे जो िाइदटिंग

के अिंडे थे। यह अिंडे मुझे बहादर के भाई हरसमिंदर ने कहीिं

और मैं बडी मुश्श्कल

े ला कर मुझे ददए थे

म्भाल कर लाया था ककओिंकी मुझे डर था कक कहीिं टट ना जाएूँ


लेककन उन अण्डों में

े एक ही बच्चा ननकल

का था। डाक्टर न ीम मुगों पर कोई ककताब

भी सलख रहे थे लेककन मुझे पता नहीिं कक वह इ

ककताब को खत्म कर पाये थे या नहीिं।

एक बात वह बताया करते थे कक यह जो पाककस्तान लोगों की स हत

े हकीम और मुल्ला आये हुए हैं, यह े खखलवाड करते हैं, कोई दे ी दवाई खा रहा है , कोई होसमओपैथी की दवाई

ले रहा है , कोई कुछ और कोई कुछ और जब मजक बहुत बढ़ जाती है तो हमारे सलए भी मुश्श्कल हो जाता है । किर जकरी में आ कर रोते हैं, एक तो यह लोग अपने पै े की बबाकदी करते हैं, द रे अपनी स हत का नुक् ान कर लेते हैं। इन लोगों को यह इिंगलैंड में दनु नयािं में लोगों को

े अच्छी स हत

मझ नहीिं आती कक

ुसभधाएिं हैं और यह बबलकुल फ्री हैं किर भी इन

मझ नहीिं आती। दे ी दवाई खाने

े बहुत लोगों को हाटक अटै क हुए हैं ,बहुत लोगों का बीपी इतना बडा कक उन को स्ट्रोक हो गए। एक ही बात की रट हमारे लोग लगाते रहते हैं कक अिंग्रेजी दवाइओिं के दे ी दवाईयािं खाने

ाइड इिैक्ट बहुत हैं, यह खानी नहीिं चादहयें लेककन जब े कुछ हो जाता है तो बहुत दे र हो चक् ु की होती है ।

एक और बात वह कहते थे हमारे लोग खन दान और अिंग दान करने

े दहचकचाते हैं। अिंग

तो कोई मु लमान दोने को राजी ही नहीिं होता, कहते हैं अल्ला पाक के पा

अधरे शरीर के

ाथ कै े जाएिंगे लेककन जब इन लोगों को खद ु को कक ी के अिंग की जरुरत होती है तो

इिंकार नहीिं करते। ऐ ी बहुत ी और भी वह बातें ककया करते थे लेककन बहुत बातें याद नहीिं। डाक्टर न ीम धासमकक र्वचारों के थे और बसमिंघम में एक बहुत बडी मश्स्जद के वह एक

ीननयर थे और कभी कभी उन की इिंटरवय बीबी ी पर भी आती रहती थी।

डाक्टर न ीम की बातों

े मुझे बहुत िायदा हुआ ककओिंकी मैं खद ु हाई बी पी का र्पछले चाली ालों े मरीज हूँ लेककन मेडडकेशन लेने े मेरा बीपी कभी भी हाई नहीिं हुआ और ना ही कोई ाइड इिैक्ट। हर छै महीने बाद डाक्टर चैक कर जाता है और हर वक्त नॉमकल ही होता है लेककन दवाई के बीपी हमारे

ाथ

ाथ मैं अपनी खरु ाक का भी बहुत गधयान रखता हूँ । हाई ारे खानदान में है श्ज का हमें पता नहीिं था। मेरी माूँ हमेशा र ददक के सलए

उन ददनों ऐस्प्रो की गोळयािं लेती रहती थी। उ ही होता था ,मठाई तो

का खाना भी बहुत ादा घर का खद ु बनाया ाल छै महीने बाद ही कभी खाती थी, किर भी जब मैं यहािं था तो

1965 में माूँ को अधरिं ग हो गया और चारपाई पर पढ़ गई। र्पता जी गाूँव में ही थे ,इ

सलए उन्होंने िगवाडे

स हिं एक कुआसलिाइड MBBS डाक्टर था श्ज इलाज

की

े डाक्टर केहर स हिं को बुलाया। केहर जकरी बिंगा रोड पर होती थी। उ

े माूँ छै महीने बाद चलने किरने लगी और घर के

ारे काम जै े गाये भैं

दे ना और उन को पानी र्पलाना कीया करती थी यहािं तक कक चारे वाली मशीन काट लेती थी । इ

के बाद माूँ ने श्जिंदगी में एक ददन भी दवाई सम

के

को चारा

े चारा भी

नहीिं की और स्ट्रोक


के 35

ाल बाद

ाल 2000 में इ

दी।

दन ु ीआिं

े अपनी उम्र भोग कर उ

डाक्टर न ीम की यही बात मैं काम पर भी अपने

ने अलर्वदा कह

ागथओिं को बताता रहता था ककओिंकक हाई

ब्लड प्रैशर एक कॉमन बीमारी है जो बहुत लोगों को है लेककन ही इलाज े इन् ान अपनी नॉमकल श्जिंदगी बतीत कर कता है । पुरातन मय में कक ी को ब्लड प्रैशर के बारे में पता

नहीिं होता था और ना ही बल्ड प्रैशर चैक करने वाली कोई मशीन या ऐ ी दवाइयािं होती थीिं। हमारे काम पर बहुत लोगों को ब्लड प्रैशर था। तीथक चह ु ान एक चाली वर्क का ुन्दर नौजवान था। जब मुझे बीपी हुआ था तो उन ददनों मैं रोज दौडने के सलए जाता रहता था, मैं बहुत

सलम हो गया था, डाक्टर की दवाई भी लेता था और बीपी नॉमकल हो गया था।

चह ु ान मझ ु े रास्ते में समला और बोला, ” समस्टर भमरा तम् ु हारे चेहरे पर वह पहले वाली

रौनक नहीिं दीख रही, ककया बात है “. मैंने कहा यार मझ ु े हाई बलड प्रैशर हो गया है । तो चह ु ान बोला, ” डाक्टर

े दवाई ना लेना, इ

के

ाइड इिैक्ट बहुत बरु े हैं, मझ ु े भी हुआ था, के आगे िेंक दी कक त मझ ु े खराब कर रहा है ,

जब डाक्टर ने मझ ु े गोसलआिं दीिं तो मैंने उ

भमरा !मैं तुझे बताऊिंगा, एक हकीम है श्ज

े मुझे बहुत िायदा हुआ है “.

घटना के तकरीबन दो महीने बाद चह ु ान को जबरदस्त हाटक अटै क हुआ और छोटी ी उम्र में अपनी बीवी को छोटे छोटे बच्चों के ाथ र्वधवा कर गया। अब उ की बीवी र्वचारी अकेली रहती है ककओिंकी उ

की बहु तो उ के पा आती ही नहीिं, स िक बेटा ही कभी कभी आता है । इ ी तरह एक और ाथी बाहडा मुझे बताने लगा कक वह इिंडडया गया था और वहािं एक हकीम

की दवाई उ

े बलड प्रैशर की दवाई ली थी और अब वह बबलकुल ठीक ठाक है और डाक्टर ने छोड दी है । मैंने उ

को कहा, ” बाहडा

छोडडए ककओिंकी यह आप के सलए खतरनाक बोला, ” भमरा

ाबत हो

ाहब, प्लीज डाक्टर की दवाई ना

कता है “. बाहडा हिं

पडा और

ाहब यही तो आप को पता नहीिं कक हमारी परु ातन आयव ु ैददक दआ ु यों में

कै ी कै ी शश्क्तआिं हैं और इन के कोई

ाइड इिैक्ट भी नहीिं हैं “. इ

नहीिं बोला।

के बाद मैं कुछ

कुछ ददनों बाद पता चला कक बाहडा घर में ही चक्र खा कर गगर पडा था और उ

का बीपी

बहुत हाई हो गया था। कुछ ददनों बाद जब बाहडा काम पर आया तो मुझे बोला, ” भमरा त ही था और भगवान ् का शुकर है मैं बच गया “. इ बात को पची वर्क हो गए होंगे और अब बाहरा र्पछले द

ाल

े ररटायर है और एक गुदक आ ु रे में प्रधान की पदवी पर है और

बबलकुल किट है ,कभी कभी मेरी पत्नी को गुदक आ ु रे में समलता रहता है और बबलकुल इ ी तरह एक और वह ब

ाथी था बलदे व ग्रेवाल श्ज

चला रहा था और उ को ब

गया और उ

की ब

के

र पर दे ी दवाइओिं का भत

पर ही स्ट्रोक हो गया। एक् ीलरे टर

स्लो हो गई और

डक के इधर उधर जाने लगी।

े उ

ही है ।

वार था,

का पैर उठ

ामने की ओर


एक गोरा ट्रक्क ले कर आ रहा था, उ ट्रक्क को ब बैठे

के

की कॉमन

ामने ला कर खडा कर ददया, श्ज

ैं

काम कर गई और उ े ब

ने अपने

खडी हो गई और भरी ब

भी लोग बच गए लेककन बलदे व ह पताल में जा कर भगवान ् को र्पयारा हो गया।

इ ी बात

े मैं डाक्टर न ीम का बहुत ऋणी हूँ क़्योंकक हम को उ िायदा हुआ है । चलता…

की बातों

े बहुत

में


मेरी कहानी - 120 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन April 11, 2016 आज मैं किर

िं ा। ुररिंदर के बारे में ही बातें सलखग

थी लेककन क्या वोह इ

शादी

ुररिंदर की शादी तो धम धाम

े खश ु थी ? नहीिं, वोह खश ु बबलकुल ही नहीिं थी,स िक खश ु

होने का नाटक ही कर रही थी। करती भी ककया, वोह तो भारतीय में ि​िं

कर रह गई थी श्ज

उ की शादी हो गई थी। ही जानकारी रखती थी।

में

े ननकलना अ म्भ था।

ुररिंदर बहुत ही हर बात पे बह

श्जतने भी पिंजाबी या गुजराती भारत कोई कक ी शहर

े हो गई

ुररिंदर के

इिंटैसलजेंट लडकी थी, पौलेदटक् करने में उ

भ्यता

अूँगरे ज के घर हमारा आना जाना नहीिं था।

कल छोडते ही

में तो वोह बहुत को मुहारत हा ल थी। उ मय

े आये थे, वोह श्जआदातर गाूँवों

े आया भी तो छोटे छोटे शहरों

सभयता ले कर आये थे और पछमी

सभयता के मकड जाल

े ही आया था।

े ही आये थे, अगर

हम अपने

ाथ भारतीय

े हमारा कोई लेना दे ना ही नहीिं था। अगर कक ी पडो ी अूँगरे ज के घर

कक ी

े हमारा

समलन श्जआदा होता तो हम इ में बताते और इ

को बहुत बडी बात मझते थे और द रों को इ के बारे में अपना प्राइड मझते थे लेककन हम अपने बच्चों को उन के बच्चों

की तरह घमने किरने के बबलकुल हक्क में नहीिं थे ककओिंकक हमारी लडककओिं का आप

में मेल जोल उ

भ्यता में लडके

वक्त बबलकुल गवारा नहीिं करता था।

हमारी

बदककस्मती यह थी कक हमारे बच्चे इिंगलैंड में पैदा हुए थे और यहीिं के कलों कालजों में पड रहे थे और हम थे रूडीवादी र्वचारों के। लडककओिं के भारतीय कपडे जै े शलवार कमीज को ले कर बहुत जदोजहद हुई थी। हमारे बच्चे बीच में र्प रहे थे। मेरे और बहादर जै े लोगों के सलए तो यह बातें कुछ नहीिं थीिं लेककन बहुत लोग ऐ े थे जो लडककओिं की इजत

को ले कर बहुत घबराते थे। हमारे लोग लडककओिं को शलवार कमीज पहनने को कहते थे तो वोह दहचककचाती थीिं ककओिंकक उन को भय था कक अगर कक ी कल के लडके या लडकी ने दे ख सलया तो वोह उनको जब लडककयािं घर कर

कल में छे डेंगे। बस् ों में काम करते हुए मैंने बहुत दे खा था े शलवार कमीज पहन कर आती थी तो बाहर आकर कक ी के घर जा

कटक जम्पर पहन लेती थीिं। अक् र मैं इन लडककओिं की बातें

दिा तो यह लडककयािं he,ll tell your dad”.

ुनता रहता था, बहुत मेरी ओर भी इशारा करके एक द ु री को कह दे ती,” eh! careful !

ररश्ते करते वक्त हम अपने बच्चों को ककया ककया कहते, यह हर एक घर की अपनी अपनी कहानी है । ज़्यादातर हमारे लोगों की एक ही कहानी थी, हम बच्चों को

मझाते, ” दे खो बेटा

! श्ज

घर में त जा रही है , यह लोग बहुत अच्छे हैं, लडका बहुत शरीि है , खानदान अच्छा है , पै े वाले लोग हैं ” और भी पता नहीिं ककया ककया। आखर में बच्चे मान जाते और शादी हो जाती। लडककयािं जब

ु राल जातीिं तो आगे होती

गाूँव

े आई औरतें श्जन की यह ही


खाहश होती कक बहु आएगी तो उ को ुख समलेगा। मैं यह नहीिं कहिं गा कक भी औरतें ऐ ी थीिं लेककन बहुगगिंती ऐ ी औरतों की ही थी खा कर उ मय। मैं इन औरतों का कोई क र भी नहीिं मानता ककओिंकी एक तो वोह गािंव

े आते वक्त परु ाने र्वचार लेकर आई थीिं,

द रे इनमें ज़्यादा औरतें पडी सलखी भी नहीिं थी। ऐ े हालात में एक कल्चरल कलैश की

श्स्थनत पैदा हो गई थी। आज तो भारत में भी लडककयािं बहुत पढ़ सलख गई हैं और भारत में भी मालम होता है कक ऐ ी ही श्स्थनत शुरू हो गई है । हमारे नजदीक ही एक औरत है

श्ज ने तीन दिा अपने बेटे की शादी भारत आकर की और तीनों बहुओिं को बच्चे होने के बाद छोड ददया ककओिंकी बेटे उ बड् ु या का कहा मानते हैं। हम को पता है कक इ बड् ु या की ोच 100

ाल परु ानी है लेककन कक ी को कक ी के घर

दे श में आप कक ी को कुछ नहीिं कह

े ककया लेना दे ना, वै े भी इ

कते।

ुररिंदर को अब एडजस्ट तो होना ही था लेककन वह लोग पै े वाले तो थे लेककन उन की

ोच बहुत ही पुरानी, वैहमों भमों वाली,श्जयोनतर्र्ओिं और ाध िंतों के पा जाने वाली थी। िुिड तो बहुत िारवडक र्वचारों का था लेककन हमारे माज में यह बात कक बेटी वाले को बहुत कुछ हना पडता है, िुिड को (नाम नहीिं सलखग िं ा), िुिड को शराब नहीिं थी लेककन यह शख् लगती थी,

हना पड रहा था। जब भी िुिड का

मधी आता

े ही आवभगत करनी पडती, यिं तो यह कोई बडी बात

कुछ मगरूर ककस्म का था, मुझे तो दे खते ही उ

उ की हर बात में लडके का बाप होने का रोअब झलकता था।

े निरत होने मय के

ाथ

ाथ

ुररिंदर को एक बेटा और एक बेटी पैदा हुए। घर का जो वातावरण था वह ुररिंदर के सलए अ तनय हो रहा था और घर में कडवापन आना शरू ु हो गया, ु राल वाले उ को ाध

िंतों के पा

अ र

ले जाने को कहते लेककन वह बबलकुल मानती नहीिं थी और इ

रु रिंदर पे होना शरू ु हो गया था, उ

ने यह जान्ने की कोसशश नहीिं की कक ददया था। कक उ

का

बात का

में गचडगचडापन आना शरू ु हो गया था और कक ी

रु रिंदर पर डडप्रैशन ने अपना अ र ददखाना शरू ु कर

ाथ ही यह बातें िुिड पर भी अ र करने लगी,एक दिा िुिड ने मझ ु े बताया मधी जब िुिड के घर आया तो उ

लडकी को ककया सशिा दी थी, और किर बताया कक उ

ने भी

मधी अपना जता ददखाने लगा तो िुिड ने

मधी को कहा कक जता उ

ररश्ता कराया था और अब दोनों ओर

े लडाई झगडा करने लगा कक उन्होंने

के भी पा

है ।

ुररिंदर की मा ी ने यह

े मा ी को ब्लेम आने लगा कक उ ने कहाूँ ि​िं ा

ददया था । इ

शादी के चार पािंच

ाल बाद ही 1983 में एक ददन अचानक बुआ का टे लीिोन आया कक

िुिड को हाटक अटै क हुआ है । कुलविंत को ले कर हम ीधे डडली रोड ह पताल जा पहुिंच,े भी िुिड की बैड के इरद गगदक बैठे थे, मशीनें लगी हुई थीिं और ग़मगीन वातावरण था। शाम को हम वार्प आ गए और ब ु ह को हमें किर टे लीिोन आया की िुिड को होश आ गई है और बचाव हो गया है । किर शाम को हम किर हस्पताल जा पहुिंचे और िुिड अब


बातें करने लगा था। जो जो डाक्टर कर रहे थे, िुिड ने हमें बताया कक उ को एस्प्रीन दी जा रही थी ताकक खन पतला हो

के।

ऐ े ही हम रोज रोज ह पताल जाते और मैं िुिड

े हिं ी मजाक करता कक “िुिडा जल्दी जल्दी ठीक हो के घर आ जा और मैं हफ्ते में दो

दिा बसमिंघम आ जाया करू​ूँगा और समल कर हम जौगगिंग ककया करें गे “. लग रहा था कक जल्दी ही ह पताल िुिड हम

े छुटी हो जायेगी लेककन एक ददन अचानक बिंब गगरा, पता चला कक

ब को छोड कर द ु री दन्ु याूँ में चले गया है । है रान और घबराए हुए हम ह पताल जा पहुिंच।े ऐ े मय में ककया वातावरण होता है , सलखने की जरुरत नहीिं लेककन

वाडक के अन्य मरीज यही बोल रहे थे कक िुिड रोज वाडक में घमा करता था और उन े बातें ककया करता था, आज दन्ु याूँ छोड गया.

ब ु ह वह कॉररडोर में घम रहा था कक अचानक गगर गया और यह

ज़्यादा न सलखते हुए इ ी बात पर ही आ आऊिंगा कक िुिड के घर में रोज रोज ररश्तेदार और दोस्त अर्फ ो जाहर करने के सलए आते। रु रिंदर बबलकुल रो नहीिं रही थी जै े उ को कुछ पता नहीिं कक ककया हो गया था। औरतें उ

को िुिड के बारे में बतातीिं लेककन वह एक

दम शािंत थी और इधर उधर दे ख रही थी। रोना धोना तो

ारा

ददन चलता ही रहता था

लेककन यहािं के पैदा हुए बच्चों को ऐ ी श्स्थनतओिं का कोई गगयान नहीिं था कक यह ब ककया हो रहा था, ककओिंकी औरतें एक द रे के गले लग कर रो रही थीिं और ुररिंदर के मन में ककया था, कक ी को कुछ पता नहीिं था। एक छोटी हूँ।

यह जो हमारे रीती ररवाज हैं इन

पता नहीिं शायद इ

ी बात मैं कभी भी भला नहीिं

के बारे में मुझे अभी तक भी ज़्यादा गगयान नहीिं है ,

सलए कक मझ ु े हमारे रीती ररवाजों

े शरू ु

े ही निरत रही है ककओिंकी

इन रीती ररवाजों के कारण ही घरों में लडाई झगडे दे खता आया हूँ जै े, उ का यह र्फजक था और उ

ने परा नहीिं ककया, मैंने उन की शादी में यह ददया और उन्होंने हमारी शादी पर

घदटआ कपडे ददए, ऐ े ही और भी बहुत बातें दे खख न ु ी हैं श्ज की वजह े मझ ु े ऐ ी बातों में ददलचस्पी है ही नहीिं। मेरी पत्नी को इन भी बातों का पता है , इ सलए यह उ का काम ही रहा है लेककन बहुत दिा ना जान्ने की कीमत भी अदा करनी पड जाती है और ऐ ा ही मेरे ाथ हुआ। रु रिंदर का पनत जो मझ े तो बहुत छोटा था, मझ े बोला,” भा जी ! ु ु र्पताजी को नहला कर जो

ट पहनाना है वह हमारा र्फजक नहीिं है , यह ननिंदी के मामा जी का

र्फजक है , कोई गलत िहमी न रहे तुम जाकर ननिंदी के मामा जी मघर स हिं

े पछ कर आओ

कक यह कक का र्फजक है “. मैं भी पागल और मा म मघर स हिं के घर चले गया ककओिंकी मघर स हिं का घर

ामने ही था और कक ी काम के सलए इधर ही आया हुआ था। मैंने भी जा कर मघर स हिं को ुररिंदर के पनत का न्दे श पहुिंचा ददया। मघर स हिं ने मुझे घर कर

दे खा और गुस् े में बोला,” वह कौन होता है ऐ ी बातें करने वाला, मैं मर गया हूँ जो इतना खचक भी नहीिं कर नहीिं है “

कता, जाह जाकर उ को कह दे कक उ को कर्फर करने की कोई जरुरत


मघर

स हिं की खझडक

हुई और अपनी अकल पे मैं ुन कर मुझे बहुत शसमिंगी मह पछताने लगा कक ककओिं मैं ने मघर स हिं का ददल दख ु ाया जो बहनोई के स्वगकवा हो जाने पर पहले ही दख ु ी था और कभी भी

ुररिंदर के पनत पर बहुत गुस् ा आया। इ के बाद मैंने रु रिंदर के पनत को नहीिं बुलाया और यह बात मैंने आज तक कक ी को नहीिं बताई,

आज ही सलखा है । इ

ाथ ही

मय मैंने यह भी मह

ककया कक यह जो लोग अर्फ ो

के सलए

आते हैं स िक र्फजक के तहत ही आते हैं कक कोई कहे ना कक अर्फ ो

पे आया नहीिं , वनाक

कक ी को कोई दुःु ख नहीिं होता। याद नहीिं ककतने ददन लोग अर्फ ो

के सलए आते रहे

रात तक लोग बैठे रहते। श्ज

वजे बॉडी घर आखण

लेककन इतना याद है कक घर हर दम भरा ही रहता था, हर शाम को खाना बनता और दे र ददन फ्यनरल था, उ

ददन

ब ु ह द

थी, बहुत लोग घर के बाहर एकत्र हो गए थे, लोग िल ला कर घर के बाहर रख दे ते और एक द रे े बातें करने लगते। ठीक वक्त पर एक बडी काले रिं ग की गाडी में बॉक् सलए दो अूँगरे ज काले कपडे पहने आ गए। घर के

ामने ही गाडी को खडी कर ददया और र्पछली

डोर खोल दी, हम कुछ लडके आगे हुए और बॉक् को गाडी े बाहर ननकालने लगे, श्ज में िुिड जी का शरीर था । बॉक् बहुत ही खब रत था। धीरे धीरे हम बॉक् को घर के भीतर ले आये,और स्टैंड किक्

ाथ ही एक गोरा बॉक्

के सलए एक स्टैंड ले आया,कमरे में जा कर उ

कर ददया और हम ने उ

दहस् ा गोरे ने एक

पाने

स्टैंड के ऊपर बॉक्

रख ददया, बॉक्

के ऊपर का

े खोल ददया, अब िुिड जी का शरीर एक खब रत

पगडी में ददखाई दे रहा था, लगता था िुिड जी

ने

ट और

ो रहे हैं, चेहरे पे वह ही नर था जो हमेशा

दे खते रहते थे।

मैं अपने आप को

म्भाल ना

का, मैं बहुत ही कम रोया था लेककन आज मझ ु े पता नहीिं ककया हो गया था। बआ श्जन्दी ननिंदी, ब िुट िुट कर रो रहे थे। अब रु रिंदर के भीतर का ु जवालामख ु ी भी िट गया और इतना रोई कक र्पछले भी ररश्तेदार दोस्त एक एक करके बॉक्

आखरी दीदार करते और द रे दरवाजे हो रहा था। एक एक करके पाने

के

ाथ नट क

के इदक गगदक चक्कर लगा कर िुिड जी का

े बाहर चले जाते। वाहे गरु ु वाहे गरु ु का जाप लगातार

भी लोगों ने दीदार कर सलया और वक्त के मत ु ाबबक फ्यनरल

वाले दोनों गोरे आये और उन्होंने बॉक् और

का ऊपर का दहस् ा इजत के

ददए। हमने बॉक्

ननकाल सलया और बाहर चला गया। हम ने बॉक् लोगों ने बॉक्

ारे ददनों की क र परी कर दी। अब

को गाडी में किक्

ाथ ऊपर रख ददया

को उठाया और एक गोरे ने स्टैंड नीचे

को बाहर लाकर गाडी में रख ददया,गोरे

कर ददया और धीरे धीरे उन्होंने

भी फ्लावर

जाने शुरू

कर ददए। गाडी िलों के बुक्के जो जो लोगों ने लाये थे, उन े गाडी भर गई। गाडी के पीछे पीछे

भी गाडडयािं चलने लगी और अब

एक दिा किर बॉक्

भी ने पहले गुदक आ ु रे जाना था। गुदक आ ु रे जा कर

को गुदक आ ु रे के अिंदर लाया गया, बहुत लोग जो घर नहीिं आ के थे, गुदक आ ु रे में आ गए थे। गगयानी जी ने अरदा की और किर भी बाहर आ गए और समट्री (शमशान घाट )की ओर

चलने लगे जो कािी दर थी।

समट्री पहुूँच कर

भी ने अपनी


अपनी गाडडयािं पाकक कीिं और हाल की तरि चलने लगे। यह

समट्री कई एकड जगह में थी

और

भी ओर

कब्रें ही कब्रें ददखाई दे रही थी, बहुत गोरे लोग अपने अपने की कब्रों पर िल जा रहे थे। हम

े पहले एक और कर्फऊन्रल था, जब वोह लोग बाहर आ गए तो हम बाक्

के अिंदर चले गए।

बाक्

को एक रै म्प पर रख ददया गगया था।

म्बश्न्धओिं

ले कर हाल

एक तरि मदक और एक

तरि औरतें बैंचों पर बैठ कर पाठ करने लगे थे। गगयानी जी आये हुए थे। पाठ खतम होने पर गगयानी जी ने अरदा की। अब आखरी वक्त आ गगया जब िुिड जी को आखरी र्वदायगी होनी थी। ननिंदी और श्जन्दी दोनों भाईओिं ने बटन दबाया और बॉक् रे सलिंग पर अिंदर की ओर शुरू हो गया और

जाने लगा, और

कुछ औरतें बुआ को

लगे और गचमनी की ओर दे खने लगे यहािं

धीरे धीरे

ाथ ही पदाक बिंद होने लगा। एक दिा किर रोना म्भाल रही थीिं। एक दरवाजे

भी बाहर जाने

े धआ ननकल रहा था। कुछ ही समनटों बाद एक ुिं

और गाडी आ खडी हुई जो कक ी अूँगरे ज का फ्यनरल था। पदाक गगर गया था,िुिड जी इ दन्ु याूँ की स्रीन े अलोप हो गए थे, अब यहािं ककया रह गया था, भी अपने अपने घरों की ओर चल ददए। चलता…


मेरी कहानी - 121 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन April 14, 2016 आज 14 अप्रैल है और आज मैं 73 वर्क का बढ़ा हो गया हूँ । यह ददन मेरे सलए मेरे जनम ददन

े भी ज़्यादा महत्व रखता है क़्योंकक इ ी ददन मेरी और मेरी पत्नी कुलविंत कौर की

शादी भी हुई थी और आज हमारी शादी की 49 वीिं ालगगरह है । आज मैं बचपन की बातों को छोड कर, अपनी पत्नी े ही शुरू करू​ूँगा। बुढ़ापे में र्पयार मुहबत की बातें करना कुछ अटपटा

ा लगे लेककन नहीिं सलखग िं ा तो यह

ब बातें मेरे

ाथ ही दर्फन हो जाएिंगी। यिं तो

अपनी कहानी में बहुत पहले ही सलख चक् ु का हूँ कक मेरी और मेरी अधािंगगनी की गाई 1955 में हो गई थी जब मैं 12 ाल का था और मेरी पत्नी 9 ाल की थी, और हमारी शादी, यह

गाई के 12

ाल बाद 1967 में

हुई थी। आज यह बात मैं बडे िखर े कहिं गा कक गाई मेरे दादा जी और कुलविंत के दादा जी ने तय की थी और आज मैं उन दोनों

बजग ु ों की याद को नमन करता हूँ । बजग ु ों के आशीवाकद

े आज हम दो

े 14 मैंबर हो गए

हैं। हमारे दो बेदटयािं और एक बेटा हुए थे और आगे बडी बेटी का एक बेटा और एक बेटी है । छोटी बेटी के दो बेटे हैं और मेरे बेटे के दो भी बेटे हैं। मैं अपनी पत्नी का धन्यवाद करना चाहता हूँ कक उ तरह वह

े हम को खश ु रखते हैं। शादी

े ले कर आज तक कुलविंत

ने जो मेरा

ाथ ददया

ही मानों में एक जोत, दो मती की तरह ही रहा है जै ा कक शादी के वक्त सशिा दी

गई थी। अपनी ओर

े मैं भी कह

अपना ककरदार ननभाने में कोई क र की

ने मुझे इतने अच्छे बच्चे ददए जो

कता हूँ कक मैंने भी एक पनत होने की है स यत

नहीिं छोडी। अक र जब शादी होती है तो पनत पत्नी

भी आदतें एक द रे जै ी होनी मुश्श्कल

खोना पडता है , श्ज

े श्जिंदगी की गाडी उ

ी बात होती है । यह तो कुछ पाना, कुछ

में लगे दो शौक अब्जॉवकर की तरह उभड खाबड

रास्तों पर भी स्मद हो कर चले। कलविंत कुछ

ख्त

ुभाव रखती है और मैं बहुत नरम ुभाव वाला हूँ। हमारा आप में प्रेम तो बहुत है लेककन कुलविंत कई दिा कुछ कडवा हो जाती है और मैं उ े इ तरह दे खकर कुछ ढीला पढ़ जाता हूँ ककओिंकी मुझे पता है कक उ का यह कडवापन एक दो समिंट के सलए ही होता है , कुछ दे र बाद उ

को पता ही नहीिं होता

कक ककया बात हुई थी। मझ ु े गस् ु ा भी क्यों आएगा ककओिंकी कुलविंत ने ारी उम्र एक ईमानदार च्ची हयोगगनी की तरह मेरी ेवा की है और अब तो और भी ज़्यादा करती है ककओिंकी मैं शरीरक कष्ट

े गज ु र रहा हूँ । अब उ

की खझडकें

कुछ मीठी होती हैं, जै े

“तम ु ने अभी तक खाना क्यों नहीिं खाया, ठिं डा हो गया है , अब मझ ु े किर गमक करना पडेगा

और मैं भी थक्की हुई हूँ “. उ की ऐ ी बातों े मैं भीतर ही भीतर खश ु होता हूँ । मुझे तर भी बहुत आता है क़्योंकक जो काम कभी मैं ककया करता था, अब उ को करने पडते हैं, मैं


तो खाना भी कभी कभी बना ददया करता था लेककन अब परी तरह ननभकर हूँ और यही बात मुझे तकलीि दे ती है ।

े मैं कुलविंत पर ही

1966 तक हम दोनों एक द रे के बारे में कुछ नहीिं जानते थे, जब हमारी शादी की बातें

शुरू हुईं तो तब ही हम कुछ कुछ जान्ने लगे थे, वह भी खतों के जररए। उ मय खत सलखना वह भी शादी े पहले एक अ म्भव बात ही थी। मैंने ही हौ ला करके अपने र्पताजी को खत सलखने की इजाजत माूँगी थी। मेरे र्पता जी कुलविंत के र्पताजी

े समले

और उन्होंने इ में कोई एतराज नहीिं जताया था और इजाजत समलने पर मैंने पहला खत कुलविंत को शायद दद म्बर 1966 में डाला था. क्या सलखा था उ में , मुझे कुछ भी याद नहीिं लेककन इतना याद है कक कुलविंत का खत बहुत ही ाधाहरन गाूँव की लडककओिं जै ा ही था। जै े जै े हम खत सलखते गए, खत लिंबे होते गए। अब इन खतों को पडने को मन नहीिं करता ककओिंकी वह जवानी के ददन थे और अब यह खत मैंने आठ रिं गो में 17 बडे बडे

ब बेहदा लगते हैं। एक खत तो

िे का सलखा था और अब तो इनको पडने में ही

िंकोच होता

है , इनमें अब कुछ गगले सशकवे भी होने लगे थे, किर भी मैं कुछ कुछ इन खतों की कुटे शनज सलखग िं ा। ” र्पयारी कुलविंत, आज शाम को तुम्हारा खत समला, श्ज

में तीन पेपर

थे और ऊट पटािंग सलखा हुआ था, मुझे बहुत गुस् ा आया, ोचा कक कोई जवाब ना दूँ , ुबह उठा तो ोचा मना गुस् ा थक दो, मैंने तम् ु हारा एपरल िल बनाया और तुम ने खामखाह इ ही

बात का गु ा कर सलया। अभी मैंने

नान

नहीिं ककया है । यह खत सलख कर

नान करना है , किर पगडी बाूँध कर िगवाडे को जाना है । इ

बैठा हूँ, नजदीक गचडडयाूँ चिं चिं कर रही हैं, पा

के घर

वक्त मैं चब ु ारे के ऊपर

े दध ररड्कन की आवाज आ रही

है , दध में मधाणी की आवाज आ रही है , कभी यह आवाज बिंद हो जाती है शाएद यह दे खने के सलए कक लस् ी के ऊपर माखन आया है या नहीिं, एक छत पर दो बच्चे शाएद अभी मिंह ु भी धोया नहीिं होगा, पतिंग उडा रहे हैं, आज धप ु बहुत अच्छी लगती है , ब ु ह की यक की लाली बहुत न् ु दर लग रही है , मैं ोचता हूँ यह यक यह ब ु ह और यह वातावरण दब ु ारा कभी समल

केगा ? गाूँव की ताजी हवा, घर वालों का र्पयार और मीठी बातें , ककतना मजा

है गाूँव में । यह खत जो 12 अप्रैल को शादी

े दो ददन पहले का है , यह ही 17 पेज का था। इ की

कुछ बातें सलखग िं ा। ” मेरी र्पयारी कुलविंत,

त स री अकाल,

ब े पहले तुझे तेरे र्ववाह की

वधाई हो, तेरे कहने के मुताबबक तेरा मनी आडकर 14 तारीख की जाएगा (यानन मैं). कुलविंत, श्जिंदगी इतना बडा ग्रन्थ है जो पडने यह एक ऐ ी कथा है श्ज का भोग पडना अ म्भव

ुबह को तेरे पा

पहुूँच े कभी खत्म नहीिं होगा,

ा लगता है , हिं ी खश ु ी गमी उदा ी

उतराई चढ़ाई श्जिंदगी को एक रूप दे ती है और यह ही श्जिंदगी का नाम है ” और इ

के बाद

मैंने अपने बारे में बहुत कुछ सलखा हुआ था। एक िे पर सलखा हुआ है , ” कुलविंत ! तेरी मेरी पहली मल ु ाकात भी एक अजीबो गरीब ही थी, ारी रात मैंने तडप तडप के गज ु ारी,


ुबह उठते ही मैंने

ाइकल उठाया और

जानने वाले समले लेककन मैं

धैनोवाली की तरि मुिंह उठा सलया, रास्ते में कई

र री है लो है लो करके चलता रहा ककओिंकी मैं लेट होना नहीिं

चाहता था ककओिंकी मुझे डर था कक कहीिं तुम इिंतजार करके लौट ना जाओ, खैर मैं जब जीटी रोड धैनोवाली ब

स्टैंड पर पहुिंचा तो तुम्हें टाहली के बि ृ के नीचे खडी को दे खा और दे खते ही पहचान गया, हा हा अगर कोई और भी खडी होती तो मैं उनमें भी तुमको ही ढिं ढता, गुस् ा नहीिं करना, त ने शमाक कर मुिंह द ु री तरि कर सलया था लेककन मैं शमी को झट

े पहचान गया था, मैंने

भेजी थी, उ यही कािंती

ोचा यही कािंती है । त ने जो अपनी िोटो मझ ु े इिंगलैंड में

े लगता था, तम ु बहुत गोरी होगी, पहले तो मझ ु े यकीिंन ही नहीिं आया कक है , तम् ु हारा ािंवला रिं ग दे ख कर मैं कुछ ननराश हो गया था, किर तम ु पे र्पयार

आ गया, मन चाहता था दौड कर तझ ु े अपनी बाहों में ले कर चम लूँ ।

बहुत दे र े तेरी यादों के शोहले मेरे ीने में भडक रहे थे लेककन त ने कोई हरकत नहीिं की और मैं इतना ननराश हो गया था कक ोचा वाप मुड जाऊिं। मैं बहुत े कक़या अपने मन में लगाने लगा था, “ककया यह हाथी के दािंत खाने के और ददखाने के और तो नहीिं ?”. जब खत सलखती थी तो बहुत बातें करती थी लेककन अब तुम चप्ु प थी। खैर हम रामा मिंडी े दाईं ओर चल ददए और छावनी की ओर चल पडे, मैंने बहुत बातें कीिं लेककन तम ु ने कोई

यथाशक्त जवाब नहीिं ददया, वह अिंगठी जो पहले र्पयार की मैंने तुम को दे नी थी, मैंने तुझे

बताया तो त ने कोई जवाब भी नहीिं ददया, और मैंने किर दब ु ारा कहा भी ना था। किर मुझे र्पया

लगी तो एक दकान

े मैंने पानी र्पया और छावनी रे लवे स्टे शन पर

ाइकल रख

कर हमने ट्रे न ली और जालिंधर पहुूँच गए। भख हम दोनों को लगी हुई थी और बहुत दे र तक कोई अच्छा होटल ढूँ ढ़ते रहे । एक होटल में बैठ कर रोटी खाई, ब्जी मटर पनीर दाल बगैरा थी, किर तम ु ने एक

ेव काटा और हम दोनों ने खाया, शमी मेज के ऊपर बैठी थी।

मैं एक कैलेंडर की ओर दे ख रहा था क़्योंकक मैं बोर हो रहा था। तम ु ने पछा था, “ककया रहे हो ?” मैंने जवाब ददया था कुछ नहीिं, ब था।

जसलआिं वाले बाग़ का

ोच

ीन दे ख रहा

किर हम बाजार में आ गए और मैंने िलों की एक टोकरी खरीदी, किर हम ने स्टे शन

पर आ कर दटकट सलए और छावनी आ गए, गाडी में कोई खा अपने

बात नहीिं हुई थी, हम ने ाइकल सलए और अब हमारी गरमा गमी हुई थी, त फ्रट की टोकरी लेती नहीिं थी

और मैं जबरदस्ती तुम्हारे

ाइकल पे बाूँध रहा था, त मुझे पै े दे रही थी और मैं ले नहीिं

रहा था और आखर में त टोकरी ले जाने के सलए मान गई थी, किर तुम्हारे गाूँव की एक लडकी आ गई थी और उ ने मुझे भी लेने चले गई थी, और मैं उ

त स री अकाल बोला

ाइकल

लडकी की इिंतजार कर रहा था, ताकक हम इकठे चलें , त खीझ

गई थी और बोली थी, ” आप ने अब उ के करे गी “. किर हम धैनोवाली

था, किर वह अपना

ाथ जाना है ?” मैंने कहा था, “वह माइिंड

िाटक पर आ गए थे और त गाूँव की ओर चल पडी थी।

द ु री दिा हम समले तो तुम्हारी मदर तुम्हारे

ाथ थी। तुम्हारी मदर ने आते ही कहा था,

“ज़्यादा ना घमा किरा करो, तुम्हारी शादी नजदीक आ रही है “.


किर हम कपडों की दकान पर गए और तुम्हारी बबछुडने वाली थी, इ

सलए तेरी

हे ली सभिंदर को भी समले, तुम उ

हे ली रो पडी थी। किर तेरी मदर ने हमें 21 रूपए किल्म

दे खने के सलए ददए थे और खद ु वह कक ी

े समलने चले गई थी, हमने किल्म दे खख नहीिं

थी, ब

बाजार के चक्र ही लगाते रहे थे, अब त मेरे

ाथ खल ु कर बातें करने लगी थीिं

और हिं

रही थी और मैं ने भी तुम्हारा हाथ पकड सलया था, और त ने कहा था, “यह

इिंगलैंड नहीिं है , लोग दे ख रहे हैं ” और मैंने भी हाथ छोड ददया था। कुछ कपडे बगैरा जो तेरी मदर ने खरीद सलए थे, लेकर हम तम् ु हारे घर आ गए थे और अब तम् ु हारे घर आ कर बहुत हिं ी मजाक हुआ था, घर आ कर तो त एक दम बदल ही गई थी और मेरे सलए बहुत कुछ खाने के सलए ले आ रही थी और तम ु मेरे सलए खाने बनाने में म रूि हो गई थी, घर आ कर तो त ऊिंची ऊिंची बोल रही थी और मझ ु े भी ऐ ा मालम हो रहा था जै े मैं पहले भी तम् ु हारे घर आता रहा हूँ ।

“यह मेरा आखरी खत है , इ

के बाद शाएद सलखने की

ोचता हूँ कक यह बात बबलकुल

ही ननकली ककओिंकक इ

जरुरत ना पडे “. और आज मैं के बाद कोई खत सलखा ही नहीिं।

आगे जा कर इ ी खत में सलखा है , ” कािंती त मुझे शादी के ददन भी नॉमकल समलती रहना, खामखाह रोती नहीिं रहना, अगर नहीिं समली तो घर आ के मैंने तुझे बुलाना नहीिं। शादी का ारा काम िटािट खतम कर दे ना है और दप ु हर को हमने राणी पुर आ जाना है , हाूँ इ

बात का गधयान रखना कक श्जआदा रोना नहीिं, नहीिं तो मुझे भी रोना आ जाएगा। आज तुझे हल्दी लग रही होगी और मैं रे डडओ चौबी

ुन रहा हूँ , मौ म के बारे में बता रहे हैं कक आने वाले

घिंटों में कहीिं कहीिं बारश के छीिंटे पडेंगे, अगर ऐ ा होगा तो लोगों ने कहना है कक

हम बतकन चाटते रहे होंगे। हाूँ नीचे बहुत ी औरतें गा रही हैं और उन के बोल मझ ु े मझ नहीिं आ रहे , वोह गा रही हैं, “हररया नी माएिं, हररया नी बदहनें, हररया ते ददल भागीिं भररया “, लो जी ! इ के ककया अथक हुए ?. कािंती ! त मझ ु े इतनी अच्छी लगती हैं कक तेरे बबन जी नहीिं लगता, ब मन यही कहता है कक एक पल भी त मेरी आूँखों के ामने े दर ना होना, आज ददल करता है ,

िे काले करता जाऊिं, लेककन अब मैं तेरा श्जआदा वक्त भी

बबाकद नहीिं करना चाहता ककओिंकक तेरे पा

भी वक्त श्जआदा नहीिं है , खत के स्ताव़ें

िे पर

तुझ को यह भी सलख दे ता हूँ कक अगर तेरा ददल नाचने को करे तो जी भर कर नाच ले, बल्ले बल्ले बई भाबी मेरी गुत्त ना करीिं, मैनिं डर

पनी तों आवे, इन खतों को कक ी ऐ ी

जगह रखना यहाूँ कक ी की नजर ना पडे, यह खत बहुत कीमती हैं। कािंती ! आ मेरे गले लग जा, बहुत ददल करता है तुझे दे खने के सलए, एक द ु रे े बबछुड जाने की घड्यािं भी ककतनी मजेदार होती हैं, हम ने ककतने शुगल ककये, कभी गुस् े का खत

डाल दे ना, किर द रे ददन हिं ी मजाक का डाल दे ना और अपना र्पयार भी इतना कक जल्दी ही एक द रे को खश ु कर दे ना,

अखबार का नाम ददया था, शरू ु

एक दिा त ने बहुत लिंबा खत डाला था श्ज को तने े अब तक हम ोचें तो ककतनी स आही हम ने खरच की,


ककतने एअर लैटरों पर पै े लगे, किर इिंडडया में एअर मेल लैटर समलने खत्म हो गए थे तो त बहुत े दटकट लगा कर खत डालती थी, उ अिंगठी के बारे में ककतनी बातें हुई थीिं, तेरी ऊूँगली पतली थी और मैंने अिंगठी वाप ले ली थी, मैं ोचता हूँ की अगर हम आप में खत ना सलखते तो ककया हमारा इतना र्पयार बढ़ता ? बेछक होता जरूर लेककन इतना नहीिं

होता जो अब है , कभी सलखना मेरे पैन की ननब्ब टट गई है , कभी सलखना आज बबजली को पता नहीिं ककया हो रहा है बार बार आिंखसमचोली खेल रही है , मैं मोम बत्ती ले कर आई हूँ , अब खत के ऊपर मोम गगर पडा है ,

इन बातों को

ोच कर बडा मजा आ रहा है , ऐ े लोग

ककतने होंगे जो आज के जमाने में हमारी तरह करते होंगे, शायद कोई भी नहीिं, हमारे गाूँव में तो अगर कक ी को पता चल जाए कक अपने

ु राल भी मैं जा आया हूँ तो पता नहीिं

ककतनी बातें होंगी, बई हम ने तो कमाल कर ददया है , एक नमना पेश कर ददया है , एक रास्ता बना

ददया है , आगे कोई इ

रास्ते पर चले या ना, अच्छा बई अब मैं तुझे तेरी शादी

की वधाई पेश करता हूँ , भगवान ् करे त हमेशा

ह ु ागवती रहें , तेरा पनत तझ ु

झगडा ना करे , हर काम में तुम्हारा मशवरा ले, मुझे पता है त अब हिं ददल

े कभी लडाई

रही है , मैं

च्चे

े र्पयार के िल भें ट कर रहा हूँ, शब्दों का यह तोहिा तुझे भेज रहा हूँ , और मेरे पा

कुछ भी नहीिं है , और यकीन मानो यह शब्द ही दन्ु याूँ में

े ऊिंची चीज है , अब हम ने

एक नई श्जिंदगी शुरू करनी है और house को home बनाना है , अच्छा कुलविंत ! एक र्पयार भरे चमे के

ाथ खत को बिंद करता हूँ , हमेशा ही तेरा र्पयार, मैं हूँ स िक तेरा,

गुरमेल भमरा। beauty of your heart is a magnet which attracts the heart of gurmail .

हम ने चाली

पचा

थे और अब भी मेरे

खत सलखे होंगे लेककन बहुत े खत हम ने शादी के बाद ही िाड ददए ामने बी के करीब पडे हैं और इन को पडने े भी दहचकचाहट होती

है क़्योंकक जवानी और बढ़ ु ापे का यही अिंतर है , अब यह खत हमारी मखकता रहे हैं। जब हम बढ़े हो जाते हैं तो यव ु ा लडके लडककओिं पे भल जाते हैं कक कभी हमारा भी जमाना था। मेरे

ौ नक ु

े भरे प्रतीत हो

ननकालते हैं लेककन यह

ामने जो खत पडे हैं उनमें

े मैंने चन ु

चन ु कर कुछ लाइनें सलखी हैं, कुछ खत कुलविंत ने कल उठा कर दे खे तो है रान हो गई कक इतने छोटे अिरों

े सलखा हुआ है कक यह तो पढ़ भी नहीिं होते। 1982 में मैं अपने बेटे को ले कर इिंडडया आया था, मेरे छोटे भाई ननमकल की पत्नी का भाई तर ेम भी गाूँव में आया हुआ था। एक ददन वह एक अलमारी े ऑडडयो टे प ले आया और मुझे बोला, ” भा जी, इ टे प को न ु ो तो “. जब मैंने टे प ुनी तो मैं है रान हो गया क़्योंकक यह टे प मैं और कुलविंत ने शादी के कुछ ददन बाद ही अपने चब ु ारे में ररकाडक की थी और हम इ यह आधे घिंटे की ररकाडडिंग थी। हम ने यह ररकाडडिंग

ो मैं यहािं ले आया और अब हमारे पा

को भल ही गए थे, है । एक दो दिा

ुनी है और है रान होते हैं कक हमारी बातों में ककतना अिंतर आ गया है ।

कुलविंत की आवाज मा समयत

े भरी हुई है , बात बात पे जी जी बोलती है , मेरी ककतनी इजत करती है , हा हा और अब शेरनी बनी हुई है ।


शादी के इन 49

ालों में ककया कुछ हुआ, ोचते हैं तो है रान हो जाते हैं। आज शाम को बच्चे आएिंगे और हमें प न क करें गे। श्जिंदगी में ुख भी दे खे और दुःु ख भी, रोये भी और हिं े

भी, यिं तो इिं ान कभी

तुष्ट होता नहीिं लेककन मैं कह

किल्म का happy end ही होगा, ”र्प्रये

मैंने अपने मन में ब ाली है तेरी मरत, अब भी मेरे

ामने है वही

ोलह

ाल की

लोनी- ी

पहले तम ु थीिं केवल और केवल मेरा प्यार, तुम्हारे

च्ची

घन प्यार के

हयोगगनी रूप ने तुम्हें बना ददया है ाथ- ाथ मेरी जरूरत.”

यह एर्प ोड मैं कुलविंत को भें ट करता हूँ . चलता…

रत,

कता हूँ कक हमारी श्जिंदगी की


मेरी कहानी - 122 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन April 19, 2016 िुिड जी तो चले गए थे और

ाथ ही

रवाना हो गए। धीरे धीरे श्जिंदगी किर

ब ररश्तेदार और

े चलने लगी और घाव भरने लगे।

दोनों बच्चों के पालन पोर्ण में म रूि हो गई। उ दोनों उ

ुररिंदर भी अपने अपने घरों को

में काम करने लगे थे। कुछ

ुररिंदर भी अपने

के पनत ने एक दकान ले ली थी और

ाल तो ऐ े लगता था कक दोनों आप

हैं और जब भी आते थे, कोई ऐ ी बात ददखाई नहीिं दे ती थी, श्ज

े पता चले कक आप

में खश ु थे या नहीिं लेककन धीरे धीरे लगता था, कुछ ठीक नहीिं है । उन कभी कभी ही होता था क्यिंकक वह बसमिंघम ही आते और वहािं

में ठीक ठाक

े वाप

े हमारा समलन तो चले जाते।

इधर ननिंदी भी स्कल की पढ़ाई खत्म करके एक वककशॉप में काम पर लग गया था जो उ के सलए बाद में बहुत िायदे मिंद ाबत हुआ और अब उ की खुद की वककशॉप है । अब बुआ चाहती थी कक ननिंदी की शादी हो जाए क्यिंकक बडा भाई श्जन्दी डैंदटस्ट बनके लन्दन काम करने लगा था और उ

ने भी एक जमकन लडकी

े शादी करा ली थी। िुिड जी चले गए थे

और बुआ और ननिंदी अकेले ही घर में रहते थे। एक ददन बुआ का टे लीिोन आया कक ननिंदी

के सलए एक लडकी दे खी है और हम भी आएिं और लडकी को दे ख लें। एक रर्ववार को हम बच्चों को ले कर बुआ के घर जा पहुिंच।े लडकी के माूँ बाप बुआ िुिड को पहले े ही जानते थे। क्यिंकक ननिंदी के मामा जी का घर ामने ही था, इ सलए प्रोग्राम ननिंदी के मामा मघर स हिं के घर ही होना था। श्ज

लडकी के बारे में बात होनी थी, उ

की बडी बहन और उन के र्पता जी भी आये हुए थे। बहुत ही खश ु गवार वातावरण था। लडककओिं के बाप एक पोस्ट ऑकि चलाते थे और दोनों बहनें उ

में काम करती थीिं। चाय बगैरा पी कर ननिंदी और लडकी को प्राइवेट बात

करने के सलए द रे रूम में भेज ददया गया। कुछ दे र बाद दोनों आ गए और िै ला कर जवाब दे ने के सलए तय हो गया ताकक दोनों कुछ ददन

ोच

ोच र्वचार लें । कुछ ददनों बाद

बुआ का टे लीिोन आया कक ननिंदी माना नहीिं और इिंकार करता है । बात यहीिं खत्म हो गई। लडकी के बाप ने भी कोई मौज ी नहीिं ददखाई और कहा कक इ

े उन के

म्बन्धों पर

कोई िरक नहीिं पडेगा। इ

के कुछ महीने बाद एक और लडकी के बारे में बात चली। यह लडकी अडडिंग्टन में थी।

रर्ववार का ददन था और बआ ननिंदी लडकी वालों के घर कुछ दे र पहले पहुूँच गए थे और हम ु घर ढूँ ढ़ते ढूँ ढ़ते यिं ही घर के नजदीक पहुिंचे तो पता नहीिं हमारी गाडी को ककया हुआ,कक एक दम गाडी की

स्पैंशन टट गई और गाडी बेकाब हो कर एक खडी गाडी में इतने जोर

लगी कक स्ट्रीट के

भी लोग घरों

े बाहर ननकल आये, बच्चों ने चीखें मार दीिं। पहले बच्चों


की तरि मैं ध्यान ददया और भगवान ् का शुकर था कक कक ी को चोट नहीिं आई। श्ज गाडी थी, वह भी बाहर आया तो वह हमारा एक दर का ररश्तेदार ही ननकला, उ पहले हमारा हाल चाल पुछा, तो हम ने उ

को बताया कक हम

की

ने आते ही

ब ठीक ठाक हैं।

दरअ ल हमें पता ही नहीिं था कक हमारे यह ररश्तेदार यहीिं रहते थे क़्योंकक ना तो हम कभी इन के घर कभी गए और ना ही वह कभी आये थे। श्ज दे खने जाना था वह

घर में हम ने ननिंदी के सलए लडकी

ाथ का घर ही था। पहले तो हम अपने इ

ररश्तेदार के घर ही चले

गए और बाद में ननिंदी और बुआ भी इ ी घर में आ गए। पहले तो हम ने अपनी गाडडयों के डीटे ल एक द रे को ददए और किर इिंशोरें हमारा यह ररश्तेदार हिं

वालों को टे लीिोन ककया ताकक वह गाडी ले जाएूँ।

कर बोला, ” आज ही यह गाडी गैरेज

े बन कर आई थी, इ

पे

बहुत काम करने वाला था और आज यह किर वाप चली जायेगी”. क र तो मेरा कोई नहीिं था लेककन भीतर े मैं गगल्टी मह कर रहा था। खैर, बातें होने लगी और हम ने अपने आने का मक द बताया तो हमारे इ लेते हैं। हमारे इ

ररश्तेदार की पत्नी लडकी वालों के घर गई और उन

स्माटक और भली लग रही थी, उ जोड कर

ररश्तेदार ने बोला कक लडकी वालों को हम यहीिं बुला

ब को

के माूँ बाप और दो छोटे भाई

त स री अकाल बोला और

भी बैठ गए।

ब को बुला लाई। लडकी ाथ थे। लडकी ने हाथ

धाहरन बातें होने लगी और

कुछ दे र बाद चाय भी आ गई। चाए पीते पीते ननिंदी और वह लडकी भी आप लगे। वातावरण ऐ ा था जै े

ननिंदी और लडकी को एक द रे

भी पहले

में बातें करने

े ही एक द रे को जानते थे। चाय खत्म करके

े बात करने के सलए द रे रूम में भेज ददया गया। कोई

आधे घिंटे बाद दोनों बाहर आ गए और उन के चेहरों

े लगता था कक बात बन गई थी।

माहौल बहुत अच्छा था और अब हम वाप आने को तैयार हो गए, जब बाहर आये तो कक ी गैरज े हमारी गाडी को लेने के सलए दो मकैननक आ गए थे, वह इ को tow करने की तयारी करने लगे और हम ददए।

ब ननिंदी की गाडी में ही घु

घर आ कर बातें होने लगी और ननिंदी की बातों था। शाम को ननिंदी हम

गए और अपने घर को चल

े लगता था कक उ

का िै ला हाूँ में ही

ब को हमारे घर छोड गया। तकरीबन दो हफ्ते बाद बआ का ु

टे लीिोन आया कक वहािं ररश्ता होना

िंभव नहीिं था। बुआ पुराने र्वचारों की है , कहने लगी कक

घर जाते ही जो एक् ीडेंट हुआ था, उ े लगता है कक यह शादी ठीक नहीिं है । कुलविंत ने बआ को बहुत मझाने की कोसशश की लेककन बुआ मानी नहीिं। यह बात भी अधरी रह गई। इ

के कुछ महीने बाद एक और जगह बात चली, लडकी

ुन्दर थी और इ

लडकी के र्पता

जी एक माकेट ट्रे डर थे . लडकी का नाम था कुलर्विंदर। अब यहाूँ बात बन गई, कुलर्विंदर और ननिंदी दोनों खश ु थे। अब शादी की तैयाररयािं होने लगीिं।

ब खश तो बहुत ही ु थे, बआ ु


खश ु थी क्यिंकक अब घर में रौनक होने वाली थी और बुआ का अकेलापन खत्म होने वाला था। काडक छपवा सलए गए और

ब ररश्तेदारों को दे ददए गए। अब एक दिा किर वोही

पकवान बनने शुरू हो गए और ननिंदी की ताई ने किर वह ही घर के बच्चों के यह

े पैर जमा सलए थे, वोही कमरा और

दस्य। ननिंदी की भरजाई रानी भी आ गई थी।

ाथ आ गए थे। ुररिंदर की शादी के

मय वाला ही रीपीट

ुररिंदर और उ

ीन था लेककन इ

के पनत भी

दिा एक बात हट्ट

कर हुई थी। यिं तो शादी के बाद बरानतयों को खाना गुदक आ ु रे में ही था लेककन बुआ ने शाम को रर ेप्शन पाटी दे ने का प्रोग्राम बना सलया था। पहले भी लोग बरानतयों को खाने का प्रोग्राम गुदक आ ु रे में ही रखते थे लेककन अब कुछ लोग बरानतयों और अपने पाटी दे ने लगे थे। क़्योंकक अभी पैले ककराए पर ले लेते थे, श्ज

हाल होते नहीिं थे, इ

बॉक्

सलए लोग कक ी स्कल का हाल

का ककराया स्कल वालों को दे दे ते थे। बीयर

कक ी पब्ब वाले या कक ी औि लाइ ैं

वाले

भी ररश्तेदारों को वक करने के सलए

े कॉन्ट्रै क्ट कर लेते थे और र्वस्की ब्रािंडी के

खद ु खरीद कर हाल में ले आते थे।

अभी भी बेयरे नहीिं होते थे और कुछ लडके पाटी के ददन

ुबह

े ही हाल में जा कर मेज

कुस य क ािं लाइनों में रख दे ते थे और टे बलों के ऊपर एक वाइट पेपर बबछा दे ते थे जो एक बडे रोल में होता है , हाल को बलन और तरह तरह के िलों

जा दे ते, कनिैटी के डडब्बे एक

जगह रख दे ते। स्टे ज को

ैट कर ददया जाता क्यिंकक अब गाने वाले बहुत े ग्रुप बन गए थे जो स िक हारमोननयम और ढोलकी के ाथ ही गाते थे। टे बलों पर प्लेटें चमचे और ग्ला रख दे ते। कोक और तरह तरह के ज करस्प (इिंडडया में गचप् पम्प किक् पािंच

की बडी बडी बोतलें रख दे ते ओर

ाथ ही पीनट और

) रख दे ते। बीयर वाले नजदीक ही बीयर के ड्रम और उन के

कर दे ते। श्जतने तरह की बीयर होती, उतने ही पम्प होते और

ौ बडे बडे बीअर के ग्ला

रख दे ते।

करते थे। पम्प वाले बीअर के ग्ला कर सलए जाते और महमानों के

वक करने का काम

ाथ

ाथ ही वह चार

ब लडके समल जुल कर

भरते जाते और लडके चार पािंच ग्ला

एक ट्रे में रख

ामने टे बल पर रखते जाते।

एक बात अब और अच्छी हो गई थी, वह थी केटररिंग का काम। इ

केटररिंग के काम में

हमारे दोस्त जगदीश की तरह बहुत लोग हो गए थे, यह केटरर खाने तैयार करके बडे बडे पतीलों में हाल में छोड जाते थे और वक घर वाले और बहुत े लडके समल कर करते थे। काम करने वाले लडकों की कोई कमी नहीिं होती थी और यह काम करते थे। इ

में

े अच्छी बात यह हो गई थी कक कप प्लेटें चमचे

गए थे और कुछ भी धोने की जरुरत नहीिं होती थी। आज तो यह लेककन उ इ

ब खुशी खश ु ी समल कर

ब होटलों में ही होता है

मय ऐ े हाल ही ककराए पर ले कर खाने का प्रोग्राम होता था। यह

सलए ही सलखा है कक यह वातावरण इतना रौचक मई होता था कक इ

होता था।

ब डडस्पोजेबल हो ब मैंने

में भी एक लुफ़्त


गुरूद्वारे में ननिंदी की शादी हो गई और शादी के बाद खाना खा कर

भी अपने अपने घरों

को चले गए लेककन हम बहुत े लडके हाल में चले गए जो कक ी स्कल का था और स्कल का नाम मुझे याद नहीिं। कुछ ही घिंटों में हम ने मेज कुस य क ािं लगा दीिं, बीयर वालों ने पम्प किट कर ददए और शाम को धीरे धीरे महमान आने शुरू हो गए। गाने वाले लडके भी आ गए और स्टे ज पर लाऊड स्पीकरों को तरतीब अूँगरे ज दोस्त और और उ

े रखने लगे। ननिंदी के काम के बहुत े का मैनेजर जो बाद में ननिंदी का पाटक नर भी बन गया था,भी

आ गए थे। ननिंदी के अूँगरे ज दोस्तों के बारे में सलखने का मेरा मतलब यह है कक अगर आप इन के घर जाएूँ तो यह गोरे लोग कक ी को चाय भी नहीिं ऑिर करते, यह इन की ही है , इ

को मैं इन का कोई दोर् नहीिं

भ्यता

मझता लेककन हम इिंडडयन लोग घर में कोई

महमान आये को जबरदस्ती खखलाते र्पलाते हैं क्यकिं क हमारी मेहमाननवाजी तब तक पणक नहीिं होती जब तक मेहमान कुछ खा ना ले। धीरे धीरे हाल भरने लगा, औरतें बच्चे खाने पीने लगे, बबयर के ग्ला ों

े मेज भर गए,गाने

वाले गाने लगे। इ

ामने ग्ला

में एक बात हिं ने वाली है ,जब अूँगरे ज मेहमानों के

वह पी नहीिं रहे थे, वह इ

बात की इिंतजार में थे कक उन्होंने इ

रखे तो

बबयर के पै े कक

को

दे ने थे। मैंने ही उन को पछा कक वह बबयर क्यों नहीिं पी रहे और अगर यह बबयर उन की मन प िंद नहीिं तो उन की प िंदीदा बबयर लाई जाए ! एक गोरा पछने लगा कक पै े कक को दे ने हैं ? मैंने भी है रान हो कर कहा कक भाई ! यह फ्री है और जी भर कर र्पएिं ,और इ

बबयर के बाद र्वस्की बकाडी की बोतलें आएूँगी और जो कक ी की प िंद हो, मजे

र्पएिं। ब

किर ककया था, गोरे गोरीआिं तो बबयर पर टट पडे और है रान हुए मजे करने लगे।

े गोरे भी पहले कुछ अजमिंज

बात

हाल में घर

में थे क़्योंकक जब गोरे लोग पादटक यािं करते हैं तो

ब को अपना प िंदीदा डड्रिंक काउिं टर

े मोल लेना पडता है और गोरे तो अपने अपने

े भी वाइन की बोतलें ले कर जाते हैं और अपने होस्ट को दे ते हैं और यहािं

ब कुछ

उन के टे बलों पर रखा हुआ था। गोरे लोग तो डडनर के पै े भी खद ु ही दे ते हैं और यहािं तो खाने के सलए भी अब फ्री था। एक घिंटे बाद हम ने र्वस्की बकाडी की बोतलें भी ारे टे बलों पर रख दी। अूँगरे ज तो है रान ही हो गए जब गचकन कबाब और

लाद की प्लेटें भी उन के

ामने रखी जाने लगीिं। अब गाने वाले लडके गा रहे थे, और लडके लडककयािं डािं बाद एक टे बल पर एक

फ्लोर पर नाच रहे थे। कुछ दे र

ुन्दर केक रख ददया गया, इदक गगदक

कुलर्विंदर ने केक काटा और

ब इकठे हो गए, ननिंदी और

ाथ ही रैककर और कनिैटी ने अपना रिं ग ददखाना शुरू कर

ददया, ननिंदी की भाबी रानी तो कनिैटी

े भरी हुई थी, तासलआिं बज रही थीिं और ननिंदी ने शैम्पेन की बोतल खोली तो झाग दर तक गई, दोनों ने शैम्पेन के ग्ला एक द रे को स प कराये और अब ऐ े लगने लगा जै े

ब के

र पर कोई भत

वार हो गया हो।


गाना था,” ततक ततक तनतआिं, हई जमालो “. इ

गाने पर

था, छोटे बडे यहािं तक कक ननिंदी का मामा मघर स हिं भी बजा रहा था। इ

में

ब ने अपना जोर लगा ददया

रूर में आ गया था और तासलयािं

े अजीब और हिं ी वाली बात यह हुई कक श्ज मघर स हिं की ामने कभी बैठती नहीिं थी क्यिंकक मघर स हिं बहुत ही पुरातन र्वचारों का था,

बहु उ के अब उ की बहु खब रत ाडी में उ के ामने डािं कर रही थी और मघर स हिं भी खश ु ी में मस् ु करा रहा था। गोरे गोरीआिं अपने टे बल पर शराबी हुए ऊिंची ऊिंची हिं रहे थे। मैं अचानक हाल के बाहर गया तो ननिंदी का भाई श्जन्दी रो रहा था और बुआ उ

को मना

रही थी कक ” त क्यों कर्फर करता हैं, में जो हूँ “. दरअ ल श्जन्दी अपने डैडी को याद करके रो रहा था और उ

को सम

कर रहा था कक काश वह अब होता तो ककतना खश ु होता।

श्जन्दी को हम शािंत करा के हाल में ले आये और उ वह भी डािं

करने लग गया था। रात के द

को डािं

फ्लोर पर ले आये, और अब

बजे तक यह काम चलता रहा और जब हम

हाल

े बाहर आये तो कुछ गोरे गोरीआिं शराबी हुए घा पर पडे थे, अपनी अपनी गाडडयों में ब जाने लगे लेककन गोरे कै े गए होंगे कक ी को पता नहीिं। आज तो शाददयािं बहुत

कलरिुल हो गई हैं लेककन उ चलता…

मय की हमारे सलए यह पहली ऐ ी शादी थी।


मेरी कहानी - 123 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन April 22, 2016 ुररिंदर की शादी के दौरान मेरी नासभ के नीचे दाईं ओर ददक होना शुरू हो गया था लेककन

मैंने कोई खा

गधयान नहीिं ददया था ,

ोचा शायद

ारा

ददन खडा रहने के कारण होगा,

द रे मेरा काम भी बैठने का ही था। बात गई आई हो गई। एक ददन कुलविंत को कक ी ने अल ी की र्पनयािं दीिं। जब वह घर लाई तो उ

ने मुझे भी दीिं। खा कर मुझे इतना मजा

आया कक गाूँव के ददन याद आ गए, जब हमारी माूँ बनाया करती थी और हर एक र्पन्नी

भी खाते थे, शुद घर के घी की बनी

मगज और ककशसमश होती थी, बाद में भैं

र्पन्नी और श्ज

ुबह को एक

में बादाम र्पस्ता

के दध की गुड वाली गातडी चाय पी कर मजा

ही आ जाता था। मैंने कुलविंत को कहा कक ऐ ी र्पनयािं हम खद ु ककओिं नहीिं बनाते ! कुलविंत बोली, ” इ

में कौन

ी बडी बात है ” और उ ी शाम को वह दकान पर गई और र्पनयािं

बनाने के सलए

ारी

ामग्री ले आई और रर्ववार को उ

तो यहािं इिंडडया

े ज़्यादा

स्ते समलते हैं, इ

ने र्पनयािं बना

दी। क्योंकक मेवे

सलए उ

हफ्ते यह र्पनयािं मैं खाता रहा और किर मेरा

ने खब बहुत े मेवे डाल ददए। कुछ र ददक करने लगा, ददक भी इतना, र जै े

िट जाएगा। मैं अपने डाक्टर समस्टर राम की

जकरी में जा पहुिंचा और उ को र ददक के बारे में बताया और किर मैंने पछ ु ा कक कहीिं मझ ु े ब्लड प्रैशर तो नहीिं था। समस्टर राम बोला,” अरे तझ ु े कै े हो

कता है ,त तो रोज योगा करता है ?”. मैंने कहा, डाक्टर

ाहब, किर भी

चैक तो कर लो। जब डाक्टर ने चैक ककया तो बोला, “अरे तुझे तो है “. किर बोला, ” ऐ े करो, तुम अगले हफ्ते आना, किर मैं दे खग िं ा “. और मैं वाप

आ गया।

मेरे ददमाग में भी आया कक जब इिंडडया में भी मैं यह र्पनयािं खाया करता था तो मेरा दख्न ु े लगता था और माूँ कह दे ती थी,” तुझे गमी हो गई है , इ कर दे “. जब मैं र्पनीओिं को खाना

बिंद कर दे ता तो

नॉमकल था। ” यह बीपी और मैं वाप सलए और ढे र

जकरी में गया तो उ

सलए एक दो ददन र्पनी बिंद

र ठीक हो जाता। मैंने अब ऐ ा ही

ककया और र्पन्नी खानी बिंद कर दी और कुछ ददन बाद मेरा द रे हफ्ते जब मैं समस्टर राम की

र बबलकुल ठीक हो गया।

ने बीपी चैक ककया तो बबलकुल

ीजनल ही होगा ” कह कर डाक्टर राम ने ऑल क्लीयर कह दीआ

घर आ गया। कुछ महीने बाद दीवाली आ गई, पकौडे ी मठाई हलवाई की दकान

ददन तक खाते रहे । कुछ हफ्ते बाद मेरा

मो े बगैरा घर बना

े ले आये। अब खब मठाई पकौडे

र किर ददक करने लगा, कुछ ददन

मो े कई र ददक की

गोलीआिं लेता रहा लेककन ददक कम नहीिं हुआ तो मैं किर डाक्टर की जकरी में जा पहुिंचा। डाक्टर राम ने मेरा ब्लड प्रैशर चैक ककया तो बोला,” भमरा ाहब प्रैशर तो बहुत हाई है , मैं तुझे दआ ु ई दे ता हूँ और दो हफ्ते बाद मेरे पा

आना, बबलकुल ठीक हो जाओगे “. किर उ

ने मुझे िैसमली दहस्टरी के बारे में पुछा तो मैंने अपनी माूँ के बारे में बताया कक उ


को स्ट्रोक हो गया था। डाक्टर राम बोला,” बहुत दिा ऐ ा होता है कक हाई बीपी ारी िैसमली में रन करता है , इ सलए ारी िैसमली को गधयान रखने की जरुरत होती है, लेककन खाने पीने का गधयान रखने

े और

ही मेडडकेशन लेने

कता है , अगर किंट्रोल में ना हो तो हाटक ककडनी और

े इ र पर

को किंट्रोल में रखा जा ीधा अ र पडता है और किर

बीमारी बहुत कॉम्पसलकेटे ड हो जाती है “. ोचता हुआ मैं डाक्टर की जकरी े बाहर आ गया। मैंने ोचा कक मैं अब े एक् र ाइज बडा दिं गा और योगा ददन में दो दिा कर दिं गा। इ के इलावा मैंने उ ी वक्त मन में रोजाना दो मील दौडने का प्रोग्राम बना

सलया। गाडी इस्तेमाल करनी मैंने बहुत कम कर दी और काम पर तेज पैदल चल के जाता, खरु ाक में बहुत बदलाव शुरू कर ददया, लाद फ्रट और

उबली हुई श्ब्जआिं खानी शुरू कर दी, नमक बहुत कम कर ददया और मठाई भी बहुत कम कर दी, फ्राइड र्फड समननमम कर दी। डाक्टर की दवाई मैंने खाई ही नहीिं और जकरी में जाना ही बिंद कर ददया। जै े कक हमारे लोगों में एक बात परचलत थी कक यह अिंग्रेजी दवाइयाूँ बहुत बुरी हैं, इन के ाइड इिैक्ट बहुत बुरे हैं, इ के भय े मैं होसमओपेथी और दे ी दवाइयािं लेने लगा। दौड दौड कर और रोज एक् र ाइज करने े मैं बहुत हल्का हो

गया, मेरा वजन बहुत कम हो गया लेककन मेरा र ददक कम नहीिं हुआ और मैंने ब्लड प्रैशर चैक भी नहीिं कराया। कई महीने ऐ े ही गुजर गए लेककन मैं पहले वाला नहीिं था, हर दम र ददक करता रहता लेककन मैं कक ी को बताता नहीिं था।

जब मुझे चक्र आने शुरू हो गए तो अब डाक्टर के पा

जाने की वजाए और कोई चारा

नहीिं रहा। जब मैं डाक्टर की

जकरी में पहुिंचा तो डाक्टर ने मेरा ररकाडक दे खा। समस्टर राम की जगह अब नया डाक्टर समस्टर ररखी था। उ ने मेरा बीपी चैक ककया तो उ ने कुछ गुस् े े मुझे कहा ,” तुझे अपने आप पर इतना भरो ा हो गया है कक तुम खद ु इ

लोगे और तुम इतने महीने बाद च

जकरी में आये हो ,तुम ने दवाई ली थी ककया ?”. मैंने

ब कुछ बता ददया। अब डाक्टर ररखी

कुछ मुझे

को ठीक कर

ने मुझे लैक्चर दे ना शुरू कर ददया, उ

ने

मझाया और कहा कक एक् र ाइज करना और खरु ाक अच्छी खाना बहुत अच्छी बात है लेककन दवाई एक ददन भी छोडनी नहीिं चादहए, अगर एक् र ाइज और अच्छी खरु ाक े बीपी कम हो जाता है तो हम खद ु ही दवाई की डोज कम कर दें गे।

डाक्टर ररखी ने पहले मुझे दो स्ट्रॉन्ग गोळयािं दो रोज की खाने के सलए दी और एक हफ्ते बाद आने को कहा। जब एक हफ्ते बाद मैं डाक्टर

े समला तो उ

ने बीपी चैक करके एक

गोली रोज खाने को कहा और एक हफ्ते बाद आने को कहा। ती रे हफ्ते जब मैं गया तो उ

ने चैक करके आधी गोली रोज प्रेस्राइब कर दी और मैं उ ाथ ही मेरी

र की

गोली पर दटक गया और

मस्या भी खत्म हो गई और मैं नॉमकल हो गया, पहले की तरह

एक् र ाइज और खाने का रूटीन बना सलया। यह

मस्य तो खत्म हो गई लेककन जो नासभ

के नीचे ददक होती थी, वह अब ऐ ी हो गई थी कक यिं तो मुझे कोई खा

तकलीि नहीिं थी


लेककन जब मैं आधा घिंटा चलता तो उ बैठना पडता। धीरे धीरे मुझे मह श्ज

को जब मैं हाथ

बताने

े शमक मह

ही गया और उ

के बाद अजीब

ी खीिंच मह

होने लगा कक नासभ के नीचे कुछ

े दबाता तो गुड गुड

होती और मुझे

जन

ी हो रही थी

ी आवाज आती। पहले तो मुझे डाक्टर को

होती थी लेककन किर हौ ला करके मैं एक ददन डाक्टर के पा को बताया। उ

ने मेरा ट्राउजर नीचे करके अपना हाथ उ

चले

जगह पर रखा

और मुझे खािं ने को कहा, जब मैं खाूँ ा तो डाक्टर ने उ ी वक्त कह ददया,” यह हरननआिं है और इ

का ऑपरे शन करवाना पडेगा, मैं ह पताल को गचठ्ठी सलख दे ता हूँ “.

मैंने कभी हरननआिं का नाम

ुना नहीिं था, घबराया हुआ मैं घर आ गया और कुलविंत को बताया तो वह कहने लगी,” इ में घबराने की कौन ी बात है , यह तो अच्छा ही हुआ कक पता चल गया “. ददन बीतने लगे और तकरीबन दो महीने बाद रॉयल ह पताल

अपायिंटमें ट आ गई। जब मैं ह पताल पहुूँच कर जकन के ऑकि में गया तो उ ने भी डाक्टर ररखी की तरह चैक ककया और बहुत े र्फामक भरने शरू ु कर ददए और आखर में उ ने कहा कक मेरा ऑपरे शन नीऊ रौ

ह पताल में ककया जाएगा और ऑपरे शन की डेट मुझे

भेज दी जायेगी। दो हफ्ते बाद मुझे नीऊ रॉ में डाल

े खत आ गया और मैं ने अपने कपडे बैग

कर ब

पकडी और ह पताल जा पहुिंचा। रर ैप्शन डेस्क पे मैंने ररपोटक की और कुछ दे र बाद एक न क मुझे वाडक में ले गई, एक बैड जो पहले ही मेरे सलए रर वक थी मुझे दे दी गई। बैड के पा और पजामा

एक बॉक्

और एक चेअर थी, मैंने अपना

ारा

ामान बॉक्

में रखा

ट पहन कर चेअर पर बैठ गया और एक मैगजीन पडने लगा जो बॉक्

के

ऊपर पडे थे। अभी मैंने पडना शुरू ही ककया था कक मेरे काम का ही एक दोस्त जो वेस्ट इिंडडयन था, मेरी तरि आया और मुझे है लो बोला। उ

ने भी पाजामा

ट पहना हुआ था। उ को दे ख कर को ” है लो रोजी” बोला। ऐलन रोज उ का नाम था लेककन

मुझे बहुत खश ु ी हुई और उ भी उ े रोजी कह कर ही बुलाते थे। उ

ने मुझे बताया कक वह भी हरननआिं ऑपरे शन के

सलए ही आया हुआ था। रोजी े समल कर मुझे कुछ हौ ला हो गया कक श्ज बात को ले कर मैं शमाकता था, उ में मैं अकेला नहीिं था। उ ने एक गोरे के बारे में बताया जो इ ी वाडक में था और उ

का हरननआिं ऑपरे शन अब चौथी दिा हो रहा था,

गया। किर

ुन कर मैं है रान हो

रोजी मुझे बोला,” भमरा, मुझे बहुत डर लग रहा है , ऑपरे शन े नहीिं, कक ी कॉश्म्प्लकेशन े डर लगता है ”. ” घबराने की कोई बात नहीिं”, मैंने उ को कह तो ददया

लेककन मैं खद ु भी डर गया था । ऐ े कुछ दे र बाद बातें करने के बाद रोजी अपनी बैड की तरि चले गया।

द रे ददन हमारे बलड टे स्ट होने शुरू हो गए और तकरीबन बारह वजे रोजी को दो न ़ें ट्रॉली पर सलटा के ऑपरे शन गथएटर की और ले गईं। एक घिंटे बाद जब न ़ें ट्रॉली ले कर आईं तो रोजी बेहोश था. उ

को दे ख कर मुझे कुछ झटका

ा लगा क़्योंकक ऐ ा ह पताल का

ीन


मैंने कभी दे खा नहीिं था बश्ल्क मैं कभी ऐ े ह पताल में आया ही नहीिं था । कुछ दे र बाद

न ़ें मुझे भी ट्रॉली पर सलटा कर ऑपरे शन थीएटर की और ले गईं। जब मैं गथएटर में पहुिंचा तो वहािं दो जकन और दो न ़ें थी। पहले जकन ने मुझे पुछा की मैं ठीक हूँ । जब मैंने हाूँ कहा तो एक डाक्टर ने मेरी कलाई पर इिंजैक्शन लगाना शुरू कर ददया और मुझे द

तक

गगनने को कहा। मुझे याद है मैंने पािंच तक ही गगना था कक बाद में मुझे कुछ नहीिं पता। मुझे इतना ही याद है कक मैं वाडक में अपनी बैड पर पडा हूँ एक न क मुझे ” गुरमेल

गरु मेल” बोल रही थी और मझ ु े भी होश आ गई और मैंने अपने इदक गगदक दे खा तो

मझ

गया कक मेरा ऑपरे शन हो गया था। मैंने नीचे की तरि हाथ ककया तो मझ ु े एक बडी पट्टी मह

हुई।

शाम को शाम का खाना आ गया। एक ट्रॉली पर खाने की बहुत ी प्लेटें पडे थीिं और बडी ुन्दर खश ु ब आ रही थी। कुछ मुश्श्कल े उठ कर मैं खाने के सलए बैठ गया। क़्योंकक बहुत घिंटे मुझे भखा रखा गया था, इ बैड पे किर लेट गया।

ात वजे

सलए भख भी बहुत लगी हुई थी। मजे े खाना खा कर मैं े ले कर आठ वजे तक र्वजदटिंग टाइम था और कुलविंत

और तीनों बच्चे आये हुए थे। कुलविंत की आूँखों में आिं थे लेककन मैंने उ े बता ददया कक घबराने की कोई जरुरत नहीिं ब ठीक ठाक है । इ के बाद महौल ख ु मयी हो गया। बातें करते करते पता ही नहीिं चला कक कब आठ वज गए और टाइम खत्म होने की घिंटी वज गई।

भी वाडक

और जब

े बाहर हो गए और मैं भी एक मैगजीन पडने लगा। पडते पडते मैं

ो गया

ुबह जाग आई तो दो न ़ें बैड के दोनों तरि खडी थीिं और मुझे बोलीिं ,” गुरमेल !

आप को उठना होगा ” और दोनों ने मेरी दोनों क्लाइओिं

में अपनी क्लाइआिं डाली और यिं ही

मैं दहला तो इतनी ददक हुई कक मैं उन को ठै हरो ठै हरो बोलने लगा। न क बोली, ” तम ु को उठ कर चलना ही होगा, यह डाक्टर का हुकम है ”. बडी मश्ु श्कल े खडा हुआ लेककन एक कदम

भी चलना मश्ु श्कल हो रहा था। दोनों न ों ने मझ ु े पकड कर रखा हुआ था। चार पािंच स्टै प मश्ु श्कल े मैं चला और बैठना पडा। न ों ने मझ ु े कहा कक ऐ े ही कुछ स्टै प ारा ददन मझ ु े चलना चादहए ताकक ऑपरे शन का जख़्म आज तो छोटे

ैट हो जाये।

े ऑपरे शन के सलए डडस्पोजेबल श्स्टच्ज ही लगाते हैं लेककन उ

ऑपरे शन के जख्म ऐ े बात और भी थी कक उ

ीते थे जै े कक ी कपडे को

ई के

ाथ

मय

ीआ गया हो और एक

मय कोई पेन ककलर भी नहीिं दे ते थे। यही वजह थी कक हर स्टै प

चलना हम को पहाड चढ़ने के बराबर ददखाई दे ता था। रोजी और मेरी बैड थी और हम कुछ समनट बाद अपनी बैड

ाथ

ाथ हो गई

े उठते है और कुछ स्टै प चलते, किर बैठ जाते।

श्स्टच्ज इतने ददक करते थे कक हम हाय हाय करने लगते और कभी हम एक द रे को दे ख कर हिं

पडते। ददनबददन ददक कम होने लगा। आज तो ऐ े ऑपरे शन के बाद उ ी ददन घर

भेज दे ते हैं, ज़्यादा

े ज़्यादा द रे ददन तो जरूर ही भेज दे ते हैं लेककन उ

मय एक

हफ्ता और कभी द

ददन बाद ही घर भेजते थे। एक हफ्ते बाद हमें घर जाने की छुटी समल


गई और एक हफ्ते बाद हमें दब ु ारा ह पताल आ कर श्स्टच्ज काटने के सलए बता ददया गया।

अब मैं धीरे धीरे चलने लगा था और द रे हफ्ते मैं श्स्टच्ज कटवाने के सलए ह पताल जा पहुिंचा। एक वैस्ट इिंडडयन न क ने एक ब्लेड े भी श्स्टच्ज काट ददए। श्स्टच्ज काटने के बाद मुझे ऐ ा मालम हुआ जै े कक ी ने मुझे एक रस् े े बाूँध रखा था और अब रस् ा

खोल ददया गया हो। अब कुछ आ ान हो गया था। कुछ ददन बाद मैं अपने डाक्टर समस्टर ररखी के पा

गया और उ

ने मुझे तीन महीने का स क नोदट

बाद ही काम पर जाऊिं ककओिंकी ब

चलाने

मैं पाकक में चले जाता, घमता किताक लोगों बाद घर आ जाता। गाडी मैं अभी चला नहीिं और अब बोररयत मह एक दहस् ा ही था। चलता…

े कश्म्प्लकेशनज हो

दे ददया कक मैं तीन महीने कती थी। अब रोज रोज

े बातें करता, िलों को ननहारता और कुछ दे र कता था, इ

सलए कहीिं जा भी नहीिं

होने लगी थी लेककन क्या करता, यह भी तो श्जिंदगी का

कता था


मेरी कहानी - 124 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन April 25, 2016 ऑपरे शन के बाद मैं ठीक तो हो गगया था और पहले जै ा जो कुछ खीिंच बबलकुल ठीक हो गगया था लेककन ऑपरे शन की जगह हाथ लगाने

ा होता था, अब

े ददक करती थी और

ट्राऊजर पहनने पर बैल्ट को टाईट करना भी अ िंभव हो गगया था। जै े जै े ददन बीत रहे थे काम

े मुझे खत आने शुरू हो गए थे और मुझे मैनेजर को समलना पडता और मैं

यननयन के चेअरमैन को

ाथ ले कर मैनेजर के ऑकि

में जाता। मैनेजर काम पर वाप

आने को कहता लेककन मैं हर दम यही जवाब दे ता कक जै े मेरा डाक्टर मुझे कहता है , मैं उ ी दह ाब

े काम पर आऊिंगा ककओिंकक मुझे डर लगता था कक कहीिं कोई गडबड ना हो

जाए। मैनेजमें ट मुझे र्फो क तो नहीिं कर

कती थी लेककन मेरे ददमाग पे यह एक बोझ

था। ददन बीतते गए और तीन महीने बाद मैं किट नोट ले कर काम पे आ गगया। जब पहले ददन ही ब

की कैब में बैठा तो मुझे कुछ बेआरामी

ी मह

होने लगी। जब

डक पर आया तो यिं ही रि रोड पर ब करती, ऐ े मह

चलती तो मेरी ऑपरे शन वाली जगह बहुत ददक होता जै े ऑपरे शन वाली जगह को कोई चाक़ े काट रहा हो। अब यह

ददक मेरी रोजाना श्जिंदगी का एक दहस् ा ही हो गई थी। इ लफ़्जों में यह ही कहूँ गा कक इ

ऑपरे शन वाली बात को मैं तुर्

ऑपरे शन ने मुझे इतना दख ु ी ककया कक हर चार पािंच

बाद मुझे किर ऑपरे शन करवाना पडता और इ ी दुःु ख की वजह ररटायरमें ट लेनी पडी श्ज

को मैं आगे चल कर बयान करू​ूँगा।

अक् र हम कह तो दे ते हैं कक इिं ान को

काश्त्मकक

मु ीबतों में नघरना शुरू हो जाता है तो यह

े मुझे २००१ में अली

ाल

ोच रखनी चादहए लेककन जब इिं ान

ब ककताबों की बातें हो कर रह जाती हैं। इधर

बेदटआिं बडी हो रही थीिं और इधर शरीरक कष्ट शुरू हो गए थे। दोनों बेदटयािं अब हायर ैकिंडरी वैली पाकक स्कल में पडती थीिं और बेटा तो नजदीक ही जाता था। तकरीबन दो

ाल

बाद ही वैली पाकक स्कल की नई बबश्ल्डिंग हमारे नजदीक ही बन गई और बेदटयािं घर के नजदीक हो गईं और बेटा भी

ेंट ऐिंड्रय स्कल

े पुराने वैली पाकक स्कल में आ गया, यहािं

पहले बेदटयािं पडती थीिं। बडी बेटी र्पिंकी अब किंप्रीहैंस व स्कल के आखरी

ाल में थी। जब

एग्जाम हुआ तो बेटी के ग्रेड बहुत अच्छे आये और स्कल े ननकलते ही वह वुल्िरन कासलज में दाखल हो गई, श्ज में वह बीटै क कर रही थी। कालज भी कोई दर नहीिं था, कुछ

मैं उन ् को छोड और ले आता। दो

हे सलयाूँ इकठी चले जातीिं और आ जाती और कभी कभी ाल में बीटै क खत्म हो गया और इ

में भी र्पिंकी के

ग्रेड अच्छे आये। कालज खत्म होते ही एक ददन वह शाम का पेपर दे ख रही थी, श्ज उ

में

ने एक वेकैं ी दे खी जो बसमिंघम में थी और कौं ल में जॉब थी। र्पिंकी ने मुझे पुछा कक


को इ

जॉब के सलए एप्लाई करना चादहए या नहीिं। कुलविंत ने तो उ

मना कर ददया था कक रोज इतनी दर जाना

को यह कह कर

ेि नहीिं है । ” र्पिंकी त एप्लाई कर दे ” कह

कर मैंने बेटी का हौ ला बढ़ाया। खश ु हो कर र्पिंकी ने मैनेजमें ट को ऐश्प्लकेशन र्फामक भेजने के सलए टे लीिोन कर ददया।

कुछ ददन बाद र्फामक आ गए। उ

ने र्फामक भर कर भेज ददए। दो हफ्ते बाद ही र्पिंकी को

इिंटरवय के सलए लैटर आ गया। श्ज ले ली। इिंटरवय लैटर के ट्रे न

ददन इिंटरवय होनी थी, उ

ाथ ही मैनेजमैंट ने

ददन की मैंने काम

ारी डीटे ल भेज दी थी कक उन के ऑकि

े छुटी

को

े या कार

े कै े पहुिंचा जा कता था। इिंटरवय के ददन हम अपनी गाडी में आधा घिंटा पहले ही पहुूँच गए, गाडी कार पाकक में खडी करके हम शॉर्पिंग ेंटर में घमने लगे। जब इिंटरवय का वक्त हुआ तो र्पिंकी बबश्ल्डिंग के अिंदर चले गई। इिंटरवय किफ्थ फ्लोर पर थी। यह बबश्ल्डिंग बहुत बडी थी, श्ज के नीचे ही कार पाकक थी जो उ मय ही मुझ को पता चला वनाक कार को पाकक करने के सलए मुझे दर ना जाना पडता।

अब मैं भी र्विंडो शौर्पिंग करने लगा, आधा घिंटा घमने के बाद थक कर मैं कार पाकक में आ कर अपनी कार में बैठ गया और रे डडओ पे गाने

ुनने लगा। आूँखें बिंद ककये मैं मजे

ुन रहा था। र्पिंकी ने अचानक कार के शीशे पर दस्तक दी और मुस्करा रही थी। उ

े गाने के

गाडी में बैठते ही मैंने

वाल ककया, “इिंटरवय कै े रही”. र्पिंकी बोली ” डैडी बहुत आ ान वाल थे और मैंने भी ननधडक हो कर जवाब ददए, जॉब समलेगी या नहीिं, पता नहीिं लेककन

मेरी इिंटरवय बहुत अच्छी थी “. मैंने गाडी स्टाटक की और चल पडे, रास्ते में एक केक शॉप े हम ने कॉननकश पास्टीज ली और वही​ीँ गाडी में बैठ कर खाने लगे। इ के बाद आधे घिंटे में ही हम घर आ गए। इ

इिंटरवय के दो हफ्ते बाद र्पिंकी को लैटर आ गया कक उ

को इ

सलया गया है और अपने काम पर ररपोटक करे । मुझे याद नहीिं यह कौन अब

वाल यह था कक र्पिंकी को बसमिंघम, ब

को टै लीिोन ककया तो उ काम शरू ु करना था, उ

में जाना

जॉब के सलए चन ु

ट करता था या ट्रे न में । मैंने ननिंदी

ने बताया कक ट्रे न में जाना अच्छा रहे गा। श्ज ददन भी मैंने काम

ी डेट थी लेककन ददन र्पिंकी ने

े छुटी ले ली थी। हम ने ट्रे न के ररटनक दटकट

ले सलए और दोनों बसमिंघम जा पहुिंचे और मालम भी हो गया कक र्पिंकी का काम ट्रे न स्टे शन े पािंच समनट दर ही था। र्पिंकी को छोड कर मैं किर वाप आ गया। शाम को जब र्पिंकी घर आई तो उ

ने बताया कक काम उ

अब र्पिंकी ने ट्रे न का पा

को

मझ आ गया था।

बना सलया और रोज काम पे जाने लगी और एक खश ु ी दो महीने

बाद ही और समल गई कक र्पिंकी को वोल्वरहैंपटन में ही ट्रािं िर कर ददया गया है , यह तो अब घर जै ी बात ही हो गई। र्पिंकी का ऑकि

भी वोल्वरहैंपटन की इनडोर माकीट के ऊपर

थडक फ्लोर पर था। बहुत दिा तो र्पिंकी मेरी ब

में ही जाती थी। मेरा रूटीन एक और भी


था कक हफ्ते में एक दिा मैं इ ी माकककट और उ ी ब इ ी ब

में रख लेता, श्ज

े दो बडे बैग

श्ब्जआिं और फ्रट के भर लाता

में मैंने काम शुरू करना होता था। काम खत्म होने पर मैं

में अपने डैपो चले जाता, यहािं मेरी गाडी खडी होती थी, तब मैं दोनों बैग गाडी में

रख कर घर आ जाता, इ रहा होता तो र्पिंकी दर समल लेती और बैग

े कुलविंत की भी मदद हो जाती। जब मैं माकककट में शॉर्पिंग कर

े ही ऑकि

की खखडकी

े मुझे दे ख लेती और नीचे आ कर मुझे

े कुछ फ्रट भी ले लेती। र्पिंकी को अब भी यह बातें याद हैं और हिं

कर बहुत दिा बातें करती है ।

ऐ े ही कई महीने गुजर गए। एक ददन गगआनों और उन के पती अजकन स हिं हमारे घर आये। गगआनो श्ज

के बारे में मैं पहले भी सलख चक् ु का हूँ । यह हमारे बच्चों को जब वोह

छोटे थे तो न रक ी हर

कल

े ले कर आया करती थी और यह हमारे गाूँव

े ही थी । गगआनों

ाल मेरी कलाई पर राखी बािंधती है लेककन हमारे बहनोई अजकन स हिं अब इ

दन ु ीआिं में

नहीिं हैं, इन के बच्चे हमें मामा मामी कह कर बुलाते हैं। उन्होंने आते ही कहा कक उन्होंने र्पिंकी के सलए एक लडका दे खा है , लडके का र्पता का अपना र्प्रिंदटिंग बबजनै भी अपने र्पता के

है और लडका

ाथ वही​ीँ काम करता है ।

ुन कर हम कुछ है रान

े हो गए ककओिंकक मेरे ददमाग में तो ऐ ा र्वचार कभी आया ही

नहीिं था। र्पिंकी को पुछा तो वोह भी कुछ आना कानी करने लगी। गगआनों बोली, “तुम दे ख

लो, अगर प िंद नहीिं आया तो नाह कर दे ना, ऐ ी कोई बात नहीिं है ”. एक रर्ववार को लडका दे खने का प्रोग्राम बना सलया गया। उ ज्ञानों के घर ही

ुबह लडके वाले लडके को ले कर लिंडन

े आ गए।

ारा प्रोग्राम हुआ। लडका ुन्दर था, बातें हुईं, दोनों ने एक द रे को प िंद कर सलया लेककन र्पिंकी ने बोल ददया कक वह अभी एक ाल शादी नहीिं कराना चाहती। इ बात पे लडके वाले भी राजी हो गए और बात तय हो गई। यह ररश्ता इ

तरह

थी। लडकी के

े हुआ कक ज्ञानो की लडकी की शादी भी कुछ ाल पहले लिंदन ही हुई रु की बहन भी नजदीक ही अक् बब्रज में रहती थी और उन का बबजने

ाउथहाल में था। श्ज के

लडके चरनजीत के

रु की बहन का ही लडका था। इ

ाथ हमारी र्पिंकी का ररश्ता हुआ वह इ लडकी तरह हम को भी एक हौ ला ा हो गया था कक

ज्ञानो की लडकी र्पिंकी के नजदीक होगी तो र्पिंकी को भी एक तरह की उ

मय एक ररवाज जो आम ही था कक जो भी लडककओिं को तनखआ ु ह समलती थी, वह

माूँ बाप अपने पा

रख लेते थे और इ

पै े

ऐ ा नहीिं ककया और बच्चों की पहली तनखआ ु ह श्ज

पोटक समलेगी।

े ही बेटी की शादी कर दे ते थे लेककन हम ने े ही उन का बैंक अकाउिं ट खल ु वा ददया

में उन की परी तनखआ ु ह अकाउिं ट में जमा हो जाती और उन का

की तरह उठाते रहते ताकक बच्चे अपने पैरों पर खडे हो िायदा हुआ।

कें, इ

ारा खचक हम पहले

े बच्चों को बाद में बहुत


ददन बीतते जा रहे थे और ज्ञानो के पनत अजकन स हिं श्जन को मैं भा जी कह कर बुलाता था हमारे घर आते और कहते, ” भई शादी के ददन नजदीक आ रहे हैं और तुम उन का इ

ुस्त बैठो हो “.

तरह कहना ही हमें बहुत हौ ला दे ता और आज तक वह हमें याद आते हैं। उन्होंने बगैर कक ी ुआरथ के हमारे सलए इतने काम ककये कक जो कक ी और ने नहीिं ककये, यहािं तक कक हमारे अपने घर के लोगों

े भी हमें कोई र्पयार नहीिं समला। उ

ाल का था और कुलविंत भी जवान ही थी और शादी र्ववाह की बातों

ज्ञानो और भा जी ही बडे थे और वह हमारे सलए

मय मैं 44

े हम अिंजान ही थे।

ब कुछ थे।

हमारे बहुत े ररश्तेदार यहािं हैं लेककन बुआ और ज्ञानों बहन और या बहादर ने ही ज़्यादा ाथ ददया। आज मैं इ नतीजे पर पहुिंचा हूँ कक दोस्त तो एक दो ही बहुत होते हैं। खैर !

भा जी एक ददन आये और बोले कक लडके वाले मैरेज रश्जस्टर करने को कह रहे हैं। मैं और कुलविंत ने भी मशवरा ककया कक रश्जस्ट्रे शन करने में कोई हजक नहीिं है ककओिंकी गुदक आ ु रे में

शादी तो बाद में होती रहे गी। एक ददन मैं और र्पिंकी टाऊनहाल में गए और मैरेज रे श्जस्टर के सलए एश्प्लकेशन र्फामक भर आये, उधर लडके वाले भी अपने टाऊनहाल में जा कर डीटे ल सलखवा आये। कुछ हफ्ते बाद हमें मैरेज रश्जस्टर का ददन और टाइम की

ारी डीटे ल

घर भेज दी गई और उधर इ ी तरह लडके वालों को बता ददया गया ।

अब हम ने महमानों की आवभगत और भोजन के प्रबिंध के सलए शॉर्पिंग शुरू कर दी और महमानों के सलए खाने का

ारा प्रबिंध हम ने अपने गाडकन में ही करना था, श्ज

के सलए

एक टैंट की जरुरत थी। उन ददनों टैंट समलते नहीिं थे। हमारे एक पडो ी माकीटों में कपडे बेचने जाया करते थे और वह वहािं माकककट में अपना टैंट लगाते थे। उ पाइप थे श्जन को आप

के पा

में जोड कर टैंट का फ्रेम बन जाता था और उ

बहुत े के ऊपर बहुत बडी

प्लाश्स्टक की शीट डाल दे ते थे। एक ददन ज्ञानो का बेटा बलविंत हमारे घर आया। हम दोनों पडो

के घर

े वह माकककट वाले

भी पाइप ले आये और कुछ घिंटों में ही वह पाइप आप

में जोड कर बहुत बडा टैंट का फ्रेम किक् कर ददया लेककन फ्रेम के हम ने टैंट बनाना था वह समल नहीिं रही थी। मैंने टे लीिोन डायरे क्ट्री में ढन्ढ सलया, श्ज

ाइज की शीट श्ज

िैक्ट्री में ऐ ी शीटें बनती थी। मैंने उन को

टै लीिोन ककया तो उन्होंने बताया कक वह कक ी भी

ाइज की शीट बना दें गे। मैंने

ारे फ्रेम

का नाप सलया और ककिंग्जर्विंिोडक टैंट िैक्ट्री में जा पहुिंचा और ऑडकर दे ददया। क़्योंकक दो ददन में बनाने का उन्होंने वादा ककया था, इ सलए दो ददन बाद मैं यह शीट ले आया और मैं और बलविंत ने फ्रेम के ऊपर शीट डाल दी और यह टैंट एक छोटे इ

े हाल जै ा बन गया।

शीट ने इतना काम ददया कक यह शीट बहुत लोगों के घर गई और र्ववाह शाददयों के वक्त उन के गाडकनों की शोभा बनी।


मय ऐ े छोटे छोटे

मागमों के सलए

ब खाने घर ही बनाते थे।

कर खाने बना लेती थीिं। बडे पतीले कडनछआिं बगैरा गुदक आ ु रे चमचे ग्ला का

बगैरा भी

ब वहािं

भी औरतें रल समल

े ले आते थे। इ

के इलावा ट्रे

े ही आते थे और कुस य क ािं मेज भी ले आते थे। खाने बनाने

ारा काम हमारी गैरेज में ही होना था। जो लोग गै

के

लिंडर ककराए पर दे ते थे, वह

हमारे घर के नजदीक ही थे और इन की दकान बहुत बडी थी, श्ज में वह हॉसलडे कैश्म्पिंग का ामान बेचते थे और गोरे ही इन के ज़्यादा ग्राहक थे। मैं दो लिंडर गाडी में रख कर ले आया। एक ददन मैं और बलविंत गुदक आ ु रे गए और स्टोर कीपर

ारे बतकन ले सलए और बलविंत की

वैन में रख कर घर ले आये। किर हम दब ु ारा जा कर कुर ीआिं मेज भी ले आये। ैट हो गया। रश्जस्ट्रे शन

बगैरा भन कर

े एक ददन पहले औरतें समल कर

ब तैयार कर सलया गया। हमारी

ब कुछ

मो े भरने लगीिं और तडके

गी बहन बहनोई और बच्चे भी आ गए

थे और बडे भाई का लडका अपनी पत्नी और बच्चों को ले कर भी आ गया , बहादर और कमल भी आ गए थे और ननिंदी तो

ुबह

े आया हुआ था, घर में बहुत रौनक हो गई थी।

ारा ददन दौड धप जारी रही। द रे ददन के सलए गया और उ

ब कुछ तैयार करके टैंट में ही रख ददया

रात को तेज हवाएिं भी चल रही थीिं और मुझे बहुत कर्फर था कक कहीिं टैं ट उड ना जाए और काम में र्वघ्न ना पढ़ जाए। अब तो इन बातों को याद करके हिं ी आती है लेककन उ

रात मैं कर्फर में अच्छी तरह

काम हो जाने पर चलता…

ो लिंगा।

ोया नहीिं था और टैंट में ही बैठा रहा,

ोचा कक


मेरी कहानी - 125 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन April 28, 2016 र्पिंकी की मैरेज रश्जस्ट्रे शन

े एक ददन पहले बहुत काम था और र्पछले एर्प ोड में मैं इ का वणकन कर चक् ु का हूँ । क़्योंकक हम दोनों पनत पत्नी भी अभी जवान ही थे और यह घर में पहली शादी थी, इ

सलए गचिंता बहुत थी। यिं तो भा जी अजकन स हिं ज्ञानो और उन के दोनों बेटे बलविंत और ज विंत बहुत काम कर रहे थे लेककन किर भी मझ ु े गचिंता हो जाती, बलविंत मुझे हौ ला दे ता और बोलता, “मामा ! कर्फर ककओिं करता है , ब ाथ ही वह चट ु की मारता । उ की इ

ऐ े हो जाएगा ” और

बात पर आज भी हम कभी कभी हूँ ते हैं और

कहते है कक आज तो र्पिंकी के बच्चे भी र्पिंकी

े बडे हो गए हैं, वक्त कै े बीत गया, पता

ही नहीिं चला। खैर, मैं उ

रात बहुत गचिंता में था क़्योंकक उ रात बहुत तेज हवाएिं चल रही थी और टैंट के ऊपर की शीट श्ज को तरपाल बोलते थे, ऐ े लगता था जै े ऊपर को ब कुछ उडा ले जायेगी और मैं टैंट के पोल को पकड के रखता। दाल

श्ब्जआिं

मो े बगैरा

भी टे बलों पर रखे हुए थे, द रे ददन के सलए ारी तयारी मक़् ु क़मल थी और चाय ही बनानी थी, या दाल श्ब्जआिं गमक करनी थी।

ब ु ह को स िक

उधर द रे कमरे में औरतें गा रही थीिं और मदक लोग पहले तो पब्ब को चले गए और किर वाप

आ कर गप्पें हािंक रहे थे, कुछ औरतें ककचन में ही टे प ररकॉडकर लगाए डािं

थी। जब

भी

कर रही

ोने को चले गए तो हम अकेले ही रह गए थे और मैं टैंट की दे खभाल में ही

मगन हो गया। क़्योंकक बलविंत का अपना पोस्ट ऑकि

और

सलए वह भी तकरीबन बारह वजे दकान बिंद करके मेरे पा

ाथ ही ग्रॉ री स्टोर था इ

टैंट में आ गया, स िक यह दे खने

के सलए कक टैंट को कोई नुक् ान तो नहीिं पहुिंचा। उ ने हर तरि गधयान े दे खा और कहा, “मामा जी तुम अब आराम े ो जाओ, कुछ नहीिं होगा, टैंट बबलकुल ेि है “. इ के बाद मैं भी बैड में चला गया लेककन दो तीन घिंटे इन बातों पे हिं ी आती है लेककन उ ुबह को र्पिंकी की

महमान श्ज उ

में मेरी

खखओिं ने र्पिंकी को गी बहन

ो कर किर टैंट दे खने आ गया। आज तो मुझे

मय मैं बहुत गचिंतत था। जाया और

ुरजीत कौर, बहनोई

भी लडककयािं नीचे आ गईं।

ारे

ेवा स हिं , भतीजा दशकन स हिं और

की पत्नी और बच्चे, कुस ओ क िं पर बैठ कर इिंतजार करने लगे। रश्जस्ट्रे शन का वक्त 11

वजे का था जो टाऊनहाल में होनी थी। कुछ दे र बाद

भी घर के बाहर आ गए और अपनी

अपनी गाडडयों में बैठ गए और चलने लगे। र्वडडओ वाला अपना काम कर रहा था और हम वक्त

े कुछ

मय पहले ही पहुूँच गए। कार पाकक टाऊनहाल के नीचे थी और कुछ गाडडयों के सलए जगह ऊपर भी थी और हम को ऊपर ही जगह समल गई। र्पिंकी को ले कर हम भी वेदटिंग रूम में बैठ गए। रश्जस्ट्रे शन रूम में हम

े पहले कक ी अूँगरे ज कप्पल की शादी हो

रही थी और जब वोह बाहर आ गए तो बाद में रश्जस्ट्रार लेडी ने बाहर आ कर हमें बुलाया।


कमरा कोई इतना बडा नहीिं था और हमारे महमानों रश्जस्ट्रार के टे बल के रश्जस्टरार ने पहले

े भर गया। र्पिंकी और चरनजीत

ामने बैठ गए। भी डीटे ल पछे और किर पहले चरनजीत ने OATH लेनी थी और उ ने

रश्जस्ट्रार के पीछे पीछे बोलना था जो कुछ इ

तरह था Groom: I, CHARANJIT

HANSPAL____, take thee, HARKIRAT KAUR _____, to be my wedded Wife, to have and to hold from this day forward, for better for worse, for richer for poorer, in sickness and in health, to love and to cherish, till death us do part, according to God’s holy ordinance; and thereto I plight thee my truth.( स्रोत इिंटरनैट) और इ बोल ददया। इ

के बाद र्पिंकी ने अपना नाम बोल कर ऐ े ही बोलना था जो उ ने

के बाद दो गवाह हमारी तरि

आगे आये और दस्तखत कर ददए। इ पहना दी और

के बाद आखर में दोनों ने एक द रे को अिंगदठयािं

भी ने तालीआिं वजा दीिं और

बाहर आ कर अब िोटो

े और दो गवाह लडके वालों की तरि भी बाहर आ गए।

ैशन शरू ु हो गया जो बहुत कलरिुल था। इ में कुलविंत की ने हर एक ररश्तेदार को र्पिंकी और चरनजीत के ाथ खडा करके

भसमका बहुत रही, उ िोटो खखचवाई। इ तरह तकरीबन पिंद्रा बी वाप ी शुरू हो गई। जब घर आये तो

समनट िोटो खखचवाते खखचवाते लग गए और

भी महमानों को अब टैंट के नीचे बैठना था, इ

सलए घर के पीछे का दरवाजा खोल ददया गया और महमान अिंदर आ कर टैंट में बैठने लगे। बलविंत ज विंत और ननिंदी ही ज़्यादा आगे थे को तो लडके वाले उ

का

वक करने के सलए और क्योंकक बलविंत ज विंत

भी ररश्तेदार जानते ही थे और उन में बलविंत की बहन का

ारा पररवार भी था, इ

सलए वातावरण कािी खश ु गवार था। गमक गमक

ुर और

मो े

पकौडे जो कमल और कुछ और औरतें तल रही थीिं, लडके उठा कर महमानों के आगे रख रहे थे और मैं अपनी ओर के महमानों के

ाथ बैठा था। यह स्नैक्

लेने और चाए के बाद

भी

बातें करने लगे। क्योंकक बहुत े महमान तो मुझे पहले ही जानते थे, इ सलए बहुत मजेदार वातावरण था। कुछ दे र बाद लडकों ने टे बलों पर बीअर के कैन रखने शुरू कर ददए और ाथ ही मिंगिली और गचप् बोतलें।

के पैकेट और कुछ दे र बाद मीट की प्लेटें​ंिं और

अब माहौल गमक हो गया था,

भी हिं ी जोक्

छोड रहे थे, शायद

पता ही नहीिं चला कब तीन चार बज गए और अब खाना

भी पे

ाथ ही र्वस्की की

रुर हो गया था।

वक होने लगा। जब खाना खत्म

हुआ तो भी जाने के सलए उठने लगे। हाथ समलाते और त स री अकाल बोलते बोलते भी महमान गाडडयों में बैठ गए और वाप लिंडन को चले गए। क्योंकक भी औरतें और बच्चे घर के अिंदर ही बैठे थे, इ औरतें जाने लगी थीिं। शाम तक

सलए उन्होंने खाना वहािं ही खा सलया था और बहुत ी ब चले गए और बलविंत ज विंत ननिंदी और कुछ और लडके

रह गए। अब काम रह गया था टैंट को किर

े खोलना और गुदक आ ु रे

े लाया हुआ

ारा


ामान वाप

छोड कर आना। कई चर हम ने गुदक आ ु रे के लगाए और गगण कर

ामान गुदक आ ु रे के स्टोर कीपर को

ौंप ददया। इ

ारे काम

ारा

े हम आठ नौ बजे िारग

हुए। घर आ कर हम ब मर हाऊ पब्ब में चले गए और बहुत बातें कीिं और आगे के प्लैन के बारे में भी बातें हुईं। कुछ दे र बाद हम आ गए और भी अपने अपने घरों को चले गए और मैं भी इतना अब किर

ोया कक द रे ददन बहुत लेट बैड

े उठा।

ब नॉमकल हो गया और काम पर जाने लगे। यिं तो माूँ बाप को अपने

े र्पयार होता है लेककन पहले बच्चे े ज़्यादा लगाव था, खा अपनी उम्र के सलहाज

कर मुझ।े इ

े ज़्यादा

िोटो हम ने खीिंची, उन में

ब बच्चों

े कुछ ज़्यादा ही होता है । इ ी तरह हमारा भी र्पिंकी का एक कारण यह भी था कक र्पिंकी शुरू

े ही

मझदार और बातें करने वाली थी। श्जतनी भी बच्चों की

े ज़्यादा र्पिंकी की ही थी। जब तीनों बच्चे छोटे थे तो मैं

बच्चों के पा

बैठ कर बहुत बातें ककया करता था, कभी रात को दे र हो जाती तो कुलविंत बोलने लगती और कुछ खीझ कर कहती, ” अब ो भी जाओ, ुबह को काम पर भी जाना है !” हम हिं

पडते और मैं कहता, ” लो बैल बज गई ” और उठ कर बैड रूम की तरि

जाने लगते। एक बात को ले कर हम बहुत हिं ा करते थे, र्पिंकी और रीटा का एक ाल का ही िरक था, र्पिंकी नाम मैंने ही रखा था लेककन र्पिंकी का नाम गगयानी जी ने हरकीरत कौर रख ददया था लेककन इ र्पिंकी होगी कोई पािंच

नाम

े हमने उ े कभी नहीिं बुलाया।

ाल की और रीटा चार

ाल की, मैं अभी काम

े आया नहीिं था और

कुलविंत बाथ रूम में नहाने के सलए चली गई और दोनों बेदटयािं खेल रही थीिं। अचानक जब कुलविंत बाथ रूम

े बाहर आई तो दे खा कक र्पिंकी ऐस्प्रो की गोलीआिं रीटा को खखला रही थी

और रीटा को कह रही थी, “लो बेटा खा लो, तुम ठीक हो जाओगी”. दरअ ल रीटा को कुछ ददनों

े बुखार था और हम उ

को चार चार घिंटे बाद यह गोलीआिं दे रहे थे। कुलविंत दे खते

ही घबरा गई और रीटा के मुिंह में उिं श्ग्लआिं डाल कर गोलीआिं ननकालने लगी। मैं भी काम

आ गया और बात का पता लगने पर मैं भी घबरा गया और कुलविंत को बोला,”चलो अभी

ह पताल चलते हैं “. र्पिंकी को ज्ञानी जी के घर छोड कर हम रॉयल ह पताल को चले गए। हम गोलीआिं वाली शीशी भी

ाथ ले गए। डाक्टर ने

ब बातें पछ कर कोई दवाई रीटा को

दी, और कुछ दे र बाद रीटा ने उलटी कर दी। डाक्टर ने हमें बताया कक वह रीटा को एक रात ह पताल में रखेंगे।

रीटा को छोड कर जब हम जाने लगे तो रीटा ऊिंची ऊिंची रोने लगी, दे ख कर हम भी परे शान हो गए। बहुत दे र तक हम इ इिंतजार में बैठे रहे कक रीटा ो जाए, किर हम चले जाएिंगे लेककन रीटा ो ही नहीिं रही थी। किर कुलविंत मुझे बोलने लगी कक रीटा ने दो दिा तो

उलटी की थी और किर शीशी में भी अभी बहुत गोलीआिं बाकी थीिं, इ सलए मैं डाक्टर को रीटा को घर ले जाने के सलए कहिं । जब मैंने डाक्टर े पुछा तो उ ने इिंकार कर ददया। जब हम उठ कर जाने लगे तो रीटा ने किर चीखना शुरू कर ददया। उ

को रोते दे ख कर हमारा


मन घबरा रहा था। किर मैंने एक दिा किर डाक्टर लाये और उन्हें भर कर मुझे

े ररक्वैस्ट की तो डाक्टर ने कुछ र्फामक

ाइन करने को कहा। मैंने

आये। घर आ कर रीटा बहुत

ोई और

ाइन कर ददए और रीटा को घर ले

ुबह उठी तो बबलकुल ठीक थी।

हमारे माूँ बाप ने भी हमें ऐ े ही पाल पोर्ण ककया होगा, जै े अब हम अपने बच्चों का कर रहे थे। बहुत दिा कुलविंत के मामा जी की बेटी बलबीर और उ का पनत गुरमुख जो बसमिंघम में रहते हैं, जब हम को समलने आते थे तो रात हमारे घर ही ो जाते थे। एक दिा जब वोह आये तो द रे ददन

ुबह मैं ने काम पर जाना था। गुरमुख मुझे कहने लगा कक वह

मुझे काम पर छोड आएगा। घर

े चलते वक्त गुरमुख ने रीटा को भी कार में बबठा सलया।

जब गुरमुख मुझे काम पर छोड कर जाने लगा तो रास्ते में रीटा मुझे न दे ख कर ऊिंची ऊिंची रोने लगी। रास्ते में

ाइड रोड पर एक पुसल

की कार खडी थी, पुसल

वाले ने गुरमुख को

ओवर टे क कर के गुरमुख को खडा करा सलया और पछने लगा कक यह कक गुरमुख ने जब बताया तो पुसल का बच्चा था। आखर में पुसल

मैन घर तक

वाले ने

ाथ आया और कुलविंत

का बच्चा था।

े पुछा कक यह कक

ारी डीटे ल सलखी और तब वह गया। जब काम

खत्म कर के मैं घर आया तो मुझे

ारा पता चला। ऐ ी ही बहुत ी और बातें थीिं, श्जन को याद करके हम हूँ ते रहते थे। छोटे छोटे बच्चों के ाथ खेलना भी ककतना आनिंदमई होता है ! जब कर म

के ददन नजदीक आते थे तो एक ददन बच्चों को दे ते थे जब वोह अपने

प िंदीदा खखलौने और चॉकलेट स्वीट्

और करस्प्

के पैकेट खरीदते थे। घर

ही हम बच्चों को बोल दे ते थे कक वोह जी भर के चॉकलेट स्वीट् जाए,

िंकोच नहीिं करना, श्जतना चाहें ले लें । जब हम

चॉकलेट औेर अन्य स्वीट्

के

े जाते वक्त

बगैरा ट्रॉली में िैंकते

ुपर स्टोर में चले जाते तो मैं

ेक्शन में जा कर बच्चों को बोलता,” चक्क लो !” और बच्चे

जल्दी जल्दी अपनी प िंदीदा चीजें शॉर्पिंग ट्रॉली में िैंकते जाते। र्पिंकी हर चीज गधयान उठाती थी और

े कम चीजें लेती थी लेककन रीटा और खा

कर

िंदीप का मन भरता

नहीिं था और ट्रॉली में िैंकते जाते। जब घर आते तो तीनों बच्चे अपनी अपनी चीजें अपने बैगों में

म्भाल कर रखते। हम उन को ऐ े करते दे ख दे ख खश ु होते। कर म

बच्चों का काम शुरू हो जाता। कर म करके खाने लगते। कर म

ईव को ही

ट्री के

ाथ बहुत े चॉकलेट रख दे ते और एक एक के ददन तो हर घर में रौनक होती है और हम भी स्पैशल डडनर

की तयारी शुरू कर दे ते। स्पैशल डडनर में गोरे काले तो

भी टकी रोस्ट करते हैं लेककन

हमारे लोग ज़्यादा गचकन ही प िंद करते हैं लेककन कुछ लोग टकी भी बनाते हैं और इ ी

तरह हम भी कभी टकी, कभी गचकन बना सलया करते थे। बच्चे और कुलविंत अपना काम शुरू कर दे ते और मैं वाइन की बोतल खोल लेता और चश्ु स्कयािं लेने लगता और खाये जाता।

ाथ कुछ


हर कर म

लोगों को वैल र्वर्ज कहने के सलए तीन बजे रानी की स्पीच ब्रॉडकास्ट की

जाती है और जब यह धद ुिं ली

पीच ब्रॉडकास्ट होती तो मुझ को

रुर आया होता और रानी कुछ

े ददखाई दे ती। रानी की स्पीच के बाद हम टे बल पर बैठ कर कर म

सलए तैयार हो जाते। बच्चे और हम अपने

रों पर कर म

खाना शुरू कर दे ते, खाने के बाद होता था कर म

डडनर खाने के

कैप पहन लेते और

पुडडिंग, यह

ब समल

ब खाने खा कर हम रज्जज

जाते और किर रैकर खीिंच कर पटाखे बजाने लगते और कािी शोर मचता क्योंकक पटाखों के बीच में

े छोटे छोटे काडक ननकलते थे श्जन को पढ़ कर बच्चे उछलते कदते। इतना खा पी

कर

स् ु त हो जाते और मैं तो खरु ाकटे लगाने लगता। शाम को खाना पचाने के सलए कुछ

दे र के सलए हम बाहर वाप

आ जाते। कर म

ैर करने ननकल पडते लेककन

ददक ओिं के ददन होने के कारण जल्दी

तो स्पेशल होता ही था लेककन द रे नतओहारों पर भी बच्चों के

ाथ ऐ े ही रौनक होती थी। बात कर रहा था र्पिंकी की तो मैं यह कहिं गा कक उ

को

ब बच्चों

े ज़्यादा र्पयार समला

था। र्पिंकी झले की बहुत शौक़ीन थी, तो एक दिा जब वोह तीन ाल की होगी तो पाकक जाने की श्जद करने लगी क्योंकक वहािं झले थे और उ ददन स्नो बहुत पडी हुई थी, उ की श्जद के आगे मैं हार गया और उ े पाकक में ले गया और वहािं कोई ना था। यहािं झले और अन्य बच्चों के मनोरिं जन की चीजें थी वहािं दो दो र्फीट स्नो पडी हुई थी। मैं बडी मुश्श्कल े र्पिंकी को वहािं ले के गया और उ को झोटे ददए और उ की िोटो भी ली, शायद अभी भी कहीिं हो। इतना र्पयार बच्चों

े समला, अब याद करके एक

रुर

ा आ जाता है और आज

र्पिंकी की मैरेज हो गई थी। एक तरि खश ु ी भी हो रही थी कक वह घर ब ाने जा रही थी

और द ु री तरि ददल को कुछ कुछ हो रहा था। शायद इ ी को ही र्वगध का र्वधान कहते हैं।

चलता…


मेरी कहानी - 126 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन May 02, 2016 र्पिंकी की मैरेज रश्जस्ट्रे शन के बाद

ब कुछ नॉमकल हो गया था। र्पिंकी रोजाना किर

पे जाने लगी थी । गुरदआ ु रे में स ख मयाकदा के अनु ार शादी एक ककया गया था लेककन र्पिंकी की र्पिंकी ने अपना िै ला एक

ाल भी कौन

के

ाल बाद करने का तय

िंदेशे आने शुरू हो गए कक हम शादी कर दें लेककन

ुना ददया था कक वह एक

ा दर था, करते करते एक

जी अजकन स हिं और ज्ञानों ही र्वचोले थे, इ

ाल

े पहले हरगगज शादी नहीिं करे गी।

ाल परा होने को हो चला था। क्योंकक भा

सलए उन्होंने हमारे

मगधओिं को कहा कक शादी

के बाद खाना गुदक आ ु रे में ही होगा, हाल में नहीिं। भा जी अजकन स हिं की इजत और उन का प्रभाव भी कुछ ऐ ा था कक

े काम

मगधओिं ने भी इ

भी करते थे

में कोई आना कीनी नहीिं की

और उन्होंने ने कहा कक डोली की रस्म जरा जल्दी हो जाए तो उन को लिंडन वाप में आ ानी होगी क्योंकक तीन घिंटे का

पहुूँचने िर था और वहािं जा कर वह अपने महमानों को

रर ैप्शन पाटी दें गे। कुलविंत को भातीय और खा यह ही होगा कक उ

कर पिंजाबी रस्मों की बहुत जानकारी है , शायद इ का कारण ने अपनी तीन बहनों की शाददओिं में ब कुछ ीख सलया होगा। आज

भी जब कभी रे डडओ पे कभी ऐ ी रस्मों के बारे में टॉर्पक होता है तो कुलविंत अपने र्वऊ दे ती है । जेबरात के सलए

ोना तो हम ने बहुत पहले ही खरीद सलया था और अब उन के नए डडजाइन के गहने ही बनवाने थे। कक कक को कै े कपडे दे ने थे, उन के ाथ ककतने पै े रखने थे, ककतनी पगडडयािं और ककतने हार, ककतनी अिंगठीआिं समलनी के सलए, ककतने समठाई के डडब्बे आददक मुझे कुछ पता नहीिं था और यह काम कुलविंत, ज्ञानों बहन मशवरा ले कर तैयार कर रही थी। अब रीटा और हमारे

ाथ समल कर

न्दीप भी पिंद्रह

ोला

ाल का हो गया था और

ारे काम करवाता। श्जन चीजों की एक् पायरी डेट ज़्यादा

होती है , वह तो हम ने बहुत हफ्ते पहले ही बसमिंघम के एक स्टोर े ले आये थे। एक ददन किर हम बडी वैन ले कर बसमिंघम गए। वहािं रुकरी रोड पर एक बहुत बडी दकान होती थी जो बहादर के घर के नजदीक ही होती थी और शायद अभी भी हो, यह बहुत बडी परु ानी बबश्ल्डिंग थी और इ में ामान यिं ही िैंका हुआ था जै े इिंडडया में होता है लेककन इ दकान

े हर चीज समल जाती थी और

ब दक ु ानों

सलए कहीिं और जाने की जरुरत नहीिं थी । इ ादा कक म का इिं ान था और ऐ े ही उ समसलयनेअर थे,

ब दक ु ानों

स्ती समलती थी। र्ववाह शाददयों के

को दशकन की शॉप कहते थे। यह दशकन बहुत के लडके थे लेककन उ मय ही वह

े ज़्यादा उन की शॉप चलती थी। यहािं

ामान रखने के सलए एक बडी पेटी खरीदी, यह पेटीआिं पिंजाब

े हम ने दाज का कुछ

े ही इम्पोटक होती थीिं। इ


के बाद कपडे, हार, डडस्पोजेबल कप प्लेटें और भी बहुत घर आ गए।

ामान ले कर वैन भर ली और

जै े जै े ददन नजदीक आ रहे थे वै े ही हम भी बबजी हो गए थे। बरात को खाना गुदक आ ु रे में ही दे ना था, इ

सलए हम बहादर को

ाथ ले कर जगदीश के घर गए और उ

के

ाथ

मशवरा ककया कक वेश्जटे ररअन वयिंजन ककया ककया उ

मय परचलत थे। जगदीश ने बहुत े खानों की िरमायर् की और हम को भी प द िं आये। जो जो ामग्री और ककतनी उ ने

बताई, हम ने सलख ली और घर आ गए। अब किर वोही टैंट लगाना था क्योंकक इ जरुरत तो थी ही, रश्जस्ट्रे शन के वक्त हम को पता चल गया था कक इ

की

े ककतना िायदा

हुआ था। हम को कहीिं जाने की जरुरत तो थी नहीिं, इ सलए मैं बलविंत और िंदीप ने समल कर जल्दी ही टैंट खडा कर ददया। जुलाई 1989 था और मौ म भी बहुत अच्छा था। कुककिंग का काम पहले की तरह

ब गैरेज में ही होना था। गोगले पकौडे

ीरनी मठीआिं आददक

बनने शुरू हो गए। जब भी जरुरत होती बहादर और कमल भी बच्चों को ले कर आ जाते और इधर बलविंत की पत्नी अमरजीत जो कुछ परलोक स धार गई थी, भी आ जाती और

ाल हुए कैं र की नामुराद बीमारी े ाथ ही आती बलविंत के बडे भाई ज विंत की

पत्नी ज बीर। यह दोनों अमरजीत और ज बीर तो घर में रौनक ला ही ला दे तीिं। हिं

हिं

कर काम होते और हमें भी बहुत हौ ला होता। एक ददन र्पिंकी ने गैरेज की दीवारों पर बहुत े काटक न बना ददए श्जन को दे ख कर एक ददन अमरजीत बहुत हिं ी और र्पिंकी को कहने लगी कक यह काटक न उन की गैरेज में भी बना दे लेककन इ

र्वचारी लडकी को भगवान ् ने

ख ु दे खने नहीिं ददया और अपने बच्चों की शाददयािं दे खे बगैर ही इ

बहुत अच्छी लडकी थी अमरजीत और जब होता था।

िं ार

े चले गई,

े वह गई है , अब वह घर रहा ही नहीिं जो पहले

अब एक ददन हल्दी की र म होनी थी तो यह काम इ ी टैंट में हुआ। बहुत रौनक थी और रोज ही रौनक होने लगी। शादी के एक ददन पहले तो गहमा गहमी बहुत ही थी जो हर शादी के वक्त होती ही है और उ

ददन नानका मेल यानन र्पिंकी के नननहाल

और चडे की र म होनी थी। अब इ

में

कुलविंत के माता र्पता या कोई और इ गी बुआ िुिड, ब

े गैस्ट आने थे

े गवक की बात हमारे सलए यह थी कक ना तो

मागम में शासमल था और ना ही chatham

थे तो यह बुआ, ननिंदी ,श्जन्दी और

ुररिंदर और

ाथ ही आये ननिंदी के

मामा मामी और उन के चार लडके लेख स हिं , ककशन स हिं , चरनजीत स हिं और ककिंग अपनी पश्त्नओिं के जी, जो

ाथ। ननिंदी की मा ी और उ

गे तो नहीिं थे लेककन कुलविंत के पररवार

स हिं और उ

की पत्नी और

अपने पररवारों के उ

का पररवार भी आये। कुलविंत के एक और चाचा

ाथ। इ

े इन की बहुत महबत थी, यह थे मुिंद ाथ आये इन के तीनों बेटे करनैल अमरजीत और मेहरबान

पररवार

के पनत स्वणक स हिं भी आये। इ

े एक और कुलविंत के चाचा जी की लडकी बीरो और

स्वणक स हिं को

ब हिं

कर मेहर समत्तल बल ु ाते हैं


क़्योंकक यह कॉसमडडयन टाइप शख् कह कर बुलाते हैं क़्योंकक इ

है और इ

को प्रस द्ध पिंजाबी कॉसमडडयन मेहर समत्तल

की हर बात में कॉमेडी नजर आती है । कुलविंत के एक और

चाचा जी के दो लडके जो िॉरे स्ट गेट में रहते हैं, वे भी अपने पररवारों के एक लडके का नाम गुरध्यान स हिं और द रे का गुरचरण स हिं है । उ

ाथ आये, इन में

शाम को जब यह

ब लोग इकठे हो कर हमारे दरवाजे पर उपहार ले कर खडे थे और औरतें हिं

रही थी तो हम खश ु ी

े िले नहीिं

हिं

कर गा

मा रहे थे। पिंजाबी लोग गीतों में नननहाल की तरर्फ

और हमारी तरि

े औरतें एक द ु री पर जोक कस्

भीतर आ कर इ

नननहाल पाटी को टैंट में चाय पानी

रही थीिं जो बहुत ही मनोरिं जक था। बहुत दे र बाद नानका मेल को भीतर आने की इजाजत दी गई। बाद

ारे कपडे और कुछ गहने जमीिं पर रख ददए श्ज

में नानकी छक कहते हैं। यह कपडे उ मुझे इन

के हैं, होने लगी और

शुभ अव र पर हम को ककतना मान ददया गया था । यिं तो यह और मुस्करा रहा था लेककन भीतर

च कहिं तो

र पर उन के

ब धन्यवाद करके मैं

े खश ु ी के आ िं थे और मैं गवक मह

के बाद चडे की र म शुरू हो गई। ननिंदी और

कर रहा था।

भी लडके र्पिंकी को चडा पहना रहे थे,

के इतने भाई थे।

ब के बाद अब मयश्जक

लडके लडककयािं डािं

को पिंजाब

ब का धन्यावाद ककया कक वह ककतना खचक करके आये थे और हमारे

र्पिंकी भी खश ु थी कक उ इ

के हैं, यह इ

ब बातों का कोई गगयान नहीिं था लेककन मैंने तो आखर में अपने

लाये कपडे रख कर हिं

के

भी औरतें स दटिंग रूम में आ कर बैठ गईं । चाची यानन मघर स हिं की पत्नी और

ननिंदी की मम्मी और मा ी ने

े स्वागत ददया गया और इ

ट ैं र िुल वॉसलउम पर अपना जौहर ददखाने लगा था और

करने लगे। पडो ी गोरे लोगों को हम ने पहले ही बता ददया था कक शोर

बहुत मचेगा और वह अपना घर बिंद करके कहीिं और चले गए थे। मदक और लडके टैंट में बैठ गए थे और बलविंत ज विंत उन को बीयर और र्वस्की वक करने लगे थे। जो र्वडीओ वाला था, वह भी कभी राम्गढ़या

कल िगवाढ़े में मेरा क्ला

िैलो हुआ करता था और इ का नाम था तरलोचन स हिं बाहरा। मैं कभी भीतर आ जाता और कभी टैंट में चले जाता। बच्चे इधर उधर भाग रहे थे। क्योंकक गसमकओिं के ददनों में इिंगलैंड में द

वजे तक लौ रहती है , इ

सलए गसमकओिं के ददनों में शादीआिं बहुत होती हैं। इधर तो

भी डािं

और खा पी रहे थे और उधर हम को बार बार गुदक आ ु रे को भी जाना

पडता था क्योंकक वहािं कुछ औरतें और कुछ लडके भन रहा था,

श्ब्जआिं काट रहे थे और जगदीश तडके

ब कुछ ठीक ठाक हो रहा था और जगदीश ने दध को जाग बगैरा भी लगा

ददया था और हम को त ल्ली हो गई थी। मजे की बात यह थी कक

भी जी जान

े काम

कर रहे थे और कक ी को कुछ भी बताने की जरुरत नहीिं पढ़ रही थी, हर कोई अपनी श्जम्मेदारी बखबी ननभा रहा था। कोई द

बजे के करीब जगदीश ने अपना

ददया था और बाकी काम स िक गुदक आ ु रे के गगयानी जी के श्जम्मे ही था, उ

ारा काम ननपटा का काम स िक


कुछ गधयान रखने का ही था और त ल्ली करके हम वाप

ुबह को किर जगदीश ने आ जाना था। गुदक आ ु रे में

टैंट में आ गए और अब महमानों के

ाथ गप्पें हािंकना ही हमारा

काम था। याद नहीिं ककतने बजे यह

ब खत्म हुआ और आखर में अब यह काम ही था कक जो महमान रात ठहरने वाले थे, उन के सलए बलविंत की दकान के ऊपर के कमरों में ोने का इिंतजाम ककया हुआ था ताकक ुबह को टॉयलेट और नहाने के सलए आ ानी हो। बहुत लेट हम बैड में गए लेककन शायद ही हम को नीिंद आई होगी क्योंकक एक तो ारा घर ामान

े भरा हुआ था, द रे कुछ गचिंता थी।

ुबह को हम जल्दी उठ गए। बहादर और कमल भी आ गए, बलविंत तो आते ही पहले गैरेज

में गया और गै

कुकर पे चाय के सलए पानी रख ददया और टैं ट में टे बल पर मठाई की

प्लेटें रख दीिं। जो जो तयार हो कर आता टैंट में बैठ कर चाय बगैरा का आनिंद लेता। र्वडडओ वाला भी आ गया था। ऐ े ही नौ बज गए और चलने लगे। गुदक आ ु रा टाऊन

ेंटर में था और इ

भी तयार हो कर गुदक आ ु रे को

का नाम था रामगदढ़या बोडक। कुछ

ाल हुए यह गुदक आ ु रा अब बिंद हो गया है और यही गुदक आ ु रा अब टाऊन के बाहर बसमिंघम रोड पर बन

गया है जो बहुत बडी बबश्ल्डिंग है । गुदक आ ु रे में महमान आने शुरू हो गए थे और यहािं भी चाय पानी का इिंतजाम था, इ सलए जो महमान ीधे गद ु कआ ु रे में आये थे वह चाय पीने लगे। बरात क्योंकक लिंडन इ

सलए बरात द

े आखण थी और मोटरवे पर शननवार को अक् र ट्रै किक बहुत होती है , बजे पहुिंची। दल्हे चरनजीत के पीछे पीछे ब बराती गुदक आ ु रे के बडे

दरवाजे पर आ खडे हुए और अब लडककओिं का अपना प्रोग्राम था कक वह अपनी किंडीशन पर ही बरात को भीतर प्रवेश करने दें गी । कािी हिं ी मजाक के बाद बरात अिंदर आ गई और समलनी की र म शरू ु हो गई। मेरे सलए और चरणजीत के र्पता जी अजीत स हिं के सलए यह पहला अव र था अपने बच्चों कक शादी में समलनी के सलए और मैंने अपने पहनाई और एक पगडी दी और

ाथ ही हम ने एक द रे के गलों में हार पहनाए। इ

बाद और समलननआिं होने लगीिं और मैं आज बडा हो गया मह समलनी के बाद

मधी को अिंगठी

कर रहा था।

ब खाने पीने लगे थे और बाद में ऊपर हाल में चले जाते यहािं ग्रन्थ

जी की बीड शुशोसभत थी। हर कोई माथा टे क कर श्रद्धा के िल भें ट करता। जब गए तो पहले

के

गाई की र म होनी शुरू हो गई। यह सलखने में मैं कोई शमक मह

ाहब

ब आ नहीिं

करता कक बहुत बातों की ट्रे ननिंग मुझे कुलविंत ने पहले ही दे दी थी ताकक कोई गलती न हो जाए। क्योंकक हमें मधी की ओर े कहा गया था कक हम ारा काम जल्दी ननपटा दें ताकक वह वाप

जा कर रर ेप्शन पाटी दे

िर भी लम्बा था , इ

कें और इ

बात में वह

सलए हम ने भी पहले ही ग्रिंगथ

ही भी थे क्योंकक वाप ी

ाहबान को कह ददया था कक वह

हर काम जरा जल्दी कर दें । रागगओिं के दो तीन शब्द पडने के बाद ही लावािं की र म शुरू हो गई।

िंदीप और बहुत

े अन्य लडके र्पिंकी को आगे बढ़ने में मदद कर रहे थे और


हमारी आूँखों में आिं होने के बाद

थे, इन आिं ुओिं को जाहर करना एक अ म्भव

ी बात है । लावािं खत्म

ब एक द रे को वधाई दे ने लगे।

अब मैंने और कुलविंत ने चरनजीत और र्पिंकी के गले में हार पहनाये और दोनों की झोली में शगुन डाला, र्पयार ददया और िोटो खखचवाई। हम बैठ गए और अब

बी महमान चरनजीत

र्पिंकी की झोली में शगुन डालने लगे। मैं खखयालों में खो गगया। र्पिंकी का ररश्ता तय होने के कुछ महीने बाद ही बलविंत की पत्नी अमरजीत ने हमें एक र्वडडओ ददखाई और हम दे खते ही है रान हो गए थे। इ चरणजीत तेरह चौदा

किल्म में जब बलविंत की छोटी बहन की शादी थी तो उ

ाल का था और र्पिंकी तकरीबन द

ाल की थी। इ

मय

शादी में जब

इ ी गुरुदआ ु रे में लोग माथा टे कने के सलए आगे बढ़ रहे थे तो चरणजीत के पीछे पीछे र्पिंकी भी हाथ जोडे जा रही थी। चरणजीत के बाद र्पिंकी ने माथा टे का था। बात तो यह एक धाहरन और कुदरती घटना थी लेककन इ

बात पे बहुत बातें हुई थीिं कक चरणजीत और र्पिंकी का ररश्ता तो भगवान ् ने पहले ही तय कर ददया था। र्ववाह हो जाने के बाद िोटो

ैशन शरू ु हो गया और बरात के कुछ लोग बाहर बैठे कार

पाकक में डड्रिंक लगा रहे थे। यिं तो गदक आ ु रे में सलखा हुआ था कक शराब पी कर गुदक आ ु रे में प्रवेश करना मना है लेककन ऐ े मय पर कोई कुछ कहता भी नहीिं था। एक बजे ही खाना शुरू कर ददया गया जै ा कक खाने लगे और हमारी ओर

मधी की और

े कहा गया था कक हम दे र ना लगाएिं।

े एक थाली तैयार की गई श्ज

भी

के ऊपर एक बडा लाल रुमाल

रखा गया और र्वचोला भा जी अजकन स हिं अपने हाथों में ले कर

मधी और उन के

नजदीकी ररश्तेदारों की ओर ले कर चला। वहािं पहुूँच कर कुछ खश ु गवार बातें हुई और मधी ने कुछ पाउिं ड थाली में रखे और हम थाली ले कर चरणजीत और र्पिंकी के पा आ गए और बारी बारी हम ने दोनों ने एक एक ग्राही दोनों के मुिंह को लगाईं और इ

के बाद कुछ और

लोगों ने ऐ े ही ककया और िोटो खखचवाई। खाने के बाद र्पिंकी को हम घर ले आये। की ओर

मधी

े भी कािी लोग घर आ गए थे और टैंट के नीचे बैठ कर बातें होने लगीिं । र्पिंकी

और चरणजीत स दटिंग रूम में बैठे थे और र्पिंकी की

ारी

खखआिं वहािं थीिं। ब

बात को

आगे ना बढ़ाऊूँ, जब र्वदाई का वक्त आया तो र्पिंकी को रोते दे ख मैं इतना रोया कक श्जिंदगी में मैं कभी भी इतना नहीिं रोया था। अक् र मैं बहुत बातें ककया करता था कक शादी के वक्त लोग रोतें क्यों हैं, ऐ ा होना नहीिं चादहए ककओिंकी यह तो खश ु ी का वक्त होता है लेककन आज मैं वह

ब बातें भल गया था और यह र्वडडओ में ररकाडक है और इ े दब ु ारा दे खने की

मुझ में अब भी दहमत्त नहीिं है । र्वदाई हो गई थी और ऐ ा मह शरीर का कुछ दहस् ा खाली हो गया हो। चलता…

हो रहा था जै े हमारे


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