मेरी कहानी - 8
गरु मेल स हिं भमरा की आत्मकथा का आठवााँ भाग (एपि ोड 148 – 168) िंग्रहकर्त्ाा एविं प्रस्तत ु कर्त्ाा लीला ततवानी
मेरी कहानी - 148 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन July 18, 2016 ुबह अमत ृ र
े उडान भरी थी और उ ी ददन शाम को बसमिंघम पहुुँच गए। बेटा और बहू
हमें लेने आये हुए थे । एअरपोटट
े बाहर आ कर
ामान गाडी में रखा और घर की ओर
चल पडे। इिंडिया के शोर शराबे के बाद अब हर तरफ शान्तत का वातावरण मह ू था।
ायिं
हो रहा
ने ककतनी उनती कर ली है , एक ही ददन में द ु री दतु याुँ में पहुुँच गए थे ।
िंदीप कहने लगा,” िैि !शाम को खाने के सलए चलो के ऍफ़
ी ले लेते हैं। बसमिंघम स टी
ेंटर
ोहो रोि
े कुछ ले चलते हैं “, मैंने कहा
े ननकल कर हम हैंिजवथट की
ोहो रोि
पर आ गए। यहािं ट्रै कफक बहुत थी क्योंकक यह इ
डक शॉपपिंग करने के सलए लोगों का प िंदीदा स्पॉट है ।
एररये को समनी पिंजाब भी कह दे ते हैं क्योंकक यहािं शायद ही कोई कक ी अुँगरे ज़ की
दक ू ान हो। इ
रोि पर एक पिंजाबी का गाना भी बना हुआ है ,”
ोहो रोि उते तैनू लभदा
कफरािं, नी मैं कन पवच मुिंद्ािं पाके ” ,यहािं इिंडिया की हर चीज़ उपलभ्द है और समलती हैं। खाने के सलए तो एक
न्जजआिं
े बढ़ कर एक मठाई और अतय नमकीन चीज़ें हैं और
लोग यहािं बैठ कर खाने के सलए आते हैं। इन हलवाई की दक ु ानों को दे ख कर पडा,” िैि ! के ऍफ़
ारी
िंदीप बोल
ी छोड कुछ इिंडियन फ़ूि ले लेते हैं “, मैंने कहा, “चलो यह खा लेते हैं
“, एक जगह गाडी पाकट करके हम एक बडी
ी दक ू ान में चले गए, दक ू ान में रश था।
िंदीप की आदत है , जब भी कुछ खाने के सलए खरीदे गा हमेशा ज़्यादा खरीदे गा, उ भठूरे , कई तरह के पकौडे ले सलए। जब
िंदीप काउिं टर
थे। कुछ दे र बाद दो कैररयर बैगों में फ़ूि ले कर
ने छोले
े ले रहा था तो हम दे ख कर हिं
रहे
िंदीप आ गया। अब हम गाडी की और चल
ददए, यहािं गाडी पाकट की हुई थी। अब अुँधेरा हो चुक्का था और गाडी में बैठ कर हम वोल्वरहैंपटन को चल ददए और आधे घिंटे में ही पहुुँच गए। ने नहाने का मन बना सलया और
ामान अिंदर रख कर पहले हम
िंदीप ने कुछ बबयर के कैन फ्रीज़र में रख ददए। शावर ले
कर थकान उतर गई। पहले हम ने पपिंकी रीटा को टे लीफोन करके बताया कक हम पहुुँच गए थे। टे लीफोन पर बातें करते करते काफी वक्त लग गया। बबयर के कैन ठिं िे हो गए थे और िंदीप ग्ला ों में बबयर िाल कर ले आया। हम बबयर पी रहे थे और कुलविंत ने खोल कर बहू ज पविंदर को
ब कुछ ददखाना शुरू कर ददया था जो हम इिंडिया
ट ू के े ले कर
आये थे। ज पविंदर दे ख दे ख कर खश ु हो रही थी। ज पविंदर के सलए जो े स लवाये थे, ज पविंदर को बहुत प िंद आये और खा
कर
ूट जालिंधर छावनी
ाडडयािं। कुलविंत की आदत है
जब भी कुछ खरीदे गी रीटा, पपिंकी और ज पविंदर तीनों के सलए एक जै ी खरीदे गी। न्जऊलरी, मेक आप का
ामान और बहुत
ी और चीज़ें जो ज़्यादा फगवाडे और जालिंधर
े खरीदी
गई थीिं, कुलविंत ने ज पविंदर को ददखाईं । यह
ब चीज़ें ददखाते ददखाते काफी वक्त हो गया था और जब तक हम ने बबयर भी पी ली
थी और अब बहु ने खाने का ककया तो
ामान टे बल पर रख ददया और प्लेटें ले आई। जब खाना शरू ु
ब कुछ इतना स्वाददष्ट लगा कक मज़ा ही आ गया क्योंकक एक दम इिंडिया
खाते खाते हम इिंग्लैंि में खा रहे थे। उ
वक्त एक बहुत बडा फकट हमें यह लगा कक यहािं
खाने में जो तेल इस्तेमाल ककया जाता है वह बहुत अच्छी कुआसलटी का होता है , इ खाने इिंडिया
े सलए
े ज़्यादा स्वाददष्ट लगे जब कक इिंडिया में कक ी प्रकार के घी या तेल की गरिं टी
नहीिं होती। यहािं खाने को ले कर बहुत
ख्त कानन ू हैं और जो लेबल लगा होता है , वह
ही होता है । कुछ दे र बाद हम
ुबह जब उठे तो
ो गए।
चक् ु के थे। अभी कुछ छुदटआिं रहती थीिं, इ
ही
िंदीप और ज पविंदर काम पर जा
सलए हम ने रीटा पपिंकी के
प्रोग्राम बना सलया। एक तो समलना जुलना हो गया, द ू रे जो इिंडिया
ु राल जाने का े उन के सलए गगफ्ट
लाये थे, वह उन को दे ददए। याद नहीिं, कक
तारीख को हम काम पर चले गए और अब
ब कुछ
मातय हो गया था,
न्ज़िंदगी पहले की तरह चलने लगी। अब हम अपने आप को कुछ फ्री मह ू
कर रहे थे
क्योंकक तीनों बच्चों की शाददयािं हो चक् ु की थीिं लेककन न्ज़िंदगी में रुकावटें तो आती ही रहती है । एक दफा मेरा हरननआिं का ऑपरे शन हुआ था और अब यह कफर ददट करने लगा था। मेरा काम ही ऐ ा था कक शरीर को ब ही रहते थे। कई ददट मह ू
चलाने की वजह
े ऊबड खाबड
ाल तो अच्छा रहा लेककन अब यह कफर
डक पर झटके लगते
े तकलीफ दे ने लगा था। हर दम
होता, जब पैदल चलता तो कुछ दरू जा कर चलना मुन्ककल हो जाता।
जब ददट ज़्यादा ही बढ़ गया तो अपने िाक्टर के पा
गया। िाक्टर ने बता ददया कक अब
कफर ऑपरे शन करना पडेगा। िाक्टर ने मुझे यह भी बताया कक ह पताल की वेदटिंग सलस्ट बहुत लिंबी है और ऑपरे शन को
ात आठ महीने लग जाएिंगे, इ
सलए अगर मैं प्राइवेट
जटन की अपाएिंमेंट ले लुँ ू तो जल्दी ऑपरे शन हो जाएगा। मैंने िाक्टर को प्राइवेट अपॉएिंटमें ट के सलए बोल ददया। द ू रे हफ्ते मुझे िाक्टर का लैटर आ गया और मैं नुफील्ि ह पताल में
जा पहुिंचा। िाक्टर ने चैक करने में दो समिंट लगाए और बोल ददया कक मुझे लैटर घर आ जाएगा। दो
ौ पाउिं ि उ
की फी
दी और दे कर बाहर आ गया। तीन हफ्ते बाद ही मुझे
ह पताल में जाना था। मेरे जै े वहािं और लोग भी बहुत थे और इ
दफा मुझे कोई भय नहीिं लग रहा था। बहुत
टै स्ट होने के बाद द ू रे ददन मेरा ऑपरे शन हो गया। इ मुझे कोई ददट मह ू
े
दफा मुझे पेन ककलर ददए गए और
नहीिं हुई। पपछली दफा तो बहुत ददन ह पताल में रहे थे, जब मेरे
वैस्ट इिंडियन दोस्त रोज़ी का ऑपरे शन भी हुआ था लेककन इ
दफा मुझे द ू रे ददन ही घर
भेज ददया। ऑपरे शन के न्स्टच्ज भी डिस्पोजेबल थे जो खुदबखद ु डिजॉल्व हो गए। तीन महीने आराम ककया और कफर वह ही काम शुरू हो गया। इ समलती रही, जो यूननयन के
दौरान मुझे लगातार तनखआ ु ह
ाथ मैनेजमैंट का एग्रीमैंट था।
इ ी दौरान बहादर की बेटी ककरण की शादी भी हो गई और उ रहा था। न्ज़िंदगी कफर चलने लगी। काम पहले इ
का मुआवज़ा भी लगातार समल रहा था, इ
का बेटा हरदीप, अभी पढ़
े कहीिं ज़्यादा मुन्ककल हो गया था लेककन सलए जी जान
े काम कर रहे थे। हिं ी
खश ु ी ददन बतीत हो रहे थे कक अब एक और उलझन पैदा हो गई, न्ज
के बारे में बहुत
पहले मैं सलख चक ु ा हूुँ, कुलविंत की कमर में अचानक तेज़ ददट होने लगा, जो उ नहीिं हो रहा था। दरअ ल फैक्ट्री में काम करते करते उ
े
हन
ने कपडों का एक बिंिल उठाया
और उ ी वक्त चीखें मारने लगी। फैक्ट्री मालक को चादहए तो यह था कक उ ी वक्त एम्बुलैं
के सलए फोन करता लेककन उ
यह भी अच्छा ही था कक मैं उ लेककन कई
वक्त घर पर ही था। उ
भी हो
खैर जो हुआ,
वक्त मुझे भी कुछ
ाल बाद मेरे ददमाग में आया कक फैक्ट्री मालक ने ह पताल को इ
टे लीफोन नहीिं ककया था कक यह के के
ने हमारे घर टे लीफोन कर ददया।
Accident at work का के
ूझा नहीिं सलए
हो जाता और उ
पर
कता था कक मालक ने भारी बिंिल उठाने के सलए इिंतज़ाम क्यों नहीिं ककया था। ो हुआ। उ ी वक्त मैं फैक्ट्री पहुुँच गया और कुलविंत को ले कर ह पताल जा
पहुिंचा। वहािं एक् रे ककये गए लेककन एक् रे में कुछ नहीिं आया और पेन ककलर दे कर हमें घर भेज ददया लेककन कुलविंत
े बैठ नहीिं होता था। हमारी िाक्टर सम ेज़ ररखी ने कफजीओ
थेरपी के सलए वैस्ट पाकट ह पताल की अपॉएिंटमें ट ददला दी। हर हफ्ते मैं कुलविंत को ले कर ह पताल जाता। कफजीओ थेरपी होती रही लेककन आराम नहीिं आता था। द
पिंद्ह समिंट
ज़्यादा उ
े फागट कर
े बैठ नहीिं होता था और आखर में 1998 में कुलविंत को काम
े
ददया गया और हकूमत की तरफ
े उ े incapacity benefit समलने लगा जो तनखआ ु ह
े
काफी कम था लेककन कफर भी कुछ ना कुछ तो है ही था। यह पै े कुलविंत को पैंशन होने तक समलते रहे और पें शन के बाद यह पै े बिंद हो गए। मु ीबतें यहाुँ ही खतम नहीिं हुईं, एक ददन मैं काम पर ही था। ब खडी करके मैं ने टोयेलेट को जाने का
ोचा। यूिं ही मैं ब
े ज़रा
स्टे शन पर आया तो ब ी छलािंग लगा के उतरा
तो मेरे दायें घुटने में कुछ कसलक्क की आवाज़ आई और मैं कुछ लिंगडा के चलने लगा। मेरी चाल अजीब
ी हो गई लेककन कोई खा
ददट नहीिं हुआ।
ारा ददन मेरी चाल अजीब
रही। जब काम खतम करके घर आया तो घुटना धीरे धीरे
ूजने लगा।
ी
ुबह उठा तो इतना
ूज गगया कक टॉयलेट को जाना मुन्ककल हो रहा था और ददट बहुत हो रही थी। कुलविंत को कक ी ने दे ी नुस्खा बताया कक गमट गमट रोटी को क्लौल्तजी का तेल लगा कर रोटी को घुटने पर बाुँध दें । ऐ ा ही ककया गगया लेककन जब
ुबह उठा तो
ारे घुटने की न्स्कन लाल
हो गई। अब बेटे ने मुझे गाडी में बबठाया और
ीधा हस्पताल ले गगया। वहािं एक् रे में जो आया,
मझ ु े बता ददया गगया कक यह आर्थ्ाटट्
है और अभी इ
का कुछ ककया नहीिं जा
कता,
अभी
े ऑपरे शन की कोई जरुरत नहीिं थी। धीरे धीरे घुटना कुछ कुछ ठीक हो गगया। जब
मैं ब
चलाता था तो कोई खा
बाद मुझे बैठना पडता। इ
तकलीफ नहीिं थी लेककन जब चलता तो पिंद्ाह बी
समनट
घुटने पर तीन दफा इिंजेक्शन भी लगाए गए लेककन कोई फायेदा
नहीिं हुआ, ब
ऐ े तै े करके न्जिंदगी कफर
कक मेरी ऐक्
ाटइज़ की आदत
े चलने लगी। यहाुँ मैं यह सलखना नहीिं भूलूिंगा
े न्जतनी कोसशश इ
का नतीजा यह हुआ कक पपछले द
ाल
घट ु ने को ठीक करने की मैंने की, उ
े कभी ददट नहीिं हुई और घुटना बबलकुल ठीक है ।
दद म्बर 2000 के आखखर में कुलविंत की ददली वाली बहन के बेटे की शादी थी और हमें बल ु ाया गया। मैंने
ोचा कक एक तो कुछ हवा पानी बदली हो जाएगा और द ू रे शादी
मारोह का लुत्फफ़ उठाएिंगे क्योंकक इ
े पहले इिंडिया में एक शादी ही अटैंि की थी जब
बहादर के भाई लिे की बीवी के कक ी ररकतेदार की शादी हुई थी। था तो उ का महीना, जब
मय जनवरी
दी होती है लेककन ददन को तो धप ु ननकल ही आती है और यह धप ु
कुलविंत के सलए भी फायदे मिंद रहे गी । और एक इच्छा यह भी थी कक ददली में 26 जनवरी की रौनक दे ख लेंगे। 25 जनवरी को हम ददली जा पहुिंच।े कुलविंत की बहन भी बहुत खश ु हो गई। जब हम ने 26 जनवरी का
मारोह दे खने के सलए अवतार स हिं को बताया तो वह
कहने लगा कक इ
े अच्छा तो हम टीवी पर दे ख
मैंने भी कोई न्ज़द नहीिं की और
कते थे क्योंकक वहािं बहुत भीड होती है ।
ारा ददन टीवी पर यह यशन दे खा।
द ू रे ददन घर में अखिंि पाठ रखना था। कुलविंत का बहनोई अवतार स हिं , उ बहादर न्ज
का बेटा
की शादी थी, मैं और दो चार आदमी और, नतलक नगर के गद ु टआ ु रे में गए।
गगयानी जी ने अरदा
की और मेरे
र पर मिंजी
ाहब, न्ज
के ऊपर बीड थी, रख दी गई
और हम निंगे पाुँव चलने लगे। बहादर आगे आगे रास्ते में पानी नछडक रहा था और रास्ते में त्फकार
े लोग हाथ जोडे खडे थे। घर आये तो गगयानी जी ने कफर अरदा
दे र बाद अखिंि पाठ शुरू हो गया, न्ज
की और कुछ
का भोग ती रे ददन पढ़ना था। यह तीन ददन भी
भूलने वाले नहीिं हैं क्योंकक घर के भीतर इतनी ठिं ि थी कक ऊपर किंबल ओढ़ कर भी दठठुर रहे थे, बार बार चाय पीते। ती रे ददन 30 जनवरी
माप्ती हो गई।
ुबह ही घर में हलवाई आ गए और
डक पर ही गोगले
द ू रे ददन 31 जनवरी को वह हलवाई कफर आ गए और
ीरनी कुक होने लगे।
डक पर ही मीट बनना शुरू हो
गया। एक हलवाई जो शायद उन काम करने वालों का मालक होगा, भूलने वाला नहीिं है । इ के कपडे गगयाननओिं जै े थे और दाह्डी काफी लम्बी थी। जब मीट बन रहा था, छत पर बहादर के दोस्त जो उ
के
ाथ ददली पुसल
में होंगे, शराब पी रहे थे। बहादर ने मुझे पीने
के सलए कहा लेककन मैंने जवाब दे ददया कक एक दवाई ले रहा था, इ
सलए पी नहीिं
मैं कैमकोिटर
ब दोस्त मस्ती कर
े पवडिओ लेने लगा। छत पर जगह काफी थी और वह
रहे थे और जोक पे जोक छोड रहे थे। वह हलवाई न्ज बार बार छत पर आता और शराब का ग्ला लगता। मयून्जक
की शकल एक गगयानी जै ी थी,
भर कर पी जाता और मुझे यह बहुत बरु ा
ेंटर फुल
आवाज़ पर बज रहा था और यह लोग अब िािं ाथ िािंत
किंू गा।
करने लगे। अब वह गगयानी भी उन के
करने लगा लेककन पता नहीिं क्यों, मझ ु े उ
े मन ही मन में नफरत हो रही
थी। दे र रात तक यह स लस ला चलता रहा लेककन यह दे ख कर मैं है रान हो गया कक उन लोगों ने इतनी शराब पी कक न्ज़िंदगी में कक ी को इतनी शराब पीते दे खा ही नहीिं था। द ू रे ददन 31 जनवरी को बरात ने लडकी वालों के घर को रवाना होना था। बाजे वाले आ गए और बाजा बजाने लगे। हम सलए तैयार हो गए। औरतें एक द ू रे
ब खब ू
ुबह ही बैंि
ज धज के बरात के
ाथ चलने के
े बढ़ कर कपिे और गहने पहने हुए थीिं। बाजे वालों
के पीछे पीछे हम चलने लगे। कुछ कुछ बराती दल् ू हे बहादर स हिं के
र पर बी
पचा
रूपए के नोट घुमा कर बाजे वालों को दे रहे थे न्ज
को पिंजाबी वारने कहते हैं। उन की
तरफ दे ख कर मैं भी रूपए वारने लगा। एक हाथ में मैंने कुछ नोट पकडे हुए थे। भीड एक लडके ने बबजली की फुती मैं कुछ
े मेरे हाथ
े
े
भी नोट छीन सलए और भाग गया। जब तक
ोचता, लडका दरू भाग कर कक ी गली में छपन हो गया।
मैंने कक ी को बताया नहीिं क्योंकक इ पवघन िालना मैंने उगचत भी नहीिं
का कोई फायदा नहीिं था और इ
मझा । अब मैं
घर कोई दरू नहीिं था लेककन बरात का वालों के आगे हो कर िािं ूट मट्टी
िंभल गया था। बहादर के
मय बढ़ाने की ग़रज़
घुमाया गया। बहादर के दोस्त पता नहीिं कब
खश ु ी के
मय
ु राल का
े बरात को कई गसलओिं में
े शराब पी रहे थे कक वह शराबी हो कर बाजे
कर रहे थे। दो लडके िािं
करते करते गगर गए और उन के नए
े खराब हो गए। यह दे ख कर मुझे बहुत नफरत हुई लेककन कुछ दे र बाद मुझे
हिं ी भी आई , जब वही लडके कुछ दे र बाद अपने कपडों
े मट्टी झाड कर बरात के
ाथ
कफर आन समले थे। रर ेप्शन के सलए बहुत बडा एक टैंट की
खखओिं
जा हुआ था। टैंट में जाने
े पहले बहादर को दल् ु हन
े मक ु ाबला करना था जो बरात को रोके हुए थीिं। पिंद्ह बी
समिंट हिं ी मज़ाक
के बाद हमें टैंट में घु ने की इजाजत समल गई। तरह तरह के खाने टे बलों पर और
जे हुए थे
भी बराती अपनी अपनी प्लेट हाथ में पकडे अपने मन प िंद खाने प्लेट में िाल रहे थे
और कोई कहीिं और कोई कहीिं दोस्तों के
ाथ खडा खा रहा था और खाने का यह ढिं ग मुझे
अच्छा लगा क्योंकक खाते खाते आप कक ी भी दोस्त या ररकतेदार खाते खाते प्लेट मैं कक ी टे बल पर रख कर ददली पुसल
े बात कर
कते थे।
दटल फोटोग्राफी भी कर रहा था। बहादर के
के कुछ अफ र भी आये हुए थे।
बहादर ने अपने अफ रों का मझ ु “, वह खश ु होकर मझ ु
े तुआरफ कराया,” यह मेरे मा ढ जी इिंग्लैंि
े समले और कुछ बातें मेरे
े आये हैं
ाथ कीिं, लेककन मझ ु े याद नहीिं वह बातें
क्या थीिं। खाना खाने के कुछ दे र बाद इ ी टैंट में शादी की र म हो गई। अब हम ने दल् ु हन के घर जाना था। छोटा था, न्ज
ा घर का आुँगन था और दाज का कुछ
में कुछ फनीचर, कफ्रज, कपिे
ामान आुँगन में रखा हुआ
ीने की मशीन और अतय चीज़ें थी जो मुझे याद
नहीिं लेककन जो बात आखर में मैंने बहादर के पपता जी अवतार स हिं जवाब ददया, वह मुझे कभी भूलेगा नहीिं। लडकी न्ज ज पविंदर ही है , उ
के पपता जी इ
े कही और जो उ
का नाम भी हमारी बहू का नाम
दतु याुँ में नहीिं थे और शादी ज पविंदर के मामा जी ने
ने
की थी। जब घर
े हम चलने लगे तो मैंने अवतार स हिं
े कहा,” भा जी बहू के घर वालों
ने इतना खचट ककया है , उन का धतयवाद कर दो “, जवाब जो समला, वह बहुत भारतवास ओिं की मानस क
ोच है । ” कौन
हैं “, मेरा मन बझ ु गया और इ
ा ज़्यादा कर ददया है ,
के बाद मैं नहीिं बोल
बहू ज पविंदर को घर ले आये और उ
े
भी लडकी वाले करते
का।
रात काफी हिं ी मज़ाक हुआ। खश ु ी का अव र था,
नई नई दल् ु हन जो घर आई थी। कफर याद रहे या ना रहे , एक बात यहािं ही सलख दुँ ू कक ज पविंदर, अवतार स हिं की तीनों बहुओिं
े
ब
े ज़्यादा
मझदार है और उ
का टे लीफोन
कभी कभी हम को आ जाता है । ज पविंदर के तीन बेदटयािं और एक बेटा हुआ था। कम्प्लीट और खश ु पररवार था लेककन कुछ
ाल हुए ददली में िेंगू का बहुत जोर था। ज पविंदर के बेटे
को भी िेंगू ने बख्शा नहीिं। कक ी िाक्टर ने ऐ ा टीका लगाया कक बेटा डि ेबल हो गया और चार
ाल पहले भगवान ् को पपयारा हो गया। अब बेटे की इच्छा तो हर एक दिं पनत की होती
है लेककन यह भी क्या भरो ा कक आगे बेटा ही पैदा होगा। ज पविंदर के जोर दे ने पर बहादर ने कक ी औरत की कोख उधार ली और आईवीएफ ट्रीटमें ट बहादर को बेटे की दात कफर
े न ीब हो गई है और अब बहुत खश ु हैं और उन के बेटे के
सलए हम ने भी कुछ तोहफे भेज कर इ चलता…
े छै महीने हुए ज पविंदर और
खश ु ी में शामल होने का इज़हार कर ददया था।
मेरी कहानी - 149 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन July 21, 2016 बहादर की शादी के बाद मैं और कुलविंत दोनों ददल्ली की को
भी धमट स्थानों, मिंददर या गुरुदाु रे
े बहुत लगाव है और बिंगला ही है ।
े लगन है लेककन ददल्ली के गुरुद्वारा बिंगला
ाहब उ
को कभी भी भल ू ेगा नहीिं। इ
िंदीप और ज पविंदर की शादी हुए पािंच
नहीिं हुई थी। पािंच
ैर को ननकल गए। यूिं तो कुलविंत
बेबी नहीिं लेना ? , ज पविंदर इन बातों
का कारण भी अजीब
ाल हो गए थे लेककन बच्चे की आशा पूरी
ाल कोई ज्यादा तो नहीिं होते लेककन हमारे
ज्यादा कर दे ती हैं। कुछ औरतें कभी कुलविंत
ाहब
माज में औरतें इ
े पछ ू ती, कभी ज पविंदर
को
े पूछती कक अभी
े अप ेट हो जाती। बच्चे की चाहत तो हर औरत
को होती है और यह चाहत अब ज पविंदर में भी जोर पकड रही थी। एक ददन एक शादी मारोह में एक ररकतेदार औरत ने ज पविंदर
े पूछ सलया,” बेबी कब लेना है ?”, जब घर
आये तो ज पविंदर कुलविंत के गले लग कर रोने लगी। कुलविंत ने ज पविंदर को हौ ला दे ते हुए कहा, ” तेरी उम्र ही अभी क्या है , उदा है , उ
की परवाह मत कर “, इन बातों
तो तू तब हो, जब मैं तुझे कुछ कहूिं, जो बोलता े ज पविंदर को हौ ला हो गया। यह
ब बातें
कुलविंत ने मझ ु े तब बताईं, जब ज पविंदर गभट अवस्था में थी। ददल्ली घुमते घुमते हम पहले बािंग्ला रहे । यह गरु ु द्वारा है भी बहुत में अपने पैर धो कर ऊपर इतना
ाहब गुरूद्वारे में ही गए। तकरीबन एक घिंटा हम वहािं
त ु दर। जोडा घर में हम ने अपने जत ू े जमा कराये और पानी
ीदढ़याुँ चढ़ने लगे क्योंकक गुरुद्वारा कुछ ऊिंचाई पर है । गुरुद्वारा
ुतदर है कक कक ी नान्स्तक का भी
र झुक जाए। हर तरफ
था। दे ख दे ख रूह प्र तन हो रही थी। यह गुरुद्वारा कनाट प्ले गुरु हरकृष्ण जी कुछ वक्त 9
ाल
िंगमरमर ही लगा हुआ
के नज़दीक है और आठवें
मय यहािं रहे थे। गुरु हरकृष्ण बाल गुरु थे क्योंकक उन की उम्र उ
े भी कम थी। उ
मय ददली में चेचक की बीमारी फैली हुई थी और गरु ु
जी ने लोगों की बहुत मदद की थी और खद ु भी इ गए थे । 1783 में बाबा बघेल स हिं ने इ
बीमारी के सशकार हो कर स्वगटवा
जगह छोटा
हो
ा गुरुद्वारा बनाया था,जो अब एक
पवशाल गुरुद्वारा बन गया है । एक तरफ एक कोने में कुछ
ेवक श्रद्धालुओिं को पानी पपला रहे थे, हम भी पानी पी कर
गुरूद्वारे में चले गए। माथा टे क कर कुछ दे र कीतटन का आनिंद सलया और प्र ाद ले कर बाहर आ गए। दाईं ओर एक तरफ
ीदढ़यािं उतर कर
रोवर बना हुआ है ।
रोवर काफी बडा
और
ुतदर है । यहािं कुछ पवदे शी फोटो ले रहे थे।
रोवर
े वाप
ाहब की परकमाट करने लगी जो एक गोल प्लैट फ़ामट के
आ कर कुलविंत, ननशान
ट ैं र में शुषोबत था और काफी
ऊिंचा था। प्रकमाट करके कुलविंत माथा टे कने लगी और बहुत दे र तक भगवान ् रही और जब उ
ने
र ऊिंचा उठाया तो उ
े कुछ मािंगती
का चेहरा खखला हुआ था और बोली,” आज
मझ ु े कुछ समलने वाला है पता नहीिं क्या “, इ
बात पर मैंने कोई खा
कुछ दे र बाद लिंगर के सलए लिंगर हाल में चले गए। लोगों के
गधयान नहीिं ददया।
ाथ बैठ कर खाना हर एक को
अच्छा लगता है और एक बात मैंने नोट की है कक इिंडिया आ कर भूख बहुत लगती है और खाना भी बहुत स्वाददष्ट लगता है , यह मैं नहीिं कहता, मह ू
भी लोग जब इिंडिया आते हैं तो
करते हैं कक भख ू बहुत लगती है और यह शायद इिंडिया के मौ म की वजह
यहािं हम वक्त के दह ाब
े है ।
े खाते हैं, चाहे भूख ना भी लगी हो। यहाुँ इिंग्लैंि में ज़्यादा लोग
स फट एक दफा शाम को ही रोटी खाते हैं और ब्रेक फास्ट, लिंच बगैरा के सलए अतय पदाथट होते हैं। लिंगर हाल
े ननकल कर हम ने कुछ शॉपपिंग की और घर आ गए।
द ू रे ददन हम ने पािंजाब के सलए ट्रे न पकडी और फगवाडे आ गए। ननमटल आया हुआ था और
ामान गाडी में रख कर अपने गाुँव राणी पुर पहुुँच गए। इ
नहीिं था स वाए कुलविंत की शॉपपिंग के क्योंकक
दफा हमें कोई खा
ब के सलए कुछ न कुछ लेना था और ज़्यादा
शॉपपिंग फगवाडे ही होती थी। फगवाडा तो हमें द ू रे घर जै ा ही था। घर लेते और फगवाडे पहुिंच जाते। दे र तक ब
ारा ददन घम ू घाम के जब ब
में बैठे रहते क्योंकक कई दफा ब
ड्राइवरों और कनिक्ट्रों के
वाले पिंद्ह बी
अड्िे
े ब
े ब
समिंट ब
या टै म्पू
लेते तो बहुत
खडी करके अतय
ाथ बातें करते रहते थे, शायद वह टाइम टे बल के दह ाब
चलते थे । कुछ लडके जो खडी ब
में
काम
े
वाररओिं को कुछ ना कुछ बेचते थे, उन की आवाज़ें
अभी तक मेरे कानों में गुँज ू रही हैं। एक लडका एक थाली में ताज़े नाररयल के टुकडे बेचता था और मिंह ु
े बार बार कहता था ” दटकडी ई ई ओ, दटकडी ई ई ओ “, यह लफ़ज़ मैंने
पहले कभी नहीिं
ुना था, ना जाने यह कक
भाषा में होगा। अब यू पी बबहार
े बहुत लोग
पिंजाब में आये हुए हैं, शायद उन की भाषा में यह दटकडी शजद होगा। एक लडका पटै टो पीलर बेच रहा था और बोल रहा था, ” ए लो जी यह है झटा झट ते काम करता फटा फट, बटाले का बना हुआ, आलू हो गाजर हो बैंगन हो फटा फट छीलेगा क्योंकक इ
का नाम है झटा झट, शादी हो, पाटी हो, धासमटक
मागम हो, झटा झट, काम करे गा
फटा फट। ऐ ा बहुत कुछ बोलता रहता था, पहले ददन तो मुझे उ कुछ ददन बाद
पर हिं ी आ गई थी,
धारण बात हो गई थी। एक लिंगडा लडका ऊिंची ऊिंची बोलता था, बामोटीन !
बामोटीिंन ! बी इ
बबमाररओिं की एक दवाई,
को मसलए, तुरुतत दुःु ख
गधयान
े दे खता
र में ददट , खज ु ली हो, जुकाम हो, पीठ में ददट हो
े छुटकारा पाइए। ऐ े बहुत
ुनता रहता था और यह भी
े बोल बोलता था, इन
ब को मैं
ोचता था कक यह लडके ककतनी समहनत कर
रहे थे। इन की ओर दे ख कर मझ ु े मेरे दोस्त गगयान के उन के उन ददनों की याद आ जाती, जब वह चारपाई अपने
र पर रख कर राणी परु के स्कूल के
के पपता जी हररया राम उ
चारपाई पर कापपआिं, स आही,
ामने रख दे ता था और उ लेटीआिं और कुछ खिंि की
गोलीआिं और दाल फुलीआिं बेचा करता था। यहािं राणी पुर के सलए ब एक लडका एक मशीन मन्क्खयाुँ होती थी,
े गतने का र
ननकाल कर बेचता था, इदट गगदट मन्क्खयाुँ ही
ोचता था, कुछ मन्क्खयाुँ तो जरूर इ
सलए हम ने कभी भी गतने का र
खडी होती थी, वहािं
बेलन
नहीिं पपया था। ऐ े बहुत
े पप
जाती होगी, इ ी
े लोग रोज़ी रोटी के सलए
कुछ ना कुछ बेचते थे। फगवाडे में जब भी हम घम ु ते “दशमेश क्लाथ हाऊ ” को जरूर जाते। इ छोटे भाई ननमटल का दोस्त है और ननमटल की पत्फनी ने उ
का मालक मेरे
को भाई बनाया हुआ है , मुझे उ
का नाम याद नहीिं आ रहा, शायद कुलदीप स हिं है । बहुत हिं मुख और अच्छे
ुभाव का है ।
एक दफा कुछ
ाल हुए दीवाली के ददन हमारे घर राणी पुर आये थे और बहुत खचट करके
आये थे। बहुत
े काम कुलदीप ने हमारे सलए ककय़े थे। हमें भारत में कीमतों की इतनी
जानकारी नहीिं होती थी और कुलदीप हमारी मदद कर दे ता और हम है रान होते थे कक कुलदीप हमारी मदद ऩा करता तो कीमत का ककतना फरक पढ़ जाता। फगवाडे में घुमते घुमते कभी अचानक जालिंधर जाने का प्रोग्राम बना लेते। एक ददन इ ी तरह जालिंधर रै णक बाजार जाने का
ोच सलया। इ
चलना भी कक ी मदु हम
रै णक बाजार में इतनी दक ु ानें हैं कक लोगों की भीड में
े कम नहीिं है । यह बाजार ऐ ा है कक हर चीज़ यहािं समल जाती है ।
एक दक ू ान पर हम ने लैदर कोट दे खे और मन कर आया कक एक मैं भी ले लुँ ।ू दक ू ानदार दे ख कर फट पेहचान जाते हैं कक यह शख् े उ उ
बबदे श
े आया हुआ है और अपनी नरम बातों
े अच्छी कमाई कर लेते हैं।
ददन मैंने कमीज़ पाजामा पहना हुआ था। एक लैदर की बडी दक ू ान में हम गए और
जैकट ददखाने को कहा। एक जैकट हमें प िंद आ गई। कीमत पूछी तो उ
ने दो हज़ार रूपए
बताई। मैंने कहा एक हज़ार दिं ग ू ा। “क्या बात करते हो जी, इतने की तो हम को समलती भी नहीिं ” ,बहुत बातें उ
ने कीिं और मेरा कुछ मूि ऐ ा हो गया कक मैंने कह ददया, ” कफर
कक ी ददन आएिंगे “, वह हमारे पीछे ही पड गया और जब हम जाने के सलए उठने लगे तो
वह बोला,” चलो जी हज़ार ही दे दो “, हज़ार रूपए दे कर हम ने जैकट ले ली और मन ही मन मैं
ोच रहा था कक इतनी हे रा फेरी, यह तो
बबिंदीआिं और कुछ अतय चीज़ें खरीदीिं और इ न्ज
में बहुत
रा
र झूठ था। कुलविंत ने कुछ चडू डयािं,
के बाद हम एक बडे ग्रॉ री स्टोर में चले गए,
ी पवदे श में समलने वाली फ़ूि समलती थी। यहािं हम ने हाइतज़ बेक्ि बीनज के
कुछ डिजबे और कॉनट फ्लेक्
सलए। इ
दक ू ान की एक खास यत हम को ददखाई दी कक यहािं
कोई मोल भाव नहीिं होता था। अब तो मझ ु े इिंडिया की कीमतों का पता नहीिं लेककन उ
ददन हमें बेक्ि बीनज का कैन 32
रूपए का समला था। मैंने दक ु ानदार को पै े कम करने के सलए बोला तो उ ददया कक उतहोंने दक ू ान के बाहर ही सलख ददया हुआ है कक वहािं कफक् कोई ले या ना ले। मुझे उ फगवाङे
की बात
ने मुझे बता
प्राइ
ही थी, चाहे
े त ल्ली हो गई क्योंकक यही बेक्ि बीनज का टीन
े मुझे 45 रूपए का समला था। इ
ददन के बाद जब भी हमें कक ी चीज़ की
जरुरत होती हम जालिंधर रै णक बाजार आ जाते। बीनज तो आम समल जाते थे। एक ददन फगवाङे में घुमते घुमते एक दक ु ानदार को बीनज का कैन दे ने को बोला तो उ 75 रूपए ” ,मैं कैन छोड कर उ ी वक्त दक ू ान रदार जी,
ाठ रूपए दे दो, चलो जी पचा
गस् ु े में बोला,” द इ
ने बोला,”
े चल पडा, दक ु ानदार आवाज़ दे ने लगा, ”
ही दे दो “, वह नीचे आ रहा था और मैंने
रूपए दिं ग ू ा ” और दक ु ानदार भी दाल गलती ना दे ख चप्ु प कर गया।
दफा हम ने जल्दी वाप
आ जाना था क्योंकक हम तो स फट शादी की वजह
े ही आये
थे। कुलविंत की बहन का घर तो फगवाङे के नज़दीक ही है । एक ददन हम दीपो को समलने चले गए और इ
के बाद हम ने आना नहीिं था। आज जब मैं दीपो के बारे में सलख रहा हूुँ
तो मुझे एक पवचार आ रहा है कक हमारी पुरानी फरक है । आज छोटी
भ्यता और आज की
भ्यता में ककतना
ी बात पर पनत पत्फनी का झगडा हो जाता है और बात तलाक पर आ
जाती है । दीपो का पनत हरी स हिं घर में ही काम करता था। घर के एक ओर लकडडयािं चीरने की मशीन लगी हुई थी, यह एक छोटी वह लकडी
ी
ा समल थी। काम काफी आ जाता था और खद ु
े बहुत कुछ बनाते थे, जै े कक ानों के सलए छकडे, हल और अतय गाुँव में
इस्तेमाल होने वाली चीज़ें। यह गािंव शहर के नज़दीक होने के कारण शहर जै ा ही था। हरी स हिं के दो और भाई भी
ाथ ही काम करते थे और एक भाई की कलाई मशीन
े कट गई
थी। हरी स हिं के पपता जी को मैंने एक दफा ही दे खा था क्योंकक वह बाद में स्वगटवा गए थे। दीपो कभी भी माुँ नहीिं बन पाई, बहुत बातें
ुनने को समली थीिं लेककन
हो
च क्या था
हमें नहीिं मालम ू । हरी स हिं के पपता जी ने अमत ृ छका हुआ था और हरी स हिं और उन के
भाईओिं ने भी अमत ृ छका हुआ था लेककन यह
ब घर के लोग बहुत पुराने पवचारों के थे।
ज़्यादा ना सलखता हुआ यह ही सलखग ूिं ा कक दीपो की न्ज़िंदगी एक नारकीय जीवन ही था। एक दफा कुलविंत के पपता जी ने दीपो को कहा भी था कक वह उ लेककन दीपो ने
ाफ़ इिंकार कर ददया था कक लोग क्या कहें गे, जो उ
है , वह भोग लेगी। हरी स हिं इ लगा था। द
दनु नयािं
े जाने
े पहले दीपो
की ककस्मत में सलखा
े बहुत अच्छा पववहार करने
ाल पहले हरी स हिं को स्ट्रोक हो गया था। फगवाङे ह पताल में इलाज हुआ
था लेककन बचाव हो नहीिं े उ
की द ु री शादी कर दे गा
का था। दीपो बताती थी कक जाने
का हाथ पकडने की कोसशश कर रहा था, उ
े पहले हरी स हिं बडी मुन्ककल
की आुँखों में आिं ू थे जै े कह रहा हो,
मझ ु े मआ ु फ कर दो। लेककन एक बात की हम दीपो को दाद दे ते हैं। वह अपने ददन बहुत बहादरु ी बबता रही है । घर के
ाथ ही कुछ उन की जगह है । उ
में
द ू रे लोगों को भी दे दे ती हैं। उन के नाम कुछ ज़मीिंन है , न्ज अनाज आ जाता है , जो
ाल भर के सलए उ
है । पहले वह घर में एक भैं म्भालना अब उ
े अच्छी तरह
न्जज़याुँ बीज लेती है जो वह े काफी गें हूिं और अतय
के सलए काफी होता है और कुछ बेच भी लेती
भी रखती थी लेककन अब दीपो बूढ़ी हो चुकी है और भैं
के सलए मुन्ककल है । कुलविंत उ
में पथरीआिं थीिं और कुलविंत ने पै े भेज कर उ बबलकुल तिंदरुस्त है । हफ्ते में एक दफा हम उ
को
को कुछ ना कुछ भेजती रहती है । गुदे
का ऑपरे शन करवा ददया था और अब वह को टे लीफोन कर लेते हैं। हमारे बच्चे भी
इ ी मा ी को ज़्यादा प िंद करते हैं। दीपो की मदद करने के सलए दे र द्ाणीआिं भी हैं और कुलवततिं के मामा जी का लडका भी जब जरुरत हो, आ जाता है , ददल्ली
े बहादर और
ज पविंदर भी आ जाते हैं और दीपो को कोई तकलीफ नहीिं होने दे ते दीपो के पा
हम कोई दो घिंटे रहे , चाय पानी पपया और बहुत गप्पें लगाईं। जब हम राणी
पुर जाने को तैयार हुए तो दीपो हमें छोडने एक मील रे लवे फाटक तक छोडने आई। दोनों के गले लगी और हुँ ते हुँ ते हमें पवदा ककया। घर आ के हम ने ददल्ली जाने की तैयारी कर ली थी क्योंकक हम ने ददल्ली एअरपोटट चलता…
े उडान भरनी थी।
मेरी कहानी - 150 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन July 25, 2016 दीपो
े समल कर हम राणी पर आ गए और
ददन गाुँव में लोगों
े समले, गगयान
ामान पैक अप्प करना शुरू कर ददया। कुछ
े बातें कीिं और एक ददन ननमटल हमें फगवाङे रे लवे
स्टे शन पर छोड आया और कुछ दे र बाद हम ददल्ली के सलए ट्रे न में बैठे इ ले रहे थे। अपने लोगों के
ाथ ट्रे न में बैठ कर
तो इिंगलैंि की ट्रे नों में भी पपछले बी
ालों
यात्रा का आनिंद
े
फर करना मुझे बहुत अच्छा लगता है । अब फर नहीिं ककया है , क्योंकक यहािं भी जाते
थे, अपनी गाडी में जाते थे लेककन इिंगलैंि की ट्रे नों में और इिंडिया की ट्रे नों में
फर करने में
एक ही अिंतर् होता था कक इिंडिया में हमारे लोग ही होते थे, उन की बातें , ट्रे न में कभी कोई बेचने वाला आ जाना, कभी कक ी का डिजबे में आ कर गाना, तरह तरह की आवाज़ों में
ब
अपना ही अपना ददखाई दे ता था। शाने पिंजाब क्योंकक छोटे स्टे शनों पर खडी नहीिं होती थी, इ
सलए हमें कोई ददक्कत नहीिं हुई और जल्दी ही ददल्ली आ गए। टै क् ी ली और नतलक
नगर पहुुँच गए। द ू रे ददन अवतार स हिं की तीनों बहुएुँ, कुलविंत और मैं शाम को शॉपपिंग करने के सलए चले गए। कुलविंत ने बहुत कुछ खरीदा और
भी को खखलाना पपलाना मेरी
न्ज़म्मेदारी थी। औरतों का खाना भी अक् र चटपटा ही होता है , खब ू पकौडे चाट बगैरा खाई गई। कुलविंत ने गोलगप्पे खाये और उ चादहए थे, क्योंकक उ वाले
भी के
को वहीीँ पता चल गया कक यह गोलगप्पे नहीिं खाने
के पेट में कुछ कुछ गडबड होने लगी थी। ऐ ी बात पवदे शों में रहने
ाथ अक् र हो जाती है क्योंकक इिंडिया का पानी और
ऐ ी चीज़ है जो कभी कभी तकलीफ दे ने लगती है उ था और
ारी
एक टाइमेक्
डकें बेचने वालों
द ु री इ
ददन नतलक नगर में बध ु बाजार भी
े भरी हुई थीिं। मैंने भी एक चमडे की बैल्ट खरीदी और
घडी खरीदी। घूम घाम के घर आ गए और पहले कुलविंत को पेट के सलए एक
कैन्प् ऊल ददया जो हम आते हैं। इ
न्जजयाुँ फरूट में कुछ
ाथ ले कर आये थे। imodium के यह कैन्प् ूल हम जरूर ले के
े जल्दी आराम आ जाता है ।
ुबह हम ददली एअरपोटट पर पहुुँच गए और एक घिंटे बाद हम जहाज़ में आराम
े बैठे
फर का आनिंद ले रहे थे। यह भी एक अजीब बात ही है कक जब हम भारत आते हैं तो
हमें मन में उत्फ ुकता होती है कक जल्दी यह खश ु ी होती है कक जल्दी
े इिंडिया पहुुँच जाएुँ लेककन जब वाप
े इिंगलैंि पहुुँच जाएुँ। भारत जाएुँ या वाप
की एअरपोटट हमें ऐ े मालूम होती है , जै े एअरपोटट पुसल
आते हैं तो,
इिंगलैंि आएिं, भारत
स्टे शन हो। एक भय
ा लगता
रहता है कक कहीिं कोई पा पोटट में ऐ ी गलती ना ननकाल दें कक हमें वहािं परे शान होना पडे । एअरपोटट पर न्जतने अफ र हैं, जातें हैं तो एक अजीब भी मह ू
वाले ददखाई दे ते हैं। जब एअरपोटट
मझती हैं जै े
अिंग्रेज़ों के
ाथ तो हिं
हिं
बातें करती हैं लेककन अपने
ब इिंडियन अनपढ़ हों। खैर हम ने है ि फोन ले सलए थे और
ामने टीवी पर एक अिंग्रेज़ी कफल्म का आनिंद ले रहे थे। इ थे। जब हम वाप
े फागट हो
ी खश ु ी होती है । यूरप में ऐ ी कोई ददक्कत नहीिं होती एक बात यह
की है कक एअर होस्टे
लोगों को ऐ े
भी पुसल
जहाज़ में ज़्यादा गोरे लोग ही
इिंगलैंि को आते हैं तो ददन बडा ही हुए जाता है क्योंकक घडी का टाइम
बदलता रहता है और
ददट ओिं में जब हम इिंगलैंि पहुुँचते हैं तो
चक् ु का होता है और अभी भी लौ होती है । हीर्थ्ो एअरपोटट
ाढ़े पािंच घिंटे का फरक हो
े बाहर आ कर हम ने टै क् ी ली
और पपिंकी के घर पहुुँच गए। दे र रात तक बातें करते रहे और पपिंकी के सलए जो इिंडिया लाये थे, दे ददया गया।
ुबह उठ कर कोच में बैठे और कुछ घिंटे बाद अपने घर आ गए।
जब घर आये तो कुछ दे र बाद बताना चाहते थे।
िंदीप और ज पविंदर मस् ु करा रहे थे। लगता था वह हमें कुछ
िंदीप बोला,” बाबा ! बीबी ! “, इ
शमाट और मुस्करा रही थी। मैंने तो इ ज पविंदर
े पुछा,”
े
बात
े ज पविंदर
र नीचा करके कुछ
बात पे कोई गधयान नहीिं ददया लेककन कुलविंत ने
च ?”, ज पविंदर ने हाुँ में
र दहला ददया। कुलविंत ने ज पविंदर को गले
लगा सलया और खश ु ी खश ु ी हिं ने लगी और मझ ु े बोली, ” हम अब दादा दादी बनने वाले हैं “, घर में आते ही यह शभ ु ददन बिंगला
माचार हम को समल गया और कफर मझ ु े बोली,” मझ ु े तो उ
ाहब गुदट आ ु रे में ही यकीन हो गया था कक मुझे कुछ अच्छी खबर जरूर समलेगी
“, मुझे भी वह ददन याद आ गया, जब कुलविंत ने बिंगला बोला था कक उ
को जरूर कुछ समलेगा और मैंने इ
ाहब गुदट आ ु रे माथा टे कने के बाद
बात पर कोई गधयान नहीिं ददया था।
घर में अब खश ु ी का वातावरण हो गया, हम दोनों का मन खश ु खश ु रहता, दादा दादी बनने का भी अपना ही एक लत्फु फ़ होता है । कै े ददन बदल जाते हैं, कोई
मय था जब हम अपने
बच्चे होने पर खश ु थे और आज बच्चों के बच्चे होने पर खश ु ी हो रही थी। एक बात हम ने यह भी मह ू
की है कक अपने
ु राल में जब बेदटओिं के बच्चे होते हैं तब भी बहुत खश ु ी
होती है लेककन जब पोता पोती हो तो उ
का एक अपना ही लुत्फफ़ होता है , चाहे कोई
ककतना भी कहे कक दोहते और पोते में कोई फरक नहीिं होता लेककन कुछ तो फरक हो ही जाता है क्योंकक दोहता दोहती कक ी और के घर का में दादा दादी के सलए दोस्त जै े होते हैं।
रमाया होता है और पोता पोती बढ़ ु ापे
मैं काम पर चले गया। मेरे घुटने ने कफर मुझे दुःु ख दे ना शुरू कर ददया और हरननआिं का ऑपरे शन कफर
े ददट करने लगा। यह मेरे काम की वजह
बढ़ रहा था और एक ददन तो मेरा
ीरीय
ाथ ही
े था। ददट ददनबददन
एक् ीिेंट होते होते बच गया। चाहे ककतना भी
हौ ला रखें लेककन कभी कभी दुःु ख के आगे इिं ान हाथ खडे कर दे ता है । एक हफ्ता ही मैंने काम ककया लेककन इ जटरी में गया और उ
के बाद काम पे नहीिं जा को बताया। उ
का। मैं अपनी िाक्टर सम ज ररखी की
ने चैक अप ककया और कुछ दे र बाद बोली,” गुरमेल
स हिं ! एक बात मैं तुझे बताऊुँ कक बार बार ऑपरे शन करने और कफर ऑपरे शन मुन्ककल हो जाता है , इ
े म ल कमज़ोर हो जाते हैं
सलए मैं तुझे मशवरा दे ती हूुँ कक तुम काम
े
पें शन ले लो, मैं सलख कर दे दे ती हूुँ कक तम ु काम के कफट नहीिं हो “, मैं कुछ घबरा गया और कुछ दे र बाद बोला, ” िाक्टर
ाहब मुझे स क नोट दे दो “, चार हफ्ते का स क नोट ले
कर मैं बाहर आ गया। अभी अभी खश ु ी समली थी और अब यह मु ीबत गले आ पिी थी। ोचता हुआ ब
पकड के मैं स क नोट दे ने गैरेज में जा पहुिंचा। दफ्तर में जो कलकट था,
वह पिंजाबी ही था और मुझे जानता ही था। मैंने
ारी बात उ
को बताई तो उ
ने कहा,”
समस्टर भमरा ! अगर तेरा िाक्टर मदद कर रहा है तो तू बहुत लक्की हैं क्योंकक तझ ु े early retirement समल जायेगी, बहुत
ाल काम ककया है , मज़े करे गा “, स क नोट दे कर मैं घर
आ गया लेककन मन में कक ी काम को करने की रूह नहीिं थी। एक महीने बाद मैनेजर का खत घर आ गया और मझ ु े ऑकफ उ
ने पूछे और मैंने कहा कक वह मेरे िाक्टर
िाक्टर
े पूछ लें । मैं ऑकफ
े
वाल
े आ कर अपनी
े समला। सम ज ररखी ने एक स्पैन्कलस्ट को खत सलख ददया ताकक वह चैक अप्प
करके अपना
ैकिंि ओपपननयन बता दे । हफ्ते बाद ही स्पैन्कलस्ट की अपॉएिंटमें ट मुझे समल
गई। जब स्पैन्कलस्ट के पा ददया कक वह इ
पहुिंचा तो आधा घिंटा उ
ने मझ ु े चैक ककया और मझ ु े बता
की ररपोटट मेरे िाक्टर को भेज दे गा। यह ददन मेरे सलए न्ज़िंदगी के
कदठन ददन थे। रोज़गार का के
में बल ु ाया। बहुत
ाथ कै े काम कर
वाल था और यह भी पवचार आ रहे थे कक इ
किंू गा और एक बात और भी थी कक उ
ाल ही थी और पें शन समलने में अभी 7
ब
े
बबगडती स हत
वक्त मेरी उम्र स फट 58
ाल रहते थे। मेरी िाक्टर ने मझ ु े चार हफ्ते का
एक और स क नोट दे ददया। कुछ ददन बाद स्पैन्कलस्ट की ररपोटट भी आ गई और ररपोटट में इतना कुछ सलखा हुआ था कक मेरे सलए ब
चलाना मेरे सलए
ेफ नहीिं था। हमारी यनू नयन
का चेअर मैंन समस्टर है री बहुत अच्छा इिं ान था, वह मेरे घर आया, उ थे जो उ
ने मेरे
ामने ही भरे और अपनी तरफ
े भी उ
के पा
कुछ फ़ामट
ने बहुत कुछ सलखा। मेरे
ाइन ले कर उ के ड्राइपविंग लाइ ें
ने वह फ़ामट DVLA को भेज ददए। DVLA वह डिपाटट मेंट है जो हर प्रकार जारी करता है ।
दो हफ्ते बाद मुझे DVLA
े खत आया न्ज
को पढ़ कर मेरा
कक िाकटरों की ररपोटट के मुताबबक आप का PSV लाइिं ें वाप
सलया जाता है और अगर मैं इ
उ ी वक्त गैरेज में समस्टर है री के पा कोई गचिंता न करूुँ और उ दे गी और इ
र चकरा गया, सलखा था
रीवोक ककया जाता है यानन
की अपील करना चाहूुँ तो फ़ामट भरके भेज दुँ ।ू मैं जा पहुिंचा। उ
ने खत पढ़ कर मुझे कहा कक मैं
ने मझ ु े यह भी बताया कक अब मैनेजमैंट मुझे काम
के बाद हम को पें शन के सलए एप्लाई करना होगा। है री की बात
अ ाट बाद मुझे मैनेजर ने अपने दफ्तर में बुलाया और कहा कक उ े अफ़ ो लाइ ें
रीवोक हो जाने के कारण वह अब मुझे काम
टसमटनेशन नोदट
पकडा ददया। नोदट
को ददखाया। इ
शख्
े जवाब दे ही थी, कुछ
था कक ड्राइपविंग
े फागट कर दें गे और चार हफ्ते का
ले कर मैं है री के दफ्तर में चले गया और नोदट
है री को मैं कभी नहीिं भल ू िंग ू ा। है री का
अुँगरे ज़ होते हुए भी वह हमारे लोगों की अपने ददल
उ
भ ु ाव इतना अच्छा था कक
े मदद करता था। है री मुझे कहने लगा
कक मैं अपने िाक्टर की रीपोटट और स्पैन्कलस्ट की ररपोटट ले कर आऊिं। मेरे मन में खलबली मची हुई थी। मैं उ ी वक्त गाडी ले कर अपनी िाक्टर सम ज ररखी की और उ
जटरी में जा पहुिंचा
को बताया कक मझ ु े मैिीकल ररपोटट की जरुरत थी। सम ज ररखी ने अपनी
को बल ु ाया, एक पेपर पर ररपोटट सलख कर उ
ैक्रेटरी
को पकडा दी कक वह इ े टाइप करके उ
के
द तखत करवा ले और मुझे दे दे और मुझे रर ेप्शन में इिंतज़ार करने को बोल ददया। आधे घिंटे बाद
ैक्रेटरी ने एक लफाफा मुझे पकडा ददया। लफाफा ले कर मैं कफर गैरेज में है री के
दफ्तर में जा पहुिंचा। है री ने दोनों ररपोटें पडीिं और बोला, ” समस्टर भमरा! कफ़क्र न कर, आप को पें शन जरूर समलेगी ” और उ
ने कुछ फ़ामट भरे और लफाफे में दोनों िाकटरों की ररपोटट
िालीिं और मझ ु े कहा कक मैं इ े पोस्ट कर दुँ ।ू है री का धतयवाद करके मैं बाहर आ गया और डक पर एक पोस्ट बॉक्
में लैटर िाल ददया।
अब मेरे सलए इिंतज़ार के स वा कोई चारा नहीिं था क्योंकक एक बात की मुझे त ल्ली थी कक मेरा ब
ब कागज़ी कारट वाई हो चक ु ी थी।
चलाने का लाइ ें
ही खत्फम हुआ था और कार
चलाने की छूट थी। मेरी तनखआ ु ह मुझे बराबर समल रही थी। एक एक ददन मुन्ककल बीतता लग रहा था। इ
दौरान मेरा
ुभाव कुछ गचडगचडा हो गया था, खामखाह कुलविंत को
कक ी बात पे खझडक दे ता। काम करते 41 जाना मन्ु ककल लग रहा था और
ब
े
ाल हो गए थे और अब यह एक दम घर बैठ
े गचिंताजनक बात यह थी कक आगे क्या होगा। कुछ
हफ्ते बाद मुझे बसमिंघम पें शन डिपाटट मेंट
े एक लैटर आया और उ
में सलखा था कक मैं
अपना और अपनी पत्फनी का पा पोटट ले कर आऊिं। पा पोटट ले कर मैंने बसमिंघम के सलए ब पकड ली और दफ्तर ढूुँढ़ते ढूुँढ़ते मैं ग्राहम स्ट्रीट के गुदट आ ु रे के पा दे खता मैं दफ्तर के पा
पहुुँच गया। यह दफ्तर गद ु टआ ु रे के बबलकुल
को मैंने वह खत ददखाया। उ
ामने था। एक कलकट
ने मझ ु े बैठने के सलए बोला और खत ले कर एक द ू रे कमरे
में चला गया। जब वह आया तो उ हाथ
पहुिंचा। निंबर दे खता
के हाथ में बहुत
े कागज़ थे। उ
ने पा पोटट मेरे
े सलए, उन की फोटो कॉपी की और कई जगह कागज़ों पर मेरे दस्तखत करवाए और
मुझे बोला कक वह इ
का जवाब जल्दी दे दें गे। ज़्यादा वक्त नहीिं लगा और मैं दफ्तर के
बाहर आ गया और ब
पकड ली।
दो हफ्ते ऐ े ही बीत गए। कफर एक ददन एक बडा
ा लफाफा पोस्ट में आया। जब खोल
कर दे खा, जल्दी जल्दी पढ़ा तो मालूम हो गया कक आखखरकार मुझे पें शन समल गई थी। न्जतना स्ट्रै
था, उतनी ही खश ु ी मझ ु े समल गई। पें शन का एक एक ददन का दह ाब सलखा
हुआ था और क्योंकक यह पें शन मुझे मैिीकल ग्राउिं ि के कारण समली थी, इ मेरी पें शन न्जतने
ालों की थी, उ
के
ाथ छै
ाल और आठ महीने और जमा कर ददए
थे जो उन का कानून था। यही नहीिं, उतहोंने मुझे काफी पै े भी खश ु ी में फूला नहीिं
सलए उतहोंने
ाथ में दे ददए। अब मैं
माता था। घर में खश ु ी का माहौल बन गया। पें शन डिपाटट मेंट का यह
खत पता नहीिं मैंने ककतनी दफा पडा। कुछ ददन बाद मझ ु े है री का टे लीफोन आया कक मैं उ को समलूिं। जब मैं दफ्तर में पहुिंचा तो है री ने मुझे वधाई दी और दस्तखत करने को कहा। मेरे पूछने पर उ वजह
े ररटायर हो, उ
इिंशोरें
यनू नयन की तरफ
ाथ ही एक और फ़ामट पर
ने बताया कक जो ड्राइवर मैिीकल किंिीशन की
को यूननयन की तरफ
े भी पै े समलते हैं क्योंकक हर ड्राइवर की
े की हुई है । मझ ु े इ
का पता ही नहीिं था और यह मेरी खश ु ी में
एक और इज़ाफ़ा हो गया। कुछ ही ददन बाद यूननयन की तरफ बात हो गई। 5 मई 2001 इ
े भी मुझे एक चैक समला और मौजािं ही मौजािं वाली
े मेरी पें शन शरू ु हो गई। क्योंकक मैं अभी भी स क नोट पे था,
सलए मुझे हकूमत की तरफ
े भी हर हफ्ते पै े समलने लगे। कभी खश ु ी कभी गम के
कथानु ार हमारे अच्छे ददन आ गए थे। जब
े इिंगलैंि की धरती पर पैर रखा था, ब
ही काम ककया था। अब हम दोनों मीआिं बीवी आज़ाद हो गए जै े मह ू
काम
कर रहे थे, लगता
था अब ही हम इिंगलैंि में आये थे और इिंगलैंि क्या है हमें आज ही पता चला हो । चलता…
मेरी कहानी - 151 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन July 28, 2016 अब पैंशन समल गई थी और ब
ड्राइपविंग हमेशा के सलए बतद हो गई थी। अब ना तो मुझे
घुटने की परवाह थी और ना ही हननटयािं की क्योंकक मुझे पता था कक यह मामूली ऑपरे शन ही था। इतने ऑपरे शन होने के बाद मेरे सलए यह घुटने की, तो मैंने न्जतना हो
ब
ाधाहरण बात हो गई थी। रही बात
कता था, एक् र ाइज़ करनी शुरू कर दी, जै े कु ी पर बैठ
के घुटने को दहलाना और कुछ खडे हो कर धीरे धीरे नीचे की और आना और आधा घिंटा डक पर पैदल चलना। मैं और कुलविंत दोनों बाहर चले जाते और
डकों के चक्कर लगाते
रहते। जब कभी घुटना और हननटयािं ददट करने लगते हम घरों के आगे बनी छोटी
ी दीवार
पर बैठ जाते। कुछ दे र आराम करके कफर चलने लगते। दो महीने बाद मेरा हननटयािं का ऑपरे शन हो गया और ऑपरे शन करके उ ी ददन घर भेज ददया। अब तो ब
जखम
ूखने
तक ही इिंतज़ार था, दो हफ्ते बाद मैं और कुलविंत कफर पाकट में जाने लगे। अब चलने में हननटयािं की कोई खा
तकलीफ नहीिं थी और यहािं यह भी सलखग ूिं ा कक इ
की कोई तकलीफ नहीिं हुई, यह
ब काम की वजह
के बाद मुझे इ
े ही था। हकूमत की तरफ
े मझ ु े
incapacity benefit भी समलने लग पढ़ा था लेककन वोह कभी कभी मझ ु े चैक अप करने के सलए बुलाया करते थे, दो तीन दफा उतहोंने मुझे बुलाया। उन का िाक्टर मुझे चैक अप करता था। एक दफा एक अुँगरे ज़ िाक्टर था, उ
ने मेरी
ारी ररपोटट दे खख और कुछ
न्जन का जवाब मैंने दे ददया। मेरा मैिीकल चैक अप करने के बाद वोह मुझ कक मैं ब ों पे कब तो वोह मेरे
े काम कर रहा हूुँ तो जब मैंने बताया कक मैं 1965
े पूछने लगा
े काम कर रहा हूुँ
ाथ बातें करने लगा कक क्या इनोक पावल के बारे में मैं कुछ जानता हूुँ, तो
मैंने हिं
कर जवाब ददया कक वोह तो एक दफा मेरी ब
और उ
ने मेरे
उ
वाल पूछे,
पे भी चढ़ के टाऊन को आया था
ाथ बातें भी की थी और यह भी बताया कक मेरे
ाथ जो बातें उ
ने कीिं,
े लगता ही नहीिं था कक वह इिंडियन लोगों को नफरत करता होगा । मैंने उ
की
1968 की rivers of blood स्पीच के बारे में बताया और यह भी बताया कक हम
बी
immigrants उ
वक्त िरे हुए थे। िाक्टर कहने लगा, कक इनोक पावल बबदे सशयों को चाहता
नहीिं था लेककन वोह बबलकुल गलत था क्योंकक बबदे सशयों ने इ ककया है , इकोनॉमी को बबल्ि अप ककया है और मैंने जवाब ददया कक एक बात पर वोह
दे श के सलए बहुत कुछ
ारी नैशनल है ल्थ
पवट
उन पर ननभटर है ।
ही था, क्योंकक हकूमत को तो पता था कक हम
इिंगलैंि की अथटवयवस्था में ककतना योगदान दे रहे हैं लेककन बाहर
े आने वालों की कोई
सलसमट होनी चादहए ताकक लोगों के ददलों में नफरत की भावना पैदा ना हो। ऐ ा िाक्टर मैंने पहली दफा दे खा था न्ज के बगैर कोई बात करते नहीिं। इ
ने इतनी बातें मेरे
ाथ कीिं, वरना िाक्टर मतलब
िाक्टर का मझ ु े नाम तो याद नहीिं लेककन उ
मुस्कराता चेहरा अभी तक मेरी आुँखों के सलखा होगा, मुझे नहीिं पता लेककन इ
ामने है । इ
का
िाक्टर ने अपनी ररपोटट में ककया
के बाद मुझे कफर कभी कक ी ने नहीिं बुलाया। पैंशन
समलने के बाद एक तो मेरी कोसशश अपनी स हत को कफर
े पटरी पर लाने की थी और
द ू रे कुलविंत की स हत की ओर गधयान दे ना था क्योंकक जब
े उ
थी, धीरे धीरे इ
को मस्कुलर पेतज़ भी शुरू
हो गई थीिं और उ
के
ाथ अतय
मस्याएुँ पैदा हो गई थीिं, उ
की बैक पेन शुरू हुई
के सलए पता नहीिं हम कहाुँ कहाुँ भागे कफरते रहे लेककन हम दोनों ने
समल कर हर मु ीबत का मुकाबला ककया। िाकटरों और स्पेशसलस्टों ने fibromyalgia िायग्नोज ककया था न्ज कक उ
की
का कोई इलाज नहीिं। हमारी िाक्टर सम ज ररखी ने हमें बताया था
गी बहन को यही रोग था और वह वील चेअर में पढ़ गई थी और हमें भी
िंभल जाने को बोला था। उ
ददन
े ही मैंने लाएब्रेरी में इ
रोग के सलए ककताबें ढूिंढनी
शुरू कर दी थी और इन को पढ़ के मैं एक ही नतीजे पर पहुिंचा था कक अच्छी खरु ाक और रोज़ाना एक् र ाइज और कम् ेकम एक मील रोज़ तेज चलना ही इ
का इलाज है , रोग तो
जाएगा नहीिं लेककन न्ज़िंदगी अच्छी चलती रहे गी। हम भारती लोगों की कफतरत में है कक कोई ना कोई इलाज बता दे गा कक तुम यह इलाज करके दे खो, वह करके दे खो और हम भी जो कोई बताता, वह करते। हम ने एक कुआसलफाइि होसमओपैथ
े
ाल भर इलाज कराया और आखखर उ
कर ददए और हमें जवाब दे ददया। कफर हम ने आयुवेद
ने खुद ही हाथ खडे
े दे ी इलाज कराया, एक पै ा भी
फरक नहीिं पढ़ा। अकुप्रैषर, ााकुपिंक्चर, ऑन्स्टओपैथ, चाइनीज़ दे ी इलाज, क्या क्या हम ने नहीिं ककया लेककन
ब फेल और आखर में वोही बात आ गई कक अच्छी खरु ाक और
एक् र ाइज ही अ ली इलाज है और इ ी बात को ले कर कुलविंत नॉमटल न्ज़िंदगी जी रही है और हमारी पुरानी िाक्टर जब भी कभी कुलविंत को दे खती है तो खश ु हो जाती है और है रान भी हो जाती है कक वह अभी तक ठीक जा रही है । अब तो कुलविंत ने बहुत
ालों
े एक
लेिीज़ ग्रुप को जाएिंन ककया हुआ है और हफ्ते में तीन दफा पाकट में तेज चलने के सलए जाती है । इ
के इलावा एक
खी रशपाल के
ाथ एक लेिीज़ ग्रुप चला रही है न्ज
नाम है हमजोली ग्रप ु ,काउिं ल ने उतहें एक छोटा
ा हाल ददया हुआ है , न्ज
का
में तकरीबन
पचा
औरतें जो ररटायिट हो चक ु ी हैं और कुछ बीमार रहती हैं, उन को योगा कराने के सलए
एक योगा टीचर का प्रबिंध ककया हुआ है । रशपाल बहुत अच्छे
ुभाव की है और
इन को बहुत मान दे ती हैं। कुलविंत और रशपाल लेिीज़ के सलए बहुत भी करती हैं, जै े दीवाली, द ु ैरा, लोहडी, आज़ादी ददव , कक्र म मेयर को बल ु ा कर उ
भी औरतें
े फिंक्शन का प्रबिंध
और कभी कभी टाऊन के
की इज़त में कोई छोटा मोटा फिंक्शन कर लेती हैं। कक्र म
के वक्त
लेिीज़ को कक ी होटल में डिनर पे ले जाती हैं। इ
के इलावा गसमटओिं के ददनों में
दरू कक ी
ैर पर ले जाती हैं। न्जतना कुलविंत और
ी ाइि पर ले जाती हैं, कभी लिंिन की
रशपाल और उन की
खखओिं ने इिंगलैंि घूम कर दे खा है , इतना मैंने आज तक नहीिं दे खा
और अब 27 जल ु ाई को कल कफर वह आज तक नहीिं दे खा। हर टीकफकेट दे ता है और
ब को
ब ग्रेटयारमथ
ाल हमारे टाऊन का मेयर
ी ाइि को गई थीिं और मैंने यह ब लेिीज़ को टाऊन हाल में बुला कर
ब को चाय पपलाता है । यही नहीिं, कुलविंत बच्चों को स्कूल छोडने
जाती रही और उन को स्कूल
े ले कर भी आती है और यह भी कार को छोड पैदल ही
जाती थी। यहािं मैं अब ही यह बात भी सलख दुँ ू कक 22 जुलाई 2016 कुलविंत के सलए आखरी ददन था , बच्चों को स्कूल छोडने और ले आने का क्योंकक बडा पोता तो कब का हायर
ैकिंिरी स्कूल जाता था और छोटे का भी इ
और उ
स्कूल में 22 जुलाई को आखरी ददन था
ददन गसमटओिं की छुदटआिं हो गईं और छोटा पोता भी छुदटओिं के बाद हायर
ैकिंिरी
में जाने लगेगा। हम हुँ ते हैं कक अब कुलविंत को भी स्कूल जाने आने की छुदटआिं हमेशा के सलए हो गईं। 24 जुलाई रवीवार को को एक
िंदीप ज पविंदर और दोनों पोते घर आये और कुलविंत
त ु दर प्लािंट और थैंक यू कािट ददया और
भी ने हम दोनों को हग्ग ककया, कक
ककतने वषट कुलविंत ने बच्चों को स्कूल छोडा, जब कक स हत भी अच्छी नहीिं थी। कािट पर ब ने हमारा धतयवाद ककया था और दोनों पोतों ने अपनी तरफ ककया हुआ था, कुलविंत और मैं कुछ भावुक हो कर रोने लगे और
े हम दोनों का धतयवाद िंदीप कुलविंत के गले लग
गया। यह खश ु ी के आिं ूिं ही थे। कुछ दे र बाद वह चले गए और हम दोनों बातें करने लगे। कफर उ ी बात पे आ जाता हूुँ कक ऐन्क्टव रहना कुलविंत की स हत के सलए वरदान हुआ। इ
ाल कक्र म
को वह 70 की हो जायेगी। इ
उम्र में तो यों ही बहुत लोगों की
स हत में फरक आ जाता है लेककन कुलविंत की इतनी ऐन्क्टपवटी ने उ पुहिंचाया है । कुलविंत मेरी पत्फनी है , स फट इ ोच रहा हूुँ कक िाक्टर और और इ कक वह इ
ाबत
को बहुत फायदा
सलए ही यह बातें मैं नहीिं सलख रहा, मैं तो यह
भी लोग एक् र ाइज और अच्छा खान पान का मशवरा दे ते हैं
का प्रफ ू मेरी पत्फनी कुलविंत है क्योंकक जो हमारी िाक्टर सम ज ररखी ने बताया था रोग के कारण वील चेअर में पढ़ जायेगी और सम ज ररखी की अपनी
गी बहन
भी इ ी रोग
े पीडत थी और वील चेअर में पढ़ी हुई थी। कुलविंत ने अपनी दहमत
रोग का मुकाबला ककया और अभी तक ठीक जा रही है , मैं फखर JUST GREAT, उ लेककन उ
की
की ग्रेटने
इ
बात
े भी है कक उ
े इ
े कहूिंगा कक SHE IS
की पढ़ाई समिल तक ही है
ोच बबलकुल मॉिनट है । हमारे लोकल रे डिओ पर अक् र वह भाग लेती ही
रहती है , कक ी की कहानी पर अपने पवचार दे ती है । रे डिओ ऐक् ैल, रे डिओ गल ु शन और कािंशी रे डिओ पर भी कभी कभी अपने पवचार पेश करती हैं। रे डिओ ऐक् ैल पर हर शुकरवार को खाने पकाने का प्रोग्राम होता है , वह उ रै स्पी बताती है और एक दफा उ इ
े उ
में खा
कर भाग लेती है और अपनी कोई
ने प्राइज़ भी जीता था जो था तो एक जलैंिर ही लेककन
को बहुत हौ ला समला है और रे डिओ ऐक् ैल के
रोते उ
को इज़त दे ते हैं।
कुलविंत की इन बातों को छोड कर मैं कफर उ ी बात पर आ जाता हूुँ कक जब मुझे कम्पनी पैंशन समल गई तो अब मेरे सलए कोई काम नहीिं था। अपने आप को बबज़ी रखने के सलए मैंने लाएब्रेरी का रुख ककया। लाएब्रेरी में तो कभी कभी मैं पहले भी जाया करता था लेककन अब वक्त बहुत था, लाएब्रेरी दोस्तों के
े आने की कोई जल्दी नहीिं थी। कई कई घिंटे लाएब्रेरी में
ाथ बैठा पडता रहता और कभी कक ी बात पे गुफ्तगू होती रहती।
ारे अखबार
मैगज़ीन बगैरा पढ़ते और कभी कभी आते वक्त पुराने ररकािट भी ले आते। ददन बीतने लगे और न्ज
घडी का मद ु त
े इिंतज़ार था, वह घडी भी आ गई, 14 जल ु ाई 2001 को ज पविंदर
ने बेटे को जनम ददया। उ ममी िैिी का
ब
ददन जो खश ु ी हुई, उ
ा
ब दुःु ख भल ु ा ददए। ज पविंदर के
े पहले टै सलफूिंन आया और एक द ु रे को हम ने वधाई दी। शाम को फूल
ले कर हम नए महमान को दे खने नीऊ क्रौ िैिी ने एक
ने
ह पताल जा पहुिंच।े पहले ज पविंदर के ममी
ुतदर बुक्के ददया और ज पविंदर के
ोने का कडा नए महमान की छोटी
करने लगी, मैं और
िंदीप भी खडे थे।
ाथ बातें करने लगे। कफर कुलविंत ने छोटा
ी कलाई पर िाल ददया। कफर उठा कर उ भी हिं
हिं
कर बातें कर रहे थे। कुछ दे र बाद
कुलविंत ने मुझे पकडा ददया और बोली,” लो बाबा ! अपने पोते को पकडो “, मैंने हाथों उठाया तो एक अजीब
ी खश ु ी मह ू
े बातें
हुई। दादा बनने का भी अजीब
े
ुख होता है । पोता
बबलकुल बेटे पर ही गया था। बातें करते करते हम बाहर आ कर वेदटिंग रूम में आ कर बैठ गए क्योंकक रीटा कमलजीत और ज पविंदर की अतय बैहनें और भाई भी समलने के सलए आये हुए थे । चार लोगों तो आखर में
े ज़्यादा वािट में आने की इजाजत नहीिं थी। जब
िंदीप दब ु ारा गया। हम
भी दे ख समल आये
भी वेदटिंग रूम में बैठे बातें करते रहे । पवन्ज़दटिंग टाइम
एक घिंटा ही था और पता ही नहीिं चला कब बैल बज गई और
भी ह पताल
े बाहर आने
लगे। बाहर आ कर मैंने ज पविंदर के िैिी हरन्जिंदर स हिं और उ बोला, जो उतहोंने
वीकार कर सलया और हमारे
की ममी को हमारे घर आने को
ाथ हमारे घर आ गए। रीटा और
कमलजीत चले गए क्योंकक उतहोंने एक तो बसमिंघम जाना था, द ू रे उन दोनों ने पर जाना था। इिंगलैंि की
ोशल ईवननिंग पब में ही होती है । मैं
ुबह काम
िंदीप और ज पविंदर के िैिी
और भाई प्रदीप लोकल पजब summer house में चले गए । यह पजब ज़्यादा बडा नहीिं है लेककन इ
में घर जै ा वातावरण होता है । जब स्मोक रूम में गए तो वहािं कुछ अतय दोस्त
बैठे थे। अपने सलए हम ने डड्रिंक सलए और दोस्तों के आगे भी, जो वह पी रहे थे, डड्रिंक उन के टे बलों पर रख ददए। वह नाह नाह कर रहे थे लेककन जब मैंने बताया कक हमारे घर में आज पोते ने जनम सलया है , तो
भी ने हमें वधाई दी। गगयारह वजे पजब बिंद हो गया और
दो समिंट में हम घर आ गए क्योंकक पजब घर इ
े चाली
पचा
गज़ की दरू ी पर ही है और
पजब को हम अपना लोकल कहते हैं। घर आये तो खाना तैयार था। क्या क्या बातें हुईं,
याद नहीिं लेककन कुछ दे र बाद हरन्जिंदर, उ
की पत्फनी और बेटा प्रदीप अपने घर को रवाना
हो गए। दो ददन ज पविंदर ह पताल रही और ती रे ददन हमें बता ददया गया कक अब ज पविंदर घर जा
कती थी। मैं कुलविंत और
िंदीप तीनों ह पताल जा पहुिंच।े मैं और कुलविंत वेदटिंग रूम
में बैठ कर इिंतज़ार करने लगे और
िंदीप मैटरननटी वािट में चले गया। फॉमैसलटी पूरी करने
में तकरीबन एक घिंटा लग गया। कफर ज पविंदर
िंदीप और एक न ट जो पोते को हाथों में
सलए आ रहे थे, वेदटिंग रूम में आ गए और न ट ने मुझे गाडी लाने को बोल ददया। मैं उठ कर कार पाकट में गया और गाडी ला कर दरवाज़े के आगे खडी कर दी, यहािं कुछ दे र के सलए गाडी खडी की जा
कती थी। गाडी में हम बैठ गए और न ट ने पोते को ज पविंदर की गोद
में रख ददया, हम ने न ट का धतयवाद ककया और घर की तरफ रवाना हो गए। जब चले, तो कुलविंत ने कहा कक पहले गाडी गद ु टआ ु रे की ओर ले चलो ताकक गह ृ प्रवेश करने जी का आशीवाटद ले लें। गुदट आ ु रे में पतद्ािं बी
समिंट रहे , अरदा
े पहले बाबा
हुई और परशाद ले कर घर
को चल पढ़े । जब दरवाज़े पर मैंने गाडी खडी की तो कुलविंत कहने लगी,” ज़रा ठहर जाओ, मैं तेल ले कर आती हूुँ “, तेल ले आ कर उ
ने दलीजों के दोनों तरफ कुछ तेल िाला और
वाहे गुरु बोल कर हमें भीतर आने को कहा। इ
बात को पिंद्ह वषट हो गए हैं और आज जब
मैंने यह
ब सलखा है तो मेरी आुँखों के
ककतने प न ट थे। चलता…
ामने वह ददन आ गए,
ोचता हूुँ उ
ददन हम
मेरी कहानी - 152 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 01, 2016 घर में अब रौनक हो गई थी। पोते का नाम हम रखना चाहते थे लेककन ज पविंदर ने कुछ और ही
ोच रखा था। इ
िंदीप और
में हमें कक ी इतराज़ की जरुरत नहीिं थी
क्योंकक हर माुँ बाप को अपने बच्चे का नाम रखने का चाव होता है और आज कल तो बच्चे ककताबें खरीद लेते हैं, न्जन में हज़ारों नाम होते हैं। अक् र यहािं के बहुत
े बच्चे अिंग्रेज़ी
नाम रखने का शौक रखते हैं। बेटे बहू ने बहुत बडा नाम रखा था लेककन अभी तक को छोटे नाम बोलता, इ
भी उ
े ही बुलाते हैं और वोह है AARON BHAMRA लेककन भमरा भी कोई नहीिं
भी उ
को ऐरन कह कर ही बुलाते हैं और यह नाम बोलना भी आ ान है क्योंकक
में अरुण नाम की झलक भी आती है । कुछ भी हो यों ही ऐरन रोता तो
भी उ
को
चप्ु प कराने की कोसशश में लगे रहते। नए नए बच्चे की दे ख भाल करने में हर दम वक्त की जरुरत होती है , खा
कर रात को। इ
कुलविंत मौजूद थी और बहुत
े माुँ को बहुत बेआरामी होती है लेककन यहाुँ तो
े काम वोह कर दे ती थी । नए नए बच्चे के कपिे पता नहीिं
िं मशीन और ड्रायर भी था और ककतनी दफा बदलने पडते हैं और इन के सलए तो वासशग डिस्पोज़ेबल नापीओिं के बिंिल हर वक्त जमा रहते थे। कोई वक्त था जब इिंडिया में तो घर में ही बच्चे को टटी पपछाब करा दे ते थे और यहािं जब हम ने बच्चों को पाला था तो उ
मय डिस्पोज़ेबल नापीआिं भी होती नहीिं थीिं, स फट छोटे
छोटे टॉवल होते थे जो खराब होने पर धोने पडते थे। उ ररवाज़ नहीिं हुआ था और
िं मशीन का आम मय वासशग
ेंट्रल हीदटिंग भी नहीिं होती थी। हर रोज़ नापीआिं धो धो कर
कुलविंत के हाथ खराब हो गए थे और िाक्टर
े क्रीम ले कर लगाती रहती थी।
स फट हस्पतालों में ही होती थी। कक ी कक ी घर में गै
ेंट्रल हीदटिंग
हीटर ही होते थे, ज़्यादा घरों में तो
कोयले की आग ही होती थी। हर घर में हर कमरे में दीवार के
ाथ अिंगीदठयािं बनी हुई थीिं।
कुछ लोग बैि रूम में भी अिंगीठी में कोयले िाल कर कमरा गमट करते थे लेककन स दटिंग रूम में तो हर घर में
ारा ददन कोयले दग दग करते ही रहते थे और कमरा बहुत गमट होता था।
ब घरों की गचन्म्नओिं में हर
े धआ ु िं ननकलता रहता था। इ
ुबह उठ कर अिंगीठी को
नए कोयलों
में समहनत भी करनी पढ़ती थी,
ाफ़ करके, राख ननकाल कर कूडे के ढोल में फैंक दे ना और
े अिंगीठी भरनी और
ाथ ही छोटी छोटी लकिीयों को आग लगा धीरे धीरे हवा
दे ना। जल्दी ही कोयलें जलने लगते। यह पुरातन ढिं ग था लेककन इ
में भी एक मज़ा
ा
होता था, कमरा खब ू गमट हो जाता था। हर घर के पीछे एक कोल रूम होता था जो कोयलों
े भर लेते थे । एक टन कोयले का
आिटर दे दे ते और लॉरी वाले कोयले के बैग अपनी पीठ पीछे रख रख कर घर की पपछली ओर चले जाते और कोल रूम कोयले एक पपिंजरा
ा रख दे ते थे जो तीन तरफ
औरतें कपिे अपने हाथों तो
े भर जाता। अिंगीठी के
ारा ददन कपिे
े बतद होता था, इ
ामने कपिे
पर कपिे रख दे ते थे।
भी
े धोती थीिं। न्जन के घर छोटे छोटे बच्चे ज़्यादा होते थे, उनके घर
ूखते ही रहते थे। बाहर तो गसमटयों के तीन चार महीने ही कपिे
थे। उन ददनों ठिं ि भी बहुत होती थी। पढ़ती थी तो छतें एक एक फुट बफट को THAW बोलते थे तो छतों
े ढकी रहती थीिं और जब कुछ गमी हो जाती, न्ज
े बफट के ढे र गगरने लगते थे क्योंकक
ुबह उठ कर पहले गाडी पर
ूखते
डकों के दोनों तरफ बफट जमी रहती थी। जब स्नो भी छतें स्लेटों
एक ऐिंगल में बनी हुई हैं। इतनी ठिं ि होने की वजह के कारण न्जन के पा भी
ुखाने के सलए
े
गाडीआिं थीिं, वोह
े बफट खरु चते, पविंि स्क्रीन पर कुछ गमट पानी िाल कर
ाफ़ करते और कफर जब कार स्टाटट करते तो कार कई दफा स्टाटट ना होती और दो चार आदमी कार को धक्का लगाते। उ
वक्त कार के इिंन्जन पुरातन डिज़ाइन के होते थे, न्जन
के इिंन्जन ऐ े डिज़ाइन ककये हुए थे कक डिस्ट्रीबबउटर में स्पाकट दे ने के सलए पआ ु एिंट होता था और बहुत दफा डिस्ट्रीबबउटर की कैप खोल कर उ
में एक स्पैशल कक म का
प्रे करना
पडता था और तब जा कर गाडी स्टाटट होती थी, अब तो हर कार में इलैक्ट्रॉननक इन्ग्नशन है और एक चाबी
े ही गाडी स्टाटट हो जाती है ।
बात कर रहा था, बच्चों के कपिे पर
ूखते रहते थे । इ
बहुत
े ििंिे
ारा ददन उ
ाइकल पर गचमनी
ाफ़ करने वाले बुरुश और उन के
कर कर के काले हो गए होते थे। यह गोरे गचमनी स्वीप ! गचमनी स्वीप ! और न्ज वक्त गचमनी
ाथ जोडने वाले
ारा ददन गचमननयािं
ाफ़
ाइकल पर जाते जाते होक्का दे ते रहते थे, कक ी को जरुरत होती वोह उ े बुला लेता। जब
ाफ़ करने के पािंच सशसलिंग लेते थे। हमारे एररए में जो
गोरा आता था, वोह भी एक मस्त अुँगरे ज़ ही था, वोह रहता था जो हम को
अिंगीठी को
के सलए कुछ गोरे यह काम करते थे, न्जन को गचमनी स्वीप
ाइकल पर बाुँध कर रखते थे, इन गोरे लोगों के मिंह ु
हम आये थे तो उ
पपिंजरे जै े स्टैंि
अिंगीठी का बहुत आराम होता था लेककन कई दफा इ
ाफ़ भी करना पडता था, न्ज कहते थे। यह गोरे
ुखाने की तो यह कपिे
ाइकल चलाता ऊिंची ऊिंची गाता भी
मझ नहीिं आता था। जब वोह हमारे घर आता था तो गचमनी में एक
बडा
ा ब्रश िालता था न्ज
के
ाथ कोई तीन फुट लिंबा बैंत का ििंिा होता था और हर ििंिे
के आखखर में पेच होते थे। जब एक ििंिा गचमनी में घु ेड ददया जाता तो वोह उ हाथ
े एक और ििंिा लगा कर उ
के पेच क
दे ता और इ ी तरह एक एक करके
ििंिे गचमनी में जाइ जाते और ब्रश को घम ु ा घम ु ा कर वोह गचमनी आखर में यह ििंिा
के
ारी
फुट
ाफ़ हो जाती तो एक एक करके ििंिों के पेच
खोलता जाता और आखर में ब्रश को बाहर ननकाल लेता। गचमनी ढे र लग जाता जो वोह खुद ही इ
भी
ाफ़ करता जाता और
ारी गचमनी में घम ू जाता। घर की ऊिंचाई के बराबर जो कोई ती
होती, इतना ििंिा हो जाता। जब गचमनी
ाथ
े ननकली इ
कालख का
कालख को एक बडी बाल्टी में िाल कर बाहर गािटन की
क्यारीओिं में िाल दे ता। यह गोरा हर दफा बताता रहता था कक यह गचमनी की राख प्लािंट के सलए बहुत अनछ होती है । िं मशीन भ बातें गुज़रे ज़माने की थीिं, अब तो हर काम आ ान था। कपिे वासशग
अब यह
े ननकाल कर ड्रायर में िाल दे ते और आधे घिंटे में मय ही
ख ू जाते। कुलविंत के पा
तो अब
मय था और कभी मैं ऐरन को अपने हाथों में उठा लेता। कभी कुलविंत नापीआिं
बदल दे ती और जब कभी अपने बच्चों को
िंदीप काम
े आया होता तो वोह नापी बदल दे ता। आज के लडके
ाफ़ करने में ज़रा नहीिं दहचकचाते जब कक हमारी जेनरे शन के आदमी ऐ ा
नहीिं करते थे। आज तो जब पत्फनी मैटरननटी वािट में बच्चे को जनम दे रही होती है तो पनत बीवी के पा
खडा होता है । हमारे ज़माने में ऐ ा नहीिं होता था। आज यह
कारण यह ही है कक पनत को पता चले कक औरत उ और इ
े पत्फनी को भी पनत के पा
बच्चा आने
होने
वक्त ककतनी मुन्ककल घडी में होती है
े कुछ हौ ला हो जाता है । घर में नया नया
े माुँ को हम कुछ गग़ज़ा बना कर दे ते हैं न्ज
यहािं की पैदा हुई बहुत
ी लडककयािं इ
ब हो रहा है ,
को पिंजाबी लोग दाबडा कहते हैं।
को खाती नहीिं हैं क्योंकक उन को ऐ ी चीज़ स्वाद
नहीिं लगती लेककन कुछ लडककयािं खा भी लेती हैं। ज पविंदर को ऐ ी चीज़ें खाने दहचकचाहट नहीिं थी। इ ी सलए कुलविंत नें यह गग़ज़ा बना दी,न्ज तरह के नट्ट
ीिज़, ककशसमश और
समलती हैं और इिंडिया
े कोई
में काफी घी, आटा, हर
ौंफ जै ी चीज़ें थीिं। ऐ ी चीज़ें क्योंकक यहािं बहुत
े ज़्यादा अनछ कुआसलटी की समलती हैं, तो ददल खोल कर यह चीज़ें
िाली गई। पुरातन
मय
े चली आ रही यह रीत में बहुत कुछ नछपा हुआ है । दाबडा पवटसमन भरपूर
पूणट खरु ाक है और यह कक ी भी माुँ को तुरिंत ररकवरी में मददगार
ाबत होता है । आज के
यग ु में िाक्टर जलि टै स्ट करके बताते हैं कक कोई रोग का कारण शरीर में कोई खा
पवटसमन की कमी के कारण है लेककन पुरातन यग ु में आयुवेद का गगयान ही ननधाटररत करता था कक कक ी रोग के दौरान कौन है कक हमारे गाुँव में जब
ी खरु ाक खानी चादहए। यह तो बचपन में मैंने भी दे खा
ोहन लाल हकीम या यमुना दा
ाथ में यह भी बताता था कक कौन गधयान
े दे खने लगे हैं। बहुत
हकीम
े दआ ु ई लेते थे तो वोह
ी खरु ाक खानी थी। आज िाक्टर कफर परु ानी बातों को
ालों
े हमें यह ही बताया जाता रहा है कक घी माखन हाटट
अटै क और जलि प्रेशर का कारण बनता है और हम लो फैट समल्क, माजटरीन और
नफ्लावर
ऑयल इस्तेमाल करते चले आ रहे थे लेककन आज कफर कुछ कुछ कहने लग पडे हैं कक घी माखन इतना बुरा नहीिं है और स फट काबोहाइड्रेट कम कर दे ने चादहए। कुछ भी कोईं कहे , मझ ु े तो घी और थोह्डा
ा माखन बहुत प िंद है और माजटरीन को बबलकुल प िंद नहीिं करता
और घी मुझे बहुत फायदे मिंद भी
ाबत होता है । इ
े कजज़ बबलकुल नहीिं होती और
आयुवेद में यह भी बताया गया है कक कजज़ बहुत बीमारीओिं की जड है । यहािं हौलैंि ऐिंि बैरेट एक बहुत बडी किंपनी है , न्ज की दक ु ानें इिंगलैंि के हर शहर में हैं। इ में ब दे ी चीज़ें समलती हैं, कोई अिंग्रेज़ी दआ ु ई नहीिं समलती । इ
में खा
बात यह है कक जो
चीज़ें इिंडिया में हमको आम समल जाती है , वोह इन दक ु ानों में बहुत म्हतघी समलती हैं और इनको ज़्यादा गोरे लोग ही लेते हैं। गें हूुँ का ऊपरला नछलका न्ज को बूरा कहते हैं, वोह यहािं पैकटों में समलता है । हमारे ज़माने में तो यह बरू ा पछूओिं को िालते थे लेककन यहािं इ को बहुत गोरे कॉनटफ्लेक्
या अतय
बरू े
ीररयल में एक दो चमचे िाल कर खाते हैं। कुलविंत तो
हमेशा जब गें हूुँ का आटा गुँध ू ती है तो उ में मुठी भर बूरा िाल दे ती है और बुरे को यहािं ब्रैन बोलते हैं, न्ज
के ब्रैन फ्लेक्
भी समलते हैं न्ज
में बूरा ज़्यादा होता है । इ
बूरे में बी
पवटसमन बहुत होते हैं। एक बात और कक दही में जो पानी होता है , बहुत लोग उ ननकाल कर फैंक दे ते हैं लेककन इ
में प्रोटीन की मात्रा बहुत होती है न्ज
को
को यहािं वेअ
WHEY कहते हैं। हौलैंि ऐिंि बैरेट की दक ु ानों में वेअ पाऊिर के बडे बडे पैकेट समलते हैं। जब हम पनीर बनाते हैं तो उ
में
े ननकला हुआ पानी ही WHEY है और इ
को ही फैक्ट्री में
पाऊिर में बदला जाता है । क्योंकक पछमी दे शों में चीज़ बहुत खाई जाती है , इ है चीज़ बनाते वक्त इ
में
सलए जाहर
े ननकला हुआ पानी भी बहुत होगा, जो WHEY पाऊिर बनाने
के काम आता है । यह पाऊिर प्रोटीन
े भरपरू है और हम लोग यिंू ही फैंक दे ते हैं।
ज पविंदर के सलए यह पवटसमन भरपूर दाबडा खतम नहीिं होने ददया गया और तुरिंत ररकवरी भी हो गई। इन दे ी चीज़ों में अपार शक्ती होती है और हम इन को बहुत मातयता दे ते हैं। ज पविंदर घर का काम करने में कुलविंत
े कोई कम नहीिं है । कुलविंत के रोकने पर भी वोह
घर के काम में म रूफ रहती थी। वै े भी दाबडा और अतय दे ी खरु ाक की वजह ज पविंदर की स हत कफर पहले जै ी हो गई और
िंदीप और ज पविंदर दोनों पनत पत्फनी ऐरन
को ले कर बाहर जाने लगे और हमें उन को बाहर जाते दे ख बहुत खश ु ी मह ू हमारा पररवार आगे बढ़ रहा था। आज इनतहा बच्चे हुए थे तो हम उनके
े
कफर
होती क्योंकक
े ररपीट हो रहा था। जब बेदटयों के
ु राल को घी, मेवे और बच्चों के सलए कपिे लेकर जाते थे और
आज हमारे घर ज पविंदर के ममी िैिी यही चीज़ें ले कर आये थे और इ
के बाद हमारी
बेटीयाुँ आईं। हर रोज़ कोई ना कोई मेहमान आ जाता और घर में रौनक हो जाती। ऐ ा लगता था, जै े चलता…
ारा घर खश ु ी में मुस्करा रहा हो।
मेरी कहानी - 153 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 04, 2016 पोते ऐरन की परवररश होने लगी। ददनबददन उ का शरीर भरने लगा था और उठाने को मन बहुत करता था। कोई ना कोई मेहमान घर में आया ही रहता था और रौनक लगी रहती थी। दे खते ही दे खते ऐरन एक
ाल का हो गया और अब ज पविंदर ने काम पर वाप
जाना था
और ऐरन की दे ख भाल करना हम दोनों के न्ज़मे था। क्योंकक कुलविंत हफ्ते में दो दफा अपना हमजोली ग्रुप अटैं ि करती थी, इ सलए ज पविंदर हफ्ते में तीन ददन ही काम करती थी और कुलविंत को भी अपना
ट ैं र चलाने में दो ददन का पूरा
ज पविंदर ने कुलविंत का पूरा खखयाल रखा और उ
को
मय समल जाता था।
ेंटर में अपनी
खखओिं के
ाथ मज़े
करने का परू ा वक्त समल जाता था। ऐ े रल समल के ऐरन की परवररश होने लगी। इ मैं दो वक्त लाएब्रेरी में जाकर अखबार बगैरा पढ़ लेता था और दोस्तों के
बीच
ाथ भी गप्प छप
हो जाती। लाएब्रेरी में हम दोस्तों का टे बल एक कोने में इल्लग ही होता था। इ
में भी मज़े
वाली बात यह है कक कई दफा बातें करते करते कुछ दोस्त ऊिंची ऊिंची बोलने लगते थे और लाइब्रेरीअन एल ी बोल पढ़ती,” कुआएट प्लीज़ ! “, हम
भी चप ु कर जाते लेककन हम
पिंजाबबयों की आदत भी जाती नहीिं, कुछ दे र बाद कफर बोलने लगते। एल ी तिंग आ जाती और हमारे टे बल पर आ जाती और कहती,” प्लीज़! लाएब्रेरी में बैठे लोग डिस्टबट हो रहे हैं, आप बातें करना बतद कर दीन्जये.” हमारे बीच एक होता था बातों
ोहन स हिं तूर, वोह कुछ कॉसमिीयन टाइप का था और अपनी
े एल ी को हिं ा दे ता था और वोह हिं ती हिं ती अपने काउिं टर पर चले जाती। कभी
कभी एक गोरी न्ज
का चेहरा ही ऐ ा होता था कक उ को दे ख कर ही मूि ऑफ हो जाता
था, वोह कुछ गुस् े में बोलती. तो हम उठ कर चले जाते लेककन ज़्यादा तर एल ी ही होती थी। उ
वक्त मेरी स हत अभी अनछ थी और न्ज
पै े इकठे कर के उ
को एक
ुतदर बुक्के ददया था। उ
चॉकलेट ददए, वोह बहुत खश ु थी, जब हम लाएब्रेरी ाथ हग्ग ककया, इ
ददन एल ी ने ररटायर होना था, हम ने
के बाद एल ी
ददन एल ी ने भी हम
े बाहर जाने लगे तो एल ी ने
े हमारी मुलाकात कभी नहीिं हुई।
ब को ब के
ोहन स हिं कभी
कभी मुझे समलने आ जाता है और बताता रहता है कक अब लाएब्रेरी में वोह पहले वाली रौनक नहीिं होती क्योंकक इिंटरनेट की वजह
े इतने लोग आते नहीिं, कुछ न्ज़आदा बढ़ ू े हो गए
हैं और कुछ भगवान ् को पपयारे हो गए हैं, और जो हमारा ग्रुप होता था, उ
में भी एक
दोस्त ही आता है । एक होता था स्वरना राम, न्ज
ने इिंडिया में एक बफट का छोटा
ा कारखाना लगाया हुआ
था और कभी कभी पैंशन लेने के सलए, इिंडिया का काम कक ी ररकतेदार को
िंभाल कर तीन
चार महीने यहािं रह जाता था। उ के तीन लडके ही थे जो कोई इिंडिया जाने के सलए तैयार नहीिं था। मैं तो उ े कुछ नहीिं कहता था लेककन स्वरननयािं ! तेरा ददमाग
उनको छोड कर वोह कै े जा को
को बोलता रहता था कक, ”
ही है ? न्ज के सलए तू ने बफट का कारखाना लगाया हुआ है , वोह
इिंडिया जाने को तैयार नहीिं और वोह जा भी नहीिं धीरे उ
ोहन स हिं उ
कते क्योंकक उन के बच्चे यहािं पढ़ते हैं,
कते हैं ?”, स्वणट राम को एल्ज़ाईमर रोग हो गया था, धीरे
ब कुछ भूलने लगा था और आखखर में उ
की मत ृ ु यहािं ही हो गई थी, इिंडिया
के कारखाने का क्या हुआ, कक ी को पता नहीिं लेककन यह स्वरना राम कभी कामरे ि हुआ करता था और पाटी के कामों में बहुत दहस् ा सलया करता था। उ
के
ाथ पलाही गाुँव के
लडके हुआ करते थे। एक दफा बहादर के भाई लढ्ढे का बारले मौय पब में झगडा होते होते बचा था, तब यह स्वरना भी उ भारत
वक्त वहीीँ था।
े आये हर परदे ी का यही दख ु ािंत है कक हमारा ददल भारत में और शरीर परदे
में
होता है । काम करते करते हमारी न्ज़तदगी बबदे श में गुज़र जाती है लेककन भारत में जाकर रह नहीिं
कते और हम अपने बच्चों को वहािं जाने का मशवरा दे ते हैं, जब कक हम को पता
भी है कक वोह स्कूलों में पढ़ते अपने बच्चों को छोडकर कै े जा ही कह
कते हैं, इ
को मग ृ तष्ृ णा
कते हैं। बहुत लोगों ने ज़मीिंन जायदाद इिंडिया में खरीद कर रखी हुई है लेककन
ररकतेदार कजज़ा करके बैठे हैं और उनके
ाथ मुकदमे चल रहे हैं। ऐ ी उलझनें बुढापे में
परदे स यों को दुःु ख दे ती हैं और इतहीिं उलझनों के
ाथ जूझता स्वरना भी दनु नआिं
े रुख त
हो गया। एक ददन गगयानो बहन का बढ़ा बेटा ज विंत हमारे घर आया और बोला,” मामा ! चलो हम पैरर
की
ैर कर आएिं ! “, मैंने भी कह ददया कक ” चल हॉसलिे बुक करा ले और मैं तुझे
पै े दे दिं ग ू ा “, कुलविंत भी खश ु हो गई। तीन ददन की शॉटट हॉसलिे ज विंत ने बुक करा ली और
िंदीप ज पविंदर ने भी छुदटयों का इिंतज़ाम कर सलया। ज विंत उ की बीवी, मैं और
कुलविंत तैयार हो गए। हमने कोच में ही जाना था और िोवर कोच ड्राइवर एक गोरा और उ की
े फैरी में कोच जानी थी।
हायक एक गोरी थी । एक ददन
ुबह पािंच बजे गोरा
कोच ले के हमारे घर आ गया और हम थे उनको उन के घरों
भी उ
वार हो गए। ड्राइवर ने न्जतने पै ेंजर
े पपक अप्प कर सलया और हम िोवर की तरफ चल पडे। तकरीबन
नौ बजे के करीब हम िोवर जा पहुिंच।े िोवर पर
में
े फ्रािं
कोई 25 मील का
मुिंद्ी रास्ता है । फैरी
वार होने के सलए कारों और कोचों की लाइन लगी हुई थी। फैरी एक सशप जै ी होती
है , न्ज
में कई मिंजलें हैं, न्जन में रै स्टोरैंट और दक ु ाने बनी हुई हैं। शॉपपिंग के सलए ड्यट ू ी
फ्री बहुत चीज़ें समलती हैं। जब हमारी कोच फैरी में पाकट हो गई तो लगे। जब िोवर
भी कोच
े हम चढ़े थे तो एक गोरी जो एक
कहा था,” your passport please !”,
े उतर कर इ
फैरी के बीच जाने
ीपोटट अगधकारी थी, उ
ने आते ही
भी ने अपने पा पोटट हाथों में ले कर हाथ खडे कर
ददए और गोरी ने थैंक यू कह ददया था, कक ी का पा पोटट चैक नहीिं ककया था और मैं है रान हो गया था कक ककतना फकट था इिंडिया का और इिंगलैंि का। जब फैरी में हम दाखल हो गए थे तो हम को भख ू लगी हुई थी और पहले हम ने बबग ब्रेकफास्ट सलया और चाय पी कर फैरी के भीतर घूमने लगे। शॉपपिंग का हम ने
ोच सलया था कक पैरर
े आते वक्त शॉपपिंग
करें गे क्योंकक अब खामखाह बोझ उठाने की कोई जरुरत नहीिं थी। जो फ्रैंच लोग इिंगलैंि की ैर करके आये थे, वोह खरीदोफरोखत कर रहे थे। हम ने फ़्ािं फ्रािं
में
की कैले बतदरगाह पर लैंि होना था और यह िोवर ब
े छोटा
े कैले तक इग्लैंि और
मुिंद्ी रास्ता है और बहुत बबज़ी रास्ता है । यहािं पी ऐिंि ओ, हूवर
क्राफ्ट और अतय किंपननयािं ऐ ी फेरीज़ चलाती हैं, जो कोचों कारों और मोटर
ाइकलों
े
भरी हुई होती हैं। वै े भी कैले यरू प का गेट वे है , इ ी सलए यरू प के अतय दे शों में जाने वाले याबत्रयों
े यह
कोच ड्राइवर ने हम
ीपोटट बहुत बबज़ी रहती है । िेढ़ घिंटे
े भी पहले हम कैले पहुुँच गए।
बको कहा कक हम उ के पीछे पीछे आएिं ताकक हम भूल ना जाएुँ।
जल्दी ही हम अपनी कोच में बैठ गए। हमारे आगे बहुत कोचें थीिं। एक द ू रे के पीछे वैदहकल चलने लगे और कुछ समनटों में एक
डक पर आ गए। फ्रािं
दाईं और चलती है और हमारे सलए कुछ अजीब लगती है । कैले तीन घिंटे का रास्ता है । पैरर
में ट्रै कफक
भी
डक के
े पैरर , कोच में तकरीबन
जब पहुिंचे तो शाम हो चक् ु की थी। ड्राइवर हमें हॉसलिे इन ् होटल
में ले गया यहािं हमारी बकु किंग थी। ज विंत और हमारा कमरा पा
पा
था। हमें इलैक्ट्रोननक चाबबयािं दे दी गईं जो अपना निंबर
िायल करके एक कािट को स्वाइप करके कमरा खुलना था जो कुछ स्ट्रगल करके हमने खोल
सलए। भीतर गए तो कमरा दे खकर रूह खश ु हो गई।
ब े पहले हम ने स्नान ककया, कपिे
बदले और तैयार हो गए क्योंकक हमारा डिनर एक और होटल में बुक था। 9 बजे कोच ड्राइवर और उ की खडी थी। हम
हायक आ गए और हमें चलने के सलए बोल ददया। कोच होटल के बाहर
ब उ में
वार हो गए और होटल की तरफ जाने लगे। कोच ड्राइवर ने डिनर
की कीमत हमको पहले ही बता दी थी और यहािं मैं यह भी बता दुँ ू कक पैरर बहुत है । हो
कता है फ्रािं
में रहने वालों के सलए यह
पाउिं ि को यूरो में तजदील ककया तो हमें यह प्राइ यूरो पर है ि थी जो उ यह कीमत आज
ाधाहरण बात हो लेककन जब हम ने
कुछ ज़्यादा लगी। डिनर की कीमत 60
वक्त 40 पाउिं ि बनते थे लेककन हमने कौन
े तकरीबन चौदह पिंद्ह
में महिं गाई
ा महीनों रहना था।
ाल पहले थी और आज ककया होगी मझ ु े मालम ू
नहीिं। आधे घिंटे में हम होटल के बाहर खडे थे। कोच एक गाइि ने हम
े उत्तर कर हम होटल में दाखल हो गए।
ब को अपने अपने टे बलों पर पवराजमान करा ददया। मैतयू टे बलों पर पढ़े
थे और हम ने अपने प िंदीदा डड्रिंक आिटर कर ददए। डड्रिंक आ गए और हम पीने और बातें करने लगे। एक गोरा वायसलन बजाता हुआ हर टे बल पर आ रहा था और उ एक गोरी गुलाब के फूल मदों को दे रही थी जो
की
हायक
ब ने अपनी अपनी पन्त्फनयों को ऑफर
करने थे। ज विंत ने अपनी पत्फनी बलपविंदर को गल ु ाब का फूल ददया और कैमरा मैंन ने फोटो खीिंची और इ ी तरह मैंने भी कुलविंत को गल ु ाब का फूल कुछ नज़ाकत के
ाथ ददया और
हम हिं ने लगे। वाइओसलन वाला बहुत अनछ धन ु वजा रहा था लेककन हम को उ ना आते हुए भी मह ू इ
हो रहा था कक यह धन ु पनत पत्फनी में रूमािं
की
मझ
के बारे में ही होगी।
में एक बात पर हम बहुत हिं े, जब हमारी पन्त्फनयािं टॉयलेट गईं तो आ कर उतहोंने हमें
बताया कक यिंू ही वोह टॉयलेट
ीट पर बैठीिं टॉयलेट धीरे धीरे गोल चक्कर में घम ू ने लगी
और यह बहुत अच्छा लग रहा था। जैंट्
टॉयलेट में ऐ ा नहीिं था। बहुत दे र तक हम हिं ते
रहे । डिनर का मज़ा आ गया। खा कर बाहर ननकले तो कोच वाला कोच के न्ज
में
वार हो कर हम वाप
हॉसलिे इन में आ गए और आते ही
ुबह उठ कर स्नान आदी ककया और नीचे िाइननिंग हाल में आ गए। ब्रेकफास्ट का मज़ा लेने लगे जो नाना प्रकार के तरह के जूइ
ाथ खडा था,
ो गए। भी कौंदटनैंटल
ीररयल, बनज, फ्रैंच ब्रैि बटर और कई
े भरपूर था। जी भर कर खाया और बाहर खडी कोच में बैठ गए।
ब
े
पहले कोच वाला हमें आइफल टावर ले गया। आज तक हम इ े फोटो में ही दे खते आये थे और अब हम इ
के
ामने खडे थे। ऊपर की तरफ दे खा तो चक्कर
ा आने लगा क्योंकक
यह बहुत ऊिंचा था। दटकट लेने के सलए हम लाइन में खडे हो गए और ऐ ी बहुत लगी हुई थीिं। 6 यूरो दटकट था और दटकट ले कर हमने दटकट ददखाया और
ी लाइनें
ीिीओिं
े
ऊपर चढ़कर पहली मिंन्ज़ल पर आ गए और इदट गगदट घूम कर नज़ारा दे खने लगे। दो मन्तज़ल चढ़कर हम सलफ्ट में बैठ गए और यह सलफ्ट हर मन्तज़ल पर खडी होती, कुछ चढ़ते और कुछ उतर जाते। हम बहुत ऊिंचे चढ़ गए थे और कुलविंत और बलपविंदर ने और ऊपर जाने गए। यहािं
े
े मना कर ददया कक उनको िर लगता है । मैं और ज विंत आखरी मिंन्ज़ल तक ारा पैरर
ददखाई दे ता था। लोग फोटो खीिंच रहे थे, ज़्यादा लोग पवदे शों
आये हुए थे। जो नज़ारा हमने इ जा
े ही
आइफल टावर का दे खा, उ का शजदों में बयान नहीिं ककया
कता। इ ी सलए तो इ का स्थान दन ु ीआिं के
ात अजब ू ों में
े है ।
कफर भी कुछ कुछ सलखूिंगा। यह टावर फ्रैंच रे वोल्यूशन के बाद बनाया गया था और इ
का
ननमाटण world fair मनाने के सलए एक लोहे के गेट की शक्ल में बनाया गया जो बाद में कुछ
ालों बाद ढा ददया जाना था। इ
को डिज़ाइन करने वाले दो इिंजनीयर थे और
इिंजनीयर गस् ु ताव आइफल के नाम पर इ लोहे का बना हुआ है और इ
का नाम आइफल टावर रखा गया था। यह
को बनाने में दो
शुरू हुआ और 1889 में कम्प्लीट हुआ था । इ
ाल और दो महीने लगे थे। 1887 में बनना की ऊिंचाई 324 मीटर है । इ
इतना प िंद ककया गया कक इ े दे खने के सलए दनु नआिं भर स लस ला आज तक जारी है । ताज महल के बाद इ हैं।
टावर को
े लोग आने लगे और यह
टावर को दे खने करोडों लोग आ चक् ु के
ारा ददन दे खने वालों की लाइनें खतम नहीिं होती और शाम को तो बहुत रौनक होती है
क्योंकक शाम को
ारा टावर हज़ारों रिं ग बरिं गे बबजली के बल्वों
के बाद ड्राइवर हमें नोटरिैम चचट ददखाने ले गया। इ हमें बताया गया था कक यह चचट 800 ज़्यादा वक्त लगा था और इ
ाल परु ाना है और इ
को बनाने में
ौ
ाल
में हर पेरर वा ी ने योगदान ददया था, कक ी ने पै े
में कभी मैिम तु ाद रहा करती थी। उ
की माुँ एक
ककया करती थी जो मोम के बुत्त बनाया करता था, उ ी ीखा था और पैरर
े रौशन होता है । टावर दे खने
चचट का आटट भी दे खने लायक है ।
कक ी ने काम करके। यह चचट दे खने के बाद ड्राइवर ने बाहर न्ज
ारा
े भी े और
े ही एक बबन्ल्ििंग ददखाई पवज़ िाक्टर के पा
काम
े ही मैिम तु ाद ने बुत्त बनाना
में कुछ दे र अपना काम करने के बाद लिंदन आ कर काम शरू ु ककया
था। वोह खद ु तो कोई खा
पै ा नहीिं बना
की लेककन आज दनु नआिं भर
े लोग मोम के
बुत्त दे खने लिंिन आते हैं। यहािं यह मोम के पुतले रखे जाते हैं, उ के नाम पर ही इ नाम मैिम तु ाि रखा गया है ।
का
इ
के बाद ड्राइवर हमें एक और चचट ददखाने ले गया, न्ज
का नाम मुझे याद नहीिं लेककन
यह चचट बहुत ऊिंचाई पर था और केबल कार के जररये हम ऊपर गए और हमें इ के पै े दे ने पढ़े । । इ
चचट में लोग मोम बनतआिं जला रहे थे और मोम बनतओिं
े काफी जगह भरी
हुई थी। यह चचट भी आटट का एक नमन ू ा ही था। चचट दे ख कर हम वहािं एक लान में आ कर बैठ गए। वहािं हमारी एक फ्रैंच आदमी के
ाथ मुलाकात हुई जो पिंजाबी बहुत अनछ तरह
बोलता था। कुछ शॉपपिंग हमने यहािं की और मैकिोनल्ि में पेट पूजा भी की। ददन बहुत अच्छा था और धप ु खखली हुई थी। इ
जगह काफी
के सलए हम ड्राइवर का इिंतज़ार करने लगे। चलता…
मय हमने बताया और आगे के प्रोग्राम
मेरी कहानी - 154 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 08, 2016 पैरर
में बहुत कुछ दे खने को था लेककन हमारे पा
आप
में मशवरा कर रहे थे कक एक दफा हफ्ते भर के सलए कफर यहािं आएिं और बहुत कुछ
दे खें। कोच ड्राइवर और उ
की
वक्त इतना नहीिं था, मैं और ज विंत
हायक आ गए थे। चचट दे ख कर हम
ामने के लान में बैठे
थे, यहािं काफी रौनक थी। कुछ अफ्रीकन लोग वहािं बहुत चीज़ें बेच रहे थे। वहािं एक पाककस्तानी ने हमें पहले ही बता ददया था कक इन लोगों की कीमत बहुत बताते हैं और इ
े बचें ,क्योंकक यह कक ी आइटम
े इिंडिया वाला फामल ूट ा ही इस्तेमाल करें । कुलविंत ने एक
हैंि बैग लेना था। वोह अफ्रीकन भी पीछे ही पढ़ गया था। हैंि बैग की कीमत उ यरू ो बताई थी, ज विंत उ
को कहने लगा,” टे क फाइव यरू ो “, वोह हिं ने लगा और जब हम
ने नहीिं लेने का कह ददया तो उ बबदे सशयों
ने बी
ने छै यूरो का दे ददया। इन लोगों का वास्ता हर दम
े पढता रहता है और अरबी लोगों
गए थे और ड्राइवर हमें कफर वापप
े यह खब ू पै ा बनाते हैं। कोच में हम बैठ
आइफल टावर के पा
ीन नदी के पा
ले आया और
हमें वहािं शॉपपिंग करने को छोड, चला गया और दो घिंटे बाद आने के सलए बता कर चला गया। अब हम
ीन नदी के
ाथ दक ु ानों को दे खने लगे ताकक कुछ खरीदोफरोख्त हो
ीन नदी 485 मील लम्बी है । इ और बबदे शी उन ब्रश
के। यह
के ककनारे जगह जगह पें दटिंग करने वाले आदटट स्ट बैठे थे
े अपने पोट्रे ट बनवा रहे थे। आदटट स्ट
ामने बैठे आदमी को दे ख दे ख कर
े उन की तस्वीर बना रहे थे और हम दे ख दे ख कर है रान हो रहे थे कक कैनव
पर
उन के ब्रश कै े चल रहे थे। वै े तो आम दक ु ाने लिंिन जै ी थीिं लेककन यह पें दटिंग करने वाले पहली दफा दे खे थे।
ीन नदी के ऊपर बने एक पुल पर हम आ गए और नदी में
बहती बोट की तरफ दे खने लगे, न्जन पर
ौ के करीब लोग बैठे इ
क्रूज़ का मज़ा ले रहे थे
और एक औरत हाथ में माइक्रोफोन सलए हर चीज़ की दहस्ट्री बता रही थी। एक के बाद एक बोटें आ जा रही थीिं। घुमते घुमते एक चचट के पा
हम आ गए। इ
चचट के इनतहा
बारे में कक ी ने हमें कुछ बताया था, जो मुझे अब याद नहीिं आ रहा। इ
के
के
ामने बने
गािटन में हम आ कर बैठ गए। यह गािटन बहुत खब ू ूरत था। कुछ दे र बाद ही एक इिंडियन औरतों मदों का एक ग्रप ु आ गया और आते ही हम चला कक यह ग्रुप लिंदन
े बातें करने लगे। बातें करने पर पता
े ही एक इिंडियन ट्रै वल कम्पनी ले कर आई थी और उन का गाइि
भी
ाथ था। इ
ग्रुप में ज़्यादा पैंशनर लोग ही थे। अपने लोगों
े समल कर ककतनी खश ु ी
होती है , यह बाहर आ कर ही पता चलता है । चलते कफरते हम थक गए थे और कोच ड्राइवर भी आ गया। कोच में बैठ कर हम हॉसलिे इन ् में वाप
आ गए और अपने अपने कमरों में कुछ दे र आराम ककया। आराम करके हम
नीचे बार में आ गए। पन्त्फनयों ने
ॉफ्ट डड्रिंक सलए, मैं और ज विंत ने एक एक बीयर ली
और बातें करने लगे। 9 बजे के करीब कोच ड्राइवर आ गया और
ीधे
भी को एक और
होटल में ले गया। डिनर लेने के बाद अुँधेरा हो चक् ु का था और कोच ड्राइवर हमें
ीधा
ीन
नदी पर ले गया। अब हमने भी ररवर क्रूज़ का मज़ा लेना था। एक जगह दटकट सलए और एक बोट में बैठ गए। अब हर तरफ रौशनी ही रौशनी थी। बोट पर बैंच थे और उन पर बैठ कर धीमे धीमे मयून्जक का हम आनिंद लेने लगे। बोट चलने लगी थी और जब हम आइफल टावर के नज़दीक आये तो आइफल टावर पर रौशनी दे ख कर मज़ा आ गया। बहुत
ुतदर
नज़ारा था यह। बोट की गाइि गोरी हाथ में माइक पकिे बहुत कुछ बता रही थी जो मझ ु े अब याद नहीिं। आधा घिंटा हम बोट पर रहे और कफर नदी के ककनारे
ैर की। यह जगह ददन
के वक्त भी हम ने दे खख थी लेककन रात को तो स्वग्यट नज़ारा ही था। काफी रात हो चक् ु की थी और कोच ड्राइवर हमें होटल में छोड कर चले गया और
ुबह द
बजे तैयार रहने को
हमें बता गया। ुबह आठ बजे उठ कर हम ने स्नान ककया और कपडे बदल कर नीचे आ गए और िाइननिंग हाल में प्रवेश ककया। हमारे
ाथी
ीधे
ब गोरे ही थे और हम चार ही इिंडियन थे।
अपनी अपनी प्लेटें भर कर हम एक टे बल पर बैठ गए और ब्रेकफास्ट मज़े
े खाया। द
वज चक् ु के थे और बाहर खडी कोच में हम बैठ गए। पैरर
मील दरू कोच
ड्राइवर हमें लूई 14 के पैले लेककन कोच ड्राइवर की के सलए ही ती जा
को ले गया। इ
के बारे में ज़्यादा याद नहीिं रहा
ाथी गोरी ने बताया था कक बादशाह लूई के अस्तबल में स फट घोडों
हज़ार नौकर काम करते थे। इ
कती, यह स फट दे ख कर ही मह ू
भीतर जाया जा
के इनतहा
े तकरीबन बी
कता है । न्ज
की जा
पैले
की खब ू ूरती सलखने
कती है । इ
पैले
े बताई नहीिं
में दटकट ले कर
तरह अिंग्रेजों के नीचे बहुत दे श थे, इ ी तरह फ्रािं
की भी
बहुत बन्स्तयािं होती थीिं। मैंने इिंडिया में भी पुराने बादशाहों के महल दे खे थे लेककन लूई के महल
े कोई मुकाबला नहीिं था। हर जगह आटट ही आटट ददखाई दे ता था। महल का जो बाग़
है , उ
को पैदल चल कर नहीिं दे खा जा
कर खडे थे। उ
कता। वहािं बहुत
को पै े दे कर हम बन्घ्घयों पे
े फ्रैंच शानदार घोडे बघ्घी ले
वार हो गए और वोह हमें पैले
गािटन
ददखाने लगा। गािटन इतना बदढ़या था कक इ
को बताना मुन्ककल है । एक जगह बहुत
े
फाउिं टे न थे, इन का आटट दे खते ही बनता था। इतने बदढ़या थे कक यह मेरे मकतसशक में जै े पप्रिंट ही हो गए हों। कोच ड्राइवर ने बताया था कक बादशाह को हर रोज़ नए फूल चादहए थे, और इ
के सलए दनु नआिं के हर कोने
े ऐ े फूल लाये और उगाये गए थे कक उ
को हर
रोज़ नया फूल भें ट ककया जाता था। तकरीबन चार बजे कोच ड्राइवर ने हमें कोच में बैठने को बोल ददया और अब हम ने वाप इिंगलैंि आना था। कोच में बैठे अब हम कैले की ओर जा रहे थे। तीन घिंटे बाद हम कैले बतदरगाह पर पहुुँच गए। फैरी पर
वार होने के सलए हमारी कोच एक लाइन में कोचों की
कतार में धीरे धीरे चल रही थी। आधे घिंटे में हम फैरी पर
वार हो गए थे। कोच
े बाहर
ननकल कर हम में न बबन्ल्ििंग में आ गए और ड्यट ू ी फ्री चीज़ों की ओर झाुँकने लगे कुलविंत और बलपविंदर ने कुछ मेक अप्प की चीज़ें जै े शनेल
ट ैं बगैरा सलये और हम ने गगफ्ट दे ने
के सलए कुछ सलकर की बोतलें खरीदीिं जो हमें पता था कक इिंगलैंि में महनघी थीिं। चाय का कप्प कप्प पी कर हम ऊपर के िैक पर आ कर बैठ गए। हमें दे ख कर एक इिंडियन कोच ड्राइवर हमारे पा
आ कर बैठ गया जो कक ी ग्रुप को ले कर आया हुआ था। उ
करके पता चला कक वोह भी मेरी ब बहुत
े ड्राइवर हमारी गैरेज
े बातें
कम्पनी के कॉवेतट्री गैरेज में काम कर चक् ु का था।
े कॉवेतट्री काम करने जाया करते थे और यह कोच ड्राइवर उन
लोगों को जानता था। अब हम ब ों की बातें करने लगे थे और बातों ही बातों में हम िोवर पहुुँच गए। बाहर आते ही इसमग्रेशन वाली गोरी आ कर बोली,” PASSPORT PLEASE !”, ब ने पा पोटट हाथों में ले कर हाथ ऊिंचे कर ददए। थैंक यूिं कह कर गोरी उत्तर गई और हमारी कोच हमारे शहर की ओर मोटर वे पर दौडने लगी। रात के एक बजे कोच हमारे टाऊन पहुुँच गई। हर एक को ड्राइवर घर छोड कर गड ु नाइट कह के चला गया और हम भी घर आते ही खआ ु बगाह में चले गए। ुबह दे र
े उठे , पोता दे ख कर मुस्कराने लगा और ज पविंदर ने चाय बनाई। चाय पी कर मैं
तो लायब्रेरी की तरफ रुख त हो गया। ददन बीतने लगे, ज पविंदर काम पर जाने लगी। कुछ महीने बाद इिंडिया
े वैडििंग कािट आ गया। छोटे भाई ननमटल के छोटे बेटे मिंदीप की शादी थी
और हम को बुलाया था। खश ु ी का अव र था और हम ने तैयारी कर ली। ज पविंदर और िंदीप ने काम पर छुटीयों का इिंतज़ाम करना था। शादी पर हाजर होने के सलए वक्त कम था क्योंकक लडकी वाले ऑस्ट्रे सलया ऑस्ट्रे सलया जाना था।
े आये हुए थे और लडकी और उन के माता पपता ने वाप
िंदीप और ज पविंदर ने छुट्दटयों का इिंतज़ाम कर सलया और हम ने
भी अपने
ूटके
तैयार कर सलए। दटकटें लीिं, वीज़े लगवाये और इिंडिया जा पहुिंच।े ककतना
मय बदल गया है । शाम को एयरपोटट पर पहुुँच कर ऐरोप्लेन में बैठ जाओ और इिंडिया पहुुँच जाओ, यह तो पिंजाब कोई
े मुिंबई ट्रे न के
मय था मेरे पपता जी को इिंडिया
जाते थे। फगवाडे
फर
े भी बहुत कम
े अफ्रीका जाने या आने को बी
े ट्रे न में पपता जी बैठ जाते थे और मिंब ु ई
ुबह
मय लगता है । पची
ददन लग
ीपोटट पहुुँचने में ही तीन ददन
लग जाते थे और आगे सशप में बहुत ददन लग जाते थे। उन ददनों यह यात्रा इतनी मन्ु ककल होती थी कक इ ददन दे खे होंगे क्योंकक उ
को वोह ही जानते होंगे न्जतहोंने वोह
मय अफ्रीका को लोग अक् र
पपता जी हर दो
ाल बाद अफ्रीका
होंगी मैं स फट उ
को मह ू
ही कर
मुिंद्ी जहाज़ में ही जाते थे । मेरे
े इिंडिया आते रहते थे और दो दफा जो यात्रा उतहोंने की कता हूुँ। पिंजाब में बाढ़ की तबाही बचपन में दो दफा
मैंने दे खख थी, एक थी 1948 में जब आज़ादी के बाद पिंजाब को चले गए थे और द ु री दफा 1955 में जब मैं शायद में तो मैं स फट पािंच
ाल का ही था और ब
े
भी मु लमान पाककस्तान
ातवीिं आठवीिं कक्षा में हूुँगा। 1948
इतना ही याद है कक बाढ़ का पानी हमारे गाुँव
के बीच आ पहुिंचा था, हालािंकक हमारा गाुँव कुछ ऊिंचाई पर है लेककन 1955 का वोह मुझे कभी भूला नहीिं। पपता जी ने जालिंधर के एक ट्रै वल एजेंट हरी स हिं ऐिंि
िंज
ीन े अफ्रीका
के सलए
ीट बक ु करा ली थी, तभी बाररशें होने लगी। कई ददन तक मू लाधार बाररश होती
रही, न्ज
के कारण गाुँव के इदट गगदट पानी ही पानी था। उ
कक पपता जी जब भी अफ्रीका को जाते या वाप ूटके
मय यह भी मैंने दे खा था
आते तो उन के पा
होते थे और यह बहुत भारी होते थे। मुझे याद है , आते
अनब्रेकेबल करौकरी होती थी, न्जन में छुरी काुँटे कच्च के ग्ला
बडे बडे लकडी के
मय उन के बक् ों में और प्लेटें बगैरा और एक
या दो रै ली बाइस कल भी ले कर आते थे न्जन के हैंिल के नीचे िाइनमो लाइट लगी होती थी। बाद में तो वे ट्रािंन्जस्टर रे डियो भी लाते थे। ऐ ी चीज़ें इिंडिया में उ
वक्त समलती नहीिं
थी। हमारे सलए एक दफा माऊथ ऑगटन ले कर आये थे और रोमर घडडयाुँ तो वे हर दफा लाते थे। 1955 में गाुँवों में कोई
डक नहीिं होती थी। बाररशों की वजह
था और फगवाडे को इतना गए थे और उन के
ामान ले कर जाना भी एक
रों पर लकडी के बॉक्
े दरू दरू तक पानी ही पानी
मस्या थी। दो मज़दरू
रखे हुए थे। जीटी रोि जो हमारे गाुँव
ाथ सलए े तीन
मील दरू था, पैदल ही जाना था। जब माधो पुर कैल, जो छोटी नदी थी,पर पहुिंचे तो पुल के दोनों तरफ बहते पानी के कारण जो रास्ता था, उ
में बडे बडे गडे पड गए थे और बीच खडे
पुल के ऊपर उ
े पानी तेजी
को बचा नहीिं
कर
े बह रहा था। पुल पर एक गायें खडी थी जो बेब
कता था और हमारे दे खते ही दे खते गाये पानी में बह गई थी । यह दे ख
ब पीछे मुड आये थे । कफर मशवरा ककया गया कक राम गढ़ की ओर जाया जाए और
हुसशआर परु रोि पर चढ़ कर कोई ब राम गढ़
या तािंगा सलया जाए।
ारा
ामान
रों पर उठाये
े हो कर हुसशआर परु रोि पर जा पहुिंचे और जा कर पता चला कक
जटा के नज़दीक एक पुल के ऊपर
े पानी बहने के कारण कोई ब
दे र बाद एक तािंगा आता ददखाई ददया जो शायद नज़दीक वाररयाुँ ही थी। को वाप उ
थी, कोई
ारा
ामान उ
मोड ददया। इ
में
डक रहाना
नहीिं चल रही थी। कुछ
े ही आया होगा और उ
पे दो
में रखा और पपता जी ने मज़दरू ों को पै े दे कर हम
के बाद कई हफ्ते बाद पपता जी का खत अफ्रीका
ारी िीटे ल में सलखा था कक ट्रे न के
थी और यह वाकायत कक ी कफल्म
ब
े आया और
फर के दौरान उतहें ककतनी ट्रे नें बदलनी पढ़ी
े कम नहीिं था और आज का
फर ककतना मज़ेदार हो
गया था। इिंडिया अमत ृ र एयरपोटट ूटके
ब
था। न्ज
े बाहर ननकल कर एक टै क् ी ली और ब
में रखे और फगवाडे का रुख ककया। यह ब ीट पर हम बैठे थे, उ
के पा
अड्िे पर पहुुँच गए।
भी क्या थी, ब
एक खटारा ही
की खखडकी के शीशे खडक खडक कर अपने आप
खल ु जाते थे। बार बार मैं बतद करता और वोह कफर खल ु जाते। खीझ कर मैंने जोर खखडकी बतद की और
ारा शीशा ही उखड कर मेरे ऊपर आ गया और बाहर
आने लगी। किंिक्टर, ब हम पहुुँच गए। अपना
ड्राइवर के ामान
े
े धल ू ब
में
ाथ बातों में म रूफ था। जल्दी ही फगवाडे के नज़दीक
िंभालते
िंभालते ब
अड्िे पर पहुुँच गए।
ामान ब
े
उतार सलया और राणी पुर जाने के सलए पता चला कक अब टै क् ीयाुँ भी चलने लगी थीिं। एक ही टै क् ी उ
वक्त वहािं थी और इ े दे ख कर ही नघन
पािंच छै मील दरू ही जाना था, इ जिंग लगा हुआ और वोही ब
सलए इ में बैठ गए। इ की
ीटें फटी हुईं, दरवाजों पर
वाली मु ीबत अब थी। टै क् ी ड्राइवर ने मुझे पहले बता ददया
कक मैं दरवाज़े को पकड कर रखूिं क्योंकक यह भी ब का
ी आने लगी लेककन हम ने स फट
के शीशे की तरह खड खड करके खल ु ने
िंकेत दे रहा था। इतनी बडी बात तो यह नहीिं थी लेककन मन ही मन में हिं ी आ रही
थी कक शक ु र था कक आखखरकार हम राणी परु पहुुँच ही गए। कहते हैं ना, all is well, that ends well, घर वालों के हिं
हिं
चलता…
बातें कर रहे थे।
ाथ कुछ ही दे र बाद इत्फमीनान
े हम चाय की चन्ु स्कयाुँ लेते हुए
मेरी कहानी - 155 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 11, 2016 रानी पुर पहुुँच गए थे और शादी के प्रोग्राम का
फर की थकान के कारण हम जल्दी
तैयार कर सलए थे, ब कर मैने वोह वो वाप
ारे काम तो छोटे भाई और उ
अब तो शुरू होना ही रह गया था। न्ज
ाहा पत्र ले कर आ गया। हमारी ओर
ाहा पत्र पडा। मठाई का डडजबा खोल कर
पीने के बाद न्ज
ुबह उठ कर
ब मालूम हो गया। लडकी वालों का गाुँव नज़दीक ही था लेककन मुझे
अब गाुँव का नाम याद नहीिं है । था वोह एक ददन
ो गए।
की पत्फनी परमजीत ने शख्
ने यह ररशता कराया
े कुछ नजदीकी ररकतेदार थे। बैठ ब ने मुिंह मीठा ककया। चाय बगैरा
ने ररकता कराया था (नाम मालूम नहीिं लेककन वोह पलाही गाुँव का था ),
चला गया। शादी की ताररख तो मझ ु े याद नहीिं लेककन यह फरवरी का महीना था
और ददन के वक्त अच्छी मन भावनी धप ू हो जाती थी और रात को ठिं िी हो जाती थी। शादी े पहले रात के वक्त औरतें गाने के सलए आ जाती थीिं और बहुत रौनक हो जाती थी। इन औरतों में बहुत
ी औरतों को मैं जानता नहीिं था लेककन बजुगट औरतें मेरे
ाथ बातें करने
लगती थीिं, और मझ ु े बहुत खश ु ी होती थी। इन औरतों में मेरी बचन कौर भाबी भी होती थी न्जन की बेटी गड् ु िी का हाथ चारा कुतरने वाली मशीन में आ गया था। गड् ु िी अब कहीिं दरू रहती थी और उ
के बच्चे अब बडे हो गए थे। भाबी के पनत यानी मेरे बडे भईया िुबाई में
थे जब वोह वहािं ही शािंत हो गए थे। िुबाई में उन का अच्छा कारोबार था। अब तो भाबी भी इ
दनु नयाुँ में नहीिं रही और अब यह मेरा भाबी
की हल्दी की र म थी तो उ कफर मैंने भी उ के घर
े आखरी समलन ही था। न्ज
ददन मिंदीप
ददन बचनों भाबी नें मेरे मिंह ु पर भी हल्दी लगा दी थी और
का मिंह ु पीला कर ददया था। कभी
ोया करता था और बचनों भाबी के
पती यानी बडे भाई गुरचरन स हिं उ
मय था जब बचपन में मैं बचनों भाबी
ाथ ही मैंने अपना बचपन गुज़ारा था। भाबी का
वक्त इलाहाबाद काम के सलए जाया करते थे, कभी
कभी बचनों भाबी पपयार में आ कर ही मेरे मुिंह पे चािंटा मार दे ती थी और मैं रोते रोते उ को गाली दे ने लगता था और कफर मैं गस् ु े में उ
को एक ऐ ी गाली दे ता था जो उ
को
प िंद थी, मैं कहता था,” तेरे मुिंिा जम्मे “, बचनों भाबी मुझे गले लगा सलया करती थी। दुःु ख की बात यह है कक बचनों भाबी बेटे का मुिंह दे खने के सलए तर ती ही इ चले गई क्योंकक उ
दनु नयाुँ
े
के पािंच बेदटयाुँ ही हुई थीिं। रात के वक्त जब औरतें गाने के सलए आती
थीिं तो मैं और छोटे भाई ननमटल की पत्फनी के भैया तर ेम इन औरतों में मस्ती करने लगते थे। तर ेम हम
े दो ददन बाद इिंगलैंि
े आया था। तर ेम
े मेरा पपयार बहुत हुआ करता
था। ददन के वक्त मिंदीप और उ
के बडे भाई कमलजीत के बहुत
े दोस्त हमारे घर आ
जाते थे, न्जन को मैं जानता तो नहीिं था लेककन जब वोह अपने पपता जी का नाम बताते तो मुझे झट
े
मझ आ जाती। क्योंकक चमटकार बस्ती हमारे घरों के नज़दीक ही होती थी और
बहुत लोगों को मैं जानता ही था, इ काम करने आते थे, इ
बस्ती में
े बहुत
े मज़दरू उन ददनों हमारे खेतों में
सलए बहुत लोगों को मैं जानता था। अब
मय बदल गया था। उन
के बच्चे अब पढ़ गए थे और हमारे घर आते जाते रहते थे। यह लडके बहुत भी आते, पहले मेरे पैरों को हाथ लगाते थे । उन । एक लडका इन में स ग िं र था और इ के सलए वोह मेरे पा लगता था। मुझे इ शादी
के पा
भ्य थे। जब
े बातें करना मुझे बहुत अच्छा लगता था बडा
ा कीबोिट था। यह कीबोिट कुछ ददनों
छोड गया था। जब औरतें गाती थीिं तो मैं उन के
ाथ कीबोिट बजाने
में बहुत आनिंद आता था।
े कुछ ददन पहले ननमटल के
उन के आने का पता था, इ
मगध और
मधन हमारे घर आये थे। क्योंकक हम को
सलए खाना तैयार कर सलया गया था। मैं बाइस कल पर
वार
हो कर बीयर की दक ू ान पर जाने के सलए तयार हो गया जो कुछ दरू ही थी। छोटे भाई ननमटल डड्रिंक नहीिं लेते थे लेककन जब मुझे पता चला कक की
मगध
ाहब डड्रिंक लेते थे तो उन
ेवा करना मेरा न्जमाुँ ही था और यह हमारा फ़ज़ट भी था। पिंजाबी लोग शायद ही कोई
हो जो डड्रिंक नहीिं लेता हो और यह डड्रिंक ऑफर करना भी जाता है । दक ू ान का पता पछ ू कर मैं ाथी मुझे समलता, मैं
ाइकल
थे और यह
े बातें करने लगता। रास्ते में आज कफर
फैलो अमरीक समल गया, न्ज
कूल में बहुत शरारती हुआ करता था। इ
हुई थी और इ
के
को अक् र मीको ही कहते
ाथ ही बचपन में मेरी लडाई
ने मेरे नाक पर घुँू ा मारा था और मेरी नाक अभी तक टे हडी है । आज भी
शीशे में दे ख कर कभी कभी मझ ु े मीको की याद आ जाती है । मीको के दे र हम ने बातें कीिं और मैंने उ े बचपन की उ मैंने मीको को बोला कक इ दे र मीको
मझा
डक पर जा रहा था तो रास्ते में जब भी कोई परु ाना
े उतर कर उ
मुझे बचपन का दोस्त और क्ला
ेवा का एक दहस् ा ही
ाथ बैठ कर कुछ
लडाई का याद ददलाया तो वोह बहुत हिं ा।
नाक के कारण मुझे उ
की याद हर दम आती रहती है । कुछ
े बातें करके मैं दक ू ान पर पहुुँच गया। यहािं बहुत
ी दक ु ानें थीिं और कु ी पर
बैठा मेरे बचपन के मास्टर जी बाबू राम का बडा लडका लभ ु ाया राम समल गया जो उ वक्त स गरे ट पी रहा था। वोह मझ ु े दे ख कर एक दम उठ खडा हुआ और स गरे ट फैंक कर मेरे
ाथ हाथ समलाया। मैंने उ े उ
हाल चाल पुछा तो उ
के छोटे भाई नप्पल न्ज
ने बताया कक उ
का नाम राम
रूप है , का
के लडकों का काम बहुत अच्छा है । कफर लुभाया
राम ने अपने लडकों के बारे में बताया कक वोह बबदे कक न्ज
जगह पर यह दक ु ाने और कोठीआिं थीिं, इ
में रहते हैं। बातें करते करते पता चला जगह बहुत बडा तालाब न्ज
को िबरी
बोलते थे, हुआ करता था। लुभाया राम मुझे बता रहा था कक यहािं पीपल का बक्ष ृ हुआ करता था, वहािं वोह हुआ करता था और कुछ दे र मैं बचपन के उन ददनों में खो गया, जब हम इ तालाब में नहाया करते थे और भैं ों की पछ ू ें पकड कर तैरा करते थे। यहािं ही एक लडका िूब गया था और इ
जगह नहाने की वजह
े ही एक दफा मेरे पपता जी ने मुझे बहुत पीटा
था। लुभाया राम
े बहुत दे र तक मैं बातें करता रहा और बातें करते करते मझ ु े उन ददनों की
याद आ गई जब हम कुछ लडके लुभाया राम के घर रात को
ोया करते थे और लुभाया
राम के पपता जी मास्टर बाबू राम हमे पढ़ाया करते थे। लुभाया राम की उन ददनों नई नई शादी हुई थी और एक लडके हरभजन ने लुभाया राम की बीवी के बारे में कुछ अपशजद बोले थे और मास्टर बाबू राम ने हरभजन को बहुत पीटा था और हम छोडना पढ़ा था। कुछ दे र बाद मैं बीयर की दक ू ान पर गया न्ज थीिं, न्जन के नीचे एक गली
ी थी जै े पोस्ट ऑकफ
ब को मास्टर जी का घर के आगे लोहे की
लाखें
में दटकट लेने के सलए होती थीिं। मैंने
उ
े चार बीयर की बोतलें ले कर झोले में िाल ली और यों ही चलने के सलए बाइस कल
पर
वार होने लगा, एक
क ु डा
ा आदमी मेरे आगे आगे हाथ फैला कर बोला, ” गरु मेल
स हिं मझ ु े कुछ पै े दे दो, मैं बहुत दख ु ी हूुँ “, लभ ु ाया राम उ ी वक्त दौड कर मेरे पा गया और उ
ुकडे आदमी को गाली ननकाल कर दौडा ददया। कफर लुभाया राम मुझे बोला,”
पहचाना इ े गुरमेल, यह नाईआिं दा मुिंिा मनोर ी है ,
ाला ड्रग लेता है ,
ारा घर इ
बबाटद कर सलया “, मैं चल पढ़ा और इ
मनोर ी की बचपन की शरारतों के बारे में
लगा जब यह गगयान की दक ू ान के पा
द ू रे लडकों के
ुिंदर था। कै े इिं ान बदल जाते हैं,
ने ोचने
ाथ बहुत बातें ककया करता था,
तब यह बहुत हिं मख ु और बहुत शरारती हुआ करता था। मझ ु दे खने में काफी
आ
े कुछ बडा था लेककन यह
ोचता हुआ मैं घर आ गया और
मधी
मधन भी आ गए। दोनों बहुत समलन ार थे। बीयर पीते पीते हम ने बहुत बातें कीिं। वोह कह रहे थे कक वोह खाना खा कर आये थे लेककन हम भारतवास यों की मेहमान ननवाज़ी भी ऐ ी होती है कक हम मेहमान को जबरदस्ती खखला दे ते हैं। अुँगरे ज़ लोग एक बात
े ही बात
खत्फम कर दे ते है और वोह है इन का नो थैंक् , और आगे दब ु ारा कोई पछ ू ता भी नहीिं है । तीन चार घिंटे हमारे महमान रहे और हिं ी खश ु ी वोह चले गए।
शादी की तैयाररयाुँ हो चक ु ी थीिं और एक ददन घर के ऊपर पाठ रखा ददया गया क्योंकक गाई की रस्म की कारट वाई होनी थी। घर की एक तरफ हलवाई खाने बनाने में म रूफ थे। रागी स हिं कीतटन कर रहे थे और लाऊि स्पीकर की आवाज़ तदे श दे रही थी। महाराज जी के
ामने मिंदीप को बबठा ददया गया और पहले लडके वालों
ने मिंदीप की झोली में शगन ु िाला। इ कुलविंत ने ऐ ा ही ककया। अब ननभाया। इ
के बाद
ारे गाुँव को घर की रौनक का
के बाद ननमटल और परमजीत ने और कफर मैंने और
ारे ररकतेदारों और शरीके भाईचारे ने अपना अपना फ़ज़ट
भी नीचे आ गए। चाय पानी का इिंतज़ाम हलवाइयों ने पहले ही कर
रखा था। समठाईयाुँ और नमकीन टे बलों पर पडे थे और हर कोई अपनी प िंदीदा समठाई और नमकीन प्लेट में िाल कर कक ी ना कक ी
े बातें करने लगता।
मय के
ाथ
ाथ बहुत
चेहरे अक् र बदल जाते हैं, एक गगयानी जै ा पुरुष एक कोणे में बैठा खा रहा था। ननमटल मेरे पा
आया और बोला, ” भा जी ! इन को पहचाना, यह
कर बुलाया करते थे। अब था जो उ
ेवा स हिं की दाहडी काफी लिंबी थी और उ
के गले में िाले हुए गात्रे
ननभाई थी और उ े अब भारत यादें आ गईं, जब हम
े ज़ाहर हो रहा था।
रकार की ओर
ेवा स हिं ने समलट्री में भी
ेवा स हिं के दोस्त के घर भी कुछ महीने रात को
की ऐन्क्टिं ग
और भाबी आये हुए थे।
े परु ानी
शरारतें न्ज़आदा होती थीिं।
ेवा
के घुटने
े ही जाहर हो रहा था। कुलविंत
की बहन दीपो भी एक टे बल पर चाय बगैरा ले रही थी और अब हम उ कुछ लोग हमारे नननहाल
ेवा
ोया करते थे।
ाथ कुछ बातें कीिं लेककन अब वोह इतनी बातें नहीिं कर रहा था और उ
भी शायद उ े परे शान कर रहे हों क्योंकक उ
ेवा कह
ने अमत ृ छका हुआ
े पैंशन समल रही थी। मझ ु े झट
रात को इकठे हो कर पढ़ना तो एक बहाना ही होता था, ब स हिं के
ेवा स हिं है , न्जन को
े बातें करने लगे।
े आये हुए थे न्जन में हमारे मामा जी के बेटे, भैय्या
िंतोख स हिं
िंतोख भैय्या कब के ररटायर हो चक् ु के थे और हुसशआर पुर में बहुत
अच्छा मकान बना सलया था। कुछ दे र बाद छत पर ड्रम की आवाज़ ने था जै े बोलने धीरे धीरे
े लाऊि स्पीकर में है लो है लो
ुनाई ददया और जल्दी ही कीबोिट और
ब को चप ु करा ददया। कोई बोलने की कोसशश करता भी था तो लगता
े खुद की एनजी बबाटद कर रहा हो क्योंकक कुछ भी
ुनाई नहीिं दे ता था।
ब ऊपर जाने लगे। ऊपर स्टे ज लगी हुई थी, एक कीबोिट बजा रहा था एक
इलैन्क्ट्रक ड्रम और एक दे ी ढोल और पा कोई बेटा डड्रिंक करता था लेककन यह
ही दो लडककयाुँ थीिं। ननमटल ना तो खद ु और ना
ारा इततज़ाम ररकतेदारों और दोस्तों के ऐिंटरटे नमें ट के
सलए ककया गया था। एक तरफ पुरुष और एक तरफ मदहलाएिं और बच्चे बैठे थे। गाना तो
मुझे कोई याद नहीिं कक कौन और एक डड्रिंक मैंने भी
ा गाया था लेककन गाते बहुत अच्छा थे। डड्रिंक
िंतोख भैय्या के
ाथ बैठ कर सलया।
पपया करते थे लेककन अब कम कर ददया था।
वट होने लगे
िंतोख भैय्या तो कभी बहुत
िंतोख भैय्या की याद आ गई, अब वे 90 के
ऊपर हो गए हैं लेककन अल्ज़ाइमर रोग ग्रस्त हैं। यह भैय्या बहुत ही अच्छे हैं और इन की शक्ल मझ ु
े बहुत समलती है । जब कभी मैं नानके गाुँव िीिंगरीआिं जो आदम परु के नज़दीक
है ,जाया करता था तो बहुत लोगों को मुझे पहचानने में गलती लग जाती थी कक मैं हूुँ। भैय्या के
ाथ बैठ कर मैंने ढे र
ी बातें कीिं। अब मयून्जक बहुत ऊुँचा था और न्ज़आदा
बोलने का कोई फायदा भी नहीिं था, इिंतज़ाम था और कुछ घिंटे बाद क्योंकक
िंतोख
भी गाने का मज़ा लेने लगे। इ
के बाद डिनर का
माप्ती हो गई और वातावरण धीरे धीरे शािंत होने लगा
भी लोग जाने लगे थे।
द ू रे ददन बरात की रवानगी थी। शादी की रस्म फगवाडे के नज़दीक एक गुरदआ ु रे ख ु चैनाणा पहन कर
ाहब में होनी थी और पैले ुबह
कहीिं और फगवाडे में ही था। बाजे वाले अपनी वदी
े ही बराती धन ु ें बजाने में वयस्त थे। छै
ात गाडडयों में बराती बैठ गए
और एक घिंटे में फगवाडे पहुुँच गए। हम घर के कुछ लोग शादी की र म के सलए गुरदआ ु रे पहुुँच गए और शेष बराती पैले गए। पैले तरफ
हाल में दाखल होने
में पहुुँच गए। शादी की र म के बाद हम भी पैले
में पहुुँच
े पहले समलनी की रस्म हुई और कफर शरारती लडककयों की
े कुछ आनाकानी के बाद हम पैले
हाल में दाखल हो गए और अपनी अपनी प्लेट
पकड कर मन प तद भोजन प्लेटों में िाल कर फ्रतट रो में हम बैठ गए। इिंगलैंि और भारत में शादी की रस्में अलग्ग अलग्ग ढिं ग
े होती हैं और भारत का स स्टम मुझे अच्छा लगा।
दल् ू हे दल् ु हन के सलए कक ी बादशाह के तख्त जै ी मखमली कु ीआिं बहुत प िंद आईं। गाने वाले गा रहे थे और लडके और कुछ औरतें िािं था। कुलविंत भी परमजीत के कहाुँ
कर रहे थे। बहुत खश ु गवार वातावरण
ाथ नाच रही थी। ननमटल भी हमारे पा
े एक शराबी झूमता हुआ इ
ही था। तब पता नहीिं
मज़े करती हुई भीड में आ घु ा कक ननमटल के
टकरा गया और ननमटल गगर गया। यह दे ख कर गस् ु े में आये लडकों ने उ कक मुझे तो वोह मर गया ही लगता था। बाद में पता चला कक उ
को इतना पीटा
को कक ी ने नहीिं बुलाया
था, वोह खद ु ही मुफ्त में पीने का बहाना बना कर महमान बना हुआ था। बाद में इ ककया हुआ, मुझे पता नहीिं। इ
पैले
हाल के
ाथ
ाथ ही एक और पैले
भी था, न्ज
का में एक
और बरात आई हुई थी लेककन दोनों हॉलों के सलए टौयलटें एक जगह ही थीिं। जब मैं टौयलेट में गया तो मैं है रान हो गया जब वहािं मैंने अपने
ािंढू
ाहब किंु दी को वहािं दे खा। एक द ू रे
को दे ख कर हम है रान और खश ु हो गए। पता चला कक कुलविंत की बहन पुतनी भी आई हुई थी। किंु दी ने बताया कक वोह अभी ही मुिंबई
े आये थे। क्योंकक हम ने इिंग्लैंि
े आने
े
पहले उन को बताया नहीिं था और अब यह अचानक मेला हो गया। मैंने किंु दी को इिंतज़ार करने को कह कर हाल
े कुलविंत को ले आया। इ
रप्राइज समलन
े दोनों बहने बहुत
खश ु हुईं। अब हम एक ही हाल में बैठ कर बातें करते रहे और शादी का प्रोग्राम खतम होने के बाद कफर समलने के वादे करके अपनी अपनी बरात पाटी के को चल ददए। चलता…
ाथ हम अपने अपने गाुँव
मेरी कहानी - 156 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 15, 2016 मिंदीप की शादी हो गई थी और हम अपने गाुँव राणी पुर आ गए। जब हम बहुत दे र भारत े बाहर रहते हैं तो भारत की बहुत ाथ
ी नई बातों का हम को गगयान नहीिं होता।
मय के
ाथ बहुत तजदीसलयाुँ आ जाती हैं जो हम को अद्भत ु लगती हैं। जब हम ने भारत
छोडा था तो उ
मय
ुहाग रात शजद इस्तेमाल होता ही नहीिं था, इ
का घर वालों के
स वा और कक ी को पता ही नहीिं होता था, या यूिं कहें कक इ े छुपा कर रखा जाता था . भारत के कक ी और प्रािंत में
ुहाग रात का शजद इस्तेमाल होता होगा, मझ ु े पता नहीिं लेककन
पिंजाब में तो इ े जै े छुपा कर ही रखा जाता था। मुझे मिंदीप की शादी में ही इ चला कक जो हम कफल्मों में था। मिंदीप और उ
ह ु ाग रात की
ेज के बारे में दे खते थे, वोह वास्तव में
की पत्फनी के सलए कमरे को
यह थी कक मिंदीप के दोस्त ही कमरा जा रहे थे और आप
जा रहे थे। ककतना
मय बदल गया, जब चमटकार ुहाग रात
में हिं ी मज़ाक कर रहे थे। यह दे ख कर मेरा मन बहुत
प न ट हुआ था कक चलो कमज़कम पिंजाब न्ज
ही
जाया जाने लगा था और मज़े की बात
लोगों को दरू ही रखा जाता था और आज उन के बच्चे यानी मिंदीप के दोस्त वाला कमरा
का पता
े तो यह अिंतर और भेद भाव दरू हो ही रहा था,
में दे श की उतननत का राज़ नछपा है , इ ी सलए तो पिंजाब ने बहुत उतननत की है ।
अब,जब मैं यह सलख रहा हूुँ तो चाहता हूुँ कक दहतद ू
माज
े जात पात का कलिंक दरू हो
जाए। यह जात पात दे श को बाुँटती है और इकठे नहीिं होने दे ती। यहािं इिंग्लैंि में यह भेद भाव है ही नहीिं, तभी यहािं आ कर दसलतों ने बहुत उतननत की है और उन की फैक्ट्रीयों में ऊुँची जात के लोग काम करते हैं, बच्चे आप
में शादीआिं कर रहे हैं। जो हम लोग इिंडिया
आये हुए हैं, वोह यह दे खना नहीिं चाहते थे लेककन
ब पढ़े सलखे बच्चे हैं और कक ी की
ुनते नहीिं हैं। यही वजह है कक अब हम बज़ुगों की ऐ ी न्स्थनत हो गई है कक हम चाहते हैं कक हमारे बच्चे कम ेकम इिंडियन बच्चे अुँगरे ज़ बच्चों
े ही शादी करें नाकक कक ी गोरे काले
े भी शादीआिं कर रहे हैं। इ
अुँगरे ज़ बच्चे हमारे बच्चों नहीिं िालते बन्ल्क शादी में
में
े लेककन यहािं के
ोचने की बात यह भी है कक जब
े शादी करते हैं तो उन के अुँगरे ज़ माुँ बाप इ
में कोई बाधा
न्म्मलत होते हैं। हम तो इिंडियन हो कर भी लडकी का
रिं ग दे ख कर बेटे की शादी करने छोटी जातों के थे लेककन वोह
े दहचकचाते हैं। हमारे
ािंवला
ाथ काम करने वाले बहुत लडके
ीधी बात कर दे ते थे कक वोह चमार हैं और इ
में कक ी को
कुछ नहीिं होता, हाुँ ! कुछ लोग अभी भी हैं न्जन को कक ी चमार को दे ख कर गाुँव की
े
पुरानी चमारली (चमटकार बस्ती ) याद आ जाती है जब कक वोह बन्स्तयाुँ बहुत दे र हो चक ु ी हैं। अक् र मेरी बात मेरे दोस्त रिं जीत राये के करता था, “भमरा ! का
ािं
े गायब
ाथ होती रहती थी और वोह कहा
च्ची बात तो यह है कक हमारे लोगों ने इिंगलैंि में आ कर ही आज़ादी
सलया है , इिंडिया में तो हम को कुत्तों जै ी न्जिंदगी जयतीत करनी पडती थी,यही
वजह है कक हमारे लोग जी जान
े काम कर रहे हैं “, राये की बात में ककतना
अभी एक घिंटा ही हुआ है , मैं पिंजाबी का एक पेपर पढ़ रहा था, न्ज के डिप्टी मेयर की फोटो थी जो एक चमटकार है और उ दहतद ू ने जो यहािं के कृष्णा मिंददर का प्रैजीिैंट है । इ चमटकार बबशन दा
च्च था।
पर एक हमारे टाऊन
के किंधे पर हाथ रखा हुआ है एक े पहले भी इ
टाऊन का मेयर एक
होता था। एक तर ेम स हिं जो एक चमटकार है , वोह भी टाऊन का
मेयर रह चक् ु का है और उ
की पत्फनी कुलविंत के
ेंटर में रै गुलर आती है क्योंकक वोह इ
हमजोली ग्रुप की मैम्बर है । जब मैं भारत में दसलतों की हालत के बारे में पढता दे खता हूुँ तो मुझे बहुत शमट आती है और दुःु ख होता है । क्यों भारती होते हुए भी इन ककया जाता है । पवतकरा तो हमारे पवतकरा इ
बात
ाथ भी यहािं होता है लेककन इ
े इतना पवतकरा
तरह का नहीिं। यहािं
े है कक हम पवदे शी लोग उन की नौकररयाुँ छीन रहे हैं और उन की
कल्चर को प्रभावत कर रहे हैं। यहािं तो काले गोरे
ब समल कर काम करते हैं। गुरदआ ु रे में
ब जातों या धमों के लोग एक जगह इकठे समल कर लिंगर में खाना खाते है और इ ी तरह यहािं पजबों में
भी धमों और रिं गों के लोग पा
पा
बैठे मज़े कर रहे होते हैं। घरों का कूडा
करकट उठाने वाला भी यहािं होता है और कोई उच्चअगधकारी भी पा जोक करता होता है ।
ही बैठा हुँ ता और
ब अच्छे कपडे पहन कर आते हैं और पता ही नहीिं चलता कक कौन
दसलत है और कौन स्वणट जाती का। बात कर रहा था, मिंदीप और उ े वहािं जा नहीिं
कता था लेककन
की दल् ु हन की
ह ु ाग रात की, मैं तो अपने ररकते की वजह
ह ु ाग रात वाले कमरे
े लडकों की हुँ स याुँ
न ु ाई दे ती
थी। बार बार कक ी बात को ले कर जोर जोर
े हिं ीयों की आवाज़ गुँज ू रही थी और आज
के बच्चों को मस्ती करते दे ख खश ु ी होती थी।
मय
जब हनीमून का नाम ही हम ने
मय की बात है , वोह भी
ुना नहीिं था और आज लडका लडकी शादी
मय था
े पहले ही
हनीमन ू के सलए हॉसलिे बक ु करा लेते हैं। सलखते सलखते मझ ु े हिं ी आ गई। अब तो पता है कक हनीमन ू कक े कहते हैं। जब ननिंदी की शादी हुई थी तो ननिंदी और उ ने हॉसलिे के सलए बाहर जाना था। ननिंदी की ममी की एक दरू नाम पपयारी है , ननिंदी की ममी को कहने लगी,” मा ी! तुम भी
ब को
की पत्फनी
े ररकतेदार बुिीया न्ज
का
ाथ हनीमून चले जाते !”,
यह
ुन कर
भी हिं
पढ़े लेककन उ
नहीिं थी कक यह लोग क्यों हिं मुझ
े
मैंने हिं
का नाम पपयारी है उ
को कोई
मझ
रहे थे। यह बुढ़ीया बहुत भोली भाली है । एक दफा ननिंदी ने
ाधाहरण ही पुछा था,” भा जी ! यह पपयारी लफ्ज़ को इिंन्ग्लश में ककया कहें गे ?”, कर कर कहा,” beloved one “, इ
पपयारी की बात होती है तो ननिंदी हिं इ
बुढ़ीया, न्ज
रात को घर में काफी रौनक थी।
इधर उधर घम ू रही थी और गुरप्रीत में भारती
पर ननिंदी बहुत हिं ा था। आज भी जब कभी
कर कह दे ता है , भा जी ! beloved one ! ुबह उठे तो नई नवेली दल् ु हन लाल चड ू ा पहने घर में
ाथ ही मिंदीप था। ऑस्ट्रे सलया में जनम लेने वाली दल् ु हन
िंस्कार भी थे और ऑस्ट्रे सलयन
िंस्कार भी क्योंकक वोह अिंग्रेज़ी तो बोलती
ही थी लेककन पिंजाबी भी बहुत अच्छी बोलती थी। क्योंकक मेरे और कुलविंत की यह शॉटट पवन्ज़ट ही थी, इ
सलए हम ने अपने बैग उठाये और ब
पकड कर फगवाडे शॉपपिंग के सलए
चले गए। शॉपपिंग करके कुलविंत की बहन दीपो को समलने चले गए। दीपो को मैंने पहले ही कह रखा था कक वोह इिंडिया वाली
र ों का
र ों का
ाग बना कर रखे।
ाग तो हम यहािं भी बनाते हैं लेककन
ाग यहािं नहीिं होता। दीपो के घर पहुुँच कर खब ू बातें कीिं और जब
रोटी का वक्त हुआ तो मैंने दीपों को और खाने बनाने मक्की की रोटी,
े मना कर ददया क्योंकक मैं स फट
ाग, हरी समचट और घर की लस् ी का स्वाद ही लेना चाहता था। एक बात
और भी है कक मक्की यहािं मेक् ीको
े आती है और यह बहुत
ख्त होती है । जो पिंजाब की
मक्की होती है , वोह खाने में नरम और स्वाददष्ट होती है । दीपो ने िाल कर तडका लगाया और कफर अपनी घर की गाये का माखन े मुझे एक आदत है और वोह है बहुत धीरे धीरे खाना। घर के
ाग में अदरक लह न ु ाग में िाल ददया। बचपन भी लोग खाना खा चक् ु के
होते हैं, कुलविंत बतटन भी धो चक ु ी होती है और मैं अभी भी खा रहा होता हूुँ। एक एक ग्राही को मैं मज़े
े खाता हूुँ। मैं खाना खाता नहीिं हूुँ, इ
दीपो के हाथों का खाना बहुत मज़े है , न्ज
े खाया।
का आनिंद लेता हूुँ और आज भी मैंने
ाग तो कुलविंत भी यहािं बहुत बढ़ीया बनाती
में बहुत कुछ िालती है लेककन पिंजाब की स फट
का मट्टी की हािंिी में होता है । उ
के पा
ाग बनाना गै
ोने पे
र ों ही इन
ब
े उत्तम है । दीपो
ुहागे जै ा होता है क्योंकक यह चल् ू हे पर बनाया
कुकर भी है लेककन चूल्हा उ
बहुत मॉिनट हो गए हैं लेककन परु ातन घर के दे ी खानों
ने जाने नहीिं ददया । आज हम े कोई मक ु ाबला नहीिं है ।
पवदे शी प्रभाव के कारण भारत में आज बाहर खाने का ररवाज़ बहुत हो गया है न्ज
े पै े
खचट करके हम बीमाररयाुँ खरीदते हैं। यह बात नहीिं है कक हम ऐ ी चीज़ें बबलकुल नहीिं खाते। खाते हैं लेककन बहुत कम। पिंजाबी भाषा में कुलविंत और मैं ऐ ी खाने की चीज़ों को खेह
ुआह कहते हैं यानी रन्जबश। हमारे घर में तीन डिजबे समठाईयों के पडे हैं जो शादी में ददए गए थे , इन को हम ने खोला भी नहीिं है और बुधवार को कुलविंत ले जा कर अपनी
खखयों को खखला दे गी क्योंकक वोह
भी कक ी न कक ी रोग
भी मज़े
ारी समठाई अपने
ट ैं र
े खाती हैं, हा हा लेककन है
े ग्रहस्थ। कक ी को हाई जलि प्रैशर और कक ी का बाई पा
हुआ है । क्या करें आखर तो हम इिं ान ही हैं और मीठा एक ऐ ी चीज़ है जो
हुआ
ब को अच्छा
लगता है , चाहे ककतना भी कोई कह दे कक यह स्वीट पॉयजन है । कभी मैं भी बहुत शौकीन हुआ करता था। अब तो मैं हिं
कर कुलविंत को कह दे ता हूुँ कक कभी घर में समठाई आती है
तो वोह मुझे बताया ना करे क्योंकक समठाई दे ख कर मन ललचाता है । दीपो के हाथों की रोटी े मज़ा आ गया। दीपो ने बहुत दीपो को मेरी लाये थे, उ
ादगी के बारे में
ा
ाग एक बतटन में िाल ददया कक हम
ाथ ले जाएुँ।
ब मालूम है । कुछ कपिे और जूते कुलविंत ने दीपो के सलए
को ददए तो वोह बोलने लगी जै े औरतें अक् र ऐ े
मय बोलती ही हैं, ”
इतना खचट क्यों ककया, मैंने यह नहीिं लेने, यह बहुत है , तुम तो हर दफा भेजती रहती हो ” अनतआददक और मुझे ऐ ी बातों का भली भाुँती पता है , इ
सलए मैं चप ु ही रहता हूुँ। कफर
दीपो ने कुछ ददया और आखर में दीपो हमें रे लवे लाइन तक छोडने आई। शाम को हम राणी पुर वाप
आ गए। कुछ दे र बैठे बातें करते रहे और कफर मिंदीप हमें शादी की वीडियो ददखाने
लगा। वीडियो बहुत अच्छी बनी थी और कफर जब पैले आया तो
भी हिं ने लगे। उ
मारे थे और इ
को दे ख
शराबी को
हाल में उ
शराबी का वोह पाटट
भी पीट रहे थे और मैंने भी उ
भी बहुत हुँ े। वै े मैं लडाई झगिे
को बहुत घूिं े
े बहुत दरू रहता हूुँ और यह
मेरी कफतरत के खखलाफ है लेककन जब मैंने अपने छोटे भाई ननमटल को नीचे गगरा दे खा तो मैं अपने आप पे काबू नहीिं कर
का था।
ब ु ह को कुलविंत ने मेरे कपिे धो कर बाहर धप ु में कपिे मैं खद ु ही प्रै
ककया करता था। इिंगलैंि
ख ु ा ददए थे। इिंडिया में आ कर अपने
े आते वक्त मैं ने अपने सलए कुछ कपिे
खरीदे थे न्जन में मेरी दो बहुत प िंदीदा हाफ स्लीव बुशटट थीिं न्जन में एक अभी भी मेरे पा है लेककन यहािं गसमटयों में स फट एक दो हफ्ते ही पहन
कता हूुँ क्योंकक गमी इतनी पडती
नहीिं है लेककन जब भी मैं इ े पहनता हूुँ तो मुझे इिंडिया की याद आ जाती है । इ
का रिं ग
ाबबत मुँग ू की दाल जै ा है । कुलविंत बहुत दफा इ े फैंकने को कह चक ु ी है और मेरे पा और भी कई ऐ ी शट्ट इ
हैं लेककन जब कभी गमी होती है तो पहले इ े ही पहनता हूुँ और
े मुझे यह भी पता चल जाता है कक मेरा वजन पतद्ह
ोला
ाल पहले जै ा ही है ।
ननमटल और परमजीत बहुत धासमटक पवचारों के हैं और उतहोंने नई बहु और मिंदीप को भमरा
जठे रों को ले के जाना था और हमें भी
ाथ जाना था। तब मैंने यही बुशटट पहनी थी। पिंजाब
में अब हर गाुँव में अपनी अपनी जात के जठे रे हैं। यह जठे रे अपनी अपनी जात के बज़ुगों को याद करने और उतहें
तमाननत करने के सलए बनाये हुए हैं। मैंने यह पहले नहीिं दे खे थे
क्योंकक यह मेरे इिंगलैंि जाने के बाद ही बने थे। इिंग्लैंि जाने
े पहले मैंने यह
न ु े ही नहीिं
थे, लगता है यह नए ज़माने की उपज है । परु ाने ज़माने में तो लोगों के पा , रहने के सलए भी बज़ुगों के बनाये कच्चे घर ही होते थे और आज यह जठे रों की इमारतें बहुत अच्छी बनी हुई हैं और अपनी अपनी जात के लोग इ भी घर के
दस्यों के
मागम भी करते हैं।
ाथ हम भी चल ददए। मुझे कोई गगयान नहीिं था कक वहािं जा कर
ककया करना था। गें हूिं के खेतों में एक छोटा
जगह पर धासमटक
ा कमरा था, न्ज
े होते हुए हम भमरा जठे रे जा पहुिंच।े खेतों के बीच में
के बीच ईंटों की एक तीन चार फुट ऊुँची और इतनी ही चौडी
एक जगह बनी हुई थी, न्जन के चारों तरफ दीए रखने के सलए जगह बनी हुई थी जो ददए या मोमबपत्तयों
े काली हो गई थीिं । इ
कमरे के इदट गगदट छोटी
ी दीवार बन रही थी
और ईंटें और बज्जरी वहािं पिी थी , लगता था यह जगह और बडी होने वाली थी। कमरे में उ
छोटी
मुिंह
ी ददए रखने वाली जगह में मोम बतीआिं जगाई गई और
भी हाथ जोड कर खडे
े कुछ पढ़ रहे थे। ननमटल ने बताया कक यह जगह हमारे पुरखों की याद में बनाई गई
थी। इ
में
ोचने वाली बात तो यह थी कक भमरा खानदान के कक ी बजुगट का नाम वहािं
नहीिं सलखा हुआ था। अकेला मैं ही वहािं odd one out था और मैं
ोच रहा था कक इ
जठे रे बनाने का मक द ककया था जब कक कक ी भी बजुगट का नाम वहािं नहीिं था और यह भी
ोच रहा था कक इन जठे रों में ताऊ
ाहब भी शासमल होंगे न्जतहोंने जीते जी हमें जीने
नहीिं ददया था, कई चोर उचक्के बजुगट भी होंगे, न्जन को माथा टे कना मेरी
मझ
था । होना तो यह चादहए था कक भमरा गोत्र का
दीवारों पर
ारा नहीिं तो कुछ इनतहा
सलखा जाना चादहए था ताकक आने वाली पीडीआिं इ इनतहा इ
े बादहर
पर खोज करतीिं और हर गोत्र का
सलखा जाता। अगर मैं ऐ े शजद वहािं बोल दे ता तो
ब मेरी
ोच पर हिं
पढ़ते।
सलए मैं भी do in rome what romans do की तज़ट पर चप ु रहा। कुछ दे र बाद वहािं
चीिंदटयों के एक बडे
े ढे र पर आटा िालने लगे। जानवरों को कुछ खाने को दे ना तो अच्छी
बात है लेककन उन को माथा टे क कर कुछ माुँगना मेरी हरे खेतों की कोई बी
मझ
े परे है । खैर कुछ भी हो हरे
ैर तो हो ही गई, यह ककया कम था ?
समिंट बाद हम वाप
घर को चल पडे। दरू तक गें हूिं के खेतों में
र ों के फूल दे ख
दे ख कर तबीयत प न ट हो रही थी। हर कक ी की बतद खोपडी में ककया नछपा हुआ है , द ू रा
कौन जान
कता है ? मैं
जब मैं दादा जी के
भी के
ाथ चलता हुआ भी बचपन के उन ददनों में घूम रहा था
ाथ खेतों में काम ककया करता था। मैं तो नए खेतों में पुराने खेत ढूतढ
रहा था। काश ! कोई ऐ ा यिंत्र ईजाद हो जाए, न्ज !!!!!!!! चलता…
े हर पुरानी याद की वीडियो बन
के
मेरी कहानी - 157 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 18, 2016 अपने भमरा जठे रों के दशटन करके हम घर आ गए। एक ददन हम पोस्ट ऑकफ जो गगयान की दक ू ान के पा
ही हैं। इ
पोस्ट ऑकफ
जो अब मैच्योर हो चक् ु के थे। कुछ तो हम ने इिंगलैंि
में चले गए
े हम ने कक ान पत्र खरीदे हुए थे, े आते ही कैश करा सलए थे और शेष
हम ने कैश करा के दब ु ारा नए कक ान पत्र ले सलए। इन कक ान पत्रों का हमें बहुत फायदा होता था क्योंककिं गाुँव आते ही हम जरुरत के मुताबबक कैश करा लेते थे। इन में ारी शॉपपिंग हो जाती थी। इिंगलैंि
े हमारी
े हम स फट ककराया खचट करके ही आते थे। न्जतने पै ों
की हम ने शॉपपिंग करनी होती थी, उतना ही
ूद समल जाता था और हमारे दह ाब
े
ारी
शॉपपिंग फ्री में हो जाती थी। अगर कुछ बच जाते तो और कक ान पत्र खरीद लेते। जब पोस्ट ऑकफ
में आये तो दो लडकों ने जो बैगों में गचठीआिं बगैरा िाल रहे थे,हमें दे ख कर हमारी
तरफ आये और मेरे पैर छूए, कुछ है रान हो कर मैंने उन
े पुछा कक वोह कौन थे। उतहोंने
अपने बाप का नाम बताया और यह भी बताया कक जब एक दफा मैं गाुँव आया था तो वोह बहुत छोटे थे। क्योंकक पोस्ट ऑकफ
उ
मह ु ल्ले के नज़दीक ही है यहािं मैं पैदा हुआ था और
मेरा बचपन बीता था, यानी जट्ट मह ु ल्ला , इ
सलए मैंने उन लडकों के
बहुत लोगों की बात की और वोह लडके भी बहुत खश ु हुए। पोस्ट ऑकफ मास्टर और यह दो लडके, तीनों ही थे। उ ऑकफ
े आते वक्त मैंने उन तीनों को
वक्त लड्िू चाली
ाथ उ
मह ु ल्ले के
में एक पोस्ट
रूपए ककलो होते थे, पोस्ट
ौ रूपए दे ददए कक वोह इन
े मुिंह मीठा कर लें ।
वोह खश ु हो गए और हम गगयान की दक ू ान की तरफ चले गए। गगयान ने हाथ जोड कर हमें
त स री अकाल बल ु ाई। उ
कुलविंत के
ामने बातें करने
आने का वादा करके हम वाप हमारे पा
वक्त न्ज़आदा बातें नहीिं हो
कीिं क्योंकक गगयान चतद
े कुछ खझझक रहा था। पािंच समिंट बातें करके और रात को घर आ गए।
न्ज़आदा ददन नहीिं थे। ननमटल पुरानी फोटो का एक बॉक्
ले कर आ गया, न्ज
में पुरानी फोटो थीिं। मैं चाहता था कक मुझे मेरी उन ददनों की फोटो समल
के जो बचपन में
मैंने दादा जी के
ाथ फगवाडे जा कर खखचवाई थी लेककन यह समल नहीिं रही थी । उ
वक्त मैं छै
ाल का हूुँगा और मेरे पपता जी ने मेरी फोटो माुँगी थी। हमारी माुँ न्ज
ात
को हम बीबी कहते थे, उन की फोटो काफी थीिं। माुँ के तो मैंने बहुत कुछ सलखा है लेककन उन के आखरी
ाथ बीते बचपन के ददनों के बारे में
ालों के बारे में नहीिं सलखा जो अब ही
याद आया है ।
ोचता हूुँ कुछ कुछ सलख दुँ ।ू यूुँ तो कभी कभी इिंडिया हम आ ही जाया करते
थे और माुँ के
ाथ बहुत अच्छे ददन बीतते थे। हमेशा हम या तो अक्तूबर नव्वम्बर में
आया करते थे, या फरवरी के शुरू में , क्योंकक इन ददनों में मौ म बहुत अच्छा होता है । ब ु ह को माुँ, ननमटल की
जटरी के पा
एक चारपाई पर बैठा करती थी और पा चारपाई पर माुँ के पा
ब ु ह की धप ु का मज़ा लेने के सलए दीवार के
ाथ
ही एक लकडी का परु ाना बैंच होता था, या तो हम
ही बैठ जाते और या बैंच पर। पा
ही एक गाये बिंधी होती थी, पा
ही एक चारा काटने वाली मशीन और इ
के एक ओर तकरीबन एक मरला प्लाट में ननमटल
ने
ादे वातावरण में मुझे बहुत खश ु ी समलती थी। कभी
न्जज़याुँ बीजी होती थीिं। गाुँव के इ
कभी यहािं बैठ कर गतने भी चू ते रहते । न्जतनी दे र हम गाुँव में रहते, हम स्ट्रै थे और वाप ही स्ट्रै
फ्री होते
इिंगलैंि आते ही घर में ककतने ही बबल आये होते, न्जन को दे ख कर कफर वोह
शरू ु हो जाता। इ
सलए यह ददन हमारे सलए मज़ेदार हॉसलिे होती थी।
मझ ु े अच्छी तरह याद नहीिं, शायद 1995 की बात होगी। हमारे बडे भाई अफ्रीका
े इिंडिया
आये थे । कुछ ददन इिंडिया रह कर उतहोंने माुँ का पा पोटट बनाया और अफ्रीका जाते माुँ को भी
ाथ ले गए। एक
भी समले। मुझे माुँ के
मय
ाल वोह कीननया में रही और माुँ की खादहश थी कक वोह मुझे
िंदेशे बहुत आ रहे थे कक मैं उ
को बुला लुँ ।ू बडे भाई माुँ को भेजने
में कुछ आनाकानी कर रहे थे। कफर मैंने उन को टे लीफोन ककया कक मैं माुँ के सलए दटकट भेज रहा हूुँ और कफर मैंने दटकट भेज ददया। न्ज कुलविंत और इ
ददन माुँ ने लिंिन हीर्थ्ो आना था, मैं
िंदीप, बडे भाई के बेटे, यानी अपने भतीजे के घर पहुुँच गए। हम ने प्रोग्राम
तरह बनाया हुआ था कक
िंदीप एयरपोटट पर माुँ के एयरपोटट पर पहुिंचने की
ारी
वीडियोग्राफी करे गा। एअरपोटट पर चार पािंच वजे शाम का वक्त था। मेरे बडे भाई का बेटा दशटन यानी मेरा भतीजा, उ कौर और जीजा, भैया
की पत्फनी और उनके तीनों बच्चे और उधर मेरी बहन
ेवा स हिं , भानजी
द ु शटन, उ
के पनत तरलोच और उन की दोनों
बेदटयाुँ, और इधर मेरा भािंजा तेन्जिंदर अपनी पत्फनी और दो बेदटयों के ारा पररवार इकट्ठा हो जाने बे ब्री
े हो रहा था। कस्टम
रु जीत
ाथ आया हुआ था।
े एअरपोटट पर खूब रौनक थी और बीबी के आने का इिंतज़ार े बाहर आती हुई बीबी के आते ही
बीबी कुछ है रान हुई पहले तो अजीब घबराहट
े
ब ने तासलयाुँ बजा दी।
ब की ओर दे खती रही और जब पहले मैं
बीबी के गले लगा तो वोह बहुत खश ु हो गई और बार बार कह रही थी, ” गरु मेल ! तन ू े बहुत अच्छा ककया मुझे बुला कर, तुझे हमेशा याद रहें गे ), मेरे
ौ गाये का पुतय लगे “, (माुँ के यह लफ्ज़ मुझे
ाथ बातें करने के बाद धीरे धीरे
ब नें बीबी का पपयार सलया।
जीजा जी
ेवा स हिं बहुत हिं ने वाला है और वोह बीबी को बातें कर कर के हिं ाने लगा। इ
ब की पवडिओ
िंदीप ने बनाई। हुँ ते हुँ ते हम गाडडयों में बैठ कर भतीजे दशटन के घर की
ओर जाने लगे। जब घर आये तो आते वक्त ही बीबी अपने बैग
े टौकफयाुँ ननकालने लगी जो तकरीबन एक
ककलो होंगी। हमारी माुँ यानी बीबी बहुत ही भोली थी। आज भी मुझे उ मह ू
होता है , कक कै े हम को वोह बच्चों की तरह टौकफयाुँ बाुँट रही थी और
बीबी को हिं ा रहा था। े
ेवा स हिं
ेवा स हिं की एक बात अभी तक मझ ु े याद है , जब बीबी बैग
टौकफयाुँ ननकाल रही थी तो पटारी
का वोह भोलापन े
ेवा स हिं बोला था, ” बीबी ! हमें तो ऐ ा लगा था कक तुम
ािंप ननकालने लगी हो और तुम ने तो टौकफयाुँ ननकाल ली “, इ
भी के सलए जो बीबी अफ्रीका
े लाइ थी, उ ी वक्त उ
बीबी की खश ु ी का कोई दठकाना नहीिं था, जो उ तो मझ ु े याद नहीिं लेककन खाना खाने के बाद
ने दे ददए।
की बातों
पर खब ू हुँ े थे।
ारा पररवार दे ख कर
े ज़ादहर हो रहा था।
ारी बातें
भी अपने अपने घरों को चले गए और मैं
िंदीप और कुलविंत बीबी को ले कर अपने शहर की ओर चल पडे। तीन घिंटे का
फर था जो
बातें करते करते पता ही नहीिं चला और हम अपने घर पहुुँच गए। अतधेरा हो चक् ु का था और बीबी घर में ऐ े घूम रही थी जै े वोह पहले ही यहािं रहती हो। बेटे के घर आने की माुँ को ककतनी खश ु ी होती है , यह माुँ को दे ख कर मह ू थे, इ
सलए दध ू का एक एक कप सलया और
हो रहा था। खाना तो हम खा कर आये ाथ में कुछ और सलया जो याद नहीिं। बीबी
ने बहुत बातें कीिं और बार बार यह ही कह रही थी कक मैंने अफ्रीका
े बुला कर बहुत अच्छा
ककया। क्या हुआ होगा अफ्रीका में मुझे पता नहीिं लेककन लगता था जै े मेरे पा वोह बहुत ररलैक्
हो गई हो। हमारा घर कोई बडा नहीिं है लेककन इतना छोटा भी नहीिं है
और हम ने माुँ के सलए छोटा बैि रूम ररज़वट कर ददया और कुलविंत ने काम
आ कर
ारा
े कुछ छुट्दटयाुँ ले रखी थीिं ताकक बीबी घर में
हम दोनों काम पर जाते थे। मैंने
ुबह काम पर जाना था, इ
ामान यहािं ही रख ददया। ब कुछ जान ले क्योंकक
सलए जल्दी
ो गया लेककन
बीबी और कुलविंत दे र रात तक बातें करती रहीिं। द ू रे ददन अपनी ड्यूटी खतम करके आया तो दोनों
ा
बहू बातें कर रही थीिं और अब मैं भी उन में शासमल हो गया। कुलविंत ने
बताया कक बीबी के पा
अच्छे कपिे नहीिं थे। उ ी वक्त हम बीबी को ले कर कपडों की
दक ू ान में चले गए। याद नहीिं ककतने कुलविंत का तो काम ही कपडे
ट ू खरीदे लेककन यह
ीने का होता था, इ
ब कपडे बीबी की प िंद के थे।
सलए घर आते ही कुलविंत ने बीबी का
नाप सलया और द ू रे ददन
ूट तैयार करके बीबी को पहना ददया। परफैक्ट कफदटिंग दे ख कर
बीबी बहुत खश ु थी। धीरे धीरे कुलविंत ने बीबी के बीबी को ररकतेदारों
भी
ूट
ी ददए। अब हम बबज़ी हो गए थे। हर वीकैंि पर
े समलवाने चले जाते। जब बीबी अफ्रीका
कमज़ोर लगती थी, शायद अफ्रीका के मौ म की वजह
े आई थी तो बीबी बहुत
े होगा और अब बीबी का रिं ग ननखर
रहा था और अिंग्रेजों जै ा रिं ग हो रहा था क्योंकक बीबी शुरू
े ही रिं ग की बबलकुल गोरी थी।
ददन बहुत अच्छे बीत रहे थे और इधर बीबी की दवाई खतम होने को थी क्योंकक 1965 में उ े स्ट्रोक हुआ था और तब
े उ
को जलि प्रैशर की दवाई रोज़ाना लेनी पडती थी। जब मैं
दवाई के सलए अपने िाक्टर समस्टर ररखी के पा बीबी का इिंगलैंि में इिंशोरें
इिंशोरें
े बीबी को हस्पताल जाना पढ़ गया तो
500 पाउिं ि रोज़ाना होगी और कहा कक बीबी को अफ्रीका
करा के आना चादहए था ।
ुन कर मैं घबरा गया और वाप
अपनी बहन को टे लीफोन ककया तो उ दे ने
ने इिंकार कर ददया क्योंकक
कािट नहीिं था और वोह दे श की शहरी नहीिं थी। समस्टर ररखी ने
यह भी हमें बता ददया कक अगर कक ी वजह हस्पताल की फी
गया तो उ
ने भी अपने िाक्टर
े इिंकार कर ददया। कुछ ददन ऐ े ही
ोचते
े आते वक्त
आ गया। कफर मैंने
े पूछा और उ
ने भी दवाई
ोचते बीत गए। एक ददन हम एवीएन
ेंटर में शॉपपिंग कर रहे थे कक स्टोर में हमारे िाक्टर की पत्फनी हमें समल गई। दोनों पनत पत्फनी िाक्टर थे। हम ने उ
को अपनी
मस्या बताई तो वोह कहने लगी कक वोह ररस्क ले
लेगी और दवाई दे दे गी। हम खश ु हो गए क्योंकक हमारी हम बीबी को सम ेज़ ररखी की दवाई दे दी बन्ल्क उ उ
जटरी में ले गए। उ
मस्या दरू हो गई थी। द ू रे ददन
ने बीबी का जलि प्रैशर चैक ककया और
को आयरन टे बलेट भी दे दी क्योंकक बीबी की आुँखों को दे ख कर ही
ने बता ददया कक उ
का आयरन लो लगता था।
एक ददन मेरी बहन और बहनोई
ाहब आये और बीबी को अपने पा
ले गए। कुछ हफ्ते
बाद हमारी बहन का टे लीफोन आया कक बीबी की दवाई खतम होने को थी और उन का िाक्टर दे नहीिं रहा था, इ के पा
गया, उ
को
सलए मैं अपने िाक्टर
मस्या बताई और उ
े ले कर उतहें दे आऊिं। मैं अपनी िाक्टर
ने एक महीने की
प्लाई मुझे दे दी। दआ ु ई
ले कर मैं लिंिन बहन को दे आया। कुछ हफ्ते वहािं रहने के बाद बीबी का टे लीफोन आया कक मैं आ कर उ
को ले जाऊिं और एक रपववार को मैं बीबी को ले आया। ददन बहुत मज़े
े
बीत रहे थे और हम तो काम पर होते थे और बीबी खद ु ही अपना खाना गमट करके खा लेती जो कुलविंत बना कर रख जाती थी। मेरी सशफ्टें ऐ ी होती थीिं कक मैं कभी एक वजे घर आ
जाता और कभी शाम को चार बजे काम पर जाता, इ
सलए बीबी के पा
मेरा
मय काफी
बीतता था। जब मैं घर होता तो बीबी को खद ु ताज़ा खाना बना के दे ता। क्योंकक मुझे खाने बनाने का बहुत शौक है , इ
सलए मैं नए नए खाने बना कर बीबी को खखलाता।
बीबी को बाहर ले जाता। उ
को तो मैं कुछ ना बताता लेककन मेरा मक द उ
एक् र ाइज कराना होता था ताकक उ कोई
ाथ ही मैं की
का जलि प्रैशर किंट्रोल मे रहे । राणी परु में तो ऐ ी
मस्या है नहीिं थी क्योंकक गाुँव में तो यूुँ ही एक् र ाइज हो जाती थी। गसमटयों के
ददनों में कुछ महीने यहािं अच्छे लग जाते हैं और मैं और बीबी गािेन में बैठे फूलों का मज़ा लेते और जब बक्ष ृ पर ऐपल लगे तो बहुत छोटी
े ऐपल नीचे ज़मीन पर गगर जाते थे। बीबी एक
ी टोकरी में ऐपल इकठे करती रहती और कफर अपने
र पर रख के ककचन की ओर
आने लगती और मुझे बहुत पपयारी लगती। वोह बार बार हमें कहती कक हम ऐपल खाते क्यों नहीिं थे, तो हम हिं
पढ़ते कक इतने ऐपल कै े खाएिं।
ददन बीत रहे थे और
रदीआिं आ गईं। एक रात बहुत ठिं ि थी। घर में बैठे टीवी दे ख रहे थे।
मैंने दे खा बीबी का चेहरा अजीब
ा हो गगया था। वोह उठने की कोसशश करती लेककन उठ
नहीिं हो रहा था। कुलविंत भी घबराई
ी उठ कर बीबी की कलाई और हाथों की मासलश करने
लगी। हम घबरा गए कक ककया करें । अगर हम हस्पताल को टे लीफून करते तो उतहोंने पहले मैिीकल कािट और िाक्टर का नाम पछ ू ना था। अगर यह बताते कक वोह एक पवजटर है तो िाक्टर के बताये मत ु ाबक 500 पाऊिंि रोजाना का खचट था और हस्पताल में ककतने ददन लग जाते, यह भी कोई पता नहीिं था। हमें तो अपना घर बेचना पढ़ जाता। बीबी को जो हो रहा था, वोह तो हो ही रहा था लेककन लगता था, मैं भी गगरने वाला था।
ोच
ोच कर मैंने
समस्ज ररखी के घर टे लीफून कर ददया, हालािंकक मुझे ऐ ा नहीिं करना चादहए था। यह भी हमारी खकु मती ही थी कक टे लीफून समस्ज ररखी ने उठाया और मैंने अपनी
मस्य बताई।
समस्ज ररखी ने कहा कक वोह थोह्डी दे र बाद टे लीफोन करे गी। पता नहीिं उ
ने अपने पनत
े ककया बात की होगी कक पािंच समिंट में ही उ बोली, ” आप
का टे लीफोन मुझे आ गया। सम ेज़ रखी
ीधे हस्पताल ले जाइये और उन को यह बताइये कक हमारी िाक्टर सम ेज़
रखी है , उन को यह मत्त बताइये कक वोह पवजटर है , अगर पूछें तो कह दीन्जये कक यहीिं रहती है ” मैं और
िंदीप बीबी को
ीधे हस्पताल ले गए। भाग्य ने
नाम पुछा और ऐिसमट करके
ीधे बैि ररजवट कर दी। वोह
ाथ ददया, उतहोंने स फट िाक्टर का मय भी ऐ ा था कक हस्पताल
में न्ज़आदा इिंतज़ार नहीिं करना पडता था, आज तो कई कई घिंटे हस्पताल में ऐिसमट होने में
लग जाते हैं। बीबी को ऐिसमट करके हम घर आ गए और आगे के प्लैननिंग के बारे में लगे।
भी ररकतेदारों को मैंने टे लीफोन कर ददया । गीता का गगयान
ुनते आ रहे थे कक
झूठ बोलना पाप है लेककन कक ी अच्छे काम के सलये झूठ बोला जाए तो वोह
ौ
च के
बराबर होता है , और यह आज सम ेज़ ररखी ने हमारे सलए कर ददखाया। पता नहीिं उ कै े कीया, उ
ने बीबी का मैिीकल कािट ही बना ददया, न्ज
यहािं रही, हर तरह की मैिीकल की इ
ोचने
की वजह
ने
े जब तक बीबी
हूलत उ े समलती रही। यह िाक्टर इतनी अच्छी थी कक
ने मेरी प्राइवेट पैंशन लेने में भी बहुत मदद की थी । अब वोह अपनी बेटी के पा
रहती है और कभी कभी कुलविंत को समल जाती है और घर के
भी
दस्यों का हाल चाल
पछ ू ती है । सम ेज़ ररखी ने जो हमारे सलए ककया , वोह हम कभी नहीिं भल ू ें गे। चलता…
मेरी कहानी - 158 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 22, 2016 बीबी का हस्पताल में इलाज होने लगा। हर एक ककस्म के टे स्ट हुए और इलाज शुरू हो गया। कुछ ददन बीबी उदा थी हमारा काम। इ अपनी
रही क्योंककिं
के सलये मैं अपने
ारा ददन हम उ
के पा
ीननयर इिंस्पेक्टर के ऑकफ
नहीिं रह
कते थे, वजह
में गया और उ
को
मस्या बताई और कहा कक जब तक मेरी माुँ हस्पताल में रहे गी, तब तक मुझे लेट
सशफ्ट दे दी जाए। यह
ीननयर भी बहुत अच्छा था और इ
यह बहुत ही अच्छा था और उ
का नाम था समस्टर टरनर।
का चेहरा भी इिंडियन जै ा ददखाई दे ता था। इ
ने भी मेरी
मदद कर दी और बोला,” mister bhamra ! i will book you late shifts, and let me know when your problems are solved “, यह उ नहीिं हूुँ । बीबी 26 ददन हस्पताल में रही और इ ककया, भुआ ननिंदी और फुफड ने।
ब
के लफ्ज़ हैं जो अभी तक भल ू ा
दौरान
ब
े न्ज़आदा हमारा हौ ला बुलिंद
े पहले उतहोंने आगथटक जरूरतों का ही पुछा जो हम
को अब कोई जरुरत नहीिं थी। कुछ ददनों बाद ही बीबी के पा ददन रह
कता था।
ब ु ह
हस्पताल में कोई भी
ारा
े शाम तक मैं हस्पताल में रहता और शाम को कुलविंत और
कभी कभी रीटा आ जाती । बीबी को मैं लौंज में ले आता, यहािं टीवी होता था और बीबी के हाथों की एक् र ाइज के सलए कई कुछ रखा होता था जो एक न ट आ कर करवाती थी और कभी कभी मैं एक् र ाइज करा दे ता । इन
े उिं गसलयों और हाथों की एक् र ाइज हो जाती
थी। क्योंकक बीबी को समनी स्ट्रोक हुआ था, इ
सलए एक् र ाइज न्ज़आदा कराते थे। कभी
कभी हमारी छोटी बेटी रीटा की ननद चतनी आ जाती और चतनी बहुत अच्छी लडकी है और वोह बसमिंघम
ारा ददन बीबी के पा
े अपनी गाडी में आती थी। इ
रहती। के इलावा
बहादर ने तो आना ही था, और भी बहुत लोग रोज़ाना आते रहे । एक हफ्ते बाद बीबी की बैि एक ऐ े वािट में सशफ्ट कर दी गई यहािं बहुत ननराश थी क्योंकक उ
भी बूडी अुँगरे ज़ औरतें ही थीिं। यहािं आ कर बीबी
को अिंग्रेजी आती नहीिं थी। इ
में हिं ने की बात यह थी कक
बीबी का रिं ग गोरा होने के कारण वोह भी उन में गोरी ही लगती थी। जब वािट में बीबी को समलने आया तो एक गोरी बुदढ़या मुझे बोली कक वोह तो मेरी ममी को वाइट ही और वोह बीबी के क्योंकक
ाथ इ ी सलए अिंग्रेज़ी में बात करती थीिं। उ
मझती थीिं
ददन मैंने बहुत बातें कीिं
भी अुँगरे ज़ बुदढ़या बहुत बातें करने वाली थीिं। कफर मैंने किंघी उठाई और बीबी के
वालों में किंघी चला कर वालों का फैशन अुँगरे ज़ बुदढ़यों जै ा बना ददया।
भी बुदढ़या हिं
रही थीिं और बीबी को मख ु ातब कर के एक बदु ढ़या बोली, ” your son is very good “,
ददन बीत रहे रहे थे और बीबी धीरे धीरे अच्छी हो रही थी। 26 ददन बाद हस्पताल
े
डिस्चाजट हो जाने का िाक्टर ने हमें बता ददया। बीबी के कपिे ले कर मैं और कुलविंत हस्पताल पहुुँच गए और बीबी को घर ले आये। कुछ ददन बाद हमारी फैसमली िाक्टर सम ेज़ ररखी बीबी को दे खने हमारे घर आई और बीबी बहुत बातें कीिं। बीबी को सम ेज़ ररखी इतनी अच्छी लगीिं कक उ े एक गोल मेज पोश बना ददया और न्ज में गई, पहले तो सम ेज़ ररखी को गले
े
ने कुछ ही ददनों में क्रोसशये
ददन बीबी चैक अप्प के सलए िाक्टर की
े लगाया और कफर उ
जटरी
को मेज पोश दे ददया।
सम ेज़ ररखी भावुक हो गई और कहने लगी, ” आप ने तो मेरी माुँ की याद ददला दी जो बबलकुल आप जै ी है “,
जटरी
े बाहर आ कर बीबी िाक्टर की स फ़तों के पुल बाुँध रही
थी। एक दो महीने बाद चैक अप्प कराने के सलए िाक्टर की
जटरी में हम जाते ही रहते थे।
एक ददन इ ी तरह हम वेदटिंग रूम में बैठे थे। जै े बज़ुगों का तम ु ारा कौन
ा गाुँव है , इ ी तरह बीबी लोगों
ुभाव होता है पूछने का कक,
े बहुत बातें कर रही थी। एक बढ़ ू ा बहुत दे र
े बीबी की ओर दे ख रहा था, कुछ दे र बाद वोह अपनी
ीट
े उठा और बीबी के नज़दीक
आ कर बोला,” तू गचिंनत है ?”, बीबी है रान हो कर बोली, ” हाुँ मेरा मायके का नाम गचिंनत ही था “, वोह बोला, ” पहचाना मुझे ? मैं िीिंगरीआिं वाला अमर स हिं हूुँ, शरीके बीबी का चेहरा खखल गया और ऐ े बातें करने लगी जै े
े तेरा भाई “,
ब कुछ एक दम ढे री कर दे ना
चाहती हो। बीबी का मायका िीिंगरीआिं गाुँव था जो आदम परु के नज़दीक है । बीबी की शादी, पपता जी के
ाथ उ
मय हुई थी जब वोह स फट 14
ाल की थी जो उ
वक्त आम बात
थी। बीबी का नाम तेज कौर है लेककन कुछ कुछ मुझे भी पता था कक मेरे नननहाल में बीबी का नाम गचिंनत था। बीबी तो जै े एक दम बचपन में चली गई और हिं ने लगी। उधर रर ैप्शननस्ट गोरी उठ कर हमारे पा
ब कहाननयाुँ
आ गई और बोलने लगी कक प्लीज़
हम द ू रे लोगों को डिस्टबट ना करें । तब जा कर दोनों धीरे धीरे बोलने शुरू हुए। इ अमर स हिं एक दफा हमारे घर आया। तब मैंने भी उ स हिं बीबी के घरों में
ुना कर
के
के बाद
ाथ कुछ बातें कीिं। यह अमर
े ही था और दोनों बचपन में इकठे खेला करते थे। ककया इत्फफ़ाक है
कक बचपन के बाद बूढ़े हो कर समले और कफर भी पहचान सलया। ददन बीत रहे थे और बीबी मेरे
ाथ रह के बहुत खश ु थी। आठ नौ महीने हो गए थे। बीबी
बहुत खश ु थी। एक ददन एक ऐ ी बात हो गई, न्ज मैं एक दो बजे काम
ने बीबी को उदा
े आया तो बीबी रो रही थी। मैंने पुछा तो उ
इशारा कर ददया। है रान हुआ मैं ककचन में गया तो दे खा
कर ददया। एक ददन
ने ककचन की ओर
ारी ककचन धए ु िं
े काली हो चक ु ी
थी और एक तरफ कूडे वाला प्लान्स्टक का बबन जला हुआ था। कुछ कपडे भी जले हुए थे। ककचन की हालत बहुत खराब थी। यह भाग्य की बात ही थी कक
ारे घर को आग लग
कती थी क्योंकक यहािं मकानों में लकडी बहुत इस्तेमाल होती है । बीबी ने गलती प्लान्स्टक का िस्टबबन जलते हुए गै
े
कुकर पर रख ददया था और खद ु कोई काम करने
लगी और िस्टबबन को एक दम आग लग गई जो फैलती ही गई, पवचारी बीबी घबराहट में जो हाथ में आया उ
े आग बुझाने लगी जो उ
ने बुझा तो दी लेककन
ारी ककचन धए ु िं
े काली हो गई। यह बीबी ने मुझे बताया और मैंने बीबी को हौ ला ददया कक इ
में
घबराने की कोई बात नहीिं थी लेककन भीतर
े मैं भी िर गया था कक अगर कुछ हो जाता
तो बीबी कक
को तो अिंग्रेज़ी भी बोलनी नहीिं आती थी। जब
कुलविंत काम
को टे लीफोन करती क्योंकक उ े वाप
आई तो वोह भी दे ख कर िर गई और पहले बीबी को पुछा कक वोह
तो ठीक ठाक थी। बीबी को हम हौ ला तो दे रहे थे लेककन वोह बहुत िर गई थी। मैं और कुलविंत ने पहले ककचन में जो फ्रूट और कफर पानी गमट ककया, उ लगे। दे र रात तक हम
में
न्जज़यािं थीिं, उन को बाहर गािटन में फैंक ददया।
ोिा िाला और कपडों
फाई करते रहे और
हम पें ट ले आये और पें ट करके दो ददन में
े
ारी दीवारें और छत को
ब दीवारें और छत ारी ककचन पहले
ाफ़ करने
ाफ़ हो गईं। शननवार को
े भी बदढ़या बना दी। अब
बीबी खश ु हो गई। बात गई आई हो गई। उधर इिंडिया
े छोटे भाई ननमटल के खत आ रहे रहे थे कक हम बीबी को इिंडिया भेज दें और
इधर बीबी भी home sick होने लगी थी। हम बीबी को अपने पा लेककन राणी पुर वाले भी बीबी के बगैर उदा
ही रखना चाहते थे
थे क्योंकक बीबी को इिंडिया
े आये दो
ाल
होने को थे। बीबी अकेली इिंडिया जा नहीिं
कती थी और मुझे छुदटयािं बुक कराने के सलए
एक
ाल तक बीबी को और इिंतज़ार करना था। हमारे
ाल पहले एन्प्लकेशन दे नी थी, एक
गगयानी जी, न्जन के बारे में मैं पहले बहुत कुछ सलख चक् ु का हूुँ वोह अब टाऊन की द ु री ओर रहते थे। वोह अपने छोटे बेटे कुलविंत और उ छै महीने या
ाल बाद मैं उन
के पररवार के
ाथ रहते थे। कभी कभी
े समलने जाया करता था। एक दफा जब मैं उतहें समलने
गया तो उतहोंने बीबी के बारे में पूछा तो बातों ही बातों में मैंने उतहें बताया कक बीबी इिंडिया वाप
जाना चाहती थी, तो गगयानी जी बोले कक उन का एक दोस्त इिंडिया जा रहा था और
अगर हम चाहें तो बीबी उ
के
ाथ जा
कती थी। मैंने गगयानी जी को पछ ु ा कक वोह कब
जा रहा था तो गगयानी जी ने उ ी वक्त अपने दोस्त को टे लीफोन ककया तो वोह आधे घिंटे में घर ही आ गया। अब उ
े हमारी बातें हुईं तो पता चला कक अभी उ
के इिंडिया जाने
में चार हफ्ते रहते थे। कहाुँ
े
ीट बुक कराई थी, पता लगने पर मैं ट्रै वल एजेंट के पा
गया और गगयानी जी के दोस्त का नाम ले कर उ जहाज़ में चादहए थी और हो बीबी की
के तो बीबी के पा
को बताया कक बीबी के सलए ही
ीट इ ी
ीट हो। यह भी चमत्फकार ही हुआ कक
ीट इ ी जहाज़ में गगयानी जी के दोस्त की पपछली रो में बक ु हो गई। घर आ
कर मैंने बीबी को बताया तो उ
का चेहरा खखल गया। अब तैयारीयािं शरू ु हो गईं। नए नए
कपडे बीबी के सलए आने लगे और कुछ हमारे ररकतेदार भी जब बीबी को समलने आते तो कोई
ूट दे दे ते, न्ज
े बीबी का
ूटके
वज़न बहुत ज़्यादा हो गया था। न्ज पर वज़न द की और उ
भर गया। दो हैंि बैग भी भर गए।
ूटके
का
ददन बीबी को ले कर एअरपोटट पर पहुिंचे तो चैक इन
ककलो ज़्यादा था और गोरी बहुत पै े मािंग रही थी। कफर मैंने कुछ रे कुएस्ट को बताया कक बीबी स्ट्रोक
े ररकवर हुई थी और इ
हैं। गोरी ने बीबी की और दे खा और कुछ बीबी को अलपवदा कहने के सलए
ी
में ज़्यादा टॉयलेटरीज़ ही
ोच कर ओके कर ददया। एक दफा कफर आज
भी हाज़र थे ।
रहे थे। यूिं ही बीबी जहाज़ की ओर जाने लगी,
भी हिं
हिं
कर बीबी के
ाथ बातें कर
ब ने उ े बाई बाई ककया और
भी अपने
अपने घरों की ओर चल ददए । बीबी इिंडिया पहुुँच गई थी। गाुँव में ही वोह ज़्यादा खश ु थी और ननमटल भी उ खखयाल रखता था। इ
के बाद एक दफा कफर हम इिंडिया गए। बीबी के
ाथ बहुत बातें
करते रहते। अब बीबी पहले जै ी नहीिं थी, एक तो उम्र,द ू रे कमज़ोरी ने उ बहुत अ र िाला था। चलने में वोह ऐ ी थी जै े गगर जायेगी। पकड कर उ
को मकान के इदट गगदट
ुबह
का बहुत की स हत पर
ुबह मैं बीबी का हाथ
ैर कराता ताकक टािंगों में ताकत रहे। दवाई का
खखयाल ननमटल बहुत रखता और कभी कभी जलि प्रेशर चैक करता रहता। बीबी की एक स फत थी कक वोह दवाई का बहुत गधयान रखती थी, एक ददन भी सम सलए उ
नहीिं करती थी, इ ी
का जलि प्रेशर नॉमटल रहता था। रात के वक्त जब तक टीवी दे खते थे,
कमरे में बैठे रहते थे और जब
ोने का वक्त होता तो कोई ना कोई बीबी को उ
भी बडे के
ोने
के कमरे में ले जाता। एक दो दफा बीबी रात को टॉयलेट जाती थी, जो पािंच छै गज़ की दरू ी पर ही थी। एक ददन बीबी टॉयलेट जाते हुए गगर पढ़ी और उ
के मुिंह पर चोटें लगीिं।
भी
कफक्रमिंद थे कक ककया कीया जाए। और तो कुछ उपलभ्द नहीिं था, मेरे ददमाग में एक आइडिया आया और ननमटल को कहा कक क्यों ना बीबी के सलए कु ी
े एक कमोि ही बना
दें और बीबी ठिं िी रात को बाहर ना जाए। आडिया ननमटल को भी प िंद आया। दोनों भाइयों ने एक कु ी की
ीट में एक गोल आकार
े कुछ दहस् ा एक छोटी आरी
े काट ददया और
उ
में प्लान्स्टक की बाल्टी कफक्
लेती और कफर
कर दी। अब बीबी अपनी चारपाई
े उठ कर पपछाब कर
ुबह को हम बाल्टी उठा कर टॉयलेट में िाल आते और बाल्टी को
े कु ी में कफक्
कर दे ते। अब कोई कफ़क्र वाली बात नहीिं थी।
शौच के सलए बीबी जाती तो उ
े
ोिे
े धो कर
ुबह को जब कभी
लवार का नाडा बािंधना मन्ु ककल हो जाता। कई दफा
परमजीत या कुलविंत बाुँध दे ती। कफर ऐ े ही एक ददन परमजीत और कुलविंत दोनों घर नहीिं थीिं और बीबी टॉयलेट गई हुई थी। मुझे मह ू
हुआ कक बीबी
े नाडा बाुँध नहीिं होता था,
तब मैंने बीबी को बोला कक मैं बाुँध दे ता हूुँ लेककन बीबी शमाट रही थी। मैंने कहा, ” बीबी इ में शमाटने की क्या बात है , तू ने हम नहीिं कर इ
ब को इतने वषों तक
ाफ़ ककया था, ककया हम यह
कते “, और मैंने नाडा बाुँध ददया और बीबी का हाथ पकड कर कमरे में ले आया।
के बाद बीबी का
िंकोच खतम हो गया और वै े तो परमजीत थी लेककन कभी कभी मैं
भी यह कर दे ता। जब हम भारत
े वाप
इिंगलैंि को आने लगे तो बीबी ने कुलविंत को आशीवाटद ददया और
कहा भगवान ् तुम्हें पोते दें । जै े भारत में हर कोई बेटा ही चाहता है ,इ लडके की खव ु ादहश ही थी। यह बात कुलविंत ने उ
वक्त मुझे बताई, जब हमारे घर में ऐरन
पैदा हुआ था। एक तो बीबी ने आशीवाटद दी थी, द ू रे ददली बिंगला ाहब की पररक्रमा करते
मय कुलविंत को मह ू
तरह माुँ को भी
ाहब गुरदआ ु रे में ननशाुँ
हुआ था कक उ
को पोते की दात्त समलने
वाली थी। अब भी बहुत दफा कुलविंत बीबी को याद करके यह बात करती है । हम इिंगलैंि आ गए थे। और एक ददन ननमटल का खत आया कक बीबी हमें छोड गई थी। बीबी को कफर अटै क हुआ था और चारपाईं पर ही दुःु ख उठा रही थी। ननमटल और परमजीत ने बीबी की बहुत
ेवा की लेककन अब आखरी वक्त आ गया था और हमें छोड कर चली गई।
माुँ की न्ज़तदगी के आखरी ननमटल फोटो वाला बॉक् ढूतढ रहा था। इन में
फर को सलख कर मैं कफर उ ी बात पर आ जाता हूुँ, जब
ले कर आया था और मैं उन फोटो में
े अपनी बचपन की फोटो
े कुछ फोटो मैंने बीबी की उठा लीिं और एक बहुत पुरानी फोटो हम
तीनों भाइयों की समल गई जब हमारा मकान बन रहा था। मैं और बडे भाई आधी बनी हुई दीवार के पा
खडे थे और ननमटल के
ाल का होगा और मैं उ
र पर पािंच छै ईंटें रखी हुई थीिं, तब ननमटल छै
वक्त चौदह पतद्ह
ात
ाल का था। कुछ दे र बाद ननमटल कुछ और
फोटो ले के आया, न्जन में मेरी वोह बचपन की फोटो भी समल गई लेककन अफ़ ो यह है कक वोह फोटो अब भी मुझे समल नहीिं रही। हो
कता है इिंडिया
की बात
े आते वक्त राणी
पुर में ही कहीिं रख ली होगी या यहािं ही कहीिं हो लेककन समल नहीिं रही। ज़्यादा वक्त हमारे पा
नहीिं था क्योंकक शादी में
इिंगलैंि आने
समलत होने के सलये ही हम आये थे।
े एक ददन पहले मैं रात को गगयान के घर चला गया। जाते ही मैं उ
दे ख कर हिं
को
पढ़ा और बोला,” बई गगयान चतद !जब भी तुझे रात को समलने आता हूुँ, तू
अिंगीठी के पा
ही बैठा होता है “, गगयान चतद हिं
पढ़ा और बोला,” ककया करें गुरमेल
ाली ठिं ि ही नहीिं जाती “, कोई दो घुँटे हम ने बातें की और हर वक्त हमारी वोह ही पुरानी यादें होती थीिं और खा
कर मास्टर हरबिं
स हिं की,” गगयान चतद !यह वनत कौन
ी
कफल्म है “, और मेरा कहना, ” मास्टर जी यह वनत कफल्म नहीिं है , यह गलत छप गया है , यह वचन कफल्म है ” और मास्टर जी को गाना ाथ, मेरे
ुनाता,जब सलया हाथ में हाथ, ननभाना
जना आिं आिं आिं , दे खो जी हमें छोड ना जाना, यह
ाथ कभी ना छोटे चाहे
दकु मन बने ज़माना, दे खो जी ददल तोड ना जाना। कुछ दे र के बाद मैं आ गया और हम अमत ृ र पहुुँच कर जहाज़ में बैठे अपनी चलता…
ौतेली मातभ ृ सू म की तरफ उड रहे थे।
ुबह को
मेरी कहानी - 159 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 25, 2016 मिंदीप की शादी दे ख कर हम वाप ज पविंदर वाप
आ गए थे। पोते ऐरन की उम्र एक
ाल होने पर
काम पर चले गई थी क्योंकक बच्चे की परवररश के सलए माुँ को एक
ाल
की छुटी समल जाती थी। अब कुलविंत और मैं समल कर पोते की परवररश में मगन हो गए। छोटे बच्चे की दे ख भाल करना भी वक्त तो लेता ही है लेककन इ
में मज़ा भी बहुत आता
है । बार बार कपडे बदलना, बच्चे का बार बार दध ू ननकालना और कभी उ इ
े भी बडा काम बार बार उ
जयतीत हो जाता था। में िाल कर
को
ाफ़ करके नापी बदलना, इ
में ही
का रोना और ारा ददन
ारा ददन कपडे मशीन में धल ु ते रहते और कफर इन कपडों को ड्रायर
ख ु ाना और बाद में इन कपडों को प्रै
लेककन नए कपडे पहन कर ऐरन खखलौना
करने में
ारा ददन बतीत हो जाता था
ा लगता जै े खखलौनों की दक ू ान में प्लान्स्टक
की िौल होती हैं। मैं तो ब्रेकफास्ट ले कर लाएब्रेरी में कुछ घुँटों के चले जाता था लेककन कुलविंत की ड्यूटी तो फुल टाइम थी और वै े भी कुलविंत को बच्चों क्योंकक इ अभी उ
ब
े बडी बात कुलविंत इ
े बहुत पपयार है । अब तो उ
को ऐिंजौए करती थी।
की स हत में भी फकट पढ़ गया है
उम्र में तो यिंू ही शरीर का ग्राफ नीचे की ओर आने लगता है लेककन उ के शरीर में ताकत थी। ऐरन को
ुला कर कुलविंत वूल
कािीगन बुनती रहती। कुलविंत को तो यूिं ही बहुत शौक है इ
े नए नए डिज़ाइन के
तरह का और कक ी भी
ररकतेदार के घर नया बेबी आता है तो उ ी वक्त बुनना शुरू कर दे ती है , यह उ है । अब उ
को जोडों का ददट है लेककन अभी भी इ
वक्त
की लगन
उधेड बन ु में लगी ही रहती है ।
मुझे याद है जब पह्ले ददन ऐरन अपने पैरों पर खडा हो कर चलने और गगरने था लगा तो हम बहुत खश ु थे। पहले बच्चे
े यूिं भी बहुत पपयार होता है । नए नए खखलौने हम लाते ही
रहते थे। ऐरन कुछ और बडा हुआ तो एक दक ू ान ढोल ला ददया। ढोल
तरह की पीिंघें,
ा
को दे ख कर हम तासलयािं वजाते रहते। ददनबददन ऐरन बडा हो
को बाहर पाकट में ले जाने लगे थे यहािं बच्चों के खेलने के सलए तरह
ी ौ और घूमने वाले न्स्विंग थे। हम ऐरन को हर जगह बैठाते और वोह
एतजॉय करता। और भी बहुत बचे होते थे। स्लाइि पर जाने को
के सलए बहुत ही छोटा
े ऐरन बहुत खश ु था और गले में िाल कर कमरे के इधर उधर घूमता
ढोल वजाता रहता और उ रहा था और हम उ
े हम ने उ
ाथ ले कर ऊपर चढ़ जाता और कफर उ
को स्लाइि
े वोह िरता रहता था, मैं उ े नीचे जाने को कहता। एक
दफा उ
ने ककया और कफर उ
का िर खतम हो गया।
और द ु री तरफ कुलविंत ऐरन को बबठा दे ती और मैं उ बहुत हिं ता और खश ु होता। ज़्यादा खश ु ी उ
ी ौ पर एक तरफ मैं बैठ जाता को ऊपर नीचे झूटे दे ता और वोह
को तब होती थी जब हम आइ क्रीम लेने
जाते। क्योंकक अब हम दोनों समआिं बीवी काम बबताने के सलये पोता
े रुख त हो गए थे, इ
हाई हो रहा था। उ
ग्रप ु में जाया करती थी, इ वीरवार को कुलविंत अपने
सलए हमारे सलए भी
मय
मय कुलविंत क्योंकक दो ददन अपने हमजोली
सलए ज पविंदर स फट तीन ददन ही काम करती थी। बध ु वार और ेंटर जाया करती थी, इ
े उ
को भी अपनी
मज़े करने का वक्त समल जाता था। ज पविंदर ने हमेशा कुलविंत का
खखओिं के
िंग
ाथ ददया और उ
को
भी ऐनजौये करने का वक्त समल जाता था। एक ददन गगयानों बहन का बेटा ज विंत हमारे घर आया और बोला,” मामा ! एक हौसलिे कैं ल करने की वजह
स्ती हौसलिे समल रही है क्योंकक चार लोगों के अपनी
े यह
स्ते में समल रही है और एक हफ्ते की है , अगर आप
का पवचार है तो बुक करा लुँ ,ू वरना यह हाथ भी आ गई और
े ननकल
कती है “, कुछ दे र बाद ज पविंदर
ुन कर बोली कक वोह छुटीओिं का इिंतजाम कर लेगी और ऐरन को
की हम को कोई गचिंता नहीिं है , हम को यह चािं बोल ददया कक वोह बक ु करा ले। ज विंत ननउ क्रॉ
सम
िंभालने
नहीिं करना चादहए। ज विंत को हम ने हस्पताल में काम करता था और अब
ररटायर हो कर भी काम कर रहा है । हस्पताल में ज विंत का काम न्जतनी भी मशीनें हैं, जै े एक् रे एमआरआई स्कैन और ऐ ी ही अतय मशीनों को नुक् इ
पडने पर ठीक करना है ।
सलए क्योंककिं हस्पताल में नई नई मशीने आती रहती हैं, उन को
ीखने की ट्रे ननिंग के
सलये यूपीन दे शों में जाना ही पडता रहता है और इ ी तरह थिट वल्िट किंट्रीज़ में हस्पतालों में मशीनों की ट्रे ननिंग दे ने के सलए भी जाता ही रहता है । वोह तो दनु नआिं ऐ े घम ू ता रहता है जै े हम इिंडिया में घम ु ते थे। उ वोह गाडी भी राइट हैंि सलख रहा हूुँ, उ है सलिे की
की इ
ाइि पर आ ानी
नॉलेज का हम को बहुत फायदा होता था क्योंकक े ड्राइव कर लेता था। न्ज
वक्त की बात मैं
वक्त किंपयूटर का मुझे कोई गगयान नहीिं था और ज विंत तो हर वक्त
स्ती िील दे खता ही रहता था।
दो ददन बाद ही ज विंत ने घर आ कर हमें बता ददया कक हॉसलिे बुक हो गई थी और यह पुतग ट ाल के हॉसलिे रीजॉल्ट ALGARVE में थी और मज़े की बात इ किंपनी वालों ने हमें कार भी फ्री में दे नी थी। पुतग ट ाल में कार
में यह थी कक हॉसलिे
डक के दाईं ओर चलती है
और ज विंत के सलए यह कोई बडी बात नहीिं थी। ज विंत और उ
की माुँ गगयानो दोनों ने
जाना था क्योंकक ज विंत और उ
की पत्फनी के दरसमयान कुछ अनबन चल रही थी और
इधर हम दोनों ने जाना था । यह हॉसलिे
ैल्फ केटररिंग भी थी यानी अगर हम चाहें तो
अपना खाना जब जी चाहे खद ु भी बना
कते थे और उतहोंने ककचन भी हम को दे नी थी
न्ज
कुकर और कफ्रज मौजद ू थे । वै े तो यहािं हम ने
में खाना बनाने के
भी बतटन गै
ठहरना था, यह काफी बडा होटल था और algarve तो
ारा होटलों
े ही भरा था लेककन
कफर भी हम ने कुछ म ाले शीसशयों में भर सलए ताकक हम अपने खाने भी बना कर आलू और पपआज के पराठे । छोड आया। दटकट सलए और द
ूटके
तैयार हो गए थे और
िंदीप हमें रे लवे स्टे शन पर
समिंट में ही ट्रे न आ गई। ट्रे न में बैठे ही थे कक आधे घण्टे
में हम बसमिंघम ट्रे न स्टे शन पर पहुुँच गए, यहािं
े हम ने द ु री ट्रे न ईस्ट समिलैंि एअरपोटट
के सलए लेनी थी। प्लेट फ़ामट बदल कर हम द ु री ट्रे न में बैठ गए न्ज एअरपोटट पर पहुिंच ददया। बता दे ना चाहता हूुँ कक उ नैशनल ऐक् प्रै
कें, खा
ने जल्दी ही हमें
मय यह एअरपोटट हमारी ब
ने खरीद ली थी, अब का मुझे कोई पता नहीिं कक इ
किंपनी
का मालक कौन है ।
चैक इन काउिं टर पर हम तकरीबन दो घुँटे पहले पहुुँच गए थे। पा पोटट ददखाए, लेबल लगाए गए, बोडििंग कािट और
ामान की र ीदें लीिं और
ामान चले गया, अब हम फ्री थे और
एअरपोटट की दक ु ानों पर जाने लगे। यह एअरपोटट इतनी बडी नहीिं थी, अब तो शायद बहुत बडी हो लेककन उ
मय कोई खा
बडी नहीिं थी। लाउिं ज में घम ु ते घम ु ते एक कैफे में बैठ
गए और चाय का कप्प कप्प सलया। अब अुँधेरा होने लगा था और फ्लाइट निंबर की अनाऊिं मैंट होने पर हम अपनी फ्लाइट की ओर जाने लगे। आखखर में प्लेन के भीतर जाने लगे, यहाुँ दो एअर होस्टै दे ख दे ख कर
मुस्करा कर वैलकम कर रही थीिं। एक एअर होस्टै
ीटों की ओर इशारा कर रही थी। अपनी अपनी
पवराजमान हो गए।
बोडििंग कािट
ीट पर जल्दी ही हम
भी यात्री आ जाने पर ऐरोप्लेन का दरवाज़ा बतद कर ददया गया और
इिंन्जन ऑन हो गया। मैंने जहाज़ के दोनों तरफ नज़र घम ु ाई, दे खा, इ इिंडियन थे और शेष गोरे ही थे। हर कोई अपने अपने पररवार
प्लेन में हम ही
े बातें करने में म रूफ था
लेककन बहुत शान्तत का वातावरण था। ऐरोप्लेन चलने लगा, रनवे पर लाइटों जै ी रौशनी थी जो दे ख कर
े दीप माला
ुतदर नज़ारा लगता था। कोई एक मील रनवे पर चल कर
ऐरोप्लेन खडा हो गया। कुछ दे र के बाद इिंन्जन की स्पीि तेज और तेज होने लगी और कफर एक दम जहाज़ तेजी
े दौड पडा और कुछ ही दे र में ऊपर उठ गया और
ही मानों में
हमारे पैरों तल्ले ज़मीिंन खख क गई और समनटों में ही हम बहुत ऊपर उडते जा रहे थे। ने
ीट बैल्टें खोल दी थीिं और गोरे गोरीआिं डड्रिंक ऑिटर कर रहे थे। मैं और ज विंत ने भी
ब
डड्रिंक ऑिटर ककये और एअर होस्टे गया जो
हमारे आगे रख गईं। कुछ दे र बाद रात का खाना भी आ
ारा इिंन्ग्लश मैतयू के मुताबबक ही था और बहुत स्वाददष्ट था क्योंकक हम पहले
ही इ
खाुँने के आदी थे। कुलविंत और गगयानों ने वेन्जटे ररअन सलया था। मैं कभी कुलविंत
की ट्रे
े कुछ ले लेता और कभी कुलविंत मेरी ट्रे
े मज़ी के मत ु ाबबक उठा लेती। मज़े
खाया और बाद में एक एक कप्प कॉफी का सलया। तीन घण्टे का यह
े
े
फर था और पता ही
नहीिं चला कब हम फैरो एअरपोटट पर लैंि होने वाले थे। “लेडिज़ ऐिंि जैंटलमैन,कृपा अपनी पेदटयािं बाुँध लें, हम फैरो एअरपोटट पर लैंि होने वाले हैं ”, कसलक्क की आवाज़ रौशननयों
ुन कर हर तरफ कसलक्क
ुनाई दी। अब हम फैरो शहर के ऊपर उड रहे थे और नीचे लाखों
े दीपमाला जै ा नज़ारा ददखाई दे रहा था जो बहुत मनमोहक था।
अब जहाज़ नीचे आता आता रनवे पर आ गया और धीरे धीरे चलता हुआ एअरपोटट की में न बबन्ल्ििंग के पा
आ कर खडा हो गया। कुछ दे र बाद दरवाज़ा खल ु ा हम अपने अपने है ण्ि
बैग पकिे लाइन में खडे हो कर धीरे धीरे चलने लगे। कुछ समनटों में ही हम कस्टम हाल में पहुुँच गए, ऐ ा लगा जै े दरवाज़ा खोल कर द ू रे बडे कमरे में आ गए हों। कस्टम में कुछ नहीिं दे खा गया, स फट पा पोटट दे ख कर हमें जाने ददया। हॉसलिे किंपनी की ओर रीप्रीज़ेतटे दटव हमारे आगे आ गया और पहले उ उ
को यकीन हो गया कक उ
ने
ारे याबत्रयों की सलस्ट दे ख कर, जब
की सलस्ट के मत ु ाबबक
भी यात्री आ गए थे तो उ
अपने पीछे आने को कहा। कुछ ही समनटों में हम एक खडी कोच के पा अपना
ामान उ
े उन का ने हमें
आ गए और हमें
में रखने के सलए कहा गया जो हम ने रख ददया और कोच में बैठ कर
होटल की तरफ जाने लगे। आधे घिंटे में हम होटल के पा ामान ले कर होटल के आुँगन में आ कर
आ गए और अपना अपना
भी एक लाइन में खडे हो गए और एक एक
करके अिंदर जाने लगे। हमारे आगे अब एक बडा
ा काउिं टर था और इ
के पीछे कुछ
लडककयािं खडी थीिं जो पा पोटट दे ख दे ख कर होटल के कमरों की चाबबयािं हमें दे रही थीिं, ाथ ही वोह पा पोटट और दटकट ले कर लॉकर में रख रही थीिं न्जन के सलए हम को 25 यूरो दे ने थे। चाबबयािं दे ख कर
भी हिं
रहे थे क्योंकक यह पीतल
े बनी हुई थीिं और छै
ात इिंच इिंच लिंबी बहुत भारी थीिं। यहािं इिंडिया की तरह कोई कुली नहीिं था, और अपना अपना
ामान खद ु उठा कर चल रहे थे। होटल की कई मिंन्ज़लें थी और िायरै क्शन के
मत ु ाबबक दे खते दे खते हम अपने कमरों के पा
पहुुँच गए थे। हमारे दोनों के कमरे
ाथ
ाथ थे। ताला खोल कर हम कमरे के भीतर गए और कमरा दे ख कर रूह खश ु हो गई। टै ली,एक तरफ टॉयलेट और शावर रूम था और द ु री ओर छोटी
ी ककचन थी, न्ज
में गै
कुकर और कफ्रज थे, प्लेटें, एक बडा पैन
ाथ ही पानी के सलए ककचन स क िं था। कुछ फ्राई पैन, चमचे, कप्प जज़ी बनाने के सलए, चाय बनाने के सलए केतली और शूगर चाय पत्ती,
कुछ यूपीन म ाले और बहुत
ी अतय चीज़ें थीिं। दे ख कर घर जै ा ही लगा।
ामान रख
कर ज विंत और गगयानो बहन हमारे कमरे में ही आ गए। हम हिं ने लगे कक हमारे घर मेहमान आ गए हैं, इ
सलए चाय बनाते हैं। उ ी वक्त हम ने चाय बनाई और पीते पीते
बातें करने लगे। अुँधेरा काफी हो चक् ु का था और कुछ दे र के सलए बाहर घूमने का हम ने मन बना सलया। कमरों को ताले लगा के हम होटल के बाहर आ गए और होटलों का नज़ारा दे खने लगे। होटलों के बाहर खडे उन के कमटचारी हम को अिंदर आने के सलए कह रहे थे लेककन आज हम जहाज़ में ही खा कर आये थे। एक घिंटा घम ू कफर कर हम वाप आ कर
होटल में
ो गए।
ुबह उठ कर स्नान आदी
े ननपट कर पहले एक कमरे में ही हम ने चाय बनाई और बातें
करने लगे। चाय के कप्प पकिे हुए हम गैलरी में आ कर बाहर का नज़ारा भी दे खने लगे। दरू दरू तक होटल ही होटल ददखाई दे रहे थे और नीचे हमारे होटल के कम्पाउिं ि में दो शख् न्स्वसमिंग पूल की
फाई कर रहे थे और कुछ गोरे बैठे धप ु का आनिंद ले रहे थे। कुछ दे र
बाद हम कपिे बदल कर ब्रेकफास्ट के सलये होटल
े चल पडे। बाहर आये तो होटलों
े
खानों की महक आ रही थी। ज़्यादा होटल पच ट ीज़ लोगों के ही थे और कोसशश कर रहे थे ु ग कक कोई इिंन्ग्लश होटल समल जाए। रास्ते में एक गोरे
े पछ ु ा तो उ
ने बताया कक नज़दीक
ही एक स्कॉदटश का होटल है । क्योंकक इिंन्ग्लश और स्कॉदटश में कोई खा जल्दी ही हम उ
स्कॉदटश होटल में आ गए। हम है रान हुए कक वहािं
फकट नहीिं है ,
भी इिंन्ग्लश लोग ही
ब्रेकफास्ट खा रहे थे। उन की प्लेटों को दे ख कर इिंगलैंि का ब्रेकफास्ट याद आ गया। काउिं टर पर जा कर हम ने गोरी को वहीीँ हम दोनों के सलए बबग ब्रेकफास्ट का आिटर दे ददया और कुलविंत गगयानों बहन के सलए वेन्जटे ररअन ब्रेकफास्ट। उ और दे श के कक
टीम
ाथ फ़ुटबाल मैच चल रहा था और
वक्त टीवी पे इिंगलैंि का कक ी
भी मैच दे खने में बबज़ी थे। मुझे याद नहीिं
े यह मैच था लेककन जब कोई गोल होता तो हम तासलयािं बजाते। बहुत मज़े
ब्रेकफास्ट ले कर हम बाहर आ गए और ट्रै वल एजेंट के दफ्तरों पर लगे एक् कशटन की िील के पोस्टर दे खने लगे क्योंकक हम lisbon जाना चाहते थे जो पत ट ाल की राजधानी है । ु ग algarve, हॉसलिे िेन्स्टनेशन होने के कारण यहाुँ ट्रै वल एजेंट बहुत थे। बहुत जगह हम ने दे खा, आखखर एक जगह आ कर हम रुक गए। lisbon के िे दट्रप की कीमत 90 यूरो थी लेककन यह दो ददन बाद जानी थी। यहािं आम दक ु ानों वाले इिंन्ग्लश बोल लेते थे। हम भीतर
े
गए और ज विंत ने ही गोरी चलेगी और ड्राइवर के
े बात चीत की। उ
ने बताया कक कोच
ुबह पािंच बजे
ाथ एक गाइि होगा जो हर दहस्टॉररकल जगह का इनतहा
जानता
है । हम ने यह excursion बुक करा ली, पै े दे कर हम आ गए गए। कुछ दे र घूम घाम कर होटल में आ गए। कुछ ही दे र हुई तो एक गोरी एक फ़ाइल पकिे कमरे में आ गई जो कक ी कार हायर किंपनी नीचे आ गया और उ
े हमारे सलये कार ले कर आई थी। ज विंत उ के
ाथ बैठ कर कॉतट्रै क्ट
के
ाइन ककया और गोरी
ाथ होटल
े
े चाबी ले कर
पाकट में कार खडी कर दी। कुछ घिंटे आराम करके हम गाडी ले कर कक ी रै स्टोरैंट में खाने के सलए चल ननकले। क्योंकक गोरे हॉसलिे करने यहािं बहुत आते हैं, इ लेते कक कक
सलये हम उन
े पूछ
रै स्टोरैं ट की फ़ूि अनछ थी। एक गोरे ने एक पच ट ीज़ रै स्टोरैं ट के बारे में बताया ु ग
तो हम वहािं पहुुँच गए। मैतयू दे ख कर हम ने आिटर ददया जो गगयानों बहन और कुलविंत के सलए इलग्ग था और हमारे सलए इलग्ग। इ
में कोई शक्क नहीिं था कक खाना बहुत स्वाददष्ट
था। एक बात का बहुत मज़ा था और वोह था कक यहािं कोई भीड भाड नहीिं थी क्योंकक अब ऑफ
ीज़न था। रै स्टोरैंट मालक ने बताया कक जब पीक
ीज़न होता है तो
ब होटल भरे
होते हैं और अब क्योंकक छुदटयाुँ खतम हो गई थीिं, इ ी सलए अब ज़्यादा पें शनर लोग और ैल्फ ऐम्पलॉएि लोग ही आते थे। कुछ भी हो हमारे सलए तो यह अच्छा ही था क्योंकक यहािं भी खाते थे, मज़े
े खाते थे और बैठे गप्पें हािंकते रहते थे। खाना खा के हम वाप
कुछ दे र पविंिो शॉपपिंग की और कुछ सलया भी न्ज
आ गए,
पर अलगाव की पपक्चर होती थी। और
याद नहीिं ककया कीया लेककन रात को होटल के हाल में बहुत बडीया प्रोग्राम था। गाना बजाना, कॉमेिी और बच्चों की ऐिंटरटे नमें ट के सलए बहुत कुछ हो रहा था। दे र रात तक हम बैठे रहे और शाम का खाना एक इिंडियन रै स्टोरैंट में खाया जो बिंगाली था। यहािं तिंदरू ी रोदटयािं और े
ाथ में शुद्ध भारती खाने, ब
मज़ा ही आ गया। रात काफी हो चक ु ी थी और रै स्टोरैं ट
ीधे होटल में आ कर द ू रे ददन का प्रोग्राम बना कर
चलता…
ो गए।
मेरी कहानी - 160 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन August 29, 2016 ुबह उठे तो मज़े का
े हम चाय के
ाथ बबस्कुट ले कर बातें करने लगे और आज के प्लैन
ोचने लगे। अलगाव की टूररस्ट गाइि बुक तो हमारे पा
ही थी जो हम ने इिंगलैंि में
ही खरीद ली थी। हमारे ददमाग में तो बहुत कुछ दे खने को था लेककन यहािं आ कर पता चला कक एक हफ्ते में यह
ब मुन्ककल था। आज हम ने स फट अलगाव एररये को जानने के सलए
घूमने का प्रोग्राम बनाया। नक्शा दे खने में ज विंत बहुत एक् पटट है । एक रै स्टोरैंट में ब्रेकफास्ट ले कर हम ने पहले एक बहुत बडी ओपन माककटट दे खने का मन बनाया, इ माककटट का नाम भूल गया है । पुतग ट ाली भाषा में हर नाम हमें अजीब लगता था और इन को याद रखना भी आ ान नहीिं था। गाडी में पैट्रोल बहुत कम था, इ स्टे शन
े टैंक भरवा सलया। याद आया इ
सलए पहले एक पैट्रोल
ओपन माककटट का नाम शायद
ाओ झाओ था।
एक जगह भूले और कफर पूछते पूछते हम माककटट के नज़दीक पहुुँच गए। कार पाकट में गाडी खडी की और माककटट में दाखल हो गए। यह माककटट ऐ े ही थी जै े इिंगलैंि में स्टाल लगे होते हैं न्जन को हम पिंजाबी लोग फट्टे लगाना कहते हैं। टैंट जै े यह स्टाल काफी बडे थे और कपिे, लैदर के कोट, फैं ी गड् ु
यानी घर में इस्तेमाल होने वाली हर चीज़ थी, स फट
फकट इतना था कक पुतग ट ाली मठाईआिं और नमकीन कुछ इलग्ग थे जो हम ने पहले कहीिं नहीिं दे खे थे। बहुत पुतग ट ाली इिंन्ग्लश नहीिं बोलते थे लेककन हम उतहें इशारों
े
मझा दे ते थे।
जै े इिंडिया में मेले में जलेबीआिं पकौडे आददक बनाते हैं, इ ी तरह इ
माककटट में एक बहुत
बडीआ मठाई बनाते थे, यह ऐ े ही थी जै े इिंगलैंि में िोनट बनाते हैं। क्योंकक अलगारव एक टूररस्ट स्पॉट है , इ हम ने आिटर ददया और उ
सलए हर दक ु ानदार जानता है कक ग्राहक को कै े
वट करना है ।
पुतग ट ाली ने कुछ ही समनटों में प्लेटें भर कर हम को दे दीिं। खडे
हो कर ही हम खाने लगे और हर कोई बोल रहा था कक मज़ा ही आ रहा था। जो हम ने खाया, नाम तो हमें पता नहीिं था और खा कर हम आगे बडे। इ
माककटट में
न्जप् ी लोगों के स्टाल बहुत थे। यह न्जप् ी लोग ऐ े होते हैं जै े हमारे दे श में खानाबदोश लोग,न्जन के पा हैं। इन की
बैल गाडीआिं होती हैं और जगह जगह घूम कर अपनी उपजीपवका कमाते
त्रीओिं का पहरावा ऐ ा होता है जै े राजस्थानी औरतें घागरा पहनती हैं। जै े
इिंगलैंि और अतय दे शों में हर दे श के शहरी रहते हैं , इ ी तरह पत ट ाल में भी हैं और खा ु ग कर उन दे शों के लोग न्जन पर पुतग ट ीजों का राज था। ब्राज़ील भी कभी पुतटगाल के अधीन
था, इ सलए यह लोग ब्राज़ीसलयन जै े ददखाई दे ते थे और इन का रिं ग और शक्ल कुछ कुछ ऑस्ट्रे सलयन इिंडियन जै ा था। यहािं भी ऐ ा ही था कक कोई स्टाल वाला कीमत बताता तो हम कहते कक हम कम पै े दें गे और आखखर में वोह कीमत बहुत कम कर दे ते। यह ब्राज़ीसलयन औरतों का हमें जल्दी ही पता चल गया कक वोह बहुत हुसशआर थीिं। हम ने टे बल क्लाथ लेने थे जो जगह जगह ऐ ी औरतें बेच रही थीिं। इन की कीमत का हमें कुछ कुछ आइडिया हो गया था। अक् र वोह बारह या तेरह यूरो मािंगती थीिं और आखखर में यूरो में बेच दे ती थीिं। इ
ात आठ
माककटट में हम ने काफी कुछ खरीदा। आ मान में घने बादल आ
गए थे और कफर एक दम बाररश शुरू हो गई। भागते भागते हम एक टैंट के नीचे आ कर खडे हो गये जो एक इिंडियन का था जो वोह आप
ारी माककटट में एक ही था और उन की भाषा
में बोल रहे थे, बिंगाली लगते थे लेककन दहिंदी भी बोलते थे। मैंने उन
वोह अलगाव में ही रहते थे या कहीिं और तो उ
ने बताया कक वोह सलज़बन
हम है रान हुए कक वोह तीन घण्टे ड्राइव करके आये थे और इतने ही घण्टे वाप खचट हो जाने थे। हमारे भारतीयों की समहनत को
े जो
े पुछा की
े आये थे। जाने में
लाम !, बाररश हो रही थी और ग्राहक भी
कम हो गए थे। इन लोगों के
ाथ हम बातें भी कर रहे थे लेककन उन के
नहीिं बोलती थी। उ
औरत ने टैंट के नीचे ही एक गै
ाथ एक औरत भी थी जो दहिंदी
का
टोव जलाया और एक फ्राई पैन
में कुछ तेल िाल कर मछसलयािं भन ू नी शरू ु कर दीिं और एक तरफ एक बनटर पर फ्राई पैन में पपयाज़ और टमाटर और कुछ तेल िाल कर उन को भूनना शुरू कर ददया। पुतग ट ाल में अलगाव तो मछसलयों का घर है । यहािं इतने प्रकार की मछसलयािं होती है कक जगह जगह ीआईि पर खल ु े में मछसलयािं भूनने के बबटरकीउऊ स्टाल लगे हुए हैं। उ
औरत ने कुछ ही
समनटों में मछसलयािं तैयार कर लीिं और वोह लोग खाने लगे। बाररश भी कम हो गई थी और हम वहािं
े चल पडे। यह माककटट इतनी बडी थी कक घम ु ते घम ु ते हम थक गए थे और कार
पाकट में आ कर कार में बैठ गए। कुछ दे र बैठे बातें करते रहे और कफर हम मिंचीक दे खने चल पडे। मिंचीक (monchique ), पहाडियों में एक छोटे चचट हैं। यह
े गाुँव जै ा है और यहािं प्राचीन
फर बहुत मज़ेदार था। छोटी छोटी पहाडीयािं, कभी ऊपर जाते, कभी ढलान शुरू
हो जाती। एक तरफ चटान और द ु री तरफ घने जिंगल जै े डकें बहुत अनछ और
ीन बहुत
त ु दर लगते थे।
फाई बहुत थी। जै े इिंडिया में रास्ते में छोटी छोटी दक ु ाने होती हैं,
इ ी तरह यहािं भी थीिं। एक जगह दरू
े ही कोका कोला का बोिट ददखाई ददया और हम ने
गाडी खडी कर ली। दक ु ानदार इिंन्ग्लश नहीिं बोलता था लेककन
मझ गया और एक एक
बोतल कोका कोला की ली और
ाथ में चीज़
और आगे चल पडे। यह पहाडी
फर खतम होने पर आगे का
किंट्री ाइि जै ा था। आगे
िैं पवच सलए। खा और पी कर
ीन बबलकुल इिंगलैंि के
डकें कुछ तिंग लेककन बहुत अनछ थीिं। रास्ते पर
हुए थे जो गाुँवों की ददशा दशाट रहे थे। तरफ चल ददए। बहुत
ाइन बोिट लगे
फाई और हररयाली मनमोहक थी। मिंचीक की
दे खते दे खते हम नज़दीक आ गए। पहले हम को टॉयलेट का उ
तुिंन्ष्ट हो गई
ी टॉयलेट इ
छोटी
ाइन ददखाई ददया और हम
ी बबन्ल्ििंग में थीिं लेककन
काबलेतारीफ थी। हम इन गाुँवों का भारत के गाुँवों
ाइन
े मुकाबला करके हिं
फाई भी रहे थे।
मिंचीक गाुँव के
ेंटर में हम आ गए, कोई भीड भाड नहीिं थी, एक तरफ छोटा
स्टे शन था न्ज
में ब
ा ब
में बैठने वालों की लाइन लगी हुई थी। एक तरफ याबत्रयों के सलए
टॉयलेट थीिं जो काफी बडी बबन्ल्ििंग में थीिं और था। हम इधर उधर घूमने लगे और इ तरह एक रे न्प्लका किंू आिं (नकली
गाुँव के
फाई के सलए एक पुतग ट ाली कु ी पर बैठा ीन दे खने लगे। एक तरफ हमारे गाुँवों की
ा ) बना हुआ था और खेतों में पानी दे ने के सलये जै े
दटिंिों (बतटन जै े ) की चेन बनी हुई थी। यह बहुत खब ू ूरती
े बना हुआ था। हम ने इ
की फोटो लीिं। मु ीबत यह थी कक यहािं कोई इिंन्ग्लश नहीिं बोलता था और हमें इशारों
े
मझाना पडता था लेककन लोग बहुत अच्छे थे। अब हम नक्शे पर दशाटये चचट को दे खने चल पडे। चचट दे खने का हमारा मक द परु ाना आटट दे खना ही था। गाुँव दे ख कर बहुत अच्छा लगा। शान्तत तो भारत के गाुँवों की तरह ही थी लेककन
फाई और गली में लगा ईंटों का
फशट बहुत अच्छा लग रहा था। गतदगी का नामोननशान नहीिं था। बीच बीच छोटी छोटी दक ु ाने थीिं लेककन
ब में
फाई बहुत थी। एक गली में एक बुिीया बैठी थी जो एक टोकरे में
न्जज़यािं ले कर बैठी थी और लोग उन
े
न्जज़यािं खरीद रहे थे। हम आगे जा रहे थे और
चचट का नाम लेते तो लोग इशारा कर दे ते। जब हम चचट के
ामने आये तो बाहर
े तो
ाधारण ही लगता था लेककन भीतर जा कर मज़ा ही आ गया। हर तरफ आटट ही आटट ददखाई दे रहा था जो सलखा नहीिं जा
कता। कोई आधा घिंटा हम चचट में रहे और चचट के
पादरी ने जो इिंन्ग्लश बोलता था बहुत कुछ बताया, इ जो हम को याद रह ही नहीिं कुछ दे र और इ नोदट इ
का इनतहा
और बादशाहों के नाम
कते क्योंकक हम को यह अजीब लगते थे।
गाुँव में रहे , एक कैफे में चाय पी और वापप
चल पडे। एक बात हम ने
की कक जै े इिंगलैंि के गाुँवों में गोरे लोग,काले लोगों को अजीब नज़रों
तरह यहािं कुछ नहीिं था। ब
हों, भाषा ना
मझते हुए भी
े दे खते हैं,
ऐ े घूम रहे थे जै े हम भारत के कक ी गाुँव में घूम रहे ब कुछ
मझ रहे हों। मोनच्चीक की यात्रा एक sight
seeing ही थी लेककन बहुत अनछ लगी। अब हम वापप
चल पडे। अलगाव टाऊन में दाखल
हो कर एक जगह हम ने गाडी पाकट की और घूमने लगे। जै े इिंडिया में
डकों पर टी स्टाल
या ढाबे होते हैं, इ ी तरह यहािं जगह जगह बबयर बार थीिं, यहािं खाने के सलए भी बहुत कुछ उपलजध था। ऐ ी ही एक बार पर हम आ कर ठहर गए। एक गोरा गोरी जो पैंशनर थे बडी ी छतरी के नीचे बैठे
डक के नज़दीक ही, वहािं बैठे ठिं िी ठिं िी बबयर का आनिंद ले रहे थे।
बातें करके पता चला कक वोह भी इिंग्लैंि
े ही थे। जब हम ने बताया कक हम भी इिंगलैंि
े
आये थे तो वोह दोनों खश ु हो गए और बुडीआ नें हमें बीअर का पुछा कक हम ककया प िंद करें गे। कुलविंत और गगयानो बहन ने पाइन ऐपल जुइ
ले सलया और हम ने एक एक बबयर
ले ली। बातें करने लगे और पता चला कक बढ़ ू ा बढ़ ू ी 19 वीिं दफा यहािं आये थे। जब हम ने पुछा कक ऐ ा क्यों, तो उतहोंने बताया कक एक तो यहािं के लोग बहुत फ्रैंिली थे और द ू रे मौ म बहुत अच्छा होने के कारण उन की स हत यहािं बहुत अनछ रहती थी और ती रे इिंग्लैंि
े यहािं बहुत
स्ता था । बातों बातों में पता चला कक यह लोग हम
थे। ना इन को कोई बेटे बेटी का कफ़क्र था और ना कक ी ररकतेदारी का, ब
े ककतने इलग्ग अपनी पैंशन का
मज़ा ले रहे थे। बहुत बातों का तो हम को पता ही था लेककन उन की ज़ुबान पक्का यकीन हो गया कक हम लोग तो ररकतों की मु ीबतों
े
न ु ने पर
े जूझते जूझते न्ज़तदगी बबता
दे ते हैं, ना इन को कोई बेटी की गचिंता, ना उन की शादी की गचिंता और
ब
े बडी बात
दान दहे ज़ की बातों को यह लोग जानते ही नहीिं कक यह ककया होता है । ज़्यादा
े ज़्यादा
बेटी और दामाद को फूलों का गुलदस्ता और कोई छोटा मोटा गगफ्ट जो जरूरी नहीिं कक महिं गा हो और आगे वोह हिं काफी दे र तक हम उ चल पडे। धप ु बहुत तो एक छोटा
कर ले लेते हैं और थैंक्
बज़ुगट कपल
कह दे ते हैं।
े बातें करते रहे और कफर उन
े पवदा ली और आगे
ह ु ानी लग रही थी और यह मौ म इिंडिया जै ा लगता था। आगे गए
ा शॉपपिंग काम्प्लैक्
था और दक ु ाने तो इतनी बडी नहीिं थीिं, लगता था जै े
जालिंधर में ही घूम रहे हों, स फट एक ही फकट था कक जगह थी और कुछ बैंच पडे थे और
फाई बहुत थी। एक ओर कुछ खल ु ी
ाथ ही फूलों के सलए जगह बनी हुई थी और कुछ
प्लािंट लगे हुए थे। यहािं आ कर कुछ दे र के सलए बैठ गए। बातें करते करते कुछ गया और हम उठ कर होटल में जाने के सलए तैयार हो गए क्योंकक अब हम थक
मय बीत े गए थे।
दक ु ानों को दे खते और पविंिो शॉपपिंग करते करते कार में बैठ गए और जल्दी ही होटल में पहुुँच गए। कुछ घिंटे अपने अपने कमरे में
ोते रहे , शाम हो गई थी। तैयार हो कर हम ने
कमरे बतद ककये और बाहर आ गए। रात का खाना कफर एक ग्रीक रै स्टोरैंट में खाने का
ोच
सलया था। इ
एररए की हम को अब काफी वाककफयत हो गई थी, वै े तो हर दे श
के सलए लोग आये हुए थे लेककन अुँगरे ज़ बहुत थे, इ
सलए हम को कुछ मह ू
े हॉसलिे
नहीिं होता
था। इिंगलैंि में अिंग्रेजों का रवईया चाहे ककतना भी इलग्ग हो लेककन बाहर आ कर ऐ े था जै े हम दे श वा ी ही हों। हर तरफ चहल पहल थी लेककन इतना रश नहीिं था, कुछ रै स्टोरैंट आधे भरे हुए थे और कुछ में तो बी
पची
लोग ही होते थे। यही वजह थी कक होटलों के
बाहर लोग खडे होते थे और हमें उन के होटल में आने के सलए
वागत कर रहे थे।
एक ग्रीक होटल में हम चले गए और हमें है रानी हुई कक यहािं भी पािंच छै लोग ही बैठे थे। कुलविंत और गगयानो बहन का तो मुझे याद नहीिं कक ककया आिटर ददया था लेककन हम दोनों ने ग्रीक करी गचकन और चावल का आिटर ददया और हम ने यह आिटर दे कर कोई गलती नहीिं की क्योंकक यह बहुत ही स्वाददष्ट था। एक चाली आ कर बैठ गया, पता नहीिं वोह इ में बात कर रहा था। हम
का नौजवान हमारे पा
ही
होटल का मालक होगा या नौकर लेककन वोह इिंन्ग्लश
े काफी दे र बातें करता रहा जो अब याद नहीिं लेककन वोह हर
टे बल पर जा कर ग्राहकों के इ
बताली
ाथ बातें कर रहा था। अब हम ने कहीिं और तो जाना नहीिं था,
सलए बहुत दे र तक बैठे बातें करते रहे । बाद में एक एक काफी का कप्प पी कर हम
अपने कमरे में वापप पािंच बजे चलनी थी, इ चलता…
आ गए। क्योंकक
ुबह को हम ने सलस्बन जाना था और कोच
सलए हम जल्दी ही
ो गए।
ुबह
मेरी कहानी - 161 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन September 01, 2016 ुबह चार बजे उठ गए, नहा धो कर कपडे पहने, कुलविंत ने चाय बनाई और पी कर कमरे े बाहर आ गए। अभी अुँधेरा ही था और कुछ कुछ ठिं ि थी लेककन मौ म दक ु ाने अभी बतद थी। यहािं
ुहावना था।
भी
े कोच चलनी थी, हम ने पपछले ददन ही दे ख सलया था, इ
सलए जगह ढूिंढने में हमें कोई खा
तकलीफ नहीिं हुई। जब हम पहुिंचे तो वहािं बहुत
े लोग
पहले ही आये हुए थे न्जन में ज़्यादा लोग पें शनर ही ददखाई दे ते थे और एक बुिीया तो वील चेअर में थी न्ज
के
ाथ एक आदमी था, शायद उ
का पनत होगा। गोरे लोगों में यह
स फत है कक वोह अपनी उम्र के आखरी ददन तक हॉसलिे का मज़ा लेते रहते हैं और उन के बच्चे यह
ब
मझते हैं और वोह अपनी न्ज़तदगी खद ु बनाते हैं, इन का स स्टम ही ऐ ा है
कक इन के घर जाएुँ तो बहुत लोग तो चाय का कप्प भी नहीिं पूछते, खाने की बात तो दरू की है और इ
बात का कोई बुरा भी नहीिं मानता । यह लोग तो ब
महत्त्व दे ते हैं। हमारा
माज ऐ ा है कक हमारा
लेन दे न में ही खचट हो जाता है । रही
ारा पै ा शादी
हॉसलिे को बहुत
मारोहों या ररकतेदारी के
ही क र अखिंिपाठ या पज ू ा पाठ के आिम्बरों
े परू ी
हो जाती है । हम तो मरने पर भी बहुत कुछ करते हैं। पिंजाब में बढ़ ू े बज़ग ु ों के स्वगटवा पर पाठ के बाद
होने
िंबिंगधयों ररकतेदारों को समठाई खखलाते हैं, लोगों को स फट यह ददखाने के
सलए कक उतहोंने बज़ुगट को बहुत इज़त के
ाथ पवदा ककया और जीते जी शायद उतहोंने
बज़ुगट को अनछ रोटी भी दी ना हो। अगर बेटीआिं हो जाएुँ तो हम अपनी न्ज़मेदारी न्ज़तदगी के आखरी दम तक छूट नहीिं
े
कते। अगर हम लोग भी गोरों जै े हो जाएुँ तो
भारत में गरीबी का नामोननशान नहीिं रहे गा। बेदटयों के बोझ तले दब कर हम जवानी में ही बूढ़े हो जाते हैं। मेरी बचनों भाबी की पािंच बेटीआिं थीिं, उन की आमदनी भी काफी अनछ थी लेककन बेदटयों की शादी और कफर ऊन के बच्चों का खचट झेलते झेलते गरीबी में ही वोह इ दनु नआिं
े चले गए। अगर मैं यहािं ना आता तो मुझे भी इन लोगों की
लेककन यहािं रह कर मैंने बहुत कुछ जाना
मझा है और अब हम लोग भी कुछ कुछ बदलने
लगे हैं क्योंकक आगे की पीढ़ी ऐ ी बातों में पवशवा धाम
मझ नहीिं होती,
े हो रही हैं, वोह माता पपता जो इिंडिया
नहीिं रखती। अब तक जो शादीआिं धम ू
े आये हैं ही, खचट कर रहे हैं, वरना आज के
बच्चे यह पै ा बबाटद करने के हक में नहीिं हैं। गोरे लोगों के बच्चे खद ु अपने
ाथी ढूुँढ़ते हैं
और खद ु ही अपना मकान लेने के सलए जदोजहद करते हैं। माता पपता कोई दखल अिंदाज़ी नहीिं करते। गोरे लोग अपनी न्जिंदगी की कमाई अपने ऊपर खचट करते हैं और जो बाकी बचा
पै ा या घर हो तो उ
की पवल पहले
जीते हैं । लडकी लडका चाहे इिंडियन
े ही बना लेते हैं लेककन अपनी न्ज़तदगी मज़े े शादी कराये या कक ी हजशी
े
े, माता पपता कोई
दखल नहीिं दे ते और यह ही कहते हैं कक यह उन की न्ज़तदगी है और अगर शादी में इनवाइट ककया जाए तो खश ु ी
े जाते हैं। ऐ ी बात नहीिं है कक इन के घरों में कोई प्राजलम नहीिं
है ,होती है लेककन और कक म की। इन के भी लडाई झगिे मिटर बगैरा होते हैं लेककन इ फै ला स फट पुसल अगर कोई
का
या कोटट ही करती है । बहुत दफा मैंने यह भी दे खा है कक लडते लडते
ौरी कह दे , अपनी गलती मान ले तो यह लोग कफर बोलने लगते हैं लेककन हम
तो दकु मनी की सशक्षा आने वाली पीढ़ी को भी दे जाते हैं। बुराइयािं हर कौम और दे श में होती हैं लेककन हमारी आगथटकता में बहुत गढ़ बढ़ है , हम अपने ऊपर पै ा नहीिं खचट पाते, ब बच्चों के सलए कुछ करते करते, जै े रे शम का कीडा अपने इदट गगदट रे शम का ताना बुनते बुनते उ
में ही मर जाता है , इ ी तरह हमारे
वील चेअर में इ
माज की न्स्थनत है ।
बदु ढ़या के इलावा और लोग भी दे खे थे। एक जगह तो हम ने चार पािंच
बुडीआ को इकठे घुमते दे खा था जो 70
ाल की उम्र
े कम नहीिं होंगी। इिंगलैंि में तो
डि ेबल लोगों की लोग बहुत मदद करते हैं और मैं खद ु जब ब ब
ड्राइव ककया करता था तो
े उत्तर कर ऐ े लोगों की मदद करता था और यह कोई बडी बात नहीिं होती थी क्योंकक भी ऐ ा करते थे हालािंकक यह काम हमारी जॉब का दहस् ा नहीिं होता था, यह एक डि ेबल
के प्रनत खश ु ी और हिं
हानभनू त होती थी । उतरते े ले लेते थे और थैंक् हिं
मय कई डि ेबल लोग स्वीट्
कह दे ते थे । आज यह बुढ़ीया हमारे
ाथ सलस्बन जा रही थी
कर बातें कर रही थी। कुछ ही दे र में कुछ और लोग भी आ गए थे। कोच
ड्राइवर कोच ले कर पािंच बजे आ गगया और उ में याबत्रयों की सलस्ट थी। एक एक करके उ उ
दे जाते थे और हम
के
ाथ जो हमारा गाइि था, उ
ने याबत्रयों की गगनती कर ली।
के हाथ
ही होने पर
ने ड्राइवर को हरी झिंिी दे दी और वोह कोच का दरवाज़ा बतद कर के चल पढ़ा। अब
गाइि हमारी तरफ मुखातब हो कर बोला, “लेिीज़ ऐिंि जेंटल मैंन, मेरा नाम कक्रस्टोफर है और मैं आप का गाइि हूुँ, आप को मैं का आनिंद उठाएिंगे “, इ
के बाद वोह ड्राइवर
ीन हम दे खते जा रहे थे। दे ख रहा था क्योंकक
ब कुछ बताऊिंगा, और आशा करता हूुँ कक आप इ
डकें
ाफ़
भी कारें और ब ें
गोल आइलैंि आ जाता तो मैं गधयान जल्दी ही मैं यह
मझ गया कक प्रैन्क्ट
दट्रप
े पौच्गीज़ में बातें करने लगा। दोनों तरफ के
थ ु री थीिं और मैं तो ट्रै कफक की ओर ही गधयान
े
डक के दाईं ओर चल रही थीिं। जब आगे कोई े ट्रै कफक की ओर दे खता कक कै े ड्राइव करते थे। के सलए कुछ ड्राइपविंग लै न लेने जरूरी थे। इिंगलैंि
में ऐ े बहुत
े एक् ीिेंट
ुने थे, जो ट्रकक
ामान ले कर यूरप
कभी कभी इिंगलैंि के ड्राइपविंग ननयम इलग्ग होने की वजह ीररय
े इिंग्लैंि आते थे, उन में
े गलत फहमी के कारण
एक् ीिेंट हो जाते थे।
कोच चली जा रही थी, और ड्राइवर और गाइि बातें ककये जा रहे थे। ड्राइवर के पा
िैश बोिट
पर एक कक ी बक्ष ृ के नछलके का एक टुकडा जो कोई एक फुट लिंबा,पािंच छै इिंच चौडा और अढ़ाई तीन इिंच मोटा पढ़ा था। कभी कभी मैं इ े दे ख कर
ोच में पढ़ जाता कक यह क्यों
रखा हुआ था, क्या इन लोगों में भी कोई वहम भरम या अनछ ककस्मत, बरु ी ककस्मत के बारे में
ोच है ?, जब
े कोच में बैठा था, तभी
े इ
उधेड बुन में पढ़ा हुआ था और मेरी यह
उत्फ ुकता अब खतम हो गई जब गाइि ने वोह टुकडा उठाया और बोला,” लेिीज़ ऐिंि जैंटलमेन ! यह टुकडा एक बक्ष ृ की छाल है और उ ) और इ
छाल
बक्ष ृ का नाम है कौरक ट्री (cork tree
े हज़ारों चीज़ें बनती हैं। यह छाल हज़ारों
कॉकट (ढकन ) बनाने के काम आती रही है । इ यह लकडी फ्लैक् ीबल होती है और
ालों
े कारक इ
े बबयर और वाइन के
सलए बनाये जाते हैं, क्योंकक
ाथ ही बबयर या वाइन की कुआसलटी में भी फकट आ
जाता है । जब बोतल में ढकन िाला जाता है तो यह फ़ैल कर रबड की तरह बोतल को अनछ तरह
ील कर दे ता है और हवा भी बाहर नहीिं जा
जिंगल ) हैं। इ
बक्ष ृ को बोने के पची
कती। इन बक्ष ृ ों के बडे बडे grove (छोटे
वषट बाद पहला नछलका उतारा जा
के बाद हर नौ वषट बाद नछलका उतारना शरू ु हो जाता है । यह बक्ष ृ अढ़ाई तक हर नौ
ाल बाद नछलका दे ता रहता है । इ
एक् पटट होते हैं। पहले यह लोग कुल्हाडी लगा दे ते हैं और कफर इ ी तरह ऊपर
ौ
े तीन
ौ वषट
नछलके को उतारने वाले लोग बहुत
े बक्ष ृ के इदट गगदट एक लाइन में छाल को कट्ट
ात आठ फ़ीट की दरू ी पर इ ी तरह का कट्ट लगा
दे ते हैं और कफर धीरे धीरे छाल को एक कुल्हाडी काट सलया जाता है । इ
कता है और इ
े उधेडते चले जाते हैं और एक पी
के बाद ऊपर के दहस् े इ ी तरह काटते चले जाते हैं। इ
परू ा नछलके
के बडे बडे ढे र लग जाते हैं और कफर इन को ट्रकको में लाद कर फैक्ट्री में ले जाया जाता है । यह फैन्क्ट्रयािं बहुत बडी होती हैं न्जन में
क ैं डों लोग काम करते हैं। कुछ दे र के सलए मैं
आप को यह बक्ष ृ और एक फैक्ट्री ददखाने ले जाऊुँगा” अब यह गाइि कफर अपने दोस्त
े बातें करने लगा और मैं
ोच रहा था कक मेरी
ारी
न्ज़तदगी बीत गई लेककन मेरे ददमाग में यह आया ही नहीिं था कक यह बोतल के ढकन कक लकडी हिं
े बनते हैं। ब
भी यात्री एक द ु रे
े बातें कर रहे थे और वोह डि ेबल बुडीआ हिं
े ज़्यादा बातें कर रही थी । हम भी हिं
रहे कक कभी
ोचा ही नहीिं था और अब
यह गगयान बूडे हो कर छोटी
मझ आया। कुछ ही दे र बाद हमारी कोच हाई वे छोड कर एक
डक पर आ गई और कुछ ही दे र में बब्रक्ष ही बब्रक्ष ददखाई दे ने लगे। दे ख कर हम
मझ गए कक यही cork tree थे क्योंकक कुछ बब्रक्षों
े काटी हुई छाल
ाफ़ नज़र आ रही
थी और यह काटी गई छाल वाले दहस् े का रिं ग गचट्टा था । आगे गए तो बहुत छाल उतार रहे थे। ड्राइवर ने कोच खडी कर ली और हम उ
े लोग
पत ट ीज़ को छाल काटते हुए ु ग
दे खते रहे । आगे गए तो दे ख कर ही है रान हो गए कक छाल के बडे बडे ढे र पडे थे और उन को ट्रकों पर लाद रहे थे। गाइि
ब कुछ बता रहा था कक यह ट्रक, फैक्ट्री को जा रहे थे।
जल्दी ही हम एक फैक्ट्री में चले गए। छाल के ढे र हर जगह पडे थे। कोच गाइि हमें फैक्ट्री के भीतर ले गया। फैक्ट्री का एक शख्
हम को
फैक्ट्री में औरतें और मदट काम कर रहे थे। बडी बडी मशीनों ननकल रहे थे औरतें उन में
े उत्तर कर
ारा काम ददखाने लगा।
े छाल
े कारक बन बन कर
े खराब कारक ननकाल कर बक् े भर रही थीिं। कफर उ
शख्
ने बताया कक कुछ भी वेस्ट नहीिं होने ददया जाता। जो फालतू कटा हुआ कारक होता है उ को मशीनों में िाल कर क्रश ककया जाता है और उ जलॉक बनाये जाते हैं। कफर उन को छीटें बनती हैं। यह
ब उ
में बहुत कुछ समला कर उ
ा समल में लकडी की तरह काट कर बहुत कक म की
ने ददखाया। आगे गए तो जै ा उ
बन रहे थे और उन जलॉकों
ने कहा था बडे बडे जलॉक
े पतली लकडी की तरह छीटें काटी जा रही थीिं। उतहीिं छीटों
आगे पतले पतले गोल गोल वाशर जै े कुछ बन रहे थे। उ
शख्
जै ी चीज़ उन बोतलों के ढकन के बीच में रखी जाती हैं न्जन में गै ताकक प्रेशर लीक न हो उ
े बडे बडे
के। छै मपेन की बोतल में तो खा
ने यह भी बताया कक इ
कारक
ने बताया यह वाशर का प्रेशर होता है
कर यही कारक िाला जाता है ।
े फ्लोर टाइल, टे बलों पर रखने वाले मैट, कार के
इिंन्जनों में पडने वाले गै ककट और स्पोट्ट नहीिं लेककन हम जल्दी ही फैक्ट्री
े
की बहुत चीज़ें बनती हैं। बहुत बातें मुझे याद
े बाहर आ कर कोच में बैठ गए और कोच सलस्बन की
तरफ जाने लगी। जब कोच में बैठे थे मुझे हिं ी आ गई। ” मामा ! हिं ी कक
बात पर आई
?”ज विंत ने पछ ू ा। मैंने कहा यह जो वाशरें बन रही रही थी, इन को याद कर के मझ ु े हिं ी आई। मेरी बात कक ी को
मझ नहीिं आई। मैंने कहा जब हम छोटे होते थे तो
वाली दक ू ान में जब दक ु ानदार
ोिे या पवमटो की बोतल खोलता था तो बोतल का ढकन दरू
जा गगरता था और हम दौड कर उ वाशर होती थी। हम इ
को उठा लेते थे। इ
वाशर को कक ी चीज़
लगा कर कमीज के भीतर जै ा ददखाई दे ता था और इ
ोिा वाटर
े इ
ढकन के बीच यही कारक की
े ननकाल कर ढकन को कमीज के ऊपर
वाशर को ढकन में धकेल दे ते थे और यह ढकन एक बैज
वाशर के कारण यह ढकन गगरते नहीिं थे। इ
बात को
ुन
कर
भी हिं ने लगे। कुलविंत कहने लगी,” ककथे गल मारी आ “,कफर कहने लगी कक उ े भी
यह याद था। अब हमारा गधयान हाई वे पर ही हो गया और हाई वे नया नया ही बना होगा क्योंकक टोल दे ना था और
ारी
ब शािंत हो कर बैठ गए। लगता था, यह डक और रोि
बी कारें खडी हो गईं। कोच और ब
ाइन नए ही लग रहे थे। आगे
बगैरा एक तरफ जाती थीिं। कोच
ड्राइवर ने पै े ददए और आगे चल पडे। अब कुछ कुछ ट्रै कफक बढ़ती जा रही थी लेककन स्लो नहीिं थी। याद नहीिं ककतने बजे सलस्बन पहुिंचे लेककन कोच ड्राइवर गया न्ज
की इनतहास क महत्ता का मुझे याद नहीिं लेककन यहािं
ब
े पहले एक जगह ले
े सलज़बन
ुकेयर ददखाई दे
रहा था, यहािं हम ने अब जाना था क्योंकक यह जगह काफी ऊिंचाई पर थी। कुछ समिंट बाद हम कफर कोच में बैठ गए और कोच सलज़बन कोई नाम है , जो मुझे याद नहीिं लेककन यह
ुकेअर की तरफ जाने लगी। इ
ुकेयर का
ुकेयर परस द्ध है । जब हम वहािं पहुिंचे तो
ड्राइवर ने हमें उतार ददया और खद ु कोच कक ी कोच पाकट में इ े पाकट करने के सलए ले गया। अब हम इ था न्ज इ
ुकेयर में घूमने लगे। यहािं ज़्यादा टूररस्ट ही थे। एक बहुत बडा फाउिं टे न
के इदट गगदट बैठने के सलए जगह बनी हुई थी और कुछ बज़ुगट लोग इन पर बैठे थे।
ुकेयर में एक बहुत बडा पपलर था न्ज
याद नहीिं कक
पर कक ी प्रस द्ध बादशाह का बुत्त था जो अब
का था लेककन यह बहुत ऊिंचा था, जै े लिंिन में नैल् न का स्टै चू हैं। इ
ऊिंचाई कुतब मीनार
े भी ज़्यादा थी। इ
की
क ु े यर में रै स्टोरैंट और टी स्टाल ज़्यादा थे। एक
तरफ मैकिोनल्ि भी था जो भरा हुआ था। हम ने
ोच सलया था कक घूम घाम कर यहािं ही
खाएिंगे। अब हमारा गाइि भी आ पहुिंचा था और वोह इनतहास क बातें बताने लगा। कर हम शॉपपिंग एररए में आ गए। यहािं बहुत बडी बडी दक ु ानें थीिं, खा कपिे की। गाइि हमें कुछ दरू ले आया।
ुकेयर
े ननकल
कर जीऊलरी और
ामने पानी में बडी बडी कन्कतयाुँ और कुछ
मुिंद्ी
जहाज़ खडे थे। अब हमारा गाइि बताने लगा, “जब हमारे है नरी दी नैपवगेटर और वास्कोडिगामा की कोसशशों
े नई दनु नआिं का पता चलने लगा था और बहुत
ननकाले गए थे तो हमारे नैवीगेटरों ने वेस्ट अफ्रीका के बहुत थे। उ
मय स्लेव ट्रे ि
े बहुत पै ा बनाया जाता था। इ
े ट्रे ि रुट खोज
े दे श अपने कजज़े में कर सलए जगह अफ्रीकन स्लेव लोगों को
लाया जाता था न्जन के हाथ बािंधे हुए होते थे ताकक वोह दौड ना जाएुँ, कफर उन को स्लेव माककटट में ले जाय जाता था यहािं उन की बोली होती थी और पशुओिं की भाुँती बेचे जाते थे । बडे बडे बबज़नै
मैंन इन स्लेव लोगों को खरीद कर आगे द ू रे दे शों को बेच दे ते थे। इ
धिंदे में पै ा बहुत होता था। यहाुँ ही
ोने चािंदी के जहाज़ आते थे और यहािं दो बाजार होते
थे न्जन को इिंन्ग्लश में गोल्ि स्ट्रीट और स ल्वर स्ट्रीट बोलते थे। उ
मय पुतग ट ाल बहुत
अमीर दे श होता था। एक कारण यह भी था कक जब वास्कोडिगामा ने इिंडिया का पता लगा सलया तो इ
का भेद
ौ
न्जतने म ाले आते थे,उ
ाल तक अतय कक ी यप ू ीन दे श को नहीिं हुआ था। इिंडिया पर 60% प्रॉकफट हो जाता था क्योंकक इ
मनॉपली होती थी, जो कीमत मािंगो वोह समल जाती थी । इ न्जतने भी सशप ट्रे ि के सलए दरू दरू जाते थे, उ लेना पडता था, द ू रे उ का टै क्
चलता…
े भी बडी बात यह थी कक े लाइ ैं
किंपनी के प्रॉकफट का दहस् ा भी दे ना होता था जो कक एक प्रकार ब
की वजह
े पत ट ाल की ु ग
े आगे थी”। अब हमारा गाइि कक्रस्टोफर बोला,” अब आप लोग
कुछ खा पी लो और कफर हम आप को वाप
में पत ट ाल की ु ग
का पहले तो हकूमत की ओर
ही होता था और कई दफा तो यह 20% होता था। इ
अथटवयवस्था यूरप में
े
ुकेयर की ओर चलने लगे।
ैगर
(sagres)ले जाएिंगे”, बातें करते करते हम
मेरी कहानी - 162 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन September 05, 2016 पुतग ट ाल के में न
ुकेयर
े ननकल कर हम
ेग्रे
(sagres ) की ओर चल पडे।
कोई इतना बडा नहीिं है लेककन टूररज़्म बढ़ने की वजह ेग्रे
की महत्ता स फट इ
मुतदर के ककनारे पर शोर हर दम
ुनाई दे ता है । इ
ेग्रे
े टकराती लहरों का
के ककले के नज़दीक पहुुँच गए। कोच पाकट में ी कोचें खडी थीिं, न्जन में हमारी ब
की कोच भी खडी थी। दे ख कर मझ ु े कुछ है रानी हुई कक इिंगलैंि
ीधे कोच में भी यहािं आते हैं। अब हम
े कुछ छोटा है । पािंच पािंच यूरो का
ककले के भीतर आ गए। भीतर इतना बडा नहीिं है लेककन इ
दी नैपवगेटर के कुछ ननशाुँ हैं। है नरी का ननधन1460 में हुआ था और उ जहाज़रानी का इिंकलाब ही आ गया था, न्ज बहुत
में है नरी
के ननधन के बाद
का नतीजा यह हुआ कक पत ट ाल ने अफ्रीका के ु ग
े दे शों पर कजज़ा कर सलया था, हमारा गाइि हमें यह
ब बता रहा था। कोई वक्त
था जब पुतग ट ाल में बहुत वहम और भ्र्म हुआ करते थे, और इ कैप्टन
े
भी ककले की ओर जाने लगे। आगे बहुत बडा
दरवाज़ा था जै े लाल ककले का दरवाज़ा है लेककन उ दटकट ले कर हम इ
ककले
ककले को जाने के सलए ियूल कैरे जवे बनी हुई है जो लगता
ड्राइवर ने कोच खडी कर दी। वहािं पहले भी बहुत लोग
ा ककला है और यह बबलकुल
मुतदर की बडी बडी इ
है , नई नई ही बनी है । आधे घिंटे में हम किंपनी नैशनल एक् प्रे
टाऊन
े अब नए नए होटल बन रहे हैं।
सलए ही है कक यहािं एक छोटा गथत है और
ेग्रे
की वजह
े जहाज़ों के
मुतदर में िरते आगे नहीिं जाते थे। उन का मानना था कक आगे धरती खतम हो
जाती थी और आगे बडे बडे monster यानी दे व राक्षश रहते थे, इ ी सलए वोह इ worlds end बोलते थे। यह है नरी ही था न्ज
ने यह
ारी समथें झठ ू ी
को
ाबत कर दी थी
और new world की खोज शुरू कर दी थी। है नरी खद ु नैपवगेशन में बहुत ददलचस्पी रखता था, इ ी सलए उ था,न्ज
ने एक
कूल खोला
में जहाजरानी के सलए नक़्शे बनाना, मुतदर में हवाओिं के बारे में जातने के सलए
दन ु ीआिं के हर दहस् े थे। यह नहीिं थे, इ
े गगयान हा ल करना, भूगोल, मेिी ीन और बहुत
कूल बाद में एक यूननव ट ट ी बन गगया था। उ
े अतय
जजेक्ट्
मय जहाज़ों के इिंन्जन तो होते
सलए जहाजरानी हवाओिं पे ननभटर होती थी या रात को स तारों को दे ख कर।
है नरी ने अपने पवद्वान द ु रे दे शों को भेजे ताकक वोह
ही नक़्शे बनाना
मुतदर में हर मौ म में हवाओिं की गती का गगयान हो ।
ीख जाएुँ और
मुतदर में बहुत
े ऐ े भाग थे,
यहािं तूफ़ान बहुत आते थे और जहाज़ तबाह हो जाते थे। हर जहाज़ का कैप्टन हर रोज़ के मौ म का हाल सलखता था। है नरी खद ु इ
ककले में बैठ कर दरू बीन
रोज़ दे खता रहता था। है नरी के कुछ ननशान अभी भी इ नज़दीक खडे हो कर वोह दरू बीन की मदद कुछ लाइनें खद ु ी हुई हैं। इ ीडीओिं
े ही इ
में पत्फथरों का एक जाती हैं और इ
े
मुतदर की ओर हर
ककले में हैं। न्ज
दीवार के
मुतदर की ओर दे खता था, उ
दीवार को दे खने के सलए कुछ
दीवार पर जाया जा
े
दीवार पर
ीडीआिं बनी हुई हैं और इन
कता है जो कुछ ऊिंचाई पर है और नीचे खल ु े मैदान
कटल बना हुआ है , न्ज
के
ेंटर में
कटल को इिंटरनेट पर दे खा जा
े 32 लाइनें
कटल के आखखर में
कता हैं। ककले की दीवार की एक ओर
एक तोप पढ़ी है जो बहुत मोटी लकडी के स्टैंि पर रखी हुई है । एक तरफ छोटा न्ज
के बाहर तकरीबन बी
फ़ीट ऊिंचा एक क्रॉ
ककया करता था। आगे एक मयून्ज़यम है न्ज ककले की दीवार बहुत छोटी है और इ इ
ककले
में उ
में है नरी हर रोज़ प्राथना
ज़माने की बहुत
े नीचे की ओर
ी चीज़ें पडी हुई हैं।
मत ु दर ददखाई दे ता है और लहरें
े टकराती हैं। हम दे ख कर है रान हुए कक दो पुतग ट ीज़ नीचे लहरों के नज़दीक एक
िं रौि चटान पर बैठे कफसशग
े मछसलयािं पकड रहे थे लेककन हम दे ख कर ही िर रहे थे कक
यह लोग कहीिं नीचे गगर ना जाएुँ। इ दो दफा
बना हुआ है , इ
ा चचट है ,
ककले में बहुत कुछ ना होने का कारण यह भी है कक
मत ु दर में तफ़ ू ान आ जाने के कारण इ
को बहुत नक् ु ान पहुिंचा था। इ
ककले
को नक् ु ान पहुुँचने का एक कारण और भी था और वोह था यप ू ीन लडाइयों के कारण एक दफा इिंगलैंि के कैप्टन
र फ्रािंस
ड्रेक का इ
ा दह ा तबाह हो गया था। इ
पर तोपों
े हमला करना, न्ज
के कारण
इ
का बहुत
ककले की दो दफा मुरमत की गई थी। वै े
इ
को ककला कहना मुनास ब नहीिं होगा, स फट है नरी की यादगार और लैबोरे ट्री ही कह
हैं। है नरी ने इतना बडा काम शरू ु कर ददया था कक उ
के मरने के बाद पत ट ाल में एक ु ग
इिंकलाब ही आ गया था। है नरी को नैपवगेटर का खखताब तीन इनतहा कार ने ददया था क्योंकक उ
ने यह
मुतदर में नए रास्ते खोज सलए थे, न्ज
ाल बाद एक जमटन ने
के कारण पुतग ट ाल इतने दे शों पर कजज़ा कर
मिंद् ु ी रुट की उ
के मरने के 38 ने खोज की थी, उ
तक कक ी भी यप ू ीन दे श को नहीिं हुआ था ।शायद आधे घण्टे होंगे और आगे के
ौ
ाबत ककया था कक यह है नरी ही था, न्ज
था । यह है नरी की कोसशशों का नतीजा था कक उ इिंडिया जा पहुिंचा था और न्ज
कते
का
ाल बाद वास्कोडिगामा का पता
ौ
ाल
े ज़्यादा हम यहाुँ नहीिं रहे
फर के सलए तैयार हो गए। कोच में बैठ कर हम सलस्बन के एक चचट के
पा
आ गए,न्ज
का नाम तो याद नहीिं लेककन गाइि ने हमें बताया कक वास्कोडिगामा ने
इिंडिया का रास्ता ढूिंढने
े पहले इ
चचट में कामयाबी के सलए पराथना की थी।
यह चचट एक आटट का नमूना था। इ यह बहुत बडा चचट था। दे श बबदे श
में पुतग ट ाल के बडे बडे पादररयों के बुत्त बने हुए थे। े बहुत लोग इ
को दे खने के सलए आये हुए थे और
फोटो ले रहे थे। गाइि ने हमें बताया था कक वै े तो वास्कोडिगामा की मत ृ ु गोआ में हुई थी लेककन कुछ
ालों बाद उ
यहािं की गई थीिं। उ
की कुछ अस्थीयाुँ यहािं लाइ गई थीिं और उ
की ग्रेव और उ
की आखरी रस्में
के ऊपर वास्कोडिगामा का लेटे हुए का बत्त ु है । इ
चचट के बाहर आ कर गाइि ने हमें एक और मौनम ैं ददखाया। यह मौनूमट ैं पुतग ट ाल के राज ू ट में न्जतने दे श थे, उन पर उन के झिंिे बने हुए थे। यह झिंिे पुतग ट ाल के अपने बनाये हुए थे क्योंकक यहािं भी यह राज करते थे, उन पर अपना झिंिा लहराते थे। यह मौनूमट ैं गोल चक्कर में था। यहािं हम खडे थे, उ कुछ वक्त ददया और
भी इ
के पा
ही मैकिोनल्ि था। रीफ्रैशमैंट के सलए गाइि ने हमें
में जा घु े। खा पी कर बाहर आये तो कोच वाला हमें बैलम
पाकट ले गया। यह जगह सलज़बन की
ब
े प्रस द्ध जगह है । यह पाकट बहुत
यहािं दे खने के सलए बहुत कुछ है । क्योंकक इ
पाकट के
बहुत पुरानी मल्टीस्टोरी ककले जै ी इमारत है । इ ककले जै ी इमारत में जाने के सलए उ ी ककले में आटट की कोई खा तीन तरफ बहुत इ
ाथ ही
ुतदर है और
मुतदर तट है , न्ज
पर एक
को दे खने के सलए हम चल पडे। इ
मय का एक लकडी का पल ु बना हुआ है । इ
चीज़ नहीिं है , ब
इ
ी तोपें रखी हुई हैं, न्जन का मुिंह
की कई मिंन्जलें हैं और कुछ मिंन्जलों में मुतदर की ओर है । हमें बताया गया कक
ऊिंची बबन्ल्ििंग का मक द यही था कक अगर दकु मन हमला करे तो यहािं
े उन के
जहाज़ों को तबाह ककया जाता था और ऐ े ककले सलज़बन के इदट गगदट और भी थे जो इ शहर को बचाते थे। इ
को दे ख कर हम नीचे आ गए और पाकट में खडे एक रे न्प्लका ऐरोप्लेन को दे खने लगे
जो एक प्लैटफामट पर रखा हुआ था। यह पुतग ट ाल का एक ऐ ा जहाज़ था न्ज 1922 में
ाढ़े आठ हज़ार मील का
में बहुत मुन्ककलें आईं और
ने उ
मय
फर ऐटलािंदटक ओशन के ऊपर करना था लेककन इ
मुतदर में गगर गया। जो पायलेट थे, उतहोंको अिंग्रेजों के एक
जहाज़ के कैप्टन ने बचाया था। और भी बहुत कुछ बताया लेककन याद नहीिं। लोग इ जहाज़ की फोटो ले रहे थे और ज विंत ने भी कुछ फोटो ली। इ
के एक ओर बहुत बडा
पुराने ज़माने के जहाज़ जै ा मैमोररयल बना हुआ है । यह बहुत ऊिंचा है । पहले यह 1940 में वल्िट ऐग्ज़ीबीशन के सलए बनाया गया था लेककन बाद में 1960 में हैनरी दी नेवीगेटर के
ननधन के पािंच
ौ
का बुत्त है , न्ज
के हाथ में छोटा
और इ
ाल पूरे होने पर नया बनाया गया था । इ ा सशप पकडा हुआ है । इ
के पीछे वास्कोडिगामा का। ऐ े ही
25 बत्त ु बने हुए हैं। न्ज
के सशखर पर पहले हे नरी के पीछे अफॉत ो का बुत्त है
ीडीओिं की तरह बने स्टै पों पर परस ध लोगों के
जगह यह मैमोररयल है , ठीक यहािं
े ही वास्कोडिगामा इिंडिया का
रास्ता ढूिंढने के सलए सशप ले कर चला था। अब हमारा गाइि हमें कुछ आगे ले आया। यहािं ज़मीन पर एक गोल चक्कर में दनु नआिं का नक्शा बना हुआ है । गाइि ने बताया कक कोई आज़ाद हुए और
ब
मय था जब पत ट ाल के अधीन छोटे बडे 52 दे श थे जो धीरे धीरे ु ग
े आखर में आज़ाद होने वाला चीन का मकाओ था जो शायद कुछ ही
ाल पहले आज़ाद हुआ है । इ इतना याद है कक गाइि ने उ
नक़्शे में गाइि ने जो बताया, ज़्यादा तो याद नहीिं लेककन मय के ट्रे ि रुट ही बताये थे कक कै े उन के जहाज़रान
वीओपर करते थे। गाइि कक्रस्टोफर बडे गौरव के
ाथ बता रहा था कक उ
मय पुतग ट ाल
इतना अमीर हो गया था कक लोगों ने अपने घरों में काम करने के सलए आम स्लेव रखे हुए थे और यह स्लेव बहुत
स्ते में समल जाते थे क्योंकक स्लेव ट्रे ि इतनी पवकस त हो चक् ु की
थी कक जहाज़ों के जहाज़ भर भर कर अफ्रीका
े स्लेव लाये जाते थे न्जन की मिंिी लेगो
लगती थी, ( lagos में एक मयून्ज़यम है ) । जिंगलों
में
े इन अफ्रीकन लोगों को पशुओिं की
तरह पकडा जाता था और पकडने के सलए भी अफ्रीकन लोग ही होते थे, न्जन को बहुत पै े ददए जाते थे। जब इन स्लेव लोगों को पकड कर जहाज़ में
िंगलों
की हालत बहुत खराब होती थी क्योंकक इतना गतद होता था कक इ बहुत स्लेव मर जाते थे और उन को इ
की बदबू के कारण ही
मुतदर में फैंक ददया जाता था।
नघरनत वीओपर के खखलाफ आवाज़ उठने लगी थी और
इब्राहीम सलिंकन ने यह वीओपर बतद ककया था और धीरे धीरे रोक लगा दी गई लेककन कानून पा
े बाुँधा जाता था तो वहािं
होने के बाद भी बहुत
ब
े पहले अमरीका में
भी यूपीन दे शों में इ
पर
ालों तक यह वीओपर चलता
रहा। हमारे गाइि ने यह बातें बताईं तो कुछ गोरों की आुँखों में आिं ू थे। अब हम कफर कोच में बैठ गए और ड्राइवर हमें एक बहुत बडे शॉपपिंग
ेंटर में ले आया। इ
को बने अभी कुछ
वषट ही हुए थे, ऐ ा हमे कक्रस्टोफर ने बताया। एक पाकट ब ों और कोचों के सलए ही बनी हुई थी। कोच खडी हुई तो हम
ीधे शॉपपिंग माल में आ गए। जै े ही हम दाखल हुए, पा
एक स ननमा हाल था, न्ज
पर एक बॉलीवुि कफल्म के पोस्टर लगे हुए थे लेककन इिंडियन
कोई ददखाई नहीिं दे ता था। हमें यह दे ख कर है रानी हुई और ज विंत ने कक्रस्टोफर
े इ
ही के
बारे में पुछा तो उ
ने बताया कक यहाुँ बॉलीवुि कफ़ल्में बहुत लोग दे खते हैं खा
कर वोह
लोग जो अभी तक गोवा में आते जाते रहते हैं क्योंकक उन के ररकतेदार गोआ में हैं। आगे गए तो एक बहुत बडी फैं ी गुड्ज़ यानी शो पी की बहुत
की दक ू ान थी,न्ज
में इिंडिया के आटट
ी चीज़ें रखी हुई थीिं, जै े पुरातन मूनतटयािं जो इिंडिया के मिंददरों में होती हैं। आगे
गए तो खाने पीने के सलए एक कैंटीन जै ी बडी
ी कैफे थी,न्ज
में पुतटगाल के बने केक थे
जो बबलकुल ही इलग्ग टाइप के थे। बैठने के सलए काफी टे बल थे। कुलविंत और गगयानो बैठ गईं। जब मैं और ज विंत चाय बगैर लेने गए तो काउिं टर पर लडककयािं इिंन्ग्लश नहीिं बोलती थीिं। हमारे सलए यह एक मु ीबत थी। इशारों
े हम ने
मझाया और चाय केक लेकर हिं ते
हिं ते हम आ कर बैठ गए। कुछ भी हो एक बात थी कक केक बहुत मज़ेदार थे। चाय पी कर हम इधर उधर घुमते रहे और जो टाइम कक्रस्टोफर ने हम को ददया था, उ
े कुछ समिंट
पहले हम कोच में आ कर बैठ गए। अब अुँधेरा हो चक ू ा था। कोच चल पिी और रास्ते में कहीिं भी खडे नहीिं होना था।
ब थक चक् ु के थे और कुछ लोग आुँखें बतद कर के बैठे थे।
अब बाहर दे खने का भी कोई फायदा नहीिं था क्योंकक बाहर रौशननयों के स वा कुछ भी नहीिं ददखाई दे ता नहीिं था। जब हम अलगाव पहुिंचे तो बहुत रात बीत चक् ु की थी। कमरे में आते ही गुड नाइट कह कर चलता…
भी
ो गए।
मेरी कहानी - 163 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन September 08, 2016 ुबह दे र
े उठे और चाय का इिंतज़ार करने लगे जो कुलविंत और गगयानों बहन तैयार कर
रही थीिं। हर रात को सलज़बन के इनतहा
ो कर हम एक ही कमरे में बैठ कर चाय पीते थे। बात हम कर रहे थे
फर की, तो ज विंत बोला,” मामा ! कल तो मज़ा ही आ गया, पत ट ाल के ु ग
ने तो आुँखें खोल दी “, मैंने कहा,” ज विंत ! वाकई गोरे लोग ऐ े ही नहीिं हॉसलिे
पर जाते रहते हैं,इ
े बहुत नॉलेज समलती है , हम लोग तो ररकतेदाररयों में ही न्ज़तदगी
बबता दे ते हैं “, चाय तैयार हो गई थी और हम पीने लगे। काफी दे र तक बैठे बातें करते रहे और जब बात हुई ब्रेकफास्ट की कक कहाुँ खाना था तो कुलविंत कहने लगी कक बाहर खाते खाते मन उभ
ा गया है और अगर आप शॉप
जाएुँ। मैंने कहा कक हमारे पा
े आलू पपआज ला दें तो आज पराठे बनाये
तवा तो है नहीिं था। कुलविंत बोली कक पराठे वोह फ्राईपैन में
बना लेंगी। आइडिया हम को प िंद आया। कोई एक घण्टे बाद तैयार हो कर मैं और ज विंत शॉपपिंग के सलए बाहर आ गए। ग्रॉ री स्टोर कोई ज़्यादा दरू नहीिं था, जल्दी ही हम इ स्टोर में आ गए। स्टोर कोई इतना बडा नहीिं था लेककन हर चीज़ वहािं थी। ज विंत मीट का बहुत शौकीन है । मीट
क् ै शन की ओर दे ख कर ज विंत बोला,” मामा ! आज शाम को मीट
चावल बनाएिं ?”, मैंने कहा,”अगर जी चाहता है तो ले चलते हैं “, हम ने आलू पपआज, कुछ न्जज़यािं और कुछ और फ़ूि बास्केट में रख ली और जब हम मीट
ैक्शन की ओर गए तो
पुतग ट ीज़ लडककयािं इिंन्ग्लश नहीिं बोलती थीिं। मीट तो वहािं बहुत प्रकार का था लेककन न्ज तरह का हम चाहते थे, वोह कटा हुआ नहीिं था। ज विंत ने उ मझाया और वोह मस् ु करा कर
मझ गई और उ
थे। दो शॉपपिंग बैग भर कर हम वाप
लडकी को इशारों
े
ने उ ी तरह काट ददया जै ा हम चाहते
कमरे में आ गए। कुलविंत और गगयानों बहन अपने
काम में म रूफ हो गईं। आलू उबलने रख ददए गए और पपआज काटने शुरू हो गए। आटा चावल हम इिंगलैंि
े ही ले आये थे। पराठे बनाने में कोई ददकत पेश नहीिं आई क्योंकक
फ्राईपैन काफी बडा था। जल्दी ही आलू वाले पराठे बन गए और
भी बैठ कर खाने लगे। बटर के
ाथ पराठों का
मज़ा आ रहा था। चाय भी बन रही थी। खाते खाते बातें भी कर रहे थे कक घर
े आटा और
म ाले ला कर हम ने बहुत अच्छा ककया। अच्छे अच्छे खाने होटलों में खाये थे लेककन उन खानों का पराठों
े कोई मुकाबला नहीिं था। बबदे शी खाने न्जतने मज़ी खा लें लेककन अपने
दे ी खानों
े इ
पराठों में तो घा
का कोई मुकाबला नहीिं है और खा
कर पराठे ?, हम हिं ा करते थे कक
भी भर लें , वोह भी स्वाददष्ट लगें गे। जवानी के ददनों में मैं और कुलविंत
पराठों में ककया ककया िाला जाए, यह ही तजुबे करते रहते थे, आलू वाले पराठे , गोभी वाले, पपआज वाले, जीरे वाले,
ख ू े धननये वाले,
ोया वाले, पपछले ददन की बची हुई दाल
जज़ी
वाले, और ना जाने इन पराठों में ककया ककया िालते रहते थे। इिंगलैंि में शक्र ु वार का ददन खा
होता है , इ
ददन आम लोग बाहर का खाना खाते हैं, खा
दक ु ानों पर लिंबी लिंबी कतारें लगी होती हैं, मैकिॉनल्ि,के ऍफ़
कर कफश ऐिंि गचप्
की
ी और न जाने ककतने बबदे शी
खानों की दक ु ानों पर लोग जाते हैं। ऐ ा नहीिं है कक हम नहीिं खाते लेककन बहुत कम। कुलविंत मज़ेदार पराठे बनाती है और मज़े और
े दही और लस् ी के
ाथ हम बढ़ ू ा बढ़ ू ी खाते हैं
ाथ में बातें भी ककये जाते हैं,” आ हा, मज़ा ही आ गया, आज तो बई बह जा बह जा
हो गई “, और आज हम पुतग ट ाल में बैठे आलू,पपआज और म ाले वाले पराठे खा रहे थे। चाय भी बन गई थी और गगयानो बहन ने कपों में िाल दी थी। चाय पीते पीते बात कफर सलज्बन की शुरू हो गई। ” मामा ! चैस्ट नट बहुत मज़ेदार थे “, ज विंत बोला। अब
भी चैस्ट नट्
के बारे में बातें करने लगे। दर अ ल सलज़बन
में जब हम घूम रहे थे तो मज़ेदार महक
ुकेयर
ी आ रही थी। यह तो ज़ाहर था कक यह कक ी
खाने की महक थी लेककन ककया, यह कक ी को मालम ू नहीिं थी। यह
क ु े यर काफी बडा है ।
घम ट ाली अपने स्टाल पे कोलों पर चैस्ट नट् ु ते घम ु ते जब हम द ु री ओर गए तो एक पत ु ग भून रहा था। दे ख कर ही मुिंह में पानी आ गया क्योंकक यह चैस्ट नट् बारह फ़ीट लिंबा उ
का स्टाल था और उ
मेरे फेवररट हैं। द
पर एक खल ु ा ओवन था, न्ज
में लकडी के
कोयले थे जो जलते हुए लाल हो रहे थे। इन कोयलों के ऊपर तार का बना हुआ बडा फ्रेम था, न्ज
के ऊपर चैस्ट नट्
रखे हुए थे और कोयलों की आग
गए थे। लोग इदट गगदट खडे यह चैस्ट नट् कोन में चैस्ट नट्
िाल कर ग्राहकों को
े भन ू कर काले हो
खरीद रहे थे। वोह पत ट ाली पेपर ु ग
े बनी हुई
वट कर रहा था। हम ने भी एक एक कोन ले ली
और एक जगह बैंचों पर बैठ गए और चैस्ट नट् स्वाद कुछ कुछ उबले हुए
ा
को छील छील कर खाने लगे। इन का
िंघाडे जै ा है और थोह्डा शकरकिंदी
े भी समलता है । भारत के
कई प्रािंतों में रे हिीओिं पर कुछ कच्ची मिंग ू फली भून कर बेचते हैं जो बहुत स्वाददष्ट लगती है , ब
इ ी तरह ही यह चैस्ट नट्
भन ू कर बेचते हैं। चैस्ट नट्
हाथ काले हो गए थे। पुतग ट ाली ने दटशू पेपर दे ददए थे और उ सलए।
की जली हुई छील े हमने हाथ
े हमारे
ाफ़ कर
चैस्ट नट्
की बात करते करते कुलविंत कुछ भावुक हो गई और उ
बात करने लगी, जो एक दीवार के चले जाते थे । हम
ब ने उ
पुतग ट ाली के बारे में
ाथ बैठा था और कुछ लोग उ
के आगे पै े रख कर
को दे खा और दे ख कर मन रोने को हो रहा था। ऐ ा चेहरा
हम ने न्ज़तदगी में कभी नहीिं दे खा था। कुलविंत की आुँखों में आिं ू थे और बोल रही थी,” भगवान ् ने इ
को ऐ ी
जा क्यों दे दी “, इ
ददल पर पत्फथर रख कर अब इ चेहरा हो और आुँखें भी इ
पर बडे हुए मािं
का चेहरा ऐ ा था, जै े एक हाथी का
रोग के कारण हाथी जै ी हो गई थी। कभी कभी वोह अपनी
आुँखों के ऊपर बडा हुआ मािं नहीिं दे ता था। हमारे
को सलखग ूिं ा। उ
पत ट ाली के बारे में सलखना ही दख ु ग ु दायक है ।
उठा कर दे खता तो हम को िर लगता। नािंक बबलकुल ददखाई
ामने ही उ
ने कुछ खाना शरू ु ककया और वोह पवचारा ऐ े अपने मिंह ु
को ऊपर उठा कर खा रहा था जै े हाथी अपनी
ूिंि
े मुिंह में कुछ िालता
है । ऐ ा इिं ान हम कक ी ने भी दे खा नहीिं था। वोह पवचारा बैठा ऐ ा लगता था जै े मुिंह नीचे करके बैठा हो, लगता था उ ज विंत ने इतने
का
र और मुिंह उ
को बहुत भारी लगता होगा।
ाल हस्पताल में काम ककया था लेककन उ
ने भी ऐ ा इिं ान पहले कभी
नहीिं दे खा था। वै े ज विंत ने कहा कक यह बहुत बडा ट्यम ू र था न्ज भी बहुत मुन्ककल था। कुलविंत ने उ
के आगे पािंच यूरो रख ददए लेककन जब हम वहािं
चल ददए कुलविंत कफर पीछे मुड आई और पािंच यूरो और उ लोग दे रहे थे लेककन उ
का ऑपरे शन करना े
के आगे रख आई। पै े तो
के रोग को दरू करने की कक ी में शन्क्त नहीिं थी। अब कफर उ ी
बात को ले कर चचाट होने लगी। गगयानो बहन बोली,” यह तो कोई पपछले जनम के कमों का फल ही होगा “, मैं तो चप ु था, ककया बोलता लेककन कुलविंत इ रही थी और बोल रही थी कक इ बेहतर यही होगा। हमारे कुछ कहने
को बहुत
े तो भगवान ् मौत ही दे दे । इ
ीरीअस्ली
ोच
परकार् के जीने
े तो
े ककया होगा और मैं उठ कर कपिे बदलने की
ोचने
लगा। ज विंत और गगयानो बहन भी अपने कमरे की ओर जाने लगे। आधे घण्टे में हम कपिे बदल कर गगयानो बहन के कमरे में चले गए और पुछा कक आज का ककया प्रोग्राम था। ज विंत बोला, ” आज, एक तो
िंतरों के बाग़ दे खते हैं और द ू रे सलिल स्टोर को चलते
हैं ताकक कुछ और शॉपपिंग कर लें क्योंकक अब हम ने कहीिं दरू तो जाना नहीिं, ब
अब जो
वक्त बचा है , यहीिं अलगाव में ही बबताते हैं “, कमरे बतद करके हम नीचे आ गए। कार नज़दीक ही खडी थी, इ
में बैठ कर अलगाव
े बाहर जाने के सलए चल पडे।
जै े ही हम नीचे आये और कर में बैठने लगे तो एक गोरा जो पहले भी समलता रहता था, उ
ने हमें है लो बोला और बातें करने लगे। बातों बातों में हम ने बताया कक हम सलज़बन हो
कर आये थे, तो वोह कहने लगा कक वोह तो वहािं बहुत दफा सलज़बन जा चक् ु का था और हमें कहा कक हम
ैपवल (seville) भी हो कर आएिं और यह
स टी है और वहािं का कैथीड्रल दे ख कर आएिं। बातें होने लगीिं तो उ
पेन की एक बहुत ही खब ू ूरत
ैपवल एक टूररस्ट िैन्स्टनेशन है । कफर फ़ूि की
ने एक होटल का नाम बताया, यहािं का पीरी पीरी गचकन बहुत मशहूर
है और बहुत मज़ेदार है । जब कोई हॉसलिे के सलए आता है तो ज़्यादा बातें फ़ूि और इनतहास क जगह दे खने की ही होती है और गोरे तो बहुत मज़े करते हैं, जगह जगह डिनर ऐिंि िािं
बार में जाना ही इन की ऍतजॉएमें ट होती है । न्जतनी दे र गोरा हमारा पा
वोह रै स्टोरैंट और तरह तरह के डड्रिंक की बातें ही करता रहा और आखरकार उ करके हम कार में बैठ गए और
खडा रहा, को बाई बाई
िंतरों के बाग़ दे खने चल पडे। हमें दरू नहीिं जाना पडा, ब
आधे घिंटे में ही हम एक orrange grove के पा
खडे थे, न्ज
िंतरे बेच रहा था और लोग खरीद रहे थे और ऑरें ज जू
के गेट पर एक पुतग ट ाली
भी पी रहे थे। दरू दरू तक
के बक्ष ृ ही बक्ष ृ ददखाई दे रहे न्जन का कोई अिंत ददखाई नहीिं दे ता था। हम ने उ को इ
पुतग ट ाली
बाग़ के भीतर जाने के सलए पुछा लेककन वोह इिंन्ग्लश नहीिं बोलता था, हमारी बात
वै े वोह
मझ गया और हमारे हाथों में कैमरे दे ख कर हमें इछारा कर ददया कक हम जा
कते थे। जै े जै े हम आगे बढ़ते गए, दोनों तरफ बक्ष ृ ों पर मोटे मोटे िंतरों का यह बाग़ ककतना बडा होगा, इ दरू तक
िंतरों
िंतरे ही
िंतरे ददखाई दे ते थे। इ
का अिंदाजा हम नहीिं लगा
िंतरे लटक रहे थे। कते थे क्यों कक दरू
में खूब ूरती यह थी कक लाइनों में ऐ े थे जै े
खेत में कोई फ ल कतारों में बीजी गई हो और इन लाइनों के बीच में चार पािंच फ़ीट चौडा रास्ता बना हुआ था और यह रास्ता
िंतरे तोडने के सलए रखा गया था। मीलों तक
िंतरे ही
िंतरे ददखाई दे रहे थे। हमें पता नहीिं यह फामट एक फामटर का ही होगा या ककतने मालकों का होगा। आगे गए तो कुछ औरतें मदट लकडी की
ीिीआिं लगा कर
िंतरे तोड रहे थे और
बक् े भर भर कर कुछ दरू खडे ट्रक में िाल रहे थे। ज़्यादा दरू जाने का तो हमें फायदा कोई नहीिं था, इ
सलए एक जगह खडे हो कर हम ने कुछ फोटो खीिंची। कुलविंत और गगयानों
बहन एक हाथ में बक्ष ृ की एक टहनी न्ज
पर
इन बक्ष ृ ों में खा
िंतरों की कई कतारें ऐ ी थीिं न्जन में बहुत छोटे
छोटे बक्ष ृ थे और
बात यह थी कक इन में िंतरों
फोटो ले कर हम वाप
िंतरे लगे हुए थे, पकड कर फोटो खखिंचवाई।
े लदे हुए थे और कई कक म के थे। आ गए और उ
पत ट ाली ु ग
े
िंतरे खरीदे । दो यरू ो का एक बैग भर
गया। बैग हम ने कार में रखा और आगे चल ददए। दरू दरू तक बाग़ ही बाग़ ददखाई दे ते थे और कुछ कुछ दरू ी पर
डक के दोनों तरफ पुतग ट ाली
िंतरे बेच रहे थे। इतने
िंतरों के बक्ष ृ
मैंने कभी नहीिं दे खे थे। काफी दे र हम घुमते रहे और कफर पूछते पूछते हम सलिल स्टोर में आ गए। यह बहुत बडा ग्रॉ री स्टोर था। अब तो इिंगलैंि में भी बहुत सलिल स्टोर खल ु गए हैं और महुँग़ाई बढ़ जाने के कारण लोग यहािं बहुत शॉपपिंग करते हैं क्योंकक इ चीज़ें काफी
स्ती हैं। द
स्टोर में
ाल पहले जब इिंगलैंि में सलिल स्टोर खल ु ने लगे थे तो इ
इतने लोग जाते नहीिं थे क्योंकक अक् र लोग
मझते थे कक इ
में
स्टोर में चीज़ें घदटया
कुआसलटी की होती हैं लेककन अब लोगों का नजररया बदल गया है , शायद महुँ ग़ाई के कारण। जो जरूरी चीज़ें थीिं वोह हम ने ले लीिं। ज़्यादा चीज़ों की हम को अब जरुरत नहीिं थी क्योंकक इिंगलैंि वाप
आने को भी कुछ ही ददन रह गए थे। शॉपपिंग करके हम वाप
होटल में आ
गए। गगयानो बहन और कुलविंत अपने सलए रात का खाना बनाने में म रूफ हो गईं और ज विंत का खखयाल था कक हम दोनों बाहर खाएिं। शाम को जब अुँधेरा होने लगा तो मैं और ज विंत बाहर को चल ददए। रौशननयािं थीिं लेककन ग्राहक ज़्यादा ददखाई नहीिं दे ते थे। बताया था, हम उ
ब ट ाली होटल ु ह गोरे ने जो पत ु ग
में चले गए लेककन वहािं कोई भी ग्राहक नहीिं था। यह दे ख कर हम को
है रानी हुई। जब हम भीतर गए तो एक पैंती को
ब होटलों में
चाली
त स री बोला। हमें है रानी और खश ु ी हुई। उ
कहने पर वोह तीन ग्ला
वषट का लडका आया और आते ही हम लडके ने हमें बीयर का पुछा। हमारे हाुँ
ले आया। दो हमारे सलए और एक अपने सलए और हमारे
बैठ गया। क्या खाना था, उ
के पछ ू ने पर हम ने पीरी पीरी गचकन ऐिंि राइ
ाथ ही
बोल ददया। ”
आप बबयर का मज़ा लें और हम आप के सलए बबलकुल ताज़ा गचकन बनाएिंगे “, बोल कर वोह ककचन में चला गया और वहािं खडी एक लडकी को पुतग ट ाली भाषा में हमारे उ
मझ ददया और
ाथ बैठ गया। कफर वोह बोलने लगा कक वोह तो इिंडिया जाता ही रहता था क्योंकक
के बहुत
चक् ु का है ।
े ररकतेदार गोआ में थे। उ
ने यह भी बताया कक वोह तो जालिंधर भी जा
ारी बातें तो मझ ु े याद नहीिं लेककन दो घुँटे वोह हमारे पा
ही बैठा बबयर पीता
रहा और इिंडिया की बातें करता रहा । जब खाना तैयार हो गया तो वोह खद ु ही प्लेटें भर के हमारे
ामने रख गया और खद ु उ
लडकी
े बातें करने लगा। खाना बहुत अच्छा था, मज़े
े हम ने खाया और जब काउिं टर पे पै े दे ने लगे तो थी। पै े दे ते
मय ज विंत उ
थी। वोह लडका उ
को
लडकी
ारे खाने की कीमत स फट बारह यूरो
े बातें करने लगा लेककन वोह इिंन्ग्लश नहीिं बोलती
मझ रहा था। हमारे स वा होटल में और कोई नहीिं आया। उ
लडके ने बताया कक दो हफ्ते बाद
ब होटल कफर
े बबज़ी हो जाएिंगे। इ
पुतग ट ीज़
े यह
मुलाकात अब तक मुझे और और ज विंत को नहीिं भूली। कभी कभी ज विंत बोल दे ता है ,” मामा ! याद है , पीरी पीरी गचकन ऐिंि राइ चलता…
?”
मेरी कहानी - 164 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन September 12, 2016 अब हम ने कही और तो जाना नहीिं था, इ भी अब इतना नहीिं था।
ो एक ददन हम
सलए अलगाव में ही घूमना कफरना था। वक्त मुतदर के ककनारे मज़े करने का प्रोग्राम बना
सलया। बीच ककतनी दरू है , हम ने पहले ही पता कर सलया था और यह स फट आधे घण्टे का पैदल
फर था। ज विंत को मैंने कहा कक हम टै क् ी ले लेते हैं। जै े इिंडिया में टै क् ी वाले
पीछे पढ़ जाते हैं, यहािं ऐ ा कुछ नहीिं था। टै क् ी स्टैंि पर टै क् ीयािं होती हैं और अगर कक ी को चादहए तो खद ु जा कर उ बी
े पूछ
कते हैं। एक टै क् ी वाले
े पता ककया तो उ
ने
यूरो मािंगे। ज विंत कहने लगा,” मामा! पैदल चलते हैं और पविंिो शॉपपिंग भी करते जाते
हैं “, टै क् ी का इरादा छोड हम पैदल चलने लगे और ज विंत का यह फै ला ठीक ही था क्योंकक रास्ते में तरह तरह की दक ु ाने थीिं। चलते चलते बहुत और फै ला ककया कक बीच तो हम को कोई मह ू
े वाप
आते वक्त हम इन को खरीद लेंगे। चलते चलते पहले
नहीिं हुआ क्योंकक
डकें
ही रह गए तो दे खा कक बीच तक जाने वाली ही मह ू
ी चीज़ें हम ने प िंद कर लीिं
मतल ही थीिं लेककन जब बीच
डक की ढलान बहुत स्टीप थी और दे ख कर
हो गया कक हम को टै क् ी कर लेनी चादहए थी। अब तो बीच
रहा था और हम इ ी मक द
े कुछ दरू
डक की एक ओर लगी रे सलिंग को एक हाथ
ामने ददखाई दे ही
े पकड कर चलने लगे जो
े बनाई हुई थी। धीरे धीरे हम ऐ े चल रहे थे जै े कक ी पहाडी
े नीचे उतर
रहे हों। बीच तक पहुुँचने में हम को कोई पिंदरािं समिंट लगे। बीच पर पहुिंचे तो दे ख कर रूह खश ु हो गई, बबलकुल उ ी तरह ददखाई दे रहा था जै े हॉसलिे किंपनी के ब्राउचर में था। ामने
मत ु दर की बडी बडी लहरें ददखाई दे रही थी। मौ म बहुत
ह ु ावना था, ना ज़्यादा
गमी, ना ठिं िक। दरू दरू तक ब्राऊन रिं ग की रे त ही रे त थी और लोग बीच चेअरों पर लेटे हुए थे। गोरीआिं बबकीनी में थीिं और उन के मदट स फट चड्िी में और बच्चे
िैं कै ल बना रहे थे।
नज़दीक ही बबयर बार और बारबकीऊ स्टाल थे, न्जन पर तरह तरह की मछसलयािं और अतय खाने भन ू े जा रहे थे। यहािं की
ािीन मछली बहुत मशहूर है । गोरे लोग कुछ तो बार में बैठे
बीअर का मज़ा ले रहे थे और कुछ लोग बार
े बोतलें खरीद कर बीच पर ही ले आते।
एक तरफ बडी बडी चटाने थीिं। कुछ चटाने कुदरत ने ऐ ी बना दी थी जै े कोई गेट हो और यह
मत ु दर के बबलकुल ककनारे पर थी, इन गेट जै ी चटानों के नीचे
था। एक चटान के ऊपर लोग खडे हो कर
े
ाफ़ पानी बह रहा
मुतदर का नज़ारा दे ख रहे थे। इन चटानों पर
चढ़ना कुछ खतरनाक था। कुलविंत और गगयानो बहन तो एक जगह बैठ गईं लेककन मैं और ज विंत उन चटानों पर चढ़ने लगे। ऊपर जाने के सलए चटान के एक स रे पर पगििंिी बनी हुई थी, जो मुन्ककल
े दो फीट चौडी थी और नीचे
मुतदर की बडी बडी छलें ददखाई दे रही
थीिं, जो दे ख कर िर भी लगता था कक कहीिं इन में गगर ना जाएुँ। चटान को एक तरफ पकड पकड कर हम आगे बढ़ रहे थे। एक जगह तो यह पगििंिी मन्ु ककल होगी लेककन हौ ला करके हम इ ककलोमीटर दरू ी पर कभी कभी कोई
े
मुतदर का नज़ारा अधभुत था। कोई आधा
मुिंद्ी जहाज़ जाता ददखाई दे ता। इ
तरफ हम ने घम ू कर नज़ारा दे खा। कोई पिंदरािं बी वाप
े एक फुट चौडी
को पार कर गए और चटान के बबलकुल ऊपर पहुुँच गए।
और लोग भी वहािं घूम रहे थे और यहाुँ
कफर वाप
े
समनट हम इ
चटान के तीनों
चटान पर घम ु ते रहे और
चलने लगे और जल्दी ही नीचे आ गए। एक कैफे में जा कर खाया पपया और
चल पडे। कुलविंत चाहती थी हम टै क् ी कर लें लेककन ज विंत बोला कक ब
समनट की ऊिंचाई है , कफर इ
यह पिंदरािं
के आगे तो बहुत आ ान है और ऊपर जा कर कुछ शौपपिंग भी
हो जायेगी। हम चल पडे। लोहे की रे सलिंग को पकड पकड कर हम ऐ े चल रहे थे जै े माऊिंट एवरे स्ट पर चढ़ रहे हों। दोनों तरफ बडे बडे मकान थे, बातें करते जाते थे कक इन घरों के लोग तो हर रोज़ यह चढ़ाई चढ़ते होंगे। बडी मुन्ककल
े हम ऊपर आये, अब आगे
चलना आ ान था। आगे दक ट ाल में ु ाने ही दक ु ाने थीिं न्जन में वाइन की दक ु ाने बहुत थीिं। पुतग वाइन बहुत बनती है , इ
का कारण यहाुँ फ्रूट बहुत होता है । फ्रूट
े बनी तरह तरह की
वाइन जो पुतग ट ाल की बनी हुई होती है ,वोह इिंगलैंि और अतय दे शों को एक् पोटट की जाती है और यही वाइन इिंगलैंि में बहुत मह्तघी समलती है । इ सलए आते हैं यहाुँ
सलए जो लोग अल्गावट में हौसलिे के
े वाइन की बोतलें खरीद लाते हैं। चार चार, फ्रूट वाइन की बोतलें हम ने
भी ले लीिं। फैं ी गुिज़ की दक ु ाने बहुत थीिं। कुलविंत ने हैंि बैग सलया और कुछ ज पविंदर और रीटा पपिंकी के सलए खरीदा जो याद नहीिं ककया कुछ था लेककन मैंने अपने सलए एक बडा मघ खरीदा जो अभी भी मेरे
ामने शीशे की अलमारी में पढ़ा ददखाई दे रहा है , न्ज
पर
बडे अक्षरों में अल्गावट सलखा हुआ है । यहाुँ काफी शौपपिंग हम ने की। वै े तो यह रहायेशी एरीया है लेककन यहाुँ होटल भी बहुत हैं और न्ज़आदा दक ु ाने घर के फ्रिंट रूम में होती हैं जो
डक की ओर खल ु ती हैं । आज हम ने
काफी घम ू सलया था और अब होटल की तरफ रवाना हो गए। होटल में पहुुँच कर कुलविंत ने चाय बनाई। चाय पी कर ज विंत और गगयानो बहन अपने कमरे में चले गए ताकक कुछ आराम हो
के। रात को होटल के हाल में ही प्रोग्राम था जो हौसलिे कम्पनी की ओर
े होना
था। अब हम ररलैक्
होने के सलए
ो गए। याद नहीिं ककतने घिंटे
ोये लेककन जब उठे तो
अुँधेरा हो चक् ु का था। टै ली ऑन ककया और बीबी ी ननऊज़ दे खख। ननऊज़ दे ख कर
नान
ककया, कपिे बदले और हम ज विंत और गगयानो बहन के रूम में चले गए। वोह लोग भी तैयार हो रहे थे। याद नहीिं ककतना वक्त होगा लेककन काफी अुँधेरा हो चक् ु का था। हम नीचे आ गए और
ीधे हाल में आ गए। हाल में लोग बच्चों के
थी और समऊन्जक वज रहा था। मदट उठ कर बार
ाथ आ रहे थे। स्टे ज लगी हुई
े अपने सलए, बचों के सलए और अपनी
पन्त्फनओिं के सलए डड्रिंक ला रहे थे। हम भी अपने सलए और औरतों के सलए आये और बातें करने लगे। हमारे पा फ़ारो एअरपोटट
अब एक ही ददन बचा था और उ
े फ्लाईट ले लेनी थी, इ
ॉफ्ट डड्रिंक ले के बाद हम ने
सलए द ु रे ददन को भी शौपपिंग के स वाए और
कुछ नहीिं करना था। ज विंत कहने लगा, ” मामा ! आज मज़े
े पपयें “, और हम चीअरज़
कह कर पीने लगे। शो बहुत शानदार चल रहा था और यह हॉसलिे किंपनी की तरफ
े ही था और इ
को स्टे ज
करने वाले गोरे ही थे। बच्चों को स्टे ज पर बुला कर उन के मुकाबले कराते थे और कभी कभी तासलयाुँ बजती थीिं, उन के माता पपता खब ू जोर शोर अफ़ज़ाई करते। हमारे स वा
े उठ कर उन की हौ ला
भी गोरे लोग ही थे और हम मज़े
े अपनी बातें कर रहे थे।
ज विंत कहने लगा,” मामा ! हॉसलिे कै ी रही ?”, मैंने कहा,” भला हो तम ु ारा, यहािं आ कर इतना कुछ दे खा जाना कक कभी जनम भूसम को दे खेंगे, हम तो
पने में भी ारी उम्र इनतहा
ोचा नहीिं था कक कभी वास्कोडिगामा की की ककताबों में ही पढ़ते रहे , अब यहािं आ
कर तो ऐ ा लगा जै े वास्कोडिगामा अभी भी यहािं ही रहता है “, ज विंत हिं बोला कक कारक ट्री तो उ
पढ़ा और
ने भी पहली दफा दे खे थे। मैंने बोला, “ज विंत ! वास्कोडिगामा
की तो छोडो, मैं तो यह जान कर है रान हूुँ कक पत ट ाल के अधीन 52 दे श थे और कभी ु ग ब्राज़ील भी इन के अधीन था, जो 1822 में आज़ाद हुआ था, हम तो अिंग्रेजों के बारे में ही ोचते रहे , यहािं आ कर तो है रानी हुई कक फ्रािं
इटली स्पेन हॉलैंि आददक दे शों की अपनी
अपनी ब तीआिं थीिं। इन गोरे लोगों ने अपनी हुसशयारी
े बडे बडे दे श अपने अधीन कर सलए
और उन को खब ू लूटा और रही बात स्लेवरी की तो हम तो स फट भारत पर मुगलों के हमलों के बारे में ही
ोचते रहे कक हमारे लोगों को गज़नी के बाज़ारों में बेच जाता था, यहािं तो इन
लोगों ने अफ्रीका के जिंगलों
े उन लोगों को पकड पकड कर नए दे श ही बना ददए। जब
कोलम्ब
ने अमरीका का पता ककया तो इन लोगों को मज़दरू ों की जरुरत थी, इ
सलए
अफ्रीका
े लोगों को पकड पकड कर यहािं काम पर लाया, तभी तो तो यह लोग इतने अमीर
हो गए, इ
स्लेवरी की तस्वीर दे खनी हो तो रुट कफल्म में भी दे खख जा
! मैं भी तो कीननया में पैदा हुआ था, मामा (गगयानो बहन )
कती है “, ” मामा
े पूछ लो, हमारे बज़ुगों ने भी
तो वहािं स्लेवरी ही की थी, अफ्रीका को बबल्ि अप्प करने वाले हमारे लोग ही थे ” बातें करते करते बहुत वक्त हो गया और कुछ लोग काउिं टर एक तरफ प्लेटें चमचे ग्ला लाइन लगी हुई थी और
े अपने सलए खाने ला रहे थे।
और नैपककन जै ी चीज़ें पढ़ी थीिं और
ाथ ही ट्रे रखी हुई थीिं।
ब लोग अपनी अपनी ट्रे में अपनी मज़ी के खाने िालते हुए आगे
जा कर पै े दे दे ते थे। हम भी इ
लाइन में खडे हो गए और अपने प िंदीदा खाने ले कर
टे बल पर बैठ गए और खाुँने लगे। खाने बहुत स्वाददष्ट थे। खाते खाते ज विंत बोला, ” मामा ! अपने घर में हम ककतने तेज़ समचट म ाले खाते हैं लेककन इन खानों में कोई तीखी चीज़ है ही नहीिं, कफर भी बहुत स्वाद लगते हैं “, हाुँ ! यह बात तो तुमारी
ही है , ब
हम को
आदत ही पढी हुई है करारे म ालों की, मैंने जवाब ददया। बातें करते करते खाना खा सलया, रात काफी बीत चक् ु की थी और हम उठ कर ऊपर अपने अपने कमरों में आ कर द ू रे ददन
ुबह उठे तो कार हायर वालों की ओर
े वही गोरी कार वाप
ो गए।
लेने आ गई। गोरी
ने कार को अनछ तरह कार के अिंदर और बाहर दे खा, यह दे खने के सलए कक कार को कोई नुक् ान तो नहीिं हुआ था। फ़ाइल ननकाल कर उ
ने ज विंत के दस्तखत सलए और कार ले
कर चल दी। हम भी तैयार हो कर बाहर शॉपपिंग के सलए चल पढ़े । आज
ारा ददन हम
दक ु ानों के चक्कर ही काटते रहे । कुलविंत और गगयानो बहन तो थक कर अपने कमरे में आ गईं लेककन मैं और ज विंत मटरगकती करते रहे । एक छोटी की थी जो होगी कोई
तर बहत्तर
ी दक ट ाली बुढ़ीया ू ान एक पुतग
ाल की। यह बड ु ीआ बबलकुल इिंडियन औरतों जै ी थी।
यह अिंग्रेज़ी बहुत अनछ तरह बोलती थी। हमारे
ाथ बातें करते करते उ
आ गए। बोली,” मेरी लडकी अब िाक्टर बन गई है , उ
की आुँखों में आिं ू
की उम्र भी अब चाली
की हो गई
है लेककन शादी नहीिं कराती, मैं चाहती हूुँ यह शादी करा ले और मैं अपने पोते पोती को दे ख कुँू “, बहुत बातें तो मझ ु े याद नहीिं लेककन बहुत दे र तक हम उ ऐ े लगा जै े कोई इिंडियन बदु ढ़या ही हो क्योंकक इिंगलैंि में तो
े बातें करते रहे । हमें भी अपने बच्चों के बारे में
एक बात ही कह दे ते हैं की यह उनकी अपनी न्ज़तदगी है । द ू रे ददन हम ने द
बजे कमरा खाली कर दे ना था, इ
सलए रात को ही हम ने बहुत
ा
ामािंन पैक आप कर सलया था । आज रात हम ने खब ू बातें कीिं, दे र रात तक बैठे रहे और ो गए।
ुबह जल्दी जल्दी उठे , तैयार हो कर ब्रेकफास्ट के सलए चले गए। वाप
आते ही
दे खा, कुछ लोग अपने पैक अप्प ही था,
ूटके
नीचे ले आये थे। हम भी कमरे में गए, ज़्यादा
ो कुछ ही समनटों में अपने अपने
ूटके
ामान तो
नीचे ले आये और अपनी
अपनी दटकटें और पा पोटट बगैरा लेने के सलए हम भी लाइन में खडे हो गए। आधे घिंटे में ही
ब ने अपने अपने पा पोटट दटकटें बगैरा ले सलए। कुछ दे र बाद ही एक कोच आ गई,
न्ज
में
े नए यात्री ननकल रहे थे न्जतहोंने इ ी होटल में ननवा
ननकलने के बाद उ ी ब
में हम
करना था और उन के
वार हो कर फारो एअरपोटट की तरफ रवाना हो गए। आधे
घिंटे में फारो एअरपोटट पर पहुुँच गए। चैक इन पर एक घिंटे का वक्त लगा और कुछ दे र बाद जहाज़ में बैठ कर इिंगलैंि की ओर उड रहे थे। पुतग ट ाल की यात्रा भी एक मज़ेदार यात्रा थी, न्ज
में बहुत बातों का गगयान हास ल हुआ, न्जन के बारे में कभी
चलता…
ोचा भी नहीिं था।
मेरी कहानी - 165 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन September 15, 2016 पुतग ट ाल की
ैर करके हम घर आ गए और तोहफे
भी को बाुँट ददए गए । ज पविंदर काम
पर जाने लगी थी और हम अपने काम में पवअ त हो गए यानी ऐरन के जो एक कक म का हमें उल्हा दौडता रहता। छोटे एक गािटन
ा समलता था। ऐरन अब चलने लगा था और कमरे में
े ढोल के
ोटी तोड दी। अब यह
ाथ उ
को बहुत प्रेम था। इ
ोटी कक ी दक ू ान
ोटी पहले
ढोल को बजाते बजाते उ
े समलनी तो मुन्ककल थी, इ
े कौननफर बक्ष ृ की एक टहनी तोडी और चाकू
हो गया। यह
ाथ वक्त बबताना,
े छील कर
ने
सलए मैंने
ोटी बना दी। ऐरन खश ु
े मज़बूत थी और अब टूटने का कोई खतरा नहीिं था। यही ढोल
कुछ ही महीने हुए एक ररकतेदार के पोते को दे ददया गया है । ददन कै े बीत जाते हैं, पता ही नहीिं चलता। तीन गया न्ज
ाल का ऐरन हुआ तो उ
को एक न रट ी स्कूल में दाखल करा ददया
का नाम है गगफिट न रट ी स्कूल। पहले उ
को हाफ िे ही जाना था, जो न रट ी का
अ ूल है । पहले ददन मैं और कुलविंत दोनों ऐरन को ले कर गए। हमारे सलए भी यह स्कूल नया ही था क्योंकक जब हमारे बच्चे छोटे थे तो उन को हम लेस्टर स्ट्रीट और कफर
ेंट
एिंड्रीउ स्कूल में पढ़ाते थे। पहले ददन जब ऐरन को ले कर गए तो पहले तो ऐरन प्ले ग्राउिं ि में द ू रे बच्चों को दे ख कर खश ु होता रहा लेककन जब 9 वजे घुँटी बजी तो हम ऐरन को ले कर अिंदर गए।
ब माताएिं अपने अपने बच्चों के कोट उतार कर खदूुँ टयों पे टािंग रही थीिं,
एक खट ूिं ी के ऊपर ऐरन का नाम सलखा हुआ था। कुलविंत ने ऐरन का कोट उतार कर उ खट ुँू ी पर टािंग ददया। जब हम उ
को अिंदर ले जाने लगे तो ऐरन रोने लगा। वोह अिंदर जा
नहीिं रहा था। एक टीचर आई और ऐरन को कलाई
े पकड कर ले गई और हमें बाहर जाने
को बोला। हम चले तो गए लेककन ऐरन के रोने की आवाज़ लगातार आ रही थी। हम दोनों की आुँखों में आिं ू थे और घर आने तक हम दोनों कुछ बोले नहीिं। चार घुँटे का वक्त था लेककन यह चार घिंटे हम उदा
ही रहे । एक बजे हम कफर स्कूल पहुुँच गये और जब घिंटी
वजी तो दरवाज़ा खल ु गया। धीरे धीरे आया था। उत्फ ुकता
ब बच्चे बादहर आ रहे थे लेककन ऐरन अभी नहीिं
े हम दे खते रहे और कफर अचानक उ
का चेहरा हमें ददखाई ददया।
ऐरन के हाथ में कुछ पेपर थे न्जन पर पें ट ककया हुआ था और उ हमें दे खते ही वोह भाग आया और हम
के हाथ भी रुँ गे हुए थे।
े सलपट गया। कुलविंत ने उ े कोट पहनाया और
बाहर आ गए। बाबा,” दे ख मैने पें ट ककया है “, ओह! लवली, इतनी अनछ ? तू ने तो कमाल कर ददया, हम ने कहा तो ऐरन बोले जा रहा था और एक दो नए दोस्तों के नाम भी सलये।
हम भी खश ु हो गए और गाडी में बैठ गए। कुलविंत ऐरन के िंदीप और ज पविंदर भी काम
े आये तो ऐरन
ाथ बातें कर रही थी। शाम को
े बातें करते रहे ।
द ु रे ददन मैं अकेला ही ऐरन को ले कर गया लेककन ऐरन जाना नहीिं चाहता था। जब मैं उ
का कोट उतारने लगा तो वोह रोये जा रहा था, ” बाबा ! प्लीज़ िोंट लीव मी “, मेरा
मन कमज़ोर पढ़ रहा था लेककन टीचर आई और उ
को पकड कर अिंदर ले गई। घर को
जब मैं आ रहा था तो रो रहा था। बेछक मुझे पता था कक धीरे धीरे ऐरन का मन लग जाएगा, कफर भी पोते
े मोह ही था जो मझ ु े कमज़ोर बना रहा था। घर आया तो कुलविंत ने
मुझे पुछा तो मैंने ठीक था कह ददया लेककन ददल मेरा एक बजे का इिंतज़ार कर रहा था कक जल्दी
े ऐरन के पा
पहुुँच जाऊिं। एक बजे हम दोनों गए। न रट ी का दरवाज़ा खल ु ते ही हम
अिंदर गए तो दे खा, ऐरन चला आ रहा था और हमें दे खते ही खश ु हो गया। कुलविंत उ कोट पहनाने लगी और मैं टीचर लगी,” कुछ ददन
को
े पूछ्ने लगा कक ऐरन रोता तो नहीिं था। टीचर कहने
भी बच्चे ऐ े ही करते हैं और बाद में जब उन के कुछ फ्रैंि बन जाते हैं
तो उन के सलए यह आम बात हो जाती है , हमारा तो यह रोज़ का काम है , आप को कफ़क्र करने की कोई जरुरत नहीिं है “, टीचर की बातों हम वाप रोज़
े हमें काफी राहत समली। ऐरन को ले कर
घर आ गए। धीरे धीरे यह मुन्ककल दरू हो गई और अब यह मेरी ड्यूटी ही गई।
ब ु ह छोड आता और एक बजे ले आता और कफर मैं लिंच ले के लाएब्रेरी में चला जाता।
लाएब्रेरी में इिंन्ग्लश के पेपर तो थे ही, होते थे। एक
ाथ में पिंजाबी और दहिंदी के पेपर और मैगज़ीन भी
ैक्शन पिंजाबी दहिंदी और उदट ू की ककताबों का होता था। उदट ू मैंने बचपन में दो
तीन महीने ही पडा था क्योंकक पककस्तान बन जाने के बाद ही मैं स्कूल में दाखल हुआ था, तब स्कूलों में उदट ू ही पढ़ाया जाता था लेककन जल्दी ही उदट ू बतद कर ददया गया था और पिंजाबी शरू ु हो गई। उदट ू का अल्फ बे पे ही पडा था, या एक उदट ू की नज़्म की एक दो लाइनें पडीिं थी जै े, ” आ जा पपयारी गचडडया आ जा, चिंू चिंू करके गीत . . . “, ब , इ
न ु ा जा, नने नने पिंजे तेरे.
के स वा कुछ याद नहीिं रहा था । लाएब्रेरी में कभी कभी मैं कोई उदट ू का
नावल उठा कर पढ़ने की कोसशश करता लेककन कुछ बन ना पाता । कफर एक ददन अचानक लाएब्रेरी में हातमताई का ककस् ा दे खा तो मैं उठा कर पढ़ने की कोसशश करने लगा। इ लफ्ज़ काफी बडे बडे थे। जब मैं
ातवीिं आठवीिं कक्षा में पडता था तो उ
के
मय मझ ु े
कहाननयों की ककताबें पढ़ने का बहुत शौक होता था। जब कभी हम फगवाडे जाते तो बाुँ ाुँ वाले बाजार में एक ककताबों वाली दक ू ान
े कुछ ककताबें ले आते थे ।
अब मैं
ोचता हूुँ, शायद इ ी दक ू ान
े मुझे ककताबें पडने का शौक बढ़ा था क्योंकक अभी
हम बचपन में ही थे और हमारा ददमाग इतना पवकस त नहीिं हुआ था। इ
दक ू ान में बहुत
कुछ होता था, जै े जततरीआिं, ज्योनतष की ककताबें,धासमटक ककताबें, जाद ू वाली छोटी छोटी ककताबें, न्जन के कुछ नाम अभी तक याद हैं जै े इिंद्जाल, बिंगाल का याद,ू भत ू व ी कणट जिंतर, पपपली भत ू , भत ू व ती
करने के मतत्र, ऐ ी बहुत
ी छोटी छोटी ककताबें न्जन के पची
फे होते थे, हम खरीद लाते और दोस्त इकठे हो कर पढ़ते और मन ही मन में भूतों
के चेहरे
ोचते रहते। इ ी दक ू ान
े मैंने हातमताई और तोता मैना की ककताबे लाइ थीिं,
न्जन को मैं चाुँद की रौशनी में पढ़ा करता था। हानतम ताई की ककताब में एक मुनीर शामी नाम के आशक के सलए हातम ताई कर हम बहुत
ीररय
ात
वालों के जबाब ढूतढ कर लाता था, न्जन को पढ़
हो जाते थे क्योंकक इ
में
ब जाद ू ही था। इ ी तरह तोता मैना की
ककताब में तोता कहता था कक औरतें बेवफा होती है और वोह इ कहानी
ुनाता था और इ ी तरह मैना अपनी कहानी
को स द्ध करने सलए कोई
ुना कर यह स द्ध करने की कोसशश
करती थी कक मदट बेवफा होते हैं। इन कहाननयों को पढ़ कर इतना मज़ा आता था कक छोडने को मन नहीिं करता था। पता नहीिं ककतनी दफा हम ने यह कहाननयािं पढ़ी होंगी कक हम को ज़ुबानी याद हो गई थीिं। ब
यह हातम ताई की ककताब जो बचपन में पिंजाबी में पढ़ी थी, उ
का फ़ायदा अब इ
उम्र में हुआ। लाएब्रेरी में जब मैंने हातम ताई की ककताब उदट ू में दे खख तो इ
को उठा कर
मैं पढ़ने की कोसशश करने लगा। एक तो यह ककताब मैंने पिंजाबी में पढ़ी हुई थी और द ू रे इ
ककताब में उदट ू के लफ्ज़ मोटे मोटे और आ ान थे, अिंदाज़े
े मैं पढता गया और कुछ ही
दे र में मैंने एक बाब पढ़ सलया। मुझे इतनी खश ु ी हुई कक मैंने ककताब इशू करवा ली और कुछ ही ददनों में
ारी ककताब खतम कर दी। मेरे कक ी दोस्त को उदट ू तो आता नहीिं था,
कफर भी मैंने धीरे धीरे उदट ू के नावल ले आने शरू ु कर ददए। इ
में मु ीबत यह थी कक
ीधे
ाधे लफ्ज़ तो मैं पढ़ लेता था लेककन मुन्ककल लफ्ज़ पढ़ नहीिं होते थे, कफर भी मतलब मझ आ जाता था। जै े दहिंदी में
िंस्कृत के लफ्ज़ होते हैं, इ ी तरह उदट ू में भी फार ी के
लफ्ज़ आ जाते हैं, न्जन को पढ़ना और
मझना मुन्ककल हो जाता है । यह स लस ला आज
तक वै े का वै ा ही रहा है क्योंकक कोई टीचर समला नहीिं। कफर भी मैं इिंटरनेट पे उदट ू के हाफत ददली को पडने की कोसशश करता रहता हूुँ, ुखखटयों
े ही मन परचा लेता हूुँ।
ारा ना भी पढ़ हो तो मोटी मोटी
कुछ दे र बाद ऐरन फुल टाइम न रट ी जाने लगा। अब मेरी ड्यूटी थी,
ुबह 9 बजे ऐरन को
न रट ी छोड आना और घर आ के ब्रेकफास्ट ले कर लाएब्रेरी चले जाना। एक बजे घर आ के लिंच लेना और कफर वाप था और द होता तो
लाएब्रेरी में चले जाना। तीन बजे ऐरन न रट ी
समिंट में मैं वहािं पहुुँच जाता और ऐरन को ले आता। कभी कभी जब ददन अच्छा ब ु ह को पैदल चल कर ही न रट ी ले जाता। मैकबीतज़ रोि कुछ लिंबी रोि है न्ज
के एक तरफ मकानों के ऑि निंबर हैं और द ु री तरफ ईवन नम्बर हैं। ऐरन को ले कर जाता तो उ ैवन और इ तरफ
े बादहर ननकलता
तरह
ब ु ह को जब मैं
े नम्बर पडने को कहता। वोह पडता जाता, वन, र्थ्ी, फाइव,
डक के आखरी मकान तक वोह पडता जाता और शाम को हम द ु री
े आते और वोह वन हिं ड्रि, नाइिंटी एट, नाइिंटी स क्
ऐरन खश ु होता था और द ू रे उ
पडता जाता। इ
े एक तो
को गगनती जल्दी आ गई थी।
इ ी दौरान घरों की कीमतें बढ़ने लगी थीिं। एक ददन
िंदीप मुझ
घर ले लें ?”, पहले तो
ा लगा, कफर मेरे ददमाग में बात आई
कक अपना घर लेने
न ु कर हम दोनों को झटका
े एक तो उन को न्ज़मेदारी का अह ा
े पूछने लगा,” िैिी हम
होगा और द ू रे एक प्रॉपटी और
हो जायेगी और ती रे हर पनत पत्फनी अपनी आज़ादी चाहते हैं। वोह चाहते हैं कक उन का भी कोई अपना घर हो। कुलविंत भी पहले पहले कुछ अजीब मह ू को
मझाया कक एक घर और लेने
करती थी लेककन मैंने उ
े हम को भी कुछ आज़ादी समलेगी। द ू रे इ
े पपयार
और बढ़े गा। मकान लेने का फै ला तो हो गया था लेककन मकान समलना इतना आ ान नहीिं था क्योंकक वोह
मय ऐ ा था कक कोई भी मकान दे खने जाते तो वहािं पहले ही बी
पची
लोग मकान दे खने के सलए खडे होते थे। ददनबददन मकानों की कीमतें बढ़ती जा रही थी। जो भी हम ऑफर दे ते, कोई और उ
े ज़्यादा ऑफर कर दे ता और मकान हाथ
जाता। ऐ े ही एक मकान हम ने दे खा लेककन इ िंदीप को बोला कक यह मकान भी हाथ
े ननकल
की काफी ररपेयर होने वाली थी। मैंने
े ननकल ना जाए, ररपेअर बाद में होती रहे गी।
ज पविंदर भी मान गई और हम ने डिपॉन्ज़ट दे ददया।
वेयर की ररपोटट और लोन एप्रूव होने
में कुछ वक्त लग गया और तकरीबन छै हफ्ते बाद हमें घर की चाबी समल गई। अब
वाल था इ
को ररपेअर करने का। इ
घर में पहले कोई बूढ़ा अुँगरे ज़ रहता था जो
लगता था कक गािटननिंग का शौकीन था क्योंकक गािटन में एक ग्रीन हाऊ तरह के प्लािंट थे लेककन यह
ब
में तरह
ूखे हुए थे। ऑसलव (जैतून )का एक बक्ष ृ था, जो जैतून
लदा हुआ था। एक तरफ लकडी की एक शैि थी, न्ज मैक् ीकन टाइप बडी
था, न्ज
ी है ट रखी हुई थी, शायद उ
में गािटननिंग टूल रखे हुए थे और एक बढ़ ू े की हो। घर के अिंदर बहुत कुछ
े
करने को था। तो पहले हम ने एक बढ़ा कर इ े
ककप्प रखवाया ताकक घर
े पुराना
ामान ननकाल
ककप्प में िाला जाए जो बाद में भरने पर लॉरी वाले ले जाते हैं। रोज़ रोज़ हम घर
ामान ननकाल कर
कर करे न
े
ककप्प में फैंकते जाते और लॉरी वाले को टे लीफोन कर दे ते जो आ
ककप्प को लॉरी के ऊपर रख लेता और चले जाता और
खाली करके खाली
ककप्प घर के बाहर रख जाता। अब मैंने
िंदीप को कहा कक अब घर को
अनछ तरह ररपेअर करके ही प्रवेश करना चादहए क्योंकक जब घर ररपेअर करना मुन्ककल हो जाता है । पहले हम ने घर की ेंट्रल हीदटिंग, न्ज
में
ककप्प को ििंप पर
ैट हो जाता है तो कफर
ारी ररवायररिंग कराई, कफर नई
ब नए रे डिएटर और नया बॉयलर कफक्
कराया। दीवारों को नया
पलस्तर करके पें ट ककया, नए दरवाज़े और नई िबल ग्लेन्ज़िंग करवाई। कफर ए टू ज़ैि नया फनीचर लाया गया। अब जा कर घर रहने के काबल हुआ। इ थी लेककन कफ़लहाल हम ने इ
घर में ककचन काफी छोटी
में ही नए यूननट कफट करवा सलए। काम बहुत था लेककन दो
तीन महीने में हम ने खतम कर सलया। न्ज
ददन
िंदीप और ज पविंदर ने नए घर में सशफ्ट होना था, उ
िैिी भी आये हुए थे,पहले तो कुलविंत ने अरदा
की और बाद में छोटी
रात को मैं और कुलविंत अपने घर आ गए लेककन अब हमें घर लेककन कुछ ही ददनों बाद
ददन ज पविंदर के ममी ूना
ी पाटी की और दे र ूना
ा लगता था
ब नॉमटल हो गया क्योंकक ज पविंदर काम पर जाती थी और ऐरन
की न्ज़मेदारी पहले की तरह हमारी थी। फकट स फट इतना था कक तीन बजे ऐरन को स्कूल ले कर इ
िंदीप के घर छोड आता था क्योंकक ज पविंदर जब तक काम
बात को अब तकरीबन बारह
ाल हो गए हैं और हम
े वाप
ोचते हैं कक उ
े
आ जाती थी। वक्त हम ने
बहुत अच्छा ककया था। अगर हम भावुक हो कर बच्चों को जाने ना दे ते तो आज जो हम में पपयार मह ु बत है , वोह शायद ना होता क्योंकक इकठे रहने में बहुत दफा ररकतों में दरार भी पढ़
कती है और आज हमारे बच्चे पहले
े ज़्यादा हमारा खखयाल रखते हैं और पोते तो
इतना करते हैं कक जब शाम को अपने घर जाते हैं तो गले लग कर जाते हैं। इ छोटा पोता भी हायर हो गई है । है ।
े
ैकिंिरी में जाने लगा है और कुलविंत की स्कूल जाने की ड्यूटी खतम
ुबह को दोनों पोते हमारे पा
वा आठ बजे दोनों अपने दोस्तों के
कफर हमारे पा
हफ्ते
आ जाते हैं और जब
आ जाते है और कुलविंत उन को ब्रेकफास्ट दे दे ती ाथ इकठे हो कर स्कूल चले जाते हैं। शाम को
िंदीप और ज पविंदर काम
खाना खा कर अपने घर चले जाते हैं। कुलविंत अपने
े आते हैं तो रात का
ीररयल दे खने लग जाती है और मैं
इिंटरनेट पे बैठ जाता हूुँ। है ना बुढापे का मज़ा ? चलता…
मेरी कहानी - 166 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन September 19, 2016 ददन मज़े
े गुज़र रहे थे। ऐरन को स्कूल ले जाना और स्कूल बतद होने पर उ
आने में भी एक नशा
ा था। पोते पोनतयों का भी एक नशा ही होता है । इ ी सलए तो
अक् र कहते हैं कक मल ू ले जाया जाता था और काम पर होते थे, इ
े पवआज पपयारा होता है । न रट ी की ओर ाथ में माुँ बाप या दादा दादी जा
सलए हम दोनों ऐरन के
कोच भर कर जलैकपूल को गई और ऐरन के घिंटे का
को ले
फर था। इ
ारे
फर में
े कई दफा
कते थे।
ी ाइि पर
िंदीप ज पविंदर क्योंकक
ाथ चले जाते थे। एक दफा बच्चों की एक ाथ हम दोनों थे। ददन बहुत अच्छा था। तीन
डक के दोनों तरफ जब फ़ामट आते तो इन में घा
खा रही गाये को दे ख कर ऐरन बहुत खश ु होता। कभी कभी भेड बकररयािं भी होतीिं और मैं ऐरन को बताता कक मैं भी जब छोटा था तो इन गायें और छोटे छोटे बछडों को घा के सलए ले जाया करता था। इ
पर ऐरन मुझ पर बहुत
े
खखलाने
वाल करता। जब मैं उ
के
वालों के जवाब दे ता तो वोह बहुत है रान होता। कफर जब हम जलैकपूल पहुिंचे तो मैंने ऐरन को कहा कक जो जो हम ने दे खना था, वोह याद रखे और घर जाने पर मैं उ
को पछ ू ू ुँ गा।
जलैकपल ू पहुुँचने पर पहले ही हम फन फेयर में जाने लगे तो शरू ु में ही लाकफिं ग मैन था, और बहुत
े लोग इ
को दे ख कर हिं
ामने
रहे थे। पहले तो दे ख कर ऐरन घबरा गया
लेककन कुछ दे र बाद हिं ने लगा। लाकफिं ग मैंन ऐ ा था कक उ े दे ख कर कोई भी हिं े बगैर रह नहीिं
कता था। पािंच छै फ़ीट ऊिंचे एक प्लैटफामट पर यह बुत्त रखा हुआ था जो बबलकुल
एक बडे आदमी की शक्ल में था, खल ु े कपिे और एक बडी है ट में यह एक पागल जै ा ददखाई दे ता था, जो लगातार हिं े जा रहा था। कभी कभी बीच हिं ना बतद हो जाता और कफर अचानक एक दो दफा थोह्डा
ा हीिं हीिं करता, ठहर जाता और कफर एक दम जोर जोर
े इतना हिं ता कक वोह झुक जाता। झुक झुक हिं ता और कफर जोर जोर इ
े हिं ता कक दे खने वाले
ब हिं े बगैर रह न
लाकफिं ग मैन को ऐरन ने बहुत
खीिंच कर इतने
ालों तक याद रखा। इ
के बाद हम फन फेयर में घु सलए उ
की आयु के दह ाब
तरफ चले गए, यहािं छोटी छोटी राइि थीिं। तकरीबन दो घिंटे हम इ
में रहे और बाहर आ गए। लगे और इ
ािं
कते।
गए। यहािं बहुत शोर था। ऐरन क्योंकक बहुत छोटा था, इ ही हम उ
े
फन फेयर
ी ाइि पर एक कैफे में हम बैठ गए और कफश ऐिंि गचप्
के बाद कोक पपया। कुछ दे र आराम करने के बाद हम
े
खाने
ी ाइि पर आ गए।
मुतदर का पानी काफी दरू था और दरू दरू तक रे त ही रे त ददखाई दे ती थी। कुछ गोरे गोरीआिं िैक चेअर पर बैठे धप ु का मज़ा ले रहे थे। उन के बच्चे रे त
े
िैं कै ल बना रहे
थे। बहुत रौनक थी। एक गोरा बच्चों को िौंकी राइि दे रहा था। वोह बच्चों को िौंकी के ऊपर बबठा दे ता और रे त के ऊपर दरू दरू तक ले जाता। माता पपता उन की फोटो खीिंचते। ऐरन इ
गधे को दे ख कर खश ु तो होता था लेककन इ
हम चाहते थे कक ऐरन उ हो तो हम उ
िौंकी पर बैठे और हम उ
के ऊपर बैठने को राजी ना होता। की फोटो खीिंचें ताकक जब वोह बढ़ा
को ददखाएिं लेककन ऐरन माना नहीिं। अब हम उ
को
मुतदर की लैहरें
ददखाने के सलए चल पढ़े । पानी अब ज़्यादा दरू नहीिं था, कुछ नज़दीक आ गया था । जल्दी ही पानी के ककनारे पर आ गए और हम ने जत ू े उतार सलए और ठतिे ठतिे पानी में चलने लगे। जगह जगह जैली कफश पिी थी जो बबलकुल जैली की तरह थी। शायद इ ी सलए इ का नाम जैली कफश पडा होगा। कुछ दे र हम पानी में चलते रहे । कफर ऐरन कहने लगा, बाबा ! शू शू करना है !, मैंने उ मामूली ही है लेककन इ पहले हम ने एक दक ू ान
की पैंटी नीची की और उ
बात को ऐरन बहुत
ने शू शू कर ददया। बात तो यह
ालों तक दहु राता रहा। यहािं बीच पर आने
े ऐरन के सलए प्लान्स्टक की छोटी
ी शवल ( प्लान्स्टक का छोटा
ा फावडा )और एक पैन (pan ) खरीद सलए थे। यह दोनों चीज़ें बच्चों के सलए हैं क्योंकक इन कर उ
े वोह
िैं में
ि ैं कै ल बनाते हैं, कुछ बच्चे शवल
में लेट जाते हैं और द ू रे बच्चे उ
रह जाता है और
भी बच्चे इ
लगा दे ते हैं और कफर उ
िैं
पर
िैं िाल दे ते हैं, इ
े खश ु होते हैं। कई बच्चे
े
े बडा
भी खरीदते
ा गढ़ा खोद
तरह स फट
र बाहर
िैं को इकठा करके बडा
ा ढे र
े कोई जानवर या कोई घर बनाना शरू ु कर दे ते हैं। इ
बच्चे खश ु भी होते हैं और उतहें कुछ बनाने की चाहत भी पैदा होती है , न्ज
े
को वे अपने
न रट ी स्कूल में इस्तेमाल करते हैं। कुछ वक्त बीच पर बबताने के बाद हम ऊपर फुटपाथ पर आ गए। फुटपाथ के
ाथ
डक
पर कारें चल रही थीिं। हमारे पैरों पर रे त लगी हुई थी। एक जगह पानी की टूटी लगी हुई थी, उ आइ
पर हम ने पैर धोये और तौसलये
ाफ़ करके जूते पहन सलए। एक बच्चे के हाथ में
क्रीम दे ख कर ऐरन बोला, ” बीबी ! आई वािंट आइ
कॉफी ऐिंि आइ
क्रीम बार थी। रोि क्रा
बैंच और टे बल रखे हुए थे। आइ
े
करके हम इ
ह ु ावनी धप ु थी, इ
क्रीम “,
डक के द ु री ओर ही
बार में चले गए। बार के बाहर भी
सलए हम बाहर ही बैठ गए। रिं ग बबरिं गी
क्रीम के तीन टब मैं ले आया। टब काफी बडे थे। आइ
क्रीम बहुत मज़ेदार लग रही
थी और जी भर कर खाई। कुछ दे र हम बैठे रहे । ऐरन थक गया था। ऐरन की पुश चेअर
हम
ाथ ही ले आये थे। ऐरन को पुश चेअर में बबठाया और कुलविंत पुश चेअर को धकेलने
लगी। चलते चलते ऐरन
ो गया था। पुश चेअर सलए हम दक ु ानों में गगफ्ट दे खते रहे और
कुछ खरीदा भी लेककन याद नहीिं ककया। ऐ ी जगहों पर तरह तरह की टॉफीयािं और खा कर
दटक ऑफ रौक तो
भी लेते ही हैं। यह
हैं, जो खिंि में तरह तरह के ऐ ैं ी बनी होती हैं, लेककन
दटक ऑफ रौक मोटी मोम बत्ती जै ी होती
समला कर बनाई होती हैं और इ
ख्त और खाने में क्रिंची होती हैं। ओ
पर कई रिं गों की लकीरें
कता है अब यह इिंडिया में
भी समलती हो। हम ने एक दजटन खरीद लीिं। कुछ दे र घूमने के बाद ऐरन जाग गया था और उठते ही बोला,” बाबा ! हिंगरी !”, वै े तो ही कुछ पराठे और
भ जगह खाने की दक ु ानें थीिं लेककन हम घर
े
ाथ में खाने के सलए कुछ ले आये थे। बैठ कर खाने के सलए हम जगह
ढूिंढने लगे। ज़्यादा दरू हमें जाना नहीिं पडा। कुछ आगे जा कर बच्चों के सलए छोटी
ी एक
प्ले ग्राउिं ि थी और यहािं काफी बैंच थे। एक बैंच पर हम बैठ गए। कुलविंत ऐरन को पराठा दे ने लगी और मैं चाय लेने चला गया। नज़दीक ही एक बगटर और हॉट िॉग बेचने वाले की वैन खडी थी जो चाय भी बेचता था। तीन कप्प चाय के मैं ले आया और मैं भी पराठे खाने लगा। बाहर आ कर पराठे खाने का भी एक अपना ही मज़ा होता है , पता नहीिं क्यों। हो कता है बाहर घूम घूम कर हम थक्क जातें हैं और भूख चमक उठती है या खल ु े में खाने में भी कोई भेद हो। हम अकेले ही
ारा ददन घम ु ते रहे क्योंकक इ
कोच में ज़्यादा गोरे गोरीआिं और उन के
बच्चे ही थे। यहािं की जतमी पली दो लडककयािं अपने बच्चों के आप में ही थीिं, कक ी अगर कुछ लोग होते तो
े समक्
अप्प नहीिं होती थीिं। हमें तो इ
ाथ थीिं लेककन वोह भी अपने े कोई फकट नहीिं था, हाुँ
ाथ हो जाता। शाम तक हम घुमते रहे और छै बजे कोच पाकट में
आ गए और अपनी कोच में बैठ गए। कुछ दे र बाद कोच चल पडी। मोटर वे पर कोई रश नहीिं था। ऐरन
ो गया था। 9 बजे हम ऐरन के स्कूल पहुुँच गए। गाडी हम
खडी कर गए थे। पािंच समिंट में हम घर आ गए। वै े तो जलैकपूल का बात नहीिं थी लेककन इ
ब ु ह यहािं ही
फर कोई इतनी बडी
े ऐरन के ज़हन में बचपन की वोह याद हमेशा के सलए पक्की हो
गई। यह बबलकुल ऐ े ही था जै े मेरे ज़हन में दे हरादन ू की पहली याद व ी हुई है । इ दे हरादन ू ऐरन
े ही मेरा बचपन शरू ु होता है और यह याद मेरे सलए बहुत मीठी है । हर रोज़ मैं
े पछ ू ता,” क्या ककया दे खा जलैकपल ू में ?”, तो वोह शरू ु हो जाता, “पहले हम ने cow
दे खख , कफ आ आ आ sheep दे खख, कफ आ आ आ हा हा हा मैन दे खा, कफ आआआ िौंकी दे खा, कफ आ आ आ पानी दे खा, कफ आ आ आ शू शू ककया!। इ
पर आ कर ऐरन जोर
जोर
े हिं ने लगता। जो जो दे खा था वोह
खश ु ी होती, जो कक ी को बताई नहीिं जा
ारा बोल दे ता। उ
े तरह तरह के डिज़ाइन बना रहा
जापानी को डिज़ाइन ददखाने को कहा। उ
थे। एक डिज़ाइन में मम्मी िैिी बना हुआ था। हम ने उ लडके के पा
ऐ ी तारों के बिंिल थे। उ
ददया। बलो लैंप की गमी
के पा
के बीच तार
बहुत
े डिज़ाइन
को यह बनाने के सलए बोल ददया।
ने इन तारों को जलो लैम्प
े बनाना शुरू कर
े तार नमट हो रही थी और वोह जापानी लडका इतनी
अक्षर बना रहा था कक हम खडे है रान हो रहे थे। पािंच समिंट में उ न्ज
डक
े पछ ु ा था,” तेरे ममी िैिी के सलए कुछ बना लें ?” ,ऐरन ने खश ु हो कर
हाुँ कहा तो हम ने उ उ
े हमें वोह
कती। जब हम जलैकपूल घूम रहे थे तो वहािं
पर एक युवा जापानी लडका लोहे की पतली पतली तारों था। हम ने ऐरन
की इन बातों
फाई
े
ने एक फ्रेम बना ददया,
े ही ममी िैिी बन गया था। घर आ कर ऐरन ने बहुत खश ु ी
े अपने
ममी िैिी को ददया। ऐ ी छोटी छोटी खश ु ीआिं ककतनी मीठी होती हैं। अब तो ऐरन 15 वषट का हो गया है लेककन कभी कभी वोह पुरानी बातें याद आ जाती हैं। काम
े तो हम को कब
े फु त ट हो गई थी, इ
सलए हमारे पा
गगयानी जी टाऊन के बबलकुल द ु री तरफ रहते थे, इ गया था। मुन्ककल कुलविंत के बहुत अच्छे
सलए उतहों
ाथ रहते थे। छोटा बेटा कुलविंत बहुत ही
मझदार लडका है । उ
की पत्फनी भी
भ ट थे। बडे बेटे ज विंत जो कभी मेरे ु ाव की है । यहािं गगयानी जी बहुत प न
घर में गगयानी जी का एक प्राइवेट कमरा था, न्ज न्ज
े समलना बहुत कम हो
े छै महीने बाद ही हम उतहें समलने जाते थे। वोह अपने छोटे बेटे
ाथ फैक्ट्री में जाया करता था, े गगयानी जी के नाज़ुक इनतहा
अब वक्त ही वक्त था।
की और कुछ स हत
ुभाव का कोई मेल नहीिं था। इ
में बहुत
ी धासमटक ककताबें, कुछ
िंबिंधी ककताबें रखी होती थीिं। एक तरफ एक टे प ररकािटर थी
के सलए गरु बाणी शजदों की बहुत
ी कै ेट रखी हुई थीिं। एक ग्रप ु फोटो थी न्ज
गगयानी जी और उन के बहुत अच्छे दोस्त की परु ानी तस्वीर थी, न्ज
में
का न्ज़क्र वोह अक् र
ककया करते थे, जब वोह कभी श्रोमखण कमेटी अमत ृ र में बतौर इिंस्पेक्टर के काम ककया करते थे। उन का काम बहुत
े गुरदआ ु रों के अकाउिं ट को चैक करना होता था। बहुत दफा
गगयानी जी उन ददनों की बातें कर कर के हमें हिं ाते रहते थे। स फट ज विंत और उ पत्फनी के स वाए घर के
भी लोगों ने गगयानी जी
े बहुत कुछ
की
ीखा था, यहािं तक कक उ
की पोती शैरन ने अपने पहले बेटे का नाम अपने दादा, गगयानी जी के नाम पर (अजटन स हिं ) ही अजटन रखा था। गगयानी जी अक् र कहा करते थे कक नरक स्वगट तो इ ी धरती पर है और यह बात गगयानी जी के सलए
ही
ाबत हुई थी क्योंकक आखर तक उ
के
भी बच्चों
ने गगयानी जी को इतना खश ु रखा कक वोह इ
ीधा कह दे ते थे कक वोह तो स्वगट में रहते थे।
में कोई बेतुक्की बात भी नहीिं थी क्योंकक उन की इज़त
ब लोग करते थे।
मुझे याद है , एक ददन ऐरन को स्कूल छोड कर हम दोनों गगयानी जी को समलने चले गए। घर गए तो घर में कुलविंत की पत्फनी और बीबी ( गगयानी जी की पत्फनी उधम कौर ) ही थे। हम उ
को
भी बीबी कह कर ही पुकारते थे। बीबी ने हमें माुँ जै ा पपयार ददया था। इतने
ाफ़ ददल की स्त्री मुझे आज तक नहीिं समली। हमारी दोनों बेदटयों को उ तरह पाला था। बीबी ने हमें गले लगा कर पपयार ददया और उलाहने दे र
ने एक दादी की
े बोली कक हम इतनी
े क्यों आते थे। कुछ दे र बातें करके मैंने गगयानी जी के बारे में पुछा तो बीबी ने बताया
कक वोह बाहर गािटन में काम कर रहे थे। मैं उठ कर गािटन में चला गया। गगयानी जी बैठे बैठे पपआजों के एक छोटे
े प्लाट में
बोले, ” आ बई गुरमेल ! ककदािं, छोटे
और जडी बूटी ननकाल रहे थे। मुझे दे खते ही
ब ठीक ठाक है ?”, मैंने कहा गगयानी जी ! आप की खेती
बाडी तो कमाल की है । गगयानी जी इ
े घा
न ु कर खश ु हो गए और उठ कर मझ ु े ददखाने लगे।
े प्लाट में पपआज, मूसलयाुँ, मेथे, और दो लाइनों में आलू बीजे हुए थे। मुझे दे ख
कर बहुत है रानी हुई कक पपआज बडे बडे हो गए थे और मेथे तो एक फुट ऊिंचे थे। इतने ऊिंचे मेथे इिंगलैंि में कक ी के गािटन में नहीिं दे खे थे। कफर गगयानी जी मुझे ग्रीन हाऊ लगे, न्ज
ददखाने
में बैंगन, सशमला समचट और कीऊकम्बर लगे हुए थे। यह चीज़ें खल ु े में इिंगलैंि में
बीजना बहुत मन्ु ककल है क्योकक मौ म इतना अनकूल नहीिं है । मैंने कहा, ” गगयानी जी! इिंगलैंि जै े मौ म में इतनी अनछ
न्जज़यािं आप ने लगा रखी हैं, यह तो कमाल है “,
गगयानी जी कहने लगे,” गुरमेल ! िेिीकेशन पुरानी बातें बताने लगे जो मैंने उन
े ककया कुछ नहीिं हो
े पहले भी
कता ?”, और कफर वोह
ुन रखी थीिं। गगयानी जी बोले, ” जब बापू
मर गया तो मैंने काम छोड कर खेती शरू ु की थी, लोग हिं ते थे कक यह पाढ़ा (school boy ) ककया खेती करे गा, जब हल चलाना शरू ु ककया तो बैल दौड गए, लोग हिं ते थे लेककन मैंने अपना हठ नहीिं छोडा, खेती की न्जतनी भी ककताबें समलीिं, पढ़ीिं और ब
ारे गाुँव में मेरी फ ल
े उत्तम हुई”, बातें करते करते हम अिंदर आ गए।
त स री अकाल गगयानी जी, कुलविंत ने कहा और गगयानी जी ने पपिंकी रीटा और
िंदीप का
पुछा। बातें करने लगे। चाय तैयार हो गई थी। कुलविंत की पत्फनी ककमीरों ने मेज़ पर बहुत कुछ रखा हुआ था। हम खाने लगे और पुरानी बातें करने लगे। अचानक कुलविंत भी आ गया। उ
का स्कूल ऑफ मोटररिंग था और लै न दे कर आया था। कुलविंत हिं
बातें करने लगा। कुलविंत में
भी गण ु गगयानी जी के हैं। बहुत ही अच्छे
हिं
कर
भ ु ाव का है । चाय
पी के कुलविंत कफर कक ी को लै न दे ने के सलए चले गया। मैं और गगयानी जी उठ कर गगयानी जी के कमरे में आ गए और गगयानी जी मुझे एक ककताब ददखाने लगे। चलता…
मेरी कहानी - 167 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन September 22, 2016 मैं और गगयानी जी उठ कर गगयानी जी के कमरे में आ गए। यह कमरा घर का फ्रिंट रूम ही था। वै े तो यह कमरा महमानननवाज़ी के सलए था लेककन गगयानी जी के सलए यह कमरा ब कुछ था, यहाुँ अपने दोस्तों तौर पर भी इ
े वे गगयान गोष्ठी भी ककया करते थे और स्ट्िी रूम के
को इस्तेमाल करते थे । उन की उम्र अब काफी हो गई थी और अकेले
टाऊन को जाते नहीिं थे। कोई काम हो तो कुलविंत उतहें ले जाता था। गगयानी जी में एक तजदीली आई थी, पहले उन का पवचार होता था कक जो लोग गुरबाणी की कै ेट
ुनते हैं,
वोह गुरबाणी की इज़त नहीिं करते क्योंकक यह टे पें खामखाह इधर उधर पडी रहती है और इ
के खराब होने पर इ
यह टे पें
को यिंू ही फैंक दे ते हैं, जो गरु बाणी की बेइज़ती करते हैं। अब वोह
ुनने लगे थे कक इन में बहुत बातें अनछ भी होती हैं जो धमट के बारे में जानकारी
दे ती हैं। इन टे पों के सलए उतहोंने एक स्पैशल शैल्फ रखी हुई थी और इ ुतदर कपिे का पदाट लगाया हुआ था और बडी इज़त के होने पर वोह इ
के आगे बहुत
ाथ रखते थे। कक ी टे प के खराब
को अन्ग्न भें ट कर दे ते थे। हर धासमटक ककताब को उतहोंने कपिे में लपेट
कर रखा हुआ था। आज इ
कमरे में जब आये तो आते ही एक ककताब उठा लाये और
बोले,” दे ख गुरमेल ! यह ककताब एक पाककस्तानी मु लमान ने सलखी है , इ उ
को पािंच
सलखा है ,
ाल लगे और उ
भी गुरदआ ु रों की फोटो उ
भी बची है , उ ही उ
का भी इनतहा
की फोटो भी दी है ।
में सलखा है । उ नहीिं कर
ने पाककस्तान के वोह
को सलखने में
भी गुरदआ ु रों को बडी िीटे ल में
ने दी है , यहािं तक कक यहािं कक ी गुरदआ ु रे की दीवार
सलखा है कक वहािं कक
नाम
े गरु दआ ु रे होता था और
भी गरु दआ ु रों के नाम जो ज़मीन होती थी, उ
ाथ
को भी िीटे ल
ने इ े पिंजाबी उदट ू और इिंन्ग्लश में सलखा है । जो काम हमारा कोई स ख
का वोह इ
शख्
ने कर ददखाया है । इतनी अनछ ककताब न्ज़तदगी मैंने पहली
दफा दे खी है । बातें कर ही रहे थे कक गगयानी जी के एक दोस्त कमट स हिं आ गए। वै े तो गगयानी जी
े
मुलाकात के सलए लोग आते ही रहते थे लेककन उन के चार दोस्त तो एक द ू रे के बहुत करीब थे। इन में
े ही यह कमट स हिं जी थे। इन का बडा लडका गुरदआ ु रे में तबला बजाया
करता था और छोटा लडका कभी मेरे कक ी और शहर में चला गया था। इन
ाथ बस् ों में काम करता था लेककन बाद में वोह ब दोस्तों का एक ही शौक और एक ही राये होती
थी। यह
ब समल कर गुरु ग्रतथ
ादहब जी का एक पत्रा पढ़ते थे और उ
मझ, गुरबाणी पवचार करते थे। इ जाता था। आखर में वोह ग्रतथ
काम में उन को एक
के अथों को
ाल या कई दफा ज़्यादा भी लग
ाहब जी का भोग पाते और आप
और घर वालों को भी बािंटते। पता नहीिं ककतने पाठ उतहोंने इ
में समल कर प्र ाद लेते
तरह ककये होंगे। कमट स हिं
और गगयानी जी बातें करने लगे। मैं उठ कर जाने के सलए तैयार हुआ तो गगयानी जी बोले,” नहीिं अभी नहीिं तू जा स्कूल
कता “, उन का हुकम मैं टाल नहीिं
कता था, वै े भी ऐरन को
े लेने को अभी काफी वक्त था। बातें करते करते पिंडित अमत ृ लाल की बातें होने
लगीिं। पिंडित अमत ृ लाल उन के बहुत पप्रय दोस्त थे। जब इिंगलैंि में आये थे तो दोनों एक ही फैक्ट्री गड ु ईअर टायर में काम ककया करते थे। अमत ृ लाल कई भाई थे। दो भाई हबटला और हररदत्त तो मेरे
ाथ ही मैदट्रक के ददनों में मेरी ही क्ला
में होते थे, जब 1956 58 में
हम फगवाडे रामगदढ़या हाई स्कूल में पढ़ा करते थे। एक भाई जगदीश ककराए पर उ ी घर में रहा करता था, यहािं गगयानी जी, मैं और गगयानी जी के बेटे ज विंत रहा करते थे। पिंडित अमत ृ लाल हर रपववार के ददन हमारे पा था और गगयानी जी हमारे जी
आया करते थे और बाद में जब मैंने घर ले सलया
ाथ आ गए थे तो तब भी पिंडित जी हमारे घर आ कर गगयानी
े बातें करते रहते थे। कुलविंत भी पिंडित जी की बहुत इज़त करती थी और उ
के सलए
चाय बनाती थी। इ ी पिंडित अमत ृ लाल के जमाई वररिंदर शमाट लिंिन में पुराने और प्रस द्ध लेबर एमपी हैं। पिंडित जी के लेककन उ
ाथ गगयानी जी की स या त की बातें होती ही रहती थी
मय स या त के बारे में हमें कोई ददलचस्पी नहीिं होती थी। ” गगयानी जी !
दे खना ! यह ना र इन्जप्ट को ककतना ऊिंचा ले कर जाएगा क्योंकक नेहरू जब इन्जप्ट गया था तो उ नाहर
ने ही ना र को कहा था कक वोह नहर
ुएज नैशलाइज़ हो
और न्ज बहुत उदा
ुएज को नेशनलाइज करे , इ ी सलए
की “, ऐ ी बातें पिंडित जी के मुिंह
ददन 1967 में ना र लडाई में इज़राईल
े हमेशा ननकलती रहती थी
े हार गया था तो उ
मय पिंडित जी
थे।
अब गगयानी जी, पिंडित जी
े कुछ नाराज़ थे और उन का यह समलन
गया था। बाहर कभी टाऊन में समलते तो
मझो खतम ही हो
र री है लो है लो हो जाती, वरना एक द ू रे के घर
जाना खतम हो गया था। कमट स हिं और गगयानी जी ने पिंडित जी के बारे में ककया ककया बातें कीिं, मझ ु े ज़्यादा याद नहीिं लेककन उन के एक द ू रे के रोष का मझ ु े पता था। बात थी इिंद्ा गािंधी का हररमिंददर
ाहब पर हमला करना । न्ज
गगयानी जी को कक ी ने बताया कक अमत ृ लाल ने इ
ददन हररमिंदर
ाहब पर हमला हुआ,
हमले की खश ु ी में लड्िू बािंटे थे।
गगयानी जी सभिंिरावाले के बहुत खखलाफ थे। वोह चारदीवारी में मोचाट लगाना कक ी तरह
मझते थे कक हगथयार ले कर हररमिंददर की
े भी उगचत नहीिं था। स खों को उन का अमत ृ छका
कर धमट के रास्ते पर लाना बहुत अनछ बात थी लेककन हगथयार ले कर वहािं इकठे होना बबलकुल गलत था लेककन जो इिंद्ा गािंधी ने हररमिंददर
ाहब पर इतनी बडी फ़ौज के
ाथ इ
पपवत्र अस्थान पर हमला ककया और अकाल तख़्त को बबाटद कर ददया, वोह स ख जगत में एक नीच हरकत
े जानी जायेगी। सभिंिरािंवाले और उन के
तरीके थे, उन का राशन पानी बतद कर दे ते, वहािं गै होते हैं, पुराने ज़माने में
ाल
ागथयों को पकडने के और बहुत
फैंक दे ते। फ़ौज के पा
बहुत तरीके
ाल भर ककले को घेरी रखते थे और आखरकार हगथयार
फैंकने पडते थे। पिंडित अमत ृ लाल ने लड्िू बािंटे थे, यह जानते हुए भी कक गगयानी जी की हररमन्तदर
ाहब के प्रनत ककतनी श्रद्धा थी। कोई
जी की एक जान होती थी लेककन इ
के बाद यह
मय था पिंडित अमत ृ लाल और गगयानी ब खतम हो गया। मझ ु े याद है गगयानी
जी इिंद्ा गािंधी की बहुत इज़त ककया करते थे। जब हम काटट र रोि पर रहा करते थे तो एक दफा मेरा दोस्त बहादर और उ
का छोटा भाई लड्िा मुझे समलने आये। बातों ही बातों में
लढ्ढे ने इिंद्ा गािंधी के खखलाफ कुछ अपशजद बोल ददए। गगयानी जी नतलसमला उठे और बोले, ” तुम्हें शमट आखण चादहए हमारे दे श के प्रधान मिंत्री के खखलाफ ऐ े शजद बोलने के सलए “, लड्िा भी गमट होता था, वोह कुछ बोलने ही लगा था कक मैं उ
को पकड कर बाहर ले
गया। आज गगयानी जी इिंद्ा गािंधी के बहुत खखलाफ थे और सभिंिरावाले को उ
ने
ही ठहरा रहे थे कक
ही ककया था। पर गथतीआिं कै े पवचारधारा को बदल दे ती हैं । अक् र वोह बात
करते थे कक इिंद्ा गािंधी ने मक्का ढा ददया,
ोम नाथ ढा ददया, आज स ख अपने ही दे श में
बबदे शी हो गए थे। मझ ु े नहीिं पता कक जब इिंद्ा गािंधी को उन के ही अिंगरक्षक दो स खों ने मार ददया था तो स खों के कत्फलेआम पर वोह ककतने दख ु ी हुए होंगे क्योंकक बहुत दे र तक उन
े मैं समलने गया नहीिं था। बहुत दे र बाद गया था लेककन इ
बारे में कभी बात नहीिं
हुई थी। आज कमट स हिं और गगयानी जी बहुत बातें कर रहे थे और बहुत
ी बातें मुझे याद
नहीिं। इतना याद है कक गगयानी जी, कमट स हिं को भी वोह ककताब ददखाने लगे। आप वोह दे श पवभाजन के बारे में बातें करने लगे क्योंकक दोनों ने बहुत गरु दआ ु रे दे खे हुए थे और मैंने
में
े पाककस्तान के
ारा पिंजाब पहले एक ही होता था। बहुत दे र तक मैं चप ु था, कफर
वाल कर ददया, ” गगयानी जी ! आप को कभी गुरदआ ु रे नहीिं दे खा “, ऐ े
वाल मैं
जब काटट र रोि पर रहता था, करता ही रहता था। जो वोह जवाब दें गे, बहुत कुछ मुझे पता
ही होता था लेककन उन का जवाब दे ने का ढिं ग ऐ ा होता, जै े कोई कहानी मैं बहुत गधयान
े
ुना रहे हों और
ुनता था। गगयानी जी बोले, ” गुरमेल ! तुझे पता ही है कक गुरदआ ु रे तो
मैं पहले भी बहुत कम जाता था लेककन अब तो बबलकुल बतद कर ददया है । कोई शादी पववाह हो तो कुलविंत अपने पररवार के
ाथ चला जाता है , मझ ु े कोई ददलचस्पी नहीिं है , वहािं
है ही ककया,
न ु कर ना कोई
ब कमट कािंि है , गरु बाणी
मझता है , ना इन लोगों को धमट
के बारे में कोई गगयान हास ल हुआ। लोग गुरदआ ु रे जाते जाते बूढ़े हो गए हैं लेककन अभी तक द
गुरु
हबान के नाम याद नहीिं हुए, ककतनी दफा गुरदआ ु रे में लडाइयािं हुई, कोई अिंत
नहीिं, खद ु जूते उतार कर महाराज के हज़ूर जाते हैं और पुसल जाती है , दरू ककया जाना है , तेरी बीबी है , उ लेककन माथा टे कने के स वाए इ मुझ
े कुछ नहीिं
को
ारी उम्र
बूटों
मेत गुरदआ ु रे में घु
मझा
मझा कर थक गया
को कुछ पता नहीिं, मेरा लडका और तेरा दोस्त ज विंत
ीख पाया “, गगयानी जी कुछ चप ु हो गए।
मैं बोला, ” गगयानी जी इ
का ककया कारण है कक आज धमट, कमट काण्ि बन कर ही रह
गया है “, गगयानी जी बोले, गुरमेल ! कारण है पै ा, वोह भी स हिं थे न्जतहोंने बगैर ततखआ ु ह के मुगलों के खखलाफ लडाइयािं लडीिं, मुग़ल लूट मार करके हमारी बहु बेदटयों को ले जाते थे और स ख अचानक मुग़ल फ़ौज पर आक्रमण करके लडककयािं छुडा लाते थे और उन को इज़त के
ाथ उन के घरों में पहुिंचा दे ते थे और आज के स खों का जो चलन है , उ
गगरावट नहीिं कहें गे तो और ककया कहें गे ?, इिंगलैंि का कोई गद ु टआ ु रा है ?, न्ज कोटट में ना गया हो, गुरदआ ु रे में अखिंि पाठ करवाते हैं क्योंकक उ है , यह भगवान ् को घू ारे काम
भगवान ्
को
का के े कुछ माुँगना
ही है कक भगवान ् ! अब मैंने अखिंि पाठ करवा ददया है , और तू मेरे
ही कर दे , यही तो कारण है कक घू
जै ी नामुराद बीमारी हमारे खन ू में रच
गई है , अमीर लोग मिंददरों में करोडों अरबों रूपए का
ोना दान तो कर दें गे लेककन गरीब को
एक रोटी भी नहीिं खखलाएिंगे क्योंकक भगवान ् को दे ना तो एक इतवेस्टमें ट है और गरीब ककया दे गा “, गगयानी जी चप ु हो गए क्योंकक कमट स हिं उठ खडा हुआ था और जाने को तैयार था। कमट स हिं जी बैठ जाओ, चाय पी कर जाना लेककन कमट स हिं को कोई काम था, इ त स री अकाल बुला कर चले गया। दरवाज़े का खटाक बोली, ” अब हम को जाना चादहए, ऐरन को स्कूल भई, कार में ही आना है , कौन
सलए
ुन कर कुलविंत भी आ गई और
े लेना है “, ” जल्दी जल्दी आया कर
ा पैदल चल कर आना है “, गगयानी जी बोले। बीबी भी आ
गई और कुछ दे र बातें करके हम ने पवदा ली।
गगयानी जी अब रहे नहीिं लेककन आज भी हम उन की बातें करते ही रहते हैं। गगयानी जी का बडा लडका ज विंत न्ज
के
बबलकुल पवपरीत थी और इ
ाथ मेरी दोस्ती बहुत होती थी, उ
की आदतें गगयानी जी के
उम्र में अब भी हैं, ज विंत का शौक ब
था पब को जाना और खब ू पीना और अब तक उ
एक ही था और वोह
का वोही हाल है , न्ज
को गगयानी जी
प िंद नहीिं करते थे और यही कारण था कक वोह अपने छोटे लडके कुलविंत और उ पत्फनी ककमीरों के उ
को
मझा
की
ाथ रहते थे। ज विंत के बारे में गगयानी जी अक् र कहा करते थे कक वोह मझा कर थक्क गए थे, ” गुरु नानक दे व जी के दोनों बेटे श्री चतद और
लख्मी दा
अपने बाप को नहीिं
मझ
के, उन की बहन बेबे नानकी ने उन को
यह तो ब
ककस्मत की बात है ” गगयानी जी उदा
मझा था,
भरे लहज़े में अक् र बोलते। गगयानी जी
की दोनों बेटीआिं बिं ो और नछिं दी कभी कभी हमें समलने आ जाती हैं और बातें करते करते कफर उन ददनों की बातें करने लगते हैं। उन ददनों हम दो बैि रूम के घर में तेरह मैम्बर रहते थे और कभी कोई झगडा नहीिं हुआ था। नछिं दी अक् र हिं ! हम तेरह मैम्बर छोटे बीबी ! दद चलता…
े घर में रहते थे और आज उ
इज अवर रूम “,
कर बोलती रहती है ,” भा जी
के छोटे
े पोता पोती कहते हैं,
मेरी कहानी - 168 गरु मेल स हिं भमरा लिंदन September 26, 2016 च्ची बात तो यह है कक मुझे इनतहा तरह
े लगाव तो बहुत रहा है लेककन इनतहा
को अनछ
े कभी भी पडा नहीिं है । यही बात द ू रे मज़मूनों के बारे में रही है । बहुत ककताबें मैंने
पडी हैं लेककन गधयान
े शायद ही कोई पडी हो। लाएब्रेरी में हर ककताब को दे खना मेरा एक
जनून ही रहा है लेककन लाएबरी की शैल्फों के नज़दीक खडे खडे ही दे खे जाने तक रहा है , या घर भी ले आता तो बहुत दफा पूरी ककताब ना पढ़ कक ी भी नहीिं
जजैक्ट में पूरण मैं, हो नहीिं
कता। लेककन इ
का और इ
कता । यही कारण है कक
का कारण मैं कक ी को
में एक फायदा मुझे हुआ कक कुछ कुछ बहुत
में बातें मेरे ज़हन में हर वक्त रहती हैं, इ
को मैं यह ही कह
ीमत
े
मझा भी
जजैक्ट्
के बारे
कता हूुँ कक i am jack of
all trades, master of none, कभी भी कोई बात चलती है तो मैं कुछ कुछ इ
में
मझता होता हूुँ, और मेरी ददलचस्पी बढ़ जाती है । जैक ऑफ आल ट्रे ि का एक फायदा तो होता ही है कक घर में बबजली की
ारी जानकारी ना भी हो तो क्मज्क्म कफऊज़ हुआ प्ल्ग्ग
तो ठीक कर ही लेते हैं। मेरी इ ी बात पर बहुत दफा मझ ु े झिंझ ु लाहट
ी भी हो जाती है
और अपने आप पर गस् ु ा भी बहुत आता है । मैं पडना बहुत चाहता हूुँ लेककन शरू ु मुझे
र ददट की
मस्या रही है । इ
हकीमों और होसमयोपैथ कोई रोग नहीिं है , ऐ े पेनककलर
के सलए मैंने ककया कुछ नहीिं ककया, बडे बडे िाक्टरों
े इलाज करवाया लेककन कुछ फायदा नहीिं हुआ। िाक्टर कह दे ते हैं,
र ददट है तो पैरा ीटामल ले लुँ ।ू यह कोई इलाज तो है नहीिं, इ
े मैं दरू ही रहता हूुँ। इ
में कुछ ऐ ा है कक कुछ प्रैशर
वषट के ऊपर का रोग है । पडने के बगैर मेरा मझो मैं ज़ीरो हो जाऊुँगा। अपनी
म याओिं को मैंने कभी भी नहीिं छुपाया क्योंकक मैं े गम ु नाम लोग जो मेरे जै े हैं वोह
का अह ा
को मैं भला कै े
नहीिं है । हाुँ, न्जतना भी मुझ
मझता हूुँ कक ऐ ा करने
े
मझ लें गे कक वोह ही अकेले नहीिं हैं जो दुःु ख
झेल रहे हैं। अक र कहते है ” कौन जाने पीड पराई “, दुःु ख उठा रहा है , उ
र
ा बढ़ता जा रहा है जो मझ ु े सलखना बतद करने के सलए
गुज़ारा भी नहीिं है , अगर मैं कुछ न कुछ ना पिूुँ तो बहुत
सलए
वक्त जब मैं यह सलख रहा हूुँ तो अब भी मेरे
मज़बूर कर रहा है लेककन यह तो मेरा चाली शारीरक
े ही
मझ
ही ही तो है , जो इिं ान कैं र
े
कता हूुँ। अपनी कमज़ोरी को मानना कमतरी
े बन पाता है , पूरे ददल
हूुँ। हर इिं ान को यह करना भी चादहए क्योंकक ऐ ा ना करने
े जोर लगा के कर रहा
े अपना ही नुक् ान है ।
ोचता हूुँ, अपनी इ ी न्ज़द के कारण मैं अभी तक ठीक जा रहा हूुँ।
लो ! खयालों के पिंछी ने कक िाकूमैंटरी में एक खा में
जगह फैंक मारा। टीवी पे एक िाकूमैंटरी आ रही थी और मुझे
ददलचस्पी है । टीवी
ीररयल की ओर मैं दे खता भी नहीिं हूुँ, मुझे इ
ब नकलीपन ददखाई दे ता है । बडे बडे घर,
डिज़ाइन के गहने, जै े यह
ुतदर
ाडीआिं,
ुतदर गहने, नए नए
ब पवगयापन ही हो। बात बात पे धमाकेदार मयन्ू जक, छूुँ छूुँ
न ु कर मैं उठ जाता हूुँ। हाुँ जब कोई िाकूमैंटरी होती है तो बडे गधयान
े दे खता हूुँ लेककन
यह कभी कभी ही होता है क्योंकक अधािंगगनी के सलए वोह वक्त ऐ ा होता है कक थोह्डा
ा
भी मेरा वाककिंग फ्रेम टीवी स्क्रीन के आगे आ जाए तो तरुिं त हुकम हो जाता है , ” अपनी रे हडी ज़रा इधर कर लीन्जये “, रे हडी तो क्या मैं अपने आप को ही वहािं और लैप टॉप की
े उधर कर दे ता हूुँ
ीट पर पवराजमान हो जाता हूुँ और कफर जब अधािंगगनी
ादहबा
सलए भी चली जाती है तो मैं िट जाता हूुँ और यूट्यूब पर ऊिंची आवाज़ में गाने
ोने के
ुनने लगता
हूुँ। एक ददन बीबी ी पर एक पुरानी िाकूमैंटरी चल रही थी, वोह थी इन्जप्ट के एक पुराने बादशाह जो १८
ाल की उम्र में ही परलोक स धार गए थे । उ
का शव इन्जप्ट के शहर लुक् र में वैली ऑफ दी ककिंग्ज में
TOOTANKHAAMAN, इ ढूिंिा गगया था और न्ज
में
ब दे ख
समनट की यह िाकूमैंटरी दे ख कर मेरे मन में आया,
कता। इ
िाकूमैंटरी में वोह tomb ददखाया जा रहा था, न्ज
े tootankhaanam का शव ननकाला जा रहा था। एक बहुत बडे बॉक्
रखा हुआ था, शव के ऊपर मुिंह और हुआ था और इ
े
ने यह ढूिंिा था वोह एक अुँगरे ज़ हाविट काटट र था। यह शव उ
ने1922 में दररआफत ककया था। पचा काश ! मैं कभी यह
का नाम था
ारे शरीर पर
में उ
का शव
ोने का बहुत ही खब ू ूरत खोल चढ़ा
ऊपरले खोल को उतार कर ददखाया जा रहा था tootankhaaman का शव
जो कपिे की पट्टीयों में सलपटा हुआ था। है रानी इ
बात की थी कक
ाढ़े चार हज़ार
ाल
पुराना शव और कपिे की पट्दटयािं ऐ े ददखाई दे रही थीिं, जै े आज ही कपिे की पट्दटयों उ
को सलपटा गया हो।
इ
िाक्यूमेंट्री में बहुत डिटे ल में बताया जा रहा था। इनतहा कार, tootankhamn के बारे में
बातचीत कर रहे थे कक युवा अवस्था में इ
बादशाह का मर जाना बहुत
करता है । बोल रहे थे कक बेछक tootankhamn के बॉक् ोने की कु ी,
ोने की चारपाई फ्रेम और है ि बोिट,
ामान जै े उ
का
ोने का रथ, लेककन उ
यह भी लगता था कक उ कक कक ी
को बहुत जल्दी
ान्जश के तहत उ
के पा
उ
का
ोने के जत ू े और बहुत
े
वाल खडे ारा
ामान जै े
ा बेगगनत
का tomb एक बादशाह जै ा नहीिं था और े दफनाया गया हो, हो
को मारा गया हो और उ
के
कता है यह इ
र पर लगी चोट
सलए
े यह
े
जाहर भी होता था। न्ज न्जन में बहुत
कमरे में उ
के चारों और पें दटिंग्ज थीिं,
ी अभी कम्प्लीट भी नहीिं हुई थीिं और जो कम्प्लीट हुई थीिं, उन को
भी नहीिं गया था, इ ी सलए बहुत प्लास्टर उखडा हुआ था। इ इ
का शव समला था, उ
ी पें दटिंग्ज इन में
ुखाया
े खराब हो गई थीिं और बहुत जगह
े
िाकूमैंटरी को डिटे ल में ना बताता हुआ मैं यह ही कहूिंगा कक
िाकूमैंटरी ने मझ ु े बहुत प्रभावत ककया था। इ
के बाद इन्जप्ट के परु ाने बादशाहों पे
आधाररत कफल्मे भी दे खने लगा था, जै े curse of the mumi, mumi returns और ऐ ी बहुत
ी अतय कफ़ल्में न्जन का नाम तो मुझे याद नहीिं लेककन वोह
भूले। कभी कभी लाएब्रेरी ज़्यादा
े मैं ककताबें लाता लेककन पुराने इन्जपसशयन नाम ऐ े थे कक
मझ नहीिं आता था। जै े मदु हिंजोदारो और हडप्पा की
इन्जप्ट की अपनी
ीन मुझे कभी नहीिं
सभयता थी, इ ी तरह
सभयता थी। उन की अपनी भाषा थी और यह
सभयता बहुत उनत थी।
उन का अपना धमट था और उन के बादशाहों को फैरो बोलते थे। आज इतहास्कारों ने यह पुरानी इन्जन्प्शयन भाषा को कुछ कुछ पें दटिंग हैं और
ाथ
मझ सलया है । इन फैरो के tomb की दीवारों पर जो
ाथ पशु पक्षक्षओिं की तस्वीरें हैं, वोह उन की जुबािं की सलपप थी। अक् र
मैं
ोचा करता था कक इन फैरो के मिंुह के नीचे ठोडी पर लम्बी लम्बी ककया चीज़ थी तो
इ
िाकूमैंटरी में बताया गगया कक यह उ
वक्त के बादशाहों का फैशन होता था, जो कक ी
बडे आदमी को दशाटता था। गगयानो बहन और उन के दोनों बेटे कभी कभी हमारे घर आते ही रहते थे क्योंकक उन का घर द
समनट दरू ही है । छोटे बेटे बलविंत को ऐ ी इतहा
है लेककन ज विंत को बहुत है । बहुत हस्पताल की ओर
े उ े बहुत
ालों
े वोह हस्पताल में काम कर रहा है और
े दे शों में जाना पढता है । जब वोह जाता है तो कोई
इत्फहास क जगह को जरुर दे खता है । मेरे है क्योंकक मैं भी इ
की बातों में कोई ददलचस्पी नहीिं
ाथ इतहा
में ददलचस्पी लेता हूुँ। बहुत
की बातें करना उ
को अच्छा लगता
ाल पहले हस्पताल के मामले में वोह
चीन गगया था और ग्रेट वाल ऑफ चाइना पर चढ़ कर आया था तो इतहा मुझे बहुत
ुनाई।
ब
ने
े अनछ बात जो मुझे ददलचस्प लगी थी, वोह थी, टै राकोटा आमी के
बुत्त। कुछ कुछ तो मैंने िाकूमैंटरी में दे खा हुआ था लेककन ज विंत के मुिंह अच्छा लगा। उ
की बातें उ े
ुन कर बहुत
ने कहा था,” मामा ! चीन के एक प्रािंत में कुछ मज़दरू काम कर रहे थे, तो
अचानक उतहोंने एक बत्त ु दे खा। आगे आगे गए तो अतय बत्त ु भी ददखने लगे। चीन के पुरारतव पवभाग को जब यह पता चला तो काम बतद करवा ददया गया और खद ु ाई शुरू हो गई। जै े जै े खद ु ते गए, और बुत्त आने लगे। जब खद ु ाई बतद हुई तो यह बुत्त आठ हज़ार
हो गए। यहािं
े ही उ
लगे हुए थे। उ
थी। इ
के आगे पत्फथर के दो घोडे
मय बादशाहों का यकीन होता था, कक जो भी चीज़ उन के मरने के बाद
उन की कब्र के पा के बाद उ
मय के बादशाह का रथ भी समला, न्ज
रखी हो, वोह उ े अगले जनम में समलेगी। इ ी सलए बादशाओिं के मरने
को न्ज
चीज़ की भी इच्छा होती थी, वोह उ
बादशाह ने अपनी फ़ौज के
अपने हगथयारों के चेहरा एक द ू रे
के
ाथ ही दफ़न कर दी जाती
भी स पादहयों के यनू नफामट में बत्त ु बनवाये थे, जो
ाथ खडे थे। यह बुत्त इतने खब ू ूरत बनाये गए थे कक हर स पाही का े नहीिं समलता था, लगता है , जो जो कक ी स पाही का चेहरा होगा, वै ा ही
बुत्त बनाया गया था”, ज विंत की बातें
ुन कर मुझे बहुत अच्छा लगा।
कुछ महीने बाद ज विंत एक ददन कफर आया, अक् र वोह काम खतम करके जब अपने घर जाता था तो हमें समलने आ जाता था क्योंकक पहले हमारा घर ही रास्ते में आता था। चाय बगैरा पीते पीते ज विंत बोला, ” मामा ! चल इन्जप्ट का चक्कर ला आएिं, एक अनछ िील समल रही है “, जब मैंने पछ ु ा कक कब जाना है तो जो ताररख उ को कोई छुटी नहीिं थी ताकक वोह ऐरन की दे ख भाल कर
ने बताई, उ
वक्त बच्चों
कें। मैंने कुछ दहचककचाहट की
लेककन उ ी वक्त कुलविंत बोली कक हम दोनों जा आएिं, वोह ऐरन को
िंभाल लेगी। उ ी
वक्त हम ने फै ला कर सलया कक मैं और ज विंत दोनों ही इन्जप्ट जाएिंगे। कोई एक हफ्ते बाद ज विंत आया और मझ ु े बता ददया कक इन्जप्ट के सलए दो हफ्ते की हॉसलिे बक ु हो गई थी। एक हफ्ता दररया नील की एक बोट में गज़ ु ारना ( इ रह
ौ या इ
े ऊपर लोग
कते हैं और यह एक चलते कफरते होटल जै ी होती है ) था और द ू रा हफ्ता एक
प्रस द्ध होटल ( winter palace )में गुज़ारना था न्ज न्ज
बोट में
ने TOOTANKHAAMN का बॉक्
में कभी हाविट काटट र रहा करता था,
ढूिंढा था। ज विंत के मुिंह
े यह बात
ुन कर मुझे
इतनी खश ु ी हुई कक सलखना अ िंभव है क्योंकक इन्ज्पट दे खने की खव ु ादहश तो मझ ु े बहुत दे र े थी। इ
बात का मझ ु े अफ़ ो
था कक कुलविंत ने
ाथ नहीिं जाना था क्योंकक ऐरन को
स्कूल ले जाना भी जरूरी था। अब तैयारी शरू ु हो गई। एक दक ू ान आइडिया हो
े मैंने इन्जप्ट की गाइि बक ु खरीद ली, ताकक कुछ कुछ
के। एक ताश की डिबबया हम ने ले ली ताकक जरुरत हो तो ताश भी खेल
कें। इन्जप्ट के सलए हमें वीज़ा लेने की जरुरत नहीिं थी क्योंकक वीज़ा हमें लुक् र एअरपोटट पर ही समल जाना था। इन्जप्ट के सलए हम को अपने िाक्टर
े इिंजेक्शन लगवाने थे।
ज विंत का िाक्टर कोई और था और मेरा िॉक्टर कहीिं गया हुआ था और उ िाक्टर मेहता
ाहब थे। अपॉएिंटमें ट ले कर मैं िाक्टर
ाहब की
की जगह
जटरी में जा पहुिंचा। िाक्टर
मेहता था तो एक लोकम िाक्टर ही लेककन बहुत अच्छा और जब कभी भी वोह होता तो बहुत बातें करता था । मैंने उ
को बोला कक हम ने इन्जप्ट जाना था तो वोह लुक् र की
बातें करने लगा कक लुक् र में दे खने को बहुत कुछ था। बहुत बातें उ
ने पहले ही मुझे बता
दी क्योंकक वोह खद ु वहािं जा कर आया था,और मेरी खश ु ी में इज़ाफ़ा हो गया। बसमिंघम एअरपोटट जाने का ही
ोच सलया। न्ज
पहुिंच गए। ट्रे न एअरपोटट ब
े हमें उडना था।
िंदीप को कोई छुटी नहीिं थी, इ
सलए हम ने ट्रे न में
ददन हम ने जाना था, हम ने टै क् ी ली और ट्रे न स्टे शन पर
ीधी बसमिंघम एअरपोटट के नज़दीक के स्टे शन पर पहुुँच गई, बाहर आते ही
हमारे नज़दीक ही खडी थी, उ
के डिपाचटर लौतझ के
में बैठ कर पािंच समिंट में ही बबलकुल एअरपोटट
ामने आ गए। डिपाचटर लौतझ में हमारे पहले ही चैक इन पर लाइन
लगी हुई थी। कोई भीड नहीिं थी, धीरे धीरे हम काउिं टर पर पहुुँच गए। पािंच समिंट में ही ामान बैल्ट
े चले गया और हम अपने पा पोटट , दटकटें और बोडििंग कािट ले कर आगे चले
गए और कुछ शॉपपिंग करने के सलए दक ु ानों में घूमने लगे। कुछ ननऊज़ पेपर और मैगज़ीन सलए और ऐरोप्लेन की इिंतज़ार करने लगे।
ामने स्क्रीन पर
रही थी। यूिं ही हमें फ्लाइट की तरफ जाने का ीधे ऐरोप्लेन की तरफ चले गए। इ कुछ ही पलों में हम मज़े चलता…
ारी इतफमेशन लगातार आ
िंकेत समला, हम गेट पर पा पोटट ददखा के
फ्लाइट पर भी हम दो इिंडियन ही थे, शेष गोरे ही थे।
े ऐरोप्लेन में बैठ कर लक् ु र इन्जप्ट की तरफ उड रहे थे।