मेरी कहानी
गुरमेल स हिं भमरा की आत्मकथा का द ू रा भाग (एपि ोड 22 – 42)
िंग्रहकर्त्ाा एविं प्रस्तुतकर्त्ाा लीला ततवानी
मेरी कहानी – 22 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन May 04, 2015
ारी गें हूूँ गाूँव वाले कूएूँ िे आ गई थी. बहुत बडा ढे र लग गया था. गें हूूँ कक गहाई यानी कटी हुई गें हूूँ को बैलों के िैरों े म लना और उ में े गें हूूँ और भू ा इलग्ग इलग्ग करना एक बहुत बडा काम था. िहले दादा जी ने एक िािंच छे फीट लम्बा और चार फीट चौडा लकडों का फ्रेम बनाया. इ
को फलाह कहते थे। उ
टुकडे भरे गए. अच्छी तरह भरने के बाद उ
फ्रेम में कािंटेदार झाडडओिं
कक उिरली तह घा फू
े काटे हुए े भरी गई ताकक
कक ी को वे कािंटेदार झाडीओिं की टहतनयाूँ चभ ु े नहीिं ककओिंकक कािंटेदार टुकडे बहुत तीखे होते थे. जब वो तैयार हो गगया तो खेत की खल ु ी जगह में तकरीबन िचा गें हूूँ के बण्डल खोल कर खखलार ददए गए। यह खखलाने यानी (spread) करने का काम एक तिंगली के
ाथ होता
था। यह तिंगली तकरीबन चार फीट बडे िोल के आखखर में हाथ की उन्ग्ग्लआिं जै ा बनाया होता था न्गज कहते थे
े जकड ददया जाता था और दो रस् े कािंटेदार झाडीओिं के बने फ्रेम
बैलों के फ्रेम जब यह
े काम आ ान होता था। कफर दो बैलों के गले में एक फ्रेम न्गज
को ििंजाली े बाूँध कर
े बाूँध ददए जाते थे।
ब तैयार हो गगया तो दादा जी ने बैलों को चलने के सलए एक
ककया। बैल एक गोल चकर में गें हूूँ के ऊिर चलने लगे और गें हूूँ के ऊिर चल कर गें हूूँ को म लने लगा। फ्रेम इ ी सलए होते थे कक गें हूूँ काट मैं ने कुछ ही समनटों में
ोटी
े हािंकना शरू ु
ाथ ही वोह फ्रेम यानी फलााः
े लगे कािंटेदार झाडीओिं के तीखे टुकडे
कें। कफर दादा जी ने मुझे भी ट्रे तनिंग दे नी शुरू कर दी और
मझ सलया और खद ु बैलों के िीछे िीछे चलने लगा। यह काम
ारा ददन कडकती धि ु में होता था।
ुबह
े शाम तक ऐ े ही चलता था। जब ती रा ददन
शुरू हुआ तो गें हूूँ का भू ा बारीक होने लगा और शाम तक बबलकुल बारीक हो गगया। तीन ददनों में िचा बिंडल न्गज को भरीआिं कहते थे बारीक हो गईं और शाम को मैं और दादा जी ने
ारी गें हूूँ भू े के
के इदा गगदा िचा
ाथ
ट ैं र में तिंगसलओिं की मदद
इकठी हुई गें हूूँ बिंडल यानी भरीआिं और खखलार दी गईं और वोह ही काम शुरू हो गगया।
तीन ददन बाद जब वोह भी बारीक हो गईं तो उ के ऊिर इकठा कर ददया।
े इकठी कर दी। इ
को भी इकठा करके िहले िी ी हुई गें हूूँ
बहुत ददन ऐ े ही चलता रहा और जब ारी गें हूूँ पि गई तो तिंगसलओिं की मदद े उ े इकठी करके उ े एक बडे और लम्बे ढे र की शकल दे दी गई। इ बीच मौ म का बहुत डर लगा रहता था कक कहीिं बाररश या आिंधी े ब कुछ बबााद ना हो जाए। अब जो काम था वोह मुझ
े नहीिं हो
कता था। इ
सलए दादा जी ने दो चमाकारों को बुला सलया था। मेरा
काम स फा या तो िशुओिं का खखयाल रखना होता था, यानी उनको चारा दे ना और िानी
पिलाना या घर
े उन लोगों के सलए खाना लाना। तीन आदमी उ
बडे लम्बे गें हूूँ के ढे र िर चढ़ गए और तिंगसलओिं े भू ा समली गें हूूँ को उठा उठा कर जोर जोर े ऊिर की ओर उछाल कर फेंकने लगे। हवा े गें हूूँ तो उ ी जगह गगरती रहती थी क्योंकक गें हूूँ भारी होती थी लेककन भू ा हल्का होने के कारण दरू दरू तक उडने लगा। इ
काम में अच्छी हवा की
एक ददन मैं
ब्जी एक बडे किडे में
भी बहुत जरुरत होती थी वनाा भू ा वहीीँ आ कर गें हूूँ के भी लोगों के सलए घर
ाथ गगर
कता था।
े खाना लाया। रोटीआिं और
बाूँधी हुईं थी और लस् ी एक बडी बाल्टी में थी। जब मैंने दादा जी को रोटी खाने के सलए कहा तो दादा जी कहने लगे,” अब हवा बहुत अच्छी चल रही है , हम कुछ और काम कर लें , तू इिंतजार कर”. मैं रोटीआिं ले कर आम के वक्ष ृ के नीचे बैठ गगया। कफर कुछ दे र बाद मैं हरे हरे घा
िर लेट गगया। मझ ु े नीिंद आ गई। िता नहीिं ककतनी दे र
ोया हूूँगा कक जब अचानक मझ ु े जाग आई तो उठ कर दे खा रोदटओिं वाला किडा है नहीिं था। मैंने काम करते हुए दादा जी की ओर दे खा तो वोह
भी अिने काम में बबजी थे। मैं घबरा गगया कक रोटीआिं कौन ले
गगया। उठ कर मैंने इदा गगदा दे खा तो एक भागता हुआ कुर्त्ा ददखाई ददया, दे खा वोह रोटीआिं सलए जा रहा था। मैं डिंडा ले कर कुर्त्े की ओर भागा। मैं इतनी तेजी े भागा कक कुर्त्ा भी मुझे दे ख कर रोटीआिं वाला बण्डल फैंक गगया। मैंने वोह बिंडल उठाया और आम के बक्ष ृ के
नीचे बैठ गगया। कफर मैंने रोटीआिं वाला किडा खोला तो दे खा दो रोदटओिं िर कुर्त्े के दािंतों के तनशान थे। मैंने दो रोटीआिं तनकाल कर भैं
के आगे फैंक दी और किडा उ ी तरह बाूँध
ददया। दादा जी का मुझे डर था कक अगर उन को िता चल गगया तो वोह गुस् ा मुझ िर तनकालेंगे।
कुछ दे र बाद दादा जी आ गए और रोटीआिं वाला किडा खोलने लगे। िहले उ्होंने तीन तीन रोटीआिं
भ के हाथों िर रख दी, कफर
रोदटओिं िर
भ की रोदटओिं िर
ब्जी डाल दी। आखखर में खद ु
ब्जी रख कर खाने लगे। चमाकारों के अिने अिने ग्ला
थे जो वोह घर
लाये थे। मैंने उन के ग्ला ों में लस् ी डाल दी और दादा जी को भी एक ग्ला डाल दी।
े
में लस् ी
भी बोल रहे थे कक
ब्जी बहुत स्वाददष्ट थी। मैं मन में भगवान का शुकर मना रहा था कक कक ी को िता नहीिं चला था कक रोटीआिं कुर्त्ा ले गगया था। यह बात मैंने बहुत वर्ा तक घर वालों
े छुिाई रखी। बहुत वर्ों बाद जब १९६५ में मैं इिंडडया गगया तो बातों बातों में मैंने वोह वाकया दादा जी को ुनाया, तो दादा जी इतने हूँ े कक ब हूँ ते ही रहे । रोटी खाने के बाद
भी कफर काम में म रूफ हो गए। शाम तक
को बडे बडे किडों में बाूँध कर,
ारा काम हो गगया। भू े
र िे उठा कर ले जाने लगे और एक बडे कमरे में डाल
ददया। अब जो गें हूूँ थी, उ में अभी भी मोटा मोटा भू ा था। द ू रे ददन उ गें हूूँ के ऊिर कफर बैल चलाए गए और जब बारीक हो गई तो उ े कफर हवा े उडा कर ाफ गें हूूँ इलग्ग
की गई। इ
गें हूूँ को तकडी
े तोल तोल कर बोररओिं में भरा गगया। उन भरी हुई बोररओिं में े कुछ को छकडे िर लाद कर घर ले आये और कफर बहुत ी बोररओिं को छकडे िर लाद
कर एक बडे किडे
े ढक ददया गगया। यह गें हूूँ भरी बोरीआिं ुबह होने े िहले ही शहर को बेचने जाना था। मेरी बहन मेरे और दादा जी के सलए खाना यहािं खेतों में ही ले आई थी क्योंकक हमने गें हूूँ की दहफाजत के सलए छकडे के नजदीक ही ोना था। छकडे के ाथ ही एक चारिाई िर मैं ो गगया और दादा जी छकडे के ऊिर ही कुछ किडे बबछा कर ो गए। क्योंकक चोरों का भी डर होता था कक कहीिं
ारी गें हूूँ के
ाथ चोर छकडा न ले जाएूँ।
ब ु ह को दादा जी ने मुझे उठाया। दादा जी ने बैलों को छकडे के आगे जोत ददया और मैं
छकडे के ऊिर बैठ गगया। अभी बहुत अूँधेरा ही था और तीन और कक ान भी हमारे ाथ अिने अिने छकडे शहर को ले जा रहे थे. बैलों की घूँटीआिं बजने लगीिं और चार छकडे चलने लगे। कुछ दरू जा कर एक छोटी
ी नदी न्गज
को हम कैल बोलते थे आ गई। कैल में िानी
तो इतना नहीिं था लेककन कीचड बहुत था। एक एक करके तीन छकडे कैल के िार हो गए लेककन एक छकडा कीचड में धिं गगया। बैलों का ारा जोर लग गगया लेककन छकडे का एक िदहया तनकल नहीिं रहा था। कफर एक कक ान ने अिने छकडे को आगे करके एक मोटे रस् े े अिने छकडे को धिं े हुए छकडे े बाूँध ददया। दोनों छकडों के बैल जोर लगाने लगे और जल्दी ही छकडा कीचड े तनकल गगया। रास्ता कच्चा ही था लेककन जल्दी ही हम एक गाूँव के नजदीक आ गए न्गज
का नाम बारन है . इ
गाूँव
े जब हम आगे गए तो ददन की लौ
शुरू हो गई थी। आगे जब हम द ू रे गाूँव प्लाही में आये तो रास्ता गाूँव की गसलओिं में
े हो कर जाता था।
जब गाूँव िार कर गए तो छकडे एक बहुत बडे और गिंदे तालाब के ाथ ाथ चल रहे थे। तालाब रास्ते के इतना नजदीका था कक डर लगता था कक कहीिं छकडा उ गिंदे तालाब में गगर ना जाए लेककन हम तालाब के द ु री और िौहिं च गए। (अब इ
तालाब को मट्टी
े
भर उ
जगह बहुत बडीआ कासलज बना हुआ है ). िलाही े फगवाडा को ीधी डक जाती है लेककन उन ददनों िहले प्लाही की नहर के रास्ते जाना िडता था, कफर यह रास्ता हुसशआर िर
े फगवारे जाने वाली
खैर जब हम
डक को समला दे ता था, यह रास्ता काफी लम्बा हो जाता था।
डक िर आ गए तो बैलों के सलए भी आ ान हो गगया था। जब फगवारे के
नजदीक िुहिंचे तो चग ुिं ी िे ठहरना िडा न्गज
िर हमें टै क्
दे कर कुछ आगे जा कर जीटी रोड आ गई और हमारे
यानी चग ुिं ी भरणी होती थी। टै क्
ामने थी जगतजीत शूगर समल। अब
हम जीटी रोड िर जाने लगे और जल्दी ही मिंडी आ गई। मिंडी के गेट के नीचे
े
भी छकडे
मिंडी में दाखल हो गए। आगे दे खा जगह जगह गें हूूँ के ढे र लगे हुए थे। हमारा आढ़ती हमें दे खते ही हमारी तरफ आ गगया और भी छकडों िर लदे गें हूूँ को मजदरू ों े उतरवा सलया।
हमारे गें हूूँ की ढे ररयािं भी लगा दी गईं। दादा जी ने बैलों के आगे चारा डाल ददया और मुझे ाथ ले कर एक आलू चने वाली रे हडी के िा आ गए। घर े लाये िराठों को रे हडी वाले ने एक बडे
े तवे िर रख कर गरम कर ददया और चनों की प्लेटें हम को दे दीिं। िराठे बहुत स्वाद लगे। इ के बाद चाए भी िी। तकरीबन एक दो बजे हमारी गें हूूँ की बोली हुई और हम आढ़ती की बडी ी दक ू ान में चले गए। दादा जी ने घर के सलए काफी ामान खरीदा, उ को छकडे िे रखाया। एक हलवाई की दक ू ान
े समठाई भी ली। आढ़ती की दक ू ान में कफर वापि
आ गए। आढ़ती दह ाब
ककताब करने लगा। जब वोह अिनी वही िे सलख रहा था तो मझ ु े कुछ
मझ नहीिं आ रहा
था कक वोह ककया सलख रहा था। शमााते शमााते मैंने िछ ू ही सलया और बोला, “लाला जी यह कौन
ी भार्ा है “. लाल जी बोले, “बेटा, इ
िहले उ्होंने दहिंदी का १ सलखा, कफर उ खीिंच दी और बोले, इ
के
को लिंङे बोलते हैं”. कफर वोह ाथ ऊिर
मझाने लगे,
े नीचे तक एक छोटी
को कहते हैं एक रूिया चार आने यानी
ी लकीर
वा रूिया, कफर उ्होंने एक
लकीर और खीिंच दी और बोले, यह है एक रूिया आठ आने यानी डेढ़ रूिया, कफर एक और लकीर खीिंचने के बाद बोले, यह है एक रूिया बारा आने यानी िौने दो रुिैये। इ
के बाद
उ्होंने रूिए आने और िै े सलख कर ददखाए। कफर जब भी कभी मैं दादा जी के
ाथ मिंडी
आता तो लाला जी हिं
कर
कर िूछते,” बरखरु दार लिंङे
जवाब दे दे ता कक मुझे आ गए। चलता…
मझ में आ गए?”. मैं भी हिं
मेरी कहानी – 23 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन May 07, 2015
इिंग्लैंड का मौ म इतना अच्छा नहीिं है । मुन्गककल उ
में भी
ूया दे वता के दशान मुन्गककल
े चार महीने गसमाओिं के ददन होते हैं और
े होते हैं। आज जब
की लौ आई। मन ि न ा हो गगया। ब्रेक फास्ट ले के अिनी छोटी
ुबह उठा तो खखडकी
े
ूया
ी बगगया में बैंच िर बैठ
गगया और फूलों का नजारा दे खने लगा। ित्नी भी आ गई और नए नए फूलों को तनहारने लगी। कुछ दे र बाद अचानक उ जल्दी
े मेरे िा
ने एक अजीब कोई दो इिंच बडा िरों वाला कीडा दे खा और
आई और बोली, दे खो दे खो, ऐ ा कीडा कभी नहीिं दे खा, यह कहाूँ
े आ
गगया? मैंने भी दे खा। यह कोई दो इिंच लम्बा, बडी बडी टािंगें और बडे बडे िर (wing) थे। मैं भी है रान हो गगया कक यह कहाूँ
े आ गगया?.
ोचता
ोचता मैं बचिन में चले गगया।
पिछली कुछ कककतों में मैंने गें हूूँ की बबजाई कटाई के बारे में सलखा था। और जो बात मैं अब सलखने जा रहा हूूँ यह शायद इ े एक दो ाल िहले की होगी। एक ददन कुछ
त्रीआिं हमारे घर में आईं और मेरी माूँ
े बोलीिं,” तेज कौरे ! (मेरी माूँ का
नाम तेज कौर था)
न ु ा है स ला बहुत आ रही है । खेतों के खेत खा रही है , न ु ा है एक औरत का बच्चा था जब वोह स ला को खेतों े उडा रही थी तो बच्चा कही खेत के बादहर बबठा ददया था और स ला ने वोह बच्चा ही खा सलया। यह स ला ककया बला है , मैं मन ही मन में
ोचने लगा। कफर मेरे दादा जी भी आ गए और जो उ्होंने लोगों
लगे कक स ला िाककस्तान की ओर मन ही मन में मैं बात होगी। मैं राम
ुना वोह बताने
े आ रही थी और अब अमत ृ र के नजदीक आ गई थी।
ोचता रहा कक स ला कै ी होगी। इ र वाले खेतों में
े
घटना
े दो तीन ददन बाद की
ाग तोड रहा था कक मुझे ढोल बजने की आवाज
ुनाई दी लेककन मुझे कहीिं भी ढोल वाला ददखाई नहीिं ददया, शायद दरू कहीिं बज रहा था।
कफर कुछ लोगों का शोर भी
ुनाई दे ने लगा। मैंने आकाश की ओर दे खा। दरू ऐ े लग रहा
था जै े काले बादल आ रहे हों। मुझे है रानी हुई कक हमारी तरफ आ मान बबलकुल था।
ाफ
अभी आधा घिंटा भी नहीिं हुआ होगा कक आ मान े बडी बडी टािंगों और िरों वाले कीडे जमीिं िर गगरने लगे और हरी हरी गें हूूँ ेंजी और चौटाले को खाने लगे जो हम िशुओिं को खखलाते थे। कुछ ही समनटों में वोह काले बादल जो दरू
े ददखाई दे ते थे अब हमारे खेतों िर छाए
हुए थे। मेरे दादा जी अचानक कहीिं े आ गए और घबराए हुए मुझे बोले, जल्दी जल्दी यह िीिा िकड और इ े डिंडे के ाथ जोर जोर े बजा कर स ला को उडा, नहीिं तो ारी गें हूूँ खा लेंगे। मैं और दादा जी जोर जोर े िीिे के ऊिर डिंडे मार मार कर खटाक करते और स ला को उडाने की नाकाम कोसशश करते।
भी कक ान अिने अिने खेतों
े स ला उडा रहे थे।
स ला की गगनती नहीिं की जा द ू रे ददन
ुबह
कती थी, यह अरबों खरबों
े भी ज़्यादा तादाद में होगी।
े ही यह काम कफर शुरू हो गगया। िता नहीिं कहाूँ
े आ रही थी और खत्म
होने का नाम नहीिं ले रही थी। आई ही जा रही थी और जाइ जा रही थी। स्कूलों में छुदटयाूँ हो गई थीिं और
भी बच्चे अिने अिने खेतों
े स ला को उडा रहे थे। स ला ऊिर
े आती
और खेतों में गगरती जाती और हरी हरी ितीआिं खाने लगती क्योंकक इन की खरु ाक ही हरा था।
भी दरख्त स ला
े भरे हुए थे। कुछ ददन बाद समसलटरी के कुछ ट्रक्क आये और ढोल ारे गाूँव के लोगों को हदायत दी कक अिने अिने घरों े झाडू ले कर आएिं।
े
मैं भी झाडू ले कर गगया। समसलटरी के ट्रक मट्टी के तेल के िीिों े भरे हुए थे। समसलटरी के जवान ट्रक े िीिा उतारते, उ में एक लम्बी ट्यब ू का एक स रा डाल दे ते और द ू रा स रा एक बडी
ी पिचकारी को लगा था। िम्ि के प्रेशर
तनकलने लगता और कफर ददया स लाई
े मट्टी का तेल पिचकारी
े
े पिचकारी के आगे आग लगा दे ते और एक आग
का फ्लेम तनकलने लगता। कफर वोह जवान आग का फ्लेम दरख्त के चारों ओर घुमाते। यह फलेम इतना ऊिंचा जाता था कक दरख़्त के ऊिर तक जाता था। स ला के कीडे झुल
कर
नीचे गगरते जाते और हम को कहा गगया था कक उन स ला के कीडों को अिने अिने झाडूओिं े मारें । एक दरख्त के बाद द ू रे दरख्त की तरफ चले जाते, कफर ती रे दरख्त की ओर। बहुत रात तक यह काम, चलता रहा। यह काम रोज का ही हो गगया। ददन को खेतों े स ला उडाने की कोसशश करते और रात को समसलटरी के ाथ समल कर स ला को मारते।
ात आठ ददन तक स ला ऐ े ही आती रही और कफर अचानक आनी बिंद हो गई। अब और मु ीबत हो गई। स ला ने अिंडे दे ददए थे न्गजन में
े और बच्चे िैदा होने का अिंदेशा था। यह
अिंडे इतने थे कक हकूमत ने लोगों को कह ददया कक अण्डों को मट्टी और चार आने
ेर खरीदने का लालच दे ददया।
े उखाड कर लाओ
ारे गाूँव के लोग मट्टी
कर मेरे दोस्त बहादर की हवेली में लाने लगे। तकडी
े अिंडे उखाड उखाड
े तोल तोल कर लोगों को कैश िै े
समलने लगे। रोज रोज लोग अिंडे लाते और िै े बनाते। एक बहुत बडा ढे र अण्डों का लग गगया था। कफर समसलटरी का ट्रक आया, कुछ लोगों ने टोकरे भर भर के ट्रक को इन अिंडों भर ददया और ट्रक ड्राइवर उन अण्डों को कहाूँ ले गगया, मुझे नहीिं मालूम लेककन
ुना था कक
उन अिंडों को एक जगह इकठे करके आग लगाईं जायेगी। एक बात यह भी बता दूँ ू कक यह अिंडे चावलों जै े थे और गुछों में थे। एक एक गुच्छे में कम इ
े अिंदाजा आ ानी
े लगाया जा
कता है कक उन में
े कम
ौ अिंडे तो होंगे ही।
े बच्चे जब तनकलते तो ककतने
होंगे। इ
स ला ने
ारी फ लें खा ली थीिं और
उन लोगों के दाःु ख
भी कक ान दख ु ी थे, मैं तो अभी बच्चा ही था,
मझने में अ मथा था लेककन इतना तो ददखाई दे ही रहा था कक यह
स ला फ लें खा खा कर अिंडे ददए जा रही थी। हमारी
े
रकार ने कक ानों के सलए बहुत कुछ
ककया। ककतने िीिे तेल के लगे होंगे और ककतने के लोगों
े अिंडे खरीदे होंगे क्योंकक यह
हमारे गाूँव में ही नहीिं था बन्गल्क
ारे ििंजाब में था। अब कहानी यहीिं खत्म नहीिं हुई। ारे कते थे, कुछ लोगों ने भी लालच के कारण वहीीँ े अिंडे उखाडे यहािं
अिंडे तो उखाडे नहीिं जा आ ानी न्गज
े और ज़्यादा तादाद में उखाडे जा
कते थे क्योंकक मक द िै े बनाने का था।
जमीन में रे ता था उ
में अिंडे बहुत होते थे और भी लोग ज़्यादा े जयादा उधर ही जाते थे। कुछ भी हो, कुछ ही ददनों बाद जो बचे अिंडे रह गए थे उन में े बच्चे तनकलने शरू ु हो गए। यह नई मु ीबत शरू ु हो गई। अब हकूमत की ओर आ गईं और
ाथ ही डीडीटी के बैग आ गए।
े स्प्रे करने वाली मछीनें
ारे गाूँव में लोग जगह जगह अिने अिने
बेलचे ले कर गए हुए थे। िहले कुछ लोग बेलचों े एक लाइन में माटी को उखाड दे ते और कफर द ू रे लोग कुछ किडे ले कर अिंडों े तनकले बच्चों को किडों े हवा दे दे कर उ खाई की और लेते जाते। जब वोह बच्चे खाई में गगर जाते तो द ू रे लोग जल्दी जल्दी उन
बच्चों के ऊिर मट्टी डाल कर उन को दबा दे ते। स्प्रे करने वाले भी दरू दरू तक डीडीटी को
प्रे करते जाते। यह स लस ला भी बहुत दे र तक ऐ े ही चलता रहा। धीरे धीरे बहुत बच्चे मार ददए गए या दबा ददए गये. इ के बाद भगवान का शक्र ु ही मनाएिंगे कक या तो मौ म बदलने की वजह
े या कक ी और कारण के यह
लोगों ने
ािं
ुख की
ब स ला अिने आि ही ख़त्म हो गई.
ली और भगवान का शुक्र इ
फ लें स ला ने खा लीिं थी कफर
सलए भी मनाना बनता था की जो
े हरी होने लगीिं। चटाला
ेंजी तो बहुत जल्दी अिने जलाल िर आ गईं। गें हूूँ भी ऊिर को उठने लगी। कक ानों के मुरझाये चेहरे एक दफा कफर खखल उठे ।
अब यह अिंधपवकवा
कहें या मन की त ल्ली,हमारे मोहल्ले के लोगों ने स ला के नुक् ान
े
बच जाने के कारण एक र म शुरू की। मुझे आज तक नहीिं िता कक वोह र म ककया थी, ब
इतना याद है कक एक खल ु ी जगह में गोबर की बनी हुई िागथओिं का ढे र लगा ददया गगया, यह ढे र कोई ात आठ फीट ऊिंचा होगा। इ ढे र को आग लगा दी गई। अब तीन आदमी आये न्गजन के हाथों में लोहे के फीट लोहे के डिंडे के तीनों आदमी वोह
िंगल थे। यह
िंगल ऐ े थे कक एक तकरीबन दो
िंगल बािंधे हुए थे। अब वोह िं ल िकड कर आग के इदा गगदा चलने लगे और अिने शरीर िर वोह ग
िंगल भी मारने लगे।
ाथ तकरीबन दो फीट लम्बे ििंद्ािं बी ाथ
थी वोह अिने शरीर ऊिर
ाथ बोलते जाते,या अली ! या अली !. जै े जै े आग बड रही िंगल मारते जाते। उन के शरीर िर तनशाूँ िडने लगे और धीरे
धीरे खन ू भी बहने लगा। कफर अिने िैर उ
आग में मारने लगे। िागथओिं की राख बनने
लगी और वोह गमा गमा राख के ऊिर िैर मारने लगे। िता नहीिं उन को गमा गमा राख का ेक मालम ू नहीिं हो रहा था या उ्होंने िैरों को कुछ लाया होगा। जै े वोह िागल हो रहे थे,
धीरे धीरे उन का यह काम बढ़ता जा रहा था। उ्होंने उ
ढे र में भी िैर मारने शरू ु कर
ददए। एक आदमी गगर गगया लेककन द ू रे दो अभी भी या अली या अली कहते आग के ऊिर
चकर लगा रहे थे। कुछ दे र बाद कुछ आदमी आगे आये और उन को बिंद करा ददया। इन तीनों की िीठ
े खन ू बह रहा था। कफर वोह तीनों उठ कर बोलने लगे, अब स ला कभी नहीिं
आएगी, हम ने उन को खत्म कर ददया है । लोग ख़श ु ी
े तासलआिं बजा रहे थे।
भी लोगों
को गुड वाले चावल बािंटे गए। शाम ढल गई थी और लोग अिने अिने घरों को जाने लगे। ोचता हूूँ, हकूमत ने समसलटरी भेजी, ककतना तेल लगा, ककतने बैग डीडीटी के लगे, ककतने लोगों ने इ स ला को खत्म करने के सलया अिना अिना योगदान ददया और यह लोग आग बझ ु ा कर गारिं टी दे रहे थे कक उ्होंने स ला को खत्म कर ददया, कफर कभी नहीिं आएगी। इ को क्या कहें ? चलता…
मेरी कहानी- 24 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन May 11, 2015
आज ियाावरण के बारे में भारत में जागरूकता िैदा हो रही है जो बहुत अच्छी बात है । वक्ष ृ लग रहे हैं, बच्चों को वक्ष ृ लगाने को उत् ादहत ककया जा रहा है । वक्ष ृ ों के बगैर हमारी न्गजिंदगी बेस्वाद है . जब मैं छोटा था तो वक्ष ृ इतने थे कक जै े गाूँव एक जिंगल के बीच ब ें हों।
ब
े ज़्यादा कीकर (बबूल) के वक्ष ृ होते थे और द ू रे निंबर िर होते थे प्ला
तछछरों, और टाहली के वक्ष ृ । आज जो हमारा गाूँव है उ
या
वक्त इ
े आधा होता था। बहुत े लोगों के घरों में भी नीम के वक्ष ृ होते थे। कोई ियाावरण की बात नहीिं होती थी, लोग
खद ु ही इतने वक्ष ृ लगाते थे कक कक ी को कहने की जरुरत ही नहीिं होती थी। एक नीम जै ा ही वक्ष ृ होता था न्गज े डेक (नीम चमेली) कहते थे और उ
को छोटे छोटे बेरों जै े डकानू
लगते थे। यह बहुत कडवे होते थे। नीम और डेक के िर्त्े बहुत काम आते थे। यह बहुत बीमाररओिं में काम आते थे। मेरे बडे भाई दहकमत में ददलचस्िी रखते थे। जब भी वोह अफ्रीका
े वापि
आते, हमेशा नीम के िर्त्ों को तवे िर भन ू कर, उ
कर खाया करते थे। कभी कभी तो वोह नीम के िर्त्ों को िी िीते थे न्गज
में थोडी शक्कर डाल
कर उन का कडवा र
भी
को वे कडवा घूँट ू कहते थे। एक दफा उ्होंने मझ ु े भी ददया था लेककन मैंने
उ ी वक्त थक ू ददया था, क्योंकक वोह जहर जै ा कडवा था। बडे भाई हम लेककन उन की स हत भी
ब
े अच्छी थी, और हम
ब
े बडे थे
े जवान लगते थे। वोह टूथ िेस्ट
कभी इस्तेमाल नहीिं करते थे, स फा जिंगल िानी जा कर आते कर चाकू
ी
मय कीकर की टहनी तोड
े दातुन बना लेते और खब ू आधा घिंटा दातुन करते। कफर दातन ु को बीच में
दहस् ों में फाड कर उ
े जीभ को
ाफ करते थे। उ
नहाते थे और िाठ शुरू कर दे ते थे।
े दो
के बाद कुएिं के चलहे में बैठ कर
जगह जगह खेतों में कुएिं होते थे और हर कुएिं िर बहुत वक्ष ृ हुआ करते थे जो बहुत बडे बडे होते थे क्योंकक इन को कोई काटता नहीिं था। एक दो आम और जामुन के इलावा शहतूत और टाहली के वक्ष ू के वक्ष ृ भी होते थे। शहतत ृ ों
े टोकरे बनाये जाते थे जो बहुत काम आते थे। कही कहीिं िीिल और बोहड के वक्ष ृ भी होते थे न्गजन की छाूँव के नीचे या तो िशु बािंधे
हुए होते थे या गसमाओिं के ददनों में चारिाईओिं िर लोग लेटे हुए होते थे। किंू आिं चलने े दटक दटक की आवाज आती रहती थी। कहने की बात नहीिं यह बहुत ुहावना दृकय होता था। आज राणी िर
े फगवारे जाने वाली िक्की
राणी िर
े जानी वाली चार अ्य
डक की दोनों तरफ कोई बर् ृ नहीिं है और यही दृकय
डकों का है जो बहुत दभ ु ाागगया िूणा है . मेरे जमाने में गाूँव के न्गजतने भी रास्ते बाहर को जाते थे उन की दोनों ाइड िर ऊिंचे ऊिंचे बाूँध होते थे और उन िर कई तरह की झाडीआिं और कैक्ट वक्ष ृ होते थे।
हुआ करते थे और कई ल ुडडओिं (सल ोडे) के
हमारी गली की कुछ ही दरू ी िर
े वक्ष ृ शुरू हो जाते थे। मेरे दोस्त बहादर स हिं के खेतों की
द ू री ओर बहादर की तकरीबन
ौ बेरीआिं होती थीिं न्गजन िर बेररओिं के मौ म में बहुत बेर े लडके इकठे हो कर बेर खाने जाते थे। बेर इतने होते थे की हमें खाने
लगते थे। हम बहुत के सलए कोई कोसशश ही नहीिं करनी िडती थी, नीचे ही इतने गगरे होते थे कक ऊिर
े झाडने
की जरुरत ही नहीिं िडती थी। इन बेरीओिं के नजदीक ही एक कूँु आ होता था, इ ी सलए इ
को बेरीओिं वाला कूँु आ कहते थे। इन बेररओिं के कुछ ही दरू बहादर का ही बाग़ वाला कूँु आ था। इ
जामन ु ,
को बाग़ वाला किंू आिं इ
सलए कहते थे क्योंकक इ
के नजदीक बहुत बडे बडे ौ के करीब ही होंगे। हम इन वक्ष ृ ों
फैदे और आम के वक्ष ृ होते थे। यह भी कोई
िर चढ़ जाते और जी भर कर आम और जामन ु खाते। यह
ारा इन वक्ष ृ ों का फ्रूट वै े ही
बबााद हो जाता था क्योंकक इन लोगों को िरवाह ही नहीिं थी। इ
बाग़ में मजे करने के बाद
हम आगे चले जाते यहाूँ बहुत घने वक्ष ृ होते थे, न्गजन िर हम जिंग िलिंगा खेलने लगते। कभी कभी हम इ े भी आगे नदी तक िौहिं च जाते न्गज के ककनारे िर भी बहुत वक्ष ृ होते थे। इ
नदी िर भी बहादर की जमीन होती थी और इ
जो और कहीिं नहीिं थे, इन को
िर एक ख़ा
ककस्म के वक्ष ृ होते थे
ूकना और यून्गक्लन्गप्स्टक के वक्ष ृ कहते थे। नदी में कभी कभी
हम नहाने भी लगते। इ
नदी में रे त बहुत होती थी। न्गज को भी मकान बनाते मय रे त की जरुरत होती वोह यहािं े छकडा भर कर ले जाता, कोई नहीिं िूछता था। कुछ अर ा िहले जब मैं इिंडडया में था तो दे ती है और रे त की कीमत
ुन कर बहुत है रानी हुई कक अब इ रे त को हकूमत ठे के िे ुन कर ही है रान हो गगया कक यह रे त जो कभी ब के सलए
मुफत थी अब बहुत महूँघी पवक रही थी।
बहुत लोग वक्ष ृ बीजते थे। मेरे दादा जी यहाूँ भी नए वक्ष ृ लगाने हों वहािं बहुत े तीन चार फीट जमीन के नीचे तक गडे खोद दे ते थे। कई महीने वोह गडे इ ी तरह िडे रहते। उन में बाररश का िानी भर जाता,
ूख जाता, कफर भर जाता होता रहता था। ज़्यादा वोह कीकर के
वक्ष ृ लगाते थे। जब बीज बीजने हों तो कीकर के बीज जो फसलओिं में होते थे, हल्का े फसलओिं को तोड दे ते। कफर उन गढ़ों को उ ी मट्टी
ा डिंडे
े भर दे ते और ऊिर बीज फैंक दे ते।
बाररश िडने िर वोह बीज िुिंगरने लगते और छोटे छोटे बूटे बन कर जल्दी ही वक्ष ृ बनने लगते। इ ी तरह िलाश यानी तछश्रों के बीज फैंक दे ते। इ
तरह नए नए वक्ष ृ लगते रहते।
बीच बीच िुराने बडे हुए वक्ष ृ ों को काट कर, उन को बडी बडी आररओिं े चीर कर काम में लाते। लकडीआिं इतनी होती थीिं कक चल् ू हे में काम तो आती ही थीिं, बहुत ी लकडडयों को शहर में बेच आते थे क्योंकक उ
मय शहर में भी लकडीआिं या कोले चूल्हे के सलए काम
आते थे। शहर में लकडीआिं बेचने वाले पवओिारी होते थे। ईंधन के सलए बहुत बडे बडे लकडडयों के टाल होते थे और बहुत बडी तकडी होती थी न्गज को तकड बोलते थे। उ लकडीआिं तौल कर बेचीिं जाती थीिं।
े
गाूँव की द ू री तरफ भी दरू दरू तक दरख्त ही दरख्त ददखाई दे ते थे। कीकर के वक्ृ क्षों िर
गोंद बहुत लगता था। हम बिंदरों की तरह ऊिर चढ़ जाते और गोंद तोड कर जेबों में डालते रहते। जल्दी ही जेब भर जाती। वक्ष ृ ज़्यादा होने के कारण िररिंदे भी तरह तरह के होते थे। सभ्न सभ्न आवाजें आती रहती थी। कउए की तादाद में कउए शाम के
ब
े ज़्यादा होते थे। जब शाम होती तो लाखों
मय कािं काूँ करते जाते। आमों के वक्ष ृ ों िर तोते ही इतने होते
थे कक आम लगने के वक्त आमों की रखवाली करनी िडती थी क्योंकक तोते आमों की कच्ची अमीआिं टुकर टुकर खाते और तोडते रहते। कहते हैं कक यह िररिंदे हमरी न्गजिंदगी में बहुत जरूरी हैं। इ के बगैर जीवन अधरू ा है । यह बहुत ही बात है । न्गजतने िररिंदे उ वक्त थे अब तो दीखते ही नहीिं। और
ब
े अहम बात जो है वोह है शद् ु ध वातावरण। न्गजतने ज़्यादा
वक्ष ु े ृ होंगे उतनी ही वोह ऑक् ीजन छोडेंगे। और बाररश होगी जो हमारे सलए जरूरी है । मझ याद है हमारे गाूँव
े कुछ दरू ी िर नदी है न्गज
में िानी बहुत होता था और इ को िार करने सलए बेडी (ककती) होती थी। और जब यह नदी भरी होती थी तो हम कैद हो कर रह
जाते थे क्योंकक नदी में िानी इतना होता था कक बहुत ददनों तक गाूँव े बादहर जाया नहीिं जा कता था। अब यह नदी ूखी िडी है और लगता ही नहीिं कक यहािं नदी है । बारशों की वजह
े धरती में िानी बहुत होता था। न्गजतने भी कुएिं थे उनमें ती िैंती िर ही िानी आ जाता था और हम उ में नीचे जा कर नहा भी लेते थे। हमारी राम वाली जमीिंन तो नदी ऊिर था कक मुन्गककल
े कुछ ही गज की दरू ी िर थी और इ ी सलए इ े बी
फीट नीचे ही था। अब तो कुएिं लग ही नहीिं
िानी इतना नीचे चले गगया है कक िानी तक िौहिं चा ही नहीिं जा
फीट
र
कुएिं में िानी इतना कते क्योंकक
कता। ट्यूब वैलों
े िानी
खीिंच खीिंच कर जो हालत ििंजाब की हो रही है कक लगता है एक ददन ऐ ा आएगा कक ििंजाब रे गगस्तान बन जाएगा क्योंकक जो अब ट्यूब वैल के बोर हो रहे हैं उन को बहुत नीचे तक जाना िडता है । िानी की ऊिरली तह खत्म हो गई है । िीने के िानी के सलए तो बहुत
गैहराई तक जाना िड रहा है जो गचिंता का पवर्य है . गाूँव के िूवा की और कुछ मील दरू ी िर
रामगढ़ और खाटी के नजदीक तो इतने वक्ष ृ थे कक दरू दरू तक दे खना ही मुन्गककल था। कभी कभी हमारे स्कूल का फुटबाल मैच रामगढ़ के स्कूल एक तरफ िलाश के वक्ष ृ ों का घना जिंगल जो शायद बाढ़ के िानी हो जाते थे। यह
े होता था और इ
ा होता था। इन वक्ष ृ ों के बीच एक
े बचाने के सलए होती थी। अक् र हम इ
ुरिंग मन्गु ककल
फुटबाल ग्राउिं ड की
ुरिंग होती थी
ुरिंग के बीच दाखखल
े तीन फीट ऊिंची थी और हम रें ग रें गकर इ
में चलते थे।
उर्त्र की और भी कीकर के वक्ष ृ बहुत होते थे। मेरे नतनहाल आदम िरु के नजदीक हैं (यह समसलटरी की छावनी है ) और हमें इन कीकर के वक्ष ृ ों के बीच जाना िडता था। यह एक न ु ान जिंगल ही लगता था। मेरी यह कककत स फा यह सलखने के सलए है कक उ
मय
ककतने वक्ष ृ होते थे जो अब नहीिं हैं और उन की जगह खेत ही खेत हैं। यह िेह्चा्ना ही मुन्गककल है कक वहािं ककया होता था। इ
के इलावा घा
और इन मैदानों में होते थे बडे बडे तालाब न्गज
के मैदान भी गाूँव के चारों ओर थे
में भैं ें तैरती रहती थी और
ारा ददन वहीीँ
े िानी भी िीती रहती। ोचता हूूँ आजादी के वक्त भारत की आबादी ३६ करोड थी जो अब १२५ करोड है । िानी ककतना हम िी रहे हैं और इतने ही लोग नहा रहे है , उतने ही लोगों के किडे धोने िडते हैं। िहले कारें मोटर बाइक न के बराबर थे, अब घर घर कमजकम मोटर बाइक तो है ही, इन के रे डडएटरों में भी िानी डालना िडता है और उ्हें धोना भी िडता है , कफर ककतनी फैन्गक्ट्रयािं भी लग चक् ु की हैं और लग रही हैं, िहले गाए भैं े तालाबों में नल का िानी िीती हैं। धरती का िानी हमेशा तो समलना हम इ
त्यानाश कर रहे हैं, अगर हम के इलावा जो
ब
े िानी िी लेती थी जो अब
िंभव नहीिं है । यह जो ियाावरण का
म्भले नहीिं तो एक ददन हमें िछताना िडेगा।
े खतरनाक बात हो रही है , वोह है जहरीली कफजा और जहरीली
धरती। हम खेतों में इतने जहरीले स्प्रे और कीट नाशक दआ ु ईआिं तछडक रहे हैं कक कैं र जै े रोग अब आम बात हो गई है । बहुत कक ान यह दआ ु इआिं तछडकते ही अिनी जान े हाथ धो चक् इतना ु के हैं, ऐ ा मैंने बहुत िडा है । कारों ट्रक्कों और मोटर बाइकों का जहरीला धआ ुूँ बड चक् ु का है कक हर वक्त जहरीले गचमखणओिं
ािं
ले रहे हैं। इ
े भी ज़्यादा धआ फैन्गक्ट्रयों की ुूँ
े आता है । फैन्गक्ट्रयों का वेस्ट दररआओिं में डाल रहे हैं। जब गिंगा जै ी िपवतर
नदी भी बच नहीिं िाई तो द ू री नददओिं का तो है यह। मेरे बचिन के
ोचना भी बेकार है ।
ोचता हूूँ कै ी उनती
मय ना कोई दआ ु ई होती थी, न यूरीआ और द ु री खादें , होता था
तो स फा िशुओिं का वेस्ट जो बबलकुल प्योर और धरती के सलए उर्त्म। ज़्यादा
े ज़्यादा
प्याज के बूटों िर घर के चल् ू हे की राख डाल दे ते थे। कीडे मकौडे होते ही नहीिं थे, स फा एक दफा दटड्डी ही आई थी, उ
में भी खेतों में कुछ नहीिं डाला गगया था।
होता था। अब नए नए कीडों के नाम ज़्यादा
ब कुछ ऑगैतनक ही
ुनने को समल रहे हैं।तब फ लें बहुत होती थीिं, अब े ज़्यादा खादें डाल डाल कर धरती माूँ को ज़्यादा े ज़्यादा उगाने िर जोर दे रहे हैं।
लगता है , धरती माूँ भी एक ददन हाथ खडे कर दे गी। और आखखर में यह भी सलखना चाहूिंगा कक नॉएज िौलूशन (शोर प्रदर् ू ण) भी इतना बड गया है कक जब हम भारत आते हैं तो हमें लगता है कक यह ककया हो रहा है । मैं जानता हूूँ कक भारत में रहते लोग इ शोर के आदद हो चक् ु के हैं लेककन यह स हत के सलए अच्छा नहीिं है । मोदी जी ने जो स्वकता असभयान शरू ु ककया है वोह बहुत ही ऊिंची ोच है । काश भी भारतीय इ को पवचार करें और हर तरह का िौसलश ू न खत्म करने की कोसशश करके और
ज़्यादा
े ज़्यादा वक्ष ृ लगा कर ियाावरण को इतना शुद्ध करें कक हम कह
भारत वर्ा महान है । चलता…
कें कक हमारा
मेरी कहानी – 25 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन May 14, 2015
आजादी के बाद चोर डाकू भी बहुत हो गए थे। नई नई आजादी समली थी, कानून वयवस्था इतनी अच्छी नहीिं थी। हमारे गाूँव में ही बडे बडे बदमाश थे न्गजन े भी लोग डरते थे। हर गली में रात को दो िैहरे दार िैहरा ददया करते थे। गली के हर आदमी को इ िडता था. जो नहीिं आ
कता था उ
को दो रूिए दे ने होते थे और उ
में भाग लेना
की जगह दो रूिए
ले कर कोई और आदमी चले जाता था। दो आदसमओिं के हाथ में बडी बडी लाठीआिं होती थीिं और वोह गली के एक स रे
े शुरू हो कर द ू रे स रे तक जाते थे और
भी जमीिंन िर मारते जाते थे न्गज
ाथ
ाथ लाठीआिं
े खटाक होता रहता था। ऐक आदमी ऊिंची आवाज में
बोलता, ” जाग बई ओ ! खबरदा अ अ अ र “. कुछ कुछ समनटों बाद ऐ े ही बोलते जाते।
बहुत दफा गसमाओिं के ददनों में कक ी को आवाज दे दे ते और कहते,” कै े बई मोहन लाल, जागता है ?”. वोह भी जवाब दे दे ता, ोहन स घ िं ा आज तो बई मच्छर बहुत है और गमी ने भी कहर ककया हुआ है । ऐ े ही कुछ लोग जागते रहते और बातें भी करते रहते। इ का फायदा यह होता था कक कहीिं चोर आ गए तो लोग जल्दी ही उठ जाते थे। हर एक की चारिाई के नीचे तलवार या लाठी रखी होती थी। कुछ था। मेरे
ाल बाद मैं भी िैहरा ददया करता
ाथ एक आदमी होता था जो खद ु तो बोलता नहीिं था,
िडता था लेककन वोह लोगों
ारी रात मझ ु े ही बोलना
े बातें करता रहता था जो मैं नहीिं कर
कता था।
हमारे गाूँव की न्गजतनी भी गसलआिं हैं वोह गाूँव की द ु री ओर नहीिं जातीिं बन्गल्क आखखर में आ कर बिंद हो जाती हैं और आगे जाया नहीिं जा कक ी के घर में घु
कता। एक दफा कोई चोर आ गगया और
कर ताला तोडने लगा। घर वालों को जाग आ गई और शोर मचा ददया,
चोर !चोर ! चोर !. न्गज
कक ी के भी हाथ में कुछ आया घर
े बादहर आ गए। वोह जा रहा
है , वोह जा रहा है की आवाजें आने लगीिं और चोर के िीछे भागने लगे। चोर कोई कक ी और गाूँव का था और हमारा गाूँव उ आखखर में बिंद हो जाती थी। ब
के सलए अिंजाना था। गली की द ु री ओर भागने लगा जो
कफर ककया था उ
को िकड सलया गगया और उ
पिटाई होने लगी। वोह हाथ जोड रहा था कक उ े छोड दें लेककन िीट रहे थे। उ
की
भी गुस् े में लादठओिं
े
के खन ू बह रहा था और कफर कुछ बजुगों ने उ े छुडवाया। कक ी ने िुसल
को नहीिं बताया और उ े छोड ददया। िुसल ददनों ररिोटा करना आ ान नहीिं था। जब वोह चोर चला गगया तो
भी हिं
स्टे शन फगवाडा था और इतनी दरू जा कर उन
रहे थे कक अब तो न्गजिंदगी भर याद रखेगा। हमारे गाूँव
में ही इतने डाकू हो गए थे कक उन की आपि बारे में फजी नामों
में ही दकु मनी बहुत होती थी। मैं भी के े ही बात करूूँगा। हमारी बरादरी में ही मदाान स हिं हुआ करता था जो
हर वक्त अिने िा हमारे गाूँव
राइफल रखता था। उ
के बारे में मशहूर था कक उ ने खाटी गाूँव जो े तकरीबन चार ककलोमीटर िूवा की ओर है में बहुत मु लमानों को मारा था और
लूट मार की थी। वोह हमेशा अिने
ाथ एक आदमी रखता था न्गज
के िा
तलवार होती
थी। मदाान स हिं का रिं ग गोरा और बहुत तगडा था। कई दफा हमारे घर भी आया और हमेशा उ के िा राइफल होती थी। अक् र मैं अिने दोस्त तर ेम के घर जाता रहता था न्गज की माूँ अिंधी थी लेककन वोह मुझे बहुत पियार करती थी, और मैं उन के घर जा कर बहुत खश ु होता था। एक ददन मैं और तर ेम उन के चब ु ारे में खेल रहे थे कक बादहर ऊिंची ऊिंची रोने की आवाज आने लगी और को वालों
न ु ा कोई गासलआिं दे रहा था। हम नीचे आ गए। दे खा कक एक आदमी कक ी
े िकडे हुए था और मदाान स हिं हॉकी े उ स हिं अिने गे भाई को िीट रहा था. कुछ दे र बाद उ
को िीट रहा था। मैंने दे खा मदाान के भाई की ित्नी घर
गई और अिने ितत को छुडवाने लगी लेककन मदाान स हिं उ कुछ आदमी मदाान स हिं के भाई के घर में
े
को भी हॉकी
े बादहर आ
े िीटने लगा।
ामान बाहर तनकाल तनकाल कर िा
की एक
खह ू ी के नजदीक फैंक रहे थे। मुझ
े यह दे ख नहीिं हुआ और अिने कुएिं की ओर चला गगया। कुछ घिंटे बाद वोह ितत ित्नी रोते हुए फगवारे की ओर जा रहे थे। एक ददन जब कफर मैं तर ेम के घर आया तो कुछ दे र बाद कफर शोर
ुना। मैं तो उ
ददन
का डरा हुआ था लेककन जब शोर कम हुआ तो हम दोनों गली के बाहर आ गए। जो हम ने दे खा बहुत खौफनाक था। एक आदमी की लाश िडी थी, उ का शरीर जगह जगह े काटा हुआ था, दीवार खन े भरी हुई थी, उ के िा एक ू कैंची और एक िट न की गठरी। लोगों के मुिंह े जो रहे थे कक न्गजन लोगों की इ
ाबुन की दटक्की िडी थी, एक बडी
ुना अभी तक भूला नहीिं। लोग बोल
े दकु मनी थी वोह अव र की तलाश में थे और आज इ े
मार ददया। मैं ज़्यादा दे र खडा नहीिं हो
का और घर आ गगया। जब भी कभी मैं इ
में आता तो दीवार िर िडे खन ू के छीिंटे उ
लाश की याद ददला दे ते। इ
गली
मारे गए आदमी
के दो भाई और थे जो मारे गए भाई की तरह बहुत तगडे थे। इन दो भाईओिं ने जो ककया वोह भी बहुत बुरा था। एक ददन मैं स्कूल
े जब आया तो लडकों के
ाथ खेलने लगा। कुछ दे र बाद
भी लडके
चले गए लेककन मेरे िेट में अचानक ददा होने लगा जो बढ़ता ही गगया। ददा इतना बड गगया कक मैं बहादर की हवेली के बाहर जमीिंन िर लेटने लगा। मैं अकेला तडफ रहा था कक एक आदमी था।
ब ु ेग स हिं (फजी नाम) आया और मेरे िेट को दे खने लगा। ददा बढ़ता ही जा रहा
ब ु ेग स हिं ने मझ ु े अिनी बाहों में उठाया और
ीधे
ोहन लाल डाक्टर की
गगया। डाक्टर ने मझ ु े एक गोली दी न्गज े खाते ही मेरी ददा कम हो गई। कफर उ
जारी ले ने कुछ
और दआ ु ई मुझे दी और मैं घर ले आया। यह शख् मालूम था कक इ
शख्
मुझे कभी नहीिं भूला लेककन ककया
की यह समलनी आख़री थी क्योंकक इ
वोह बदमाश भाईओिं ने ककया वोह इतना तघरनत था कक करके रख ददया।
के बाद इ
ौ रूिए
ाथ जो
ुबेग स हिं की फैसमली को बबााद
ुबेग स हिं की काफी जमीन हमारे गाूँव में थी, (यह कहानी लोगों
यह जमीन इन दो भाईओिं को िािंच
के
े
ुनी).
ुबेग स हिं ने
ाल के ठे के िर दे रखी थी। कई
थे लेककन यह लोग ठे के के िै े नहीिं दे रहे थे। एक ददन दख ु ी हो कर
ाल हो गए
ब ु ेग स हिं ने उन को
कह ददया कक वोह कचहरी में दावा करे गा। कुछ ददन बाद इन भाईओिं ने उ े कहा कक स हिं आ कर अिने िै े ले जाए। जब स हिं को कुल्हाडे जब भी
ब ु ेग स हिं उन के घर आया तो इन भाईओिं ने
ब ु ेग
ब ु ेग
े काट कर अिने िशओ ु िं वाले मकान में दबा ददया। बहुत ददन गज ु र गए, ब ु ेग स हिं की ित्नी उन े ब ु ेग स हिं के बारे में िछ ू ती तो वोह कह दे ते कक ब ु ेग
स हिं वहािं आया ही नहीिं था। धीरे धीरे उ
घर
े बदबू आने लगी।
यह भागय कहें या कुछ और कक एक ददन एक थानेदार और बहुत े स िाही उधर े गुजरे और बदबू े उ्हें कुछ शुबह हुआ और दरवाजा खल ु वाया। उ्होंने मट्टी खद ु वाई तो लाश ददखाई दी। िुसल
ने उन दो भाईओिं को हाथ कडडयाूँ लगा दी। जब
ारी बात मालूम हुई तो िता चला कक इन दो भाईओिं ने आधी लाश एक तालाब में फैंक दी थी न्गज को ढाब बोलते थे और रहती आधी फेंकने की इिंतजार में थे कक िकडे गए। आधी लाश की हडीआिं तालाब में गाूँव के बहुत लोग ढू्ढ रहे थे। मैंने जो दे खा बहादर की हवेली में िुसल के लोग बैठे थे और एक डाक्टर ारी हडडओिं को एक एक करके उन को
किडों में लिेट कर हडडओिं के नाम सलख सलख कर बक् ों में रख रहा था। यह नया डाक्टर गोिाल स हिं था जो हमारे गाूँव में नया नया आया था। दोनों भाई हाथ कडडयों में बैठे थे। थानेदार के बोल अभी तक मेरे कानों में गूँज ू रहे हैं ” ओए तुम ककतने जासलम हो, एक िािंच ौ रूिए की खातर एक खानदान तबाह कर ददया “.
बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है , एक भाई को बदमाश दकु मनों ने मार ददया था और इन दो को बी
बी
ाल की जेल हो गई। बूढ़ा बाि अब धक्के खा रहा था। वोह एक किडे में
न्गब्जयाूँ बाूँध कर गली गली बेचता रहता। एक दफा मेरे पिता जी ऐफ्रीका
े आये हुए थे और यह बूढ़ा रोज हमारे घर आ जाता और आमों के मौ म में जबरदस्ती आम दे जाता, उ
को िता होता था कक मेरे पिता जी िै े दे दें गे। उ
भी दे नी नहीिं आती थी। उ बाद में हिं
को दे ख कर तर
पवचारे को बेचने के सलए आवाज
आता था। जब वोह चला जाता तो पिता जी
िडते और कहते,” बरु ाई का अिंत बरु ा ही होता है “.
इ ी तरह एक और बदमाश था न्गज तनकाल कर मार ददया था। उ था। उ
ने एक कालेज में िडते हुए लडके के पिता को घर े लडके ने िढ़ाई छोड दी थी और वोह भी बदमार् बन गगया
ने भी कुछ दोस्त ले कर अिनी गैंग बना ली थी और राइफल भी ले ली थी। इकठे
हुए लोग तो मैंने दे खे थे लेककन जो हुआ मैंने नहीिं दे खा लेककन यह तो आम बात थी. हर तरफ यह ही बात बहुत ददनों तक चलती रही। जो मैंने न ु ा वोह यह था कक यह लडका इ ताक में था कक कब उ
के पिता का काततल घर आये और कब वोह उ े मार डाले। एक
शाम को जब उन को िता चला कक काततल घर में है तो िकड सलया। िहले उ
को एक रस् े के
भी उ
के घर आ गए और उ े
ाथ बाूँधा। वोह समनतें करने लगा लेककन वोह
लडका बोला, ” तू ने मेरे पिता को छोडा था?”. कफर उ्होंने उ
आदमी को ऊिर उठा कर
दीवार के ऊिर
े बादहर फैंक ददया। गाूँव में बहुत दरू तक उ े घ ीटते ले गए, लोग भी िीछे िीछे यह तमाशा दे खते जा रहे थे और गाूँव के बादहर जा कर उ े तलवार े काट ददया। इ ी तरह एक और खन ू हुआ। यह लोग भी बदमाश थे और इन को जब यह लोग खेतों में हल चला रहे थे तो इन के दकु मन बदमाशों ने गोली मारी और दो को मार ददया। वोह ददन बहुत बुरे थे। चलता…
मेरी कहानी – 26 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन May 18, 2015
मेरा पवचार है कक जीवनी सलखने में एक ददक्क्त तो आती ही है और वोह है बचिन की यादें । कौन
ी बात १९५० में हुई, कौन ी ५१ या ५२ में , इन को ही ही सलखना अतयिंत कदठन है । यह मैं इ सलए सलख रहा हूूँ कक मेरी यादों की माला के मणके भी बबखरे हुए हैं और जै े जै े मुझे समल रहे हैं मैं इन को अिनी माला में पिरो रहा हूूँ। उ
मय गाूँव में िढ़े सलखे लोग कम थे. जो िढ़े सलखे थे वोह भी मैदट्रक
थे। हमारी गली में जट्ट लोग ही थे, इ
सलए इ
े ज़्यादा नहीिं
को जट्टों की गली कहते थे। इ
में दो
घर झीवर यानी समश्रों के थे, चार घर ब्राह्मणों के थे। एक भल् ु ला राम ज्योततर्ी था जो बहुत भ्य था और ब लोगों े उनका प्रेम था। द ू रे बाबू राम मास्टर थे, वोह भी बहुत अच्छे
थे लेककन द ू रे दो और घर भी ब्राह्मणों के तो थे लेककन वोह खेती करते थे और जट्टों जै े ही थे। कक ी भी लडाई झगडे में ककरिान या
ोटा तनकाल लेते थे और लडाई के सलए तैयार
हो जाते थे, और शराब भी बहुत िीते थे। इन में ही एक था मलावा राम। इ मालवा राम का ही लडका मदन लाल हमारे ाथ िडता और खेलता था न्गज को हम मद्दी कहते थे।
जट्ट लोग लडाई झगडे में माने हुए लोग थे। मलावा राम का एक भाई तो पवचारा शरीफ ही था लेककन द ू रा भाई बाबू राम और मलावा राम लडने झगडने में शेर थे। उन ददनों हमारे गाूँव गुरदआ ु रा होता था न्गज
े उर्त्र की ओर तकरीबन िािंच छाः ककलोमीटर की दरू ी िर एक को चौंता
ादहब बोलते थे। यह गुरदआ ु रा बबेली गाूँव के नजदीक
था और एक नदी के बबलकुल ककनारे िर था। यह गुरदआ ु रा होगा तो अब भी लेककन बचिन े आज तक मै न कभी वहािं गया, न ही इ
इिंटरनेट िर
चा की तो िता चला कक इ
के बारे में कुछ
जगह िर स खों के
ुना। आज
ुबह ही मैंने
ातवें गुरु हर राय जी ने
पवश्राम ककया था। चौंता ििंजाब में बैठने वाली जगह को कहा जाता है . यानी गुरु हर राय जी यहािं आ कर इ ी जगह बैठे थे, इ ी सलए उन की याद में गुरदआ ु रा बना कर इ चौंता
ाहब रख ददया गया। इ
याद को सलखने का मक द एक ही है कक उ
का नाम
मय इ
गुरदआ ु रे में एक मेला लगता था जो शायद माचा के महीने में लगता था और इ ी मेले में बदमाश लोग एक द ू रे अिने दादा जी के
े अिनी दकु मनी तनकालते थे।
ाथ मैं भी दो तीन दफा मेला दे खने गया था. इ
मेले में उ
वक्त
त्रीआिं नहीिं जाती थी। एक रवायत यह थी कक बहुत े जट्ट लोग अिने अिने बैलों को लेकर यहािं आते थे। इन लोगों ने कोई मानताएूँ मानी हुई होती थी और जब वोह िूरी हो जाती तो यहािं मेले के ददन आते थे। गुरदआ ु रे के नजदीक एक कूँु आ था। एक एक करके
भी जट्ट या कक ान बैलों को कूँु आ चलाने के सलए एक बडी लकडी न्गज
था
े कूँु आ चलता
े बाूँध दे ते थे और बैलों को खब ू दौडाते थे. बहुत लोगों ने शराब भी िी हुई होती थी और बैलों को ोटी मार मार कर बहुत तेज दौडाते थे। कुछ दे र के बाद द ू रा कक ान आ जाता था। इ
तरह शाम तक यह स लस ला चलता रहता था। हम बच्चों का मेला तो स फा
खाने िीने का मेला ही होता था। गुरदआ ु रे के नजदीक बहुत बक्ष ृ होते थे और इन बक्ष ृ ों के नीचे बहुत लोगों ने अिनी अिनी दक ु ाने लगाई हुई होती थीिं। ब े ज़्यादा भीड िकौडे
जलेबबओिं की दक ु ानों िर होती थी। हमारे सलए यह जगह बहुत अच्छी होती थी और जी भर के खाते और कुछ घर ले जाने के सलए भी खरीद लेते। ारा ददन हम घम ू ते रहते और शाम को होता था िहलवानों का मक ु ाबला।
ारा मेला यहािं
खेतों में इक्कठा हो जाता। बहुत बडे गोल दायरे में लोग खडे हो जाते। बीच में िहले वेट सलन्गफ्टिं ग होती। एक बोरी में मट्टी भरी होती थी जो ढ़ाई तीन मन की होती जो आज के एक कुईंटल
े ज़्यादा होगी। बहुत िहलवानों ने ीमें ट के वेट बनाये होते थे न्गजन को द ू रे िहलवान चैलेंज करते थे। जब कोई जीत जाता तो लोग उ की हौ ला अफजाई के सलए उन को एक एक रुिैया दे ते। जब यह वेट सलन्गफ्टिं ग जाती। िहले छोटे छोटे िहलवान आते कफर बडे और िटका एक
माित होती तो कफर कुकतीआिं शुरू हो ब के बाद होता िटके का मुकाबला।
ाधारण िीले रिं ग का किडा होता था जो जीतने वाले को ददया जाता था। इ
को
बहुत ऊिंचा खखताब मझा जाता था। इ ी तरह एक ाल हमारे गाूँव के िहलवान का कक ी और गाूँव के िहलवान े मुकाबला हुआ। मुकाबला बहुत अच्छा था लेककन िता नहीिं कक बात िे झगडा हुआ की लडाई शुरू हो गई। हम
भी दरू दरू हो गए। ककरिाने चलने लगीिं और एक द ू रे को
ोटे न्गज
को डािंग बोलते
थे एक द ू रे को मारने लगे। कुछ लोग आगे आ कर लडाई बिंद करवाने की कोसशश कर रहे थे। इन में
ब
े आगे मलावा राम था। मलावा राम बहुत ऊिंचा लम्बा तगडा था और नशे में था ऊिंची ऊिंची जट्टों को ललकार रहा था और गासलआिं भी दे रहा था। मेरे दादा जी ने मुझे िकडा और मेले के बादहर आ गए और गाूँव को चलने लगे। उ ही जाना होता था, कोई तािंगा या ब
वक्त िैदल चल कर
नहीिं होती थी। रास्ता भी खेतों में बनी िगडिंडडयों का
ही होता था। और भी बहुत लोग थे। आगे एक नदी आती थी। यह वोह ही नदी थी न्गज के ककनारे चौंता ादहब गुरदआ ु रा बना हुआ है और काफी घूम कर आती थी। उ वक्त नदी में इतना िानी नहीिं था और इ े िार करने के सलए ऊिर एक बहुत बडी लकडी रखी हुई थी न्गज के ऊिर धीरे धीरे चल कर नदी को िार करना होता था। मेरे दादा जी ने मझ ु े क्धों िर बबठा कर नदी को िार कर सलया। कुछ लोग डर भी रहे थे।
शाम को हम घर आ गए। कुछ दे र बाद मैं घर
े बादहर तनकल कर िीिलों में आ गया। इन
िीिलों में टूटे हुए मिंददर के िा बहुत लोग बैठे ही रहते थे और उ ददन भी काफी लोग थे। कुछ ही दे र बाद आठ द आदमी न्गजन के हाथों में ककरिाने और छपवआिं थी (एक बडे
ोटे के आखखर में बहुत तीखा वी शेि हगथआर). कुछ ही दे र बाद मलावा राम और दो तीन उन के दोस्त भी आ गए। मलावा राम के किडे खन े भीगे हुए थे, वोह शराब के नशे में ू था। मलावा राम ने बहुत जोर े चीख मारी और अिने दकु मनों को गासलआिं दे नी शुरू कर दी। द ु री तरफ
े भी ककरिाने ले कर आ गए। इ ी बीच बहुत े बजग ु ा आ कर बीच में खडे हो गए और दोनों तरफ के लोगों को मनाने लगे. मद्दी भी वहािं खडा था लेककन वोह तो मेरे जै ा ही था, ककया कर की
कता था। हम वहािं
ोची।
े रफू चक्कर हो गए और घर को भागने
द ू रे ददन ऐ ा था जै े कुछ हुआ ही ना हो। दरअ ल यह लोग हमेशा शराब नहीिं िीते थे। ब मेलों में ही दकु मनी तनकालते थे। मलावा राम का घर हमारे घर के बबलकुल ामने था
और मेरे पिता जी और मलावा राम की दोस्ती बहुत थी। मेरे पिता जी भी कभी कभी शराब िी लेते थे और मलावा राम तो िीता ही था। मलावा राम तो एक गरीब कक ान ही था लेककन मेरे पिता जी आगथाक तौर िर अच्छे थे, इ सलए मेरे पिता जी मलावा राम को शराब भी दे ते और मीट भी खखलाते। मलावा राम की ित्नी यानी मद्दी की माूँ रतनी का मेरी मािं
े बहुत पियार था। मद्दी की दो बहने माया और मोहणों मेरी बहन की हे सलआिं थीिं और अक् र हमारे घर ही रहती थीिं। मेरी बहन और मद्दी की बहनें रल समल कर चक्की े आटा िी ती और गाती रहतीिं। कभी कभी वोह समल कर दरीआिं बुनतीिं क्योंकक दरीआिं बुनने का
फ्रेम हमारे दालान में लगा हुआ था। अिनी अिनी शादी के सलए वोह चादरें बनातीिं न्गज िर तरह तरह के डडजाइन होते थे। हमारे दोनों घरों में बहुत प्रेम था लेककन यह प्रेम अचानक खत्म हो गया। एक दफा मेरे पिता जी ऐफ्रीका में थे। दादा जी िशुओिं वाले मकान में भाई िा
ाल डेढ़
ाल का होगा। एक रात को छोटा भाई माूँ के
ही एक छोटी चारिाई िर
भी जाग उठा। िा
के मकान
ोते थे। मेरा छोटा
ाथ
ोया हुआ था और मैं ारे जोर े चीख मारी। मैं
ोया हुआ था। अचानक माूँ ने े बाबू राम और द ु री तरफ े ताऊ न्द स हिं भी आ गया।
बहुत औरतें इकठी हो गई थीिं। उ रात चाूँद भी अिने िूरे यौवन िर था और ब कुछ ददखाई दे रहा था। माूँ बोल रही थी कक मलावा राम था, मलावा राम था, ऐ े ही बोले जा रही थी। और यह मैंने भी उ
को दीवार के ऊिर चढ़ते हुए दे ख सलया था और वोह दौड रहा था लेककन मैं तो बहुत छोटा था और डरते हुए बोला नहीिं था। मलावा राम भी दौड कर गरु दआ ु रे के बादहर बैठ गया था यहािं लोग गरु दआ ु रे में होता दीवान न ु रहे थे। कुछ लोग
े
गए और मलावा राम को ले आये। मलावा राम यह ही बोलते जा रहा था कक वोह तो गुरदआ ु रे में बैठा था। बात दरअ ल यह थी कक चाबीओिं का गुच्छा माूँ अिने
रहाने के नीचे रखती थी। मलावा
राम वोह चाबबओिं का गुच्छा लेने के सलए माूँ की चारिाई के नीचे लेट गया था और वोह गुच्छा लेने के सलए उ िड गया, न्गज लेककन इ
ने
रहाने के ऊिर हाथ लगाया लेककन उन का हाथ माूँ के मुिंह िर
े माूँ को जाग आ गई। मलावा राम बहुत कह रहा था कक वोह नहीिं था घटना के बाद हमारे ररकते जहरीले हो गए जो कभी ध ु र नहीिं के। कुछ भी हो,
अब ना तो माूँ है ना मलावा राम बन्गल्क
भी बजुगा इ
दतु नआ को छोड गए हैं लेककन
दौडते हुए मलावा राम का गिंजा र चाूँद की चािंदनी मझ ु े अभी भी उ ी तरह ददखाई दे रहा है जब वोह चाूँद की चािंदनी में दीवार के ऊिर चढ़ रहा था। चलता…
मेरी कहानी – 27 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन May 21, 2015
कुछ ददन हुए मेरा दोस्त बहादर स हिं भारत े हो कर आया है । इ ऐतवार को वोह मुझे समलने आया था। मैंने उ े भारत का हाल चाल िुछा तो कहने लगा ” गरु मेल, वै े तो मैं
ज़्यादा सशमले ही रहा लेककन कुछ घिंटों के सलए राणीिर भी गगया था। गुरमेल, राणीिर अब
बहुत बदल गगया है और मुझे कोई नहीिं िहचानता। जो हम िीछे बच्चे छोड कर आये थे अब बूढ़े बने हुए हैं। मुझे स फा दो आदमी ही समले, एक बाबू राम मास्टर का लडका राम रूि और द ू रा गगयान चिंद। गगयान चिंद की दक ू ान िर मैं गगया। गुरमेल ! तू अब गगयान चिंद को िहचान नही गगयान चिंद िहचाना
कता, बहुत बूढ़ा हो गगया है , उ के िोते दक ू ान में काम कर रहे थे। मैंने े िछ ु ा, गगयान चिंद ! मझ ु े िहचानता है ? तो कहने लगा, चेहरा तो कुछ जाना
ा लगता है लेककन मझ ु े याद नहीिं आता। कफर मैं ने बताया कक मैं बहादर हूूँ, तो मेरे िैर छूने की कोसशश करने लगा, लेककन मैंने उ का हाथ िकड सलया और गले लग गया। बहुत बातें की और कफर उ ने तेरे बारे में िछ ु ा तो मैंने ब कुछ बताया। कफर मैं उ के िोतों े बातें करने लगा और बताने लगा कक कक ी जमाने में हम तेरे दादा के ाथ इ ी दक ू ान में गप्िें लगाया करते थे, तो उ आया। ”
के िोते भी बहुत खश ु हुए। कुछ दे र के बाद मैं चला
बहादर चला गगया और मैं खो गया िुरानी यादों में . भारत को अभी आजादी समली ही थी और मैं छह- ात वर्ा का रहा हूिंगा और ज्ञान मुझ दो वर्ा बडा होगा. ज्ञान के पिता जी तीन भाई थे. दो भाई अिने घर में एक मशीन े
े
आइ क्रीम बनाया करते थे, उन के नाम थे रामा और चानण. आइ क्रीम लेकर वे अिने गािंव और द ू रे गािंवों में जाते थे. उन के िा
दरख्तों के िर्त्े होते थे न्गजन िर, वे छुरी
े
काट कर ग्राहकों को आइ क्रीम दे ते थे. यह बात सलखने का एक ही मक द है कक, न्गज काम को आम लोग छोटा बात यह थी कक इ गेहूिं का
मझते थे वही काम उन के सलए रोजी-रोटी तो थी ही, मजे की
आइ क्रीम
ीजन होता तो, उन की
े वे कक ानों
े ज़्यादा िै े कमा लेते थे, ख़ा
ेल इतनी हो जाती कक, कक ानों
आती.
कर जब
े ज़्यादा गेहूिं उन के घर
ज्ञान के पिता जी एक किडा बबछाकर हमारे स्कूल के बाहर एक चारिाई िर एक छोटी- ी दक ु ान चलाते. चारिाई िर उ
स्कूल की
भी चीजें जै े कापियािं, िैस लें , इिंक, तनब,
तन्गख्तयािं न्गजन को हम फट्टी कहते थे और जो सलखने के काम आती थीिं और स्लेटें आदद होती थीिं. इ
के अलावा खाने के सलए चने की हल्दी-रिं गी दाल, फुलीयािं, गुड, मरुिं डा,
िंतरे
की शक्ल की स्वीट् चीकने िात.” इ वह चारिाई आता. इ
और भी बहुत- ी खिंड की गोसलयािं आदद.” होनहार बबरवान के होत ारे काम में ज्ञान अिने पिता जी का ाथ दे ता था. स्कूल आने े िहले
र िर रख कर ले आता, कफर दब ु ारा घर जा कर दक ु ानदारी का
ामान ले
के बाद स्कूल जाता. इ ी तरह शाम को पिता जी की मदद करता. पिताजी का
नाम था हररया. दो तीन वर्ों बाद हररया ने गािंव में आहलूवासलओिं के मोहल्ले में एक छोटीी दक ु ान ले ली न्गज
का,
ाइज ज़्यादा- े-ज़्यादा द
फीट बाई आठ फीट होगा.
दक ु ान लेने के बाद ज्ञान का काम और बढ़ गया. जब हम छठी कला ने स्कूल छोड ददया. उ और दक ु ान के सलए
ने बाइस कल चलाना
में िढ़ते थे तो, ज्ञान
ीख सलया था और वह हर रोज शहर जाता
ौदा ले आता. धीरे -धीरे दक ु ान बढ़ती गई और काम भी बढ़ गया. हररया
कुछ बीमार रहने लगा था, इ सलए
ारा भार ज्ञान के किंधों िर आ िडा. गगयान
े बडे दो
भाई और थे लेककन वोह दक ू ान में रूगच नहीिं रखते थे और कहीिं और काम करते थे। ज्ञान रात को काफी दे र तक दक ु ान खल ु ी रखता था, और रात के की दक ु ान िर आ जाते और ज्ञान के लगा ली थीिं और
भी
ामान
मय ही हम कुछ दोस्त ज्ञान
ाथ गप्िें लगाते. ज्ञान ने दक ु ान के तीनों तरफ शैल्फें
े भरी िडी थीिं. उ की दक ु ान में स्कूल के बच्चों के
ामान
के अलावा औरतों के स ग िं ार की चीजें भी थीिं. कफल्मी गानों की छोटी-छोटी ककताबें होती थी जो, रात को हम िढ़कर गाते. ज्ञान समठाई भी रखता था जो, स फा बफी, बे न मीठी नमक वाली
ीरनी और लडू तक ही
ीरनी,
ीसमत थी. अक् र हम कुछ-न-कुछ समठाई खरीदते
और खाते रहते. गगयान खद ु भी मठाई खाने लगता और हम हिं
िडते और कहते ” गगयान
! तुझे मुनाफा क्या होता है ?”
कभी-कभी हमारे एक टीचर हरबिं कॉपियों को ध्यान कभी
स हिं भी आ जाते. एक ददन वे आए और कफल्मी गानों की
े दे खते रहे , कफर बोले, ”अरे ज्ञानचिंद, यह वनत कौन
ी कफल्म है ?,
ुनी नहीिं.” मैंने वह कॉिी उठा ली और गाने िढ़ने लगा. मैंने कहा, ”मास्टर जी ! यह
कफल्म का नाम गलत सलखा हुआ है , दरअ ल यह वचन कफल्म है .” कफर मैंने मास्टर जी को एक गाना गा कर ुनाया न्गज के बोल अभी तक मुझे याद हैं.” जब सलया हाथ में हाथ तनभाना
ाथ मेरे
जना, दे खो जी हमें छोड ना जाना, यह
बने जमाना.” अब ज्ञान ने एक नया काम शुरू कर ददया. उ मशीन ले ली, न्गज
ने एक
ाथ कभी ना छूटे चाहे दकु मन
ोडा वाटर बनाने की छोटी- ी
में िुराने टाइि की बोतलें भरी जाती थीिं. बोतल के गले में एक गोली
होती थी जो गै
के प्रैशर
डालता, कफर उ
में शक्कर डालता, कोई इ ें
ारी बोतलें भरता. इ
े बोतल को बिंद कर दे ती थी. ज्ञान बडी-बडी बालदटयों में िानी
में हम भी कभी-कभी उ
डालता, का
िंतरा, रोज या लेमोनेड का. कफर ाथ दे ते थे. कफर वह तीन बोतलें
ी
मशीन में डालता, कफर एक हैंडडल ही होता था. कफर वह गै
े जोर-जोर
े मशीन को घुमाता, गै
का स सलिंडर
ाथ
को खोलता, एक शूिं-शूिं की आवाज आती, कुछ दे र और मशीन को
घुमाता, कफर बोतलें तनकाल कर तीन और डाल दे ता.
ारी बोतलें बक् ों में रख दे ता. कभी-
कभी मन में आता है , ककतना मेहनती था ज्ञान. गसमायों के ददनों में ज्ञान
ुबह उठ कर
शहर को जाता और बफा का एक बडा बक् ा बाइ ाइककल िर रख कर ले आता. गसमायों के ददनों में
ोडा वाटर की
ेल बहुत हो जाती थी.
हम कुछ दोस्त शहर के एक स्कूल में मैदट्रक में दाखखल हो गए और ज्ञानचिंद की छोटी उमर में ही शादी हो गई. हम भी अिनी स्टडी में म रूफ हो गए लेककन, ज्ञान की वह दक ु ान उ के सलए एक गोल्ड माइन बन गई. उ ी दक ु ान
े उ
ने अिनी तीन बदहनों की शाददयािं
कीिं. उ के तीन बेटे हुए, उन को िढ़ाया-सलखाया. हम भी इिंग्लैण्ड आ गए थे लेककन, जब भी वापि जाते गले लग कर समलते, िरु ानी बातें याद कर के हिं ते, ख़ा कर ”ज्ञानचिंद !! वनत कौन
ी कफल्म है , कभी
लेककन, उ
ुनी नहीिं.” इ
िर हम हिं
िडते. हमारी शाददयािं भी हो गई थीिं
वक्त तक ज्ञान के बेटे उ का हाथ बिंटाने लग गए थे.
ज्ञान में एक बात बहुत अच्छी थी, वह गािंव के दहत में बहुत भाग लेता था. बचिन े एक मिंददर दे खते आये थे जो िीिलों के बीच होता था और ज्ञान की दक ु ान के करीब ही था. अक् र बच्चे उ जा कर एक उ
में जा कर खेलते रहते. उ
ो जाते थे. इ
में कोई दरवाजा नहीिं था, कुर्त्े-बबन्गल्लयािं वहािं
मिंददर के बारे में एक दिं त कथा चली आ रही थी कक हमारे गािंव में
िंत आ कर रहने लगा. वह जब बूढ़ा हो गया तो कक ी ने गाली बक दी. नाराज हो कर
ने कहा कक, जब वह मरे तो, हमारे गािंव का कोई आदमी उ े हाथ न लगाए बन्गल्क,
िडो
के गािंव वाले उ
की लाश को नमक में रख इ
जगह िर उ का
िंस्कार कर दें .
जब वह िरलोक स धारा तो हमारे गािंव वालों ने िछतावे के कारण वहािं एक छोटा- ा मिंददर बनवा ददया जो, धीरे -धीरे खराब होता गया. द -बारह वर्ा िहले ज्ञानचिंद ने लोगों इक्कठे ककये, कुछ अिने
े डाले और मिंददर कफर बनवा ददया. अब इ
है और गािंव के दह्द-ू स ख वहािं जाते हैं. ज्ञान की दहम्मत
े कफर
े िै े
मिंददर में एक िुजारी
े जिंगल में मिंगल हो
गया है . ज्ञान के बच्चों की शाददयािं हो चक ु ी हैं , बेटे और िोते िोतीआिं हो चक् ु के हैं,ज्ञान का िररवार फल-फूल रहा है . जो उ
ने छोटा- ा िेड लगाया था, अब उ
िे फलों के ढे र लग
रहे हैं. बहुत वर्ों े मैं गािंव जा नहीिं का हूूँ लेककन, िािंच वर्ा िहले मेरी िन्गत्न और बेटा गािंव गए थे और ज्ञान की वीडडयो बना कर लाये थे. है तो वह एक समनट की लेककन, उ की याद के सलए वही काफी है । जब मैं २००३ में गया था तो उ
वक्त गगयान चिंद की दक ू ान िहले
े बडी थी और काफी
ेल थी लेककन वोह वातावरण नहीिं है जो िहले हुआ करता था। तब गगयान चिंद की दक ू ान
के
ामने खल ु ा मैदान हुआ करता था और एक तरफ ोहन लाल डाक्टर की जारी होती थी। अब ोहन लाल भी कब का यह दतु नआ छोड गगया है और जारी खत्म हो चक् ु की है ।
अब बहुत दक ु ाने बन गई हैं और गगयान चिंद की दक ू ान ऐ े लगती है जै े एक तिंग गली में हो। कुछ भी हो गगयान चिंद बढ़ ू ा है लेककन ुखी है । चलता…
मेरी कहानी – 28 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन May 25, 2015 जब जब गगयान चिंद की याद आती हैं,
ाथ ही वोह नजारा भी याद आने लगता है जो उ
की दक ू ान के दाईं ओर हुआ करता था। गगयान की दक ू ान की इ ओर छोटा ा खाली मैदान होता था न्गज में बहुत रौनक होती थी। दक ू ान के बबलकुल ामने भी बहुत बडा खल ु ा मैदान होता था और बाईं ओर भी बहुत बडा मकान था जो मेला स हिं आहलुवासलये का था। यह मकान गाूँव में
ब
े बडा और शानदार हुआ करता था और इ घर के ामने एक फोन्गल्डिंग शटर होता था न्गजन के ऊिर और नीचे छोटे छोटे वील लगे हुए थे। शटर दोनों तरफ थे और जब बिंद करने हों तो दोनों तरफ े खीिंच कर वीलों की मदद े बिंद हो जाते
थे और वोह लोग रात को ताला लगा दे ते थे। मेला स हिं मलाया में रहता था और कभी कभी अिनी फैसमली ले कर आता था (आज इ
मकान की हालत बहुत खस्ता है और शटर हमेशा खल ु ा ही रहता है, शायद जाम हो गगया हो और इ के फ्रिंट एक कमरे में गाूँव का िोस्ट ऑकफ
खल ु ा हुआ है ).
एक तरफ होती थी डाक्टर कर ही िक ु ारते थे।
ोहन लाल की
जारी।
ोहन लाल को ज़्यादा लोग हकीम कह
ोहन लाल के पिता जी बिंता स हिं रामगढ़ के स्कूल में िढ़ाते थे. हर
ुबह जब बनता स हिं रामगढ़ को िढ़ाने के सलए जाता था तो बाइस कल िर गाूँव के बादहर
जा कर
वार होता था। इ
का कारण ककया होगा हमें िता नहीिं लेककन वोह िहले
बाइस कल की पिछली
ीट िर बैठता था और चलाते चलाते जम्ि करके ऊिरली
बैठ जाता था और हम
ब उ
को दे खते रहते थे और जब वोह जम्ि करके ऊिरली
िर बैठता तो हम ताली बचाते और हूँ ते। िडती थी।
ीट िर
ोहन लाल की बेटी बबमला हमारी क्ला
ीट में
ोहन लाल की
जारी बहुत ाफ थी, हर तरफ दआ ु ई की बोतलें शीशे की अल्मारीओिं में रखी हुई थीिं। ामने की दीवार िर ग्रैंड फादर क्लॉक था न्गज में नीचे िैंडुलम दाएिं बाएिं चलता रहता था और जब बारह बजते तो बारह दफा टन टन बजता जो बहुत मनमोहक लगता। बहुत दे र े अिंग्रेजों के जमाने े ोहन लाल जी इ ी जारी में िोस्ट ऑकफ
भी चलाते थे जो बाद में शायद १९५७ ५८ में
नया िोस्ट ऑकफ
रकार ने वापि
ले कर इलग ही एक
बना ददया था।
जब की बात मैं करता हूूँ तब ोहन लाल जी काफी म रूफ रहते थे। एक बडे मेज िर गचठीआिं लफाफे बबखरे होते थे और वोह उन िर मोहरें लगाया करते थे न्गज े लगातार खट खट होता रहता था।
ाथ में एक बूढ़ा िोस्ट मैंन न्गज
बडे थैले में गचठीआिं डाले जाता रहता। इ
को आम लोग डाककआ कहते थे एक
डाककये के िा
(spear) लगा हुआ होता था हमेशा अिने िा
एक लाठी न्गज
के ऊिर बरछा
रखता था। यह डाक का बैग ले कर डाककया
न्गज
को भाई कहते थे (नाम याद नहीिं) हर रोज िैदल चल कर चहे रु गाूँव को जाया करता
था जो चार ककलोमीटर दरू था। चहे रू बहुत छोटा ा गाूँव था लेककन इ के ाथ छोटा ा रे लवे स्टे शन भी होता था जो अभी भी है लेककन आज वहािं यूतनव ट ा ी बनी हुई है और बहुत बदल चक् ु का है । वापि
आते वक्त डाककआ हमारे गाूँव की डाक ले कर आता था। वापि
आ
कर राणी िुर के घरों को गचठीआिं बािंटने जाता था, हमारे घर की कोई गचठ्ठी होती तो हमें उ ी वक्त िकडा दे ता था। ोहन लाल की
जारी के आगे ईंटों का बहुत अच्छा आूँगन ा होता था न्गज िर एक चारिाई िडी होती थी, कुछ लोग ईंटों िर ही बैठ जाते थे। इ छोटे े आूँगन के ाथ मेरी
यादें बहुत जड ु ी हैं। इ आूँगन में बैठ कर ोहन लाल और कुछ द ू रे लोग ताश खेलते रहते थे और हम इदा गगदा खडे हो कर उन को दे खते रहते थे। जब कभी मरीज आ जाता तो ोहन लाल उठ कर मरीज को दे खने लगता, मरीज को दे खने के बाद कफर आ कर ताश खेलने लगता। कभी कभी शतरिं ज खेलने लगते। खेलते खेलते बहुत शोर मचता। इ आूँगन के ऊिर टीन की छर्त् होती थी, इ सलए धि ु हो या बाररश लोग बैठे ही रहते थे। इ आूँगन को थडा बोलते थे। कभी कभी गाूँव की ििंचायत भी यहािं बैठती और फै ले होते थे। इ ी थडे िर मैंने न्गजिंदगी में िहली दफा रे डडओ दे खा था। आये थे, इ
रे डडओ के
ोहन लाल के ररकतेदार ददली
ाथ थी ऐवरै डी बैटरी न्गज
े ले कर
का मुझे बहुत दे र बाद गगयान हुआ।
जब मैं यहािं इिंग्लैण्ड आया तो यहािं हम काम करते थे, उ
के
होती थी न्गज
फैक्ट्री को दे ख कर मुझे वोह
में कोई एक हजार लोग काम करते थे। इ
बचिन में दे खा रे डडओ और बैटरी याद आ जाती और ही तो था, ककया मालूम यहािं
ामने ही एक ऐवरै डी फैक्ट्री
ोचता था की भारत अिंग्रेजों की मिंडी
े ही बैटररयािं भारत को आती होगी। उ
वक्त
ोहन लाल के
आूँगन में वोह लोग रे डडओ लगा कर बैठे हुए थे, गाूँव के लोगों की बहुत भीड थी, शायद बहुत े और लोगों ने भी रे डडओ िहली दफा दे खा होगा। उ वक्त मैं तो शायद िािंच छ:
ाल का हूूँगा। खेलने के इलावा एक और बात भी थी न्गज के कारण लोग बैठे ही रहते थे, वोह था एक उदा ू का अखबार जो शायद समलाि या प्रभात होता था। गाूँव में यह शायद एक ही अखबार
ोहन लाल के िा
और बीच बीच में एक द ू रे के
आता था, इ
सलए लोग एक एक वरका ले कर िडते रहते
ाथ खबर के बारे में बह
करते रहते।
यहािं और भी दक ु ाने होती थीिं। इ को आहलूवासलओिं का मोहल्ला बोलते थे। हमारे मोहल्ले के िीिलों में भी बहुत रौनक होती थी लेककन इ मोहल्ले की ख़ा बात यह थी कक एक तो यहािं काफी दक ु ाने थीिं, द ू रे िडे सलखे लोग यहािं ज़्यादा थे और इन में िै े वाले लोग भी न्गजआदा होते थे। स आ त की बातें यहािं ही होती थी क्योंकक
िोटा करता था और जब भी कभी हमारे हलके का एमिी हिं
ोहन लाल कािंग्र
को बहुत राज शमाा आता तो ोहन
लाल
ब े आगे हो कर हिं
भी
राज शमाा न्गजिंदाबाद के नारे लगाता और रोटी िानी का इिंतजाम
ोहन लाल ही करता। गगयान चिंद और
ोहन लाल की दक ु ाने आमने
ामने ही थी,
इ सलए इन में प्रेम भी बहुत ज़्यादा होता था। ोहन लाल की जारी की एक तरफ खल ु ा मैदान होता था न्गज में एक दफा शाह जी ने चमाकारों और मेहतरों को अिनी लडकी के बराततओिं की बची हुई मठाई खखलाई थी। इ मैदान में लडके खेलते रहते थे और कभी कभी यहािं गाूँव के लोग रात के मय ड्रामा भी ककया करते थे। बहुत बडी स्टे ज और बडी बडी किडे की शीटों िर तरह तरह के
ीन छिे होते थे। एक दफा राणा िरताि का ड्रामा हुआ था में एक गाने के बोल मझ ु े अभी तक याद हैं जो ििंजाबी में था। यह शायद जब राणा
न्गज
िरताि अिनी ित्नी को छोड कर मैदाने जिंग में जाने के सलए तैयार था तो उ गाती थी,” छड के ना जावीिं जाणीआिं ” इ
ानिंू, अज
की ित्नी
ाडे हाणीआिं, घडीआिं पवछोडे दीआिं झलीआिं नई
मैदान के
इ ारा
ाथ शाह जी की बहुत बडी बबन्गल्डिंग होती थी जो छोटी ईंटों े बनी हुई थी। के आगे वैरा्डा होता था और ाथ ही नत्थू राम की दक ू ान होती थी न्गज में े घर का ौदा, दालों
े लेकर
ाबन
ोढे और मूिंगफली रे डीआिं समल जाती थी। मेरी माूँ तो घर
े बादहर नहीिं जाती थी, इ सलए मुझे ही नत्थू राम की दक ू ान को भेज दे ती थी। नत्थू राम ौदा लेने के बाद मुझे ऊिर े) कहते थे। ब
े कभी मूिंगफली कभी कुछ रे डीआिं दे दे ता न्गज
यह लालच ही था कक मैं अिनी गली की दक ू ान छोड कर यहािं नत्थू राम
की दक ू ान को आता था ताकक उतों (ऊिर ामने होती थी ककशन की
नाम उ ख़ा वे न
को उतों (ऊिर
े) समल
के। नत्थू राम की दक ू ान के बबलकुल
ोढा वाटर की दक ू ान। ककशन को ककशन ठोलू कहते थे। यह
के दोस्तों ने ही रखा हुआ था। इ दक ू ान िे भी काफी लोग ोढा िीने जाते थे कर पवम्टो। इ के आगे मेला राम भट की हलवाई की दक ू ान होती थी न्गज में लडू ीरनी और िकौडे ही ज़्यादातर होते थे। इ
होती थी न्गज
के
में दे ी दआ ु इआिं होती थी। इन दक ु ानों के
ाथ ही यमुना दा
ामने ही एक खह ू ी और
आहलूवासलओिं का गुरदआ ु रा होता था। गगयान चिंद की दक ू ान िहल होती थी।
कहने की बात नहीिं हमारी गली के िीिलों
हकीम की दक ू ान
े लेकर यहािं तक बहुत चहल
में हुआ करती थी। जब दीवाली द ैहरे का अव र होता तो इ जगह िर बहुत रौनक होती थी। उ मय िटाखे स फा गगयान की दक ू ान े ही समलते थे। गगयान की दक ू ान िर बहुत भीड होती थी। इ
े ज़्यादा रौनक इ ी छोटे
े कम्िलैक्
मय कुछ लोग शराब भी िीते थे और जुआ भी खेलते थे। जुआ खेलते खेलते कभी
लडाई भी हो जाती थी। दीवाली के ददन कुछ लोग बोला करते थे कक रात को दरवाजे खल ु े
रखो, लक्ष्मी बहुत धन दे गी। जआ खेलने वाले लोग अक् र बोलते थे कक जो दीवाली के ददन ु जआ नहीिं खेलेगा वोह कुर्त्े की जन ु ू को िायेगा, इ िर अक् र लोग हिं दे ते थे।
जब भी कभी गुरु नानक दे व या गुरु गोबबिंद स हिं जी का िवा होता तो जलू यह जलू
ारे गाूँव के ऊिर ऊिर
हारमोतनयम और तबले के
तनकलता था।
े हो कर जाता था। एक छकडे िर रागी बैठे होते थे जो
ाथ गाते थे। द ू रे िर ढाडी जथा होता था न्गजन के िा
ारिं गी होती थी और दो या तीन के िा
एक
छोटे छोटे डमरू होते थे न्गजन को ढड बोलते थे।
यह लोग अक् र हाई नोट िे गाते हैं और खडे हो कर ही गाते हैं। यह स खों के छठे गुरु हरगोबब्द
ाहब जी की दे न है । उ्होंने लोगों को मु लमान हुकमरानों के खखलाफ लडने के सलए उत् ाहत ककया था और यह जथे बनाये थे जो ऊिंची आवाज में गाते थे और लोगों की रगों में लडने के सलए खन ू खौलने लगता था। इन के न्गजतने भी गीत होते हैं वोह बहादरों की कहानीआिं होती हैं न्गजन को
न ु कर स ख लडने के सलए तैयार हो जाते थे।
एक जथा होता था, अमर स हिं शौंकी का न्गज
को लोग बहुत चाह े न ु ते थे। उन के बहुत ररकाडा भी हुआ करते थे जो ित्थर के होते थे। एक ददन यूट्यूब िर मैंने उन के गाये गीत ुने थे लेककन आम लोग उ
जब जलू
को भूल चक ु े हैं।
ारे गाूँव का चकर लगा कर इन दक ु ानों के िा
आता तो बहुत दे र तक इ जगह रुकता। बहुत स्त्रीआिं और बच्चे मेला स हिं के मकान के ऊिर चढ़ जाते। मेला स हिं के मकान के
ामने भी खल ु ा मैदान हुआ करता था, इ सलए बहुत लोग जमा हो जाते थे। अमर स हिं शौंकी जब आता तो लोग खखल जाते और उ े एक गीत की फरमाइश करते,” नी वाह धरती ििंजाब दी ए “. इ गगयान की दक ू ान के िा
गीत िे लोग बहुत रूिए दे ते।
जो मैदान था, उ
में भी कुछ लोग बैठे ताश खेल रहे होते, न्गजन
में ज़्यादा तर नत्थू राम का बेटा बलबीर, मेला राम में िढ़ाता भी था (इ होता था उ
ुनार, उ
का एक बेटा जो कक ी स्कूल
का नाम मुझे याद नहीिं आता) , गगरधारी लाल, किंु दन लाल और एक
शाह जी का लडका जो बहुत ् ु दर मैहूँघे और अच्छे किडे िहनता था। नत्थू राम का बेटा छोटा लेककन मोटा गोल मोल था और उ के ाथी उ े हिं कर बीरबल भी कहते थे, यह बीरबल नाम तब िडा था जब उ
ने एक ड्रामे में बीरबल का िाटा अदा ककया
था। यहािं ताश खेलते
मय बहुत शोर होता था। ताश में ज़्यादा ीि और द ु री और कभी कभी दे वर भाबी खेलते थे। जो भाबी बन जाता था उ को बहुत शसमिंदा करते थे। मेला राम ुनार का बेटा जो स्कूल में िढ़ाता भी था, उ
बारह तेरह
की भी अजीब कहानी है ।
ाल की बात है , जब भी हम इिंडडया आते थे तो एक आदमी निंगे िाूँव मैली
कमीज िहने हुए मेरे भाई की जारी के बादहर बैंच िर बैठा होता था और अखबार िडता रहता था। मैंने भाई े िछ ु ा कक यह शख् कौन है ? तो भाई ादहब ने बताया कक वोह मेला
राम थी। उ
ुनार का लडका था और कुछ वर्ा इ के बाद इ
ने िढ़ाया भी था लेककन इ
को नौकरी समली नहीिं और अब इ
की नौकरी छूट गई
की बेटी भी शादी के काबल है
लेककन गरीबी इतनी है कक माूँ बेटी लोगों के घरों में काम करके गुजारा करती हैं। यह
पवचारा जब कभी कक ी के घर में कोई उत् व होता है तो वहािं जा कर खब ू रोटी खाता है और घर को भी ले आता है । भाई की बात
ुन कर मुझे बहुत दाःु ख हुआ लेककन मझ नहीिं आती थी कक यह है कौन और ददमाग िे जोर दे कर उ का िुराना चेहरा याद करने की कोसशश करता लेककन याद नहीिं आता था। खैर मैंने भाई थे और अगर वोह कहें तो इ
शख्
को दे दूँ ।ू भाई
होगा। मैंने दो नई कमीजें और एक िजामा गगया। जब मैं वापि
ट ू उ
ादहब को कहा कक मेरे िा
किडे
ाहब ने बोला यह तो अच्छा काम ही को दे ददया न्गज
इिंग्लैण्ड आया तो कई महीने बाद अचानक उ
े वोह बहुत खश ु हो भाई का चेहरा मेरी
आूँखों के
ामने आ गगया जब वोह टीचर हुआ करता था। वोह िैंट बश ु टा िहने हुए होता था और जेब में रुमाल भी रखता था और बहुत स्माटा होता था। तब और अब की हालत दे ख कर मुझे बहुत दाःु ख हुआ कक न्गजिंदगी ककया ककया खेल रचाती है । गगयान की दक ू ान के बबलकुल
ामने भी कुछ लोग बैठे रहते थे। एक ददन बहुत बाररश हो रही थी और हर जगह कीचड ही कीचड था। एक लडका दशान जो हम े िािंच छी ाल बडा था गगयान की दक ू ान के कुछ दरू ी िर बाररश में खेल रहा था कक उ लगा और वोह गगर गगया और वोह ईंट उखड गई। उ ददए। कहते थे कक यह २८ िौंड थे। उ यह मैंने लोगों
े
ुना था और यह भी
ने
के नीचे उ
जगह लोगों ने इस्तेमाल कर ली है । गगयान के को जी नहीिं मानता। चलता…
ोने के िौंड ददखाई
ुना था कक कुछ लोग अिना हक़ जमा रहे थे
अब गगयान की दक ू ान के न दाईं ओर न बाईं ओर न जगह कभी हम
को
े
भी िौंड उठाए और घर को ले कर भाग गगया।
लेककन दशान के पिता और चाचे बहुत तगडे थे और कक ी में इतना झगडा करें ।
गईं। न्गज
का िैर एक ईंट
ाह
नहीिं था कक लडाई
ामने कोई खल ु ी जगह है । इिंच इिंच
ामने और
ाइड को छोटी छोटी दक ु ानें बन
ारा ददन भी बबता दे ते थे, अब िािंच समनट
े भी ज़्यादा ठै हरने
मेरी कहानी – 29 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन May 28, 2015 जब हम छठी क्ला ाल था और इ
में िडते थे तो हमें िता था कक इ
गाूँव के स्कूल में हमारा आख़री
के बाद हमें प्लाही िडने जाया करना था, इ सलए हमें कुछ गचिंता थी कक
हमें इतनी दरू रोज िैदल चल कर जाना होगा। कभी कभी गाूँव के कुछ लोग न्गजनमें डाक्टर ोहन लाल, मास्टर केहर स हिं , मास्टर गुरदयाल स हिं और कुछ अ्य लोग शाम को स्कूल
में आते और उनकी मीदटिंग होती। बहुत दफा उनकी बह हो जाती और यह काफी गरम होती। हमें तो कुछ नहीिं िता था कक यह लोग क्यों झगडते थे। कुछ महीनों बाद हमें बताया गया कक अब
ातवीिं और आठवीिं कक्षा तक िढ़ाई गाूँव की ििंचायत चलाएगी। इ
हमें कुछ राहत समल गई ख़ा िडने के सलए जा नहीिं
बात
े
कर लडककओिं के सलए क्योंकक वोह तो अिने गाूँव के बादहर
कती थी। छठी क्ला
के इन्गम्तहान हो गए और हम िहली दफा
गाूँव के स्कूल में ही समडल स्कूल में दाखल हो गए। स्कूल में जगह कम थी, इ सलए हमें एक कमरा बहादर के चाचा जी की िशओ ु िं वाली हवेली में समल गगया था जो स्कूल के
ामने ही था। दो नए टीचर आ गए। एक तो गाूँव के ही नए
आया था और एक और था न्गज
का मुझे नाम याद नहीिं। हमारे
िोस्ट मैन भगवान दा
का बेटा था जो कालज
िहले ही थीिं, बाद में दो और आ गईं। इन में
े िड कर आया था, शायद वोह बीए करके ाथ चार लडककआिं तो
े एक यहािं रहती है और उ
दतु नआ को छोड चक् ु के हैं। कुछ ही महीने बाद यह स्कूल समडल तक
के ितत इ
रकारी हो गया। हमको
तो इतना िता नहीिं था लेककन उन ददनों कभी कभी गाूँव में समतनस्टर आया करते थे और लोग समडल तक
रकारी स्कूल बनाने के सलए उन
मिंजूर हो गया था न्गज चलाना भी इ
े अनुरोध ककया करते थे जो आखखर में
का फायदा हमें बहुत समला क्योंकक इन दो ीख सलया था और वै े भी हम बडे होने लगे थे।
समडल स्कूल में तब्दीसलआिं होने लगी। मास्टर
ालों में हमनें बाइस कल
ाधू राम जो अिंग्रेजों के
मय
े
है डमास्टर हुआ करते थे ाधारण मास्टर हो कर रह गए थे क्योंकक एक नया मास्टर हरबिं स हिं है ड मास्टर बनकर आ गया था। उ की एक कलाई और हाथ छोटा था। ददा ओिं में गरम ूट िहना करता था और गसमाओिं में िैंट और हाफ स्लीव शटा िहना करता था। जेब में
रुमाल और एक कीमती िैन रखा करता था। इ का बहुत रोअब हुआ करता था। वोह क्लीन शेव था और हर ुबह शेव करके आता और न्गज पवद्याथी के किडे मैले होते उ को घर
भेज दे ता था। छोटी कलाई वाला छोटा हाथ वोह अक् र जेब में ही रखता था और द ू रे हाथ े बहुत जोर े थिड मारता था। बच्चे और मास्टर उ े डरते थे।
ारे स्कूल में उ का एक भय
ा बन गगया था।
भी
हरबिं
स हिं उ
मय ती
वर्ा के भी नहीिं थे और उनकी शादी भी अभी हुई नहीिं हुई थी। स्कूल में एक डडस न्गप्लन कायम हो गया था। हमें वोह दह ाब भूगोल और इतहा िढ़ाते थे। बहुत अच्छा िढ़ाते थे। हममें े कक ी ने भी अभी कफल्म नहीिं दे खख थी और हरबिं स हिं कभी कभी कफल्मों की बातें हमको न ु ा दे ते थे जब उनका मूड अच्छा होता था। एक ददन उ ने हमें कफल्म चार आई।
ौ बी
ीन यह था कक नगगा
के एक
ीन को
की हमें बहुत वर्ों बाद मझ स्कूल में बच्चों को िढ़ाती थी तो राज किरू ने नगगा को
िछ ु ा था कक उ के ककतने बच्चे थे, तो नगगा हो गया था कक इतने बच्चे? मास्टर हरबिं लेककन हम हिं
ुनाया न्गज
ने शायद बी
कहा। इ
स हिं की बात हमें कक ी को
िर राज किरू है रान मझ नहीिं आई
ददए थे।
हरबिं
स हिं फुटबाल के माने हुए खखलाडी थे, शायद कालेज में खेलते रहे होंगे। जब हम स्कूल के फुटबाल प्ले ग्राउिं ड में खेलते तो हरबिं स हिं भी ाथ खेलता। वोह बहुत तेज दौडता था और हममें कोई भी बाल उ
े छीन नहीिं
कता था।
तो उनको डािंटता। हम अब कुछ बडे हो गए थे और
ाथ ही जो खखलाडी गलती करता
रकार की तरफ
े भी हमें खेलने के
सलए बहुत ी चीजें समल गई थीिं। फुटबाल हम बहुत खश ु हो कर खेलते थे। िहले हम फुटबाल में एक ििंि े हवा भरते, कफर ब्लैडर की टूटी को रस् ी े बाूँध कर दोनों हाथों के अिंगूठों
े फुटबाल के अिंदर बडे जोर
े फुटबाल को चमडे के तस्में
े क
े धकेल दे ते, कफर एक स्िैशल मोटी तार
े बने टूल
कर बािंधते। तब टे स्ट करने के सलए जमीिंन िर मार
कर ककक्क मारते। तब खेल शुरू हो जाता। यह फुटबाल खेलना स्कूल टाइम के बाद होता था।
रर े
या आधी छुटी के वक्त हम वॉलीबाल खेलते थे। इ
के सलए हर रोज वॉलीबाल नैट
लगाना होता था और खेल खत्म होने के बाद नैट को उखाड कर और फोल्ड करके दफ्तर में रखना होता था। वॉलीबाल तो मेरा बहुत ि िंदीदा खेल था। अक् र हमारा मुकाबला राम गढ़ प्लाही या चहे रु के स्कूल े होता ही रहता था। एक दफा फगवारे और किूरथले में डडन्गस्ट्रक्ट टूनाामेंट भी हुए थे। यह दो ाल हमारे बहुत अच्छे रहे । िडने में एक लडका जो माधो िर गाूँव े आता था न्गज का नाम था रावल। वोह दह ाब में बहुत हुसशआर था लेककन द ू रे ब्जेक्ट्
में मैं उन े आगे था। इतहा
तो इतना मैं ि िंद करता था की इतहा
की
ारी
िुस्तक मैंने जबानी याद कर ली थी। लडककओिं में बबमला हुसशआर थी और मास्टर केहर स हिं की दोनों लडककओिं में सम्दो तो कुछ ठीक ठाक ही थी लेककन वीरो पवचारी ीधी ाधी और कमजोर ही थी।
क्योंकक बचिन
े मुझे गाने का शौक था, इ
सलए हर शतनवार के प्रोग्राम को तैयार करना
मेरी न्गजमेदारी होती थी। मैं लडकों और लडककओिं के नाम सलखता, उन क्या गाना था या जोक्
ब अिनी कािी में सलख लेता। बबमला बहुत अच्छा े प्रोग्राम की रौनक बड जाती थी। शतनवार को छुट्टी के बाद भी टीचर
गाती थी न्गज
ुनानी थी,
एक तरफ कुस ओ ा िं िे बैठ जाते थे और िहले हरबिं
े िूछता की उ्होंने
ारे स्कूल की क्ला ें उन के
ामने बैठ जाती थीिं।
स हिं खडा हो कर कुछ लैक्चर दे ता और कफर मैं अिनी कािी लेकर स्टे ज िे आ
जाता। कुछ लाइनें मैं बोलता जो मैंने कािी िर िहले ही सलखी होती थी और एक एक करके लडके लडककओिं के नाम बोलता जाता। आखखर में मैं कोई गीत गाता।
एक गीत मझ ु े बहुत दफा न ु ाने को कहा जा चक् ु का था, वोह था, “दे ख तेरे िं ार की हालत ककया हो गई भगवान, ककतना बदल गया इिं ान।” और द ू रा था झिंडे का गीत। यह गीत मैंने इतनी बार गाया कक अभी भी भल ू ा नहीिं, स फा दो स्टै नजे भल ू े हैं , इ ी सलए एक दफा मैंने युवा
यह जाूँ, न्गज
ुघोर् में भी दे ददया था, जो कुछ इ
तरह था, दे श का यह तनशाूँ, कौम की है
तारा, झिंडा ऊिंचा रहे यह हमारा। इ ी गाने िर मुझे लख िुर
एक फिंक्शन में छोटा
ा प्राइज समला था। यह गीत हमें मास्टर
था।
ाहनी गाूँव के
ाधू राम जी ने स खाया
स्कूल के बाद मुझे दादा जी का हाथ भी बिंटाना होता था। पिता जी ने दादा जी को खत सलखा था कक वोह खेती करना छोड दें क्योंकक इ
े मेरा नुक् ान होता था लेककन दादा जी
मानते नहीिं थे। शायद जून जुलाई का महीना होगा, गमी बहुत थी और पिता जी और मेरे बडे भाई अफ्रीका े आ गए। एक ददन वोह दोनों ाइकलों िर फगवारे गए। शायद उ वक्त मुझे गसमाओिं की छुदटआिं थी या वै े ही रपववार होगा। मैं और दादा जी किा खि ु ों
के खेत में
े गुडाई कर रहे थे और ि ीने
क्योंकक इ
े भीगे हुए थे लेककन हमें कोई तकलीफ नहीिं थी काम के हम आदद हो चक् े ही ु के थे। फगवारे को रास्ता हमारे खेतों के िा
जाता था। मैं ने दे खा पिता जी और बडे भैया
ाइकलों िर फगवारे
े वापि
आ रहे थे।
उनकी कमीजें ि ीने
े भीगी हुई थीिं। पिता जी दादा जी को चाचा बोलते थे। आते ही बोले,” चाचा ! छोड दो यह खरु िा, अब े आि को खेती खत्म कर दे नी होगी “. दादा जी हिं िडे और बोले, यह जो हम ने किा
और मक्की बीजी है वोह तो हमें आखखर में काटनी ही होगी
क्योंकक हम ने समहनत की थी, इ
के बाद जमीिं कक ी को दे दी जायेगी “. कफर वोह
नजदीक ही खेतों में गए और एक कक ान को बुला लाये न्गज उ
के बेटे का नाम था भजन। उ
कटाई के बाद
ारी जमीिंन उ
े खेती की
को दे दी गई। इ
का नाम था जगत स हिं और
भी बातें हुई और किा और मक्की की फ ल के बाद मझ ु े भी िशओ ु िं के सलए
चारा लाने के स वा और कोई काम नहीिं रहना था। ब
यह था हमारी खेती का अिंत।
कक ी भी िाटी की
ुनता आ रहा हूूँ और यह आगे भी इ ी तरह चलती रहे गी क्योंकक ऑिोन्गजशन के बगैर दे श की उ्नतत खतरे में िड
रकार आये, उ
िर नुक्ताचीनी अभी तक बराबर
कती है । आजादी के बाद दे श की उ्नतत शुरू हो गई थी। जो बातें अिंग्रेजों के जमाने
े एक जगह खडी थीिं उ
में तबदीली आनी शुरू हो गई थी।
ब े िहली बात जो हमारे
दे खने में आई वोह थी बलौक डडवेलिमें ट ऑकफ र। हमारे एररये का दफ्तर फगवारे में था। उ
मय नए नए मिंत्री गाूँव में आते ही रहते थे। मैं सलख चक् ु का हूूँ कक हमने कभी कफल्म नहीिं दे खख थी। एक ददन हमने न ु ा कक हमारे गाूँव में बीडीओ ाहब कफल्म ददखाने आ रहे हैं। शाम को गाूँव में बहुत लोग इकठे हो गए थे। एक तरफ बहुत बडी स्क्रीन लगा दी गई थी। एक तरफ जेनरे टर की ऊिंची आवाज आ रही थी, बडा बबजली का बल्व लगा हुआ था और कफल्मे ददखाने के सलए प्रोजेक्टर ऊिंची जगह िर रखा हुआ था। बीडीओ
ाहब ने खेती बाडी की जानकारी दे नी शुरू की। दरअ ल यह काम हकूमत की तरफ
े लोगों को खेती बाडी के नए नए ढिं ग स खाने के सलए ही था। और बीडीओ
ाथ
ारी कफल्मे
ाइलेंट थीिं
ाथ बोलता जा रहा था। खेतों में कक ान काम कर रहे थे और कोई
अफ र कक ानों को कुछ बता रहा था लेककन कोई आवाज नहीिं थी, स फा बीडीओ ही बता रहा था। मशीनों
े अण्डों की स लेक्शन ददखाई जा रही थी। हमें तो जो
वोह था एक गाना जो एक कफल्मी
ीन था। वोह गाना ििंजाबी का था, न्गज
ब
े अच्छा लगा,
का नाम था,”
अम्भी दा बूटा “. हमें बहुत बाद में मालूम हुआ था कक यह प्रोफे र मोहन स हिं की कपवताओिं की ककताब ावे िर्त्र की एक कपवता अम्भी दा बूटा िर कफल्माया गया था। इ का
ारा
ीन अभी तक मुझे याद है ।
एक और बात जो गाूँव में हुई वोह थी गाूँव के गगदा एक ररिंग रोड बनाना जो िक्की तो बहुत वर्ों बाद हुई लेककन अब यह बननी शुरू हो गई। इ ररिंग रोड को कफरनी बोलते थे। यह गाूँव के बहुत दरू े कुछ हट्ट कर बननी शुरू हुई। यह काम इतना आ ान नहीिं था क्योंकक न्गजन न्गजन कक ान के खेत बीच में आते थे वोह झगडते थे। कानूगो िटवारी तनशान लगाते थे, ििंचायत
ाथ होती थी। खेतों के कक ान, उनकी औरतें बच्चे बूढ़े रोते और काम को
रोकते। ििंचायत उन को
मझाती कक उन को मुआवजा जरूर समलेगा। कुछ तो मान जाते
लेककन कुछ रोते हुए वहीीँ जमीन िर लेट जाते। ििंचायत के सलए भी यह बहुत मुन्गककल था। कुछ महीने बाद यह काम िूरा हो गगया और इ कफरनी िर आवा जाइ शुरू हो गई। बेशक
मैं छोटा था लेककन जो मैंने दे खा है , गाूँव के बहुत कम लोगों को िता है जो मेरी आयु के होंगे। आज यह कफरनी बहुत शानदार डक है न्गज िर कारें ब ें ट्रक्क चलते हैं और जगह जगह ब
स्टॉि हैं और एक छोटा
ब ें जाती हैं और
ब
ा बस्
अड्डा बना ददया गगया है न्गज
े हर तरफ को
े बडी बात जो है वोह है जो कफरनी गाूँव के बहुत दरू होती थी उ में बडे बडे मकान बन गए हैं और इ कफरनी या ररिंग रोड के बादहर दरू दरू तक इतने
मकान और दक ु ाने बन गई हैं कक िुराना राणी िुर और नया राणी िुर ऐ े है जै े नई ददल्ली और िुरानी ददल्ली। चलता…
मेरी कहानी – 30 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 01, 2015
अब हम कुछ बडे हो गए थे और शरारतें भी करने लगे थे। यों तो मैं बहुत शरीफ लडका था और बोलता बहुत कम था, लेककन कुछ शरारत करने में बगैर ज़्यादा बोले आगे हो जाता था। इ में एक बात थी कक उ
मय रास्तों िर टोने टोटके बहुत रखे हुए होते थे। कई बक्ष ृ ों की जडों में भी लोगों ने िै े रख कर कोई मनत मानी हुई होती थी। यह टोने अक् र ज़्यादा तर क्रौ
रोड्ज न्गज
को चरु स्ता यानी चार रास्तों वाला रास्ता (या चौराहे ) बोलते थे, उ
के
बीच में रखे हुए होते थे। इ े लोग बहुत डरते थे। जब लोग टोना दे खते तो अिने िशुओिं को भी दरू कर दे ते थे ताकक उनको कुछ हो ना जाए। मेरा इन चीजों े भय खत्म हो चक् ु का था क्योंकक जब भी मैं अिने राम जाना होता था। इ
र वाले खेतों को जाता था तो बडे बोहड के बक्ष ृ
े होकर
बोहड की बडी बडी जडों में एक ददन मैंने कुछ िै े िडे दे खे। यह िै े
ज़्यादा गली वाले और डब्बल िै े थे जो बहुत बडे होते थे। कुछ टके आने दआ ु णीआिं थे। बचिन का लालच और ाथ ही एक डर, िै े उठाने में दहचकचाहट हो रही थी। िै े छोडने को भी ददल नहीिं मानता था। बहुत दे र बाद हौ ला करके इदा गगदा दे खकर कक कोई दे खता ना हो मैंने िै े उठा सलए। िै े मैंने जेब में रख सलए और धीरे धीरे मेरा भय खत्म हो
गगया। बहुत ददन तक यह िै े मैं खचाता रहा। अब ऐ ा हो गगया था कक राम र जाने के सलए उत् क ु रहता और जब भी जाता िहले नजर बोहड की जडों की तरफ जाती। कुछ न
कुछ वहािं होता ही था और मैं उठा लेता। जब हम दोस्त कोई टोना दे खते तो वहािं कई दफा बडा
ा िेठा होता, कुछ दालें होती, हल्दी होती, और भी बहुत कुछ होता लेककन िै े कभी कभी ही होते। िहले हम दे खते कक कोई हमें दे खता तो नहीिं क्योंकक ऐ ा होने े हमें घर े खझडकें खानी िड कफर उ
कती थी। दे ख कर हम िहले टोने के ऊिर
ात दफा अिना जूता मारते,
में दे खने लगते कक िै े हैं या नहीिं। अगर हो तो उठा लेते और बाद में टोने को
ककक्कें मार मारकर उडा दे ते। यह भय कई कारणों
े खत्म हो चक् ु का था। एक दफा गसमाओिं के ददन थे। अचानक मेरी माूँ
की आूँखें दख ु ने लगीिं। कुछ ही ददनों के बाद आूँखें ज़्यादा ददा करने लगीिं और िानी भी बहने लगा। डाक्टर
ोहन लाल को ददखाई गईं। उ
ने कई ददन तक आूँखें धोईं लेककन कुछ फका
नहीिं िडा। भारत में वहम तो अब भी बहुत हैं लेककन उ मय तो वहम की इिंतहा ही थी। जब आूँखें ठीक नहीिं हुईं तो िहले भुल्ला राम ज्योततर्ी के िा गए जो घर के ामने ही था
और हमारे दोनों घरों में मुहबत भी बहुत ज़्यादा थी। भुल्ला राम ने अिना उिाए कुछ बताया होगा, मुझे मालूम नहीिं लेककन आूँखों को कोई फका नहीिं िडा। कफर एक ददन गली में एक हाथ दे खने वाला आया, वोह भी कुछ िै े और कोई
ोने का छोटा
ा गहना ले कर चला
गया लेककन कुछ फका नहीिं िडा। कफर दादा जी को कक ी ने बताया कक दा ो नाई टोना
टोटका करता है न्गज
े घर में
और उ
े बुरी आत्माएिं तनकल जाती हैं। दा ो नाई रात को आया
ने एक टूटे हुए माटी के बतान में टोना तैयार ककया न्गज में बहुत चीजें डाली गईं और दादा जी को कक ी ूखे तालाब में रखने को कह ददया। जादहर था कक ुखा हुआ तालाब हमारे ही स्कूल के नजदीक था न्गज को डब्बरी बोलते थे। दा ो बहुत े िै े ले कर चले गया। इ
के बाद एक ददन मेरी माूँ मैं और दादा जी िैदल चल कर फगवारे िखखररए
ििंडडत के िा
गए। कुछ ददन जाते रहे लेककन कोई आराम नहीिं आया।
एक ददन अचानक मेरे पिता जी अफ्रीका
े आ गए और माूँ को बाइस कल िर बबठा कर
जालिंधर आूँखों के हस्िताल ले गए। वहािं उ्होंने बताया कक आूँखों में कुकरे थे और छोटा ऑिरे शन करके
ा
ाथ में कुछ ड्रॉि आूँखों में िाने को दे ददए। कुछ ही ददनों में माूँ की आूँखें
बबलकुल ठीक हो गईं। ऐ ी बातें दे ख दे खकर डर तो क्या मझ ु े बहुत नफरत हो गई थी। ज़्यादा बातें मैं नहीिं करता था लेककन ोचता बहुत था। जै े जै े बडा होता गया, गरु दआ ु रों
मिंददरों में बहुत कुछ दे खा। ोचता था कक धमा गुरुओिं का यह डब्बल स्टै ण्डडा क्यों था। एक ददन एक नया ग्रिंथी आहलुवासलओिं के गुरदआ ु रे में आया, ाथ ही उ की नवपववाहता ित्नी
भी थी। कुछ ददन तो वोह गुरदआ ु रे में रहे । कफर उन को मालुम हुआ कक मेरे ताऊ रतन स हिं का घर खाली था क्योंकक ताऊ रतन स हिं और उन का बेटा गुरचरण स हिं यानी मेरा भईया और भाबी अलाहाबाद में रहते थे। दोनों ितत ित्नी ताऊ के घर रहने लगे। ग्रिंगथ िची वर्ा का नौजवान था और ित्नी भी मुन्गककल
की होगी। दोनों बहुत ु्दर थे। दोनों के रिं ग गोरे थे और ग्रिंथी की ित्नी तो इतनी अच्छी थी कक उ ने दादा जी को मोह सलया था। हर वकत बच्चों की तरह दादा जी
े बी
बाइ
ती
े बातें करती। एक ददन वोह दालचीनी वाली
चाय बना कर दादा जी के सलए लाइ और बोली,” दादा जी यह चाय िीओ, तबीयत खश ु हो
जायेगी “. चाय िी कर दादा जी बहुत खश ु हुए। हम ने भी िी, वाकई चाय बहुत स्वाद थी। इ के बाद कभी वोह अधरक वाली चाय लाती कभी दालचीनी वाली। दादा जी ने उन को कह ददया था कक मकान का ककराया उन को दे ने की कोई जरुरत नहीिं थी। ग्रिंगथ की ित्नी या उ
का नाम मुझे याद नहीिं लेककन वोह घर के
द य की तरह हो गए थे।
एक दफा दादा जी ने अखिंड िाठ अिने घर में रखवाया। िाठी स हिं एक तो यह ग्रिंगथ ही था और तीन बादहर
े आये थे। हर ग्रिंगथ को दो दो घिंटे लगातार िाठ करना होता था, इ
बाद द ू रा ग्रिंगथ दो घिंटे िाठ करता था। इ रहता था। कुछ घिंटे ग्रिंगथओिं की
के
तरह यह स लस ला ती रे ददन तक चलता
ेवा करना मेरा और मेरे दोस्त जीत स हिं का काम था। उ
वक्त गाूँव में अभी बबजली नहीिं आई थी और ना ही कोई टॉयलेट होती थी। दो ग्रिंगथओिं ने रात को जिंगल िानी जाने की इच्छा जादहर की तो मैं और जीत उन को बादहर खेतों में ले जाने के सलए तैयार हो गए। यह मेरा दोस्त अब मिंब ु ई में रहता है । जीत बहुत शरारती लडका था। एक ग्रिंथी शरीर का बहुत कमजोर, उ की मिंूछें ऊिर को और दाडी के वाल बहुत कम,
ब
काटूान लगता था। यह ग्रिंथी बातें बहुत करता था और अिने को बहुत बहादरु मझता था। जीत कहने लगा, भाई जी ! अूँधेरे में यहािं कभी कभी ािंि भी आ जाते हैं, जरा बच के रहना। ग्रिंगथ कहने लगा,” ओ जी तुम कफक्र क्यों करते हो, हम तो स हिं हैं, हम शेरों का मुकाबला कर
कते हैं, यह
ािंि क्या चीज हैं “. हमारी गली के आखखर में हमें िीिल के
बक्ष ृ ों के बीच में हो कर जाना होता था और कफर मेरे दोस्त बहादर के खेत आ जाते थे। अूँधेरा बहुत था, हम ने कहा भाई जी तम ु उन खेतों में बैठ कते हो। जब वोह खेतों में जाने लगे तो जीत ने मेरे कान में कहा कक “यह भाई बातें बहुत करता है , इ को आज
मजा चखाना है ”. ग्रिंथी अभी बैठे ही थे कक मझ ु े बता कर जीत ने ऊिंची आवाज में कहा,” ओ मर गए, ािंि! ”. और हम एक तरफ दौड गए। दोनों ग्रिंगथ दौड कर कहाूँ चले गए हमें िता
नहीिं चला। हम ऊिंची ऊिंची आवाजें दे ने लगे, भाई जी ! भाई जी !, लेककन दोनों ग्रिंगथओिं का कोई िता नहीिं चला। हम भी कुछ डर गए कक उन लोगों को क्या हो गगया। इदा गगदा खेतों में उन को ढूिंढा लेककन कहीिं ददखाई ना ददए। कफर हम जब हम घर िुहिंचे तो दोनों ग्रिंगथ नल के िानी
ोचते
े अिने किडे
ोचते घर की ओर जाने लगे। ाफ कर रहे थे। जीत ने
िूछा, भाई जी ! ” तुम दौड गए, ककया हुआ, तुम तो शेरों का मुकाबला करते थे”. ग्रिंगथ बोला, ओए स घ िं ो, इ जानवर े बचना चादहये, यह बहुत खतरनाक है । हम इतना हूँ े कक ग्रिंथी कुछ शसमिंदा हो गया। एक ददन हमेशा की तरह मैं आहलूवासलओिं के मोहल्ले की ओर गगया। गगयान की दक ू ान िर
िुहूँचा तो दे खा कक गुरदआ ु रे के आगे बहुत लोग जमा थे और आवाजें आ रही थी, इ के जूते लगाओ, इ का मुिंह काला करो, इ को अभी तनकाल दो। मैं जब वहािं िहुिंचा तो दे खा, जो ग्रिंगथ मेरे ताऊ के घर रहता था उ
को कुछ लोगों ने िकड रखा था। उ की िगडी उ
के गले में थी। लोग जो बातें कर रहे थे, मैंने
ुना। लोग बोल रहे थे कक इ
ग्रिंथी ने
फाई
वाली समहतर लडकी को छे डा था। और मुझे कुछ नहीिं िता लेककन उ ी ददन वोह दोनों ितत ित्नी कहाूँ चले गए मुझे िता नहीिं लेककन ग्रिंगथ की ित्नी का हमें बहुत दाःु ख हुआ ख़ा दादा जी को क्योंकक उन का इ लडकी े नेह बहुत था। इ
के कुछ महीने बाद, इ
गए। यह ग्रिंगथ रिं ग के
कर
गुरदआ ु रे में तीन नए ग्रिंथी, उन की ित्नीआिं और बच्चे आ
ािंवले थे लेककन बातें बहुत करते रहते थे और अिने आि को तान ैन मझते थे। यह ग्रिंगथ हर ुबह को घरों े रोटीआिं लेने आते थे। लोग दाल रोटी दही माखन
आददक दे दे ते थे। मेरे पिता जी घर में ही थे और एक गगयानी दाल रोटी लेने हमारे घर आया। इ
को गजा करना कहते थे यानी ग्रिंथी हर
ब ु ह गजा करने आते थे। गगयानी जी
पिताजी को कहने लगे कक उ्होंने तबले में बहुत लोगों को हराया था। मेरे पिताजी क्योंकक क्लास कल जानते थे, अिंदर े हारमोतनयम उठा लाये और बोले भाई जी ! राग िीलो ताल
तलवाडा बजा कर जरा ददखाइए। भाई जी घबरा गए और टाल मटोला करने लगे। पिता जी हिं
ददए। और कफर वोह कभी हमारे घर नहीिं आया।
एक ददन गगयान की दक ू ान के नजदीक कुछ चहल िहल थी। लोग बातें कर रहे थे कक
ग्रिंगथओिं की एक लडकी की शादी थी। जै े गाूँव में अक् र होता है लोग ग्रिंगथओिं को दध ू दालें आटा चावल बगैरा दे रहे थे। द ू रे ददन बरात आनी थी। हम भी द ू रे ददन बरात को दे खने ोहन लाल की दक ू ान के आगे चले गए. तकरीबन द
दो के हाथों में राइफलें थीिं। लोगों ने ग्रिंगथओिं के भी लोग है रान थे कक न्गज दे ते कभी कुछ। कक ी को
वजे ििंद्ािं बी
लोग बराती आ गए।
ाथ समल कर बरात को चाय पिलाई लेककन
लडकी की शादी थी वोह कौन थी। ग्रिंगथ लोग कभी कुछ कह
मझ नहीिं आ रही थी कक यह हो ककया रहा था। उधर लडके वाले
भी जोर दे रहे थे कक लावािं (फेरे ) जल्दी करो। ग्रिंथी कहने लगे कक उन लोगों के ररवाज के मत ु ाबबक़ लडकी बारह वजे
े िहले आ नहीिं
कती थी और लडकी को ररकतेदार के घर रहना
िडता था। बारह छोड एक दो वज गए लेककन मामला गडबड लगने लगा। बराती लोग कुछ बदमाश लगते थे। उ्होंने राइफलें तनकाल लीिं और कहने लगे, या लडकी को लाओ नहीिं तो वोह ग्रिंगथओिं की औरतें ले जाएिंगे। दरू कक ी ने दे खा एक थानेदार और कुछ स िाही
ोहन लाल की
ाइकलों िर जा रहे थे। एक आदमी दौड कर उन को बुला लाया।
ारी िुसल
जारी के आगे चारिाईओिं िर बैठ गई। ग्रिंगथओिं को बुलाया गगया और उधर
दल् ू हा और उन के भाई बैठे थे। अब
ारी बात िता चल गई। यह ग्रिंगथ लोग जब कक ी गाूँव
में जाते, नाटक रचाते, एक लडकी जो बदचलन थी, इन ग्रिंगथओिं का उन के था। यह ग्रिंगथ लोग उ
ाथ
मझौता
को अिनी लडकी बता कर बेच दे ते थे। कुछ ददन वोह लडकी दल् ू हे
के घर रह कर गहने रूिए ले कर भाग आती थी और कफर इ
कुछ िै े लडकी रख लेती कुछ िै े यह लोग रख लेते। कुछ दे र फेरी करने लगे थे न्गज का बदला लडकी ने इ
को कहीिं और बेच दे ते थे। े यह लोग लडकी
े हे रा
तरह सलया कक वोह वादा करके आई ही नहीिं।
जब थानेदार को
ारी बात का िता चला तो बहुत गुस् े में आ गगया। थानेदार िक्का स हिं था और गरज कर बोला” ओए तुम स हिं हो कर यह काम करते हो? तम ु लोग स खों का नाम बदनाम करते हो?” उ
ने ग्रिंगथओिं को इतना िीटा कक वोह चीख गचहाडा िाने लगे।
मुझे अभी तक याद है , दो औरतें जो कक ी और गाूँव की थीिं, एक औरत द ु री को कहने
लगी,” हाए हाए,यह तो वोही ग्रिंगथ हैं न्गज्होंने हमारे गाूँव में लडकी बेचीिं थी “. हाए हाए वे, तुम्हारा
त्यानाश हो जाए, तुम धमा को बदनाम करते हो ! उन की बात
ने उन को जमीिंन िर फैंक कर उन के ऊिर खडा हो कर िैरों
े म लने लगा। यह लडकी
उ्होंने १२०० रूिए में बेचीिं थी। अब ग्रिंगथ कहने लगे,” जी हमारे िा हमारा
ुन कर थानेदार
इतने िै े नहीिं हैं,
ाइकल ले लो, कुछ गहने हैं, एक गाए है , वोह ले लो”. इ के बाद द ू रे ददन बहुत
बातें
ुनने को समलीिं। मैं तो बहुत छोटा था, उ वक्त ारी बातों को मझने में अ मथा था लेककन इन बातों का अ र मुझ िर कुछ वर्ों बाद िडना शरू ु हो गगया। जब हम शहर में िडने लगे तो मुझ में अजीब तबदीली आखण शुरू हो गई थी। चलता…
मेरी कहानी – 31 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 04, 2015
हमारे गाूँव राखणिुर के िन्गकचम की ओर चार ककलोमीटर की दरू ी िर एक गाूँव है न्गज
का
नाम है तल्ह्न. जब की बात मैं कर रहा हूूँ उ वक्त यहाूँ कोई ख़ा गुरदआ ु रा नहीिं होता था. स फा एक छोटे े कमरे में गुरु ग्र्थ ादहब की बीड जो स खों का धासमाक ग्र्थ है
होती थी और एक ग्रिंगथ िाठ करता रहता था. एक ओर बहुत छोटा ा कमरा होता था न्गज में एक जोत जलती रहती थी. हर रपववार को दरू दरू के गाूँवों े लोग आया करते थे. न्गजन
लोगों ने कोई मानता मानी होती थी मानता िूरी होने के बाद वोह यहाूँ आते रहते थे लेककन वै े भी लोग श्रधा के कारण आते रहते थे. इ
जगह को शहीद स घ िं ों की जगह बोलते थे.
कोई िै े लाता, कोई मठाई लाता, कोई दध ू घी बगैरा और जोत वाले छोटे गगयानी जी को दे दे ता जो हमेशा वहािं खडा होता था. गगयानी जी शधाालू
े कमरे में खडे
की लाई हुई चीज रख लेते और कोई शलोक िडने लगते। कुछ समनट िडने के बाद गगयानी जी शधाालू को िर ाद दे ते. गरु दआ ु रा और यह छोटी
े उ
ी जोत वाली जगह तो इतनी नहीिं थी लेककन
बादहर बैठने के सलए जगह बहुत थी जो खल ु े आ मान के नीचे ही थी लेककन इ जगह िर दो तीन बहुत बडे बोहड और िीिल के वक्ष े बाररश के ददन कुछ बचाव हो ृ होते थे न्गज जाता था. बैठने के सलए इिंटों का फशा होता था. राखणिरु
े यहाूँ िहुूँचने के सलए कोई ख़ा
रास्ता नहीिं होता था, स फा िगडिंडी ही होती थी जो खेतों के बीच में होती थी. तल्ह्न जाने के सलए हमारे राम
र वाले खेतों
े हो कर जाना होता था और आगे नदी आती थी न्गज
इतना िानी होता था कक हम आ ानी जाती थी तो इ
े इ
में
को िार कर लेते थे. जब बर ातों में बाड आ
को िार करने के सलए एक ककती वहािं बाूँधी होती थी और एक आदमी वहािं
होता था जो नदी को िार करा दे ता था. लोग उ
को कुछ िै े दे दे ते थे.
इ
शहीदों की जगह के बादहर बहुत बडा खल ु ा मैदान होता था न्गज में िीिल और बोहड के वक्ष ृ बहुत होते थे. हर वर्ा गसमाओिं के ददनों में बहुत बडा मेला लगता था न्गज में बडे बडे रागी और ढाडी जथे जो
ारिं गी और छोटे डमरुओिं के
करते थे. हजारों की तादाद में लोग दरू दरू चलता रहता था. इ
ाथ ऊिंची आवाज में गाते थे आया
े आते थे और
ुबह
े शाम तक लिंगर भी
के बाद तीन चार बजे खल ु े खेतों में कुन्गकतओिं के मुकाबले होते थे.
आखखर में िटके की कुकती होती थी न्गज
में बहुत बडे िहलवान आते थे. िटका एक िीले रिं ग का किडा होता था. जो िहलवान जीत जाता था उ को वोह किडा दे ते और ाथ ही बहुत िै े और इनाम दे त.े १९५८ के बाद मैं २००३ में तल्ह्न गगया था. अब वहािं बहुत शानदार गरु दआ ु रा बना हुआ है . मैं कोसशश कर रहा था कक कोई िुरानी जगह जा्ने वाली समले लेककन स फा एक चीज ही िहचानने को समली, वोह थी वोह छोटा
ा कमरा न्गज
जोत जलती रहती थी और उ ी जगह जोत आज भी जलती रहती है . बाकी
में
ब कुछ बदल
गगया है . यहाूँ कभी खल ु े मैदान हुआ करते थे अब खेत ही खेत हैं लेककन गुरदआ ु रे की शान को चार चाूँद लग गए हैं, बहुत ु्दर जगह है . बचिन में बहुत दफा यहाूँ आया था लेककन कभी तल्ह्न गाूँव के भीतर झाूँक कर भी नहीिं दे खा था. एक ददन एक लडका जब स्कूल आया तो हम को बोलने लगा कक इ
शुकरवार को तल्हन
बहुत बडा मेला है । उ ददन छुटी तो है नहीिं, इ सलए स्कूल े भाग कर ही जाना िडेगा। जाना तो ब चाहते थे लेककन अिने मास्टरों का भी डर था। आखखर में िािंच लडकों ने फै ला कर सलया कक घरों
े तो आएिंगे लेककन अिने बस्तों के बगैर क्योंकक बस्ते में ककताबें
बहुत होती थीिं और इतना बोझ ले कर इतनी दरू जाना आ ान नहीिं था। ब ने िक्के वादे कर सलए कक शक ु रवार को मेला दे खने जाना है लेककन कक ी को िता न चले। द ू रे लडकों को भी हम ने कह ददया कक कक ी को बताना नहीिं। शक्र ु वार को न्गज
जगह हम ने इकठा
होना था, मैं और तर ेम आ गए और द ू रे लडकों का इिंतजार करने लगे। तीन लडके अभी
तक नहीिं आये थे। आखखर में स्कूल की घिंटी भी बज गई और बादहर खेलते लडके स्कूल के अिंदर चले गए और स्कूल के बादहर जो शोर था, बबलकुल बिंद हो गगया। मैं और तर ेम
ोच
में िड गए कक अब क्या ककया जाए। इिंतजार करते करते तकरीबन आधा घिंटा हो गगया
लेककन वोह तीनों लडके आये ही नहीिं। अब मु ीबत यह थी कक अगर हम स्कूल जाते तो लेट होने के कारण हमें मास्टर हरबिं
अकेले जाने का फै ला कर सलया। घर
स हिं की
ोटीआिं खानी िडतीिं। मौजू
हो कर हम ने
े हम एक एक दव ु ्नी ले कर आये थे मेले में खचा
करने के सलए क्योंकक ज़्यादा तो हम को समलता नहीिं था। जल्दी ही हम गाूँव के बादहर आ गए। हम में था, हमेशा बडों के
े कोई भी िहले अकेला तल्हन को नहीिं गगया
ाथ ही जाया करते थे। जल्दी ही हम खेतों की िगडिंडीओिं में चलने लगे।
कभी ग्ने के खेत आ जाते, कभी बाजरा कभी ज्वार के खेत आ जाते। चलते चलते हम हमारे राम ने कुएिं
र वाले कुएिं तक आ गए। गमी बड रही थी और प्या
भी लगी हुई थी, ो हम े िानी पिया और आगे बढ़ने लगे। जल्दी ही नदी आ गई। नदी के ककनारों िर रे त
ही रे त थी और नदी के बीच में एक बडी
ी ककती न्गज
को बेडी कहते थे िडी थी। नदी में
िानी बहुत कम था, हमारे घुटनों के कुछ ही ऊिर था। हम िानी में घूमने लगे और ककती में बैठ गए। कुछ दे र बाद तर ेम कहने लगा कक क्यों ना हम नहा लें। हम दोनों ने अिने
किडे उतारे और नदी में नहाने लगे। यहािं यह भी बताना चाहूिंगा कक यह नदी चहे रु के िुल के नीचे े हो कर जाती है जो जी टी रोड िर बना हुआ है और यह जालिंधर कैंट के नजदीक है । बहुत दे र तक हम नहाते रहे , कफर किडे िाये और चलने के सलए तैयार हो गए। अचानक मैंने अिनी जेब में हाथ डाला तो िता चला कक मेरी दअ ु ्नी जो जेब में थी, अब है नहीिं थी। गचिंतत हो कर मैंने तर म े को बोला कक “यार मेरी दअ ु ्नी कहाूँ गई?”. हम ने रे त में ढूिंढ़नी शरू ु कर दी। बहुत दे र तक हम ढूूँढ़ते रहे लेककन दअ ु ्नी िता नहीिं कहाूँ गगर गई थी।
दअ ु ्नी के बगैर मेरा जाने को ददल नहीिं मानता था लेककन ककया करते। तर ेम कहने लगा कक उ
के िा
भी दअ ु ्नी थी और उ
े काम चला लें गे। मौजू
हो कर हम कफर तल्हन
की और चल िडे। मेले का मेरा मजा तो ककरककरा हो गगया। चलते चलते हम आगे भाखडीआना गाूँव आ गए। भाखडीआिंणे के बाद हम कफर खेतों में चलने लगे। उ एक रास्ता शुरू हो गगया न्गज
के आगे
िर छकडों के िदहओिं के तनशान थे और दोनों और बेरीओिं के
बक्ष ु रा नजदीक ही था तो हम ृ थे लेककन बेर अभी कच्चे थे। जब आगे गए तो तल्हण गुरदआ ोचने लगे कक मेले की आवाज तो आ ही नहीिं रही थी जब कक आवाजें तो बहुत दरू आखण चादहए थी।
े ही
कुछ ही समनटों में हम तल्हन गरु दआ ु रे िह ु िं च गए लेककन वहािं तो कोई आदमी ही नहीिं था। हम है रान िरे शान हुए यहाूँ छोटा ा कमरा था न्गज में गरु ु ग्र्थ ाहब की बीड रखी हुई थी वहािं चले गए। एक आदमी था वहािं। हम ने उ को िुछा कक आज मेला नहीिं था? तो वोह बोला कक मेला तो अभी द
ददन बाद रपववार को है । हम उदा
हो गए। उ
आदमी ने
हमें बताशों का िर ाद ददया। जब हम ने लिंगर के बारे में िुछा तो वोह कहने लगा, लिंगर तो स फा रपववार को ही होता है । हम बहुत दख ु ी हो गए। कफर तर ेम कहने लगा,” यार ! तल्हण गाूँव में मेरी एक दरू के ररकते की मा ी है , एक दफा मैं गगया भी था, चल हम उ
का घर ढूूँढ़ते हैं “. गाूँव गुरदआ ु रे के नजदीक ही था,हम गाूँव के बीच चले गए और तर ेम की मा ी का घर ढूूँढ़ते ढूूँढ़ते एक जगह िुहिंचे तो तर ेम बोला, “ब
यही है ”. घर के
ाथ ही
बहुत लकडें िडी थी और कुछ कक ान लोग वहािं बैठे थे। दरअ ल यह लोग तरखान थे और कक ान लोग अिने खेती बाडी में काम आने वाली चीजें जै े हल छकडे यहािं े ररिेअर कराते थे। हम भी जा कर वहािं एक बडी लकडी िर बैठ गए। एक आदमी आरी
े एक बडी
लकडी को काट रहा था। तर ेम ने मेरे कान में कहा, यही वोह आदमी है । ककतने िागल थे हम ! न तो हम ने उ आदमी को है उ
त स री अकाल कहा, ना ही हम ने बताया कक हम कहाूँ
आदमी ने हम को िहचाना ही ना हो वरना ऐ ा तो हो नहीिं
े आये थे। हो
कता
कता था कक वोह हमें
ना बुलाये। बहुत दे र तक हम बैठे रहे । जब कक ी ने भी हम को नहीिं बुलाया तो तर ेम ने मेरे कान में वहािं े उठ जाने को कहा। हम उठ कर बादहर आ गए। तर म े कहने लगा,” चल यार कक ी दक ू ान
े मेरे वाली दअ ु ्नी का कुछ खाने के सलए लेते हैं “. उ
वक्त यह
गाूँव बहुत छोटा ा था और घुमते घुमते एक ही दक ू ान समली, यहािं भी मूिंगफली के स वाए कुछ और नहीिं था। छोटी ी दक ू ान थी न्गज में कुछ िीिे िडे थे न्गज में दालें बगैरा िडी थीिं। हम ने दक ु ानदार को दो आने की मिंग ू फली दे ने को कहा। उ
ने तोल कर मिंग ू फली
तर ेम की कमीज के आगे वाले िलडे में डाल दी। मिंग ू फली ले कर जब हम दक ू ान
े बादहर
हुए तो दक ु ानदार दौडा आया और बोला,” ओए हे रा फेरी करते हो? यह दअ ु ्नी तो खोटी है । “. ककया करते मूिंगफली उ के िीिे में डाल दी और चि ु चाि राणीिुर की और चल ददए। अब हमारी हालत ऐ ी थी कक हम
े बोला नहीिं जाता था अगर बोलते भी तो बची हुई शन्गक्त भी खत्म करने जै ी ही थी, भूख बहुत लगी हुई थी। जब वापि हम बेरीओिं वाले रास्ते िे आये तो हम कच्चे बेर ही खाने लगे। जो बेर आते वक्त हम कच्चे आये थे अब और उधर घर िह ु िं चे तो
ोच कर छोड
वाद लगने लगे। बेर खा कर हम चलने लगे और वक्त भी जल्दी बीत रहा था य ू ा दे वता भी हमें गचतावणी दे रहा था। इ
बात को ज़्यादा न सलखिंू, जब हम
य ू ा ढल चक् ु का था और रात होने को थी। आते ही िहले माूँ कडक कर बोली,”
कहाूँ था त,ू तेरा दादा जगह जगह घम ू आया है , बोल कहाूँ था तू?. ” कुछ ही दे र में दादा
जी आ गए और लगे मझ ु े चिेडें मारने। खझडकें और चिेडें खाने के बाद खब ू रोटीआिं भी खाईं और चारिाई िर बबस्तरे में जी की
जा का डर
ो गगया। माूँ और दादा जी की
जा तो भल ू गगया, अब मास्टर
ता रहा था। जब डरते डरते स्कूल िुहिंचे तो स्कूल में िहले ही खबर
ताजी थी। अब मास्टर जी ने हमारे दोनों के
ाथ ककया वोह तो कोई अनहोनी नहीिं थी।
मुजररमों की तरह हम मास्टर जी के
ामने िेश हुए तो क्ष िं ेि में ही बताऊिंगा कक हम को मुगाा बनाया गगया। हमारी टािंगों में ददा और खखचाव इतना था कक वोह जा कभी भल ू ी ही नहीिं। जब रहम की अिील मिंजूर हुई तो वातनिंग समल गई कक आगे े ऐ ा ककया तो ारा ददन टािंगों के नीचे े कानों को हाथों े िकडना िडेगा यानी कक हमारा रोस्ट मुगाा बन जाएगा।
यह कडवी लेककन बचिन की वोह यादें हैं न्गजन को भूलना अ िंभव है । जब मैं बोल था तो १३
ाल िहले मैंने रे डडओ िर खद ु बोल कर यह घटना
के गाूँवों वाले लोग थे वोह चलता…
ुनाई थी और जो आ
ुन कर बहुत हूँ े थे और उन के बहुत कॉमें ट आये थे।
कता िा
मेरी कहानी – 32 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 08, 2015 वै े तो जीत स हिं बचिन
े ही हमारे
ाथ िडता था लेककन हमारी दोस्ती समडल स्कूल में
जा कर बहुत बड गई। जीत एक ऐ ा लडका था जो जनम े ही कॉसमडी टाइि था, हर वक्त लडकों को हिं ाता रहता और हाजर जवाब इतना कक कोई भी बात कर लो मिंह ु तोड जवाब दे ता था। तर ेम जल्दी ही स्कूल छोड गगया क्योंकक उ
की नेतरहीन माूँ का ददहािंत
हो गगया था और तर ेम के एक भाई अवतार और एक बहन तारो अभी छोटे थे। मेरा खखयाल है कक हमारी समडल स्कूल की िढ़ाई के बाद ही तर ेम की छोटी उम्र में ही शादी हो गई थी। अब मेरा बहादर और जीत का मेल जोल बड गगया था। छुटी के बाद हम गाूँव में
घम ु ते रहते। तर ेम के मोहल्ले के बाद किंबोज मोहल्ला शरू ु हो जाता था। किंबोज लोग गाूँव में
ब
े ज़्यादा थे। किंबोज मोहल्ले में भी एक गुरदआ ु रा था न्गज
करते थे। इ
गरु दआ ु रे में बडे बडे
में गरु ु ओिं के ददन मनाया
िंगीतकार आया करते थे। कभी इ
गरु दआ ु रे में कोई
प्रोग्राम होता तो कभी आहलव ु ासलओिं के मोहल्ले में कथा करने वाले आ जाते। कथा रामायण या कृष्ण जी की होती थी।
यों तो कथाकार आते ही रहते थे लेककन एक मिंडली आई थी न्गज
को ििंडडत
गळी राम की
िाटी कहते थे। यह जब कथा करते तो
मय को बाूँध दे ते थे। लोग बहुत गधयान े ुनते थे। रोज रात को कथा होती थी। इ मण्डली में एक युवा लडका था जो हारमोतनयम बहुत अच्छा बजाता था और नागगन कफल्म की धन ु ें बहुत बजाया करता था और हारमोतनयम िे बीन भी बजाया करता था। कफल्म तो अभी तक हम ने दे खख नहीिं थी लेककन इ
कफल्म के
ररकाडा शाददओिं में अक् र बजते ही रहते थे और एक आदमी जो कफल्मों का बहुत शौक़ीन था, उ ने यह कफल्म दे ख ली थी और गाूँव आ कर नागगन कफल्म की बहुत बातें ककया
करता था। नागगन कफल्म जो हम ने बहुत बाद में दे खख थी आधी ब्लैक ऐिंड वाइट में थी और कुछ ीन कलर में थे और वोह आदमी कफल्म की बातें इ तरह मजे ले ले कर बताया करता था कक हम है रान हो जाते थे। वोह कहा करता था “ओ भाई, कफल्म में नरक स्वगा ददखाते हैं, स्वगा इतना
ु्दर है कक दे ख कर मजा आता है , और नरक में दरख्त भी
हुए हैं”. अक् र वोह काशी दे खख मथरु ा दे खख, दे खे तीरथ करता था। ारे गाूँव में हम घुमते रहते थे और एक शख्
का
ारे बहुत मजे ले ले कर बताया
े हम डरा करते थे, वोह था किंबोज मोहल्ले
िंता स हिं जो एक समसलटरी ररटायडा जवान था। वोह बूढ़ा था लेककन स हत
जवान जै ा ही था। ऊिंचा लिंबा, छाती कमीज िहनता न्गज
ूखे
े एक
ीधी करके चलता और हमेशा समसलटरी की खाकी
के क्धों िर िीतल के बडे बडे बटन होते थे. कोई हट्टा कट्टा
ाधू
उ
मोहल्ले में आ जाए उ
को
वाल िूछता था कक वोह क्यों मािंगता था। उ
“अगर तू ने रोटी खानी है तो मेरे
को कहता,
ाथ मेरे खेतों में चल, िहले काम कर, कफर तुझे रोटी
समलेगी वरना जूते मार मार कर तेरा बुरा हाल करूूँगा”. यही वजह थी कक कोई मिंगता या ाधू इ
िंता स हिं का बहुत रोब होता था और कोई उन के ामने बोलने का हौ ला नहीिं रखता था। िंता स हिं की गैर हाजरी में कोई कोई मिंगता या ाधू
मुहल्ले में आने
े डरता था।
िंत बुरी हरकत करता तो िता लगने िर उ का बुरा हाल करता।
एक दफा दो
ाधू
फेद किडों में गाूँव में आ गए।
िंता स हिं कहीिं गगया हुआ था। इन दो के हाथ में एक स तार थी। वोह दोनों गली गली घम ू
ाधओ ु िं में एक नेत्रहीन था और उ
कर लोगों को उल्लू बना कर लट ू रहे थे। उ्हों को िहले ही मालम ू होता था कक कक कोई बेटा नहीिं है और वोह उ का घर
न ू ा
घर में
के घर चले जाते और कहते, “माई ! हमें गगयान है कक आि
न ू ा है , आि के घर में बेटे की ककलकाररयाूँ नहीिं हैं”. वोह इस्त्री है रान हो जाती
और उन को भीतर आने के सलए कह दे ती। भीतर आ कर जब वोह इस्त्री कुछ अनाज आटा ले कर आती तो एक
ाधू उ
में
े कुछ आटा ले कर हाथों
े म लता और उ
इस्त्री को
खाने के सलए कहता। जब इस्त्री वोह आटा मुिंह में डालती तो आटा मीठा हो जाता। इस्त्री है रान हो जाती कक
िंत महाराज के हाथ लगने
े आटा मीठा हो गगया और वोह दोनों
जो मािंगते इस्त्री दे दे ती। दरअ ल उन
ाधू
ाधओ ु िं ने जेब में रखी हुई स्क्रीन को िहले ही हाथ लगाया होता था। स्क्रीन बहुत मीठी होती है और कक ी भी चीज को हाथ लगाने े वोह
चीज मीठी हो जाती है । इ ी तरह उ्होंने बहुत घरों को लूटा और इस्त्रीओिं े ोने के गहने तक ले सलए। एक घर मेरे दोस्त जीत की गली में था न्गजन के कोई बच्चा नहीिं था। वोह दोनों
ाधू उ
इस्त्री के घर चले गए और जाते ही बोले, बीबी ! तेरे घर बेटा होगा और उ
का नाम भाग स हिं रखना। इस्त्री तो है रान हो गई कक इन को कै े िता चला कक उन के घर बेटा नहीिं था। उ ने उन दोनों उ
ने
मझा कक उन के घर तो खद ु भगवान चल कर आ गए थे। उ
इस्त्री
िंतों के चरण धोये और रोटी बनाने लगी। रोटी खा कर उन दोनों ने जो कहा
इस्त्री ने दे ददया।
अभी वोह दोनों
ाधू घर
े बादहर तनकले ही थे कक ऊिर
जब वोह घर आया तो कक ी ने उ को लूट रहे थे। मैं और जीत उ कुछ तुम ने लूटा है ”.
कमा के खखलाफ है ?”. इस्त्री न्गज रहा है ”.
के घर
िंता स हिं ने उ
कुछ जो तम ु ने लोगों
को बता ददया था कक दो वक्त वहीीँ थे।
ाधू जो दे ख
िंता स हिं अचानक आ गगया। ाधू गाूँव में घूम कर लोगों
िंता स हिं आते ही बोला, “रख दो यहािं जो
कता था गुस् े में बोला, “तू मनमुख कौन है जो धमा
िंता स हिं ने बडे जोर
े आये थे,
े
े उ
के मुिंह िर थिड मारा। यह दे ख कर वोह
िंता स हिं को बोलने लगी कक “तू
इस्त्री को कोई जवाब नहीिं ददया और े लट ू ा है ”.
िंत लोगों का अिमान कर
ाधू को बोला, “तनकालो
िंता स हिं उन के किडे जबरदस्ती उतारने लगा। बहुत
ब
लोग इकठे हो गए थे। जब किडे उतरने लगे तो लोग है रान रह गए कक उन के किडों में बहुत रूिए, नए किडे और ोने चािंदी के गहने थे। एक लडके के हाथ े डिंडा छीन कर िंता स हिं दोनों को जोर जोर े मारने लगा। वोह कह रहे , “तुम हमारे बाि हो, हमें जाने दीन्गजये, हम कभी इ
गाूँव में नहीिं आयेंगे”.
जाओ यहािं
ब कुछ छीन कर
िंता स हिं ने गुस् े में कहा, “भाग
े, कफर कभी तुम्हें दे खा तो हल के आगे लगा कर खेत में हल चलाऊिंगा”.
वोह दोनों रोते हुए जा रहे थे, हम बी िीछे िीछे जा रहे थे। कुछ दरू जा कर भी िीछे मड ु ने लगे और वोह दोनों रोते जा रहे थे। गाूँव वाले िंता स हिं के ाथ बातें कर रहे थे कक एक ने कहा,
िंता स घ िं ा उन
ाधओ ु िं के िा
का काम हमेशा के सलए बिंद हो जाता।
कोई वजाने वाली चीज थी, वोह ले लेते तो उन
िंता स हिं बोला, “अरे यह तो मैंने
उन के िीछे भागने लगा। हमारे सलए तो यह एक तमाशा ही था, हम भी लगे।
ोचा ही नहीिं “और ाथ
ाथ भागने
िंता स हिं ने जल्दी ही उन को िकड सलया और स तार छीनने लगा। वोह छोड नहीिं रहे
थे। इ
छीनने बचाने में वोह स तार टूट गई और
रोज जिुजी
िंता स हिं ने उ्हें जाने ददया।
ादहब का िाठ ककया करता था और यह अक् र खेतों
रास्ते में ही ऊिंची ऊिंची ककया करता था।
े वापि
आते
िंता स हिं मय
िंक्रात को गुरदआ ु रे जाता और हर गुरिवा में आगे
बड कर काम करता और जरूरतमिंदों की ददल खोल कर मदद करता, लेककन वोह था और हट्टे कट्टे मिंगतों और तरह का कोई आदमी
ोच
ाधओ ु िं को
ीधा कर दे ता था, इ
मझ कर ही आता था।
सलए इ
ख्त बहुत मोहल्ले में इ
इ
घटना के बाद मैं और जीत, जीत के घर आ गए. जीत के घर भी मेरे बहुत अच्छे ददन गुजरे हैं। जीत के पिता जी बहुत धासमाक और गगयानी िूणा स हिं जी कहलाते थे. जीत की माूँ बहुत हिं मुख थी। जीत का एक बडा भाई था मलकीत और दो छोटी बहनें थी। जीत के घर हमारे कुछ और दोस्त भी आ जाते न्गजन में हरदयाल न्गज को लाडी कहते थे आता ही रहता था। हमारा मीदटिंग रूम अक् र होता था एक ऐ ा कमरा न्गज ामान और एक होता था एक िुराना ग्रामोफोन न्गज
के आगे होता था बडा
में होता था घर का फालतू
का बक् ा लकडी का होता था और उ
ा िीतल का स्िीकर न्गजन की फोटो ररकाडों िर भी होती थी और उ
के मुिंह की ओर एक कुर्त्ा बैठा होता था, यह दहज मास्टजा वॉय
वालों का ट्रे ड माका होता
था। जादहर है यह ग्रामोफोन जीत के पिता जी ने अिनी जवानी के ददनों में खरीदा होगा। एक बॉक्
होता था ररकाडों के सलए न्गज
थे। यह ररकाडा हम ने इतनी दफा
में
ब िुराने िुराने गीतों के ररकाडा ही हुआ करते न ु सलए थे कक बहुत े गाने हमें याद हो गए थे। बहुत
े गाने तो ििंजाबी के ही हुआ करते थे लेककन कुछ दहिंदी में भी होते थे। एक था, हम राम च्दर की कथा न ु ाते हैं ऐिं ऐिं ऐिं, हम कथा न ु ाते हैं। एक था, िल्ला मार के बझ ु ा गई दीवा, अख नाल गल कर गई। इ को हाई कर दे ते, न्गज
गाने िर हम बहुत शग ु ल ककया करते थे, कभी हम स्िीड े गाना इतना फास्ट होता कक जै े कुकडों की लडाई हो रही हो, कफर
बबलकुल ही स्लो स्िीड िर कर दे ते और हिं ने लगते। क्योंकक ररकाडा िुराने और तघ े हुए होते थे, तो कभी गाना ट्रै क िे अटक जाता और एक ही बात, िला मार के बुझा, िल्ला मार के बुझा, िल्ला मार के बुझा............. होती जाती और हम खब ू हूँ ते। एक होता था
ारिं गी और छोटे डमरुओिं का गीत जो बहुत हाई नोट िे गाया हुआ था और गाने के आखखर में दो लफज गलती े ररकाडा हो गए होंगे, यह थे “ओ ब ”। इ िर
इ
हम हूँ ते हूँ ते लोट िोट जाते थे। इ
गाने की ररकॉडडिंग के वक्त कक ी ने इशारा ककया
होगा कक गाना बिंद कर दो और क्योंकक यह गाना ग्रि ु में गाया जाता था और कक ी ने इशारा
“ओ ब
मझा नहीिं हुआ होगा और एक ने न्गज ने मझ सलया होगा, कह ददया होगा कक करो “और यह इ में ररकाडा हो गगया होगा। और इन ररकाडों में एक होता था
न्गज
में स फा बातें ही की हुई थीिं। यह ररकाडा हम ने इतनी दफा न ु ा था कक अभी तक मझ ु े याद है । यह ििंजाबी में था। इ की दोनों ाइड मैं ििंजाबी में ही सलखग िंू ा क्योंकक दहिंदी में सलख कर वोह बात नहीिं बन यह इतहा
केगी।
का एक ि्ना ही है क्योंकक उ
मय बजुगा लोग अक् र कहते थे कक, “ओ जी
अब बुरा जमाना आ गगया है , लडके लडककआिं िड कर स तनमा दे खने लगे हैं और उन की आदतें खराब हो रही हैं, लडकीओ को तो िढ़ाना ही नहीिं चादहए”. यह कुछ इ ाइड थी, स नमें दी बीमारी।
िकाार है , एक
बेटा, घर में दाखखल होते हुए “ओ झाई झाई, मैनू छे ती रोटी िका के दे ह ” माूँ, “औन्ग्त्रया स र डडया, हुन ते वेर दा घर िैर िाया ई, हुन ककथे उजडना ईं?” बेटा, ओ माई गुडनै , “झाई तैनूिं िता नहीिं अज्ज ्डे है ?, मैं पिक्चर दे खण जाना ”
माूँ, “वे पिचकर ददआ लगददया, जाह िहलािं आटा पिया के सलया, तेरा भाईया हदटओिं आऊूँगा तािं तेरे स र पवच की
ुआह िाऊूँगा ”
बेटा “ऐिं आटा ते मुककआ ही रहना, आटा पिआन गगयाूँ मेरी इजत खराब हुिंदी आ ” बेटी, “झाई, झाई, मैं भी स नमा दे खण जाऊूँगी ” माूँ, “हाए वे लोको, मैं केहडे ब्ने डुब मरािं, मुिंडा ते पवगगडया ते पवगडडया, कुडी भी स र ते इकक दा िटारा चक् ु की कफरदी आ ”
बाि अिंदर आता हुआ, “ए मैं ककहा, की घर पवच गाजरािं पवकण लगगयािं होईआिं, ककया हो गगया तुहान? ू ” माूँ, “ऐ मैं ककहा, होर िडा ला
ुथरी उलाद नूँू, मुिंडा ते पवगडडया ते पवगडडया कुडी भी
इकक दा िटारा चक् ु की कफरदी आ ”
बेटा, पिता जी नूँ,ू “गड ु ईवतनिंग डैडी जी ”
र ते
बाि, “ओए डड्डू ददया िुत्रा, हर वेले अिंग्रेजी कुतरदा रहना। कक े
च ककहा यारो, न तनआने
िढ़ाओ, न स नमें दी बीमारी लगाओ, बई अज्ज कल ददओ लोको, मेरी गल म्दे ओ तािं बबलकुल तनआने ना िढ़ाओ ” आखखर में एक छोटा
ा गाना,
स नमा दे ख दे ख के यारो, बबगडे मुिंडे कुडीआिं ने, स नमा दे ख दे ख के यारो बबगडे मुिंडे कुडीआिं ने।
स् ी िन ु ू हीर स आल,
दे खण
ोहणी ते महीिंवाल,
स् ी िन ु ू हीर स्याल,
दे खण
ोहणी ते महीिंवाल।
हाूँ, िरदे ी ढोला दे खण जी, रल समल के तरु ीआिं ने। स नमा दे ख दे ख के यारो....... इ
ररकाडा की द ु री
ाइड होती थी, दह्दस् ु तानी और ििंजाबी की लडाई, न्गज
का खरवािन और दहिंदी बोलने वाले की शराफत, जो कुछ इ
में था ििंजाबी
तरह था,
दह्दस् ु तानी, “स्लामालेकम भाई
ाहब !”
ििंजाबी, “बालकम
लाम,
हुना ” दह्दस् ु तानी “भाई
ाहब मैं तुम
े यह िूछना चाहता हूूँ कक गचडडआ घर को रास्ता कौन
जाता है ”
ुणा बई
लाम तािं बुरी तरह केहना न्गज
तरह ईद िड के आया ा
ििंजाबी “ओए गचडडआ घर ददआ जानवरा, तेरे लई उथे कोई पििंजरा खाली नहीिं होईअाा, होर की ” दह्दस् ु तानी “हैं ! बडे बद्तमीज हो तुम, हम तुम
तुम यहािं झिके दे रहे हो बडे बद्तमीज हो तुम ”
े गचडडआ घर का रास्ता िूछ रहा है और
ििंजाबी “ओए कमीज इथे नहीिं लभ्दी गचडडआ घर पवच, अजाएब घर पवच बेछक समल जाए ” दह्दस् ु तानी “ओए नामाकूल ! तुम्हारे ऐ ा लिंगोटा दिं ग ू ा कक तेरी बती
बादहर आ जायेगी ”
ििंजाबी “ओए तूँू दे वेंगा लिंगोटा, तेरे इक लग जाऊ, दिं ड कढ के बादहर रख दऊिंगा, कुते का िूतर ना होवे तािं ”
दह्दस् ु तानी “हट जा ओए गचमनी के ”
ििंजाबी “ओए गचमनी के, ठहर तैनू द ािं “एक थिड मारता है । दह्दस् ु तानी “ओ मर गए, कोई है इ
शहर में ?”
एक स िाही ििंजाबी को, “क्यों ओए लड रहे हो?” ििंजाबी “ओ एहनिंू ”
ाहब, कोई गल नहीिं, यह प्रौहणा ददसलओिं आया, चार खट्टे समठे मक् ु के ददखाले
स िाही “बक न ओए, चलो थाने ”
जज “क्यों ओए तुम लड रहे वहािं?”
दह्दस् ु तानी “नहीिं जनाब, लड तो नहीिं रहे थे, ब
ैर कदमी कर रहे थे ”
जज “अग्गे नूिं नहीिं लडना, नहीिं ताूँ करािं हुणे ततन ततन करो ”
ाल दी कैद, जाओ जा के
लाह
दह्दस् ु तानी ििंजाबी को “ििंजाबी भाई मुझे मुआफ कर दे ना, आइिंदा ऐ ी गलती कभी नहीिं होगी, भाई, अब हम तुम्हारे शहर में आये हुए हैं तो कोई गाना वाना तो ििंजाबी “है दाूँ िे दा ित ु बण, लै ण ु ”
ुनाओ ”
गाना “एह की यार तेरे ददल पवच आई होई ए, जर्त् ु ी क्ना दे नाल लटकाई होइ ए, दटिंड ( र) तछतर दे वािंग चमकाई होइ ए ”
एक दो लाइने और थीिं जो मझ ु े याद नहीिं। ब ददन ककतने अच्छे थे। चलता…
यह हिं ी मजाक चलता ही रहता था, वोह
मेरी कहानी – 33 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 13, 2015
तर ेम अब अिनी न्गजिंदगी में म रूफ हो गगया था और हमारा समलन बहुत कम हो चक ु ा था। कभी कभी ही मैं उ के घर जाता और जब भी जाता उ की ित्नी ीबो मेरी बहुत आव भगत करती। ीबो एक बहुत ीधी ाधी लडकी थी। बादहर आ कर तर ेम ीबो की
शकायतें करता रहता था। मुझे तो इतना िता भी नहीिं था लेककन तर ेम शादी करा के कुछ मझदार हो गगया था।
दतु नआ में नहीिं है लेककन वोह बहुत ही मा ूम होती थी। १९६५ में जब मैं इिंडडया आया था तो उन लोगों को समलने के सलए उन के घर गया था। ीबो ने ख़ा
ीबो अब इ
कर मेरे सलए गजरे ला बनाया था। गजरे ला इतना स्वाददष्ट नहीिं था लेककन मैंने
उ े कहा भाबी ! इतना अच्छा गजरे ला कहाूँ
े बनाना
ीखा?, यह तो बहुत स्वाद है । उ ने खश ु हो कर मेरी प्लेट में और डाल ददया। मैंने खा सलया लेककन उ के खश ु चेहरे का नरू अभी तक मझ ु े याद है । तर ेम के पिता जी अब बढ़ ू े हो चक् ु के थे और उन को ऊिंचा
न ु ाई
दे ता था। तर ेम अब लोगों के मकान बनाता था और कुछ वर्ों बाद डुबाई चले गगया था। जीत,बहादर और मेरा भजन का
ाथ अब बड गगया था और बाद में भजन भी हमारा दोस्त बन गगया।
ाथ हमें मैदट्रक तक ही समला क्योंकक मैदट्रक िा
टािंग िर एक रोग हो गगया न्गज
करने के उिरािंत उ
को चिंबल कहते थे। कक ी नीम हकीम ने उ
की एक
की टािंग िर
कोई दआ ु ई लगाईं न्गज
में नीला थोथा समला हुआ था न्गज को कौिर ल्फेट कहते हैं। ुना था कक नीले थोथे की जहर उ के शरीर में फैल गई और भजन यह दन ु ीआिं छोड गगया। कहाूँ तक यह ने उ
च है मुझे िता नहीिं। भजन की बहन हमारे टाऊन में ही रहती है लेककन हम
े भजन के बारे में कभी कुछ िुछा नहीिं क्योंकक हम उ
की याद उ
की बहन को
ददलाना नहीिं चाहते। एक बात है कक भजन फुटबाल का अच्छा िलेयर होता था और वै े भी कुछ
ख्त
ुभा का होता था,कभी कक ी के
जाता था। मास्टर हरबिं ककया था हरबिं स हिं के
स हिं के
स हिं
ाथ ििंगा िड जाए तो लडने के सलए आगे हो
े हम तो डरा करते थे लेककन भजन ने कभी
िंकोच नहीिं
ाथ बात करने को ले कर। फुटबाल खेलते वक्त भी मास्टर हरबिं
ाथ सभड जाता था। िडने में भजन तनल ही था और ना ही उ
लेककन खेलने में बहुत अच्छा था।
को कोई िरवाह थी
जब कभी कोई समतनस्टर आता तो स्कूल में ही लोग उ
का भार्ण
ुनने के सलए आ जाते
थे। उन ददनों बी डी ओ भी आया ही रहता था। लोगों को फ लों के नए नए बीज ददखाए जाते। उन ददनों ग्ने एक ही कक म के बीजे जाते थे न्गजन को चन बोलते थे। यह ग्ने
बहुत ही ितले कोई एक इिंच पवआ में होते थे जो चि ू ने में बहुत मजेदार होते थे और उन का गुड बहुत स्वाद होता था। अब लोगों को नए नए ग्ने ददखाए जाने लगे। एक को फामा
कहते थे। लोगों ने फामा बीजने शुरू कर ददए क्योंकक एक तो चि ू ने में बहुत नरम होते थे, द ू रे समठा भी अच्छी थी,ती रे उिज दो गन ु ी हो गई। कुछ दे र बाद एक और ग्ना बी डी ओ ले कर आया और लोगों को ददखाया। इ
को बािं
कहते थे। यह बहुत ही ज़्यादा बािं जै ा मोटा था। यह स फा खिंड बनाने के काम ही आता था और ग्ना समल को ही जाता था। यह बहुत ख्त होता था और चि मय ििंजाब में कक ान लोग ू ा नहीिं जा कता था। उ चावल अिने घर खाने के सलए ही उगाते थे और बहुत कम लोग चावल खाते थे या जब
कोई मेहमान आ जाए या शादीओिं में खाए जाते थे। अब कक ानों को चावल भी उगाने को कहा जाने लगा। अब तो चावल इतने होते हैं कक मिंडडआिं भरी होती हैं। हमारी समडल स्कूल की िढ़ाई खत्म होने को थी। एक ददन एक समतनस्टर आया और बी डी ओ भी। समतनस्टर ने लोगों को वधाई दी कक हकूमत की तरफ
े हमारे गाूँव
ाथ में े ले
कर फगवारे तक
डक बनाने की मिंजूरी समल गई थी। लोगों ने बहुत तासलआिं बजाईं। समतनस्टर ने यह भी बताया कक इ डक े िहले कैल (छोटी ी नदी) िर िुल बनाया
जाएगा। लोगों की ख़श ु ी का कोई दठकाना नहीिं रहा और लोग बहुत दे र तक तासलआिं बजाते रहे । हम को तो ख़ा कर ख़श ु ी हुई क्योंकक हम ने फगवारे िडने जाया करना था। जै ा कक समतनस्टर ने कहा था कैल िर िुल बनना जल्दी ही शुरू हो गगया। कैल ज़्यादा दरू नहीिं थी, इ
सलए हम कैल िे िुल बनता दे खने जाते। ब
हमें एक ही बात की इिंतजार थी कक जल्दी
जल्दी िुल बन जाए। यह शायद १९५६ था और स्कूल में हमें छुदटयाूँ थीिं। एक ददन हमें िता चला कक गाूँव में भारत
माज
ेवक कैम्ि लग रहा है और किूरथले के मदह्द्ा हाई स्कूल
े पवद्याथी आ रहे हैं। िुल अभी बन ही रहा था और जल्दी ही
वाली थी। भारत
माज
डक बननी भी शुरू होने
ेवक का काम उन ददनों में बहुत िरचलत था. यहािं भी कहीिं डक बननी होती कक ी हाई स्कूल या कक ी कालज के लडके डक िर काम करने आते। क्योंकक हमें स्कूल में छुदटयाूँ थीिं और स्कूल के
पवद्याथी हमारे स्कूल में ठै हराए गए। न्गज
भी कमरे खाली थे, इ ददन
सलए मदह्द्ा हाई स्कूल के
डक का काम शुरू होना था, उ
ददन एक
बहुत बडा शासमआना लगाया गगया और एक समतनस्टर,बी डी ओ ादहब और कुछ अ्य अफ र आये। शासमआने के नीचे बहुत कुस य ा ािं थीिं और लाऊड स्िीकर का भी इिंतजाम था। िहले कक ी समतनस्टर ने और कफर वोह
डक के स्थान िर िहला फावडा चलाया, लोगों ने तासलआिं बजाईं
भ लोग शासमआने के नीचे कुस ाओिं िर बैठ गए। उ ी समतनस्टर ने िहले
कोई लैक्चर ददया, उ
के बाद बी डी ओ और कुछ और भी लोगों ने बोला। इ
के बाद शुरू
हुआ मनोरिं जन का प्रोग्राम। मदह्द्ा स्कूल के लडकों ने बहुत अच्छा प्रोग्राम ककया लेककन मुझे तो स फा एक ही गीत याद है और न्गज लडके ने गाया उ का नाम तो याद नहीिं लेककन उ
को मस्ताना कहते थे और जो गीत उ
यह गीत न्गज
ने गाया वोह अिने आि में इतहा
है ।
ने गाया था वोह
ुररिंदर कौर का गाया हुआ था। ुररिंदर कौर और प्रकाश कौर ददली की दो बहने थीिं न्गज्होंने उन ददनों बहुत े लोग गीत ररकाडा करवाये थे। जो गीत इ लडके मस्ताने ने गाया था, वोह था ” जर्त् ु ी क रू ी िैरीिं ना िरू ी, हाए रब्बा वे मैनिंू तरु ना पिया “.यह गीत इ
लडके ने इतना अच्छा गाया कक मैं भी इ
गाने का ब
मस्ताना ही हो
गगया। आज तक यह गाना मझ ु े बहुत अच्छा लगता है । इ गाने में इतहा ददनों लोग बहुत ीधे ाधे होते थे। मझ ु े स फा ििंजाब का ही िता है कक उ
यह है कक उन मय ितत
आगे आगे चलता था और ित्नी िीछे िीछे चलती थी। इकठे नहीिं चलते थे क्योंकक यह भयता के खखलाफ
मझा जाता था। इ
गाने के अथा यह हैं कक कोई ितत
ु राल
े
अिनी ित्नी को अिने गाूँव को ले कर िैदल जा रहा है । ितत आगे आगे जा रहा है और ित्नी िीछे िीछे जा रही है । इ
गाने में ित्नी के जज़्बात ददखाई दे ते हैं। ित्नी कह रही है
कक उ
ने क रू ी जुर्त्ी िहनी हुई है जो िैरों को काट रही है (उन ददनों क रू शहर की बनी जुतीआिं फेम थीिं जो अब िाककस्तान में है ) क्योंकक जुर्त्ी िैरों में िरू ी कफट नहीिं। हाए रब्बा मुझे िैदल चलना िडा है । भयता ददखाई दे ती है ।
इ
फिंक्शन के बाद
क्योंकक यहािं
े
ुररिंदर कौर के
भी गानों
े हमारी आजादी के िहले की ििंजाबी
डक का काम शुरू हो गगया। हमारे घर के सलए यह ददन बुरा था
डक शुरू हुई,िहले हमारी जमीिंन ही बीच में आ गई। जो िहला िुराना रास्ता होता था वोह हमारे कुएिं के िछम की ओर े जाता था, अगर वही रास्ते िर डक बनती तो हमारा कोई नक् ु ान ना होता लेककन अब यह
डक कुएिं के िूवा की और बननी
शुरू हुई न्गज में अकेले हम ही नहीिं थे द ू रे भी बहुत लोग थे जो िभाावत हुए। वादा तो ककया गगया था कक हमें कहीिं और जमीिं दे दी जायेगी लेककन आज तक कक ी को भी कुछ नहीिं समला। गािंािंव के
ारे लोग अिने अिने फावडे और बेलचों
े खद ु ाई कर रहे थे। तनशाूँन
लगा ददए गए थे। न्गजन न्गजन की जमीन िभाावत थी वोह शोर मचा रहा था। क्योंकक जमीन कक ान के सलए एक माूँ के बराबर होती है , इ थी एक बुडडआ न्गज
सलए कई लोग बहुत दख ु ी थे। इन में एक का नाम था लच्छी। वोह बहुत शोर मचा मचा कर अफ रों के आगे
हाथ फैला रही थी लेककन उ न्गज े कहते हैं और मोदह्दर लगा, न्गज था
ेवे
की कोई नहीिं
ुनता था। यह जमीन भी इतनी अच्छी थी कक
ोना उगलने वाली थी। मदह्द्ा स्कूल के लडके भी काम कर रहे थे। ाथ
ाथ फावडा चला रहे थे कक
ेवे का फावडा मोदह्दर के एक िैर िर
े खन ू तनकलना शरू ु हो गगया। मोदह्दर का पिता जो
े लडने लगा और कहने लगा कक
ेवा
ाथ ही काम कर रहा
ेवे ने जान बझ ू कर फावडा मारा था। बी डी ओ
जो ऊिंचा लम्बा स हिं था मझाने लगा कक उ
ब दे ख रहा था। वोह आया और मोदह्दर के पिता जी को
लडके
े अचानक लग गगया था लेककन मोदह्दर का पिता बार बार
यह ही कहता जा रहा था कक जान बूझ कर मारा था। बीडीओ उ क्यों खामखाह झगडा कर रहा था। इ स फा दो ककलोमीटर ही बननी थी, इ बाना गाूँव नें प्लाही गाूँव तक
गगया और और इ है । चलता…
के बाद वोह चि ु हो गगया। हमारे गाूँव की
डक को
डक तकरीबन एक महीने में िरू ी हो गई और इ
े तकरीबन एक हफ्ता िहले भारत
भी मदह्द्ा स्कूल के लडके वापि
िे कारें ब ें और
डक
के बाद बाना गाूँव की जमीन शुरू हो जाती थी और
डक बनानी थी और आगे िलाही गाूँव ने इ
फगवारे तक ले जाना था। यह कच्ची डक के िरू ा होने
े लडने लगा कक वोह
माज
ेवक कैम्ि भी ख़त्म हो
चले गए। आज यह
बी िकाार के वाहन चल रहे हैं और यह
डक बहुत अच्छी है डक बहुत बबजी हो गई
मेरी कहानी – 34 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 15, 2015
मेरी कहानी के काण्ड २६ में मैं ने सलखा था कक जो मैं सलख रहा हूूँ, वोह बबखरे हुए माला के मणके ही हैं। कब कोई मणका माला में पिरोने के सलए समल जाए,कहना अ िंभव है । मैंने अिने बचिन के बारे में काफी कुछ सलखा है और अभी सलखने को बाकी है । लेककन आज
ुबह जब मैं शावर ले रहा था तो मेरे मन में पवचार आया कक इतनी बातें मैं सलख चक् ु का हूूँ लेककन अिने घर के दस्यों के बारे में कोई ख़ा नहीिं सलखा और मैं ोचता हूूँ कक अगर नहीिं सलखग ूिं ा तो बहुत कुछ अनसलखा रह जाएगा। एक बात और कक कौन ी घटना कब हुई,यह भी सलखना बहुत मुन्गककल होता है अगर आि ने डायरी ना सलखी हो तो. पिता जी के ाथ मेरा
ाथ इतना नहीिं रहा न्गजतना दादा जी के
ाथ रहा। कफर भी मैं पिता जी के बारे
में ही िहले सलखग िंू ा।
बहुत ी बातें तो मझ ु े पिता जी े ही िता चलीिं ख़ा कर उन के पववाहता जीवन को लेकर। यों तो बचिन में मैं पिता जी े डरता और शमााता रहता था,कफर भी जब मैं आठवीिं कक्षा तक िौहिं च गगया था तो कुछ कुछ बातें करने लगा था। कुछ कुछ खझजक दरू हो गई थी।
पिता जी कभी कभी शराब िी लेते थे और मीट भी खाते थे। जब उन के अफ्रीका के दोस्त आते तो वोह महफल लगाते न्गज
में वोह बहुत बातें करते और जब उन को कुछ नशा हो जाता तो अफ्रीकन जुबािंन स्वाहे ली में बोलने लगते। मलावा राम को छोड कर वोह कक ी और गािंववा ी के कर
ाथ शराब नहीिं िीते थे। उन की शराब इतनी ही होती थी कक वोह मजे
े बातें
कें। मैंने उन को कभी शराबी हो कर गगरते नहीिं दे खा। एक बात है कक हमारे घर में
पिता जी जै ा हुसशआर कोई नहीिं हुआ। वोह इतने िडे सलखे नहीिं थे लेककन ििंजाबी में काफी मुहारत रखते थे और कीतान तो बहुत ही बेहतरीन करते थे। गाूँव के बहुत े लोगों की शाददयािं उ्होंने कराईं थीिं। घर में हारमोतनयम होने की वजह े मेरी माूँ भी अच्छा हारमोतनयम वजा लेती थी। बडे भइया और छोटे भइया भी वजा लेते थे। जो ताऊ रतन स हिं के
ाथ होता रहा,मैं
और ताऊ रतन स हिं इकठे द ु रे दोस्तों के
ब कुछ दे खता रहा। लेककन कभी कभी पिता जी ाथ बैठे होते। मुझे कभी इ
की िरवाह नहीिं
हुई। जब भी कभी दोनों भाई बोलने लगते तो मैं ताऊ रतन स हिं के घर चला जाता,कारण यह ही होता था कक ताऊ मुझे कुछ गली वाले िै े दे दे ता, कभी दक ू ान े कुछ खाने के सलए ले दे ता। पिता जी जब भी अफ्रीका
े आते, मकान बनाने का काम शुरू कर दे ते। पिता
जी का एक बहुत ही पप्रय दोस्त होता था, न्गज का नाम था धमा स हिं जो जगिाल िुर गाूँव े ताउलक रखता था, इ गाूँव को िहले नामाने बोलते थे। धमा स हिं की एक ही बेटी थी न्गज
का नाम था जीतो और मेरी बहन का नाम भी जीतो है । इन का आपि
में बहुत प्रेम था। कभी कभी हम धमा स हिं के घर चले जाते,कभी वोह हमारे घर आ जाते। पिता जी और
धमा स हिं मुिंह बोले भाई बने हुए थे। मुझे भी धमा स हिं बहुत अच्छा लगता था। धमा स हिं एक मशहूर राज (मकान बनाने वाले न्गजन को राज भी कहते थे) था न्गज ने कुछ वर्ों बाद हमारा घर भी बनाया था न्गज और
को मैंने डीजाइन ककया था। उ
वक्त पिता जी अफ्रीका में थे
ारा घर धमा स हिं ने ही बनाया था।
अभी तक हम अिने िुराने घर में ही रहते थे जो छोटा था लेककन अच्छा बना हुआ था। इ घर े मेरी यादें बहुत जड ु ी हैं। मेरा ारा बचिन इ ी घर में गज ु रा। मैं िहले सलख चक् ु का हूूँ कक पिता जी और मलावा राम की दोस्ती बहुत थी यह बात द ु री है कक कुछ दे र बाद इ दोस्ती को पवराम लग गगया था। कोई भी घर अच्छी चीज बनती, मलावा राम के घर भी
जाती। एक दफा पिता जी ने िकौडे बनाए और एक प्लेट में रख कर मझ ु े दे ददए कक जाह ” मलावा राम को दे आ “. पिता जी बहुत तेज बोलते थे, मझ ु े ऐ ा मझ लगा कक िकौडे ” मलावी को दे आ “. यह घर भी एक ब्राह्मण का घर था न्गज की ित्नी का नाम था
मलावी। मैं िकौडे ले गगया और मलावी के घर चले गगया और मलावी को कहा, ” पिता जी ने यह िकौडे आि को भेजे हैं “. मलावी है रान
ी हो गई ककओिंकक वोह उ
मय जवान
थी। कुछ दे र बाद मलावी प्लेट ले कर हमारे घर आ गई और माूँ को बोली,” तेज कौरे यह िकौडे मुझे ककओिं भेजे हैं ?”. पिता जी भी िा मलावा राम को भेजे थे,गुरमेल को
ही थे और बोले, “मलावी बहन, दरअ ल मैंने
मझ नहीिं लगी “. माूँ बोली,” मलावी बहन,अब आि ही
इ्हें खाएिं,बहुत अछे बने हैं “. मलावी चले गई और बाद में पिता जी और माूँ हिं ने लगे कक हमारा गुरमेल भी ब
बुधु है । इ
बात को ले कर बहुत दफा हूँ े।
ताऊ रतन स हिं का लडका यानी मेरा बडा भाई बहुत चालाक था। ही बात कहूूँ कक यह दोनों बाि बेटा हमारे ाथ दकु मनी ही रखते रहे । एक दफा पिता जी रतन स हिं के घर चले गए, उ
वक्त तक रतन स हिं के घर तीन िोतीआिं थीिं। कुछ दे र बाद पिता जी आ गए। बाद
में रतन स हिं के बेटे चरन स हिं ने पिता जी िर दोर् थोंि ददया कक उ की बुक चोरी हो गई और
की िोस्ट ऑकफ
ाधू स हिं (मेरे पिता जी) ही हमारे घर आये थे। पिता जी अगर
ी आई डी में होते तो बहुत कामयाब होते। पिता जी को मालूम था कक चरन स हिं को िै ों की जरुरत है और उ ने िोस्ट ऑकफ े िै े तनकलवाने थे। इ सलए पिता जी हर घडी चरन स हिं का िीछा करते। एक ददन चरन स हिं िोस्ट ऑकफ तरफ
े पिता जी आ रहे थे। चरन स हिं ने गमी की वजह
था। पिता जी को दे ख कर उ मझ गए। जब आमने ककया िोस्ट ऑकफ
र के ऊिर तौसलया रखा हुआ ने तौसलया कुछ जेब के ऊिर कर ददया। पिता जी झट े
ामने दोनों समले तो बातें करने लगे। कफर पिता जी ने िुछा कक,”
की बक ु समली या नहीिं?” चरन स हिं ने कहा,” ब जगह ढूूँढी लेककन िता
नहीिं कहाूँ चले गई “. पिता जी ने एक बक ु उ
की जेब में
े
की तरफ जा रहा था। द ु री
ैकिंड में एक हाथ
े तौसलया उठा कर द ु रे हाथ
े तनकाल ली और बोले “यह ककया है ?”. चरन स हिं के िा
े
कोई जवाब
नहीिं था। इ
बात
े चरन स हिं की बहुत बेइजती हुई, न्गज
भला बुरा बोला।
न्गज
ने भी
ुना चरन स हिं को
एक ददन मैं और पिता जी बाइस कलों िर मेरे नानके गाूँव डीिंगरीआिं को जा रहे थे। डीिंगरीआिं आदम िुर के नजदीक है । आदम िुर
े िहले रे लवे लाइन आती है । रे लवे लाइन को िार
करने के बाद पिता जी मुझे कहने लगे,”जरा ठहर जा “. द ु री तरफ था। जब वोह बजग ु ा नजदीक आया तो पिता जी ने उ बजग ु ा ने भी शायद िहचान सलया था और
को बोला,”
े एक बजुगा आ रहा
त स री अकाल जी “.
त स री अकाल बोला। कफर बातें होने लगी और
मेरी तरफ इशारा कर के पिता जी बोले ” यह मेरा बेटा है “. बजग ु ा नें मेरी तरफ दे खा, उ की आूँखों में नमी ददखाई दी और बोला “जीते रहो बेटा, कफर धीरे में नहीिं सलखा था “. मझ ु े तो कुछ
े बोला,यह हमारे भाग्य
मझ में नहीिं आया और कुछ दे र बाद हम चल िडे।
आदम िर िौहिं च कर पिता जी एक हलवाई की दक ू ान की ओर चल िडे और कहने लगे “चल चाह िीते हैं”।
कुस ओ ा िं िर बैठते ही पिता जी बोले,” यह बजुगा मेरा िहला िता नहीिं है तेरी माूँ
ुर था”। गुरमेल ! “तुम को
े शादी होने के िहले मेरी दो शाददयािं िहले भी हो चक् ु की थीिं। तुम
है रान होंगे कक क्यों?, तो
ुन, ” तेरे दादा और मैंने न्गजिंदगी की कठोरता को बहुत झेला है । यों तो हमारा घर गाूँव में ही होता था लेककन हम ने एक छोटा ा घर अिने खेतों में भी बनाया हुआ था,घर में मैं, तेरे दादा जी और तेरी दादी जी न्गज को तुम ने नहीिं दे खा ब तीनों ही थे। मैं उ वक्त िािंच शी ाल का ही हूूँगा कक तेरी दादी को एक ददन इतना बुखार हुआ कक दो ददन बाद वोह मुझे और तेरे दादा जी को छोड कर इ दतु नआ े रुख त हो गई। मैं बहुत रोया। शमशान घाट कुछ ही दरू ी िर था, लकडीआिं जल रही थी और मैं दे ख रहा था, शाम हो गई थी और तेरा दादा मुझे अकेले खेतों में छोड कर कक ी काम के सलए गाूँव को चले गगया था। तेरे दादा जी के जाने के बाद मैं अकेला रो रहा था। उ
आग न्गज
में मेरी माूँ जल रही थी को दे ख दे ख कर बहुत रो रहा था। तेरे दादा जी हालािंकक जल्दी ही आ गए लेककन वोह ीन मेरी आूँखों े कभी दरू नहीिं हुआ। तेरे दादा जी ही रोटी बनाते और किडे धोते।
तेरे दादा जी की दरू शादी चौदािं ििंद्ािं और घर को
े ररकतेदार की बहन बनती न्गज
ाल की उम्र में ही एक लडकी
को तुम भी जानते हो,उ
ने मेरी
े करवा दी क्योंकक घर में बहुत कदठनाई थी िं ालने वाला कोई नहीिं था लेककन वोह पवचारी दो ाल बाद ही एक बीमारी े भ
चल व ी। कफर दब ु ारा मेरी शादी इ
बजग ु ा की लडकी
े हो गई। न्गजिंदगी कुछ आ ान हो
गई थी लेककन वोह पवचारी भी एक रोग के कारण दतु नआ को छोड गई। इ रु ने बहुत जोर ददया कक मेरी शादी इ
की द ु री लडकी
बजग ु ा यानी मेरे
े हो जाए लेककन मैं नहीिं
माना। एक हमारा ररकतेदार अफ्रीका में रहता था। वह एक ददन आया और तेरे दादा जी बोला कक क्यों ना मैं अफ्रीका उन के
ाथ चलूँ ।ू तेरे दादा जी ने हाूँ कर दी और कुछ ही
महीनों में मेरे िा िोटा बन गगया। तेरे दादा जी को अकेला छोड कर केवल में मैं अफ्रीका चले गगया। तीन शादी हो गई। ब गगया और हो
ाल बाद जब मैं वापि
त्रा
इिंडडया आया तो तेरी मािं
ाल की उम्र े मेरी
यह ही है मेरी कहानी और इ ी सलए यह बजुगा तुझे दे ख कर उदा
कता है इ
े
हो
के मन में खखयाल हो कक ककतना अच्छा होता कक उन की बेटी
न्गजिंदा होती और वोह बजग ु ा तझ ु े दोहते के रूि में दे खता”. इ
घटना के बाद पिता जी के
ाथ नजदीकी कुछ और बड गई थी। जब मैं द वीिं क्ला
में
था तो पिता जी ने मेरी माूँ को अिने िा
अफ्रीका बल ु ा सलया। माूँ की यह चाहत बहुत दे र े थी कक वोह अफ्रीका चली जाए,इ ी सलए उ ने मनत मानी हुई थी कक अगर उ का
काम अफ्रीका जाने का हो जाए तो वोह तल्हन गरु दआ ु रे िािंच रूिए चढ़ाएगी। अफ्रीका जाने के बाद माूँ ने मुझे बहुत दफा सलखा था कक उ की मनत के िािंच रूिए मैं तल्हन चढ़ा आऊूँ। जब हमारे मैदट्रक के एग्जाम हो गए तो कुछ दे र बाद मैदट्रक के ररजल्ट दे खने हम रामगढ़ीआ स्कूल फगवारे चले गए। मेरी फस्टा डवीजन थी,जीत और बहादर की भजन की थडा डवीजन आई।
ारे िा
हो गए थे और हम ने उ ी वक्त स्कूल
तलहन जाने का प्रोग्राम बना सलया। मैंने
ैकिंड और
े ही
ीधे
ोचा कक माूँ की मनत के िािंच रूिए भी चढ़ा
आऊिंगा। जब हम तल्हन गुरदआ ु रे िुहिंचे तो काफी लोग वहािं बक्ष ृ ों की छाूँव के नीचे बैठे थे। जोत वाले कमरे में एक गगयानी जी हर कक ी
े उन की मनत की चीजें ले कर गुरबानी के
शलोक िड रहा था। मैं ने भी िािंच रूिए गगयानी जी को दे ददए। गगयानी जी ने शलोक िडके मुझे िर ाद दे ददया। जब मैं वापि
आ कर दोस्तों के
ाथ बैठ गगया तो कुछ गगयानी आपि
में लडने झगडने
लगे। कुछ लोग उठ कर उन लोगों को झगडे का कारण िूछ रहे थे तो एक गगयानी ने
बताया कक एक गगयानी ने बहुत े लड्डू अिने एक ररकतेदार को दे ददए थे। जब उ े िुछा गगया तो वोह आगे बोला ” मैं दे कता हूूँ क्योंकक मेरी चौथी ढे री (दहस् ेदारी) बनती है ”. इ बात िर लोग बातें करने लगे कक यहािं रह कर भी यह लोग इतनी नीची ोच रखते थे. मेरे
भी दोस्त मुझे कहने लगे कक मैं अिने िािंच रूिए वापि
इन िािंच रूिए की कफल्म दे खें।
लूँ ू और फगवारे जा के
हम
भी उठ खडे हुए और एक और जगह को जाने के सलए तैयार हो गए न्गज के बारे में हम ने न ु रखा था कक एक डेरा था न्गज िर एक स हिं जी को हवा आती थी और वोह कोई न्गजन भत ू हो, कक ी की कोई भी गज की दरू ी िर ही था.
मस्य हो बता दे ता था। उ
स हिं का डेरा चार िािंच
चलता…
ौ
मेरी कहानी – 35 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 18, 2015 तल्हन गुरदआ ु रे
े बादहर तनकल कर हम उ
डेरे की ओर जाने लगे यहािं एक स हिं जी
लोगों की मुन्गककलें हल ककया करता था। जब हम वहािं िुहिंचे तो काफी औरतें और मदा बक्ष ृ ों की छाूँव के नीचे बैठे थे और बाबा जी का इिंतजार कर रहे थे। मैंने कक कुछ लोग िुछािं दे ते थे यानी लोगों के
ुना तो बहुत दफा था वालों के जवाब भूतों चड ै ों े िूछ कर दे ते थे ु ल
लेककन कभी दे खा नहीिं था। ऐ ा माना जाता था कक इन लोगों के वर् में भूत होते हैं। स खों में ऐ े काम वन्गजात हैं लेककन मुझे यह कभी
मझ नहीिं आई कक यह कै े हो रहा था। यहािं
लोग बैठे थे वहािं एक छोटी
ी ईंटों की एक जगह बनी हुई थी न्गज के दोनों तरफ ददए रखने के सलए जगह बनी हुई थी और घी के ददए जल रहे थे। यहािं तक मझ ु े याद है इन लोगों में एक भी मदा या औरत िडा सलखा नहीिं था स वाए एक मास्टर स्वणा स हिं के जो हमारे गाूँव का था और प्लाही गाूँव में है ड मास्टर लगा हुआ था। यहािं लोग बैठे थे उ के आखखर में कक ी बक्ष ृ की लकडी का एक बहुत बडा टुकडा िडा हुआ था। हम ब दोस्त उ लकडी िर बैठ गए। कुछ दे र बाद बाबा जी आ गए और
ब लोग हाथ जोड कर बाबा जी
की बातें
न ु ने के सलए तैयार हो गए। चढ़ावे के तौर िर लोगों ने बहुत ी चीजें उ ी जगह के िा रखी हुई थीिं जो ज़्यादा तर कुछ िै ों े लेकर दध ू की बाल्टीआिं,
फ्रूट और घर के बने खादी के किडे थे। बाबा जी ने आ कर िहले के ऊिर अिना हाथ फेरा और कुछ दे र बाद उ
छोटी
के ऊिर अिना हाथ रखा और मुिंह में कुछ िडने लगे।
छोटी
न्गब्जआिं,
ब का चढ़ावा दे खा, उन
ी जगह न्गज
को मटी कहते थे उ
भी लोग गधयान
े बाबा जी की
ओर दे खने लगे।
बाबा जी एक दम बोलने लगे,जै े कक ी
े बातें कर रहे हों, ” ओए तू कौन हैं, मैंने तो तुझे
बुलाया नहीिं था, खामखाह दािंत बादहर ना तनकाल नहीिं तो ऐ ी
जा दिं ग ू ा कक तुम को नानी
इधर हट, धनगुरु वढ़भाग स हिं जी तेरी ओट है , ओ बाबा जी,इ
वक्त आि ने इतना कष्ट
याद आ जायेगी, ओए तू िीछे कौन है न्गज
के बडे बडे दािंत हैं, ओए तू बडी बडी जटों वाला,
क्यों उठाया? मैं खद ु ही चल कर आ जाता। कफर एक दम जोर जोर
े बाबा जी गचलाने
लगे, ओ कोई माई न्गज
का आदमी बादहर गगया हुआ है अभी तक वापि नहीिं आया,आ ी औरतें बाबा जी के ामने आ गईं। ओ तुम ारी िीछे हट जाओ,स फा
जाए ओए। बहुत िीली च् ै ु नी वाली आगे आ जाए। वोह औरत आगे आ गई। बाबा जी कक ी भूत चड ु ल बातें करने लगे, “ओए
कफर बाबा जी औरत को
े
ारी बात बता, हाूँ ककया कहा,जरा ऊिंचा बोल,अच्छा तो यह बात है ”। म्बोधन करके बोले, ओ माई ! तेरे खविंद ने कोई और औरत की
हुई है , काम कुछ मुन्गककल है लेककन तू कफक्र ना कर। तू यहािं की द चौकीआिं भर यानी द दफा यहािं आ और अिने घर में चार ईंटें रख कर घी का ददया जलाया कर और दध ू में िानी
डाल कर रोज
ारे घर में इ
दध ू समले िानी का तछडका ककया कर। अब जाह,वढ़भाग स हिं
भला करे गा। कफर बाबा जी ऊिंची आवाज में बोल उठे , ओए कोई औरत न्गज
के घर में चोरी
हो गई,आ जाए !. इ उ
तरह यह स लस ला चलने लगा। यहािं मैं यह भी बताना चाहूिंगा कक जमाने में जो आदमी बबदे ों में जाते थे आठ आठ द द ाल घर को वापि नहीिं
आते थे,कारण यह ही था, न्गजतने हो भी खरीदी जा
के। पवचारी औरतें अिने िततओिं की इिंतजार में बूढ़ी हो जाती थी लोगों ने तो
यहािं टूटी फूटी गोररओिं जा कर अिना
के िै े कमाए जाएूँ और अच्छा घर बना कर जमीन
े शादी भी कर ली थी। इ ी सलए पवचारी अनिढ़ औरतें ऐ े ढे रों िर
मय और धन बबााद करवाती थी।
यहाूँ हम दोस्त उ
लकडी के ऊिर बैठे थे ,वहािं एक आदमी हमारे गाूँव का भी बैठा था जो
बहुत शरीफ इिं ान था लेककन उ का चेहरा ऐ ा था जै े बहुत बडा डाकू हो, उ की किंु डसलओिं वाली बडी बडी मिंछ ू ें थीिं और उ की आूँखें ख ु ा थीिं। उ की िगडी भी बहुत ही ीधी ाधी थी। उ का नाम था मैहूँघा स हिं । उ को दे ख कर बाबा जी ने मझा होगा कक इ
आदमी ने शराब िी हुई होगी,इ सलए लोगों को िभाावत करने के सलए एक नाटक ककया। बाबा जी अिने मुिंह और गालों िर चि ु ेड मारने लगे और अिने आि े बोलने लगे “हाए ओए,मर गए ओए,बाबा जी मुझ
े क्या क ूर हो गया?” कफर एक दम चीख उठे , ओए
कोई िािी यहािं शराब िी कर तो नहीिं आया? हाए ओए,ओ िापिया यहािं लोग मैहूँघा स हिं की ओर दे खने लगे और उ
को वहािं
े चला जाह।
भी
े जाने के सलए कहने लगे। वोह कह
रहा था कक उ
ने कोई शराब बगैरा नहीिं िी हुई थी लेककन लोगों ने जबरदस्ती उ को वहािं े उठा कर भेज ददया। मैहूँघा स हिं चले गगया और एक आदमी और था जो हमारे नजदीक
ही बैठा था। वोह बहुत तगडा और उ बक्ष ृ के ाथ बाूँधा हुआ था। इ शख् फगवारे के िुराने िोस्ट ऑकफ
का रिं ग बहुत काला था और उ ने अिना घोडा एक को हम ने बहुत दफा दे खा हुआ था, यह शख्
जो बिंगा रोड िर होता था वहािं
े बराम को जो छोटा
ा
क़स्बा था तािंगा चलाया करता था और हम इ चलो एक
को अक् र आवाजें दे ते हुए दे खते रहते थे,” वारी बराम ओ.… बराम बराम बराम ओ.…। “
गमी बहुत थी और डेरे में बैठे भी लोगों को शक़्कक़र का शरबत पिलाया गगया, गमी में भी के चेहरे मुरझाये हुए थे। वोह टाूँगे वाला काला शख् ऊिंची ऊिंची कुछ बोलने लगा। वोह आ आ ऊ ऊ चीख रहा था। उ हिं ी उ
का करूि चेहरा दे ख कर हम
भी लडके हिं ने लगे। हमारी
को दे ख कर बिंद नहीिं हो रही थी, तभी बाबा जी की धमा ित्नी वहािं आ गई और
हम को डािंटने लगी और कहने लगी,” इन लडकों को अब हिं ी आ रही है , अगर इन को कुछ हो गगया तो इन के माूँ बाि यहािं आ कर हमारे िैरों िर अिने माथे रगडेंगे, उ आदमी को कोई भत ू
ता रहा है और इन को हिं ी
झ ू रही है ”. डेरे में बैठी
पवचारे
भी औरतें
हमारी तरफ दे खने लगी और हम को कहने लगीिं ” ए लडको चि ु कर जाओ, कोई मु ीबत
मोल ना ले लेना “. हम चि ु कर गए। कुछ दे र बाद वोह काला शख्
चि ु हो गगया। मैंने उ
के किंधे िर हाथ रखा और बोला ” ककया हुआ था तुझ,े क्यों गचल्ला रहा था?”. वोह बोला, ” ओए लडको मुझे अफीम की लर्त् लगी है , रोज अफीम लेता हूूँ,आज मेरी अफीम घर में रह गई,मेरा नशा टूट गगया था, जब मेरा नशा टूटता है तो अफीम के बगैर मेरी हालत बहुत बुरी होती है , मैं तो यहािं अिने घोडे को ले कर आया था क्योंकक यह कुछ दरू चल कर
ीधा खडा
हो जाता है , कई दफा टाूँगे में बैठी स्वारीओिं को भी चोट लगी, मैं तो यहािं यह िूछने के सलए आया था कक इ
को कोई भत ै तो ददखाई नहीिं दे ती?” हम ू चड ु ल
इ ी तरह चार िािंच वज गए होंगे कक बाबा जी कुछ नॉमाल लगे कक बाबा जी की हवा अब दरू हो गई थी। अब आम लोगों
े बातें करने लगे। मास्टर स्वणा स हिं और उ
ब है रान हो गए।
े हो गए और लोग बातें करने ाधारण बातें होने लगी,बाबा जी
की ित्नी आगे आ गए और बाबा जी
को माथा टे क कर रोने लगे और कहने लगे,” हमारे घर में कब बच्चा खेलेगा? बाबा जी हम बहुत दख ु ी है ,भगवान का ददया ब कुछ है लेककन कोई बच्चा नहीिं है , आि जाणी जान हो “। बाबा जी कुछ दे र ोचते रहे और कफर एक बडा ा आम उठा कर स्वणा स हिं की ित्नी की झोली में डाल ददया।
ब लोग बातें करने लगे कक यह औरत ककतनी भाग्यशाली थी कक
बाबा जी ने उन की झोली में आम की शकल में बेटे की दात दे दी थी। कफर कुछ औरतें
बाबा जी को न्गजद करने लगी कक बाबा जी उन के घर में चरण िाएिं लेककन बाबा जी कह रहे थे कक वोह कक ी के भी घर नहीिं जाते लेककन औरतें कह रहीिं, “बाबा जी आि को आना ही िडेगा “. बाबा जी ब
हिं
ददए। इ
के बाद धीरे धीरे लोग उठ कर जाने लगे और हम ने
भी अिने बाइस कल उठाये और गाूँव को चल ददए। जब एक बार मेरे पिता जी अफ्रीका पिता जी
े आये तो यह
ारी कहानी मैंने पिता जी को
ुनाई।
ुबह शाम िाठ करने की वजाए कक ी वहम व ् भरम को नहीिं मानते थे। इन
ब
बातों को वोह नफरत करते थे। कुछ ही ददनों बाद मेरी भाबी ने मुझे बताया कक वोह बाबा आज हमारे गाूँव में आया हुआ है और इ वक्त हमारी गली में ही रामी के घर बैठा था. मैंने पिता जी को बताया। पिता जी एक दम उठ गए और मुझ को बोले,”चल रामी के घर
चलते हैं “. जब हम रामी के घर जा िुहिंचे तो बाबा जी एक चार िाई िर बैठे थे और ििंदरा बी
औरतें वहािं बैठी थी। पिता जी ने जा कर बाबा जी को
तरफ हम दोनों बैठ गए।
त स री अकाल बोला और एक
भी औरतें चि ु चि ु बैठी थीिं। एक औरत बाबा जी को ििंखा कर
रही थी। कफर अचानक बाबा जी झूमने लगे और अिने भूतों प्रेतों जी क्योंकक बबदे
े आये थे और अफ्रीका
े बातें करने लगे। पिता
े आये स हिं लोगों की िगडी एक ख़ा
ढिं ग
े
बाूँधी हुई होती थी,इ सलए बादहर े आये लोगों को गाूँव के लोग जल्दी िहचान जाते थे कक यह शख् बादहर े आये हुआ था। बाबा जी अिने भत ू ों े बातें करते हुए बोले,” कुछ नहीिं, यह रदार जी बादहर े आये हुए हैं, इन के मन में कोई प्रकन है “. कफर बाबा जी ने पिता
जी की तरफ दे ख कर पिता जी को कहा,”
रदार जी तुम्हारा कोई प्रकन है ?”. पिता जी
बोले,” नहीिं प्रकन तो कोई नहीिं, स फा आि के दशान ही करने थे ” और उठ कर जाने के सलए तैयार हो गए,मैं भी उठ खडा हुआ। जब बादहर आये तो पिता जी ने जोर हरामजादा िाखिंडी मक्कार “. और हम घर आ गए।
े गाली दी,” ाला
यहािं यह भी बता दूँ ू कक मास्टर स्वणा स हिं के घर कभी बच्चा नहीिं हुआ, बहुत वर्ों बाद उ्होंने एक लडकी गोद ले ली थी। चलता…
मेरी कहानी – 36 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 22, 2015
मेरे दादा जी बहुत ख्त समहनती थे। हो कता है कक उ्होंने बहुत मु ीबतें दे खीिं थी, इ सलए. यह भी हो कता है की ारी िीढ़ी ही मुन्गककल दौर े गुजर रही हो। कभी कभी
ोचता हूूँ कक आजादी के वक्त ारे भारत की आबादी ३६ करोड थी, यह मैंने िडा भी था और मास्टरों े न ु ा भी था। अब १२५ करोड पिछले ६८ ालों में कै े हो गई। तो एक ही जवाब मेरी
मझ में आता है । वोह है डाक्टरी इलाज। कक ी फैलने वाली बीमारी का खदशा
हो तो हमारी हकूमत लोगों को बीमारी
े बचने के सलए इिंजैक्शन दे ने लगती है । िोसलयो का
तो नामोतनशान ही उड गगया है । गरीबी के कारण लोग मरते भी बहुत हैं कफर भी बहुत फरक िडा है । प्लेग की बातें बहुत न ु ता रहता था कक प्लेग ऐ ी िडी थी कक गाूँवों के गाूँव खाली हो गए थे। एक को शमशान भसू म को लेजाते थे और द ू रा बीमार हो जाता था। लोग गाूँव
छोड कर खेतों में रहने लगे थे। यह प्लेग कब हुई मझ ु े नहीिं िता लेककन एक बात दादा जी के मिंह े बहुत दफा न ु ु ी थी कक “हमारे घर की औरतें ब भगवान को पियारी हो गई थीिं”। उ
वक्त मैं तो बहुत छोटा था लेककन बहुत दे र बाद कभी कभी मेरे ददमाग में यह आता था कक हमारे घर के लोगों को ककया हुआ होगा जो दादा जी और पिता जी अकेले ही थे। ताऊ अिने नानके गाूँव में ही रहते थे। कुछ भी हो जरूर यही बात होगी उ बहुत लगती होंगी और इलाज कोई ख़ा दस्य ही थे। पिता जी की शादी के बाद मेरी माूँ जो अब नहीिं हैं और मुझ
मय बीमाररयािं
नहीिं होता होगा,इ ी सलए हमारे घर में गगनती के
े ही हमारा िररवार आगे बडा। मेरे बडे भाई अजीत स हिं
े बडी बहन
ुरजीत कौर, इनका आपि
में बहुत पियार था। मुझे कुछ कुछ याद है कक मेरी बहन की शादी बहुत छोटी उम्र में ही हो गई थी लेककन बहन, ु राल को जब गई थी तो काफी बडी उम्र की थी और मेरे बहनोई
और नैरोबी
े आ कर बहन को
नहीिं थी इ
सलए पिता जी उ
ाहब नैरोबी में रहते थे
ाथ ले गए थे। बडे भाई भी क्योंकक िडने में उनकी रूगच
को छोटी उम्र में ही अिने
ाथ अफ्रीका ले गए थे। छोटे
भाई का जनम आजादी के कुछ महीने बाद हुआ था और अब अिने बच्चों के िा ऑस्ट्रे सलआ रहता है । यह तो है छोटा ा इतहा लेककन मैं अिनी कहानी को दादा जी के ाथ ही आगे ले जाऊूँगा। दादा जी तो बबलकुल अनिढ़ ही थे और थोह्डी
ी ििंजाबी सलख लेते थे लेककन यह ऐ ी
होती थी कक सलखे मू ा िडे खद ु ा। जब वोह शहर को जाते थे तो जाने
ौदा लेने के सलए अिने बाइस कल िे
े िहले माूँ को िूछते कक घर के राशन के सलए ककया ककया लाना था। माूँ
राशन की एक एक चीज सलखाती और दादा जी सलखते जाते। जब वोह सलखते तो अजीब
ा
सलखते और हम हिं ने लगते। हमारा सलखा उन को
मझ नहीिं आता था। जब उन को चाह
सलखना होता था तो वोह चाहा सलखते, जब म ाला सलखना होता तो मै ला सलखते,जब दाल सलखना होता तो दाले सलखते। हम बहुत हूँ ते। दरअ ल वोह इ तरह सलखते जै े गुरबानी सलखी होती है । दादा जी ने ारे घर िे रूल ककया था और ब ने उ का रूल माना शायद इ
सलए कक वोह खद ु बहुत काम करते थे और एक अच्छे इिं ान थे। वोह राजगगरी और कारिें टर का काम ककया करते थे, गाूँव के बहुत े मकान उ्होंने बनाये थे, यह मैंने उन के मिंह ु
े
न ु ा था। मेरे होश
िंभालने
े िहले उ्होंने लोगों का काम करना छोड ददया था और
िशओ ु िं की ही दे ख भाल करने लगे थे। खेती की जमीन द ू रे कक ानों को दे दी थी न्गज
में
े आधी फ ल की उिज हमारी होती और आधी खेती करने वाले कक ान की होती। दादा जी
को उन कक ानों िर तस् ली नहीिं थी, उन के दह ाब थे। इ ी सलए उ्होंने कफर काम करना िडा था।
े वोह लोग खेतों को बबााद कर रहे
े खेती करनी शरू ु कर दी थी और इ ी सलए मझ ु े भी खेती का
दादा जी को मकान बनाना और दरवाजे खखडककआिं बनाते उ
वक्त दे खा जब हम ने नया
मकान बनाना था. न्गज
को हवेली बोलते थे। यह वोह
ही जगह थी न्गज
जगह में हम िशु बािंधते थे और इ
जगह िाककस्तान बनने के वक्त मोहल्ले के लोग इकठे हो जाते थे। पिता
जी के दोस्त धमा स हिं और दादा जी रोज काम करते। दीवारें बनाते िलस्तर करते और छतें िाते। इ ी बीच उ्होंने फगवारे
े इमारती लकडी खरीद कर दरवाजे खखडककआिं हवेली में ही
बनाने शुरू कर ददए थे। दादा जी के िा
कािेंटरी के टूल्ज इतने थे कक दो बडी बडी
अल्मारीआिं भरी हुईं थी। मुझे कभी कभी है रानी होती है कक जब वोह लकडी िर तनशाूँन लगाते थे तो एक धागे े लगाते थे जो काली स्याही में सभगोया हुआ होता था (यह धागा
बहुत लम्बा होता था) और समनती एक ूत दो त ू तीन त ू बोल कर करते थे नाकक इिंच फुटों में । भी दरवाजे खखडककआिं और अल्मारीआिं इतनी अच्छी बनी थीिं कक मझ ु े उन की कारागरी िर है रानी होती है । न्गज मकान बनने के बाद हम इ
वक्त यह मकान बना उ
वक्त मैं मैदट्रक में िडता था।
नए घर में आ गए थे और दादा जी ने कुछ ििंद्ािं बी
गज की
दरू ी िर ही एक नई जगह िशुओिं के सलए खरीद ली जो काफी खुली जगह थी। नए मकान में
तो दो गु लखाने बनाये गए थे न्गजन में िानी के नलके भी लगाए गए थे एक ऊिर और एक नीचे लेककन नई खरीदी जगह में िशुओिं के सलए िानी हमें बाल्टीआिं भर भर के इ े ही ले जाना िडता था जो कुछ मुन्गककल था। इ
भी नलका लगवाने का मन बना सलया।
नए घर
सलए दादा जी ने िशुओिं वाले मकान में
एक बात मैं कभी भी भल ू नहीिं खरीदने गए। उ ी दक ू ान
का हूूँ, दादा जी जालिंधर शहर को नलके का ामान े उ्होंने नलका कफट करने और ारे िाइि जालिंधर े गाूँव तक
ले आने का ठे का दे ददया। न्गज
ददन िाइि आने थे उ ी ददन काम शरू ु हो जाना था।
ब ु ह
ही एक आदमी जो ब्राह्मण लगता था, अिने घोडी वाले रे हडे िर नलके का आया। कुछ दे र बाद ही एक चमाकार लडका बाइस कल िर आ गगया, न्गज था।
ारा ददन वोह लडका काम करता रहा और शाम तक नलके
ारा
ामान ले
का नाम मोहन
े िानी आने लगा। अब
तक काफी रात हो चक् ु की थी लेककन काम खत्म हो गगया। कुछ वक्त के सलए मैं अिने दोस्त के घर चले गगया था। जब मैं वापि अूँधेरे में अिने शहर को वापि
आया तो मेरी भाबी ने बताया कक मोहन इतने
चले गगया था और वोह रे हडे वाला एक कमरे में
ो गगया
था। मझ ु े मालम ू हुआ कक दादा जी ने उ लडके को कह ददया था कक ोने के सलए वोह चमाकारों की बस्ती में चला जाए. उ मय यह ही चलता था कक चमाकार लोग अिने लोगों के कक ी भी घर में चले जाएिं, घर में चमाकार को कोई नहीिं इ
ोने को जगह समल जाती थी यानी ऊिंची जात वाला अिने ल ु ाता था। यह एक रवायत ही थी और नफरत की कोई बात
में नहीिं थी। दादा जी रोटी खा कर िशओ ु िं वाली जगह में
ोने के सलए चले गए क्योंकक
िशओ ु िं की भी रखवाली करनी िडती थी। जब मझ ु े यह िता लगा तो मझ ु े बहुत दाःु ख हुआ। मोहन एक मैदट्रक िा
लडका था और
ारा ददन मुझ
े बातें करता रहा था। मैंने एकदम
अिना बाइस कल उठाया और अूँधेरे में मोहन को वापि
लाने के सलए चल िडा। मेरी
बाइस कल को डाइनैमों लगी हुई थी न्गज की लाइट े रास्ता ाफ ददखाई दे ता था, वै े भी इ रास्ते िर बबन लाइट के भी जा कता था क्योंकक मैं तो इ रास्ते का वाक़फ ही था। कोई एक मील जा कर मैंने बाइस कल आगे जाता दे ख कर घिंटी बजाई और बोला,” मोहन है ?”. उ
ने कहा” हाूँ,मैं ही हूूँ”। मैंने उ
कहा। मोहन हिं तो बचिन
को िहले
िडा और बोला,” मुझे तो इ
ॉरी कहा और कफर घर वाि
े कोई फरक नहीिं है क्योंकक इन बातों का
े ही आदद हूूँ, मुझे दादा जी िर कोई नाराजगी नहीिं है “. मैंने मोहन को कहा
कक ” अगर तू वापि
नहीिं आया तो मुझे न्गजिंदगी भर यह भूलेगा नहीिं “. मोहन वापि
को चल िडा। मोहन की चारिाई भी उ
कमरे में लगा दी यहािं रे हडे वाला
रे हडे वाला स गरे ट िी रहा था। उ
ामने मोहन मुझे
इ
बात
े बहुत
कून समला।
के
दादा जी को मैंने कभी रोता नहीिं दे खा था लेककन न्गज जी उ
आने को
ददन रो िडे। इिंग्लैण्ड में उ
ाफ
ुथरा और
गाूँव
ोया हुआ था। भ्य लगा। मुझे
ददन मैंने इिंग्लैण्ड को आना था दादा
वक्त हमारे
ाथ पवतकरा बहुत ककया जाता था, िगडी वाले को दे ख कर गोरे हूँ ते और नफरत बहुत करते थे, इ सलए बहुत स ख अिने र के वाल कटवा दे ते थे, ऐ ा मझ ु े भी करना िडा लेककन मैं उ ददन बहुत रोया। भी मुझे जोर दे रहे थे कक मैं वाल कटवा दूँ ू लेककन मैं मानता नहीिं था। आखखर में मुझे वाल कटवाने ही
िडे। जब १९६५ में मैं इिंडडया आया तो दादा जी मझ ु े दे ख कर खश ु होने की वजाए गस् ु े में उबल िडे और बोले, “भाड में जाए इिंग्लैण्ड, अगर अिना धमा ही नहीिं रहा तो, हमें यह िै े नहीिं चादहए “. मझ ु े इ
बात का बहुत दाःु ख हुआ और कुछ वर्ों बाद मैं ने कफर
े िगडी
बाूँध ली। १९६७ में मेरी शादी के वक्त दादा जी बहुत खश ु थे। मेरी ित्नी िहले िहल दादा जी े घुिंगट तनकालती थी। एक ददन दादा जी ने ित्नी को कह ही ददया,” कुडे ! ककयों यह घुिंगट कढदी हैं, तू तािं नमे जमाने दी आिं ”. इ
के बाद मेरी ित्नी ने घुिंगट उठा ददया और
कफर कभी नहीिं तनकाला। कफर तो दादा जी मेरी ित्नी को तूत की तछदटओिं
े टोकरे बनाने
स खाते।
न्गजतनी दे र हम गाूँव में रहे वोह बहुत खश ु रहे और वापि आने िर ख़श ु ी ख़श ु ी हमें पवदा ककया। इ के बाद हमारे दो बेटीआिं और एक बेटा हो गगया था। जब अचानक मेरे पिता जी इ
दतु नआ को छोड गए तो हम बच्चों को लेकर गाूँव गए। क्योंकक काम मैंने छोड ददया
था,इ
सलए वाि
आने की कोई जल्दी नहीिं थी। हम ६ महीने गाूँव में रहे और यह ६ महीने
दादा जी इतने खश ु रहे कक बताना मन्गु ककल था। यह ६ महीने इतने जल्दी बीत गए कक िता ही नहीिं चला। हमारी बेदटओिं के
ाथ वोह बहुत खश ु रहते थे। उन को अब ऊिंचा न ु ाई दे ता था और घर में अिनी छडी ले कर इधर उधर जाते रहते थे। न्गज ददन ुबह को हम ने वाि
आना था, रात को ही हम ने
को हम ने इिंग्लैण्ड को वाि
ोचा कक दादा जी को अब बता दे ना चादहए कक
ुबह
जाना था लेककन उन को बताना मुन्गककल लगता था। आखखर में
मैंने अिनी बडी लडकी पििंकी को कहा कक वोह बताए। पििंकी ने कहा” दादा जी ! कल को हम ने इिंग्लैण्ड चले जाना है “. दादा जी को
ुना नहीिं। मैंने कहा,” पििंकी जोर
े बोल “. पििंकी ने
कफर बहुत जोर े कहा,” दादा जी !कल को हम ने इिंग्लैण्ड चले जाना है ” हैं?” न ु ते ही दादा जी रो िडे और दे र तक चि ु रहे . रात को रोटी खाते मय हम दादा जी के ाथ हूँ ते रहे । इ
के बाद हम गाूँव आते जाते रहे । अब तो
डक बन गई थी और टै म्िू ब ें टाूँगे चलने
लगे थे। दादा जी अब बहुत बूढ़े हो चक् ु के थे कफर भी कभी कभी हम दादा जी को ब में बबठा कर फगवारे ले जाय करते थे। छोटे भाई की भी शादी हो चक् ु की थी और वोह दोनों ितत ित्नी दादा जी की
ेवा बहुत ककया करते थे। २००० में जब हम गाूँव जा कर वापि आये तो छोटे भाई का टे लीफून आया कक दादा जी रात को रोटी खा कर ोये थे लेककन जब ुबह जगाने गए तो कोई आवाज नहीिं आई। जब जा कर दे खा तो दादा जी इ
दतु नआ
े
जा चक् ु के थे। छोटे भाई ने कहा की हमें जल्दी करने की जरुरत नहीिं थी क्योंकक उ ी शाम
उ्होंने दादा जी को शमशान भूसम को ले जा अिंततम पवदाई कर दे नी थी। दे र बाद जब हम गाूँव आये तो छोटे भाई ने बताया की दादा जी के आधे वाल कफर कुछ कुछ दािंत भी दब ु ारा आने शुरू हो गए थे। दादा जी दआ ु ई नहीिं ली थी। यह बात बहुत है रानीजनक थी।
ौ
े काले हो गए थे और
े ऊिर थे और
ारी उमर कोई
कुछ भी हो जो इ जाते घर के रहती है । चलता…
दतु नआ में आया है ,उ े एक ददन जाना तो ही है लेककन कुछ लोग जाते
दस्याओिं िर एक मीठी छाि छोड जाते हैं न्गजन की याद कभी कभी आती ही
मेरी कहानी – 37 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 25, 2015
दादा जी की यादें बहुत हैं,इ ी सलए वोह हर घडी याद आते रहते हैं। उन को िशुओिं े बहुत स्नेह था। उन का गधयान हर वक्त इन गाये भैं ों की ओर ही रहता था, अगर यह कह लें कक उन की रूह उन में ही रहती थी तो अत्कथनी नहीिं होगी। जब भी बादहर िशुओिं की खरु ली में दे खते कक उ
े आते,िहले
में चारा था या नहीिं। अगर खरु ली खाली होती तो माूँ को
बोल दे ते,” तुम ने िशु भूखे मार ददए “. माूँ बोलती,” मैंने तो चारा डाला था, उ्होंने खा
सलया होगा तो मैं ककया करूूँ “. कफर दादा जी िानी की बाल्टी भर के िशुओिं के आगे रखते
तो वोह िी लेते। दादा जी कफर बोलने लगते,” िशु पिया े मार ददए “. माूँ कफर जवाब दे ती,” मैंने अभी िानी पिलाया है , अगर उ्होंने कफर िी सलया तो मैं ककया करूूँ?”. यह मीठी नोंक झोंक दादा जी और माूँ के बीच हमेशा ही रहती थी। दादा जी का गस् ु ा ऐ ा होता था कक
एक दम िारा चढ़ जाता और एक समनट के बाद नीचे आ जाता। माूँ ने भी हमेशा दादा जी को ताजी रोटी दी न्गज
में माखन दही लस् ी जरूर होती और कभी कभी शककर घी होता।
कफर भी दादा जी की एक आदत थी, बादहर
े आते ही माूँ को िछ ू ते,” आज रोटी के
ाथ
ककया बना है ?”. अगर माूँ कहती ” कद्द ू ” तो एक दम बोल दे ते,” बना सलया वाई का घर “. अगर वोह कहती ” करे ले ” तो दादा जी बोल दे ते,” बना सलया गमी का घर “. माूँ को दादा जी की इ
आदत का िता था और कभी जवाब नहीिं दे ती थी। यह नोंक झोंक आखखर तक
रही लेककन दादा जी ने भी पिता जी की गैर मौजूदगी में माूँ को कोई तकलीफ नहीिं होने दी। कहीिं जाना हो तो दादा जी आगे आगे और माूँ िीछे िीछे घुिंगट तनकाले चली जाती थी।
जब माूँ की आूँखों में तकलीफ हुई थी तो दादा जी ने बहुत कुछ ककया था, बहुत जगह वोह माूँ को ले के गए थे यहािं तक कक जब माूँ ने अफ्रीका जाना था तो िहले जालिंधर ट्रै वल ऐजेंट हरी स हिं ऐिंड
्ज के िा
ीट बुक कराने के सलए जाते थे और उन को बहुत दफा जाना े कदठन काम था ििंजाब े मुिंबई ी िोटा जाने का क्योंकक माूँ ने बाई ी
िडा था और
ब
जाना था। उ
मय लोग अफ्रीका को बाई एअर नहीिं जाते थे। माूँ कभी गाूँव
गई थी और उ
के सलए भी अफ्रीका अकेले जाना और वोह भी बाई
े बाहर नहीिं
ी,बहुत मुन्गककल था। माूँ रास्ते में रोती गई थी और सशि में चढ़ते मय दादा जी को बहुत िरे शान ककया। वोह जहाज िे चढ़ना नहीिं चाहती थी और घर वापि आना चाहती थी। कफर दादा जी ने कुछ ििंजाबी लोगों को माूँ की मदद करने के सलए कह ददया। जब दादा जी वापि
गाूँव आये तो
बहुत गुस् े में थे और बोल रहे थे,” जब तुम्हारी माूँ अफ्रीका े वाि आएगी तो िूछूिंगा ” इतना तिंग ककया उ ने !. ब इतना ही गुस् ा था और जल्दी मानय हो गए। दो हफ्ते में माूँ ककस् मू
ी िोटा िर िौहिं च गई और पिता जी ने उ ी वक्त िर्त्र डाल ददया। जब िर्त्र
गाूँव आया तो दादा जी ने भी वयस्त हो गए।
ुख का
ािं
सलया। दादा जी ख़श ु ी ख़श ु ी कफर अिने काम में
िशु िक्क्षओिं
े स्नेह अब भी लोगों में बहुत है । इ ी सलए तो कोई िक्षी खत्म होने लगें तो यह लोगों में चचाा का पवर्य बन जाता है लेककन उ वक्त भी भी लोग जानवरों े पियार रखते थे। उन को यह कोई कहता नहीिं था बन्गल्क यह न्गजिंदगी का दहस् ा ही होता था। उ वक्त तो मझ ु े यह गगयान नहीिं था लेककन अब मैं
ोचता हूूँ कक लोग ककतना खखयाल रखते ब ु ह ही र ोई में जब रोटी बनती थी तो कोई न कोई कुर्त्ा आ
थे जानवरों का। िहले तो
जाता और र ोई के बाहर बैठ जाता जै े उ मना था। रोटी िकाते िकाते माूँ उ
को िता हो कक र ोई में उ
के सलए जाना
की तरफ एक रोटी फैंक दे ती, वोह खा लेता लेककन कफर
भी वोह पिछली टािंगों िर बैठा अिने मिंह ु को ऊिर उठाये बैठा रहता। माूँ खझडक दे ती और कहती ” जाह अब,और ककतना खाएगा?”. कुर्त्ा चले जाता।
ुबह का खाना खा कर
मझ जाता और कक ी द ू रे घर की ओर
भी अिने अिने काम में लग जाते और बाद में माूँ भी
खाना खा कर कुछ रोदटओिं के छोटे छोटे टुकडे छत िर फैंक दे ती न्गज
े छत िर गचडडओिं
की चहल िहल हो जाती ,मैं भी स्कूल को चले जाता और दादा जी िशुओिं की दे ख भाल में रगमा हो जाते।
हर द ू रे ती रे ददन दादा जी भैं ों को नहलाने लगते। अच्छी तरह नहलाते और कभी कभी उन के शरीर िर तेल की मालश भी करते। कभी भी गाये भैं गचट्टा न्गज न्गज
में
को गगड कहते थे ददखाई दे ता तो दादा जी एक तेल का काहडा तैयार करते र ों का तेल
डाल कर गाये भैं
ौंफ ठीकरी नौशादर और एक दो और चीजें एक बािं
के िाइि में
के मुिंह में डाल दे ते। जब मुझे टाइम समलता तो मैं दे ख भाल करता।
े ज़्यादा प्रेम मुझे गोरी गाये के ी एक
की आूँखों में कुछ गचट्टा
ु्दर गाये थी न्गज
ाथ था। यह गाये मुझे
ब
ब
े ज़्यादा पप्रया थी,यह छोटी
ने बहुत बछे बछडीआिं िैदा ककये और आगे जा कर वोह गाये और बैल बने। यह गाये बहुत ही शािंत ुभाऊ की थी,कभी भी कक ी को मारती नहीिं थी। घर आते ही जब मैं अिने बाइस कल की घिंटी बजाता तो वोह दहल जुल करने लगती। मैं उ के मुिंह िर हाथ फेरता, उ
के
ीिंगों को
हलाता और कभी कभी उ
मेरे हाथ चाटने लगती। कई दफा तो मैं बच्चों की तरह उ कमीज उतार कर उ
के
के गले लग जाता। वोह
ाथ खेलता। मैं अिनी
के आगे बैठ जाता और वोह मेरी िीठ को अिनी जीभ
े चाटने
लगती। माूँ हिं ने लगती और कहती “ककया बच्चों की तरह करता है “. मुझे यह अच्छा लगता और बाद में नहा कर नई कमीज िहन लेता। जब इ था तो वोह बढ़ ू ी होने लगी थी। उ
गाये ने दध ू दे ना बिंद कर ददया
की टािंगों में इतनी ताकत नहीिं रही थी और मन्गु ककल
उठ िाती थी। धीरे धीरे उठना बहुत मन्गु ककल हो गगया था, मैं और दादा जी उ के नीचे े एक लठ डाल कर जोर े उ े उठाते, वोह भी जोर लगाती और उठ जाती। हमारे सलए वोह
े
ऐ ी थी जै े घर में कोई बजुगा हो। उ
े हमारा प्रेम िहले
े भी ज़्यादा बड गगया था।
ददा ओिं के ददन थे। ठिं ड बहुत ज़्यादा थी। गोरी के ऊिर मोटा किडा न्गज को झुल कहते थे ददया हुआ था। खडी खडी गोरी गगर गई और ािं खीिंच कर आने लगी। दादा जी भी िा ही थे,कहने लगे,” लगता है अिंतम
मय आ गगया है “. दे खते ही दे खते गोरी यह दतु नआ
छोड गई। मैं रोया, माूँ और दादा जी भी उदा , वातावरण ग़मगीन हो गगया था। कुछ दे र बाद चार चमाकार आये और गोरी की टािंगों को दो बडी लकडीओिं
े बाूँध कर उठा
कर ले जाने लगे। ऐ ा लग रहा था जै े घर िशु थे लेककन गोरी गाये ही ऐ ी थी न्गज मन उदा
े बजग ु ा जा रहा हो। यों तो हमारे घर में बहुत का चेहरा अभी तक याद है । बहुत ददनों तक मेरा
रहा। कफर एक ददन मैंने कक ी के घर कुर्त्ी के क्तरू े दे खे , मझ ु े बहुत पियारे लगे, यह शायद चार या िािंच थे। मैंने उन को कहा दो मझ ु े दे दें , उ्होंने मझ ु े दो दे ददए। एक गचट्टे रिं ग का था और एक काले रिं ग का। काले रिं ग के कतूरे का नाम मैंने टौम रख ददया और द ू रे का नाम जैक रख ददया। दादा जी को भी उन
े लगाव बड गगया। हर दम दादा
जी के िीछे दौडते रहते। मैं उन दोनों को दध ू को कटोररओिं में डाल कर उन के रखता। जैक इतना लालची था कक तेज तेज िी कर मोटा हो जाता और हम उ
ामने का िेट दे ख
कर हूँ ते लेककन टौम धीरे धीरे िीता और कुछ छोड भी दे ता। दोनों में बहुत अिंतर था, टौम ऐ ा था कक कोई भी घर में आ जाए, भौंकने लगता लेककन जैक कभी न भौंकता। हम जैक के मुिंह िर चि ु ेड मारते कक वोह भौंके लेककन उ
िर कोई अ र ना होता। बहुत मय िहले जब मैं बहुत छोटा था तो दादा जी ने एक गचट्टे रिं ग का कुर्त्ा भी रखा हुआ था,न्गज का नाम मोती था। यह कुर्त्ा इतना गुस् े वाला था कक कोई घर के अिंदर घु
नहीिं
कता था।
अक् र वोह खखडकी
े बाूँधा हुआ होता था। मैंने माूँ े ुना था की एक दफा दादा जी खेतों में गें हूूँ की रखवाली के सलए ोये हुए थे जब कुछ लोग गें हूूँ चरु ाने के सलए आ गए तो इ मोती ने उन का िीछा ककया और गें हूूँ बच गई थी। कुछ दे र बाद जब मोती बाहर घूम रहा था तो कक ी ने उ
की टािंग िर कोई चीज ऐ ी मारी कक उ
लगी। पिता जी भी उ
वक्त इिंडडया में थे और उ
की टािंग टूट गई और लटकने
की टािंग िर दआ ु ई लगा कर िट्टी ककया
करते थे। कुछ दे र बाद मोती भगवान को पियारा हो गगया था।
दादा जी की एक बात िर हम बहुत हिं ा करते थे,वोह थी चाय की कहानी। इ को हम चाय की कहानी ही कहते थे। बात यह थी कक दादा जी रोजाना दो वक्त चाय िीते थे। लेककन वोह गुड की चाय ही ि िंद करते थे और उन में भैं
का बहुत ा दध ू ि िंद करते थे। ब ु ह ददा ओिं में वोह एक बडी अल ी की पि्नी खाते थे, गसमाओिं में मूिंगी की पि्नी लेते थे।
को
उन की चाय के सलए एक गढ़वी होती थी जो भरी हुई होती थी। चाय िी कर वोह डकार मारते और बोलते आनिंद आ गगया। बहन कई दफा कह दे ती ” दादा,कहाूँ है आनिंद?” दादा जी हिं
िडते। एक ददन दादा जी ने किरू थले कक ी काम के सलए जाना था। उ्होंने चाय के
ाथ एक पि्नी खाई और बाइस कल िर किरू थले को रवाना हो गए। जब मेरी बहन ने
बतान
ाफ करने शरू ु ककये तो दे खा कक ज
ितीली में चाय बनाई थी उ
में चाय िर्त्ी का
नामों तनशाूँ ही नहीिं था यानी बहन ितीली में चाय िर्त्ी िाना भूल ही गई थी।
भी हिं ने
लगे कक दादा जी ने चाय िर्त्ी के बगैर ही िानी गुड और दध ू िी सलया था और कुछ नहीिं बोला था। गुड की चाय क्योंकक गाहडी होती है ,उ्होंने नोदट दादा जी घर आये तो बहन िूछने लगी,दादा ! थी “.
ही नहीिं ककया। जब शाम को
ुबह चाय स्वाद थी?. दादा जी बोले,” ठीक ही
भी हिं ने लगे। बहन बोली,” चाय िर्त्ी तो मैं िाना भूल ही गई थी “. अच्छा
अआआ,तभी
ारा ददन
र दख ु ता रहा ” और हिं ने लगे।
दादा जी की अनगगनत यादें हैं। जब भी घर में कोई िरु ानी बात होती तो आखखर में दादा जी की बातें ही होने लगतीिं। कभी कभी जाएूँ, कहाूँ चले जाते हैं लोग…? चलता…
ोच आती है , काश एक समनट के सलए ही दादा जी आ
मेरी कहानी – 38 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन June 29, 2015 दतु नआ में
ब कुछ भूल
कता है लेककन एक ऐ ी चीज है जो कक ी को नहीिं भूलती, वोह
है “माूँ”। भले ही आि कक ी को उ
का न्गजकर करें या ना लेककन माूँ की याद हमेशा ददल
में होती है । मैं यह नहीिं कहता कक पिता जी की याद नहीिं आती लेककन िहले माूँ ही याद आती है ,इ ी सलए तो जब रोते भी हैं तो हाए माूँ या ओह माूँ ही कहते हैं। मेरी माूँ मुझे न्गजतना पियार समला है उ दे हरादन ू की है वोह भी माूँ
े भी
को नािने के सलए कोई यिंतर नहीिं है । मेरी िहली याद जो
े ही शुरू होती है जब वोह मुझे बाहों में सलए चलती कफरती थी।
मेरी माूँ बहुत गोरी थी और जब की बात मैं करता हूूँ ाडी िहनती थी। वोह हमेशा हरे रिं ग की ाडी ही िहनती थी और बहुत ् ु दर लगती थी। हमारा िहला घर छोटा लेककन बहुत ् ु दर था, ऊिर दो चब ु ारे थे और एक चब ु ारे में
े कुछ जगह तनकाल कर छोटा
ा
गु लखाना बना हुआ था। ारा ददन ऊिर नीचे िता नहीिं हम ककतने चक्र लगाते होंगे और कभी कभी माूँ े िै े मािंगते,दक ू ान े कुछ लेने के सलए। एक दो िै े हमें समल जाते और
दौडे दौडे गणे े की हट्टी को जाते। हट्टी वाला गणे ा नेतरहीन था लेककन बहुत अच्छा था। दो िै े की रे डीआिं या मिंग ू फली ककतनी ही आ जाती और हम कमीज के िलडे में ही डलवा लेते। माूँ को मैंने कभी भी कोई कष्ट नहीिं ददया था,जो वोह कहती ख़श ु ी
े कर दे ता। एक
दफा माूँ िशुओिं वाली हवेली में गई हुई थी और र ोई में बहुत े जूठे बरतन िडे थे. िता नहीिं मेरे ददमाग में ककया आया,मैंने चल् ू हे की राख के ाथ बतान ाफ करने शुरू कर ददए। बतान
के ग्ला
ाफ करती माूँ को हमेशा दे खा था और मुझे िता था कक ककया करना था। मैंने िीतल चमचे और कािं ी की थासलआिं राख
एक किडे कहते थे उ
े दब ु ारा
ाफ करनी शुरू कर दीिं।
ाफ ककया और चमका कर कफर
िर बडी तरतीब
दे खती रही,कफर हिं
े
े
जाने लगा। ऊिर
िडी। कफर वोह अिनी
खीआिं कहने लगीिं,”गुरमेल हमारे बतान भी
खश ु हुआ।
ाफ करके उन को
भी बतानों को एक शैल्फ न्गज े िर्ातत
े माूँ आ गई और कुछ दे र तक खडी
खखओिं को ले कर आई और
ब को ददखाया।
ाफ कर दे ,हम तुझे बहुत कुछ दें गे “. मैं बहुत
मैं बहुत छोटा था जब मेरा छोटा भाई तनमाल िैदा हुआ, यह अक्तूबर १९४६ था। मैं उ े दे ख दे ख कर बहुत खश ु होता,हर वक्त उ के आगे िीछे रहता। बचिन में कभी कभी गुरमेल की वजाए गेली भी मुझे कहते थे. एक ददन कोई इस्त्री मुझे िूछने लगी,” ए गेली ! तेरा छोटा भा जी कहाूँ ददया “.
े आया है ?”. मैंने कहा,” रहमी के िा
भी औरतें जोर जोर
े हिं
रहती थी जो दाई भी थी। िता नहीिं उ
दो काके थे, एक उ
ने हम को दे
रही थी। हमारी गली में एक मु लमान बुडडआ रहमी
के घर में मैंने कोई कक ी के दो बच्चे दे खे थे और
रहमी हमारे घर आती रहती थी,शायद इ ी सलए मैंने कह ददया होगा कक रहमी ने हमें एक
बच्चा दे ददया था। इ
बात को ले कर बहुत दफा माूँ हिं ती थी। कुछ महीने बाद जब लोहडी आई तो हमारे घर लोहडी मािंगने लडके लडककआिं बहुत आते और लोहडी गाते। हमारे घर के
ाथ ही ताऊ न्द स हिं का घर था और उ
के
ददन इ
ाथ एक खल ु ा मैदान था। लोहडी के
खल ु े मैदान में गोबर की िागथओिं का बहुत बडा ढे र लगा हुआ था जो जल कर लाल हो गगया था और औरतें इदा गगदा बैठी थीिं। ठिं डी बहुत थी और माूँ छोटे भाई तनमाल को अिनी गोद में ले कर बैठी थी। मूिंगफली रे डीआिं बािंटी जा रही थीिं। दादा जी की बहन बनती
बहुत कुछ बाूँट रही थी। कुछ दे र बाद बडे आदसमओिं की लोहडी शरू ु हो गई और बहुत आदमी आ गए और लोहडी मािंगने लगे। वोह बहुत रूिए मािंग रहे थे। मझ ु े िता नहीिं उन को ककतने रूिए ददए गए लेककन मझ ु े यह याद है कक एक बहुत बडी िीतल की िरात न्गज आठ द ेर लडू होंगे उन को ददए गए। यह लोहडी का ीन मझ ु े अभी तक याद है ।
में
आज तो औरतें बाहर काम करती हैं, िडी सलखी हैं लेककन उन ददनों गाूँवों में न तो औरतें िडी सलखी और ना ही आगे लडककआिं स्कूल जाती थीिं, इ
सलए घरों में ही
ब औरतें काम
करती थीिं। औरतें चरखा ले कर बैठी होती और बातें करतीिं रहती। कुछ औरतें किा वेलने
े न्गज
को एक हैं डल
तनकलती और किा
में
को एक
े घुमाया जाता था रूई तनकालती। रूई बादहर की तरफ
े दाने न्गज
को वडेवे कहते थे एक तरफ तनकलते जाते। चरखे के
ाथ रूई को कात कर उ
े बहुत किडे बनाये जाते थे। बबस्तरों के सलए दरीआिं चादरािं खे ीआिं और रजाईओिं के सलए किडा बनाया जाता था। इन कामों में माूँ बहुत माहर थी। मेरी बहन भी अिनी
खखओिं के
ाथ बैठी बैड शीट न्गज
को चदर कहते थे,उन िर तरह तरह के
रिं गों के धागे के
ाथ डडजाइन बनाती रहती। यह माहौल मुझे बहुत अच्छा लगता था और इ ी सलए औरतों की बातें ुनता रहता था। माूँ बहुत अच्छी कहानीकार थी और उ की ख्यािं कहानी
ुनने के सलए बेताब रहतीिं। उ
की
ुनाई कुछ कहानीआिं अभी तक मुझे याद
हैं। माूँ को शधािंजसल के तौर िर एक कहानी सलखना चाहूिंगा। खखओिं के अनुरोध िर एक ददन माूँ कहानी
ुनाने लगी ” बहुत मय की बात है दो दोस्त होते थे। आि में उन का बहुत प्रेम था। एक ददन वोह कहीिं जा रहे थे,धि ु बहुत थी और वोह एक बक्ष ृ के नीचे बैठ गए। एक दोस्त द ू रे को बोला, भाई ! मेरा इरादा बबदे जाने का है । उ वाि
ने एक किडे में
े कुछ गहने तनकाले और बोला,यह गहने अिने िा
आिंऊगा तो ले लूिंगा। कुछ ददन बाद वोह दोस्त बबदे
बाद वोह वाि
आया तो उ
ने दोस्त
गहने तो उ
रख लो,जब
चले गगया और जब दो
े गहने मािंगे। द ू रा दोस्त
ाल
ाफ मुकर गगया कक
ने ददए ही नहीिं थे। वोह दोस्त बहुत दख ु ी हुआ और उ ने इलाके के हाकम े शकायत की। हाकम ने दोनों को बल ु ाया और गहने वाले को गहने दे ते मय का कोई गवाह िछ ु ा। वोह बोला,जनाब मेरे िा इ
तरह करो,उ
बक्ष ृ
उ
बक्ष ृ के स वा कोई भी गवाह नहीिं है । हाकम बोला,अच्छा
े एक टहनी तोड कर लाओ, मैं टहनी
े ही िछ ू ू िं गा।
ीधे
ाधे लोग
होते थे, वोह बक्ष ृ की टै ह्नी लेने के सलए चल िडा। हाकम और उ लगे।
ारा ददन गुजर गगया,अूँधेरा होने लगा और वोह शख्
का दोस्त इिंतजार करने
आया नहीिं। तभी हाकम के मुिंह
े अचानक तनकला ” हद हो गई,अभी तक आया ही नहीिं “. टै ह्नी वाला दोस्त बोला,”हजुर !
इतनी जल्दी वोह कै े आ उ
शख्
कता है ककओिंकक वोह वक्ष ृ तो बहुत दरू है ”. हाकम ने उ ी वक्त को िकड सलया और बोला,” तुझे कै े िता है कक वक्ष ृ दरू है ? तू ने उ वक्ष ृ के
नीचे बैठ कर गहने सलए थे,इ ी सलए तुझे िता है कक वोह वक्ष ृ दरू है ,यह कह कर उ उ
शख्
को िीटना शरू ु कर ददया और दोस्त मान गगया कक उ टै ह्नी तोड कर लाया तो हाकम ने कहा,अब इ
गहने समल जायेंगे। यह कहानी माूँ ने बहुत दफा ब
े न्गजआदा खब ू ी माूँ में थी उ
की
बच्चे मेरी उम्र के हैं , उ्होंने हमारे
ाथ
ने
ने गहने सलए थे ” जब वोह
टै ह्नी की जरुरत नहीिं है , अब तम ु ारे
न ु ाई थी।
खावत, वोह बहुत ददआलू थी, गरीब औरतों की मदद करती थी ,यही कारण था कक बहुत औरतों ने उ े बहन बनाया हुआ था और उन के बच्चे माूँ को मा ी कहते थे। इन खखओिं में ब े न्गजआदा प्रेम रुक्मण े था न्गजन के चे ददल
े पिआर ककया, रुक्मण का एक लडका
तो यहाूँ ही रहता है और अभी तक भाई मानता है । यह तो मैं नहीिं कहूूँगा कक हम बहुत अमीर थे लेककन हमारे घर कक ी चीज की कोई कमी नहीिं थी और जो हम कहते माूँ बना दे ती, दध ू घी तो यों ही हमारे घर में बहुत होता था बन्गल्क हमें बेचना िडता था। आि हिं ोगे,माूँ के हाथ का बना आम का अचार कभी नहीिं भूलूिंगा। आम के बब्रक्ष हमारे खेतों में होते थे। हम आम तोड कर घर ले आते और माूँ के
ाथ समल कर आमों को काटते। जब
ारे आम काट हो जाते तो तीन चार बडे बडे मट्टी के बने बतान न्गजन को चाटी बोलते थे उन में डाल दे ती और उन में नमक,कलौंजी, मेथी,लाल समचा का िाउडर और समक् न्गज
कर दे ती और में
ाथ ही बडी बडी लाल समचें डाल कर इतना
ौंफ डाल कर
र ों का तेल डालती
ब कुछ डूब जाता, यह अचार कभी खराब नहीिं होता था।
यह आचार का न्गजकर मैंने इ
सलए ही ककया है कक इ
ददनों में मेरा दोस्त जीत रोज रात को हमारे घर ही
े मेरी एक याद जुडी है । मैदट्रक के
ोने आता था। हम अिना
कूल का
काम करते रहते, जब काफी दे र हो जाती तो जीत कहता,” जाह यार ! रोटीआिं और अचार ले के आ और समचें लाना मत भूलना “. हम नीचे ड्राइिंग रूम में र ोई जो काफी बडी थी में
ोते थे और माूँ ऊिर वाली
ोया करती थी। मैं धीरे धीरे र ोई में दाखल होता, कफर भी माूँ
को जाग आ जाती और कुछ गुस् े में कहती,” ोने भी नहीिं दे ता “. माूँ जानती होती थी कक हम रात को कफर रोटी खाएिंगे, इ
सलए िहले
े ही न्गजआदा मक्की की रोटीआिं िका के छाबे
में रख दे ती। मैं चार मक्की की रोटीआिं उठाता, एक बडी कौली में ठिं डा
ाग डालता और एक
में अचार और बडी बडी समचें डालता और धीरे धीरे नीचे ले आता। दोनों दोस्त समल कर खाते। इतना मजा आता कक न्गजिंदगी में बदढया
े बदढया खाने खाए लेककन उन मक्की की
रोटीआिं
ाग और अचार समचों का मजा कभी नहीिं समला। जीत अब मुम्बई में बहुत बडा कारोबार करता है और उ की एक कोठी जालिंधर में है । मैं और मेरी धमा ित्नी बहुत वर्ा
हुए जीत और उ की ित्नी को जालिंधर समलने गए थे। हम ने भी यादें ताजा कीिं। जीत की हिं ी ख़तम नहीिं होती थी जब वोह मक्की की रोटीआिं वाला ककस् ा न ु ा रहा था। हम उ ी तरह बातें कर रहे थे जै े अभी भी हम
कूल में हों और हमारी अधा्ग्नीआ भी हिं
रही थीिं।
आज हम जब ब्लड प्रेशर या हाटा अटै क की बात करते हैं तो अक् र गलत खाने की बात करना कभी नहीिं भल ू ते। हम कहते हैं कक जिंक फूड मीट शराब और स गरे ट नोशी बीमाररयािं लगती हैं। माूँ ने कभी भी मीट तो क्या अिंडा भी नहीिं खाया। बबलकुल थी उ
की लेककन कफर भी अक् र
े ही यह ादा खरु ाक
र ददा की शकायत करती रहती थी और कहती,” मझ ु े
एक एस्प्रो की गोली दे दे ना “. गोली खा के वोह कफर काम में मगन हो जाती। जब १९६५ में मैं यहािं इिंग्लैण्ड में था तो पिता जी गाूँव में रहने लगे थे। एक ददन मुझे िर्त्र समला कक माूँ को अधरिं ग हो गगया था। पिता जी गाूँव में थे और फगवारे
े डाक्टर को ले आये। डाक्टर ने
दे खा कक ब्लड प्रेशर बहुत हाई था। इ सलए ब्लड प्रेशर को किंट्रोल करने के सलए ट्रीटमें ट शुरू हो गगया। चार महीने माूँ चारिाई िर िडी रही लेककन धीरे धीरे जै े जै े ब्लड प्रेशर
किंट्रोल में आता गगया माूँ ठीक होती गई। छे महीने बाद जब मैं इिंडडया गगया तो माूँ चलने कफरने लगी थी। इ
के बाद माूँ ने एक ददन भी दआ ु ई सम
करने लगी। मेरे छोटे भाई ने घर के िा न्गजमेदारी
नहीिं की और घर के
की जगह में मुगे मुरगीआिं रख सलए और माूँ को
िंभाल दी। मुगे मुरगीआिं रखना तो एक बहाना ही था,दरअ ल माूँ
मुगीओिं को कभी दाना फेंकती रहती, कभी उन के आगे िीछे चलती रहती,न्गज एक्
दे ने
ारे काम
ारा ददन मुगे े उ
की
ााइज हो जाती और स हत ठीक रहती। १९७३ में पिता जी के अचानक यह दतु नआ छोड
े माूँ का काम और बड गगया था. माूँ रै गुलर अिनी दआ ु ई लेती, छोटे भैया ब्लड प्रेशर
चैक करते रहते दआ ु ई एडजस्ट करते रहते। १९९८ में बडे भैया इिंडडया आये और माूँ को
अफ्रीका ले गए। वहािं का मौ म उ े बहुत ि िंद था.वोह वहािं िहले भी रह चक ु ी थी। माूँ एक ाल वहािं रही और अफ्रीका े ही मैंने अिने िा बल ु ा सलया। यहािं भी वोह खश ु थी। गसमाओिं के ददनों में वोह गाडान काट कर
की ित्नी भी यहािं ही रहते थे, कभी वोह अिने िा
े छोटे भैया भी माूँ के बगैर उदा
थे,इ
हमारे कुछ दोस्त इिंडडया को जा रहे थे, इ जाए। न्गज
ी टोकरी भर के भीतर ले आती और
भी को खखलाती। कभी कभी बहन और बहनोई उ े अिने िा
का लडका और उ गाूँव
े ऐिल इकठे करती, छोटी
ददन माूँ ने हीथ्रो एअरिोटा
ले जाते। बडे भाई ले जाते।
सलए बार बार माूँ को वाि
सलए हम ने
ोचा माूँ को उन के
े चढ़ना था,एअरिोटा िे एक मेला
आने को कहते। ाथ भेज ददया
ा लगा हुआ था। भी ररकतेदार इकठे थे और फोटो ले रहे थे। माूँ इिंडडया चले गई और यह हमारा आख़री
समलन था। २००० में उ
को जबरदस्त अटै क हुआ और यह ३५ वर्ा बाद यह द ू रा अटै क था। रे गुलर दआ ु ई लेते हुए ३५
गए. कभी कभी फोटो दे खते हैं तो याद कर लेते हैं और यही नाम है . चलता…
िं ार छोड गई। १९६५ के बाद ाल जीने के ददन और समल ोच लेते हैं कक जीना इ ी का
मेरी कहानी – 39 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन July 02, 2015
मेरे जै े इिं ान के सलए स्वजीवनी सलखना इतना आ ान नहीिं है क्योंकक अिनी कहानी सलखने के सलए
चाई सलखनी िडती है और यह
चाई सलखने में बहुत कठनाईआिं िेश आती हैं। मैंने कुछ स्वजीवनीआिं िडी हैं, जै े खश ु विंत स हिं जी और कफल्म स्टार दे वा न्द जी की। अिनी जीवतनओिं में उ्होंने वोह
ब कुछ सलखा है न्गज े िड कर अक् र मैं
उन के बच्चों ने जब यह ककताबें िडी होंगी तो क्या
ोचता था कक
ोचते होंगे। कल मैंने ३९ अिंक
ारा
सलख सलया था। िहले तो यह अिंक सलखने में मुझे बहुत वक्त लगा, द ू रे जब मैंने कई दफा िडा तो मुझे अच्छा नहीिं लगा। मुझे लगा इ े घर में गलतफैहमीआिं िैदा हो कती थीिं। हमारे घर में कोई भी
ादहत्कार नहीिं है जो मेरी भावना को
मझ
के, इ
सलए मैंने
ारा
अिंक डडलीट कर ददया और यह नया सलख रहा हूूँ। एक और बात जो मेरे मन में आ रही थी कक मैं इतने अिंक सलख कर भी अभी बचिन में ही बैठा हूूँ,अभी भी मैं समडल स्कूल में हूूँ। कब यह मेरी कहानी खत्म होगी? वै े मेरी नीिंद शरू ु जाग आ गई और
े ही आठ नौ घिंटे रही है लेककन पिछली रात मझ ु े
ब ु ह ही तीन वजे
ारी रात जागता रहा। तरह तरह के पवचार मन में आते रहे । मेडीटे शन
करने की बहुत कोसशश की लेककन खखयालों का ििंछी दरू दरू तक उडता रहा। मैं कफर बचिन में घूमने लगा। समडल स्कूल े आगे जाऊिं या कफर बचिन में चला जाऊिं? मैं फै ला ना कर का।
ुबह का नाकता लेने के बाद मैंने
चादहए, इ
ोचा, बचिन की कोई भी याद मुझे छोडनी नहीिं
सलए मैं यह ३९ अिंक दब ु ारा सलख रहा हूूँ। कल मेरा छोटा िोता जो अभी छोटे
स्कूल में जाता है , उ
को स्कूल
े छुटी थी, वोह गयारह वर्ा का है । मेरी ित्नी
उ े स्कूल छोडने जाती है और तीन वजे उ े स्कूल
े वाि
बाराह वर्ा का हो जाएगा तो हाई स्कूल में चला जाएगा। उ
ुबह को
लेने के सलए जाती है । जब वोह
के बाद वोह खद ु ब
में
जाएगा। जब तक बच्चा हाई स्कूल में नहीिं जाता,तब तक माता पिता की न्गजमेदारी ही होती
है । लेककन जब मैं अिने बचिन में जाता हूूँ तो दे खता हूूँ कक हमारी तो कक ी ने इतनी कफक्र की ही नहीिं। न्गजधर चाहते थे हम घूमते रहते थे, स फा शाम को घर आना जरूरी था। यही बचिन की यादें सलखने के सलए मन में खलबली थी। मेरा खखयाल नहीिं कक मैं छे
े ज़्यादा हूूँगा, आहलूवासलओिं के मोहल्ले में गगयान चिंद की दक ू ान के नजदीक बहुत लडके आि में बातें कर रहे थे। वोह ब द बाराह या तेरह वर्ा के होंगे। उ्होंने फगवारे जाने का प्रोग्राम बना सलया और मैं मा ूम भी उन लडकों के
ाथ चल िडा। ना मेरे िा
कक ी ने मुझे रोका नहीिं। यह
ात वर्ा
कोई िै ा, न अच्छे किडे, मैं भी उन के
ारा रास्ता िैदल
फर ही था। कक
ाथ चल िडा।
वक्त हम फगवारे िुहिंचे
मुझे याद नहीिं लेककन मैं उन के मझ में आईं।
ाथ शहर में घूमता रहा। बहुत बातें तो बडा हो कर ही मेरी ारे लडके बाूँ ाूँ वाले बाजार में घूमने लगे। बाूँ ाूँ वाले बाजार में उन लडकों
ने आलू छोले खाने का मन बनाया। वहािं एक बोहड के बक्ष ृ के नीचे एक बडा तगडा, शलवार और बडी तुरे वाली िगडी बािंधे आलू छोले और कुलचे बेचा करता था। जब हम बडे हो गए थे तो इ
के आलू छोले ही खाया करते थे क्योंकक इन के छोले शहर तो ककया दरू दरू के
गाूँवों के लोग यहािं खाने के सलए आते थे। यह स हिं जी जो िाककस्तान उन का बबजने
े उजड कर आये थे
बहुत अच्छा हो गगया था।
ारे लडकों ने छोले खाए लेककन मझ ु े कक ी ने नहीिं ददए हालािंकक मझ ु े भूख लगी हुई थी लेककन मेरे िा तो कोई िै ा ही नहीिं था। कफर लडके कुछ दरू जा कर ोडा वाटर की दक ू ान में चले गए। यह दक ू ान एक शख्
की थी न्गज
का नाम नाथ था और इ
की दक ू ान
भी बहुत मशहूर होती थी, शायद यह दक ु ानें अभी भी उन के वार चला रहे हों लेककन मझ ु े िता नहीिं। कफर जब १९७३ में मैं बच्चों को लेकर इिंडडया आया था तो इ ी नाथ की दक ू ान े बच्चों को
ोडा पिलाया था और यहािं
े ही हमें कॉनाफ्लेक्
समले थे। नाथ का शरीर वै ा ही
था जै े मैं छोड कर गगया था, गोरा रिं ग,क्लीन शेव लेककन बडी
ी िगडी उन के
र िर
थी। जब
ारे लडकों के
भी लडके ग्ला ने ग्ला
मेज
ोडा िीने लगे लेककन मुझे कक ी ने भी कुछ नहीिं ददया। एक लडके का भरा
े नीचे गगर गगया और टूट गगया। एक लडका जो दक ू ान में काम करता था उ
के भी िै े और
आ गगया। उ तुझे
ाथ मैं भी दक ू ान के अिंदर गगया तो एक कु ी िे चि ु चाि बैठ गगया।
लडके ने
ोढे का नया ग्ला
डाली और उ
ोडे के तो लेने ही थे उ
े ले सलए। अचानक नाथ उधर
ारी बात नाथ को बताई। नाथ बोला, “कोई बात नहीिं बेटा,मैं अभी ला दे ता हूूँ ” और उ
ने एक नई बोतल खोल कर एक ग्ला
लडके को दी। लडका खश ु हो गगया और
लेककन मेरा कक ी को खखयाल नहीिं आया। उन के
लडके
ोडा िी कर
ाथ चलने लगा।
में
भी नाथ की स फत करने लगे भी दक ू ान
े बाहर आ गए। मैं भी
कुछ दरू ही गए थे कक बाइस कल िर मुझे मेरे दोस्त तर ेम का डैडी आता ददखाई ददया। मुझे दे खते ही वोह मेरी तरफ आ गगया,” ओए तू यहािं कै े आ गगया?”. द ू रे लडकों ने बात की और उन को कहा कक मुझे छोड कर ना जाएूँ। कफर उ
ने अिने बटुए में
आने तनकाल कर मुझे दे ददए और कहने लगा, “मैंने एक जरूरी काम
े उ े दो
े कहीिं जाना है नहीिं
तो तझ ु े गाूँव छोड आता “और कफर वोह चले गगया। उन िै ों का मैंने खाने के सलए एक रे हडी
े कुछ सलया। कुछ िेट भरा और लडकों के
ाथ चलने लगा।
शाम को जब मैं घर िहुिंचा तो घर के भी दस्य गचिंता में डूबे थे। मुझे दे खते ही वोह है रान े हो गए। पिता जी भी बैठे थे,डर के मारे मैं रोने लगा लेककन पिता जी ने मुझे कुछ नहीिं कहा लेककन उन का चेहरा उदा
था,बोले ” ओए तू कक ी गाडी के नीचे आ जाता तो ककया
होता?”. मैंने कोई जवाब नहीिं ददया लेककन मेरा मन रोने को करता था। मुझे नहीिं मालूम था कक मैंने ककया गलत ककया था।
भी चले गए और माूँ मुझे र ोई में ले गई। एक थाली में
दाल रोटी िा कर मुझे दे दी। चि ु चाि मैंने रोटी खा ली और माूँ ने मुझे चारिाई िे िडे बबस्तरे में इ इ
ल ु ा ददया।
के कुछ वर्ों बाद ही एक कफल्म आई थी भगत स हिं शहीद। यह शायद १९५३ ५४ होगा।
कफल्म के िोस्टर हमारे गाूँव में भी लगे थे। इ
िोस्टर िे भगत स हिं की फोटो एक है ट
और तीखी मिंछ ू ों वाली थी। हमारे गाूँव का एक लडका प्रकाश फगवारे स तनमा में गेट मैंन
लगा हुआ था, शायद उ ी ने यह िोस्टर लगाये होंगे। मैंने अभी तक कोई कफल्म नहीिं दे खख थी। मेरा दोस्त तर ेम बाइस कल चलाना ीख गगया था। एक ददन मुझे कहने लगा “क्यों न हम कफल्म दे खने चलें ?”. माूँ
े मैंने िै े मािंगे। पिताजी गाूँव में नहीिं थे। माूँ ने मुझे िै े दे
ददए और तर ेम को कहा ” दे खना शहर में कारों ब ों
े बच के रहना “. माूँ ने मुझे कभी
भी न्गजिंदगी में तनराश नहीिं ककया था। तर ेम के बाइस कल के िीछे मैं बैठ गगया और दोनों दोस्त फगवारे को रवाना हो गए।
फगवारे िैराडाइज स तनमा नया नया बना था। जब हम िैराडाइज िुहिंचे तो वहािं बहुत भीड थी। हमें कुछ नहीिं िता था कक हम ने स तनमा हाल में कै े जाना था। अचानक हमारे गाूँव का लडका प्रकाश आ गगया और हम ने उ
े िुछा कक कफल्म कै े दे खनी थी। उ
हमारा बाइस कल रखवाया और एक टोकन ले के ददया,कफर उ ककया कक हम दटकट ले लें। तर ेम एक भीडी
ने िहले
ने खखडकी की ओर इशारा
ी गली में चले गगया यहािं एक खखडकी
दटकटें समलती थीिं। दटकट लेने के बाद प्रकाश हमें स तनमा हाल की ओर ले गगया। उ हमारे हाथ हमें
े ने
े दटकटें ले लीिं और उन को फाड कर आधी हमें िकडा दी और अिंदर ले जा कर
ीटों िर बबठा ददया।
है रान हुए हम हाल के चारों ओर दे ख रहे थे। हाल लोगों े भरा हुआ था। हमें कुछ नहीिं िता था कक ककया होने वाला था। स्क्रीन की तरफ जै े लोग दे ख रहे थे हम भी दे खने लगे। कुछ दे र बाद जब स्क्रीन िे कफल्म चलने लगी तो हम स्क्रीन िे इतने बडे बडे आदमी औरतें दे ख कर है रान हो गए। कभी कारें दौडने लगतीिं कभी मोटर मालम ू ना था कक यह
ाइकल दौडने लगते। हमें कुछ
ब ककया हो रहा था। मझ ु े तो एक गाने के कुछ बोल ही याद हैं,” र
फरोशी की तम्मना अब हमारे ददल में है ” जो शायद कफल्म के आखखर में था। जब हाफ टाइम हुआ तो लोग कुछ खाने के सलए बाहर जाने लगे। हम ने
मझा शायद कफल्म खत्म
हो गई थी। हम अिने जान गगया था, इ वाि भी
ाइकलों की तरफ जाने लगे। हमारे गाूँव का लडका प्रकाश शायद
सलए हमारी तरफ आया और बोला,” अभी तो आधी कफल्म और रहती है ,
अिंदर चले चलो ”. हम कफर स तनमा हाल के अिंदर चले गए लेककन हम दोनों को कुछ
मझ में नहीिं आया कक हम ने ककया दे खा था। मजबूरी
े हम बैठे रहे । जब कफल्म
खत्म हुई तो तर ेम ने अिना बाइस कल उठाया और हम कफर गाूँव की ओर चलने लगे। यह थी हमारी िहली कफल्म। कुछ महीनों बाद द हरा आ गगया। मैंने कभी द हरा नहीिं दे खा था। बहुत े लडके द हरा दे खने की तैयारी करने लगे। लडकों ने जालिंधर का द हरा दे खने का प्रोग्राम बनाया। मैंने अिने दोस्त तर ेम
े िछ ु ा कक उ
का ककया इरादा था। उ
का भी मन कर आया लेककन
अभी भी हम बहुत छोटे थे और खद ु जाने के सलए अ मथा थे। द ू रे लडके तो बडे थे और उ्होंने कफल्म दे खने का प्रोग्राम भी बना सलया। मैं और तर ेम ने घर वालों े िै े सलए और उन लडकों के के िा
ाथ जाने का ठान सलया। द हरे वाले ददन हम
ब गगयान की दक ू ान
इकठे हो गए। द हरा दे खने जालिंधर जाना था। जो बडे लडके थे उ्हों को तो िता
था कक ककया करना था। िहले हम ने चहे रु गाूँव िौहिं चना था। वहािं चहे रु का छोटा
ा रे लवे
स्टे शन था। चहे रु तकरीबन चार ककलोमीटर है । हम अिने गाूँव राणी िुर रहे थे। इ
े
ारे इकठे हो कर िैदल चलने लगे। बडे लडके शरारते करते जा
दफा माूँ ने मुझ को तीन िराठे बाूँध ददए थे ताकक भूखा ना रहूूँ। तर ेम भी कुछ
खाने के सलए ले आया था। जब चहे रु रे लवे स्टे शन िर िुहूँचे तो द ू रे लडकों को दे ख कर हम ने भी जालिंधर के दटकट ले सलए। ट्रे न िे हम ने िहली दफा
फर करना था। दरू
े तो
चलती ट्रे न आदम िुर की रे लवे लाइन िर दे खी हुई थी लेककन नजदीक े कभी नहीिं दे खी थी और ना ही इ में कभी चढ़े थे। जब ट्रे न धआ ु िं छोडती हुई स्टे शन िर आई तो द ू रों की तरफ दे ख कर मैं और तर ेम भी चढ़ गए। हमारे सलए यह एक अजीब नजारा था। चलती गाडी की खखडककओिं रहे थे। चहे रु
े हम भागे जाते बक्ष ु हो ृ और मकानों को दे ख दे ख कर है रान और खश
े जालिंधर इतना दरू नहीिं है । िहले जालिंधर कैंट आया और इ
समनटों बाद ही जालिंधर आ गगया। द ू रे लडकों के
ाथ ही हम भी ट्रे न
के बाद कुछ
े उर्त्र गए और
स्टे शन के बाहर आ गए। हम दे ख दे ख कर है रान हो रहे थे। जालिंधर की रौनक दे ख दे ख कर हम खश ु हो रहे थे। ारा ददन हम जालिंधर शहर में घुमते रहे । जब शाम होने लगी तो द हरे की ग्राउिं ड की तरफ
जाने लगे. जब हम िह ु िं चे तो दे ख कर हमें पवशवा
नहीिं हुआ कक रावण इतना बडा बना हुआ था, उन के द र बने हुए थे। तरह तरह की झाककआिं तनकल रही थीिं न्गज में हनम ु ान को दे ख कर हम है रान हो रहे थे। बडे लडके बोलते जाते,न्गज को न ु कर हम खश ु होते। राम
च्द् जी
ीता और लक्ष्मण की मेक अि में लडके ग्राउिं ड के बीच में घूम रहे थे। बानरों की
ैना भी हाथों में गदा उठाए ऊछल कूद रहे थे।
े भरा हुआ हुआ था। जब शाम हुई तो रावण को आग लगाईं गई और िटाखे चलने लगे। िटाखों की आवाज े आ मान गूिंजने लगा। ख़श ु ी े लोग बहुत शोर मचा रहे थे, उनके चेहरों िर ख़श ु ी की उक ाहट थी। कुछ दे र बाद लोग वहािं
ारा ग्राउिं ड द हरा दे खने वालों
े जाने शुरू हो गए और हम भी रे लवे स्टे शन िर
आ गए। स्टे शन के बैंचों िर बैठ कर हमने अिने िराठे खाए। लडके द हरे की बातें कर रहे थे। घिंटा दो घिंटे हम स्टे शन िर बैठे बातें करते रहे और कफर चाली कुछ ख़ा
भी लडकों ने कफलम ‘अली बाबा
चोर’ दे खने का मन बना सलया। मझ ु े और तर ेम को तो अभी भी कफल्म के बारे में िता नहीिं था.९ वजे का शो दे खना था और यह कफल्म
थी। जब हम
िंत स तनमा में लगी हुई िं गथएटर िह त ु िं चे तो काफी अूँधेरा हो चक् ु का था और दटकट लेने वालों की भीड
बहुत थी। जै ा बडे लडकों ने ककया वै े ही हम कर रहे थे। भी लडके दटकट लेने के सलए दटकट खखडकी की ओर लगी लाइन में खडे हो गए। धकम धक्का हो रहा था। लाइन तो कहने को ही थी, लोग एक द ू रे
े आगे जाने की कोसशश कर रहे थे। हम लडके वोह भी
गाूँव के, त य ा ोग हालत में थे। धक्कों के कारण कभी हम आगे चले जाते कभी िीछे । लोहे की
लाखों
में लोग िै े िकडे हुए अिने हाथ डाल दे ते और दटकट वाला बाबू दटकट दे दे ता। कई चलाक लडके, खखडकी े दटकट लेते द ू रा उ
े बनी खखडकी में एक छोटी
के ऊिर चढ़ जाता। उ
ी गली थी न्गज
के बाद ही वोह िै ों वाला हाथ खखडकी में घु ेड दे ता।
बाहर आ कर वोह ज़्यादा िै े ले कर दटकट लोगों को बेच दे ते और कफर खखडकी की और चले जाते। कभी गाली गलौच होने लगता। यह दे ख दे ख कर हमारे तभी
भी लडके तिंग आ गए और स तनमा ना दे खने की
िंत स तनमा की एक अिंधेरी
ी गली में
े द
ोचने लगे।
बारह लडके न्गजन के हाथों में हाककआिं
थीिं, आ गए,आते ही उन लडकों को मारने लगे जो खखडकी िर दबाओ डाले हुए थे। कई लडके गगर गए और उठ कर दौडने लगे। जल्दी ही उ्होंने लाइन ठीक कर दी, न्गज का नतीजा यह हुआ कक हम आगे आ गए और दो समनट में ही हमें दटकट समल गए। जल्दी ही हम स तनमा हाल में जा कर ीटों िर बैठ गए लेककन हमें ीटें बबलकुल ही स्क्रीन के नजदीक समलीिं। यह कफल्म मैंने कुछ वर्ा बाद भी कक ी रपववार के स्िैशल शो में दे खी थी इ
सलए कुछ कुछ याद है । इ
डाकुओिं का
में महीिंिाल और शकीला थे और शायद वी एम पवआ
रदार था। एक गाना था “ ीए जा
ीए जा
ीए जा ” और कोई किडा
ी रहा
था। एक था ” दे खो जी चाूँद तनकला िीछे खजरू के,ब रे की हूर नाचे आगे हजरू के “. ज़्यादा हमें कुछ मझ में नहीिं आया। जब कफल्म खत्म हुई आधी रात े ऊिर हो चक् ु की
थी। बाहर तनकल कर हम रे लवे स्टे शन की ओर चल िडे। अब हम ने रे लवे स्टे शन के बैंचों
िर ही हम
ोना था और ो नहीिं
के।
ुबह को वाि ी ट्रे न लेनी थी। अब हम को ठिं ड लगने लगी।
ारी रात
ुबह हुई तो लडकों ने ट्रे न के टाइम का िता ककया तो अभी दो घिंटे बाकी थे। स्टे शन िर चहल िहल हो चक् ु की थी और चाए वाले इधर उधर जा रहे थे। हम ने भी चाए ली और
ाथ में कुछ खाया। दो आदमी बहुत ी तेल की शीशीआिं बक् े में डाले इधर उधर घुमते हुए तेल मासलश,तेल मासलश बोल रहे थे। हमारे नजदीक ही एक आदमी ने तेल मासलश करवानी शुरू कर दी। वोह आदमी कमीज उतार कर एक किडे िर लेट गगया। तेल वाले ने उ
की िीठ िर िहले तेल की मासलश की और कफर जोर जोर
हाथ मारने लगा न्गज
े उ
की िीठ िर
े ठि ठि आवाज आ रही थी। एक ओर एक आदमी एक बक् ा
िकडे कान मैल कान मैल बोल रहा था और जल्दी ही उ
ने एक गाहक के कान
े मैल
तनकालनी शरू ु कर दी। यह मालश वाला और कान मैल वाला न्गजिंदगी में मैंने िहली और आख़री दफा दे खा था,हो
कता है मैंने ही गधयान ना ददया हो,इ
के बाद कभी भी ऐ े
आदमी के दशान नहीिं हुए। हमारी ट्रे न का वक्त हो गगया था। ट्रे न िकड कर िहले चहे रु और िैदल माचा करके हम लडके गाूँव आ गए। यह बचिन की याद अगर मैं ना सलखता तो एक िछतावा ही रहता। चलता…
भी
मेरी कहानी – 40 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन July 06, 2015
हमारी समडल स्कूल की िढ़ाई आख़री ददनों तक आ िौहिं ची थी। हमारे टीचर
ाहे बान अिना
ारा गधयान हम िर लगाए हुए थे क्योंकक समडल स्कूल अभी नया नया रकारी हुआ था, इ सलए वोह चाहते थे कक हम भी िा हो जाएूँ। बहुत दफा हम मास्टर हरबिं स हिं के घर चले जाते। उन की शादी अब हो चक ु ी थी और उन की ित्नी भी गगयानी के को ा के सलए तैयाररयाूँ कर रही थी। हरबिं हमारे
स हिं का लहजा अब बहुत दोस्ताना हो गगया था और ाथ दोस्तों जै ा पववहार ही करते थे। उ वक्त तो हम मझते नहीिं थे लेककन अब
मझते हैं कक टीचर को अिने सशसशओिं सशष्य अच्छे निंबर ले कर िा कक इम्तहान
े प्रेम होता ही है और यह भी चाहते हैं कक उन के
हों। हमारे स्कूल में उ
वक्त एक आम रवायत ही होती थी
े कुछ हफ्ते िहले टीचर अिने सशसशओिं को छुटी दे दे ते थे ताकक वोह
इन्गम्तहान की तैयारी करने में जट ु जाएूँ न्गज
को सलबटी कहते थे। इम्तहान को बहुत कम ददन रह गए थे लेककन हमें अभी सलबटी समली नहीिं थी। भी लडके लडककआिं आि में बातें कर रहे थे और एक द ू रे को कह रहे थे कक “तू मास्टर जी एक लडके को न्गज
का नाम तनमाल था और उ
े िछ ू ,तू िछ ू ”. कफर हम ने
को तनम्मा कह कर बल ु ाते थे,उ
को कहा
कक “तू कह “. तनम्मा बहुत दे र तक ोचता रहा और कफर हौ ला करके मास्टर हरबिं स हिं को बोला,”मास्टर जी सलबरटीआिं नहीिं दे णीआिं?”. मास्टर हरबिं स हिं मुस्कराया और तनमें को बोला ” सलबरटीआिं की हुिंदीआिं ओए तनसमआ?”. तनम्मा हम ब की ओर दे खने लगा और शमाा कर चि ु हो गगया। कुछ दे र बाद मास्टर हरबिं स हिं क्ला रूम े द ु री तरफ चले गए और हम
ब लडके तनम्में को छे डने लगे। जीत क्ला
था। जीत अजीब नहीिं दे णीआिं?”. हिं
में
ब
े शरारती हुआ करता ा मुिंह बना कर तनम्में की तरफ आया और बोला,” मास्टर जी सलबरटीआिं
भी लडके कभी जीत की तरफ दे खते कभी तनम्में की तरफ दे ख दे ख कर
रहे थे। पवचारा तनम्मा झेंि
द ू रे ददन मास्टर हरबिं
ा गगया था।
स हिं जी आये और आते ही बोले,” जाओ और इन्गम्तहान की तैयारी
करो “. और कफर वोह बताने लगे कक ” आि के इन्गम्तहान का फगवाडा होगा, और तुम
ब की ररहाइश बाूँ ाूँ वाला बाजार के
जिंज घर (बरात घर) के ऊिर एक बडे कमरे में होगी। उ
के
ेंटर जे जे हाई स्कूल
ाथ ही गौ शाळा रोड िर
ाथ टोइलेट का भी इिंतजाम है
और तुम्हें दरू जाने की जरुरत नहीिं िडेगी। एक हफ्ता तुम्हें रहना िडेगा, रोटी तुम यहािं मजी हो कक ी ढाबे िर खा सलया करना,अगर घर आ आज
े
ब ु ह खाने के सलए कुछ लाना हो तो भी ले
कते हैं। अब जा कर खब ू तैयारी करो,अगर कुछ िूछना हो तो मेरे घर आ जाया करना। े यह स्कूल तुम्हारे सलए खत्म होगा। और एक बात और जिंज घर में शरारतें मत
करना,नहीिं तो वोह तुझे वहािं
े जाने को कह दें गे। लडककओिं के सलए एक घर में इिंतजाम कर
ददया गगया है , कक ी ने कोई बात िूछनी हो तो िूछ लो “. मास्टर हरबिं ओर दे खने लगे। ”.
भी चि ु थे,शायद वातावरण कुछ
स हिं जी हमारी
िंजीदा हो गगया था। जीत अिनी जगह
े उठा और बोला,” मास्टर जी,रोटी तो खा ही सलया करें गे,ककया हम दध ू भी िी भी लडके और मास्टर जी खखल खखला कर हिं ने लगे। हरबिं
कते हैं?
स हिं को हम ने कभी भी
इतना हूँ ते नहीिं दे खा था। जीत की हिं ाने की आदत अभी भी वै ी ही है , कुछ वर्ा िहले जब हम जालिंधर उन के घर गए थे तो उ था और मैदट्रक के ददनों में उ अजीत स्टूडडयो
फोटो दे ख कर उ
में वोह बचिन का चल ु बलािन तब भी वै ा ही
ने मेरी िगडी अिने
र िर रख कर हम दोनों ने फगवारे के
े फोटो खखचवाई थी और उ
ने वोह फोटो शैल्फ िर रखी हुई थी। मैंने वोह े िुछा था,” यह फोटो कब की है ?”. वोह बोला,” जरा गधयान े दे ख,मेरे
र िर तेरी िगडी है और यह हम ने अजीत स्टूडडयो
े खखचवाई थी “. मझ ु े
ारा याद आ
गगया और मझ ु े दाःु ख भी हुआ कक मैंने फोटो कहाूँ रख दी थी, याद नहीिं आया। स्कूल के बाहर हम आ गए और एक द ू रे को िूछने लगे कक फगवारे कै े जाना था,ककतने किडे
ाथ ले जाने थे,खाने के सलए ककया ककया ले जाना था। स्कीमें बनने लगीिं। कफर
अिने अिने घरों को चले गए।
भी को एक गचिंता
होंगे? जे जे हाई स्कूल में कै े लोग होंगे?.
ी
भी
ता रही थी,ककया होगा?कै े िेिर
भी के सलए यह एक नई बात थी। गाूँव
े
शहर जाने की उक ाहट और खझजक का समला जुला अिंश था। बहुत लडके मेरे घर आ जाते और हम इकठे हो कर बाहर खेतों में हमारे दोस्त बहादर के बेरीओिं वाले कुएिं िर चले जाते।
कोई कक ी खेत के ककनारे ककताब ले कर बैठ जाता, कोई कहीिं। अब तो उन बातों िे हिं ी ही आती है लेककन उ
वक्त हम बहुत ीरीय थे। मुझे अिने आि िर भरो ा था,कफर भी ारा ददन िडता रहता,रात को भी बबस्तरे में िडा ककताब सलए िडता रहता और यह
ारा
मेरी आदत अभी तक है । िता नहीिं ककतनी दफा ककताबें दहु रा ली थीिं कफर भी बार बार िडता रहता और कई दफा झुिंझला जाता और ककताब को टे बल िर रख दे ता। जै े जै े ददन नजदीका आ रहे थे लडकों का झमघटा मेरे घर लगा रहता और मुझ
े िछ ू ते रहते। कई
दफा तो मैं तिंग आ जाता। फगवारे रहने के सलए वहािं खाने के सलए कक ी ने ग़जरे ला बनाया हुआ था,कक ी ने कलाकिंद,कक ी ने लड्डू,कक ी ने बे न। जै े तै े करके वोह ददन आ गगया जब हम ने फगवारे के सलए रवाना होना था। अिने अिने के
ाइकलों िर पिछली ओर बबस्तरे बािंधे हुए थे न्गज में हमारे किडे भी थे ,हैंडल ाथ एक ओर ककताबें और द ु री और मठाई की िीिीआिं लटकाई हुई थीिं। यह काफ्ला
फगवारे की ओर चल िडा। इतने इकठे लडके िहली दफा कहीिं जा रहे थे। हूँ ते गाते,कभी चट ु कले
न ु ाते जा रहे थे। एक घिंटे में हम फगवारे गौ शाळा रोड िर िौहिंच गए और कक ी
े जिंज घर के बारे में िछ ू ने लगे। कुछ समनटों बाद मास्टर हरबिं
हमें जिंज घर में ले गगया। हम ने अिने
स हिं भी आ गगया और
ाइकल एक जगह खडे ककये और मास्टर हरबिं
स हिं जी के िीछे िीछे
ीडीओिं िर चडते हुए ऊिर जाने लगे। मास्टर जी ने एक कमरे का ताला खोला। कमरा बहुत बडा था। हम भी कमरे के भीतर चले गए और कमरे के इदा गगदा दे खने लगे। मालूम होता था कक यह कमरा ब्राततओिं के ठहरने के सलए ही होगा। मास्टर जी ने हमें टॉयलेट भी ददखाई जो एक ऊिंचे बडे चल् ू हे जै ी थी और बहुत ग्दी थी। नहाने के सलए भी गु लखाना ददखाया, लेककन टॉयलेट दे ख कर हमारा मन खराब हो गगया। गाूँव में
रहने वाले और खेतों में जाने वाले आजाद ििंछी टॉयलेट वाले गिंदे कमरे को दे ख कर मास्टर जी
े बातें करने लगे। मास्टर जी बोले ” अगर आि ने खेतों में जाना है तो बहुत दरू जाना िडेगा “. जाओ,जा कर अिना अिना ामान ले आओ, मास्टर जी बोले। भी लडके अिना अिना
ामान नीचे
रख ददए और
े ले आने लगे।
भी ने अिनी अिनी जगह बना ली और नीचे बबस्तरे
ाथ ही अिनी अिनी मठाई की िीिीआिं भी और ककताबे भी। मठाई की
िीिीओिं को
भी ने छोटे छोटे ताले लगाये हुए थे ताकक रात को कोई मठाई िीिी में तनकाल न ले। मास्टर जी चले गए और दह ाब का होना था,इ
ुबह को आने का भरो ा दे ददया।
सलए
ुबह को हमारा िहला िरचा
भी लडके अिने अिने बबस्तरे नीचे ही पवछा कर,उन िर बैठ
कर अिनी अिनी स्टडी में म रूफ हो गए। हम ले आये थे। टाइम
ुबह को उठने की खातर दो अलामा क्लॉक भी
ैट कर ददया गगया। िडते िडते कुछ लडके जल्दी ही
खरााटे लगाने लगे। जब चार िािंच लडके ही रह गए तो जीत धीरे इन की मठाई खाते हैं “. जीत ने जेब जीत ने वोह िीिी उ ी तरह तार
ो गए और
े बोला,” आ जाओ हम
े एक तार तनकाली और धीरे धीरे एक िीिी का
ताला खोलने लगा। जल्दी ही ताला खल ु गगया और हम उ में गुलाब जामुन थे।
े
लडके का कलाकिंद खाने लगे।
े बिंद कर दी और एक और लडके की िीिी खोल ली न्गज
भी ने एक एक गुलाब जामुन खाई और जीत ने वोह िीिी भी बिंद कर
दी। जीत कहने लगा,” आज के सलए इतना ही काफी है ,कक ी को शुबह ना हो जाए “. इ बाद हम भी
के
ो गए।
ुबह को अलामा बजते ही
ब उठने लगे। जीत उठ कर टॉयलेट की ओर चले गगया। िािंच
समनट बाद ही आ गगया और बोला,” ओए जाओ ना, इतना गिंद है कक लगता है
ारा शहर
यहािं ही आता है “. लेककन हम करते ककया,और कोई चारा भी नहीिं था। जो भी जाता नाक को िकडे हुए आता और बाि रे बाि कहता चला आता। मैं अिने मुिंह िर तौसलआ बाूँध कर चले गगया। जब मैं गगया तो दे खते ही दम घुटने लगा। ामने जो ददखाई दे रहा था बहुत घण ृ त दृकय था। जल्दी जल्दी फारग हो कर मैं बाहर तनकला और में िानी का डडब्बा सलए धोती लगाये खडे थे। लाला जी मजे आये तो वोह बबलकुल
ामने एक लाला जी हाथ
े अिंदर गए और जब बाहर
मा्य थे जै े उन को कोई फरक ही ना हो। इ ी तरह
एक एक करके गए और दख ु ी होते बाहर आ गए। अब अिनी अिनी िीिी में
भी लडके े मठाई
तनकाल कर खाने लगे। कुछ लडके बोल रहे थे,” यार ! िीिीआिं भरी हुई थीिं, अब कुछ कम ददखाई दे ती हैं ,ककया हुआ होगा?”. जीत बोला,” ओए जब गाूँव े चले थे तो रास्ते में रफ रोड िर धीरे धीरे नीचे बैठ गई होंगी “. बात गई आई हो गई,मास्टर हरबिं और हमें जे जे हाई स्कूल की तरफ ले जाने लगे। स्कूल द
स हिं जी आ गए
समनट के फा ले िर ही था।
जोगग्दर ककताबों वाले की दक ू ान
े कुछ आगे जा कर एक कोने में टूटी हुई एक दीवार में े जे जे स्कूल में दाखल हो गए। ाथ ही फुटबाल ग्राउिं ड थी। ग्राउिं ड में और
बने हुए गेट स्कूलों े आये बच्चे भी अिने अिने टीचरों
े बातें कर रहे थे। हमारी क्ला
की लडकीआिं
िहले ही एक औरत के
ाथ आई हुई थीिं।
घिंटी बज गई और हम
भी हाल में चले गए। यह हमारा िहला िहला ऐ ा इन्गम्तहान दे ने
का तजब ु ाा था। अिने अिने डेस्कों िर हम बैठ गए। सलखने के सलए िेिर समलने शरू ु हो
गए। कुछ दे र बाद छिे हुए वालों के िचे हमें ददए जाने लगे। जै ा कक मास्टर हरबिं स हिं जी ने हमें बताया हुआ था कक िहले ारा िरचा िड कर दब ु ारा िडना और िहले आ ान वालों के हल करने शुरू करना। मैंने
ारे
वाल िडे और मुझे
भी बहुत आ ान लगे। ारा िरचा हल करके आधा घिंटा िहले ही मैं बाहर आ गगया। जब मैं बाहर आया तो हरबिं
स हिं एक बैंच िर बैठे थे। मेरे आते ही वोह उठ खडे हुए और मुझे वालों के बारे में िूछने लगे। मैंने जवाब ददया,” मास्टर जी ! यह तो बहुत आ ान थे “. धीरे धीरे भी बाहर आ गए। लगता था
भी ठीक ही थे। हम
द ू रे को िूछने लगे,” यह स्िष्ट हो गई थी कक
ब कमरे की ओर जाने लगे। कमरे में िौहिं च कर एक
वाल कै े ककया,वोह कै े ककया ” करने के बाद एक बात तो
भी पवददयाथी ि न ा ही थे। अब हम खाना खाने के सलए होटल ढूिंढने
लगे। रे लवे रोड िर प्रभात होटल में जा कर थाली का भाओ िुछा। एक थाली के िािंच आने
ुन कर हम ने यहािं ही खाने का मन बना सलया। कहने की बात नहीिं कक खाना हमें इतना
स्वाददष्ट लगा कक
ारा हफ्ता वहीीँ खाने का मन बना सलया। यही नहीिं बन्गल्क जब हम
मैदट्रक में थे तो यहीिं ही खाना खाते रहे । खाना खा कर जब बाहर तनकले तो जीत कहने लगा,” यार द ु री बातें बाद में , िहले हर ुबह को खेतों में जाने का
ोचो”. बात जीत की
की दक ू ान के नजदीक िुहिंचे तो उ थी, उ
दक ु ानदार
ही थी, जब हम जोगग्दर ककताबों वाले
की दक ू ान के
ाथ ही एक बहुत बडी ब्जी की दक ू ान े िुछा तो वोह कहने लगा,” ज़्यादा दरू नहीिं है , बिंगा रोड िर ीधे चले
जाओ, खेत ही खेत समलेंगे”. खेत दे खने के सलए हम बिंगा रोड िर चल िडे। जै ा कक
दक ु ानदार ने बताया था,हमें बहुत दरू नहीिं जाना िडा। खेतों की तस् ली करके हम वाि कमरे में अ गए और द ू रे िेिर की तैयारी में म रूफ हो गए। याद नहीिं द ू रे ददन कौन िेिर था लेककन हम रात भर िडते रहे और
ो गए। जब
ब ु ह मैं उठा और अिनी गजरे ले
वाली िीिी खोली तो दे ख कर ही है रान हो गगया क्योंकक िीिी आधी ही थी। मैंने िहले जीत
ा
े िुछा तो वोह बोला,” तुझे वहम है , मेरे िा
करूूँ, ले ऐ ा कर,तू मुझ
तो अिना ही बहुत बे न है ,मैं क्यों चोरी े बे न ले ले “. अब यह बात ाधाहरण ी हो गई थी और कोई
इन बातों की िरवाह न करता। ददन में हम कभी बाूँ ाूँ वाले बाजार में घुमते रहते,नाथ का ोढा िीते,कभी बोहड के नीचे बैठे
रदार जी
े छोले कुलचे खाते। दरू दरू तक हम शहर की
ैर करते। हम फगवारे के वाक़फ कुछ ही ददनों में हो गए थे। शहर
े हमारा लगाओ बड
गगया था जो आगे चल कर हमारा द ू रा घर ही बन गगया था।
िता ही नहीिं चला इतनी जल्दी यह इन्गम्तहान खत्म हो गए और हम वाि
जाने की तैयारी
में जट ु गए। जब हम घर आये तो मन बहुत उदा था। लगता था न्गजिंदगी का एक अहम दहस् ा खत्म हो गगया था। अब हम ब इन्गम्तहान के नतीजों का इिंतजार करने लगे और आगे मैदट्रक के सलए कौन चलता…
ा स्कूल चन ु ना था, इ
की
ोच में डूब गए।
मेरी कहानी – 41 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन July 09, 2015
हमारे इन्गम्तहान हो गए थे और हम गाूँव में घूमते रहते। जै े अक् र होता है , उम्र के बढ़ने के
ाथ ही हमारा हर चीज को दे खने का नजररया ही बदल जाता है , हम गाूँव के इदा गगदा
घूमते और नए नए दोस्त बनाते। जीत भजन बहादर और मेरी दोस्ती बहुत घतनष्ट हो गई थी और हमें कुछ लोग चौकडी भी कह दे ते थे। जीत के मोहल्ले में दो दक ु ाने होती थी,एक अरोडे ककमीरी की जो िाककस्तान
े उजड कर आया था और एक थी एक किंबोज की न्गज
का नाम था तनरिं जन स हिं । वै े तो दक ु ान तनरिं जन स हिं ही चलाता था लेककन उ
का पिता
भी वहीीँ ही होता था। जै े गगयान की दक ु ान िर जाते थे इ ी तरह तनरिं जन स हिं की दक ु ान िर जाते रहते। हमें इ
दक ु ान में जाना इ
सलए अच्छा लगता था कक तनरिं जन स हिं बातें
बहुत ककया करता था और उ का बढ़ े भी ज़्यादा बातें करता था। जब भी ू ा पिता तो उ हम दक ू ान में जाते हम कोई नई खबर ले कर जाते और जान बझ ू कर उ बजग ु ा को न ु ा कर कह दे ते। खबर
न ु कर तनरिं जन स हिं का पिता अिंदर
में अिनी राय दे ने लगता, हम उ न्गज
े आ जाता और इ
खबर के बारे
को जवाब दे ते रहते और वोह बजग ु ा कुछ गरम हो जाता
की बातों को ले कर हम बाद में खब ू हूँ ते। एक ददन हम दक ु ान में गए और बोले,
“बाबा ! अमरीकनों ने चाूँद की फोटो खीिंच ली है , वोह कहते हैं कक चाूँद एक धरती है “. झठ ू बोलते हैं यह अमरीकन ! बाबा गरम हो गगया, अग़र ऐ ी बात है तो वहािं िडी बाबा नानक की खडािंव की फोटो ले कर ददखाते, भाई बबधी चिंद ने जो िूिंछों
े िकड िकड कर हागथओिं
को घुमा घुमा कर ऊिर फेंका था,उन की हडडओिं की फोटो ददखाते। बाबा बहुत दे र तक बोलता रहा,हम भी जवाब दे ते रहे । जब हम दक ू ान े बाहर आये तो बहुत दे र तक हूँ ते रहे ।
कभी कभी हम कोई धासमाक कहानी कहने ही लगते कक बाबा बोलने लगता ” एक ददन राजा ज्मेजा कही जिंगल में जा रहा था ” इ
के बाद बाबा तब तक कहानी
न ु ाता रहता जब
तक हम जमाईआिं न लेने लगते। इ ी तरह जीत की गली शुरू होते ही एक नए नए डाक्टर गोिाल स हिं ने
बडा होता था,उ एक चैटर बौक्
जारी खोली थी और गोिाल स हिं का एक लडका जो हम े दोस्ती हो गई थी। इ
ही था। जब गोिाल स हिं
रहते। यह लडका हमें दआ ु यों को समक् अच्छा लगता लेककन इतनी
े
ाल दो
ाल
लडके का नाम मुझे याद नहीिं है लेककन यह भी
जारी में न होता तो हम इ
लडके
े बातें करते
करके कोई शरबत बनाता और हमें पिलाता जो हमें
ोच हमारी नहीिं थी कक यह समक्स्चर नुक् ान भी दे
कता है ।
एक ददन हमें बोला,” तुमने अिनी आठवीिं की ककताबें बेच दी हैं? जो नई आठवीिं की क्ला आने वाली है उन को बेच दो,नहीिं तो तुम्हारी ककताबें बेकार िडी रह जाएिंगी “. उ बात हमें अच्छी लगी।
की यह
गाूँव में घूम घूम कर हम यह िता करने लगे कक कौन कौन लडके लडककआिं आठवीिं क्ला में दाखल हो रहे थे। जल्दी ही हमें िता चल गगया और हम ककताबों िे जो कीमत सलखी होती थी उ
े आधी कीमत िर बेच दे ते। इ
काम
े हमें अिने सलए भी स्कूल स लैक्ट
करने का पवचार आने लगा। हाई स्कूल की िढ़ाई हम ने फगवारे करनी थी और फगवारे में उ
वक्त तीन हाई स्कूल होते थे,जे जे हाई स्कूल न्गज
में हम ने इन्गम्तहान ददए थे,द ू रा
था आया हाई स्कूल जो हुसशआर िरु रोड िर था और ती रा था रामगढ़ीआ हाई स्कूल। भजन मैं और जीत ने रामगढ़ीआ हाई स्कूल ि द िं ककया लेककन बहादर को अिने चाचा
मास्टर गरु दयाल स हिं के कहने िर जे जे हाई स्कूल लेना िडा। स्कूल जाने के सलए हमें बाइस कलों की जरुरत थी। वै े तो हमारे घर में एक दादा जी को िडती थी,इ
शायद
की जरुरत
सलए नया बाइस कल लेने के सलए मैंने दादा जी को कहा। एक
ददन मैं और दादा जी फगवारे गए और एक दादा जी िहले
ाइकल था लेककन इ
ाइकलों की दक ू ान में चले गए। दक ू ान वाले को
े ही जानते थे। यह िलाही गाूँव का रहने वाला शख्
ोहन स हिं था। फगवारे में इ
की दक ू ान
ब
बाइस कल रखे हुए थे जो आधे कफट ही थे।
था न्गज
का नाम
े बडीआ होती थी। वहािं बहुत
े नए
ोहन स हिं ने बहुत ाइकल ददखाए और कफसलि ाइकल ररकमें ड ककया जो मुझे भी अछा लगा। कफर उ ने ाइकल की कीमत २०० रूिए बताई। जब हम ने फै ला कर सलया तो ोहन स हिं जै े बदढ़या हैं,
ीट न्गज
ब दक ु ानदार करते हैं कहने लगा,”
ाइकल के ररम यह ले लो, टायर यह
को काठी बोलते थे,यह अच्छी है , मड गाडा यह ले लो, फ्लाई वील यह
अच्छा है “, ऐ े ऐ े कहता गगया और दादा जी हाूँ हाूँ कहते गए। कफर ाइकल कफट करना शुरू कर ददया। थोह्डा
कराने के सलए आ जाता।
ोहन स हिं ने
ा कफट करता तो कोई गाहक
ोहन स हिं हमारा काम छोड उ
ाइकल ठीक
का काम करना शुरू कर दे ता।
कुछ दे र बाद कफर हमारा काम शुरू कर दे ता। कफर कोई और गाहक आ जाता तो उ काम शुरू कर दे ता। इ
तरह शाम हो गई। जब
ाइकल तैयार हो गगया तो
का
ोहन स हिं एक
एक चीज का दह ाब करने लगा और बबल बनाया तकरीबन २५० रूिए। यहािं आ दादा जी गुस् े हो गए और बोले,”तुम ने तो २०० रूिए कहा था ”.
ोहन स हिं बोला,” दादा ! तुम ने
बोले,”िहले क्यों नहीिं बताया,मैं तो २०० रूिए ही दिं ग ू ा “. इ
बात िर ककतनी दे र तक बह
ाइकल ले कर हम गाूँव को रवाना हो गए। मैं तो िरु ाना
ाइकल ही चलाता था, अब नया
अच्छी कुआसलटी के िाट्ा
डलवाए हैं, २०० रूिए तो बेस क कीमत थी “. दादा जी
चलती रही और आखखर में २४० रूिए िर बात खत्म हुई।
ाइकल चला कर तो मुझे मजा ही आने लगा। मैं बहुत खश ु था। ारी रात मैं बहुत खश ु रहा। ब ु ह होते ही ाइकल ले कर जीत को ददखाने चल िडा। जब उ के घर िौहिं चा तो
वोह दरवाजे िर ही खडा था। मुझे दे खते ही बोला,”यह हुई ना बात, भई तेरीआिं तो मौजािं ही मौजािं “. कफर हम अिंदर चले गए। जीत का ाइकल भी खडा था न्गज के फ्रेम को बहुत े टािंके लगे हुए थे, फ्रेम जगह जगह िर वैलड हुआ हुआ था। हिं कर और अिने ाइकल की तरफ इशारा करके जीत बोला,” यह मेरा घोडा है ,दे खना तेरे
े आगे जाएगा ” और हिं ने
लगा। जीत में बचिन
े ही बहुत स फतें थीिं, घर की हालत इतनी अच्छी नहीिं थी लेककन वोह इतना खश ु तबबयत था की वोह अमीर खानदान का ही लगता और यह बात उ ने स्कूल छोडने के बाद बिंबे जा कर
ाबत कर दी। जीत की बातें करने लगिंू तो बताने को बहुत
वक्त लगेगा।
हमारे नतीजे आ गए थे और निंबर ककतने थे,ना ही कोई
भी िा
हो गए थे। हमें कोई िता नहीिं चला कक कक
दटा कफकेट ददया गगया। ब
हमें बता ददया गगया कक न्गज
के ने भी
आगे िडना है फगवारे का कोई भी स्कूल जॉइन कर लें । भजन मैं और जीत एक ददन
फगवारे रामगढ़ीआ स्कूल जो हददआबाद रोड िर है चले गए। वहािं जा कर हम है ड क्लका को समले न्गज चॉए
ने खुद ही हमारे फामा भरे और
िूछी। हम तीनों ने
ABCD, जीत और मुझे A
ाइिं
ारे
ब्जेक्ट्
के बारे में
मझाया और हमारी
और ड्राइिंग स लैक्ट की। मैदट्रक में चार
ेक्शन होते थे
ेक्शन समला,भजन को D समला,मुझे याद नहीिं ककतनी दे र बाद
हम ने स्कूल जाना था लेककन उ ी ददन हमें
ारे क्ला
रूम ददखा ददए गए। हमारे सलए हर
एक बात नई थी। स्कूल के गेट के बाहर कुछ खाने िीने की रे हडीआिं थीिं। एक थी लुभाया राम की रे हडी,न्गज
िर वोह आलू छोले
स्कूल जॉएन कर सलया था लेककन हम इक्कठे ही आया करना था।
ारी क्ला
मो े दटक्कीआिं बेचता था। बहादर ने जे जे हाई
भी ने गाूँव में
े इक्कठे ही जाय करना था और
े हम चारों ने ही फगवारे जाना था, द ू रे
लडके लडककआिं के सलए स्कूल हमेशा के सलए खत्म हो गगया। कभी कभी
ब
ोचता हूूँ,ककतनी
बुरी बात थी यह कक हमारे चारों के बगैर और कोई भी नहीिं था जो आगे िड
के। एक
लडका रावल तो बहुत ही हुसशआर था,कुछ और लडके भी अच्छे थे लेककन घरों की मजबूरी के कारण वोह आगे जा नहीिं के। बबमला की तो आठवीिं िा करने के बाद शादी ही हो गई और कुछ
ाल बाद अिने ितत के
शादी हुई थी तो बबमला के
ाथ इिंग्लैण्ड के शहर कौवे्ट्री में आ गई थी। जब मेरी
ात आठ
ाल के दो बेटे थे।
कफर वोह ददन भी आ गगया जब हम ने स्कूल जाना था, आम के आचार और प्याज के
ाथ में एक
ाथ माूँ ने तीन िराठे िका कर एक डडब्बे में रख ददए थे। इ ी तरह जीत और
भजन ने भी िराठे ले सलए। यह बात सलखनी मैं भूलूिंगा नहीिं कक हर रोज हम िराठे ही ले कर जाते थे और इन को मजे
े खाते थे। लभ ु ाया राम की रे हडी
िर बैठ कर खाते। हम चारों दोस्त
ाइकलों िर
े छोले लेते और वहीीँ बैंच
वार हो कर चल िडे। बातें करते हुए जा रहे थे। िहले बाना गाूँव आया कफर प्लाही। अब तो प्लाही े ीधी डक फगवारे को जाती है
लेककन उन ददनों हम को िहले प्लाही की नहर के जाना होता था,कफर हुसशआर िुर रोड िर चक्क्र हमें और लगाना िडता था। यूिं तो इ ददनों में नहर के गीली हो कर
ाथ
ाथ चल कर हुसशआर िुर रोड को ीधे फगवाडा िौहिं चना होता था। यह दो मील का की हमें कोई तकलीफ नहीिं थी लेककन बारश के
ाथ
ाथ जाता यह रास्ता बहुत बुरा हो जाता था। इ रास्ते की मट्टी ाइकलों में फिं जाती थी, इतनी फिं ती कक ाइकल खडा ही हो जाता और
ाइकल ले कर िैदल चलते तो हमारे जूतों को यह कीचड इतना लग जाता कक चलना
मन्गु ककल हो जाता था। हम अिने िजामे उतार कर
ाइकल की टोकरी में रख लेते। कफर जब
हम हुसशआर िरु रोड िर िौहिं चते तो िहले ाइकलों में धिं े मड को गाडों में े तनकालते,कफर बारश के िानी े भरे गढ़ों के िा जा कर ाइकल ाफ करते और िैडल को घम ु ा घम ु ा कर मड गाडा
ाफ करते। उ
जवानी की उम्र,थकावट कहाूँ?
के बाद िजामे िहन कर स्कूल को रवाना होते।
हम स्कूल िौहिं च गए और एक नई दतु नआ में प्रवेश हो गए। यह स्कूल स फा लडकों के सलए
ही था। शहर के लडके तो काफी हुसशआर थे लेककन हमारे सलए ब कुछ नया था। ारे टीचरों का टाइम टे बल हमें दे ददया गगया था। िहली क्ला A क् े शन वाले कमरे में मास्टर पवद्या प्रकाश के
ाथ लगी जो टीचर इन चाजा भी था। यह हमारे सलए एक अच्छी शुरुआत
थी क्योंकक अब भी जब कभी स्कूल को याद करता हूूँ तो मास्टर पवद्या प्रकाश की याद ही ज़्यादा आती है ,इ ी सलए मैंने बहुत वर्ा िहले स्कूल की पवडडओ ली थी और ख़ा कर इ ए ैक्शन वाले कमरे की जो वै े ही था जै े हमारे वक्त में था,वोह ही डैस्क वोह ही ब्लैकबोडा।
पवद्या प्रकाश ने जो लैक्चर हमें ददया वोह तो मुझे याद नहीिं है लेककन जो हम हिं ाया वोह अभी तक याद है । मास्टर पवद्या प्रकाश कहानीआिं बहुत कहानीआिं तो छोटी और ाधारह्ण ही होती थीिं लेककन जो वोह ऊिर
भी को
ुनाया करते थे।
े म ाला लगाते थे
उ
े हमें हिं ी बहुत आती थी. इ ी सलए मैंने उ की ऐक कहानी जो चीिंटी और बीिंडे की थी, बहुत जगह उ का इस्तेमाल ककया। वोह कहानी मैंने रे डडओ को भी भेजी थी। सलखते वक्त मेरे
ामने पवद्या प्रकाश और उ
जोक बना के ए
का हूँ ता अिंदाज ही
ामने था। उ
ुनाई थी। पवद्या प्रकाश हमें इिंन्गग्लश िढ़ाते थे और बहुत अच्छा िढ़ाते थे।
ैक्शन वाले कमरे में न्गज
वहीीँ आ जाता था, स फा
ाइिं
कक ी
ब्जैक्ट का िीरीयड होता उ
को िढ़ाने वाला टीचर
और ड्राइिंग के िीररयड में ही हमें उन कमरों में जाना िडता
था। दह ाब हमें िहले किूर स हिं िढ़ाते थे जो नाक में बोलते थे, इ ी सलए उ बोलते थे। उ
ने यह कहानी
की एक ख़ा
बात को लेकर हम उ
को नाक में बचिंू बोलते थे। बार बार बोलते,”बचिंू कुछ महीने ही िढ़ाया,इ और छोटी छोटी ऑ िंखें ,
को हम नुणा
की सममक्री करते रहते थे। वोह बच्चू
मझ आई कक नहीिं?”. किरू स हिं ने हमें
के बाद मास्टर मल ू राज जी आ गए। मल ू राज जी छोटे कुछ मोटे
र के वालों के बगैर अजीब
े ददखाई दे ते थे लेककन ददल के बहुत
अच्छे और यह
ब
े अच्छी बात वोह िढ़ाते बहुत अच्छा थे। िढ़ाते वक्त कभी कभी बोल दे ते,” वाल ददली यूतनवस ट ा ी में १९४८ में आया था”. कभी बोल दे ते ” यह वाल ििंजाब
यूतनवस ट ा ी में आया था “. मैदट्रक के फाइनल े टयूशन भी ली थी और हम उ
े दो महीने िहले मैं और जीत ने मूलराज जी
के घर जाय करते थे जो बाूँ ाूँ वाले बाजार के नजदीक
ही एक तिंग गली में था। उ बेटा था न्गज
की बीवी बहुत अच्छी थी और एक ात आठ वर्ा का उन का का नाम चमन था। वोह हम े बी रूिए महीना ट्यूशन फी लेते थे। उ की
बीवी चाय के बगैर हमें जाने ना दे ती। घर का वातावरण बहुत अच्छा होता था। उ की टयश ू न े हमें बहुत फायदा हुआ क्योंकक फाइनल में दह ाब में मझ ु े बहुत अच्छे माक् ा समले और जीत भी अच्छी तरह िा बन कर रह गई है । चलता…
हो गगया। मल ू राज की यह दी हुई टयश ू न भी एक यादगार
मेरी कहानी – 42 गुरमेल स हिं भमरा लिंदन July 13, 2015
मास्टर पवद्या प्रकाश और मूलराज के बाद ििंजाबी के टीचर आनिंदिाल स हिं होते थे, बहुत हिं मुख, बूदटओिं वाली िगडी और कोट िैंट में बहुत खब ू ूरत लगते थे और रिं ग के भी गोरे थे। जब बोलते उन के मुिंह
े हर तनकला शब्द फूल जै ा लगता। यह मैं फखर
े कह
कता हूूँ कक ििंजाबी की ककताबें िडने की आदत मुझे इन े ही लगी। बहुत अच्छे इिं ान थे वोह। ाइिं रूम में जब जाते तो एक टीचर थे न्गजन का नाम तो मुझे याद नहीिं लेककन िीठ िीछे हम उ
को रणजीत स हिं बोलते थे क्योंकक उ
की एक आूँख काणी और गचटी थी।
शेरे ििंजाब महाराजा रणजीत स हिं ििंजाब का महाराजा होता था न्गज खराब होने के कारण काणी थी,इ
सलए हर ऐ े शख्
न्गज
की एक आूँख चीचक
े
की एक आूँख खराब हो उ
को
रणजीत स हिं ही बोल दे ते थे। इन को रणजीत स हिं कहने का एक और कारण भी था कक यह बहुत कुरख्त हुआ करते थे। कभी हूँ ते ददखाई नहीिं ददए, कभी हूँ ते भी तो रोने जै ा चेहरा होता। दो ाल हम ने इन े ाइिं िडी लेककन कोई ऐ ी याद नहीिं न्गज को सलख कूँू । इ
के बाद हम को जाना होता था ड्राइिंग रूम में न्गज
के टीचर थे नरिं जन दा
जो
बहुत बढ़ ू े थे, क्लीन शेव और ढीली ी िगडी, खादी की कमीज िजामा, िढ़ाते अच्छा, लेककन गम म े रहते। िढ़ाते और िीरीयड खत्म होने िर चले जाते। इ्होने हमें तकरीबन दो ु ु महीने ही िढ़ाया होगा कक ररटायर हो कर चले गए। इ
के बाद एक
रदार जी ड्राइिंग
मास्टर आये (नाम याद नहीिं) न्गज्होंने आते ही अिनी िें ट की हुई तस्वीरें कमरे की दीवार िर लगा दीिं। तस्वीरें बहुत खब ू ूरत थीीँ लेककन यह मास्टर जी कुछ अहिं कारी ककस्म के थे,
कभी कभी गाली भी तनकाल दे ते लेककन हिं ी भरे लहजे में । खझडकते बहुत थे,बात बात िर टूट िडते। मुझे तो कोई ददकत नहीिं थी लेककन भजन और जीत के कहने िर हम ने उ की क्ला
में जाना छोड ददया। लेककन मैंने अिने घर ही में ड्राइिंग बोडा िर बहुत बनाईं और मुझे ड्राइिंग की अच्छी मुहारत हो गई। एक महीना जब क्ला
ी स्केल्ज
में हम नहीिं गए तो ड्राइिंग मास्टर ने हमारी शकायत है ड मास्टर
कर दी। एक ददन हम को है डमास्टर के ऑकफ ककस्मत अच्छी थी कक ऑकफ
े
में हाजर होने का लैटर आ गगया। हमारी
में अस स्टें ट है डमास्टर आ ा स हिं ही थे, अगर है ड मास्टर
अमर स हिं होते तो हमारी शामत ही आ जाती। आ ा स हिं ने हम को ड्राइिंग की क्ला अटैंड करने का कारण िुछा तो मैं तो चि ु रहा लेककन भजन बोल िडा और बोला ”
ना र, यह
खझडकते बहुत हैं और कभी कभी गासलआिं भी तनकालते हैं”. आ ा स हिं हम को बोला, “जाओ ” और ड्राइिंग मास्टर को रुकने के सलए कहा। हमें नहीिं िता कक आ ा स हिं ने ड्राइिंग मास्टर को ककया कहा लेककन इ
के बाद ड्राइिंग मास्टर का रवैया ही बदल गगया। एक ददन उ
हमें एक टे बल की स्केल बनाने को दी न्गज
का ऐसलवेशन
ने
ाइड और प्लेन बनाना था और
यही लफज हर एक
ाइड के ऊिर भी सलखने थे। मैंने जब अिनी स्केल खत्म की, मुझे खुद
को ही बहुत अच्छी लगी क्योंकक ारे अिंग्रेजी के लैटर इ तरह बने थे जै े पप्रिंट हुए हों। जब मैंने अिना ड्राइिंग बोडा मास्टर जी के टे बल िर रखा तो मास्टर जी ने स्केल दे ख कर मेरे मूँुह की ओर दे खा और बोले,” ओ भाई,तू ने तो कमाल कर दी,इतनी अच्छी? तुम तो छुिे रुस्तम तनकले “. ब
मास्टर जी के वोह शब्द अभी तक याद हैं और कफर कभी भी उ
ढिं ग
हायता
का कोई िीररयड सम
नहीिं ककया। कफर मैंने कि प्लेटें फूलदान जै ी चीजों को बनाने का
ीखा जो िैंस ल की
े एक आूँख बिंद करके और िैंस ल को खडी करके
िमाएश लेना होता था। कफर घर आ के भी मैं कैलेंडरों की कॉिी करता न्गज
िर तस्वीरें होती
थीिं। गरु ु नानक दे व जी, गरु ु गोबबिंद स हिं जी,महात्मा गािंधी,जवाहर लाल नेहरू और इ इलावा
के
ोहणी मदहवाल लेला मजनू और कुछ अ्य तस्वीरें बना कर मैंने अिने कमरे में
लगाईं थीिं। ज़्यादा तस्वीरें मैंने िैंस ल शेड में बनाईं और कुछ को कलर ककया। अब तो घर वालों ने कहाूँ फैंक दी,िता ही नहीिं लेककन यह
ब इ ी मास्टर जी की वजह
े ही
िंभव हो
का। स्कूल में टीचर तो और भी थे लेककन उन की कोई ऐ ी याद नहीिं न्गज कर
कूँू ,हाूँ एक मास्टर हरी स हिं होते थे न्गज
का कोई ख़ा
वणान
की सममक्री करते रहते थे। जै े जै े वक्त
गुजरता गगया,नए नए दोस्त बनते गए। फगवारे के िूवा की ओर एक गाूँव है “भुल्ला राई” यहािं
े बहुत लडके आते थे न्गजन े दोस्ती हो गई थी,इन में े एक था तनमाल जो मुझ े भी िहले इिंग्लैण्ड आ कर ाउथहॉल में ैटल हो गगया था। एक था अजीत स हिं जो फगवारे की एक फैक्ट्री एसशआ इलैन्गक्ट्रक कम्िनी के मासलक जुझार स हिं का बेटा था,वोह भी मुझ
े
िहले इिंग्लैण्ड आ गगया था। िरगट स हिं जो बहुत अच्छा गाता था। करनैल स हिं न्गज की शादी उ वक्त हो गई थी और उ के दो बेटे भी थे ,हम उ को छे डा करते थे। इन के इलावा दे व, छोटी
ुररिंदर, अवतार, गुरमेल खोथडािं और ख़ा
ी कहानी है । इ
की शादी भी उ
दोस्त बना था” नररिंदर “. इ
वक्त हो गई थी,कभी मैं उ
के गाूँव चले
जाता,कभी वोह मेरे गाूँव आ जाता। जब मैं यहािं इिंग्लैण्ड को आना था तो उ की कैंटीन में र गुल्ले खखलाये। मैं यहािं आ गगया था और ालों बाद जब मैं वापि
मैंने उ
को
ने मुझे कालज
र के वाल कटवा सलए थे। कुछ
इिंडडया आया तो एक ददन जलिंधर शहर में घूम रहा था तो
े मुझे नररिंदर आता ददखाई ददया। मैंने घिंटी बजाई और उ
की भी
ामने
को खडा होने का इशारा ककया।
त स री अकाल बोला और हम बातें करने लगे। कुछ दे र बाद मुझे कुछ काम
है कह कर नररिंदर चले गगया। मुझे उ
का बबहे पवयर कुछ अजीब
ा लगा। कुछ ददनों बाद
हमारे गाूँव का एक लडका जो कालज में िडता था हमारे घर आया और उ
ने मुझे नररिंदर
का मै ेज ददया कक मैं उन को कालज में समलिंू क्योंकक नररिंदर कालज में है ड क्लका लगा
हुआ था। जब मैं कालज िौहिं चा तो नररिंदर िहले ही अिने ऑकफ े बाहर तनकल आया और आते ही मझ ु े बाूँहों में ले के जकड सलया और बोला,” यार मैंने तो तझ ु े िहचाना ही नहीिं
था,घर आ के मैं बहुत दे र तक ोचता रहा कक कौन हो कता है , कफर अचानक मुझे याद आया तो िता चला कक वोह तो तू था “. बहुत बातें हम ने कीिं और उ ने उ ी कैंटीन े चाय पिलाई।
जै े जै े दोस्त बढ़ते गए तै े ही हमारा एक द ू रे के गाूँवों को जाना आना शुरू हो गगया। एक दफा मैं और जीत भुला राई अिने दोस्त अजीत के घर गए और वहािं तीन ददन रहे ।
तनमाल भी वहािं आता रहता था। अजीत का घर बहुत बडा था और उ के ड्राइिंग रूम में एक बहुत बडा मफी का इलैन्गक्ट्रक रे डडओ न्गज में ररकॉडा प्लेअर भी था रखा हुआ था। यह रे डडओ बहुत ् ु दर था जो तकरीबन चार फीट लम्बा और दो फीट ऊिंचा होगा। इ में ारी दन ु ीआिं के रे डडओ स्टे शनों के नाम सलखे हुए थे। हम धीरे धीरे भी स्टे शन न ु ने की कोसशश करते। जीत की तरह अजीत भी बहुत शरारती लेककन अच्छा लडका था। अमीर घर होने के बावजद ू वोह हमारे ाथ घल ु समल कर रहता। उ वक्त मेरी िगडी ब े अच्छी होती थी। जीत अजीत दोनों के सलए मैंने बहुत अच्छी िगडी बाूँध कर उन को दी थी और हम तीनों ने उ के घर की छत िर खडे हो कर फोटो खखचवाई जो अब भी कहीिं इिंडडया घर में रखी हुई है । यह तकरीबन बी
ाल की बात होगी जब मैं और मेरी ित्नी
ऊथहाल में तनमाल की बेटी
की शादी में शामल होने गए। जब हम गाडी िाका करके कार िाका
े बादहर आये तो िीछे
े
कक ी ने बोला, “ओए !”. मैंने िीछे मुड कर दे खा और आवाज दे ने वाले को दे खने लगा। जब मैंने गधयान
े दे खा तो वोह अजीत था। गले लग कर हम समले। ककतने चेहरे हमारे बदल
गए थे। वोह अजीत जो बहुत स्माटा हुआ करता था अब अजीब ा लगता था। हम ने बहुत बातें कीिं। इ के बाद मैं तनमाल और अजीत को दब ु ारा नहीिं समल का ककओिंकक कुछ हालात ही बदल गए।
कूल में तनमाल िडने में बहुत हुसशआर हुआ करता था और शरीफ भी अवल दजे का था। हर वक्त द ु रे लडकों की मदद करता रहता। तनमाल की एक बात िर हम बहुत हिं ा करते थे।
कूल के नजदीक ही एक
एक ििंजाबी की िबत्रका “कौमी
कूल व ् कालज की पप्रिंदटग प्रै
्दे श ” छिता था। मैंने एक छोटी
्दे श में छिने के सलए। मैंने तनमाल को ददखाई। इ
होती थी,यहाूँ
े
ी कहानी सलखी कौमी
कहानी की एक लाइन थी,” आह
!बदन ीब अबला “. तनमाल िडता हुआ बोला,” आह बदन ीब घगरा “. इ िर हम इतना हूँ े कक यह जोक ही बन गई। मेरी कहानी तो नहीिं छिी लेककन यह बदन ीब घगरा हमेशा के सलए छि गगया न्गज ए
को बार बार बोलते रहते।
ैक्शन में हम आख़री डैस्क िर बैठा करते थे। मैं, जीत,अवतार और
ुररिंदर। अवतार को
तारी बोल्ते थे। तारी बहुत ही शरीफ और ड्राकुल था, मूलराज े बहुत डरता था ककओिंकक तारी िडाई में बहुत ही कमजोर होता था। मेरी कलाई िर रोमर घडी होती थी जो मेरे पिता जी ने अफ्रीका
े ला कर दी थी। तारी को ब
एक ही बात
झ ू ती थी। कुछ दे र बाद मुझे
िछ ू ता,”ओ गरु मेल ओ गरु मेल टै म की होइया?”मैं कह दे ता,”आधा घिंटा रहता है “. तारी
तनराश हो जाता। कुछ दे र बाद कफर िूछता,”ओ गरु मेल टै म की होइया “. मैं कह दे ता,िच्ची समनट रहते हैं। तारी कफर उदा
हो जाता। इ
बोलता,” गुरमेल तू तो बोलता था िची
के दो समनट बाद ही बैल बज जाती। तारी
समनट रहते हैं “. तारी पवचारे की जान में जान आ
जाती। भाग्य की बात दे खो तारी भी हमारे िीछे इिंग्लैण्ड आ गगया और अब हम
े दो
ककलोमीटर की दरू ी िर ही रहता है , िुत्र िोते हैं और हमारी तरह बजुगा बना हुआ है । द ु रे डैस्क िर हमारे नजदीक एक लडका बैठता था जोगग्द् स हिं । यह लडका बहुत गोरा और तगडा था और वेट सलन्गफ्टिं ग ककया करता था लेककन यह तो मैदट्रक के एग्जाम
े िहले ही
इिंग्लैण्ड आ गगया था और बाद में कभी नहीिं दे खा। बारह तेरह वर्ा की बात होगी,मैं एक िाका में कफट रहने के इरादे में जाया करता था। िाका में एक गोल
डक है न्गज
िर चलने
े तेज चलने के सलए िाका े एक ककलो मीटर का
फा ला तय हो जाता है । मैं इ ओर
डक िर तेज तेज चलता हुआ आगे बढता जाता। द ु री े एक स हिं जी बडी गचटी दाहडी में आते हुए मुझ को मुस्करा कर आगे चले जाते। यह
चलने की ऐक्
ााइज के बाद मैं िाका में घूमने लगता और फूलों को तनहारता जाता। वोह
स हिं जी भी झाडडओिं में बैठी काटो (squirls) की तरफ तछलके वाली मूिंगफली फैंकते। काटो अिनी छोटी
ी टािंगों
े जो हाथ का काम दे ती थीिं मूिंगफली खाने लगतीिं। मूिंगफली खाती
वोह बहुत मनमोहक लगतीिं। इ ी तरह कई महीने हो गए। एक ददन मैं इ ी डक िर तेज तेज चल रहा था तो द ु री तरफ े वोह स हिं जी आते ददखाई ददए। जब नजदीक आये तो मैंने उ
को बुला सलया। मैं ने कहा स हिं जी,” हम एक्
ााइज तो दोनों करते हैं,ककयों न
दोनों एक तरफ इकठे चलें “. हम दोनों इकठे चलने लगे। कुछ दरू जा कर स हिं जी बोले,” भाई
ाहब ! आि का नाम गुरमेल स हिं तो नहीिं?”. मैंने उन के चेहरे की ओर दे खा लेककन
मुझे कुछ
मझ नहीिं आया। वोह कफर बोला, ” आि का गाूँव राणी िुर है ?”. जब मैंने हाूँ
कहा तो वोह बोला, ” मेरा नाम जोगग्दर स हिं है ,हम रामगररया स्कूल में पवद्या प्रकाश
े
िडा करते थे “. अब मुझे याद आ गगया और मैंने उ
के हाथ िकड सलए। हम ने बहुत बातें कीिं और रोज रोज समलने लगे। वोह डायबेदटक था और कुछ दे र बाद उ के बेटे ने उ को अिने िा
बुला सलया और कफर
े हम िरदे
ाल बाद समले थे। ऐ ा लगता है इ
के शहरों में गुम हो कर रह गए। हम ४२
दतु नआ में हम
ब अजनबी हैं।
आखखर में मैं स्कूल के है ड मास्टर जी के बारे में कुछ बताना चाहूिंगा। है डमास्टर जी का नाम था अमर स हिं । ददा ओिं में स्माटा ूट िहनते थे और नेकटाई लगाते थे, िगडी भी बहुत अच्छी होती थी। गसमाओिं में ट्राऊजर और हाफ स्लीव शटा िहनते थे। दाहडी कफक् ो लगा कर नीटली बाूँधी हुई होती थी। बहुत रोअब होता था उन का। उन े भी लडके और टीचर डरते थे। स फा एक दफा ही मैं उन के दफ्तर में कक ी काम े गगया था। जब मैं अिंदर दाखखल हुआ तो रोअब
े बोले,”की गल ऐ?”. जै े उ्होंने मेरे
ाथ बोला,दब ु ारा उन के दफ्तर में
जाने का मुझ में हौ ला नहीिं हुआ और यह मैंने बाहर आ कर भी को बताया। है ड मास्टर जी का एक लडका भी हमारे ेक्शन में था। हम ने उ को कहा कक ” तेरे बाि े तो डर लगता है “. तो वोह हिं
कर बोला,” मैं ककया कहूूँ, मैं तो खद ु पिता जी े डरता हूूँ ”. अस स्टें ट है ड मास्टर होते थे आ ा स हिं , बहुत शरीफ, उन की दाहडी और िगडी गरु ु नानक दे व जी की रस्वीर जै ी और उन को जब भी समलते
त स री अकाल बोलते लेककन अमर
स हिं को दे ख कर हम दरू ही हो जाते थे। बहुत वर्ों बाद जब मैं यहािं था तो िता चला था कक अमर स हिं ररटायर हो गए थे और उन का एक लडका उन की जगह है डमास्टर बन गगया था लेककन मझ ु े िता नहीिं कक वोह कौन
ा लडका था। है डमास्टर अमर स हिं की एक लडकी की शादी यहािं ही बसमिंघम में एक लडके े हो गई थी। मझ ु े इ
खाना खाने गए थे। उ
बात का तब िता चला जब मैं और बहादर उ रै स्टोरैंट का नाम होता था ” eat out ” जो
अब तो वोह हमारी उम्र का ही है और कभी कभी उ
लडके के रै स्टोरैंट में ौहो रोड िर होता था.
को टीवी िर दे खते रहते हैं क्योंकक
वोह स आ त में म रूफ रहता है । हैडमास्टर अमर स हिं कभी कभी यहािं अिनी लडकी को समलने के सलए आता रहता था। जी तो चाहता था कक उ ख्त
ुभाओ होता था उ
को समला जाए लेककन जो उन का
को याद करके ददल ने माना नहीिं। कभी कभी
ोचता हूूँ कक
न्गजिंदगी में ककतने लोग समले न्गजन को दब ु ारा समलने की चाहत रहती है और ककतने ऐ े हैं जो याद तो आते हैं लेककन उन को समलने की खाहश नहीिं होती। शायद यही न्गजिंदगी की च्चाई है कक हर एक इिं ान एक द ू रे चलता…
े सभ्न है ।